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हिंदी गद्य साहित्य के द्वितीय उत्थान का प्रारंभ हुआ (1) संवत् 1918 में (2) संवत् 1930 में (3) संवत् 1936 में (4) संवत् 1950 में

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सही विकल्प होगा..

(4) संवत् 1950 में

विस्तृत विवरण

हिंदी गद्य साहित्य के द्वितीय उत्थान का प्रारंभ संवत् 1950 में हुआ था।  हिंदी साहित्य के द्वितीय गद्य उत्थान की बात करें तो यह संवत 1950 से 1955 के बीच माना जाता है अर्थात सन 1888 से 1893 तक हिंदी साहित्य का द्वितीय गद्य उत्थान हुआ था। हिंदी साहित्य का द्वितीय उत्थान भारतेंदु युग के बाद आरंभ हुआ था।

इस समय में हिंदी भाषा के लेखकों ने अन्य भाषाओं के शब्दों को भी गद्य साहित्य में प्रयोग करना शुरू कर दिया था। संस्कृत के शब्द तो पहले से ही प्रयोग किए जाते थे, इसके अतिरिक्त पर अरबी एवं फारसी भाषा तथा अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों का भी बहुतायत से प्रयोग करना आरंभ कर दिया था। अंग्रेजी के शब्द भी गद्य साहित्य में प्रयोग किये जाने लगे थे।


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किस विकल्प में दोनों शब्द तत्सम शब्द हैं? (a) सूरज, अग्नि (b) भानु, आसमान (c) आकाश, सितारा (d) दिनकर, सूर्य.

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध किस नाम से प्रकाशित हैं। A. मणि B. फुलमणि C. चिंतामणि D. नीलमणि ​

साइबर अपराध का आतंक विषय पर एक आलेख तैयार कीजिए।

आलेख

साइबर अपराध का आतंक

 

साइबर अपराध का आतंक इस साइबर युग में एक गंभीर चिंतन चिंता का विषय बन गया है। आज इंटरनेट पर साइबर अपराध का बेहद आतंक मचा हुआ है। कोई भी अनजान ईमेल खोलते समय डर लगता है, पता नहीं उसके साथ कौन सा लिंक हो जो वायरस बनकर कंप्यूटर का मोबाइल में प्रवेश कर जाए। किसी भी अंजान व्हाट्सएप नंबर से आये मैसेज को खोलते समय भी ऐसा ही डर लगा रहता है।

हम अक्सर लाभ कमाने के लालच में अथवा इनाम आदि के लालच में किसी ऐसी वेबसाइट पर चले जाते हैं, जहाँ पर बहुत कम समय में ढेर सारा पैसा कमाने के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बातें की गई हों। वहाँ हमसे सिक्युरिटी मनी को जमा करने की मांग की जाती है। बाद में हम पाते हैं कि हमको ठग लिया गया है। उस समय हम यह नहीं सोचते कि कम समय में ज्यादा पैसा कमाने वाली बात कोई लॉजिक नहीं है। उसी तरह बहुत सी वेबसाइट ऐसी है जो अनेक तरह से फ्रॉड करने का काम करती हैं, इसलिए आज साइबर अपराध इंटरनेट पर अपना आतंक मचाये हुए हैं।

आज इंटरनेट जागरूकता का समय है, इंटरनेट आज के किसी के जीवन की आवश्यकता बन गया है, और किसी को इसका उपयोग करना जरूरी हो गया है। ऐसे में साइबर अपराध के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए आज इंटरनेट जागरूकता आवश्यक है। हमें किसी भी वेबसाइट अनजान व्यक्ति द्वारा भेजे गए मैसेज, ईमेल आदि पर ध्यान देने की जरूरत है। साइबर अपराध के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्रित कर उससे बचने के उपाय के बारे में सोचने की जरूरत है। तब ही हम साइबर अपराध को इंटरनेट पर कम कर सकते हैं।


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स्कूल पिकनिक पर जाने हेतु माँ और पुत्री के बीच हुए संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

स्कूल पिकनिक पर जाने हेतु माँ और पुत्री के बीच हुआ संवाद

 

पुत्री ⦂ माँ, मुझे कल ₹500 दे देना।

माँ ⦂ क्यों क्या काम है?

पुत्री ⦂ माँ, हमारे स्कूल की तरफ से पिकनिक का आयोजन किया गया है और कक्षा के सभी छात्र-छात्राएं पिकनिक पर जा रहे हैं। हर छात्र-छात्रा को ₹500 जमा करने हैं। इन पैसों में सुबह का नाश्ता और दोपहर का लंच और शाम का नाश्ता दिया जायेगा।

माँ ⦂ तुम लोग पिकनिक पर कहाँ जाओगे? और कितने बजे से कितने बजे तक पिकनिक है।

पुत्री ⦂ माँ हमारे शहर के बाहर एक रिजॉर्ट स्थित है, वहां पर हम लोग पूरा दिन पिकनिक मनाएंगे और उसके पास के जंगल में घूमेंगे। पिकनिक सुबह 8 बजे से शाँम 5 बजे तक चलेगी।

माँ ⦂ बेटा तुम्हारे पिता आ जाएं तो तुम उनसे कह देना, वह तुम्हें ₹500 दे देंगे।

पुत्री ⦂ ठीक है माँ।

माँ ⦂ लेकिन पिकनिक में ध्यान रखना, जंगल में जंगली जानवर होते हैं।

पुत्री ⦂ माँ, हम लोग जंगल के ज्यादा अंदर नही जायेगे। बस रिजॉर्ट के आसपास का ही जंगल घूमेंगे। वहाँ कोई खतरा नही है।

माँ ⦂ तुम्हे कितने बजे पिकनिक को निकलना है?

पुत्री ⦂ मुझे सुबह 7 बजे तक विद्यालय पहुँचना है, और 7.30 सभी छात्रों के लेकर बस निकल जायेगी।

माँ ⦂ ठीक है बेटी, मैं तुम्हारे कपड़े और जरूरी समान निकाल दे देती हूँ तुम अपना बैग तैयार कर लो।

पुत्री ⦂ हाँ, माँ।


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पाठ ‘हिमालय की बेटियां’ में कालिदास का उल्लेख किया गया है। कालिदास का उल्लेख लेखक ने किस कारण किया है ?

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पाठ ‘हिमालय की बेटियां’ में लेखक ने कालिदास का उल्लेख किया है। कालिदास का उल्लेख लेखक ने ‘हिमालय की बेटियां’ पाठ में इसलिए किया है, क्योंकि कालिदास ने हिमालय को देवात्मा कहा था। इस पाठ में लेखक ने हिमालय की विशेषताओं का वर्णन किया है और उन्हीं विशेषताओं तथा हिमालय से निकलने वाली नदियों की विशेषताओं को बताते हुए लेखक ने यह भी बताया है कि कालिदास ने हिमालय को देवात्मा कहा था।

‘हिमालय की बेटियां’ पाठ में लेखक नागार्जुन ने अपनी हिमालय यात्रा के दौरान लिखा था। ये लेख उन्होंने सन् 1947 में लिखा था। इस पाठ में हिमालय के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन किया है। उन्होंने हिमालय की अनुपम छटा, अठखेलियां करती नदियां, बर्फ से ढकी पहाड़ियों, पेड़-पौधों से बड़ी गाड़ियां, देवदार, चीड़, सनोबर, चिनार जैसे वृक्षों से भरे जंगलों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। हिमालय से निकलने वाली नदियों को लेखक ने हिमालय की बेटियां कहा है।

संदर्भ पाठ :
हिमालय की बेटियां (नागार्जुन)


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रिश्वत लेने देने के बारे में अपनी राय लिखिए ।

विचार/अभिमत

रिश्वत लेना या देना

 

रिश्वत लेने देने मेरे अनुसार एक अपराध है।​ रिश्वत लेने देने से ईमानदारी पर आँच आती है। रिश्वत लेने या देने का कार्य मनुष्य को चरित्र के पतन को इंगित करता है।​ रिश्वत लेने या देने के अनेक दुष्परिणाम भी होते है, जो व्यक्ति मेहनत करता है, वह हमेशा पीछे रह जाता है।​ जो लोग रिश्वत देकर अपना करवा लेते है, वे बिना मेहनत करके आगे निकल जाते है।​ रिश्वत लेना और देना बहुत-बहुत गलत है।​

आज के समय में ईमानदारी नष्ट हो गई है।​ सभी लोग रिश्वत का सहारा लेते है, और अपना काम करवाते है।​ हम सब को रिश्वत को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए, ईमानदारी के रास्ते पर चलना चाहिए।​ रिश्वत के कारण आम आदमी और गरीब लोग हमेशा पीछे रह जाते है, उनके काम हमेशा पीछे रह जाते है।​ अमीर लोग हमेशा रिश्वत देकर कुछ मिनटों में काम करवा लेते है।​ रिश्वत देना और साथ में लेना दोनों ही गलत है।


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अकेली निहत्थी आवाज़ और ब्रह्मास्त्रों से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।

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अकेली निहत्थी आवाज़ और ब्रह्मास्त्रों से तात्पर्य उस बिना हथियार के व्यक्ति की है, जिसका संसार में कोई बड़ा महत्व नहीं होता लेकिन फिर भी वह धर्म के विरुद्ध लड़ता है और ब्रह्मास्त्र अर्थात बड़े-बड़े महाशक्तियों के विरुद्ध संघर्ष करता है। वह अपना भविष्य ना जानते हुए कि आगे क्या होगा, यह ना सोच समझ कर भी अधर्म से लड़ने की कोशिश करता है और समाज के प्रभावशाली लोगों का सामना करता है ।’

टूटा पहिया’ कविता के माध्यम से कवि धर्मवीर भारती ने उदाहरण देते हुए अकेली आवाज के लिए अभिमन्यु को प्रतीक बनाया है, जो चक्रव्यूह में अकेले दुस्साहसी बनकर चक्रव्यूह में अकेले ही प्रवेश कर गया और उसने आधे चक्रव्यूह का तो भेदन कर लिया लेकिन आखिर में कौरव सेना के बड़े-बड़े महारथियों ने उसके सब अस्त्र-शस्त्र नष्ट कर डाले।

अभिमन्यु ये जानते हुए भी कि वो चक्रव्यूह से बाहर निकलने की विधि नही जानता है और चक्रव्यूह से बाहर नही निकल पायेगा, वह विरोधी पक्ष के लोगों से लड़ने के लिए चल पड़ा। उसी प्रकार भी आज का लघुमानव यानि आम आदमी भी यह जानते हुए भी उसकी आवाज को दबाने का प्रयास किया जाएगा।

बड़े-बड़े प्रभावशाली लोग उसकी आवाज को दबाने का प्रयास करेंगे, फिर भी वह अत्याचार और गलत बात का विरोध करता है, संघर्ष करता है, अधर्म के विरुद्ध लगड़ता है। यहाँ पर अकेली निहत्थी आवाज उस आम आदमी का प्रतीक है और ब्रह्मास्त्र उन सभी महारथियों यानि प्रभावशाली लोगों का प्रतीक है।

संदर्भ कविता
टूटा पहिया – धर्मवीर भारती


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‘दुनिया सोती थी पर दुनिया की जीभ जागती थी।’ कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। (नमक का दरोगा)

सिनेमा के लाभ व हानियाँ के बारे में बताते हुए एक लेख लिखें।

सिनेमा मनुष्य के मनोरंजन का एक प्रमुख साधन है। सिनेमा में प्रमुख मनोहारी प्राकृतिक दृश्य, सुंदर एवं सुमधुर गीतों का समावेश, स्वाभाविक अभिनय एवं कथानक की रोचकता आदि मनुष्य को अत्यधिक आकर्षित करते हैं।

सिनेमा के लाभ व हानियाँ इस प्रकार हैं…

सिनेमा के लाभ

  • सिनेमा शिक्षा के प्रसार में भी बड़े उपयोगी हैं। इसके द्वारा वैज्ञानिक और भौगोलिक ज्ञान को अच्छी तरह प्रस्तुत किया जा सकता है। रामायण और महाभारत के प्रसंगों पर बने चित्र लोगों को सत्य, सदाचार और न्याय की प्रेरणा देते हैं।
  • ऐतिहासिक फिल्में अपने युग का आईना बनकर हमें प्रभावित करती हैं। सिनेमा राष्ट्रीय एकता बढ़ाते और राष्ट्रभाषा का प्रचार भी करते हैं। सिनेमा केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं है, अपितु यह तो व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व के लिए भी उपयोगी सिद्ध हुआ है।
  • सिनेमा ज्ञान के भी स्रोत होते हैं। अनेक देशों की भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक तथा धार्मिक विचारधाराओं को इनसे जाना जा सकता है। अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानों एवं प्रयोगों को भी समझा जा सकता है। प्राकृतिक दृश्यों का आनंद भी इनसे मिलता है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक युग में सिनेमा का विशेष महत्व बढ़ गया है। सामाजिक दृष्टि से सिनेमा के द्वारा समाज में व्याप्त रूढ़ि और अंधकार तथा बुराइयों से लोगों को परिचित कराया जा सकता है। जैसे-दहेज प्रथा, बाल-विवाह, छुआछूत आदि।
  • सिनेमा राष्ट्रीय एकता तथा भावनात्मक एकता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते हैं।
  • सभी देशों की फिल्मों के आदान-प्रदान और प्रदर्शन विश्व मानव की समस्या से परिचित होकर समृद्धि और शांति का मार्ग ढूँढ़ते हैं। इन फिल्मों के माध्यम से कला, अभिनय ,संगीत , विज्ञान आदि की शिक्षा भी प्रभावी रूप में दी जा सकती है।

सिनेमा की हानियाँ

जहाँ एक सिनेमा के अनेक लाभ हैं, वहीं इसकी अनेक हानियाँ भी हैं।

  • सस्ते और रोमांचक चलचित्र समाज पर बुरा असर भी डालते हैं। इनके कारण समाज में फैशन, दिखावा और निरंकुशता की वृत्तियाँ फैलती हैं।
  • सिनेमा के अश्लील और हिंसात्मक दृश्यों, भद्दे गीतों और पाश्चात्य नृत्यों के कारण लोगों में बुरे संस्कार पैदा होते हैं।
    कुछ फिल्में लोगों को हत्या, शोषण, चोरी, डकैती, तस्करी जैसी बुराइयों की ओर ले जाती हैं। सचमुच, ऐसी फिल्मों से लोगों के चरित्र का पतन होता है।
  • सिनेमा के उपयोगी पक्ष के अतिरिक्त उसकी एक दूसरी तस्वीर भी है, जो विध्वंसात्मक पक्ष करती है। आधुनिक युग में बनने वाली फिल्मों ने युवा पीढ़ी को सर्वाधिक लुभाया है। सिनेमा कलाकारों की अभिनय क्षमता से नहीं, अपितु उनके ऐश्वर्य तड़क-भड़क और आमोद-प्रमोद के जीवन से आकर्षित होकर कई युवक-युवतियाँ अपने मानस में यही स्वप्न देखने लगते हैं। कई बार ऐसे उदाहरण भी मिले हैं, जब ये घर से भाग गए तथा असामाजिक तत्वों के हाथ पड़कर या तो कुमार्ग पर चल पड़े अथवा जीवन से ही हाथ धो बैठे।
  • यह संसार चारों ओर चकाचौंध का संसार है, जिसका आकर्षण युवक और युवतियों को मोहित करता है। इस पक्ष के साथ ही आधुनिक युग में निर्मित होने वाली फिल्में प्रेरणाप्रद और शिक्षादायक भी नहीं होती हैं। उनमें जीवन का सत्य कम और भावनाओं को उदीप्त करने वाले प्रसंग अधिक होते हैं।
  • अश्लील दृश्य, नग्नता, नृत्य और कामुक हाव-भाव, भंगिमा व संवाद किशोर मन को विचलित करते हैं। नए-नए फैशन के प्रति आकर्षण के साथ अनैतिक दृश्य चोरी अपहरण, डकैती और बलात्कार, मार-धाड़ आदि के प्रसंग किशोर-मानस को रोमांचित करते हैं, जिनसे वे अपने अध्ययन में पूर्ण समर्पण नहीं कर पाते हैं।

निष्कर्ष :
इस तरह सिनेमा के एक तरफ अनेक लाभ हैं, तो दूसरी तरफ अनेक हानियाँ भी हैं। हमें सिनेमा की हानियों से बचते हुए उसके लाभ को उपयोगी बनाना होगा।


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चोल साम्राज्य पर एक लेख लिखिए।

भ्रष्टाचार मुक्त भारत विकसित भारत (निबंध)

अगर पेड़ ना होते तो क्या होता?

