अपने दादा-दादी, नाना-नानी, वृद्ध परिजन तथा पड़ोसी के साथ साक्षात्कार करके हमने उनके समय की शिक्षा नीति तथा आज के समय की शिक्षा नीति के बारे में जाना और हमें निम्नलिखित अंतर प्राप्त हुए…
पुराने समय की शिक्षा
हमारे दादा-दादी, नाना-नानी, पड़ोसी आदि बताते हैं कि उनके समय में शिक्षा-नीति बिल्कुल सामान्य थी। उनके समय में शिक्षा प्राप्त करने कि इतनी अनिवार्यता नहीं थी और ना ही शिक्षा के प्रति इतनी अधिक जागरूकता थी।
लड़कियों के लिए तो शिक्षा प्राप्त करना आसान नही था।
दादा-दादी, नाना-नानी बताते हैं कि उनके समय में अधिकतर लड़के ही शिक्षा प्राप्त करते थे। लड़कियां केवल कुछ कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त करती थीं। फिर उन्हें घर बैठा दिया जाता था और उनकी शादी कर दी जाती थी।
शिक्षा के संबंध में इतनी अधिक सुविधाएं नहीं प्राप्त थीं। और ना ही शिक्षा के इतने अधिक विकल्प थे। जो माँ-बाप अपने बच्चों को पढ़ाते थे वह केवल अपने बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनाने की ही आकांक्षा पालते थे।
वर्तमान शिक्षा
वर्तमान समय में समाज की शिक्षा नीति देखते हैं तो हम पाते हैं कि आज बालक हो या बालिका दोनों के लिए शिक्षा अनिवार्य है और लड़कों के समान लड़कियां भी भरपूर शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।
यह सब नई शिक्षा नीति के परिणाम स्वरूप हुआ है, जिसमें शिक्षा का समावेशी स्वरूप विकसित किया गया है और सभी के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी गई है।
समाज के सभी वर्ग आसानी से शिक्षा प्राप्त कर सकें ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं, इसी कारण समाज के वंचित, शोषित व कमजोर वर्ग के छात्र-छात्राएँ भी शिक्षा प्राप्त कर पा रहे हैं, जबकि पुरानी शिक्षा नीति में ऐसा नहीं हो पा रहा था।
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