NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
डायरी का एक पन्ना : सीताराम सेकसरिया (कक्षा-10 पाठ-9 हिंदी स्पर्श 2)
DIARY KA EK PANNA : Sitaram Seksaria (Class-10 Chapter-9 Hindi Sparsh 2)
डायरी का एक पन्ना : सीताराम सेकसरिया
पाठ के बारे में…
पाठ के बारे में….
“डायरी का एक पन्ना” पाठ जोकि लेखक ‘सीताराम सेकसरिया’ द्वारा लिखा गया पाठ है, उसमें उन्होंने गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत में मनाए जाने वाले पहले स्वतंत्रता दिवस का वर्णन किया है। वह दिन 26 जनवरी 1931 का दिन था, जब गुलाम भारत में पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। हालांकि भारत उस समय स्वतंत्र नहीं हो पाया था लेकिन आजादी की कामना करने वाले भारतीयों ने इस दिवस को स्वतंत्रता दिवस के प्रतीक दिवस में रूप के रूप में चुन कर इसको स्वतंत्रता दिवस के रुप में मनाया था। बाद में सन 1950 में यही दिन यानि 26 जनवरी का दिन भारत का गणतंत्र दिवस बना।
इस पाठ में लेखक ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में कोलकाता में निकलने वाले जुलूस का वर्णन किया है, जो 26 जनवरी 1931 को भारत का पहला स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए निकाला गया था। अंग्रेजों ने इस जुलूस का दमन करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। लेखक स्वयं उस जुलूस में शामिल था।
लेखक के बारे में…
सीताराम सेकसरिया जिनका जन्म सन 1892 में राजस्थान के नवलगढ़ जिले में हुआ था। वह व्यापार एवं व्यवसाय से जुड़े होने के बावजूद साहित्य कार्य भी करते रहे थे और भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उन्होंने अनेक साहित्य, सांस्कृतिक और नारी शिक्षण संस्थान की स्थापना की तथा उनका संचालन किया। वह महात्मा गांधी, रविंद्र नाथ ठाकुर तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निकट भी रहे थे। उन्होंने कुछ समय आजाद हिंद फौज में मंत्री के रूप में भी कार्य किया।
सन 1962 में उन्हें पद्मश्री सम्मान भी मिला था उन्होंने अनके कृतियों की रचना की इसमें मन की बात , स्मृति युग, बीता युग, नई याद और एक कार्यकर्ता की डायरी का नाम प्रमुख है।
उनका निधन 1962 में हुआ था।
हल प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए।
प्रश्न 1 : कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्वपूर्ण था?
उत्तर : 26 जनवरी 1931 का दिन कलकत्ता वासियों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि ठीक एक वर्ष पहले 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत में पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। उस समय कलकत्ता के वासी इस स्वतंत्र दिवस में अपना कुछ योगदान नहीं दे पाए थे। 26 जनवरी 1931 को इस दिन की पुनरावृत्ति थी, यानी पहली वर्षगांठ थी। इसलिए इस बार बंगाल के लोगों विशेषकर कलकत्ता के लोगों ने इस दिवस को मनाने के लिए जोर-शोर से तैयारियों की थीं। उन्होंने अपने मकानों तथा सार्वजनिक स्थानों को सजाया था और राष्ट्रीय झंडे लगाए थे। इसलिए कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन महत्वपूर्ण था।
प्रश्न 2 : सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था?
उत्तर : सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था। पूर्णोदास ने ही जुलूस का सारा प्रबंध अपने हाथ में ले लिया था। उन्होंने जुलूस में जगह-जगह झंडे आदि लगाने का बंदोबस्त किया था। लेकिन बाद में अंग्रेजों की पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया ।
प्रश्न 3 : विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर : विद्यार्थी संगठन मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर यह प्रतिक्रिया हुई कि जैसे ही अविनाश बाबू ने श्रद्धानंद पार्क में झंडा गाढ़ा तो पुलिस ने उन्हें तुरंत पकड़ लिया। पुलिस ने अविनाश बाबू के साथ आए अनेक लोगों के साथ मारपीट की और उन सभी को वहां से हटा दिया। अविनाश बाबू प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री थे और जुलूस वाले दिन वह श्रद्धानंद पार्क में झंडा गाड़ रहे थे, जब पुलिस ने उनको पकड़ लिया था।
प्रश्न 4 : लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे?
उत्तर : लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा लहरा कर इस बात का संकेत देना चाहते थे कि उन्होंने अपने देश की आजादी को पाने का मन में ठान लिया है। वह अपनी देशभक्ति सिद्ध करना चाहते थे और अंग्रेजों को यह बताना चाहते थे कि वह स्वयं को स्वतंत्र मान चुके हैं और अपने देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। वह अंग्रेजों को राष्ट्रीय डंडा फहराकर यह बताना चाहते थे कि वे अपने देश की स्वतंत्रता पाने के लिए मर मिटने को और कुछ भी करने को तैयार हैं।
प्रश्न 5 : पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों और मैदानों को क्यों घेर लिया था?