अगर पेड़ न होते तो क्या होता

 

अगर पेड़ ना होते तो हमारे अस्तित्व की कल्पना ही नहीं कर सकते। प्रकृति ने हमें कई प्रकार के उपहार दिए हैं जिनमें पेड़ सर्वश्रेष्ठ हैं, जो हमें जीवन में हमेशा सहायता करते है जो व्यक्ति के जीवन को बनाए रखते है। शुद्ध वातावरण प्रदान करते है। जो एक स्वस्थ जीवन के लिए महत्वपूर्ण होता है।

पेड़ हमें आक्सीजन प्रदान करते हैं जो हमें जीवित रहने के लिए अत्यंत आवश्यक है इसके बिना तो हम 1 घंटा भी जीवित नहीं रह सकते। पेड़ हमारे ही नहीं बल्कि इस धरती पर मौजूद सभी जीव जंतुओं के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । पेड़ पौधे हमारे जीवन के संतुलन के साथ ही प्रकृति के संतुलन को भी बनाए रखते है।

पेड़ पौधों से ही प्रकृति की सुन्दरता का दृश्य प्राप्त होता है। पेड़ पौधों के अभाव में प्रकृति का कोई अस्तित्व ही नहीं होता है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से वर्षा कम होने लगी है। अपर्याप्त वर्षा से जल स्रोत दूषित हो रहा है। हवा में जहरीली गैसों के बढ़ने से पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा अत्यधिक बढ़ गई है। यदि समय रहते मनुष्य नहीं सँभला और उसने पेड़ों के संरक्षण व संवर्धन की तरफ उचित ध्यान नहीं दिया तो यह धरती पेड़-पौधों एवं वनस्पतियों से विहीन हो जाएगी । मनुष्य साँस-साँस को तरसेगा। सूखा, अकाल या बाढ़ की भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

मनुष्यों का पेड़ों के बिना जीवन संभव नहीं है, वृक्ष है तो जीवन है। इसलिए हमें जितना हो सके उतने पेड़ लगाने चाहिए । यदि पेड़ नहीं होते तो, यह एक भयानक कल्पना है, हमें पेड़ों को काटने वालों का निश्चित ही विरोध करना चाहिए ।


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‘मन्नू भंडारी’ द्वारा लिखित ‘दो कलाकार’ कहानी के दोनों पात्रों का परिचय दीजिए। आपका प्रिय कलाकार कौन और क्यों है? इस पर विचार व्यक्त कीजिए।

आपने अग्रवाल प्रकाशन से कुछ पुस्तकें मँगवाई थी। लेकिन अभी तक उन पुस्तकों का पार्सल आपको नहीं मिला है। पार्सल रद्द करने के लिए प्रकाशन को ई-मेल लिखिए।

ई-मेल लेखन

पार्सल रद्द करने का ई-मेल

 

To: support@Aggrawalpublication.com
From: Raghav581@gmail.com

विषय : – पार्सल कैंसिल करवाने बाबत ।

दिनांक : 07 -07-2024

मान्यवर,
निवेदन है कि गत सप्ताह मैंने आपके संस्थान से कुछ पुस्तकें मँगवाई थी । इस पार्सल को दिनांक 05/07/2024 तक अपने नियत स्थान तक प्रेषित किया जाना था । इस पत्र के माध्यम से मैं आपको अत्यंत खेद सहित यह बताना चाहता हूँ कि अब मुझे अब तक पार्सन नहीं मिला, इसलिए मैं पार्सल की बुकिंग को निरस्त करवाना चाहता हूँ, क्योंकि प्राप्त कर्ता उक्त तिथि में नियत स्थान पर उपलब्ध नहीं रहेगा । बुकिंग के बाद पार्सल की निरस्तीकरण की सूचना देने के लिए मुझे बहुत खेद है ।

अतः मैं आपसे विनम्रता पूर्वक आग्रह करता हूँ कि आप इस पार्सल की बुकिंग निरस्त करने की औपचारिकताएं पूर्ण कर दें । बुकिंग निरस्त करने की निर्धारित नियमों के अनुसार अग्रिम राशि में नियत कटौती करके यदि संभव हो तो भुगतान राशि को शीघ्र ही वापस करने की कृपा करें।
आपके द्वारा किए गए इस कार्य के लिए मैं आपका सदा आभारी रहूँगा । साथ ही मैं आपको यह भी आश्वासन देता हूँ कि यदि मुझे भविष्य में किसी अन्य बुकिंग की आवश्यकता पड़ती है तो मैं आपकी सेवा अवश्य लूंगा ।

अत्यंत खेद सहित,

धन्यवाद
राघव सिंह,
न्यू टाउन,
शिमला


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महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध को रोकने के लिए हर क्षेत्र में महिला थाना स्थापित किए जाने हेतु महिला आयोग की अध्यक्षा की ओर से राज्य के मुख्यमंत्री को ई-मेल लिखिए।

मान लीजिए कि आप बहुत दिनों से स्कूल नहीं गए हैं। अपने किसी मित्र से इन दिनों विज्ञान विषय में करवाए गए कार्य की कॉपी स्कैन करके ई-मेल से भेजने का अनुरोध कीजिए।

पाठशाला के चपरासी का साक्षात्कार वाला संवाद लिखें।

संवाद

पाठशाला के चपरासी का साक्षात्कार

 

पत्रकार ⦂ तुम्हारा नाम क्या है?

चपरासी  साहब, मेरा नाम राम दुलारे है।

पत्रकार ⦂ तुम्हारी तनख्वाह कितनी है?

चपरासी ⦂ साहब, मेरी तनख्वाह 8000 रूपये महीना है।

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चपरासी  मुझे इस विद्यालय में काम करत-करते 20 बरस हो गए।

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चपरासी ⦂ क्या करें साहब मजबूरी है। गरीब आदमी कैसे भी गुजारा कर ही लेता है।

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पत्रकार  अच्छा, तुम्हें क्या-क्या काम करना पड़ता है?

चपरासी ⦂ साहब, मुझे रोज विद्यालय के पीरियडों के लिए घंटी बजानी पड़ती है। उसके अलावा प्रधानाचार्य जी के कार्यालय का सारा सामान उनके ऑफिस में लाना-ले जाना होता है तथा स्टाफ रूम के अन्य सदस्यों के छोटे-मोटे काम करने पड़ते हैं। विद्यालय की फाइलों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना भी मेरा काम है। नोटिस बोर्ड पर नोटिस चिपकाना मेरा काम है।

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आउटडोर खेलों का महत्व समझाते हुए माँ-बेटे के बीच संवाद लिखिए।

नसीरुद्दीन ने अपने मित्र को कहाँ घुमाना चाहा?

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नसीरुद्दीन ने अपने मित्र को मोहल्ले में घुमाना चाहा था।

एक बार नसीरुद्दीन अपने पुराने दोस्त जमाल साहब से मिले। अपने पुराने दोस्त जमाल साहब से मिलकर एक बड़े खुश हुए और उन्होंने बहुत देर तक अपने दोस्त के साथ गपशप की। उसके बाद वह अपने दोस्त से बोले, ‘चलो दोस्त, मोहल्ले में घूम आएं।’ यह सुनकर उनके दोस्त जमाल साहब ने जाने से मना कर दिया।

नसीरुद्दीन ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘मैं यह मामूली सी पोशाक पहना हूँ, इस पोशाक में मैं बाहर लोगों से नहीं मिल सकता।’

तब नसीरुद्दीन ने कहा, ‘बस इतनी सी बात।’ फिर तुरंत जाकर दोस्त के लिए भड़कीली अचकन निकाल कर ले आए और अपने दोस्त जमाल साहब को पहनने को दे दी।

संदर्भ पाठ
कक्षा – 4 पाठ – 5 ‘दोस्त की पोशाक’


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ढीले-ढाले कुर्ते के अंदर से निकालकर रहमत ने लेखक को क्या दिखाया​? (काबुलीवाला – रवींद्रनाथ टैगोर)

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ढीले-ढाले कुर्ते के अंदर से रहमत ने कागज का एक टुकड़ा निकाल कर लेखक को दिखाया था। उस कागज के टुकड़े पर रहमत की बेटी के हाथों की छाप बनी हुई थी। रहमत के बेटी काबुल में रहती थी। जब रहमत वहाँ से भारत आया था तो वह कागज के टुकड़े पर अपनी लड़की के हाथों की छाप ले आया था। काली स्याही की सहायता से अपनी बेटी नन्हें हाथ की छा वाले कागज को रहमत अपने कुर्ते की जेब में हमेशा संभाल कर रखता था।

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एक स्वतंत्र व्यक्ति की तुलना उड़ते हुए पक्षी से करते हुए अपने विचार लिखिए। ​

विचार लेखन

स्वतंत्र व्यक्ति और उड़ते पक्षी के बीच तुलना

 

एक स्वतंत्र व्यक्ति की तुलना उड़ते हुए पक्षी से की जा सकती है क्योंकि दोनों ही स्वतंत्रता, स्वतंत्र विचारों और अनंत संभावनाओं के प्रतीक होते हैं। एक तरफ जहाँ खुला आसमान पक्षी के लिए अनंत संभावनाओं का प्रतीक है। वह बिना किसी बंधन के ऊँचाईयों तक उड़ सकता है, अपने पंखों के सहारे अपनी दिशा तय कर सकता है। वहीं दूसरी तरफ एक स्वतंत्र व्यक्ति भी बिना किसी सामाजिक या मानसिक बंधन के अपनी इच्छाओं और सपनों को पूरा करने की क्षमता रखता है। वह अपने निर्णय स्वयं लेता है और अपनी राह स्वयं चुनता है।

पक्षी स्वच्छंदता का प्रतीक होता है। उसे न तो किसी का डर होता है और न ही किसी पर निर्भरता। वह अपने भोजन की तलाश खुद करता है और अपने घोंसले को स्वयं बनाता है। वह अपना जीवन बिना किसी रोट-टोक के स्वतंत्रता से जीता है, उसके लिए नगर, राज्य, देश जैसी भौगोलिक सीमाओं के बंधन नहीं हैं।

स्वतंत्र व्यक्ति भी आत्मनिर्भर होता है। वह अपने जीवन के निर्णय खुद लेता है और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए कठिन मेहनत करता है। उसे अपने पर विश्वास होता है और वह अपनी राह खुद बनाता है। आकाश की विशालता पक्षी को अनंत संभावनाओं का अहसास कराती है। वह नए-नए स्थानों की खोज कर सकता है, नए अनुभवों का आनंद ले सकता है।

इस प्रकार, एक स्वतंत्र व्यक्ति और उड़ते हुए पक्षी में बहुत सी समानताएँ हैं। दोनों ही स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं, अनंत संभावनाओं की तलाश में रहते हैं, और अपने स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता पर गर्व करते हैं। उनके लिए स्वतंत्रता केवल एक स्थिति नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है।


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क्षमा को एक दैवीय गुण इसलिए कहा गया है क्योंकि यह मनुष्य के उच्चतम नैतिक मूल्यों और गुणों का प्रतीक है। क्षमा का अर्थ है किसी व्यक्ति की गलतियों या अपराधों को माफ कर देना और उनके प्रति द्वेष या क्रोध न रखना। यह गुण न केवल शांति और सौहार्द्र को बढ़ावा देता है बल्कि व्यक्ति के मानसिक और आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होता है।

किसी की गलतियों को क्षमा कर देना आसान नहीं होता। ये गुण अपनाना विशिष्टता का प्रतीक है। जिसके अंदर करुणा है दया है, वही व्यक्ति क्षमा कर सकता है। करुणा और दया जैसे गुण स्वयं में दैवीयता का प्रतीक है, इसलिए जिसमें क्षमा का गुण है वह दैवीय गुणों से युक्त हो जाता है।

क्षमा व्यक्ति को अहंकार, क्रोध और द्वेष जैसे नकारात्मक भावनाओं से मुक्त करती है। यह आत्मा की शुद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है और व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करती है।

क्षमा करने से व्यक्ति और समाज में शांति और सौहार्द्र का वातावरण बनता है। यह संबंधों को मजबूत बनाता है और संघर्षों को समाप्त करता है। क्षमा दया और करुणा का प्रतीक है, जो ईश्वर के प्रमुख गुण माने जाते हैं। जो व्यक्ति क्षमा करता है, वह ईश्वर की करुणा का अनुभव करता है और दूसरों को भी उसका अनुभव कराता है।

क्षमा करने से मन में शांति और संतोष का अनुभव होता है। यह तनाव और चिंता को कम करता है और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है। क्षमा का अभ्यास समाज में नैतिकता और मूल्य आधारित जीवन को बढ़ावा देता है। यह समाज को अधिक मानवतावादी और सहिष्णु बनाता है।

इन्ही सब कारणों से क्षमा एक दैवीय गुण है क्योंकि यह व्यक्ति और समाज दोनों के लिए कल्याणकारी है और मनुष्य को ईश्वर के समीप लाने में सहायक होता है।


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“दहेज हत्या एक कानूनी अपराध” इस विषय पर लघु निबंध लिखिए।

लघु निबंध

दहेज हत्या एक कानूनी अपराध

 

दहेज हत्या क्या है ?

दहेज हत्या क्या है? इससे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि दहेज क्या है? दहेज का अर्थ है जो संपत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। दहेज को उर्दू में जहेज़ कहते हैं। यूरोप, भारत, अफ्रीका और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास है । भारत में इसे दहेज, हुँडा या वर-दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है तथा वधू के परिवार द्वारा नकद या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है। आज के आधुनिक समय में भी दहेज़ प्रथा नाम की बुराई हर जगह फैली हुई है । पिछड़े भारतीय समाज में दहेज़ प्रथा अभी भी विकराल रूप में है।

आइए अब आपको बताते है कि दहेज हत्या क्या होती है : 

भारतीय संविधान की धारा 304-B के तहत दहेज के लालच में विवाहिता बधू को मारने के अपराध को दहेज हत्या कहा जाता है। भारतीय दंड संहिता 1860 में 1986 में जोड़े गए इस प्रावधान के अनुसार विवाह के सात साल में किसी महिला की जलने या किसी अन्य प्रकार की शारीरिक चोट से मृत्यु हो जाती है और यह दिखाया जाता है कि मृत्यु के पूर्व उसे पति या पति के परिजन द्वारा क्रूरता या प्रताड़ना, दहेज की किसी मांग को लेकर किया जाता था, तो उसे दहेज हत्या माना है । जो कोई भी दहेज हत्या करता है, तो उसे कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है ।


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डॉ. रमणी अटकुरी की चरित्रगत विशेषताओं पर टिप्पणी लिखें।

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डॉ. रमणी अटकुरी की चारित्रिक विशेषताएं इस प्रकार हैं…

  • डॉ. रमणी अटकुरी ने अपना जीवन गरीबों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है।
  • वह एक बेहद ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ डॉक्टर हैं।
  • वे डॉक्टरी के पेशे को व्यापार नहीं सेवा मानती हैं।
  • वह जंगल के लोगों के इलाज के लिए हर हफ्ते मुसीबतें झेलकर भी उन लोगों का इलाज करने के लिए जाती है।
  • डॉ. रमणी अटकुरी के अपने शहर के क्लीनिक से जंगल का क्लीनिक अच्छा लगता है, क्योंकि उनके अंदर सेवा की भावना है।
  • यदि किसी मरीज की चिकित्सा के लिए उन्हें आधी रात भी जंगल जाना पड़े और वहीं पर रात में रुकना पड़े तो वे संकोच नही करती।
संदर्भ पाठ

बात उस मंगलवार की 


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जंगल के महत्व और उनसे होने वाले लाभ पर एक निबंध लिखिए।

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निबंध

जंगल और उनका महत्व

 

जंगल पृथ्वी की प्रकृति के लिए वरदान हैं। जंगल विभिन्न प्रकार की जंगलस्पतियों से बने होते हैं जैसे पेड़, पौधे, पर्वतारोही, लता, झाड़ियाँ, झाड़ियाँ और घास। एक जंगल में कई प्रकार की फूलों की प्रजातियां होने के कारण इसमें कई प्रकार की जीव-जंतु प्रजातियां भी पाई जाती हैं। जंगलों में जल निकाय भी होते हैं। जंगल जंगल्यजीवों के लिए आवास हैं जिनमें स्तनधारी, उभयचर, सरीसृप, पक्षी और कीड़े शामिल हैं। ग्रह पृथ्वी के स्वास्थ्य के लिए जंगल पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण हैं और सभी जीजंगल रूपों जो इसे निवास करते हैं। जंगलों की कटाई एक गंभीर समस्या है, और हमें अपने जंगलों की रक्षा के लिए सभी प्रयास करने चाहिए।

जंगल के महत्व

  • जंगल से हमें आक्सीजन प्राप्त होती है। जंगल कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करके आक्सीजन छोड़ते है। जिससे इस प्रकृति में आक्सीजन और कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के बीच में संतुलन बना रहता है।
  • जंगल और भी कई तरह की ग्रीन हाउस गैसों को ग्रहण करके प्रकृति का संतुलन बनाए रखता है। जंगलों के होने से वर्षा की मात्रा भी ठीक रहती है और जंगलों के आसपास कभी भी सूखा नहीं पड़ता है।
  • यह वातावरण में संतुलन बनाए रखने का कार्य करता है। यह सभी जंगली जानवरों व पक्षियों को घर प्रदान करता है।
  • जीव-जंतुओं का पोषण भी इन जंगलों से ही होता है। जंगलों से कई लोग अपना जीजंगलयापन करते है। वह इसी से ही अपना भोजन भी प्राप्त करते है और कई मौकों पर अपनी आजीविका भी यहीं से चलाते है।
  • एक साथ बड़ी मात्रा में पेड़-पौधे मिट्टी के कटाव को रोकते है। जंगलों के होने से वातावरण भी ठंडा रहता है। जंगलों के होने से प्रकृति में प्रदूषण भी कम होता है।
  • जंगलों से हमें लकड़ी भी प्राप्त होती है, जिससे आज विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाई जाती है, जो काफी आवश्यक है।

जंगल के बिना नुकसान

  • यदि जंगल नहीं होंगे तो वर्षा भी समय पर नहीं होगी, जिससे सूखा पड़ने का खतरा बढ़ जाएगा।
  • जंगल या पेड़-पौधे न होने से बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है। यदि पेड़-पौधे या जंगल नहीं होंगे तो पानी की कमी भी होगी।पेड़-पौधों के न होने से वातावरण में आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है, जो जीव-जंतुओं के लिए खतरनाक है। बिना पेड़-पौधों के प्रदूषण भी बढ़ता है।
  • जंगली जानवरों का घर छीन जाता है, जिससे वें बेघर होकर इंसानी बस्तियों में आने लगते है।

निष्कर्ष

जंगल (जंगल) पर्यावरण का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। हालांकि, दुर्भाग्यवश मानव विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नेत्रहीन रूप से पेड़ों को काट रहा है जिससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है। वृक्षों और जंगलों को बचाने की आवश्यकता को अधिक गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

वर्तमान में दुनिया के 7 अरब लोगों को प्राणवायु (आक्सीजन) प्रदान करने वाले जंगल खुद अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विशेषज्ञों की राय है कि यदि जल्द ही इन्हें बचाने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं विकराल रूप ले लेंगी। एक व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए उसके आसपास 16 बड़े पेड़ों की जरूरत होती है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि जमीन के एक तिहाई हिस्से पर जंगल होना चाहिए जबकि भारत में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के करीब 23 फीसदी हिस्से पर जंगल हैं, लेकिन हाल ही में आई एक गैर सरकारी संस्था की रिपोर्ट बताती है कि भारत के केवल 11 प्रतिशत हिस्से पर जंगल हैं। ऐसा है तो यह काफी गंभीर और चिंतनीय है।


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दी गई कविता के आधार पर पूछ गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कविता चिडि़या को लाख समझाओ कि पिंजड़े के बाहर धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है, वहाँ हवा में उन्हें अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी। यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है, पर पानी के लिए भटकना है, यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है। बाहर दाने का टोटा है, यहाँ चुग्गा मोटा है। बाहर बहेलिए का डर है, यहाँ निर्द्वंद्व कंठ-स्वर है। फिर भी चिडि़या मुक्ति का गाना गाएगी, मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी, पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी, हरसूँ ज़ोर लगाएगी और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी। 1. धरती को बहुत बड़ी और निर्मम क्यों कहा गया है? 2. पिंजरे के अंदर दाने-पानी की क्या व्यवस्था है? 3. कौन-सी मुश्किलों के बाद भी चिड़िया मुक्त होना चाहेगी? 4. चिड़िया मुक्ति के लिए किस तरह प्रयास करेगी? 5. पिंजरे में बंद चिड़िया कैसे उड़ पाएगी ?

