लघु निबंध
सहनशीलता का महत्व
भारतीय संस्कारों में सहनशीलता को बहुत महत्व दिया गया है। सहनशीलता का गुण व्यक्ति को तभी मिलता है, जब उसके अंदर अच्छे संस्कारों का समावेश हो। सहनशीलता एक बहुत बड़ा गुण है। जो मानव को अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ सिद्ध करता है। मानव को जीवन में विभिन्न परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। सहनशीलता, जिसे हम सहनशक्ति के नाम से भी जानते हैं, ऐसा गुण है जिससे व्यक्ति अपनी अनुकूलता एवं प्रतिकूलता, दोनों को सहन कर पाता है।
किसी का जीवन सदैव एक सा नहीं रहता। सहनशीलता हमें आलोचना, निंदा, अपमान, घृणा, ईर्ष्या, एवं हर अन्य प्रकार की बुरी भावनाओं के प्रति अनुचित प्रतिक्रिया करने से बचाती है और इन्हें सहज एवं सहर्ष रूप से स्वीकार करने की शक्ति प्रदान करती है। सहनशीलता का यही गुण बहुत कुछ संस्कारों पर ही निर्भर करता है।
आजकल नई पीढ़ी में सहनशीलता की मात्रा कम होती जा रही है। इसका प्रमुख कारण भौतिकता वाद, एकाकी परिवार, पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव है। संस्कारों के अभाव माता-पिता विभिन्न समस्याओं में उलझे रहने के कारण बच्चों को अधिक समय नहीं दे पाते। अनेक परिवारों में बुजुर्गों का सानिध्य बच्चों को नहीं मिल पाता है। टीवी, मोबाइल, इंटरनेट में खोए रहने वाले बच्चों में सदगुण व दुर्गुण अधिक पैदा हो रहे हैं।
संचार जगत के विभिन्न-विभिन्न माध्यम बच्चों को पाश्चात्य जगत के संपर्क व प्रभाव में लाकर भारतीय संस्कृति से दूर ले जाते हैं। परिणाम यह होता है कि बच्चे अपने माता-पिता तक की बात को अनसुना कर जाते हैं। ऐसे में उनके अंदर सहनशीलता का भी अभाव हो रहा है। संस्कारों के अभाव के कारण ही
आज बच्चों में सहनशीलता समाप्त होती जा रही है। उन्हें जरा-जरा सी बात पर क्रोध आ जाता है। क्रोध तो स्वास्थ्य के लिए भी घातक माना गया है। ऐसे में बच्चों के अंदर सहनशीलता और सभी के साथ आत्मीय संबंध बनाने की बात सिखाना जरूरी है। निष्कर्ष आप अपने अंदर सहनशीलता के गुणों को विकसित कर सकते हैं और इस गुण द्वारा क्रोध को कम कर सकते हैं।
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