उत्तर : पुलिस ने बड़े-बड़े पार्को और मैदानों को इसलिए घेर लिया था क्योंकि 26 जनवरी 1931 के उस दिन कोलकाता की जनता स्वतंत्रता दिवस को मनाने के लिए आयोजन आदि करना चाहती थी। पुलिस उस समय यह नहीं चाहती थी कि स्वतंत्र दिवस का यह आयोजन हो और लोग मैदानों और पार्कों में इकट्ठा हो सकें। पुलिस लोगों को मैदानों में सभा करने से और राष्ट्रीय ध्वज फहराने से रोकना चाहती थी, इसीलिए पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों तथा मैदानों को घेर लिया था कि वहाँ पर लोगों की भीड़ जमा ना हो पाए और लोग स्वतंत्रता दिवस का आयोजन नहीं कर पाएं, ना ही वह राष्ट्रीय झंडा फहरा पाएं।
लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए।
प्रश्न 1 : 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गईं ?
उत्तर : 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए अनेक तरह की तैयारियां की गई थी। इस दिन कलकत्ता के लोगों ने अपने घरों को खूब सजाया था। सभी मकानों पर राष्ट्रीय झंडे फहराए गए थे। घरों के अलावा मुख्य-मुख्य सार्वजनिक स्थानों पर तथा शहर के कोने-कोने पर राष्ट्रीय ध्वज फहराए गए थे। मकानों को भव्य तरीके से सजाया गया था। पूरा कलकत्ता नगर ही सज-धज गया था और ऐसा लग रहा था कि उस दिन सचमुच में वास्तविक रूप से स्वतंत्रता मिल गई हो। इस तरह 26 जनवरी 1931 का दिन अमर बन गया।
प्रश्न 2 : ‘आज जो बात थी वह निराली थी’ − किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : आज जो बात थी वह निराली थी इसका इस बात से पता चल रहा था क्योंकि 26 जनवरी 1931 का यह दिन अपने आप में ही निराला था। 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत का पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। 26 जनवरी 1931 का दिन 1 साल पूरा होने का दिन था और यह आजादी की पहली वर्षगांठ की थी।
उस दिन की पुनरावृत्ति होने के कारण कलकत्ता वासियों में खूब उत्साह एवं जोश खरोश था। 1930 के वर्ष वह उतने जोश-खरोश से नहीं बना पाए थे, लेकिन अब 26 जनवरी 1931 का दिन उन्हें अपने भावनाओं उत्साह एवं उमंग को प्रदर्शित करने का अवसर दे रहा था। इसीलिए इस दिन को यादगार बनाना चाहते थे। अंग्रेजों ने भी कलकत्ता निवासियों के जुलूस आदि निकालने पर रोक लगाने तथा उनका दमन करने के लिए पूर्ण प्रबंध कर रखा था। अंग्रेजों के कड़े सुरक्षा प्रबंधन और विरोध के बावजूद भी हजारों की संख्या में लोग लाठी खाकर भी जुलूस में भाग लेते रहे थे।
सरकार द्वारा दमन के अनेकों प्रयास किए जाने के बावजूद आम जनता और कार्यकर्ता मिलजुलकर मॉन्यूमेंट के पास जमा होते जा रहे थे। क्या स्त्री, क्या पुरुष सभी ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। स्त्रियों ने पुरुषों की तरह ही आंदोलन में बढ़-चढ़कर अपना योगदान दिया। इस तरह ये दिन यादगार बन गया था। इन सब बातों से पता चल जाता कि आज जो बात है निराली थी।
इस दिन कलकत्ता के वासियों ने अपने देश-प्रेम, देश के प्रति निष्ठा तथा आजादी के संघर्ष और एकता का प्रदर्शन किया था।
प्रश्न 3 : पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?
उत्तर : पुलिस कमिश्नर नोटिस और काउंसिल के नोटिस में मुख्य अंतर यह था कि पुलिस कमिश्नर के नोटिस में यह बात उल्लेखित थी कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई भी सभा नहीं हो सकती। इसके बावजूद यदि लोग सभा आदि करेंगे और सभा में भाग लेते हुए पाए गए तो उनको दोषी मानता उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
जबकि काउंसिल के नोटिस में यह बात हुई लिखी थी कि मॉन्यूमेंट के ठीक नीचे 4:24 पर झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। काउंसिल के नोटिस में सारी जनता का आह्वान किया था कि वह अधिक से अधिक संख्या में मॉन्यूमेंट के नीचे इकट्ठी हो जाए। यानी काउंसिल का नोटिस पुलिस कमिश्नर के नोटिस के लिए एक तरह की खुली चुनौती का। दोनों नोटिस एक दूसरे के विरुद्ध थे।
प्रश्न 4 : धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?
