भ्रष्टाचार मुक्त भारत विकसित भारत (निबंध)

निबंध

भ्रष्टाचार मुक्त भारत विकसित भारत

 

प्रस्तावना

मानव की परख करने के लिए उसके आचरण और व्यवहार को अधिक महत्व दिया गया है। मानवता की पहचान के लिए जिन गुणों का होना आवश्यक है, उनमें कर्तव्य-परायणता, सहानुभूति, सत्य-प्रियता एवं परोपकार आदि प्रमुख है। इन्हीं गुणों से युक्त व्यक्ति सदाचारी कहलाता है। इसके प्रतिकूल आचरण करने वाले व्यक्ति को भ्रष्टाचारी की संज्ञा दी गई है। इस प्रकार व्यक्ति का जो कार्य आचरण के विरूद्ध होगा या फिर आचरण के अनुचित होगा हम उसे हम भ्रष्टाचार कहेंगे । भ्रष्टाचार की समस्या आज की ज्वलंत समस्या है ।

भ्रष्टाचार का दानव मनुष्य को अपने पंजे में दबोच रहा है और उसका गला घोंट रहा है । भ्रष्टाचार से अभिप्राय है रिश्वत व बेईमानी । इसके मूल में धन इकट्ठा करने की लिप्सा रहती है । किसी भी व्यक्ति की योग्यता, अनुभव आदि को ताक पर रखकर दूसरे अयोग्य व्यक्ति को किसी पद पर नियुक्त करना भी भ्रष्टाचार के अन्तर्गत ही आता है। वस्तुओं में मिलावट करना, जनता की विवशताओं का अनुचित लाभ उठाकर आवश्यक वस्तुओं को गोदाम में भर लेना भी भ्रष्टाचार है। क्या आपने कभी सोचा है कि भ्रष्टाचार का क्या कारण है।

वैसे तो भ्रष्टाचार के बहुत से कारण है लेकिन इनमें सबसे प्रमुख है…

सामाजिक कारण

भ्रष्टाचार बढ़ने का मुख्य कारण देश की सामाजिक नैतिकता । इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत में सामाजिक नैतिकता का स्तर बहुत गिरा हुआ है। भारतीय समाज और प्रशासन में अनेक अत्याचार होते रहते हैं, परंतु उनके विरुद्ध आवाज उठाने वाले बहुत कम हैं। इसके विपरीत, नाजायज तरीके से भी पैसे कमाने वाले को काफी सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है। एक ईमानदार शिक्षक को समाज में उतनी प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त होती जितनी एक घूसखोर सरकारी कर्मचारी को। हमारे समाज ही ऐसी है जहाँ भ्रष्टाचार का विकसित होना स्वाभाविक है। एक ओर अधिकारी वर्ग घूस लेने में नहीं हिचकिचाते और तो और दूसरी ओर आम नागरिक भी कर से बचना पसंद करते हैं।

भारत देश एक बहुत बड़ा देश है और आबादी भी बहुत ज्यादा है । इसका कार्यतंत्र बहुत ही विशाल है । इसलिए, यहाँ भ्रष्टाचार बहुत अधिक अंदर तक फैला हुआ है । भ्रष्टाचार मुक्त भारत को देखना शायद आज भारत के हर नागरिक का एक सपना है।

भ्रष्टाचार किसी भी देश के विकास में सबसे बड़ा रोड़ा है और भ्रष्टाचार का कीड़ा आज भारत के बड़े नेता से लेकर आम आदमी तक फैल चुका है। आज हम सभी देखते है कि आम आदमी भी पैसे देकर अपने काम को जल्दी से जल्दी करवाना चाहता है। आज आप चंद पैसों में किसी कानून व नियम को दबा सकते है और नियमों के रास्ते उसी काम को करने में आपको महीनों या वर्षों भी लग सकते है ।

आर्थिक कारण

जिस देश की आर्थिक स्थिति दयनीय होगी, वहाँ का प्रशासन भी भ्रष्ट होगा । वास्तव में, आर्थिक व्यवस्था प्रशासन को अपने रूप में ढाल लेती है । यह निर्विवाद है कि जो देश गरीब रहेगा वह प्रशासकीय कर्मचारियों को उतना वेतन नहीं दे सकता जिससे वे सारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें।

