प्रदोषे दीपकः चन्द्रः प्रभाते दीपकः रविः। त्रैलोक्ये दीपकः धर्मः सुपुत्रः कुल-दीपकः।। स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।। उत्तमे तु क्षणं कोपो मध्यमे घटिकाद्वयम्। अधमे स्याद् अहोरात्रं चाण्डाले मरणान्तकम्।। शैले-शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे-गजे। साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने।। उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे। राजद्वारे श्मशाने च यः तिष्ठति स बान्धवः।। सभी श्लोक का अर्थ बताएं।

सभी श्लोकों का अर्थ इस प्रकार है…

प्रदोषे दीपकः चन्द्रः प्रभाते दीपकः रविः।
त्रैलोक्ये दीपकः धर्मः सुपुत्रः कुल-दीपकः।।

अर्थ : जिस तरह संध्याकाल में चंद्रमा दीपक के समान होता है, अर्थात प्रकाश फैलाकर अंधकार भगाता है। सुबह के समय सूर्य दीपक के समान होता है, अर्थात वो अपने प्रकाश से अंधकार का नाश कर देता है। तीनों लोकों में धर्म दीपक के समान होता है अर्थात धर्म अज्ञानता के अंधकार को दूर करता है। उसी तरह सुपुत्र पूरे कुल के दीपक के समान होता है, अर्थात उत्तम गुणों वाला पुत्र पूरे परिवार (खानदान) का नाम उज्जवल करता है।

स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।।

अर्थ : मूर्ख व्यक्ति केवल अपने घर में ही महत्व पाता है। धनी व्यक्ति केवल अपने गाँव-नगर में ही महत्व पाता है। राजा केवल अपने देश में ही सम्मान पाता है। परन्तु विद्वान व्यक्ति सब जगह महत्व-सम्मान पाते हैं। अर्थात इन तीनों व्यक्तियों की सम्मान पाने की एक सीमा है, लेकिन विद्वान सभी जगह पर पूजा जाता है। विद्वान का महत्व सर्वत्र व्याप्त है।

उत्तमे तु क्षणं कोपो मध्यमे घटिकाद्वयम्।
अधमे स्याद् अहोरात्रं चाण्डाले मरणान्तकम्।।

अर्थ : जो व्यक्ति उत्तम श्रेणी के होते हैं, उनका क्रोध केवल क्षण मात्र के लिए ही रहता है। वह क्षण मात्र को क्रोधित होकर शांत हो जाते हैं। जो व्यक्ति मध्यम श्रेणी के होते हैं, उनका क्रोध दो प्रहर अर्थात लगभग 4-6 घंटे तक ही रहता है। इसके बाद उनका क्रोध शांत हो जाता है। जो व्यक्ति निम्न श्रेणी के होते हैं, उनका क्रोध पूरे दिन रात बना रहता है। अर्थात वह एक दिन-एक रात क्रोध करने के बाद शांत हो जाते हैं। लेकिन जो व्यक्ति बेहद पापी और निकृष्ट श्रेणी के होते हैं, उनका क्रोध हमेशा सदैव बना रहता है। उनका क्रोध कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ता और वह सदैव क्रोधित ही रहते हैं

शैले-शैले माणिक्यं मौक्तिकं गजे-गजे।
साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं वने-वने।।

अर्थ : सभी पहाड़ों-पर्वतों पर मणि नहीं पाई जाती। हर हाथी में गजमुक्त नामक मोती नहीं पाया जाता। जो व्यक्ति सज्जन होते हैं, ऐसे सज्जन व्यक्ति हर जगह नहीं पाए जाते। चंदन का वृक्ष भी सभी वनों में नहीं पाया जाता। अर्थात यह सभी वस्तुएं मणि, मोती, साधु, सज्जन और चंदन के वृक्ष दुर्लभ होते हैं और यह हर जगह नहीं पाए जाते हैं। इसी कारण इनका महत्व है

उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे।
राजद्वारे श्मशाने यः तिष्ठति बान्धवः।।​

अर्थ : अच्छा बंधु और हितेषी मित्र कौन है, इसकी पहचान तब होती है। जब उत्सव के समय अथवा बुरे समय में, अकाल के समय में, राष्ट्र में उपद्रव होने के समय में, राज दरबार के समय में तथा अंत में श्मशान में जो साथ रहता है, वही सच्चा बंधु है, वही सच्चा हितैषी है, वही सच्चा मित्र है। अर्थात सच्चा बंधु-हितैषी जीवन के सुख-दुख हर पल में साथ रहता है, कभी साथ नहीं छोड़ता।


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