उत्तर : धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस इसलिए टूट गया क्योंकि जुलूस सुभाष बाबू के नेतृत्व में पूरे जोश के साथ आगे बढ़ रहा था, लेकिन सुभाष बाबू को पुलिस ने पकड़ लिया और पुलिस उन्हें अपने साथ लेकर गाड़ी में बिठाकर लाल बाजार के लॉकअप में ले गई। इसके बाद धर्मतल्ले के मोड़ पर पुलिस ने जुलूस के लोगों पर लाठियां बरसानी शुरु कर दीं। जिससे अनेक लोग घायल हो गए और स्वयं को बचाने के चक्कर में जुलूस तितर-बितर को कर बिखर गया। हालाँकि कुछ महिलाओं ने धर्मतल्ले के मोड़ पर धरना भी दिया लेकिन पुलिस उन्हें भी पकड़कर लालबाजार के लॉकअप में ले गई। इस तरह धर्मतल्ले लेकर मोड़ पर जुलूस टूट गया।
प्रश्न 5 : डा. दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर रहे थे, उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फ़ोटो खींचने की क्या वजह हो सकती थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : डॉक्टर स्वप्नदासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देखरेख तो कर ही रहे थे, उनके फोटो भी उतरवा रहे थे। डॉक्टर स्वप्न दास गुप्ता द्वारा जुलूस में घायल लोगों के फोटो खींचने की मुख्य वजह यह थी कि वह इन फोटो के द्वारा पूरे देश के लोगों को अंग्रेजों के जुल्मों को दिखाना चाहते थे।
वह यह फोटो समाचार पत्र आदि में प्रकाशित करवा कर या अन्य किसी माध्यम से जनता के बीच पहुंचा कर अंग्रेजों के जुल्म का प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाना चाहते थे। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि एक तो देश के अन्य लोगों को अंग्रेजों के अत्याचार और दमन के बारे में पता चले और दूसरे लोग भी अंग्रेजों के जुल्म को देखकर और कलकत्ता के वासियों का संघर्ष देखकर प्रेरित हों तथा देश की स्वतंत्रता के आंदोलन के लिए और अधिक संगठित होकर आगे आयें।
(ख) निम्नलिखित शब्दों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए।
प्रश्न 1 : सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?
उत्तर : सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज में एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अलग-अलग संघ से जुड़ी स्त्रियों ने अलग-अलग भूमिकायें निभाई थीं। जहाँ गुजराती सेविका संघ की ओर से एक जुलूस निकाला गया तो मारवाड़ी बालिका विद्यालय में झंडा फहराकर झंडोत्सव मनाया गया। सुभाष बाबू के इस जुलूस में जानकी देवी और मदालसा बाजार जैसी महत्वपूर्ण महिलाओं ने भी भाग लिया था।
लाठीचार्ज की भी परवाह नहीं की थी और लाठीचार्ज को सहते हुए भी मॉन्यूमेंट तक जा पहुंचीं। धर्मतल्ले के मोड़ पर तो नीति स्त्रियों ने धरना भी दे दिया था। लगभग 105 स्त्रियों ने अपनी गिरफ्तारी दी । इस तरह पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियां भी स्त्रियों ने भी सुभाष बाबू के जुलूस में बेहद महत्वपूर्ण और समान भूमिका निभाई थी।
प्रश्न 2 : जुलूस के लाल बाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?