इस प्रश्न में दी गई कविता हिंदी के जाने-माने कवि ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ द्वारा रचित ‘मुक्ति की आकांक्षा’ कविता है। ये पूरी कविता इस प्रकार है…

चिडि़या को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
वहाँ हवा में उन्हें
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है,
यहाँ चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है,
यहाँ निर्द्वंद्व कंठ-स्वर है।
फिर भी चिडि़या
मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,
हरसूँ ज़ोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।

इस कविता के आधार पर पूछे गए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार होंगे….​

1. धरती को बहुत बड़ी और निर्मम क्यों कहा गया है?

धरती को बहुत बड़ी और निर्मम इसलिए कहा गया है क्योंकि पिंजरे के बाहर की दुनिया बहुत विस्तृत और कठिन है। वहाँ चिड़िया को अपने आप को सुरक्षित रखने और भोजन पाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। उसे अपनी गंध तक नहीं मिलेगी, और उसे हर वक्त खतरे का सामना करना पड़ेगा।

2. पिंजरे के अंदर दाने-पानी की क्या व्यवस्था है?

पिंजरे के अंदर दाने और पानी की अच्छी व्यवस्था है। वहाँ पानी कटोरी में भरा हुआ है और दाने चुग्गे के रूप में आसानी से मिल जाते हैं। पिंजरे में चिड़िया को दाने-पानी की कोई कमी नहीं होती।

3. कौन-सी मुश्किलों के बाद भी चिड़िया मुक्त होना चाहेगी?

चिड़िया मुक्त होना चाहेगी भले ही बाहर समुद्र, नदी और झरना हो, पर पानी के लिए भटकना पड़े। वहाँ दाने का टोटा हो, बहेलिए का डर हो, परंतु फिर भी वह पिंजरे की निर्द्वंद्व स्थिति से बाहर निकलकर स्वतंत्रता का अनुभव करना चाहेगी।

4. चिड़िया मुक्ति के लिए किस तरह प्रयास करेगी?

चिड़िया मुक्ति के लिए अपने पूरे प्रयास करेगी। वह मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी, जितना अंग पिंजरे से बाहर निकाल सकेगी, निकालेगी और हर संभव जोर लगाएगी ताकि पिंजड़ा टूट जाए या खुल जाए और वह उड़ सके।

5. पिंजरे में बंद चिड़िया कैसे उड़ पाएगी?

पिंजरे में बंद चिड़िया पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर ही उड़ पाएगी। वह अपने मुक्त होने की चाह में हरसंभव प्रयास करेगी और मौका मिलते ही आजादी की उड़ान भरेगी।


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“हमारा जीवन दूसरों को सहायता करने से ही सफल होता है।” ‘गानेवाली चिड़िया’ कहानी के आधार पर बताइए?

अगर चिड़िया और शार्क बोल पाती तो उनके बीच क्या वार्तालाप होता। एक काल्पनिक संवाद लिखिए।

दिए गए शब्दों का समास विग्रह करके समास का नाम लिखिए। 1. आरामकुर्सी 2. स्वरचित 3. गुणहीन 4. जीवनसाथी 5. धर्मवीर 6. अधर्म 7. मालगोदाम 8. परमानंद 9. वचनामृत 10. चौमासा 11. यथानियम 12. ऊँच-नीच 13. लंबोदर 14. महावीर 15. संसारसागर 16. पंजाब 17. प्रतिवर्ष ​ 18. चक्रपाणि 19. राजमहल 20. नीलकमल

दिए गए शब्दों का समास विग्रह करके समास का नाम इस प्रकार होगा…

  1. आरामकुर्सी : आराम के लिए कुर्सी
    समास भेद : तत्पुरुष समास (संप्रदान तत्पुरुष)
  2. स्वरचित : स्वयं द्वारा रचित
    समास भेद : तत्पुरुष समास (करण तत्पुरुष)
  3. गुणहीन : गुण से हीन
    समास भेद : अपादान तत्पुरुष
  4. जीवनसाथी : जीवन का साथी
    समास भेद : तत्पुरुष समास (संबंध तत्पुरुष)
  5. धर्मवीर : धर्म में वीर
    समास भेद : तत्पुरुष समास (अधिकरण तत्पुरुष)
  6. अधर्म : न धर्म
    समास भेद : तत्पुरुष समास (नञ तत्पुरुष समास)
  7. मालगोदाम : माल का गोदाम
    समास भेद : तत्पुरुष समास (संबंध तत्पुरुष)
  8. परमानंद : परम है जो आनंद
    समास भेद : कर्मधारण्य समास
  9. वचनामृत : वचन रूपी अमृत
    समास भेद : कर्मधारण्य समास
  10. चौमासा : चार मासों का समाहार
    समास भेद :  द्विगु समास
  11. यथानियम : नियम के अनुसार
    समास भेद : अव्ययीभाव समास
  12. ऊँच-नीच : ऊँच और नीच
    समास भेद : द्वंद्व समास
  13. लंबोदर : लंबा है जिनका उदर अर्थात भगवान गणेश
    समास भेद : बहुव्रीहि समास
  14. महावीर : महान है जो वीर
    समास भेद : कर्मधारण्य समास
  15. संसारसागर : संंसार रूपी सागर
    समास भेद : कर्मधारण्य समास
  16. पंजाब : पाँच आब (नदियों) का क्षेत्र
    समास भेद : द्विगु समास
  17. प्रतिवर्ष ​: हर एक वर्ष
    समास भेद : अव्ययीभाव समास
  18. चक्रपाणि : चक्र है पाणि (हाथ) में जिनके अर्थात भगवान विष्णु
    समास भेद : बहुव्रीहि समास
  19. राजमहल : राजा का महल
    समास भेद : तत्पुरुष समास (संबंध तत्पुरुष)
  20. नीलकमल : नीला है जो कमल
    समास भेद : कर्माधारण्य समास

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‘आटे-दाल’ इस समस्त पद का समास विग्रह और समास भेद क्या होगा?

‘सिंहद्वार’ का समास विग्रह कीजिए।

निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह करके समास का नाम लिखिए- (क) हथकड़ी (ख) रोगग्रस्त (ग) शताब्दी (घ) त्रिवेणी (ङ) कमलनयन (च) लाभ-हानि (छ) नवग्रह (ज) तुलसीकृत (झ) राजीवलोचन (ञ) बैलगाड़ी (ट) यथासंभव (ठ) घुड़सवार (ड) लंबोदर

निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह कर समास भेद बताइए: सत्याग्रह, लोकप्रिय, दशानन, चंद्रमुख, त्रिकोण, षट्कोण, नीलांबर, देहलता, राजकुमारी, रात-दिन, तुलसीकृत, वनवासी, देशभक्ति, यथाशक्ति, नीलकंठ, रसोईघर।

अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य महोदय को एक प्रार्थना पत्र लिखें, जिसमें कक्षा के शरारती बच्चों द्वारा अनुशासन भंग करने की शिकायत की गई हो।

औपचारिक पत्र

शरारती बच्चों की शिकायत करते हुए विद्यालय के प्रधानाचार्य महोदय को एक प्रार्थना पत्र

दिनाँक – 6/7/2024

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय इंटर कॉलेज,
मेरठ

विषय: कक्षा में अनुशासन भंग की शिकायत

माननीय महोदय,

सविनय निवेदन है कि मैं अंंकुश शर्मा, कक्षा 9-ब का छात्र हूँ। मैं आपका ध्यान हमारी कक्षा में कुछ शरारती बच्चों द्वारा लगातार किए जा रहे अनुशासन भंग की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। पिछले कुछ सप्ताहों से, कुछ छात्र नियमित रूप से कक्षा में व्यवधान उत्पन्न कर रहे हैं। वे अक्सर शिक्षकों की अनुमति के बिना कक्षा में बातें करते हैं। अन्य छात्रों को परेशान करते हैं और उनका ध्यान भटकाते हैं। वे कक्षा के दौरान अपने मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं। शिक्षकों के निर्देशों को अनसुना कर देते हैं। ये छात्र कक्षा में बेहद शोर भी मचाते हैं, जिससे इस व्यवहार के कारण कक्षा का शैक्षणिक माहौल प्रभावित हो रहा है और अन्य छात्रों को पढ़ने में कठिनाई हो रही है। हमने इस मुद्दे को अपने कक्षा शिक्षक के साथ उठाया है, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।

अतः आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप इस मामले में हस्तक्षेप करें और उचित कार्रवाई करें ताकि हमारी कक्षा में एक स्वस्थ और अनुशासित वातावरण बनाया जा सके।

शरारती छात्रों की सूची इस प्रकार है..
1. रजनीश अरोरा
2. वैभव रस्तोगी
3. मयंक कश्यप
4. देवेंद्र राजपुरोहित
5. योगेश आहूजा

धन्यवाद।

भवदीय,
अंकुश शर्मा,
कक्षा : 9-ब
रोल नंबर : 04


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विद्यालय के प्रधानाचार्य को चरित्र प्रमाण पत्र देने का अनुरोध करते हुए एक प्रार्थना पत्र लिखिए ।

आपके विद्यालय में पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होता। इसकी शिकायत करते हुए सुधार के लिए प्रार्थना करते हुए प्रधानाचार्य को पत्र लिखिए।

निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग जोड़कर नए शब्द बनाएं (1) बोध (2) इलाज (3)यत्न (4)ध्वनि

दिए गए शब्दों में उपसर्ग जोड़कर नए शब्द इस प्रकार होंगे…

(1) बोध

आत्म + बोध : आत्मबोध
सु + बोध : सुबोध
+ बोध : अबोध

(2) इलाज

ला + इलाज : लाइलाज

(3) यत्न

प्र + यत्न : प्रयत्न
सु + यत्न : सुयत्न

(4) ध्वनि

प्रति + ध्वनि : प्रतिध्वनि

 

उपसर्ग क्या हैं?

उपसर्ग किसी शब्द के आगे लगने वाले शब्दांश होते है। उपसर्ग किसी शब्द के लिए विशेषण का कार्य करते हैं। यहाँ पर इतना अंतर है कि विशेषण शब्दों अपना स्वतंत्र अर्थ और अस्तित्व होता है, जबकि उपसर्ग रूपी विशेषणों का अपना स्वतंत्र अस्तित्व नही होता। ये केवल उपसर्ग के रूप में किसी शब्द से पहले प्रयुक्त किए जाते हैं।


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दिए गए शब्दों में उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाइए। (क) नाम (ख) देश (ग) पका (घ) हत्था (ङ) गिनत (च) कूल (छ) मरण (ज) दृष्टि

दिए गए उपसर्ग से दो-दो शब्द बनाइए- (क) पुनर् (ख) हर (ग) सम् (घ) कु (च) अ (छ) बिन (ज) प (ङ) स्व

तताँरा-वामीरो की कथा : लीलाधर मंडलोई (कक्षा-10 पाठ-10 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

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NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

तताँरा-वामीरो की कथा : लीलाधर मंडलोई (कक्षा-10 पाठ-10 हिंदी स्पर्श 2)

TATANRA-VAMIRO KI KATHA (Class-10 Chapter-10 Hindi Sparsh 2)


तताँरा-वामीरो की कथा : लीलाधर मंडलोई

पाठ के बारे में…

प्रस्तुत पाठ ‘तताँरा वामीरो की कथा’ में लेखक लीलाधर मंडलोई ने एक प्रेमी युगल की लोककथा का वर्णन किया है। हर क्षेत्र के साथ कोई ना कोई लोक कथाएं जुड़ी होती हैं। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में भी तरह-तरह के कहानियां किस्से मशहूर हैं।

लेखक लीलाधर मंडलोई ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह के एक छोटे से द्वीप पर केंद्रित होकर यह कथा लिखी है। यह कथा एक प्रेमी युगल तताँरा और वामीरो की कथा है, जिसमें उनके बीच पनपे प्रेम और गाँव की परंपराओं के कारण उनके विचारों का वर्णन किया गया है।

लेखक ने इस पाठ के माध्यम से यह संदेश दिया है कि प्रेम सब को जोड़ता है और घृणा सबको तोड़ती है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह के गाँव में एक परंपरा थी जिसके अंतर्गत अलग-अलग गाँव के युवक युवती आपस में विवाह नहीं कर सकते थे ।

तताँरा और वामीरो अलग-अलग गाँव के युवक-युवती थे। इस कारण दोनों में प्रेम होने के बावजूद दोनों का विवाह नहीं हो सका। इसलिए तताँरा ने अपने प्राण त्याग दिए तथा वामीरो भी उसके विरह में विक्षिप्त हो गई। बाद में गाँव वालों ने इस परंपरा को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया।

लेखक के बारे में…

लीलाधर मंडलोई का जन्म छिंदवाड़ा जिले के गाँव गुढ़ी में सन 1954 को हुआ था। वह मूल रूप से कवि हैं और उन्होंने छत्तीसगढ़ अंचल की गोली में कई मीठी कविताएं लिखी हैं, जो वहां से जनजीवन का सजीव चित्रण करती हैं। इसके अलावा उन्होंने कुछ कहानियां लिखी हैं।

अंडमान निकोबार द्वीप समूह की जनजातियों पर लिखा उनका यह गद्य एक अलग ही शास्त्रीय अध्ययन को प्रस्तुत करता है। उनकी प्रमुख कृतियों में घर-घर घूमा,  मगर एक आवाज, देखा अनदेखा और काला पानी आदि के नाम प्रमुख हैं।



हल प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए।

प्रश्न 1 : तताँरा-वामीरो कहाँ की कथा है?

उत्तर : ‘तताँरा-वामीरो की कथा’ अंडमान निकोबार द्वीप समूह की लोककथा है। इस कथा में एक युवक तताँरा और युवती वामीरो की प्रेम कथा का वर्णन किया गया है, जो दोनों अलग-अलग गाँव के निवासी थे। तताँरा पासा गाँव का निवासी था जबकि वामीरो लापती गाँव की रहने वाली थी।

प्रश्न 2 : वामीरो अपना गाना क्यों भूल गई?

उत्तर : वामीरो समुद्र तट पर बैठी हुई अपनी ही धुन में मधुर गाना गा रही थी। अचानक ऊँची लहर आई और उसको भिगो दिया, इस कारण चौंककर वामीरो अपना गाना गाना भूल गई।

प्रश्न 3 : तताँरा ने वामीरो से क्या याचना की?

उत्तर : तताँरा वामीरो का बेहद मधुर गाना सुनकर मंत्रमुग्ध हो गया था। उसने वामीरो से याचना थी कि वह अगले दिन भी इसी जगह पर आए और वह उससे मिलने के लिए आएगा। उसने वामीरो से रोज उसी जगह पर आने की याचना की और कहा कि वह अपना अधूरा गाना पूरा करके ही जाए।

प्रश्न 4 : तताँरा और वामीरो के गाँव की क्या रीति थी?

उत्तर : तताँरा और वामीरो के गाँव की यह रीति थी कि दो अलग-अलग गाँव के युवक-युवती आपस में विवाह नहीं कर सकते थे। अर्थात किसी एक गाँव का युवक या उस गाँव की युवती किसी दूसरे गाँव के युवक या युवती से विवाह नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 5 : क्रोध में तताँरा ने क्या किया?

उत्तर : क्रोध में तताँरा ने अपने कमर में लटकी तलवार को निकाल लिया और वह तलवार अपनी पूरी शक्ति से जमीन के अंदर गाड़ दी और गुस्से में तलवार को बाहर खींचने लगा। उसके ऐसा करने से पूरी जमीन दो टुकड़ों में बंट गई और वह द्वीप दो टुकड़ों में विभाजित हो गया।


लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1: तताँरा की तलवार के बारे में लोगों का क्या मत था?

उत्तर : तताँरा की तलवार के विषय में लोगों का यह मत था कि तताँरा की तलवार एक दैवीय गुणों से युक्त तलवार थी। लकड़ी की बनी उस तलवार का तताँरा सामान्य स्थिति में प्रयोग नहीं करता था और ना ही कभी अपने से अलग होने देता था। वह किसी विशेष परिस्थिति में ही उस तलवार का प्रयोग करता था। लोगों का मानना था कि वह तलवार अद्भुत एवं विलक्षण रहस्यों से युक्त थी और वह कोई साधारण नहीं बल्कि असाधारण तलवार थी।

प्रश्न 2 : वामीरो ने तताँरा को बेरुखी से क्या जवाब दिया?

उत्तर : वामीरो ने तताँरा को बेरुखी से यह जवाब दिया कि वह उससे सवाल क्यों पूछ रहा है और वह उसे इस तरह क्यों देख रहा है? वह अपने गाँव के पुरुष अलावा दूसरे किसी अन्य गाँव के पुरुषों से ना ही बात करती है और ना ही उसके किसी सवाल का जवाब देती है। इसलिए वह उसके अजीब से सवालों का जवाब क्यों दे?

