यम् मातापितरौ क्लेशम्, सहेते सम्भवे नृणाम्। न तस्य निष्कृतिः शक्या, कर्तुम् वर्षशतैरपि।। अर्थ बताएं।

यम् मातापितरौ क्लेशम्, सहेते सम्भवे नृणाम्।
न तस्य निष्कृतिः शक्या, कर्तुम् वर्षशतैरपि॥

अर्थ : अपनी संतान का पालन पोषण करने में माता-पिता जिस तरह का कष्ट कहते हैं, जिस प्रकार अनेक तरह की विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए अपने बच्चों का उत्तम पालन-पोषण करने का प्रयास करते हैं। उनके द्वारा अपनी संतान पर किए गए इस उपकार का प्रतिउपकार चुकाने में संतान 100 वर्षों में भी समर्थ नहीं हो सकती अर्थात अपने माता-पिता के द्वारा किए गए अपनी संतान के प्रति किए गए कार्य और पालन पोषण का उपकार संतान कभी भी नहीं उतार सकती।

व्याख्या : यहाँ पर माता-पिता द्वारा अपने संतान के पालन पोषण के महत्व को बताया गया है। इस श्लोक में बताया गया है कि माता-पिता अपनी संतान के पालन पोषण करने में कोई भी कसर बाकी नहीं रखते हैं। वह अपनी संतान को उत्तम से उत्तम सुख एवं सुविधा उपलब्ध कराते हैं, चाहे उसके लिए उन्हें अनेक तरह के कस्टों को क्यों न सहना पड़े।

माता-पिता स्वयं भूखे रखकर अपनी संतान को कभी भी भूखे नहीं रहने देते। माता-पिता सर्दी गर्मी में कष्ट कहते हैं लेकिन अपनी संतान पर आंच नहीं आने देते यानी वह अपनी संतान के पालन-पोषण में कोई भी कोताही नहीं करते। जब संतान बड़ी हो जाती है तो वह अपने माता-पिता के इस उपकार को कभी नहीं चुका पाती क्योंकि संतान कितना भी प्रयास कर ले माता-पिता द्वारा किए गए उपकारों का पार वह नहीं जा पाती।


अन्य श्लोक

धनेन बलवाल्लोके धनाद् भवति पण्डित:। पश्यैनं मूषकं पापं स्वजाति समतां गतम्। इस संस्कृत श्लोक का हिंदी अर्थ लिखें।

प्रदोषे दीपकः चन्द्रः प्रभाते दीपकः रविः। त्रैलोक्ये दीपकः धर्मः सुपुत्रः कुल-दीपकः।। स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।। उत्तमे तु क्षणं कोपो मध्यमे घटिकाद्वयम्। अधमे स्याद् अहोरात्रं चाण्डाले मरणान्तकम्।। शैले-शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे-गजे। साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने।। उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे। राजद्वारे श्मशाने च यः तिष्ठति स बान्धवः।। सभी श्लोक का अर्थ बताएं।

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