उत्तर : लाठीचार्ज चाहते हुए भी लोग नारे लगा रहे थे और लोगों का जोश कम नहीं हुआ था। पुलिस लोगों को लाठी से मार रही थी और उन्हें गिरफ्तार करके ले जा रही थी। स्त्रियां भी अपनी गिरफ्तारी दे रही थीं। बृजलाल गोयनका झंडा लेकर मॉन्यूमेंट की तरफ दौड़ा लेकिन दौड़ते दौड़ते वह गिर पड़ा। तब पुलिस ने उसे पकड़ लिया। मदालसा जोकि स्त्रियों के समूह का नेतृत्व कर रही थी, उसने भी अपनी गिरफ्तारी दी।
मदालसा को पुलिस पकड़ कर ले गई और थाने में उसके साथ मारपीट की। फिर भी लोगों का जोश कम नहीं हुआ और वह गिरफ्तारी देते जा रहे थे और लाठीचार्ज को सहते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। इस जुलूस में पुलिस के द्वारा किए गए लाठीचार्ज में लगभग 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे, जिन में स्त्रियां भी शामिल थीं और उसकी हालत गंभीर हो गई थी।
प्रश्न 3 : ‘जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर : जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर उस कानून के भंग होने की बात की गई है, जो कोलकाता के पुलिस कमिश्नर ने नोटिस दिया था।
26 जनवरी 1931 के दिन कोलकाता के पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला की अमुक-अमुक धारा के अनुसार शहर में कोई भी सभा नहीं हो सकती। यदि किसी ने सभा की और सभा में जिन लोगों ने भी भाग लिया उन्हें दोषी मानकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसी नोटिस के विरोध में कौंसिल ने अपनी तरफ से नोटिस निकाला कि मॉन्यूमेंट के नीचे स्थित था 4:24 पर राष्ट्रीय झंडा फहराया जाएगा और भारत की स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।
मॉन्यूमेंट के नीचे अधिक से अधिक लोगों के इकट्ठा होने का आह्वान किया गया था। यह बिल्कुल अंग्रेजी सत्ता को चुनौती के समान था। पुलिस कमिश्नर ने जो नोटिस निकाला था, उसके विरोध में ये नोटिस विरोध का प्रतीक था। अंग्रेजी सरकार स्वतंत्रता सेनानियों का विरोध करने के लिए नियम बना रही थी और उन नियमों को स्वतंत्रता के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ा जा सकता था। अंग्रेजों का तो उद्देश्य यही था कि वह किसी भी तरह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को दबाए। इसीलिए वह इस तरह के कानून निकालते थे और भारतीयों को कानून का उल्लंघन करना जरूरी हो गया था।
पुलिस कमिश्नर ने देशवासियों के स्वतंत्रता दिवस मनाने के अधिकार का हनन करने का प्रयास किया था और स्वतंत्रता के आंदोलन को दबाने का प्रयास किया था, इसीलिए काउंसिल ने उसका विरोध करते हुए जनता का आह्वान करते हुए अपना नोटिस निकाला।
प्रश्न 4 : बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गईं, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर : बहुत से लोग घायल हुए , बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत सी स्त्रियां जेल गई, फिर भी इस दिन को अपूर्व इसलिए बताया गया है, क्योंकि ऐसा इससे पहले गठित नहीं हुआ था। 26 जनवरी 1931 का दिन भारत की स्वतंत्रता दिवस को मनाने की पुनरावृत्ति दिवस था, क्योंकि 26 जनवरी 1930 को भारत की प्रथम स्वतंत्रता का दिवस मनाया गया था। 26 जनवरी 1931 को उसकी पुनरावृत्ति थी।
इस कारण देशवासियों में बेहद उत्साह था। बंगाल और कलकत्ता के वासियों में बहुत अधिक ही उत्साह और उल्लास था। लोग उत्साह और उल्लास से भरे हुए थे। उन्होंने अपने घरों को सजाया और जगह-जगह झंडे लगाए। वह इस दिन को यादगार बना देना चाहते थे। केवल पुरुषों ने ही नहीं स्त्रियों ने भी इस दिन आंदोलन करने और जुलूस निकालने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
स्त्रियों ने भी पुरुषों के भांति लाठियां। कई स्त्रियां घायल भी हुईं। अनेक पुरुषों एवं महिलाओं को पुलिस की लाठीचार्ज में घायल होना पड़ा। पुलिस ने उन्हें बुरी तरह से मारा पीटा और उन्हें लॉकअप में भी बंद किया। फिर भी लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। लोगों ने जोश-खरोश से जुलूस निकाला, गिरफ्तारियां दी और झंडे फहराए। कोलकाता में ऐसा पहली बार हुआ था, इसीलिए यह अपूर्व था।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए।
आशय स्पष्ट कीजिए। आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।
आशय : इस कथन का आशय यह है कि बंगाल या कलकत्ता वासियों के संदर्भ में यह कहा जाता था कि वह स्वाधीनता से संबंधित आंदोलन में कुछ विशेष नहीं करते। वह स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों में विशेष रूप से बढ़ चढ़कर भाग नहीं लेते और स्वतंत्रता संग्राम हेतु यहां पर अधिक कार्य नहीं किया जाता। यह सब बातें कलकत्ता वासियों और बंगाल वासियों के लिए एक कलंक के समान थी।
लेकिन 26 जनवरी 1931 के दिन भारत के दूसरे स्वतंत्रता दिवस मनाने हेतु कलकत्ता वासियों ने संगठित होकर जिस तरह का संघर्ष किया, जिस तरह का आंदोलन किया, जुलूस निकाला, उत्साह दिखाया, वह अपूर्व था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में कलकत्ता वासियों ने एक अनोखा आंदोलन किया जिसने पूरे देश में इस आंदोलन को चर्चा में ला दिया था। कलकत्ता वासियों ने, जिनमें स्त्री एवं पुरुष दोनों शामिल थे, लाठियां खाई घायल हुए जेल गए लेकिन उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं खींचे और राष्ट्रीय ध्वज फहराकर आकर स्वतंत्रता के आंदोलन की प्रतिज्ञा पढ़ी।
इस तरह इससे पहले कलकत्ता वासियों के माथे पर लगा कलंक धुल गया कि यहाँ पर भारतीय स्वतंत्रता के लिए काम नहीं हो रहा।
आशय स्पष्ट कीजिए। खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी ?