प्रश्न 3 : तताँरा-वामीरो की त्यागमयी मृत्यु से निकोबार में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर : तताँरा और वामीरो की त्यागमयी मृत्यु से निकोबार द्वीप के गाँवों में यह परिवर्तन आया कि सभी गाँवों में आपस में वैवाहिक संबंध स्थापित होने लगे। इससे पहले निकोबार द्वीप के सभी गाँवों में यह प्रथा प्रचलित थी कि एक गाँव का युवक या युवती दूसरे गाँव के युवक या युवती से विवाह संबंध स्थापित नहीं कर सकता था। अर्थात गाँवों के बीच आपसी वैवाहिक संबंध की परंपरा नही थी।

युवक या युवती का विवाह उसी गाँव के युवक या युवती से होता था। तताँरा और वामीरो की मृत्यु के बाद निकोबार द्वीप के सभी गाँवों के लोगों ने इस प्रथा को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। अब सभी गाँवों में आपस में वैवाहिक संबंध स्थापित होने लगे थे।

प्रश्न 4 : निकोबार के लोग तताँरा को क्यों पसंद करते थे?

उत्तर : निकोबार यह लोग तताँरा को इसलिए पसंद करते थे क्योंकि तताँरा का स्वभाव बेहद विनम्र, मधुर एवं मिलनसार था। वह स्वभाव से परोपकारी और समय पड़ने पर सबकी मदद करने वाला युवक था। वह सदैव दूसरों की सहायता करने के लिए तत्पर रहता था। किसी भी मुसीबत में वह तुरंत सहायता करने के लिए आ जाता था। इसके अलावा वह नेक, ईमानदार, विनम्र तथा साहसी युवक था और उसके स्वभाव में आत्मीयता थी। उसके इन्हीं गुणों के कारण निकोबार के लोग तताँरा को पसंद करते थे ।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1 : निकोबार द्वीप समूह के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का क्या विश्वास है?

उत्तर : निकोबार द्वीप समूह के विभक्त होने के बारे में निकोबार के लोगों यह मत था। यह विश्वास था कि पहले अंडमान और निकोबार दोनों द्वीप समूह एक ही है और यह बाद में अलग हुए। इसके संबंध में निकोबार दिनों में एक दंतकथा प्रचलित थी। उनके विश्वास के अनुसार पहले एक अंडमान निकोबार द्वीप समूह में तताँरा और वामीरो दोनों युवक-युवती एक दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों युवक-युवती अलग-अलग गाँव के निवासी थे।

उस समय गाँव में यह परंपरा थी कि अलग-अलग गाँव के युवक-युवती आपस में विवाह नहीं कर सकते थे। इसी कारण दोनों का विवाह नहीं हो पाया। एक दिन वामीरो की माँ से तताँरा का विवाद होने पर तताँरा को इतना गुस्सा आया कि उसने अपनी दैवीय तलवार को पूरी ताकत से जमीन में गाड़ दिया और उसे खींचता हुआ दूर तक चलता चला गया। इस कारण वहाँ से जमीन दो टुकड़ों में बंट गई और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह दोनों अलग-अलग बन गए। दोनो प्रेमी युगल ने अपना जीवन भी बलिदान कर दिया।

इसके बाद निकोबार द्वीप समूह के गाँव के सभी लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने उस पुरानी परंपरा को ही खत्म कर दिया, जिसके अंतर्गत एक ही अलग-अलग गाँव के युवक युवती आपस में जगह नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 2 : तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद कहाँ गया? वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर : तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद समुद्र के किनारे टहलने चला गया। जब अथक परिश्रम करने के बाद तताँरा समुद्र के तट पर गया तो संध्या का समय हो रहा था। दूर क्षितिज पर सूरज डूबता हुआ दिखाई दे रहा था। पक्षियों का झुंड अपने-अपने घोंसलों की ओर जा रहा था। समुद्र की ओर से आ रही ठंडी ठंडी हवा मन को बेहद शांति प्रदान कर रही थी। सूरज की लाली से समुद्र के पानी पर रंग-बिरंगी आकृतियां बन रही थीं, जो अद्भुत सौंदर्य उत्पन्न कर रही थी। समुद्र की लहरों का पानी आवाज सुनकर ऐसा लग रहा था, जैसे कोई गीत गा रहा हो। समुद्र के किनारे का वह दृश्य बेहद ही मनमोहक था।

प्रश्न 3 : वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर : वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में अनोखा परिवर्तन आ गया था। वामीरो से मिलने के बाद तताँरा बहुत बेचैन हो गया और वह अपनी सुध-बुध खो बैठा था। उसके मन में एक अजीब सी हलचल हो गई थी। जिस शाम को वह वामीरों से मिला उस शाम के बाद वह पूरी रात उसने बेचैनी में काटी। उसका ह्रदय व्यथित था और उसे रात काटना भारी लग रहा था। उसे रात ही नहीं पूरा दिन भी ऐसा ही बेचैन भरा लगा ।

जैसे-तैसे अगले दिन की शाम आई और वह समुद्र तट पर जा पहुंचा, जहाँ उसे वामीरो मिली थी। उसे वामीरो के आने की उम्मीद थी। इसलिए इसी बेचैनी में वामीरो के आने की प्रतीक्षा करता रहा। प्रतीक्षा का एक-एक पल उसे बहुत भारी लग रहा था। अचानक पेड़ों के पीछे से वामीरो को आते देखकर उसके मन में खुशी का ठिकाना नहीं रहा और वह एकटक वामीरो को निहारने लगा।

प्रश्न 4 : प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति-प्रदर्शन के लिए किस प्रकार के आयोजन किए जाते थे?

उत्तर : प्राचीन काल में मनोरंजन एवं शक्ति प्रदर्शन के लिए अनेक तरह के आयोजन किए जाते थे। इस तरह के मनोरंजन एवं शक्ति-प्रदर्शन के कार्यक्रमों के लिए प्राचीन काल में जगह-जगह मेलों का आयोजन किया जाता था, जिनमें विभिन्न तरह के जानवरों, मुख्यता सांडों की लड़ाई करवाई जाती थी। इसके अलावा पहलवानों की कुश्तियों के दंगल भी आयोजित किए जाते थे।

तलवारबाजी जैसी प्रतिस्पर्धा का भी आयोजन किया जाता था। जिससे लोगों का मनोरंजन होता था। यह कार्यक्रम मनोरंजक होने के साथ-साथ शक्ति प्रदर्शन के कार्यक्रम भी होते थे। इन मेलों में तीतर बटेर की लड़ाई पतंगबाजी आदि का आयोजन भी किया जाता था तथा तरह-तरह के नाच गाने के प्रोग्राम भी आयोजित किए जाते थे। इस तरह के मेलों में आसपास के गाँव के लोग इकट्ठे होते थे तथा नृत्य-संगीत-भोज आदि का प्रबंध होता था।

प्रश्न 5 : रूढ़ियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। क्यों? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : रूढ़ियां जब बंधन बन बोझ बनने लगे, तब उनका टूट जाना ही अच्छा होता है, क्योंकि रूढ़ियां हर समय प्रासंगिक नहीं होती हैं। रूढ़ियां मान्यताओं के रूप में किसी विशेष समय में बनाई जाती हैं। लेकिन आवश्यक नहीं कि रूढ़ियां हर समय प्रासंगित ही रहें। समय परिवर्तनशील है और समय के साथ-साथ विचार एवं जीवन शैली तथा लोगों की सोच भी बदलने लगती है। ऐसी स्थिति में पुरानी परंपराओं से चिपके रहने से वह परंपराएं रुढ़ियाों के रूप में बंधन बनकर बोझ बन जाती हैं।

इसी तरह की रूढ़ि के कारण ही तताँरा एवं वामीरो का आपस में विवाह नहीं हो सका और उन्हें अपने जीवन का बलिदान करना पड़ा। यदि निकोबार द्वीप समूह के सभी गाँव अपनी पुरानी रूढ़ि से चिपके नहीं होते तो तताँरा और वामीरो का विवाह हो गया होता। इसी कारण रूढ़ि जब बंधन बन बोझ बनने लगे तो उसे त्याग देना ही अच्छा होता है।


(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1 : जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसने शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा।

आशय :  इन पंक्तियों का आशय यह है कि जब तताँरा और वामीरो आपस में प्रेम करते थे तो दोनों के अलग-अलग गाँव का होने के कारण इन दोनों का मिलन संभव नहीं था। एक दिन मेले में वामीरो की माँ द्वारा तताँरा का अपमान करने से तताँरा बेहद क्रोधित हो गया। उसने उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।

तताँरा वामीरो की माँ को कुछ बोल नहीं सकता था। अपने क्रोध को शांत करने के लिए जब उसे कुछ नहीं सूझा तो उसने अपनी कमर में बंधी तलवार निकाल ली और उसे पूरी ताकत से जमीन में गाड़ दिया। फिर गुस्से में उस तलवार को जमीन से खींचने लगा और खींचता हुआ दूर तक चला गया । इस तरह वे जमीन बीच में से चिर गई और दो टुकड़ों में बंट गई ।

तभी से निकोबार वासियों की यही मान्यता है कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह इसी कारण अलग-अलग हो गए थे। पहले दोनों द्वीप एक ही द्वीप थे।

प्रश्न 2 : बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी।

आशय : इस पंक्ति का आशय यह है कि जब तताँरा वामीरो से पहली बार समुद्र तट पर मिला था तो वामीरो को पहली नजर में देखते ही उसे उसे बेहद प्रेम हो गया था। उसके बाद उसके मन में एक हलचल सी मच गई थी। उसने वामीरो से अगले दिन आने के लिए कहा था। इसीलिए उसने रात और दिन किसी तरह बेचैनी में गुजारा और अगली शाम पुनः उसी समुद्र तट पर पहुंच गया, जहाँ उसे वामीरो मिली थी। उसका मन एक उधेड़बुन में था। कभी उसे लगता वामीरो नहीं आएगी और कभी उसे लगता वामीरो अवश्य आएगी।

इसी उधेड़बुन में बेहद तीव्र उत्कंठा से वामीरो की प्रतीक्षा कर रहा था। उसे लग रहा था कि यदि वामीरों नही आई तो समुद्र की लहरों की तरह उसे अपनी आशायें भी डूबती रही थीं। उसके मन में एक आशा थी कि वामीरो उससे मिलने अवश्य आएगी और ऐसा हुआ भी जब वामीरो दूर पेड़ों के झुंड के बीच में आती हुई दिखाई दी।


भाषा अध्ययन

प्रश्न 1 : निम्नलिखित वाक्यों के सामने दिए कोष्ठक में (✓) का चिह्न लगाकर बताएँ कि यह वाक्य किस प्रकार का है-
  1. निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
  2. तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया? (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
  3. वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
  4. क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम ? (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
  5. वाह! कितना सुंदर नाम है। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
  6. मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूंगा। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

उत्तर :

  1. निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। — विधानवाचक
  2. तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया? — प्रश्नवाचक
  3. वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। — विधानवाचक
  4. क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम ? — प्रश्नवाचक
  5. वाह! कितना सुंदर नाम है। — विस्मयादिबोधक
  6. मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूंगा। — विधानवाचक
प्रश्न 2 : निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(क) सुध-बुध खोना
(ख) बाट जोहना
(ग) खुशी का ठिकाना न रहना
(घ) आग बबूला होना
(ङ) आवाज़ उठाना

उत्तर : दिए गए मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग इस प्रकार होगा…

(क) सुध-बुध खोना 
अर्थ : अपनी हालत का ध्यान नही रहना, होश खो देना
वाक्य प्रयोग : जब रोहन ने अपनी प्रेमिका को अचानक सड़क पर देखा, तो वह सुध-बुध खो बैठा और उसे अपने आसपास की दुनिया का कोई ध्यान नहीं रहा।

(ख) बाट जोहना
अर्थ : प्रतीक्षा करना
वाक्य प्रयोग : माँ रात भर अपने बेटे की बाट जोहती रही, जो शहर से घर लौटने वाला था।

(ग) खुशी का ठिकाना न रहना
अर्थ : बहुत प्रसन्न होना।
वाक्य प्रयोग : जब अनु को पता चला कि उसे अपनी पसंदीदा कंपनी में नौकरी मिल गई है, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

(घ) आग बबूला होना
अर्थ : बहुत अधिक क्रोध करना
वाक्य प्रयोग : जब मैनेजर ने कर्मचारियों की तनख्वाह में कटौती की घोषणा की, तो सभी कर्मचारी आग बबूला हो गए।

(ङ) आवाज़ उठाना
अर्थ : विरोध करना
वाक्य प्रयोग : छात्रों ने विश्वविद्यालय में होने वाले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई और एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन का आयोजन किया।

प्रश्न 3 : नीचे दिए गए शब्दों में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए-
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा Q3

उत्तर : दिए गए शब्दों में मूल शब्द और प्रत्यय इस प्रकार होंगे…
चर्चित : चर्चा + इत
साहसिक : साहस + इक
छटपटाहट : छटपट + आहट
शब्दहीन : शब्द + हीन

प्रश्न 4 : नीचे दिए गए शब्दों में उचित उपसर्ग लगाकर शब्द बनाइए
……….. + आकर्षक = ……….
………… + ज्ञात = ………
………… + कोमल = …………
………. + होश = ………..
………… + घटना = ………….

उत्तर : दिए गए शब्दों में उचित उपसर्ग लगाकर शब्द इस प्रकार होंगे…
अन + आकर्षक = अनाकर्षक
+ ज्ञात = अज्ञात
सु + कोमल = सुकोमल
बे + होश = बेहोश
दुर + घटना = दुर्घटना

प्रश्न 5 : निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए
  1. जीवन में पहली बार मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ। (मिश्र वाक्य)
  2. फिर तेज़ कदमों से चलती हुई तताँरा के सामने आकर ठिठक गई। (संयुक्त वाक्य)
  3. वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ दौड़ी। (सरल वाक्य)
  4. तताँरा को देखकर यह फूटकर रोने लगी। (संयुक्त वाक्य)
  5. रीति के अनुसार दोनों को एक ही गाँव का होना आवश्यक था। (मिश्र वाक्य)

उत्तर : दिए गए वाक्यों का निर्देशानुसार परिवर्तन इस प्रकार होगा…

  1. जीवन में पहली बार मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ।
    मिश्र वाक्य : जीवन में पहली बार है कि मैं विचलित हुआ हूँ।
  2. फिर तेज़ कदमों से चलती हुई तताँरा के सामने आकर ठिठक गई।
    संयुक्त वाक्य : फिर तेज कदमों से चलती हुई तताँरा के पास आई और ठिठक गई।
  3. वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ दौड़ी।
    सरल वाक्य : वामीरो कुछ सचेत होकर घर की ओर दौड़ी।
  4. तताँरा को देखकर यह फूटकर रोने लगी।
    संयुक्त वाक्य : उसने तताँरा को देखा और फूट-फूटकर रोने लगी।
  5. रीति के अनुसार दोनों को एक ही गाँव का होना आवश्यक था।
    मिश्र वाक्य : रीति के अनुसार यह आवश्यक था कि दोनों एक ही गाँव के हों।
प्रश्न 6. नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए तथा ‘और’ शब्द के विभिन्न प्रयोगों पर ध्यान दीजिए-
  1. पास में सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। (दो पदों को जोड़ना)
  2. वह कुछ और सोचने लगी। (‘अन्य’ के अर्थ में)
  3. एक आकृति कुछ साफ़ हुई… कुछ और … कुछ और… (क्रमशः धीरे-धीरे के अर्थ में)
  4. अचानक वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ़ दौड़ गई। (दो उपवाक्यों को जोड़ने के अर्थ में)
  5. वामीरो का दुख उसे और गहरा कर रहा था। (‘अधिकता’ के अर्थ में)
  6. उसने थोड़ा और करीब जाकर पहचानने की चेष्टा की। (‘निकटता’ के अर्थ में)

उत्तर : यह एक अवलोकर कार्य है, इसे छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 7. नीचे दिए गए शब्दों के विलोम शब्द लिखिए-
भय, मधुर, सभ्य, मूक, तरल, उपस्थिति, सुखद।

उत्तर : दिए गए शब्दों के विलोम शब्द इस प्रकार होंगे..

भय – निर्भय
मधुर – कटु
सभ्य – असभ्य 
मूक – वाचाल
तरल – ठोस
उपस्थित – अनुपस्थित
सुखद – दुखद

प्रश्न 8 : नीचे दिए गए शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-
समुद्र, आँख, दिन, अँधेरा, मुक्त।

उत्तर : दिए गए शब्दों के दो-दो पर्यायवाची
समुद्र – रत्नाकर, सागर
आँख – नयन, लोचन
दिन – दिवस, वार
अँधेरा – तिमिर, अंधकार
मुक्त – आजाद, स्वतंत्र

प्रश्न 9 : नीचे दिए गए शब्दों को वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
किंकर्तव्यविमूढ़, विह्वल, भयाकुल, याचक, आकंठ।

उत्तर : दिए गए शब्दों के वाक्य प्रयोग इस प्रकार होंगे..

किंकर्तव्यविमूढ़ : कैकेयी द्वारा श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास दिए जाने के वचन की मांग पर राजा दशरथ किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए।
विह्वल : जब वह सैनिक युद्ध के मैदान से सकुशल वापस लौटकर घर आया तो उसकी माँ भाव विह्वल हो गई।
भयाकुल : जैसे ही भूकंप के कारण इमारत हिलने लगी तो सभी भयाकुल होकर भागने लगे।
याचक : सुदामा कृष्ण से बोले कि मैं तो याचक बनकर आपके द्वार पर आया हूँ।
आकंठ : हमारे देश की भ्रष्टचार व्यवस्था का आलम  ये है कि सभी अधिकारी भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं।

प्रश्न 10. ‘किसी तरह आँचरहित एक ठंडा और ऊबाऊ दिन गुजरने लगा’ वाक्य में दिन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? आप दिन के लिए कोई तीन विशेषण और सुझाइए।

उत्तर : दिने के तीन विशेषण इस प्रकार होंगे..
लंबा दिन
अच्छा दिन
बुरा दिन

प्रश्न 11 : इस पाठ में ‘देखना’ क्रिया के कई रूप आए हैं-‘देखना’ के इन विभिन्न शब्द-प्रयोगों में क्या अंतर है?

