किसे ‘देव-दुर्लभ त्याग’ कहा गया है और क्यों?

‘नमक का दरोगा’ पाठ में धर्म को ‘देव-दुर्लभ त्याग’ कहा गया है। यहाँ पर दरोगा वंशीधर धर्म का प्रतीक है क्योंकि वह अपने कर्तव्यपथ पर अडिग है। उसने किसी भी तरह के लोभ के जाल में न फंसते हुए अपने कर्तव्य का पालन किया। इस तरह वंशीधर ने देव दुर्लभ त्याग किया। ऐसा त्याग करना आसान नहीं होता। ऐसे त्याग करने के लिए देवता भी हिचकिचा जाते हैं, लेकिन दरोगा मुंशी वंशीधर ने ऐसे त्याग को करने में जरा भी संकोच नहीं दिखाया।

मुंशी वंशीधर ने अपनी कर्तव्य निष्ठा का पालन करते हुए पंडित अलोपदीन द्वारा दी गई हजारों रुपए की रिश्वत को भी ठुकरा दिया। 40000 रुपए की रिश्वत ठुकराना कोई आसान कार्य नहीं होता। इतनी बड़ी राशि को देखकर बड़े-बड़े के ईमान डोल जाते हैं, लेकिन दरोगा मुंशी वंशीधर का ईमान इतनी बड़ी राशि को देखकर भी नहीं डोला और उसने अपनी कर्तव्य निष्ठा का पालन किया और रिश्वत लेना स्वीकार नहीं किया।

मुंशी वंशीधर धर्म का प्रतीक था। धर्म हमेशा बुद्धिहीन और देव-दुर्लभ त्याग के लिए जाना जाता है। इसीलिए मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानी ‘नमक का दरोगा’ में दरोगा मुंशी वंशीधर को धर्म का प्रतीक और देव-दुर्लभ त्याग कहा है।


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