आशय : इस कथन का आशय यह है कि 26 जनवरी 1931 के दिन कोलकाता के कमिश्नर ने नोटिस निकाला था कि कोलकाता में किसी भी जगह पर कोई भी सभा नहीं की जाएगी । उसने तरह-तरह की धाराओं का हवाला देते हुए कहा कि यदि किसी ने भी सभा की ओर जो व्यक्ति सभा में शामिल हुआ उस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी और उसे गिरफ्तार किया जाएगा।
कमिश्नर ने यह नोटिस उस आंदोलन को कुचलने के लिए निकाला था जिसने 26 जनवरी 1931 के दिन कोलकाता में जगह जगह पर झंडे आदि फहराकर भारत की स्वतंत्रता दिवस मनाने का आयोजन किया जाना था। अंग्रेजों को यह बात स्वीकार नहीं थी इसीलिए पुलिस कमिश्नर ने ऐसे नोटिस निकाल कर ऐसे आयोजन को शुरू होने से पहले ही खत्म करने का कुत्सित प्रयास किया था। लेकिन इस नोटिस के जवाब में काउंसिल ने उन्हें चुनौती देते हुए अपनी तरफ से एक नोटिस निकाला जिसमें कहा गया कि 4:24 पर मॉन्यूमेंट के नीचे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहरायगा जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।
पुलिस कमिश्नर द्वारा जारी किए गए नोटिस के विरोध में इस तरह का नोटिस निकालना खुला चैलेंज था। ऐसा नोटिस निकालकर न केवल कमिश्नर के नोटिस अवज्ञा की गई बल्कि विरोध में अपना नोटिस निकालकर मॉन्यूमेंट के नीचे सभा भी की गई थी। अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देकर ऐसी सभा पहले कभी नही हुई थी इसलिए ये कहा गया कि खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।
भाषा अध्ययन
1.
I. निम्नलिखित वाक्यों को सरल वाक्य में बदलिए।
(क) दो सौ आदमियों का जुलूस लालबाज़ार गया और वहाँ पर गिरफ़्तार हो गया।
सरल वाक्य : दो सौ आदमियों का जुलूस लालबाज़ार जाकर गिरफ़्तार हो गया।
(ख) मैदान में हजारों आदमियों की भीड़ होने लगी और लोग टोलियां बना-बनाकर मैदान में घूमने लगे।
सरल वाक्य : मैदान में हजारों आदमियों की जमा भीड़ टोलियां बनाकर मैंदान में घूमने लगी।
(ग) सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठ कर लालबाजार लॉकअप में भेज दिया गया।
सरल वाक्य : सुभाष बाबू को पड़कर गाड़ी में बैठकर लालबाजार लॉकअप में भेज दिया गया
II. ‘बड़े भाईसाहब’ पाठ में से दो सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य छांटकर लिखिए।
उत्तर : बड़े भाईसाहब पाठ में से दो-दो सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य छाँटकर इस प्रकार होंगे…
सरल वाक्य : वह स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे।
सरल वाक्य : उनकी रचनाओं को समझना छोटे मुँह बड़ी बात है।
संयुक्त वाक्य : रावण ने अभिमान किया और दीन दुनिया दोनों से गया।
संयुक्त वाक्य : मुझे अपने ऊपर कुछ अभिमान हुआ और आत्मसम्मान भी बढ़ा।
मिश्र वाक्य : मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई अर्थ निकालूँ लेकिन असफल रहा।
मिश्र वाक्य : मैं कह देता कि मुझे अपना अपराध स्वीकार है।
2. निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और समझिए कि जाना, रहना और चुकना क्रियाओं का प्रयोग किस प्रकार किया गया है। (क) 1. कई मकान सजाए गए थे। 2. कलकत्ते के प्रत्येक भाग में झंडे लगाए गए थे। (ख) 1. बड़े बाज़ार के प्रायः मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था। 2. कितनी ही लारियाँ शहर में घुमाई जा रही थीं। 3. पुलिस भी अपनी पूरी ताकत से शहर में गश्त देकर प्रदर्शन कर रही थीं। (ग) 1. सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था, वह प्रबंध कर चुका था। 2. पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था।
उत्तर : उपरोक्त वाक्यों की संरचनाओं को ध्यान से पढ़कर और समझ कर ‘जाना’, ‘रहना’ और ‘चुकना’ क्रियाओं के विषय में यह पता चलता है कि इन क्रियाओं का प्रयोग मुख्य क्रिया के रूप में नहीं किया गया है, बल्कि इन क्रियाओं का प्रयोग रंजक क्रियाओं के रूप में किया गया है। इन क्रियाओं का प्रयोग इस तरह करने के कारण मुख्य क्रियाएं संयुक्त क्रिया बन गई हैं।
3. नीचे दिए गए शब्दों की संधि कीजिए- श्रद्धा + आनंद = …. प्रति + एक = ……. पुरुष + उत्तम = ……… झंडा + उत्सव = …….. पुनः + आवृत्ति = ……… ज्योतिः + मय = …….