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा Q11
इसी प्रकार ‘बोलना’ क्रिया के विभिन्न शब्द-प्रयोग बताइए।
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा Q11.1
उत्तर :
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा Q11.2

प्रश्न 12 : वाक्यों के रेखांकित पदबंधों का प्रकार बताइए-
  1. उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था।
  2. तताँरा को मानो कुछ होश आया
  3. वह भागा-भागा वहाँ पहुँच जाता।
  4. तताँरा की तलवार एक विलक्षण रहस्य थी।
  5. उसकी व्याकुल आँखें वामीरो को ढूंढने में व्यस्त थीं।

उत्तर : वाक्यों के रेखांकित पदबंधों के प्रकार इस तरह होंगे…

  1. उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था।
    पदबंध भेद : विशेषण पदबंध
  2. तताँरा को मानो कुछ होश आया
    पदबंध भेद : क्रिया पदबंध
  3. वह भागा-भागा वहाँ पहुँच जाता।
    पदबंध भेद : क्रिया विशेषण पदबंध
  4. तताँरा की तलवार एक विलक्षण रहस्य थी।
    पदबंध भेद : विशेषण पदबंध
  5. उसकी व्याकुल आँखें वामीरो को ढूंढने में व्यस्त थीं।
    पदबंध भेद : विशेषण पदबंध

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 : पुस्तकालय में उपलब्ध विभिन्न प्रदेशों की लोककथाओं का अध्ययन कीजिए।

उत्तर : विद्यार्थी अपने क्षेत्र के निकटतम पुस्तकालय जायें और अलग-अलग प्रदेशों की लोककथाओं से संबंधित पुस्तकों को ढूंढें और उन्हें अपने पर लाकर पढ़ें।

प्रश्न 2 : भारत के नक्शे में अंडमान निकोबार द्वीप समूह की पहचान कीजिए और उसकी भौगोलिक स्थिति के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर : अंडमान निकोबार द्वीप समूह भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर के बीच स्थित हैं। यह द्वीप समूह दो प्रमुख भागों में बंटा है: अंडमान द्वीप और निकोबार द्वीप।

भौगोलिक स्थिति
1. अक्षांश और देशांतर : ये द्वीप 6° से 14° उत्तरी अक्षांश और 92° से 94° पूर्वी देशांतर के बीच स्थित हैं।
2. कुल क्षेत्रफल : लगभग 8,249 वर्ग किलोमीटर।
3. द्वीपों की संख्या : कुल 572 द्वीप, जिनमें से कुछ ही आबाद हैं।
4. मुख्य शहर : पोर्ट ब्लेयर, जो कि अंडमान का मुख्यालय है।
5. प्राकृतिक विशेषताएँ : घने वन, समृद्ध जैव विविधता, प्रवाल भित्तियाँ, और समुद्री जीवन के लिए प्रसिद्ध।

ये द्वीप समूह प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरणीय महत्व के कारण एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल भी हैं।

प्रश्न 3 : अंदमान निकोबार द्वीप समूह की प्रमुख जनजातियों की विशेषताओं का अध्ययन पुस्तकालय की सहायता से कीजिए।

उत्तर : विद्यार्थी इस विषय से संबंधित पुस्तकें पुस्तकालय से लाएं उन्हें पढ़ें।

प्रश्न 4 : दिसंबर 2004 में आए सुनामी का इस द्वीप समूह पर क्या प्रभाव पड़ा? जानकारी एकत्रित कीजिए।

उत्तर : दिसंबर 2004 में आए सुनामी का अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। इस प्राकृतिक आपदा ने द्वीप समूह के बुनियादी ढांचे और जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित किया।  विशाल लहरों ने तटीय क्षेत्रों को तहस-नहस कर दिया, जिससे हजारों लोग बेघर हो गए। लगभग 3500 लोग मारे गए और कई लोग लापता हो गए। कृषि, मछली पालन और पर्यटन उद्योग को भारी नुकसान पहुंचा, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। द्वीपों की भू-आकृति बदल गई; कुछ छोटे द्वीप जलमग्न हो गए और तटरेखा में परिवर्तन आया। सड़कों, पुलों और भवनों का व्यापक रूप से क्षरण हुआ, जिससे पुनर्निर्माण की आवश्यकता पड़ी। इस आपदा ने द्वीप समूह की जीवनशैली और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला।


परियोजना कार्य

प्रश्न 1 : अपने घर-परिवार के बुजुर्ग सदस्यों से कुछ लोककथाओं को सुनिए। उन कथाओं को अपने शब्दों में कक्षा में सुनाइए।

उत्तर : विद्यार्थी अपने दादा-दादी, नाना-नानी से अपने क्षेत्र की लोककथाओं को सुनें। इन लोककथाओं को अच्छे से समझ लें और फिर अपने अंदाज में अपनी कक्षा में सुनाएं।


तताँरा-वामीरो की कथा : लीलाधर मंडलोई (कक्षा-10, पाठ-10 हिंदी, स्पर्श भाग 2) (NCERT Solutions)


कक्षा-10 हिंदी स्पर्श 2 पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ

साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

कर चले हम फिदा : कैफ़ी आज़मी (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श भाग-2) (हल प्रश्नोत्तर)

आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

बड़े भाई साहब : प्रेमचंद (कक्षा-10 पाठ-8 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

डायरी का एक पन्ना : सीताराम सेकसरिया (कक्षा-10 पाठ-9 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

‘मन्नू भंडारी’ द्वारा लिखित ‘दो कलाकार’ कहानी के दोनों पात्रों का परिचय दीजिए। आपका प्रिय कलाकार कौन और क्यों है? इस पर विचार व्यक्त कीजिए।

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‘दो कलाकार’ कहानी हिंदी की सुप्रसिद्ध लेखिका ‘मन्नू भंडारी’ द्वारा लिखी एक सामाजिक कहानी है, जो दो सहेलियों अरुणा एवं चित्रा पर केंद्रित है। अरुणा और चित्रा दोनों इस कहानी की मुख्य पात्र हैं। वह एक हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करती हैं और दोनों में गाढ़ी मित्रता है, हालांकि दोनों के स्वभाव में भिन्नता है।

अरुणा को समाज सेवा में अनेक रुचि है, जबकि चित्र को कला में अधिक रुचि है और वह एक सफल चित्रकार बनना चाहती है। अरुणा गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती है और समाज सेवा के कार्य करती जबकि चित्रा अपनी चित्रकला प्रतिभा को निखारने में लगी रहती है। दोनों के स्वभाव भिन्नता होने के बावजूद तो दोनों में गहरी मित्रता है और आसपास के लोग तक उनकी मित्रता से ईर्ष्या करते हैं।

अरुणा

अरुणा का स्वभाव व्यवहारिकता पर केंद्रित है। वह जीवन की व्यवहारिकता को समझती है। इसलिए वह अपनी सहेली चित्रा की तरह बेजान चित्रों को कागज पर उकेरने की जगह सजीव चित्रों को संवारती है। ये सजीव चित्र वे असहाय बच्चे हैं, जो अपनी माँ के मरने पर अनाथ हो चुके हैं। वह मानवता को अधिक प्राथमिकता देती है, और वास्तविक समाज सेवा के कार्य करना चाहती है। इसीलिए वह भिखारिन के मर जाने पर उसके अनाथ बच्चों को गोद ले लेती है और उनको पालती पोसती है।

चित्रा

चित्र का स्वभाव अरुणा के विपरीत है। वह केवल अपने यश और प्रसिद्ध के लिए काम करती है। यद्यपि वह कलाकार है लेकिन उसमें व्यवहारिकता नहीं है। वह केवल संवेदनशील घटनाओं पर चित्र बनाने में यकीन करती है लेकिन उसके अंदर वास्तविक संवेदनाएं नहीं है। यदि उसके अंदर वास्तविक संवेदनाएं होती तो वह भिखारिन के मर जाने पर भिखारिन के शव के पास बैठे उसके रोते-बिलखते बच्चों वाले दृश्य का स्केच वहीं बैठकर नहीं बनाती बल्कि उन बच्चों की मदद करने का प्रयास करती। वह है एक संवेदनहीन कलाकार है। उसकी प्रतिभा केवल बेजान रेखाचित्रों खींचने तक ही सीमित है।

इस तरह इस कहानी के दो मुख्य पत्र दोनों कलाकार अलग-अलग स्वभाव होने के बावजूद भी एक दूसरे की पक्की सहेली है।

अंत में…

यदि सच्चे कलाकार की बात की जाए तो अरुणा सच्ची कलाकार है क्योंकि उसने कागज बेजान चित्र नहीं बनाए बल्कि सजीव चित्र बनाए।

मेरे प्रिय कलाकार की बात की जाए तो मेरी प्रिय कलाकार भारत की प्रसिद्ध कालजयी दिवंगत पार्श्वगायिका लता मंगेशकर हैं, क्योंकि उनके गाने मेरे मन को छूने लेते हैं। उनकी आवाज में अनोखा जादू है। भारत के इतिहास में उनके जैसी गायिका नहीं हुई है। उनके हर गाने को सुनकर मुझे असीम शांति का अनुभव होता है। उनकी गाने सहाबहार हैं और हर पीढ़ी द्वारा उतनी ही तन्मयता से सुने जाते हैं। यद्यपि वह आज हमारे बीच शरीर के रूप में मौजूद नहीं हैं लेकिन अपने गानों और आवाज के रूप में वह हर पल हमरे बीच हैं।


Other question

यदि अरुणा उन दोनों बच्चों की देखभाल नहीं करती, तो उन बच्चों के साथ क्या-क्या हो सकता था?

विश्व-नागरिक होने की भावना ही व्यक्ति के मन में सच्ची मानवता का संचार करती है। इस पर अपने विचार लिखिए।

गिल्लू को किन से आपत्ति थी ? ​(गिल्लू – महादेवी वर्मा)

महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘गिल्लू’ पाठ में ऐसा स्पष्ट रूप से उल्लिखित नही है कि गिल्लू की किस से आपत्ति थी, लेकिन पाठ में दिए गए वर्णन के अनुसार गिल्लू को लेखिका के घर में पल रहे अन्य पालतू जानवरों जैसे कुत्ते-बिल्लियों से आपत्ति थी। इसका मुख्य कारण यह था कि लेखिका एक पशु प्रेमी ही और उनके घर में अनेक तरह के पशु पक्षी पालते थे जिनमें कुत्ते, बिल्ली, मोर, गाय आदि जैसे पशु थे।

गिल्लू एक नन्ही गिलहरी थी, उसको लेखिका के घर में पलने वाले अन्य पालतू पशुओं जैसे कुत्ते-बिल्ली आदि से भय रहता था। यह कुत्ते बिल्ली गिल्लू को कहीं नुकसान नहीं पहुंचा दे इसीलिए लेखिका गिल्लू को विशेष रूप से सुरक्षित अलग जगह पर रखती थी ताकि लेखिका के अन्य पालतू पशु गिल्लू को कोई नुकसान न पहुंच सकें।

इसके अलावा गिल्लू को कौओं से भी आपत्ति थी क्योंकि जब गिल्लू बेहद छोटा था तब कौओं ने ही गिल्लू को अपनी चोंचें मारकर घायल किया था। तब लेखिका ने हीं उन कौओं से गिल्लू के प्राणों की रक्षा की और गिल्लू को अपने घर में लाकर न केवल उसका उपचार लिया बल्कि उसे अपने घर में पाला भी।

‘गिल्लू’ रेखाचित्र लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित एक संस्मरणात्मक पाठ है,जिसमें लेखिका ने गिल्लू नामक एक छोटी से गिलहरी के बारे में वर्णन किया जो लेखिका के घर में पालतू थी।


Other questions

‘गिल्लू’ पाठ में लेखिका की मानवीय संवेदना अत्यंत प्रेरणादायक है । टिप्पणी लिखिए ।

लेखिका व गिल्लू के आत्मिक संबंधों पर प्रकाश डालिए।

गुड टच और बैड टच के बारे में बात करते हुए दो मित्रों के बीच हुए संवाद को लिखिए।

संवाद

गुड टच और बैट टच पर दो मित्रों के बीच संवाद

 

सुमन ⦂ अरे कोमल, कल स्कूल में गुड टच और बैड टच के बारे में जो सेशन हुआ था, उसके बारे में तुम क्या सोचती हो?

कोमल ⦂ वो बहुत जरूरी था सुमन। मुझे लगता है कि हर बच्चे को यह जानना चाहिए।

सुमन ⦂ तुम्हे क्या समझ आया। क्या तुम समझा सकती हो।

कोमल ⦂ गुड टच मतलब ऐसा स्पर्श जो हमें अच्छा महसूस कराए और जिसमें हमारी सहमति हो, जैसे माँ का गले लगाना या पिता का स्नेह करना। भाई बहन का गले लगाना।

सुमन ⦂ और बैड टच?

कोमल ⦂ बैड टच मतलब ऐसा स्पर्श जो हमें असहज लगे। जैसे कोई बिना हमारी अनुमति के हमें गलत तरीके से छूए। ऐसे स्पर्श से हमें बचना चाहिए और किसी बड़े को बताना चाहिए।

सुमन ⦂ हाँ, मुझे भी ऐसा ही लगता है। मैंने पहली बार सीखा कि हमें अपने शरीर के निजी अंगों को लेकर सतर्क रहना चाहिए।

कोमल ⦂ बिल्कुल सही। और यह भी कि अगर कोई हमें अजीब तरह से छूए तो उसे ‘नहीं’ कहना और किसी भरोसेमंद व्यक्ति को बताना बहुत जरूरी है।

सुमन ⦂ हाँ, और यह भी कि हमें दूसरों की निजता का भी सम्मान करना चाहिए।

कोमल ⦂ सही कहा। मुझे लगता है कि हमें अपने छोटे भाई-बहनों को भी यह सब समझाना चाहिए।

सुमन ⦂ अच्छा विचार है। साथ ही, हमें याद रखना चाहिए कि अगर कभी कुछ गलत हो, तो चुप नहीं रहना है।

कोमल ⦂ बिल्कुल! हमें अपने माता-पिता, शिक्षक या किसी विश्वसनीय वयस्क से बात करनी चाहिए।

सुमन ⦂ सही कहा कोमल। यह जानकारी हमारी सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

कोमल ⦂ हाँ सुमन, और इससे हम दूसरों की मदद भी कर सकते हैं।


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वर्षा ऋतु और ग्रीष्म ऋतु को मानव-रूप देकर उनके बीच कल्पित वार्तालाप को संवाद रूप में ​लिखिए।

‘कनक’ शब्द के अलग-अलग अर्थ बताकर वाक्य लिखिए।​

कनक के दो अलग-अलग अर्थ और उनके वाक्य प्रयोग इस प्रकार होंगे…

1. कनक : सोना

अर्थ : सोना – एक बहुमूल्य धातु
वाक्य-1 : रमेश ने कनक की बनी हुई अंगूठी अपनी पत्नी सुमन को उपहार में दी।
वाक्य-2 : रावण की लंका नगरी पूरी तरह कनक से बनी हुई थी।

2. कनक : गेहूँ

अर्थ : गेहूँ – एक अनाज
वाक्य-1 : किसान अपनी छोटे भाई से बोला कि इस वर्ष हमारे खेतों में कनक की फसल बहुत अच्छी हुई है।
वाक्य-2 : राजेश अपनी पत्नी से बोला कि शाम को कनक की मोटी रोटी और लहसुन की चटनी बना लेना।

3. कनक : धतूरा

अर्थ : धतूरा – एक मादक पदार्थ
वाक्य 1 : रामू शामू से बोला ये कनक का पौधा है, इसकी पत्तियां-जड़े खाने से आदमी पागल हो जाता है।
वाक्य 2 : हरीश के कुत्ते ने जब से जंगल में लगे कनक के पौधे की थोड़ी पत्तियां क्या खा लीं वह बौराया सा घूम रहा है।


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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की काव्य रचना ‘सरोज स्मृति’ एक शोकगीत है। स्पष्ट करें।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘सरोज स्मृति’ एक शोकगीत है, जो उनकी पुत्री सरोज की असामयिक मृत्यु के बाद लिखी गई थी। इस कविता में निराला ने अपने दुख, वेदना और पुत्री के प्रति गहरे स्नेह को व्यक्त किया है।  इस कविता में निराला की जो दुख और वेदना प्रकट होती है, उससे स्पष्ट होता है, ये कविता एक शोकगीत है..

अपने निजी दुख का वर्णन

‘सरोज स्मृति’ में निराला ने अपने निजी जीवन के सबसे दुखद क्षण का वर्णन किया है। अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु ने उन्हें गहरे शोक में डाल दिया था, और इस कविता में उस शोक की गहराई स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। कविता के माध्यम से वे अपनी पीड़ा और वियोग के भावों को अभिव्यक्त करते हैं।

अपनी पुत्री के प्रति स्नेह और ममता

कविता में निराला ने सरोज के प्रति अपनी ममता और स्नेह को दर्शाया है। उन्होंने सरोज की स्मृतियों को संजोते हुए उसके व्यक्तित्व, उसकी मासूमियत और उसकी अच्छाइयों का वर्णन किया है। इससे स्पष्ट होता है कि सरोज उनके लिए कितनी महत्वपूर्ण थी।

जीवन की नश्वरता का बोध

सरोज स्मृति में निराला ने जीवन की नश्वरता और मृत्यु की अनिवार्यता का भी उल्लेख किया है। उन्होंने इस बात पर विचार किया है कि कैसे एक पिता अपने संतान को खोने के दुख को सहन करता है और जीवन की क्षणभंगुरता को स्वीकारता है।

काव्यात्मक शोक

कविता की भाषा और शैली भी इसे शोकगीत के रूप में प्रस्तुत करती है। शब्दों का चयन, भावनाओं की गहराई और निराला की साहित्यिक प्रतिभा सभी मिलकर इस कविता को एक प्रभावी और मार्मिक शोकगीत बनाते हैं।

जैसे…

सरोज, तुम्हारे बिना सूना है जीवन,
हर पल, हर क्षण, अश्रु बहते रहते अनवरत।
तुम्हारी स्मृतियों में डूबा हूँ, तुमसे ही है हर रागिनी।

निष्कर्ष

इस प्रकार इस सभी बिंदुओं से स्पष्ट होता है कि ‘सरोज स्मृति’ कविता वास्तव में एक शोकगीत ही है, क्योंकि इस कविता के माध्यम महाकवि सू्र्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी पुत्री सरोज की असामयिक मृत्यु से अपने हृदय में उपजे गहरे दर्द को व्यक्त किया है, जो इसे एक सच्चा शोकगीत बनाता है। इस कविता में उनके व्यक्तिगत दुख, पुत्री के प्रति स्नेह, जीवन की नश्वरता का बोध, और काव्यात्मक शोक सभी मिलकर इसे एक मार्मिक और प्रभावशाली शोकगीत बनाते हैं।


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डायरी का एक पन्ना : सीताराम सेकसरिया

पाठ के बारे में…

पाठ के बारे में….

