धनेन बलवाल्लोके धनाद् भवति पण्डित:। पश्यैनं मूषकं पापं स्वजाति समतां गतम्। इस संस्कृत श्लोक का हिंदी अर्थ लिखें।

धनेन बलवाल्लोके धनाद् भवति पण्डित:।
पश्यैनं मूषकं पापं स्वजाति समतां गतम्।।

अर्थ : धन कारण ही मनुष्य बलवान बनता है और धन के कारण ही मनुष्य बुद्धिमान बनता है। इस चूहे को देखो जो अपने बल के कारण ही अपनी जाति समूह में सब के बराबर और सबसे बड़ा हो गया है। श्लोक का भाव यह है कि धन मनुष्य को इस समाज में ऐसी शक्ति प्रदान कर देता है, जिससे वह अपनी इच्छा अनुसार कोई भी कार्य कर सकता है। धनी व्यक्ति यदि मूर्ख भी हो तो भी समाज में उसे लोग बुद्धिमान ही समझते हैं। यही धन की महिमा है।


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भगवद्गीता के किस श्लोक में बतलाया गया हैं कि हर मनुष्य को अपने धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए. जैसे- विद्यार्थी का धर्म है विद्या प्राप्त करना, सैनिक का कर्म है देश की रक्षा करना है। देह निर्वाह के लिए त्याग (संन्यास) का अनुमोदन न तो भगवान करते हैं और न कोई धर्मशास्त्र ही। (1) अध्याय 4 श्लोक 12 (2) अध्याय 16 श्लोक 12 (3) अध्याय 8 श्लोक 2 (4) अध्याय 3 श्लोक 8

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