उत्तर : नीचे दिए गए शब्दों की संधि इस प्रकार होगी…
श्रद्धा + आनंद = श्रद्धानंद
संधि भेद : दीर्घ स्वर संधि
प्रति + एक = प्रत्येक
संधि भेद : यण स्वर संधि
पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम
संधि भेद : गुण स्वर संधि
झंडा + उत्सव = झंडोत्सव
संधि भेद : गुण स्वर संधि
पुनः + आवृत्ति = पुनरावृत्ति
संधि भेद : विसर्ग संधि
ज्योतिः + मय = ज्योतिर्मय
संधि भेद : विसर्ग संधि
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1 : भौतिक रूप से दबे हुए होने पर भी अंग्रेजों के समय में ही हमारा मन आजाद हो चुका था। अत: दिसंबर सन् 1929 में लाहौर में कांग्रेस का एक बड़ा अधिवेशन हुआ, इसके सभापति जवाहरलाल नेहरू जी थे। इस अधिवेशन में यह प्रस्ताव पास किया गया कि अब हम ‘पूर्ण स्वराज्य से कुछ भी कम स्वीकार नहीं करेंगे। 26 जनवरी 1930 को देशवासियों ने पूर्ण स्वतंत्रता के लिए हर प्रकार के बलिदान की प्रतिज्ञा की। उसके बाद आज़ादी प्राप्त होने तक प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। आजादी मिलने के बाद 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
उत्तर : प्रश्न मे जो जानकारी दी गई है, वह विद्यार्थियों के ज्ञानवर्द्धन हेतु दी गई है। विद्यार्थी इस जानकारी का स्मरण रखें।
प्रश्न 2 : डायरी-यह गद्य की एक विधा है। इसमें दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं, अनुभवों को वर्णित किया जाता है। आप भी अपनी दैनिक जीवन से संबंधित घटनाओं को डायरी में लिखने का अभ्यास करें।
उत्तर : यहाँ पर विद्यार्थियों की सहायता के लिए एक दिन का डायरी लेखन प्रस्तुत है…
डायरी: 5 जुलाई 2024
आज का दिन बहुत खास था। आज मेरा जन्मदिन था। सुबह जैसे ही उठा तो मेरे माता-पिता और छोटी बहन मेरे बिस्तर के पास खड़े थे। उन्होंने मेरे आँखे खोलते ही मुझे एक स्वर में ‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ कहा। मम्मी ने नाश्ते में मेरे पसंद के आलू के परांठे बनाए थे। नाश्ता करके और तैयार होकर मैं अपने स्कूल निकल गया। मैं अपने साथ छोटी-छोटी चॉकलेट ले गया था जो मैंने अपने कक्षा में सभी को बांटी। मैंने अपने खास दोस्तों को शाम के घर पर आने का निमंत्रण दिया क्योंकि मेरे घर पर मेरे माता-पिता जन्मदिन की पार्टी रखी थी। शाम को घर पहुँचकर मैने नए कपड़े पहने। रात 8 बजे पार्टी शुरु हुई। मैने अपने जन्मदिन का केक काटा। मेरे सभी खास दोस्त और हमारे नजदीकी रिश्तेदार पार्टी में आये थे। मेरे माता पिता ने मुझे एक साइकिल भेंट की। मेरी छोटी बहन में मुझे एक किताब भेंट की। इसी तरह सभी ने मुझे कुछ न कुछ उपहार दिया। केक काटने के बाद नाच-गाने और भोजन का कार्यक्रम हुआ। रात 10 बजे तक पार्टी चलती रही। मेरे जन्मदिन का ये दिन सचमुच यादगार रहा।
शिवम
प्रश्न 3 : जमना लाल बजाज, महात्मा गांधी के पाँचवें पुत्र के रूप में जाने जाते हैं, क्यों? अध्यापक से जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर : जमनालाल बजाज को महात्मा गांधी का ‘पाँचवाँ पुत्र’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने गांधीजी के आदर्शों और विचारधारा को न केवल अपनाया बल्कि अपने जीवन में भी उतारा। उनके और गांधीजी के बीच का संबंध एक गुरु-शिष्य से कहीं अधिक था; वह एक गहरे और व्यक्तिगत स्तर पर जुड़ाव का प्रतिनिधित्व करता था।
जमनालाल बजाज, बजाज उद्योग घराने के संस्थापक थे और राजस्थान के प्रसिद्ध व्यापारी थे। उन्हें अंग्रेजों से रायबहादुर की उपाधि भी मिली थी। गांधी जी से मिलने के बाद वह गांधी जी की विचाधारा से प्रभावित हुए। तब उन्होंने अंग्रेजों सी दूरी बना ली उनका दिया सम्मान लौटा दिया और पूरी तरह से गांधी जी के अनुयायी बन गए।