“डायरी का एक पन्ना” पाठ जोकि लेखक ‘सीताराम सेकसरिया’ द्वारा लिखा गया पाठ है, उसमें उन्होंने गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत में मनाए जाने वाले पहले स्वतंत्रता दिवस का वर्णन किया है। वह दिन 26 जनवरी 1931 का दिन था, जब  गुलाम भारत में पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। हालांकि भारत उस समय स्वतंत्र नहीं हो पाया था लेकिन आजादी की कामना करने वाले भारतीयों ने इस दिवस को स्वतंत्रता दिवस के प्रतीक दिवस में रूप के रूप में चुन कर इसको स्वतंत्रता दिवस के रुप में मनाया था। बाद में सन 1950 में यही दिन यानि 26 जनवरी का दिन भारत का गणतंत्र दिवस बना।

इस पाठ में लेखक ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में कोलकाता में निकलने वाले जुलूस का वर्णन किया है, जो 26 जनवरी 1931 को भारत का पहला स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए निकाला गया था। अंग्रेजों ने इस जुलूस का दमन करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। लेखक स्वयं उस जुलूस में शामिल था।

लेखक के बारे में…

सीताराम सेकसरिया जिनका जन्म सन 1892 में राजस्थान के नवलगढ़ जिले में हुआ था। वह व्यापार एवं व्यवसाय से जुड़े होने के बावजूद साहित्य कार्य भी करते रहे थे और भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उन्होंने अनेक साहित्य, सांस्कृतिक और नारी शिक्षण संस्थान की स्थापना की तथा उनका संचालन किया। वह महात्मा गांधी, रविंद्र नाथ ठाकुर तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निकट भी रहे थे। उन्होंने कुछ समय आजाद हिंद फौज में मंत्री के रूप में भी कार्य किया।

सन 1962 में उन्हें पद्मश्री सम्मान भी मिला था उन्होंने अनके कृतियों की रचना की इसमें मन की बात , स्मृति युग, बीता युग, नई याद और एक कार्यकर्ता की डायरी का नाम प्रमुख है।

उनका निधन 1962 में हुआ था।



हल प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए।

प्रश्न 1 : कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्वपूर्ण था?

उत्तर : 26 जनवरी 1931 का दिन कलकत्ता वासियों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि ठीक एक वर्ष पहले 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत में पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। उस समय कलकत्ता के वासी इस स्वतंत्र दिवस में अपना कुछ योगदान नहीं दे पाए थे। 26 जनवरी 1931 को इस दिन की पुनरावृत्ति थी, यानी पहली वर्षगांठ थी। इसलिए इस बार बंगाल के लोगों विशेषकर कलकत्ता के लोगों ने इस दिवस को मनाने के लिए जोर-शोर से तैयारियों की थीं। उन्होंने अपने मकानों तथा सार्वजनिक स्थानों को सजाया था और राष्ट्रीय झंडे लगाए थे। इसलिए कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन महत्वपूर्ण था।

प्रश्न 2 : सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था?

उत्तर : सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था। पूर्णोदास ने ही जुलूस का सारा प्रबंध अपने हाथ में ले लिया था। उन्होंने जुलूस में जगह-जगह झंडे आदि लगाने का बंदोबस्त किया था। लेकिन बाद में अंग्रेजों की पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया ।

प्रश्न 3 : विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर : विद्यार्थी संगठन मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर यह प्रतिक्रिया हुई कि जैसे ही अविनाश बाबू ने श्रद्धानंद पार्क में झंडा गाढ़ा तो पुलिस ने उन्हें तुरंत पकड़ लिया। पुलिस ने अविनाश बाबू के साथ आए अनेक लोगों के साथ मारपीट की और उन सभी को वहां से हटा दिया। अविनाश बाबू प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री थे और जुलूस वाले दिन वह श्रद्धानंद पार्क में झंडा गाड़ रहे थे, जब पुलिस ने उनको पकड़ लिया था।

प्रश्न 4 : लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे?

उत्तर : लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा लहरा कर इस बात का संकेत देना चाहते थे कि उन्होंने अपने देश की आजादी को पाने का मन में ठान लिया है। वह अपनी देशभक्ति सिद्ध करना चाहते थे और अंग्रेजों को यह बताना चाहते थे कि वह स्वयं को स्वतंत्र मान चुके हैं और अपने देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। वह अंग्रेजों को राष्ट्रीय डंडा फहराकर यह बताना चाहते थे कि वे अपने देश की स्वतंत्रता पाने के लिए मर मिटने को और कुछ भी करने को तैयार हैं।

प्रश्न 5 : पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों और मैदानों को क्यों घेर लिया था?

उत्तर : पुलिस ने बड़े-बड़े पार्को और मैदानों को इसलिए घेर लिया था क्योंकि 26 जनवरी 1931 के उस दिन कोलकाता की जनता स्वतंत्रता दिवस को मनाने के लिए आयोजन आदि करना चाहती थी। पुलिस उस समय यह नहीं चाहती थी कि स्वतंत्र दिवस का यह आयोजन हो और लोग मैदानों और पार्कों में इकट्ठा हो सकें। पुलिस लोगों को मैदानों में सभा करने से और राष्ट्रीय ध्वज फहराने से रोकना चाहती थी, इसीलिए पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों तथा मैदानों को घेर लिया था कि वहाँ पर लोगों की भीड़ जमा ना हो पाए और लोग स्वतंत्रता दिवस का आयोजन नहीं कर पाएं, ना ही वह राष्ट्रीय झंडा फहरा पाएं।



लिखित

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए।

प्रश्न 1 : 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गईं ?

उत्तर : 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए अनेक तरह की तैयारियां की गई थी। इस दिन कलकत्ता के लोगों ने अपने घरों को खूब सजाया था। सभी मकानों पर राष्ट्रीय झंडे फहराए गए थे। घरों के अलावा मुख्य-मुख्य सार्वजनिक स्थानों पर तथा शहर के कोने-कोने पर राष्ट्रीय ध्वज फहराए गए थे। मकानों को भव्य तरीके से सजाया गया था। पूरा कलकत्ता नगर ही सज-धज गया था और ऐसा लग रहा था कि उस दिन सचमुच में वास्तविक रूप से स्वतंत्रता मिल गई हो। इस तरह 26 जनवरी 1931 का दिन अमर बन गया।

प्रश्न 2 : ‘आज जो बात थी वह निराली थी’ − किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : आज जो बात थी वह निराली थी इसका इस बात से पता चल रहा था क्योंकि 26 जनवरी 1931 का यह दिन अपने आप में ही निराला था। 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत का पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। 26 जनवरी 1931 का दिन 1 साल पूरा होने का दिन था और यह आजादी की पहली वर्षगांठ की थी।

उस दिन की पुनरावृत्ति होने के कारण कलकत्ता वासियों में खूब उत्साह एवं जोश खरोश था। 1930 के वर्ष वह उतने जोश-खरोश से नहीं बना पाए थे, लेकिन अब 26 जनवरी 1931 का दिन उन्हें अपने भावनाओं उत्साह एवं उमंग को प्रदर्शित करने का अवसर दे रहा था। इसीलिए इस दिन को यादगार बनाना चाहते थे। अंग्रेजों ने भी कलकत्ता निवासियों के जुलूस आदि निकालने पर रोक लगाने तथा उनका दमन करने के लिए पूर्ण प्रबंध कर रखा था। अंग्रेजों के कड़े सुरक्षा प्रबंधन और विरोध के बावजूद भी हजारों की संख्या में लोग लाठी खाकर भी जुलूस में भाग लेते रहे थे।

सरकार द्वारा दमन के अनेकों प्रयास किए जाने के बावजूद आम जनता और कार्यकर्ता मिलजुलकर मॉन्यूमेंट के पास जमा होते जा रहे थे। क्या स्त्री, क्या पुरुष सभी ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। स्त्रियों ने पुरुषों की तरह ही आंदोलन में बढ़-चढ़कर अपना योगदान दिया। इस तरह ये दिन यादगार बन गया था। इन सब बातों से पता चल जाता कि आज जो बात है निराली थी।

इस दिन कलकत्ता के वासियों ने अपने देश-प्रेम, देश के प्रति निष्ठा तथा आजादी के संघर्ष और एकता का प्रदर्शन किया था।

प्रश्न 3 : पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?

उत्तर : पुलिस कमिश्नर नोटिस और काउंसिल के नोटिस में मुख्य अंतर यह था कि पुलिस कमिश्नर के नोटिस में यह बात उल्लेखित थी कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई भी सभा नहीं हो सकती। इसके बावजूद यदि लोग सभा आदि करेंगे और सभा में भाग लेते हुए पाए गए तो उनको दोषी मानता उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

जबकि काउंसिल के नोटिस में यह बात हुई लिखी थी कि मॉन्यूमेंट के ठीक नीचे 4:24 पर झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। काउंसिल के नोटिस में सारी जनता का आह्वान किया था कि वह अधिक से अधिक संख्या में मॉन्यूमेंट के नीचे इकट्ठी हो जाए। यानी काउंसिल का नोटिस पुलिस कमिश्नर के नोटिस के लिए एक तरह की खुली चुनौती का। दोनों नोटिस एक दूसरे के विरुद्ध थे।

प्रश्न 4 : धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?

उत्तर : धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस इसलिए टूट गया क्योंकि जुलूस सुभाष बाबू के नेतृत्व में पूरे जोश के साथ आगे बढ़ रहा था, लेकिन सुभाष बाबू को पुलिस ने पकड़ लिया और पुलिस उन्हें अपने साथ लेकर गाड़ी में बिठाकर लाल बाजार के लॉकअप में ले गई। इसके बाद धर्मतल्ले के मोड़ पर पुलिस ने जुलूस के लोगों पर लाठियां बरसानी शुरु कर दीं। जिससे अनेक लोग घायल हो गए और स्वयं को बचाने के चक्कर में जुलूस तितर-बितर को कर बिखर गया। हालाँकि कुछ महिलाओं ने धर्मतल्ले के मोड़ पर धरना भी दिया लेकिन पुलिस उन्हें भी पकड़कर लालबाजार के लॉकअप में ले गई। इस तरह धर्मतल्ले लेकर मोड़ पर जुलूस टूट गया।

प्रश्न 5 : डा. दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर रहे थे, उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फ़ोटो खींचने की क्या वजह हो सकती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : डॉक्टर स्वप्नदासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देखरेख तो कर ही रहे थे, उनके फोटो भी उतरवा रहे थे। डॉक्टर स्वप्न दास गुप्ता द्वारा जुलूस में घायल लोगों के फोटो खींचने की मुख्य वजह यह थी कि वह इन फोटो के द्वारा पूरे देश के लोगों को अंग्रेजों के जुल्मों को दिखाना चाहते थे।

वह यह फोटो समाचार पत्र आदि में प्रकाशित करवा कर या अन्य किसी माध्यम से जनता के बीच पहुंचा कर अंग्रेजों के जुल्म का प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाना चाहते थे। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि एक तो देश के अन्य लोगों को अंग्रेजों के अत्याचार और दमन के बारे में पता चले और दूसरे लोग भी अंग्रेजों के जुल्म को देखकर और कलकत्ता के वासियों का संघर्ष देखकर प्रेरित हों तथा देश की स्वतंत्रता के आंदोलन के लिए और अधिक संगठित होकर आगे आयें।

(ख) निम्नलिखित शब्दों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए।

प्रश्न 1 : सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?

उत्तर : सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज में एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अलग-अलग संघ से जुड़ी स्त्रियों ने अलग-अलग भूमिकायें निभाई थीं। जहाँ गुजराती सेविका संघ की ओर से एक जुलूस निकाला गया तो मारवाड़ी बालिका विद्यालय में झंडा फहराकर झंडोत्सव मनाया गया। सुभाष बाबू के इस जुलूस में जानकी देवी और मदालसा बाजार जैसी महत्वपूर्ण महिलाओं ने भी भाग लिया था।

लाठीचार्ज की भी परवाह नहीं की थी और लाठीचार्ज को सहते हुए भी मॉन्यूमेंट तक जा पहुंचीं। धर्मतल्ले के मोड़ पर तो नीति स्त्रियों ने धरना भी दे दिया था। लगभग 105 स्त्रियों ने अपनी गिरफ्तारी दी । इस तरह पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियां भी स्त्रियों ने भी सुभाष बाबू के जुलूस में बेहद महत्वपूर्ण और समान भूमिका निभाई थी।

प्रश्न 2 : जुलूस के लाल बाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?

उत्तर : लाठीचार्ज चाहते हुए भी लोग नारे लगा रहे थे और लोगों का जोश कम नहीं हुआ था। पुलिस लोगों को लाठी से मार रही थी और उन्हें गिरफ्तार करके ले  जा रही थी। स्त्रियां भी अपनी गिरफ्तारी दे रही थीं। बृजलाल गोयनका झंडा लेकर मॉन्यूमेंट की तरफ दौड़ा लेकिन दौड़ते दौड़ते वह गिर पड़ा। तब पुलिस ने उसे पकड़ लिया। मदालसा जोकि स्त्रियों के समूह का नेतृत्व कर रही थी, उसने भी अपनी गिरफ्तारी दी।

मदालसा को पुलिस पकड़ कर ले गई और थाने में उसके साथ मारपीट की। फिर भी लोगों का जोश कम नहीं हुआ और वह गिरफ्तारी देते जा रहे थे और लाठीचार्ज को सहते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। इस जुलूस में पुलिस के द्वारा किए गए लाठीचार्ज में लगभग 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे, जिन में स्त्रियां भी शामिल थीं और उसकी हालत गंभीर हो गई थी।

प्रश्न 3 : ‘जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर : जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर उस कानून के भंग होने की बात की गई है, जो कोलकाता के पुलिस कमिश्नर ने नोटिस दिया था।

26 जनवरी 1931 के दिन कोलकाता के पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला की अमुक-अमुक धारा के अनुसार शहर में कोई भी सभा नहीं हो सकती। यदि किसी ने सभा की और सभा में जिन लोगों ने भी भाग लिया उन्हें दोषी मानकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसी नोटिस के विरोध में कौंसिल ने अपनी तरफ से नोटिस निकाला कि मॉन्यूमेंट के नीचे स्थित था 4:24 पर राष्ट्रीय झंडा फहराया जाएगा और भारत की स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।

मॉन्यूमेंट के नीचे अधिक से अधिक लोगों के इकट्ठा होने का आह्वान किया गया था। यह बिल्कुल अंग्रेजी सत्ता को चुनौती के समान था। पुलिस कमिश्नर ने जो नोटिस निकाला था, उसके विरोध में  ये नोटिस विरोध का प्रतीक था। अंग्रेजी सरकार स्वतंत्रता सेनानियों का विरोध करने के लिए नियम बना रही थी और उन नियमों को स्वतंत्रता के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ा जा सकता था। अंग्रेजों का तो उद्देश्य यही था कि वह किसी भी तरह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को दबाए। इसीलिए वह इस तरह के कानून निकालते थे और भारतीयों को कानून का उल्लंघन करना जरूरी हो गया था।

पुलिस कमिश्नर ने देशवासियों के स्वतंत्रता दिवस मनाने के अधिकार का हनन करने का प्रयास किया था और स्वतंत्रता के आंदोलन को दबाने का प्रयास किया था, इसीलिए काउंसिल ने उसका विरोध करते हुए जनता का आह्वान करते हुए अपना नोटिस निकाला।

प्रश्न 4 : बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गईं, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : बहुत से लोग घायल हुए , बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत सी स्त्रियां जेल गई, फिर भी इस दिन को अपूर्व इसलिए बताया गया है, क्योंकि ऐसा इससे पहले गठित नहीं हुआ था। 26 जनवरी 1931 का दिन भारत की स्वतंत्रता दिवस को मनाने की पुनरावृत्ति दिवस था, क्योंकि 26 जनवरी 1930 को भारत की प्रथम स्वतंत्रता का दिवस मनाया गया था। 26 जनवरी 1931 को उसकी पुनरावृत्ति थी।

इस कारण देशवासियों में बेहद उत्साह था। बंगाल और कलकत्ता के वासियों में बहुत अधिक ही उत्साह और उल्लास था। लोग उत्साह और उल्लास से भरे हुए थे। उन्होंने अपने घरों को सजाया और जगह-जगह झंडे लगाए। वह इस दिन को यादगार बना देना चाहते थे। केवल पुरुषों ने ही नहीं स्त्रियों ने भी इस दिन आंदोलन करने और जुलूस निकालने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

स्त्रियों ने भी पुरुषों के भांति लाठियां। कई स्त्रियां घायल भी हुईं। अनेक पुरुषों एवं महिलाओं को पुलिस की लाठीचार्ज में घायल होना पड़ा। पुलिस ने उन्हें बुरी तरह से मारा पीटा और उन्हें लॉकअप में भी बंद किया। फिर भी लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। लोगों ने जोश-खरोश से जुलूस निकाला, गिरफ्तारियां दी और झंडे फहराए। कोलकाता में ऐसा पहली बार हुआ था, इसीलिए यह अपूर्व था।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए।

आशय स्पष्ट कीजिए। आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।

आशय : इस कथन का आशय यह है कि बंगाल या कलकत्ता वासियों के संदर्भ में यह कहा जाता था कि वह स्वाधीनता से संबंधित आंदोलन में कुछ विशेष नहीं करते। वह स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों में विशेष रूप से बढ़ चढ़कर भाग नहीं लेते और स्वतंत्रता संग्राम हेतु यहां पर अधिक कार्य नहीं किया जाता। यह सब बातें कलकत्ता वासियों और बंगाल वासियों के लिए एक कलंक के समान थी।

लेकिन 26 जनवरी 1931 के दिन भारत के दूसरे स्वतंत्रता दिवस मनाने हेतु कलकत्ता वासियों ने संगठित होकर जिस तरह का संघर्ष किया, जिस तरह का आंदोलन किया, जुलूस निकाला, उत्साह दिखाया, वह अपूर्व था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में कलकत्ता वासियों ने एक अनोखा आंदोलन किया जिसने पूरे देश में इस आंदोलन को चर्चा में ला दिया था। कलकत्ता वासियों ने, जिनमें स्त्री एवं पुरुष दोनों शामिल थे, लाठियां खाई घायल हुए जेल गए लेकिन उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं खींचे और राष्ट्रीय ध्वज फहराकर आकर स्वतंत्रता के आंदोलन की प्रतिज्ञा पढ़ी।

इस तरह इससे पहले कलकत्ता वासियों के माथे पर लगा कलंक धुल गया कि यहाँ पर भारतीय स्वतंत्रता के लिए काम नहीं हो रहा।

आशय स्पष्ट कीजिए। खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी ?