यद्यपि उन्हें अपने वेतन के अनुसार ही अपनी आवश्यकताएँ बनाकर रखनी चाहिए। वे भी आराम पूर्ण जीवन व्यतीत करना पसंद करते हैं । फिर, जब आसानी से उन्हें नाजायज तरीके से पैसे की प्राप्ति हो सकती है तो फिर दुःख भरा जीवन क्यों व्यतीत करें ? यह मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति कर्मचारियों को भ्रष्ट करने में काफी सहायक सिद्ध हुई है। यह बात भी सही है कि प्रशासन में ऐसे लोगों की ही संख्या अधिक है जो अपने वेतन से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते अतः वे घूस लेने के लिए बाध्य हो जाते हैं ।

राजनीतिक कारण

भ्रष्टाचार का मुख्य कारण हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था है। राजनीतिक दलों के कारण भी भ्रष्टाचार फैलता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता भारत में भी भ्रष्टाचार फैलाने में राजनीतिक दल बहुत अधिक सहायक रहे हैं। राजनीतिक नेताओं और बड़े व्यवसायियों के बीच की इस संधि ने एक ऐसे वातावरण को जन्म दिया है, जिसमें एक बड़े पैमाने के भ्रष्टाचार के लिए राजनीतिक क्षेत्र पर आक्रमण करना संभव हो गया है।

भारत में प्रशासन की बागडोर बड़े-बड़े राजनीतिक नेताओं के हाथों में है, जिन्होंने भारत में स्वतंत्रता–संग्राम में बहुत त्याग किया था, तथा वे इस बात का दावा करते हैं कि वे आराम और विलासिता पूर्ण जीवन के अधिकारी हैं और देश के विकास का भार अब नई पीढ़ी के छोटे लोगों को वहन करना है।

अशिक्षित नेतृत्व ने भी भ्रष्टाचार को विकसित करने में काफी सहायता पहुँचाई है। अपने अज्ञान के ही कारण मंत्रियों को प्रशासकों पर काफी निर्भर रहना पड़ता है जो उनकी कमजोरी से लाभ उठाते हैं। वह उन्हें भ्रष्ट बनने से नहीं रोकते, भ्रष्टाचार का सबसे गंभीर कारण यह है कि राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने वाले व्यक्ति और राष्ट्रीय संपत्ति को नियंत्रित करने वालों में घनिष्ठ संबंध पाया जाता है।

भ्रष्टाचार से मुक्त भारत ही विकसित हो सकता है।

हम सभी को अपने भारतीय होने पर गर्व है और मैं आशा करती हूँ कि आप सभी भी मेरी तरह भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त होते हुए देखना चाहते होंगे । यह कार्य काफी मुश्किल है। लेकिन, यह सोचकर हम भ्रष्टाचार मुक्त भारत की कल्पना या सपना तो नहीं छोड़ सकते है । हमें इसके लिए लगातार सही दिशा में कार्य करने होंगे ।

भ्रष्टाचार की समस्या का हल केवल कानूनी तौर पर ही नहीं किया जा सकता। इसके निवारण के लिए जन संचार माध्यमों का विशेष योगदान हो सकता है । हमें समाचार–पत्रों, दूरदर्शन, एवं आकाशवाणी प्रसारणों द्वारा भ्रष्टाचार के विरूद्ध जंग छेड़ देनी चाहिए । सबसे पहले तो ऐसी समितियाँ बनाई जानी चाहिए जो स्वयं कर्तव्य–परायण, ईमानदार, न्याय प्रियता में विश्वास रखती हो । इसके अतिरिक्त सामान्य विषमताओं को दूर करके सभी को समान सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए । आम जनता के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।

गाँधी जी के अनुसार यदि आप विश्व में परिवर्तन देखना चाहते है तो इसकी शुरुआत स्वयं से करनी होगी । यह एक ऐसी समस्या है जो कि देश को खोखला बना रही है । देश को बचाने के लिए समय रहते ही हम सभी को साथ मिलकर भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास करना चाहिए। जिस से हमारा देश भ्रष्टाचार मुक्त भारत बन सकेगा हमें हमारे देश के कानूनों को और अधिक कठोर करना होगा। भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए सभी संभव कार्यों को ऑनलाइन के माध्यम से किया जाए । इस पूरे तंत्र की सबसे छोटी और सबसे जरूरी कड़ी आम आदमी है।

आम आदमी अगर अपने आचरण में सुधार कर ले, तो आधी समस्या तो खुद ही सुलझ जाएगी। इसके साथ-साथ हमें बच्चों में सबसे पहले निष्ठा व देश-प्रेम की भावना को जगानी होगी। जिससे जब वह इस तंत्र में काम करें, तब वे भ्रष्टाचार के कार्यों से बच सके ।


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