जमनालाल बजाज ने अपनी संपत्ति और संसाधनों का उपयोग समाज सेवा के लिए किया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भूमिका निभाई और गांधीजी के आदर्शों का अनुसरण करते हुए कई सामाजिक सुधार कार्य किए। उन्होंने ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन और अन्य कई अभियानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपना समय, धन और ऊर्जा गांधीजी के आंदोलनों को सफल बनाने में लगाया। जमनालाल बजाज ने एक साधारण जीवन जीने का संकल्प लिया और अपने भौतिक सुखों का त्याग किया, जो गांधीजी के आदर्शों के अनुरूप था। उन्होंने अपने परिवार के साथ भी गांधीजी के सिद्धांतों का पालन किया। गांधीजी ने भी उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानते हुए उन्हें अपने पुत्र के समान स्नेह और सम्मान दिया।
इन सभी कारणों से, जमनालाल बजाज को गांधीजी का पाँचवाँ पुत्र कहा जाने लगा।
प्रश्न 4 : ढाई लाख का जानकी देवी पुरस्कार जमना लाल बजाज फाउंडेशन द्वारा पूरे भारत में सराहनीय कार्य करने वाली महिलाओं को दिया जाता है। यहाँ ऐसी कुछ महिलाओं के नाम दिए जा रहे है-
श्रीमती अनुताई लिमये 1993 महाराष्ट्र; सरस्वती गोरा 1996 आंध्र प्रदेश;
मीना अग्रवाल 1996 असम, सिस्टर मैथिली 1999 केरल; कुंतला कुमारी आचार्य 2001 उड़ीसा।
इनमें से किसी एक के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर : दी गई महिलाओं की सूची में एक महिला श्रीमती सरस्वती गोरा के विषय में जानकारी इस प्रकार है…
श्रीमती सरस्वती गोरा: एक समाजसेविका का प्रेरणादायक जीवन
श्रीमती सरस्वती गोरा, जिन्हें 1996 में आंध्र प्रदेश से जानकी देवी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, एक प्रभावशाली समाजसेविका थीं। उन्होंने अपने जीवन को समाज सुधार और सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उनके कार्य और योगदान ने न केवल आंध्र प्रदेश बल्कि पूरे भारत में समाज सुधार के विभिन्न क्षेत्रों में एक नई दिशा दी।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सरस्वती गोरा का जन्म 28 सितंबर 1912 को आंध्र प्रदेश में हुआ था। उनकी शिक्षा और परवरिश एक ऐसे वातावरण में हुई जहाँ उन्हें सामाजिक न्याय और समानता के मूल्य सिखाए गए। उनके पति गोपाल गोरा भी एक प्रसिद्ध समाजसेवक थे, जिन्होंने उन्हें समाज सेवा के क्षेत्र में प्रेरित किया।
समाज सेवा और योगदान
सरस्वती गोरा ने अपने पति के साथ मिलकर “आंध्र महिला सभा” की स्थापना की, जो महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों के लिए काम करती थी। उन्होंने महिलाओं के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन के विभिन्न कार्यक्रम चलाए। इसके अलावा, उन्होंने जाति भेदभाव और सामाजिक असमानता के खिलाफ भी संघर्ष किया।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
सरस्वती गोरा ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने महात्मा गांधी के आदर्शों का पालन करते हुए असहयोग आंदोलन और अन्य राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित किया और उन्हें प्रेरित किया।
पुरस्कार और सम्मान
1996 में उन्हें जानकी देवी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो उनके समाज सुधार के कार्यों और योगदान के लिए था। यह पुरस्कार जमनालाल बजाज फाउंडेशन द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को दिया जाता है।
उनके कार्यों की महत्ता
सरस्वती गोरा का जीवन और उनके कार्य समाज सेवा के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक मिसाल हैं। उन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए अनथक प्रयास किए और अपने कार्यों से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाए। उनका जीवन एक सच्ची समाजसेविका का उदाहरण है, जिन्होंने अपने कार्यों से समाज को एक नई दिशा दी।
सरस्वती गोरा का योगदान आज भी समाज सेवा के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है, और उनकी यादें उनके द्वारा किए गए महान कार्यों के रूप में जीवित हैं।
परियोजना कार्य
प्रश्न 1 : स्वतंत्रता आंदोलन में निम्नलिखित महिलाओं में जो योगदान दिया, उसके बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करके लिखिए-
(क) सरोजिनी नायडू
(ख) अरुणा आसफ अली
(ग) कस्तूरबा गांधी