आशय : इस कथन का आशय यह है कि 26 जनवरी 1931 के दिन कोलकाता के कमिश्नर ने नोटिस निकाला था कि कोलकाता में किसी भी जगह पर कोई भी सभा नहीं की जाएगी । उसने तरह-तरह की धाराओं का हवाला देते हुए कहा कि यदि किसी ने भी सभा की ओर जो व्यक्ति सभा में शामिल हुआ उस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी और उसे गिरफ्तार किया जाएगा।

कमिश्नर ने यह नोटिस उस आंदोलन को कुचलने के लिए निकाला था जिसने 26 जनवरी 1931 के दिन कोलकाता में जगह जगह पर झंडे आदि फहराकर  भारत की स्वतंत्रता दिवस मनाने का आयोजन किया जाना था। अंग्रेजों को यह बात स्वीकार नहीं थी इसीलिए पुलिस कमिश्नर ने ऐसे नोटिस निकाल कर ऐसे आयोजन को शुरू होने से पहले ही खत्म करने का कुत्सित प्रयास किया था। लेकिन इस नोटिस के जवाब में काउंसिल ने उन्हें चुनौती देते हुए अपनी तरफ से एक नोटिस निकाला जिसमें कहा गया कि 4:24 पर मॉन्यूमेंट के नीचे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहरायगा जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।

पुलिस कमिश्नर द्वारा जारी किए गए नोटिस के विरोध में इस तरह का नोटिस निकालना खुला चैलेंज था। ऐसा नोटिस निकालकर न केवल कमिश्नर के नोटिस अवज्ञा की गई बल्कि विरोध में अपना नोटिस निकालकर मॉन्यूमेंट के नीचे सभा भी की गई थी। अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देकर ऐसी सभा पहले कभी नही हुई थी इसलिए ये कहा गया कि खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।



भाषा अध्ययन

1.
I. निम्नलिखित वाक्यों को सरल वाक्य में बदलिए।
(क) दो सौ आदमियों का जुलूस लालबाज़ार गया और वहाँ पर गिरफ़्तार हो गया।

सरल वाक्य : दो सौ आदमियों का जुलूस लालबाज़ार जाकर गिरफ़्तार हो गया।

(ख) मैदान में हजारों आदमियों की भीड़ होने लगी और लोग टोलियां बना-बनाकर मैदान में घूमने लगे।

सरल वाक्य : मैदान में हजारों आदमियों की जमा भीड़ टोलियां बनाकर मैंदान में घूमने लगी।

(ग) सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठ कर लालबाजार लॉकअप में भेज दिया गया।

सरल वाक्य : सुभाष बाबू को पड़कर गाड़ी में बैठकर लालबाजार लॉकअप में भेज दिया गया

II. ‘बड़े भाईसाहब’ पाठ में से दो सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य छांटकर लिखिए।

उत्तर : बड़े भाईसाहब पाठ में से दो-दो सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य छाँटकर इस प्रकार होंगे…

सरल वाक्य : वह स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे।
सरल वाक्य : उनकी रचनाओं को समझना छोटे मुँह बड़ी बात है।

संयुक्त वाक्य : रावण ने अभिमान किया और दीन दुनिया दोनों से गया।
संयुक्त वाक्य : मुझे अपने ऊपर कुछ अभिमान हुआ और आत्मसम्मान भी बढ़ा।

मिश्र वाक्य : मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई अर्थ निकालूँ लेकिन असफल रहा।
मिश्र वाक्य : मैं कह देता कि मुझे अपना अपराध स्वीकार है।

2. निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और समझिए कि जाना, रहना और चुकना क्रियाओं का प्रयोग किस प्रकार किया गया है। (क) 1. कई मकान सजाए गए थे। 2. कलकत्ते के प्रत्येक भाग में झंडे लगाए गए थे। (ख) 1. बड़े बाज़ार के प्रायः मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था। 2. कितनी ही लारियाँ शहर में घुमाई जा रही थीं। 3. पुलिस भी अपनी पूरी ताकत से शहर में गश्त देकर प्रदर्शन कर रही थीं। (ग) 1. सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था, वह प्रबंध कर चुका था। 2. पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था।

उत्तर : उपरोक्त वाक्यों की संरचनाओं को ध्यान से पढ़कर और समझ कर ‘जाना’, ‘रहना’ और ‘चुकना’ क्रियाओं के विषय में यह पता चलता है कि इन क्रियाओं का प्रयोग मुख्य क्रिया के रूप में नहीं किया गया है, बल्कि इन क्रियाओं का प्रयोग रंजक क्रियाओं के रूप में किया गया है। इन क्रियाओं का प्रयोग इस तरह करने के कारण मुख्य क्रियाएं संयुक्त क्रिया बन गई हैं।

3. नीचे दिए गए शब्दों की संधि कीजिए- श्रद्धा + आनंद = …. प्रति + एक = ……. पुरुष + उत्तम = ……… झंडा + उत्सव = …….. पुनः + आवृत्ति = ……… ज्योतिः + मय = …….

उत्तर : नीचे दिए गए शब्दों की संधि इस प्रकार होगी…

श्रद्धा + आनंद = श्रद्धानंद
संधि भेद : दीर्घ स्वर संधि

प्रति + एक = प्रत्येक
संधि भेद : यण स्वर संधि

पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम
संधि भेद : गुण स्वर संधि

झंडा + उत्सव = झंडोत्सव
संधि भेद : गुण स्वर संधि

पुनः + आवृत्ति = पुनरावृत्ति
संधि भेद : विसर्ग संधि

ज्योतिः + मय = ज्योतिर्मय
संधि भेद : विसर्ग संधि



योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 : भौतिक रूप से दबे हुए होने पर भी अंग्रेजों के समय में ही हमारा मन आजाद हो चुका था। अत: दिसंबर सन् 1929 में लाहौर में कांग्रेस का एक बड़ा अधिवेशन हुआ, इसके सभापति जवाहरलाल नेहरू जी थे। इस अधिवेशन में यह प्रस्ताव पास किया गया कि अब हम ‘पूर्ण स्वराज्य से कुछ भी कम स्वीकार नहीं करेंगे। 26 जनवरी 1930 को देशवासियों ने पूर्ण स्वतंत्रता के लिए हर प्रकार के बलिदान की प्रतिज्ञा की। उसके बाद आज़ादी प्राप्त होने तक प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। आजादी मिलने के बाद 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

उत्तर : प्रश्न मे जो जानकारी दी गई है, वह विद्यार्थियों के ज्ञानवर्द्धन हेतु दी गई है। विद्यार्थी इस जानकारी का स्मरण रखें।

प्रश्न 2 : डायरी-यह गद्य की एक विधा है। इसमें दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं, अनुभवों को वर्णित किया जाता है। आप भी अपनी दैनिक जीवन से संबंधित घटनाओं को डायरी में लिखने का अभ्यास करें।

उत्तर : यहाँ पर विद्यार्थियों की सहायता के लिए एक दिन का डायरी लेखन प्रस्तुत है…

डायरी: 5 जुलाई 2024

आज का दिन बहुत खास था। आज मेरा जन्मदिन था। सुबह जैसे ही उठा तो मेरे माता-पिता और छोटी बहन मेरे बिस्तर के पास खड़े थे। उन्होंने मेरे आँखे खोलते ही मुझे एक स्वर में ‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ कहा। मम्मी ने नाश्ते में मेरे पसंद के आलू के परांठे बनाए थे। नाश्ता करके और तैयार होकर मैं अपने स्कूल निकल गया। मैं अपने साथ छोटी-छोटी चॉकलेट ले गया था जो मैंने अपने कक्षा में सभी को बांटी। मैंने अपने खास दोस्तों को शाम के घर पर आने का निमंत्रण दिया क्योंकि मेरे घर पर मेरे माता-पिता जन्मदिन की पार्टी रखी थी। शाम को घर पहुँचकर मैने नए कपड़े पहने। रात 8 बजे पार्टी शुरु हुई। मैने अपने जन्मदिन का केक काटा। मेरे सभी खास दोस्त और हमारे नजदीकी रिश्तेदार पार्टी में आये थे। मेरे माता पिता ने मुझे एक साइकिल भेंट की। मेरी छोटी बहन में मुझे एक किताब भेंट की। इसी तरह सभी ने मुझे कुछ न कुछ उपहार दिया। केक काटने के बाद नाच-गाने और भोजन का कार्यक्रम हुआ। रात 10 बजे तक पार्टी चलती रही। मेरे जन्मदिन का ये दिन सचमुच यादगार रहा।

शिवम

प्रश्न 3 : जमना लाल बजाज, महात्मा गांधी के पाँचवें पुत्र के रूप में जाने जाते हैं, क्यों? अध्यापक से जानकारी प्राप्त करें।

उत्तर : जमनालाल बजाज को महात्मा गांधी का ‘पाँचवाँ पुत्र’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने गांधीजी के आदर्शों और विचारधारा को न केवल अपनाया बल्कि अपने जीवन में भी उतारा। उनके और गांधीजी के बीच का संबंध एक गुरु-शिष्य से कहीं अधिक था; वह एक गहरे और व्यक्तिगत स्तर पर जुड़ाव का प्रतिनिधित्व करता था।

जमनालाल बजाज, बजाज उद्योग घराने के संस्थापक थे और राजस्थान के प्रसिद्ध व्यापारी थे। उन्हें अंग्रेजों से रायबहादुर की उपाधि भी मिली थी। गांधी जी से मिलने के बाद वह गांधी जी की विचाधारा से प्रभावित हुए। तब उन्होंने अंग्रेजों सी दूरी बना ली उनका दिया सम्मान लौटा दिया और पूरी तरह से गांधी जी के अनुयायी बन गए।

जमनालाल बजाज ने अपनी संपत्ति और संसाधनों का उपयोग समाज सेवा के लिए किया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भूमिका निभाई और गांधीजी के आदर्शों का अनुसरण करते हुए कई सामाजिक सुधार कार्य किए। उन्होंने ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन और अन्य कई अभियानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपना समय, धन और ऊर्जा गांधीजी के आंदोलनों को सफल बनाने में लगाया। जमनालाल बजाज ने एक साधारण जीवन जीने का संकल्प लिया और अपने भौतिक सुखों का त्याग किया, जो गांधीजी के आदर्शों के अनुरूप था। उन्होंने अपने परिवार के साथ भी गांधीजी के सिद्धांतों का पालन किया। गांधीजी ने भी उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानते हुए उन्हें अपने पुत्र के समान स्नेह और सम्मान दिया।

इन सभी कारणों से, जमनालाल बजाज को गांधीजी का पाँचवाँ पुत्र कहा जाने लगा।

प्रश्न 4 : ढाई लाख का जानकी देवी पुरस्कार जमना लाल बजाज फाउंडेशन द्वारा पूरे भारत में सराहनीय कार्य करने वाली महिलाओं को दिया जाता है। यहाँ ऐसी कुछ महिलाओं के नाम दिए जा रहे है-
श्रीमती अनुताई लिमये 1993 महाराष्ट्र; सरस्वती गोरा 1996 आंध्र प्रदेश;
मीना अग्रवाल 1996 असम, सिस्टर मैथिली 1999 केरल; कुंतला कुमारी आचार्य 2001 उड़ीसा।
इनमें से किसी एक के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर : दी गई महिलाओं की सूची में एक महिला श्रीमती सरस्वती गोरा के विषय में जानकारी इस प्रकार है…

श्रीमती सरस्वती गोरा: एक समाजसेविका का प्रेरणादायक जीवन

श्रीमती सरस्वती गोरा, जिन्हें 1996 में आंध्र प्रदेश से जानकी देवी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, एक प्रभावशाली समाजसेविका थीं। उन्होंने अपने जीवन को समाज सुधार और सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उनके कार्य और योगदान ने न केवल आंध्र प्रदेश बल्कि पूरे भारत में समाज सुधार के विभिन्न क्षेत्रों में एक नई दिशा दी।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

सरस्वती गोरा का जन्म 28 सितंबर 1912 को आंध्र प्रदेश में हुआ था। उनकी शिक्षा और परवरिश एक ऐसे वातावरण में हुई जहाँ उन्हें सामाजिक न्याय और समानता के मूल्य सिखाए गए। उनके पति गोपाल गोरा भी एक प्रसिद्ध समाजसेवक थे, जिन्होंने उन्हें समाज सेवा के क्षेत्र में प्रेरित किया।

समाज सेवा और योगदान

सरस्वती गोरा ने अपने पति के साथ मिलकर “आंध्र महिला सभा” की स्थापना की, जो महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों के लिए काम करती थी। उन्होंने महिलाओं के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन के विभिन्न कार्यक्रम चलाए। इसके अलावा, उन्होंने जाति भेदभाव और सामाजिक असमानता के खिलाफ भी संघर्ष किया।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

सरस्वती गोरा ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने महात्मा गांधी के आदर्शों का पालन करते हुए असहयोग आंदोलन और अन्य राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित किया और उन्हें प्रेरित किया।

पुरस्कार और सम्मान

1996 में उन्हें जानकी देवी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो उनके समाज सुधार के कार्यों और योगदान के लिए था। यह पुरस्कार जमनालाल बजाज फाउंडेशन द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को दिया जाता है।

उनके कार्यों की महत्ता

सरस्वती गोरा का जीवन और उनके कार्य समाज सेवा के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक मिसाल हैं। उन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए अनथक प्रयास किए और अपने कार्यों से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाए। उनका जीवन एक सच्ची समाजसेविका का उदाहरण है, जिन्होंने अपने कार्यों से समाज को एक नई दिशा दी।

सरस्वती गोरा का योगदान आज भी समाज सेवा के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है, और उनकी यादें उनके द्वारा किए गए महान कार्यों के रूप में जीवित हैं।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1 : स्वतंत्रता आंदोलन में निम्नलिखित महिलाओं में जो योगदान दिया, उसके बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करके लिखिए-
(क) सरोजिनी नायडू
(ख) अरुणा आसफ अली
(ग) कस्तूरबा गांधी

उत्तर : तीनों महिलाओं के विषय में संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है…

सरोजिनी नायडू

सरोजिनी नायडू, जिसे “भारत कोकिला” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता थीं। उन्होंने महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित किया और गांधीजी के सत्याग्रह में सक्रिय भूमिका निभाई। 1925 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं, और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

अरुणा आसफ अली

अरुणा आसफ अली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख नेता थीं। उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर विद्रोह का नेतृत्व किया। वे एक प्रमुख क्रांतिकारी थीं और बाद में दिल्ली की पहली मेयर भी बनीं। उन्होंने कई जेल यातनाओं को सहन किया लेकिन अपने संकल्प में अडिग रहीं।

कस्तूरबा गांधी

कस्तूरबा गांधी, महात्मा गांधी की पत्नी, स्वतंत्रता संग्राम में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलीं। उन्होंने सत्याग्रह और नमक आंदोलन में भाग लिया और कई बार जेल गईं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और स्वच्छता पर जोर दिया और अपने जीवन में गांधीजी के सिद्धांतों को अपनाकर समाज सेवा की।

प्रश्न 2 : इस पाठ के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में कलकत्ता (कोलकाता ) के योगदान का चित्र स्पष्ट होता है। आजादी के आंदोलन में आपके क्षेत्र का भी किसी न किसी प्रकार का योगदान रहा होगा पुस्तकालय, अपने परिचितों या फिर किसी दूसरे स्त्रोत से इस संबंध में जानकारी हासिल कर लिखिए।

उत्तर : विद्यार्थी इस विषय में अपने क्षेत्र की जानकारी लिखे। वे जिस क्षेत्र, जिस जिले, शहर या गाँव में रहते है उसके बारे में अपने माता-पिता, परिचित और स्थानीय लोगों से पूछें। स्थानीय इतिहास से संबंधित पुस्तकें पढ़ें और अपने क्षेत्र की जानकारी लिखें।

 
प्रश्न 3 : ‘केवल प्रचार में दो हजार रुपया खर्च किया गया था। तत्कालीन समय को मद्देनज़र रखते हुए अनुमान लगाइए कि प्रचार-प्रसार के लिए किन माध्यमों का उपयोग किया गया होगा?