उत्तर : तीनों महिलाओं के विषय में संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है…
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू, जिसे “भारत कोकिला” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता थीं। उन्होंने महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित किया और गांधीजी के सत्याग्रह में सक्रिय भूमिका निभाई। 1925 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं, और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अरुणा आसफ अली
अरुणा आसफ अली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख नेता थीं। उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर विद्रोह का नेतृत्व किया। वे एक प्रमुख क्रांतिकारी थीं और बाद में दिल्ली की पहली मेयर भी बनीं। उन्होंने कई जेल यातनाओं को सहन किया लेकिन अपने संकल्प में अडिग रहीं।
कस्तूरबा गांधी
कस्तूरबा गांधी, महात्मा गांधी की पत्नी, स्वतंत्रता संग्राम में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलीं। उन्होंने सत्याग्रह और नमक आंदोलन में भाग लिया और कई बार जेल गईं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और स्वच्छता पर जोर दिया और अपने जीवन में गांधीजी के सिद्धांतों को अपनाकर समाज सेवा की।
प्रश्न 2 : इस पाठ के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में कलकत्ता (कोलकाता ) के योगदान का चित्र स्पष्ट होता है। आजादी के आंदोलन में आपके क्षेत्र का भी किसी न किसी प्रकार का योगदान रहा होगा पुस्तकालय, अपने परिचितों या फिर किसी दूसरे स्त्रोत से इस संबंध में जानकारी हासिल कर लिखिए।
उत्तर : विद्यार्थी इस विषय में अपने क्षेत्र की जानकारी लिखे। वे जिस क्षेत्र, जिस जिले, शहर या गाँव में रहते है उसके बारे में अपने माता-पिता, परिचित और स्थानीय लोगों से पूछें। स्थानीय इतिहास से संबंधित पुस्तकें पढ़ें और अपने क्षेत्र की जानकारी लिखें।
प्रश्न 3 : ‘केवल प्रचार में दो हजार रुपया खर्च किया गया था। तत्कालीन समय को मद्देनज़र रखते हुए अनुमान लगाइए कि प्रचार-प्रसार के लिए किन माध्यमों का उपयोग किया गया होगा?
उत्तर : उस समय न तो टीवी था और न ही इंटरनेट। प्रचार माध्यम के रूप में अखबार, इश्तेहार या कुछ हद तक रेडियो हुआ करता था। आंदोलन के प्रचार के लिए झंडे बनवाने, इश्तेहार छपवाने में अधिकतर पैसे गए होंगे। दीवारों आदि पर जो नारे लिखे गए होंगे वो कार्यकर्ताओं ने सेवा भावना के रूप में लिखे होंगे। बाकी खर्चा आवागमन मे खर्चा हुआ होगा।
प्रश्न 4 : आपको अपने विद्यालय में लगने वाले पल्स पोलियो केंद्र की सूचना पूरे मोहल्ले को देनी है। आप इस बात का प्रचार बिना पैसे के कैसे कर पाएँगे? उदाहरण के साथ लिखिए।
उत्तर : पल्स पोलियो केंद्र की सूचना पूरे मोहल्ले में बिना पैसे के निम्नलिखित तरीकों से प्रचारित कर सकते हैं:
व्यक्तिगत संपर्क के द्वारा अपने दोस्तों, पड़ोसियों, और सहकर्मियों से मिलकर जानकारी दी जा सकती है।
सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप्स जैसे व्हाट्सएप और फेसबुक पर संदेश और पोस्ट साझा करके जानकारी दी जा सकती है।
जैसे
प्रिय दोस्तों,
रविवार, 10 जुलाई को हमारे विद्यालय में पल्स पोलियो केंद्र सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुलेगा। कृपया 0-5 वर्ष के बच्चों को पोलियो की खुराक दिलवाएं। धन्यवाद।
मोहल्ले में लोगों के घर-घर जाकर उनको इस बारे जागरूक किया जा सकता है।
डायरी का एक पन्ना, लेखक – सीताराम सेकसरिया (कक्षा-10, पाठ-9 हिंदी, स्पर्श भाग 2) (NCERT Solutions)
कक्षा-10 हिंदी स्पर्श 2 पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ
साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)
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मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)
पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)
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