उत्तर : उस समय न तो टीवी था और न ही इंटरनेट। प्रचार माध्यम के रूप में अखबार, इश्तेहार या कुछ हद तक रेडियो हुआ करता था। आंदोलन के प्रचार के लिए झंडे बनवाने, इश्तेहार छपवाने में अधिकतर पैसे गए होंगे। दीवारों आदि पर जो नारे लिखे गए होंगे वो कार्यकर्ताओं ने सेवा भावना  के रूप में लिखे होंगे। बाकी खर्चा आवागमन मे खर्चा हुआ होगा।

प्रश्न 4 : आपको अपने विद्यालय में लगने वाले पल्स पोलियो केंद्र की सूचना पूरे मोहल्ले को देनी है। आप इस बात का प्रचार बिना पैसे के कैसे कर पाएँगे? उदाहरण के साथ लिखिए।

उत्तर : पल्स पोलियो केंद्र की सूचना पूरे मोहल्ले में बिना पैसे के निम्नलिखित तरीकों से प्रचारित कर सकते हैं:

व्यक्तिगत संपर्क के द्वारा अपने दोस्तों, पड़ोसियों, और सहकर्मियों से मिलकर जानकारी दी जा सकती है।

सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप्स जैसे व्हाट्सएप और फेसबुक पर संदेश और पोस्ट साझा करके जानकारी दी जा सकती है।

जैसे

प्रिय दोस्तों,
रविवार, 10 जुलाई को हमारे विद्यालय में पल्स पोलियो केंद्र सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुलेगा। कृपया 0-5 वर्ष के बच्चों को पोलियो की खुराक दिलवाएं। धन्यवाद।

मोहल्ले में लोगों के घर-घर जाकर उनको इस बारे जागरूक किया जा सकता है।


डायरी का एक पन्ना, लेखक – सीताराम सेकसरिया (कक्षा-10, पाठ-9 हिंदी, स्पर्श भाग 2) (NCERT Solutions)


कक्षा-10 हिंदी स्पर्श 2 पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ

साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

कर चले हम फिदा : कैफ़ी आज़मी (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श भाग-2) (हल प्रश्नोत्तर)

आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

बड़े भाई साहब : प्रेमचंद (कक्षा-10 पाठ-8 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

कर्म की प्रधानता पर कहानी लिखिए​।

कहानी

कर्म की प्रधानता

एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में राजाराम नाम का एक मेहनती किसान रहता था। राजाराम बहुत गरीब था, लेकिन वह अपने परिश्रम से कभी हार नहीं मानता था। वह रोज सुबह जल्दी उठकर खेतों में काम करता और देर शाम तक मेहनत करता रहता।

गाँव में एक और व्यक्ति था, किसनलाल, जो राजाराम का पड़ोसी था। किसनलाल एक आलसी और कायर व्यक्ति था, जो हमेशा भाग्य और किस्मत के भरोसे रहता था। वह हमेशा कहता था कि उसकी किस्मत खराब है, इसलिए वह कभी सफल नहीं हो पाता।

एक दिन गाँव में एक साधू बाबा आए। गाँव वाले साधू बाबा के पास अपनी समस्याओं का समाधान पूछने गए। राजाराम और किसनलाल भी साधू बाबा के पास गए। राजाराम ने अपनी मेहनत की बात बताई और कहा कि वह और भी मेहनत करना चाहता है ताकि वह अपनी गरीबी से बाहर निकल सके। वहीं, किसनलाल ने अपनी किस्मत की दुहाई दी और कहा कि उसकी किस्मत खराब है इसलिए वह कुछ भी नहीं कर पाता।

साधू बाबा ने दोनों की बातें सुनीं और फिर मुस्कराते हुए कहा, “अच्छा, मुझे तुम्हारे खेत दिखाओ।” राजाराम और किसनलाल दोनों अपने-अपने खेत लेकर गए। साधू बाबा ने राजाराम के खेत में हरी-भरी फसल देखी और किसनलाल के खेत में जंगली घास उगी हुई देखी।

साधू बाबा ने कहा, “राजाराम, तुम्हारे खेत में हरी-भरी फसल इसलिए है क्योंकि तुम मेहनत करते हो और अपने खेत का ख्याल रखते हो। वहीं, किसनलाल, तुम्हारे खेत में जंगली घास इसलिए है क्योंकि तुम मेहनत नहीं करते और अपने खेत का ख्याल नहीं रखते। किस्मत नहीं, बल्कि मेहनत और कर्म ही जीवन में सफलता दिलाते हैं।”

राजाराम की मेहनत की प्रशंसा करते हुए साधू बाबा ने कहा, “कर्म ही प्रधान है। यदि तुम मेहनत करोगे, तो तुम्हारी किस्मत भी तुम्हारा साथ देगी।” किसनलाल ने यह सुनकर अपनी गलती मानी और राजाराम से प्रेरणा लेकर उसने भी मेहनत करनी शुरू कर दी।

कुछ महीनों बाद, किसनलाल का खेत भी हरी-भरी फसलों से लहलहा उठा। उसने समझ लिया कि किस्मत का खेल केवल मेहनत और कर्म पर निर्भर करता है। इस तरह, गाँव में कर्म की प्रधानता की एक अनमोल शिक्षा फैल गई और सभी गाँव वाले मेहनत करने लगे, जिससे गाँव समृद्ध और खुशहाल बन गया।


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सफलता और परिश्रम के विषय पर एक छोटी-सी कहानी लिखिए।

भक्तिकालीन काव्य की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं? सोदाहरण समझाइये ।

भक्तिकालीन काव्य हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण काल है जिसमें भक्ति और श्रद्धा के भाव प्रमुख रूप से व्यक्त किए गए हैं। भक्तिकालीन काव्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं…

1. भक्ति भावना : इस काल के काव्य में ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम और श्रद्धा का भाव व्यक्त किया गया है। कवियों ने अपने आराध्य देव की स्तुति की है और भक्ति के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के मिलन की कामना की है।

उदाहरण के लिए, सूरदास ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया है:

मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो।
मथुरा के मंगवाय मिठाई, माखन अरु मिश्री मुझको न भायो।।

2. सगुण और निर्गुण भक्ति : भक्तिकालीन काव्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है –

सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति।

सगुण भक्ति में ईश्वर को मूर्ति, रूप, लीलाओं के माध्यम से व्यक्त किया गया है, जैसे तुलसीदास की रामचरितमानस।

निर्गुण भक्ति में निराकार ईश्वर की उपासना की गई है, कबीर, रैदास आदि कवि।

उदाहरण के लिए कबीर का एक दोहा…

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे।
एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रोंदूंगी तोहे।।

3. साधना और आत्मानुभूति : भक्तिकालीन कवियों ने अपने काव्य में साधना और आत्मानुभूति का वर्णन किया है। वे आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की प्राप्ति के लिए भक्ति मार्ग को सर्वोत्तम मानते थे।

उदाहरण के लिए, मीराबाई के पद से उनके आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति अगाध भक्ति का प्रकटीकरण होता है…

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।।

4. सरल भाषा और शैली : इस काल के कवियों ने अपनी रचनाओं में सरल, सहज और भावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया। उन्होंने जन-जन तक अपने विचारों को पहुंचाने के लिए अवधी, ब्रजभाषा, राजस्थानी जैसी लोक भाषाओं का उपयोग किया।

उदाहरण के लिए, तुलसीदास की चौपाई से समझते हैं..

श्रीरामचरितमानस पवित्र गंगा, तुलसीदास के काव्य की बानी।
जो जन पढ़े अथवा सुन आवे, हर हर हर हर पाप हरामी।।

5. मानवता और सामाजिक समरसता : भक्तिकालीन काव्य में सामाजिक समरसता, समानता और मानवता के विचार भी व्यक्त किए गए हैं। कबीर, रैदास, और अन्य संत कवियों ने जाति-पाति, धर्म-भेद आदि को नकारते हुए मानवता की महत्ता को स्वीकार किया।

उदाहरण के लिए…

अवल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बंदे।
एक नूर से सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे।।

6. गुरु महिमा : इस काल के कवियों ने गुरु की महिमा का भी गान किया है। गुरु को ज्ञान का स्रोत और आत्मा को परमात्मा से मिलाने वाला मार्गदर्शक माना गया है।

उदाहरण के लिए कबीरदास के इस दोहे में गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।

भक्तिकालीन काव्य की इन विशेषताओं से यह स्पष्ट होता है कि यह काल भक्ति, साधना, और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के भाव से ओत-प्रोत था।


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राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी। तुलसी के इस भरोसे का कारण क्या है?

ठगनी क्यूँ नैना झमकावै, तेरे हाथ कबीर न आवै।। “इस पंक्ति में ‘ठगनी’ किसे कहा गया है?

कबीर, गुरुनानक और मीराबाई इक्कीसवीं शताब्दी में प्रासंगिक है कैसे?

कबीर अपना चरखा चलाते हुए भजन क्यों गाते रहते थे?

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कबीर अपना चरखा चलाते हुए भजन इसलिए गाते रहते थे क्योंकि वह कर्म और ईश्वर चिंतन दोनों कार्यों को साथ करने में यकीन रखते थे। कबीर ईश्वर की भक्ति को महत्व देते थे और ईश्वर के निराकार रूप को मानते थे। लेकिन वह केवल ईश्वर चिंतन में ही अपना समय व्यतीत नहीं करते थे वह कर्म को भी उतना ही महत्व देते थे।

उनके जीवन में ज्ञान और कर्म दोनों का समान महत्व था। वह कर्म करने के लिए कोई उद्यम करते रहते थे और निरंतर चरखा चलाते रहते थे और ईश्वर के भजन भी गाते रहते थे। वह कर्म साधना करने के साथ-साथ ईश्वर की ध्यान साधना भी करते रहते थे। वे समय का सदुपयोग करते थे। उनके अनुसार ईश्वर को याद करने का कोई विशिष्ट समय नहीं होता बल्कि जब चाहों और हर समय ईश्वर को याद किया जा सकता है।


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कबीर सुमिरन सार है, और सकल जंजाल। आदि अंत सब सोधिया, दूजा देखौं काल।। अर्थ बताएं?

‘नए घर में प्रवेश’ इस विषय पर एक अनुच्छेद लिखें।

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नए घर में प्रवेश


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‘रजनी’ पाठ में अमित रजनी की सहेली लीला का बेटा था। अमित मेधावी छात्र था। जब अमित के परीक्षा में गणित विषय में कम आए तो रजनी ने उसके विद्यालय में जाकर प्रधानाचार्य से इसका विरोध प्रकट किया और उसकी उत्तर पुस्तिका देखने की मांग की। प्रधानाचार्य उत्तर पुस्तिका दिखाने से मना कर दिया। रजनी ट्यूशन प्रथा के विरोध में आवाज उठाती है और वह इसके लिए प्रेस की भी सहायता लेती है। अंत में स्कूल का बोर्ड उसकी मांग के आगे झुक जाता है और अध्यापकों द्वारा छात्रों पर जबरदस्ती ट्यूशन लगाने के खिलाफ सख्त नियम बना देता है।


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औपचारिक पत्र

हरियाणा रोडवेज महाप्रबंधक को पत्र

दिनांक – 2 जुलाई 2024सेवा में,
श्रीमान महाप्रबंधक,
हरियाणा परिवहन निगम,
चंडीगढ़ ।

विषय- बस सुविधा उपलब्ध करवाने बाबत ।

महोदय, निवेदन है कि हम भरोली क्षेत्र, हरियाणा के निवासी है । हम अपने क्षेत्र की परिवहन निगम की बस-सेवा के अभाव में परेशान हैं । हमें रोज बस अड्डे तक जाने के लिए अपने वाहन या रिक्शा आदि का सहारा लेना पड़ता है । यहाँ से सैकड़ो कर्मचारी दैनिक बस-अड्डे तथा रेलवे स्टेशन तक जाते है। आपसे निवेदन है कि हमारे क्षेत्र तक भी एक बस-सेवा आरंभ करें। इससे आम आदमी को काफी सुविधा होगी। हमारे क्षेत्र में बस सुविधा उपलब्ध नहीं है। जिस स्थान से हमें बस लेनी पड़ती है, वह बहुत ही दूर है। हम कई बार इस विषय पर पत्र लिखकर अपनी परेशानी बयान कर चुके हैं, परंतु अब तक इस दिशा में कोई कार्य नहीं हुआ है।

अतः आपसे निवेदन है कि शीघ्र ही हमारे क्षेत्र से बस सुविधा आरंभ की जाए। हम सभी क्षेत्र के निवासी सदा आपके आभारी रहेगें।सधन्यवाद !
प्रार्थी,
कृष्णा,
भरोली, हरियाणा ।

 

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अपने विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस मनाने हेतु विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखें।

महादेव भाई हँसी मजाक में अपने को क्या कहते थे? (क) गाँधी जी का गधा (ग) गाँधी जी का घोड़ा (ख) गाँधी जी का हम्माल (घ) इनमें से कोई नही​।

सही विकल्प है :
(ख) गाँधी जी का हम्माल

विस्तृत विवरण

महादेव भाई मजाक-मजाक में अपने को गांधीजी का हम्माल कह देते थे। उन्हें गाँधीजी का हम्माल कहने में कोई संकोच नहीं होता था कभी-कभी वह अपना परिचय उनके पीर-बावर्ची, भिश्ती, खर के रूप में भी दे दिया करते थे। इस तरह के परिचय देकर गाँधी जी के साथ अपना संबंध जोड़ने में गौरव का अनुभव किया करते थे। भाई महादेव देसाई गाँधीजी के निची सचिव थे और वह गाँधीजी का कार्य व्यवस्थापन करते थे। वह सेवा धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति थे और गाँधीजी के कट्टर अनुयाई थे।


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किस विकल्प में दोनों शब्द तत्सम शब्द हैं? (a) सूरज, अग्नि (b) भानु, आसमान (c) आकाश, सितारा (d) दिनकर, सूर्य.

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भ्रष्टाचार मुक्त भारत विकसित भारत (निबंध)

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निबंध

भ्रष्टाचार मुक्त भारत विकसित भारत

 

प्रस्तावना

मानव की परख करने के लिए उसके आचरण और व्यवहार को अधिक महत्व दिया गया है। मानवता की पहचान के लिए जिन गुणों का होना आवश्यक है, उनमें कर्तव्य-परायणता, सहानुभूति, सत्य-प्रियता एवं परोपकार आदि प्रमुख है। इन्हीं गुणों से युक्त व्यक्ति सदाचारी कहलाता है। इसके प्रतिकूल आचरण करने वाले व्यक्ति को भ्रष्टाचारी की संज्ञा दी गई है। इस प्रकार व्यक्ति का जो कार्य आचरण के विरूद्ध होगा या फिर आचरण के अनुचित होगा हम उसे हम भ्रष्टाचार कहेंगे । भ्रष्टाचार की समस्या आज की ज्वलंत समस्या है ।

भ्रष्टाचार का दानव मनुष्य को अपने पंजे में दबोच रहा है और उसका गला घोंट रहा है । भ्रष्टाचार से अभिप्राय है रिश्वत व बेईमानी । इसके मूल में धन इकट्ठा करने की लिप्सा रहती है । किसी भी व्यक्ति की योग्यता, अनुभव आदि को ताक पर रखकर दूसरे अयोग्य व्यक्ति को किसी पद पर नियुक्त करना भी भ्रष्टाचार के अन्तर्गत ही आता है। वस्तुओं में मिलावट करना, जनता की विवशताओं का अनुचित लाभ उठाकर आवश्यक वस्तुओं को गोदाम में भर लेना भी भ्रष्टाचार है। क्या आपने कभी सोचा है कि भ्रष्टाचार का क्या कारण है।

वैसे तो भ्रष्टाचार के बहुत से कारण है लेकिन इनमें सबसे प्रमुख है…

सामाजिक कारण

भ्रष्टाचार बढ़ने का मुख्य कारण देश की सामाजिक नैतिकता । इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत में सामाजिक नैतिकता का स्तर बहुत गिरा हुआ है। भारतीय समाज और प्रशासन में अनेक अत्याचार होते रहते हैं, परंतु उनके विरुद्ध आवाज उठाने वाले बहुत कम हैं। इसके विपरीत, नाजायज तरीके से भी पैसे कमाने वाले को काफी सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है। एक ईमानदार शिक्षक को समाज में उतनी प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त होती जितनी एक घूसखोर सरकारी कर्मचारी को। हमारे समाज ही ऐसी है जहाँ भ्रष्टाचार का विकसित होना स्वाभाविक है। एक ओर अधिकारी वर्ग घूस लेने में नहीं हिचकिचाते और तो और दूसरी ओर आम नागरिक भी कर से बचना पसंद करते हैं।

भारत देश एक बहुत बड़ा देश है और आबादी भी बहुत ज्यादा है । इसका कार्यतंत्र बहुत ही विशाल है । इसलिए, यहाँ भ्रष्टाचार बहुत अधिक अंदर तक फैला हुआ है । भ्रष्टाचार मुक्त भारत को देखना शायद आज भारत के हर नागरिक का एक सपना है।

भ्रष्टाचार किसी भी देश के विकास में सबसे बड़ा रोड़ा है और भ्रष्टाचार का कीड़ा आज भारत के बड़े नेता से लेकर आम आदमी तक फैल चुका है। आज हम सभी देखते है कि आम आदमी भी पैसे देकर अपने काम को जल्दी से जल्दी करवाना चाहता है। आज आप चंद पैसों में किसी कानून व नियम को दबा सकते है और नियमों के रास्ते उसी काम को करने में आपको महीनों या वर्षों भी लग सकते है ।

आर्थिक कारण

जिस देश की आर्थिक स्थिति दयनीय होगी, वहाँ का प्रशासन भी भ्रष्ट होगा । वास्तव में, आर्थिक व्यवस्था प्रशासन को अपने रूप में ढाल लेती है । यह निर्विवाद है कि जो देश गरीब रहेगा वह प्रशासकीय कर्मचारियों को उतना वेतन नहीं दे सकता जिससे वे सारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें।

यद्यपि उन्हें अपने वेतन के अनुसार ही अपनी आवश्यकताएँ बनाकर रखनी चाहिए। वे भी आराम पूर्ण जीवन व्यतीत करना पसंद करते हैं । फिर, जब आसानी से उन्हें नाजायज तरीके से पैसे की प्राप्ति हो सकती है तो फिर दुःख भरा जीवन क्यों व्यतीत करें ? यह मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति कर्मचारियों को भ्रष्ट करने में काफी सहायक सिद्ध हुई है। यह बात भी सही है कि प्रशासन में ऐसे लोगों की ही संख्या अधिक है जो अपने वेतन से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते अतः वे घूस लेने के लिए बाध्य हो जाते हैं ।

राजनीतिक कारण

भ्रष्टाचार का मुख्य कारण हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था है। राजनीतिक दलों के कारण भी भ्रष्टाचार फैलता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता भारत में भी भ्रष्टाचार फैलाने में राजनीतिक दल बहुत अधिक सहायक रहे हैं। राजनीतिक नेताओं और बड़े व्यवसायियों के बीच की इस संधि ने एक ऐसे वातावरण को जन्म दिया है, जिसमें एक बड़े पैमाने के भ्रष्टाचार के लिए राजनीतिक क्षेत्र पर आक्रमण करना संभव हो गया है।

भारत में प्रशासन की बागडोर बड़े-बड़े राजनीतिक नेताओं के हाथों में है, जिन्होंने भारत में स्वतंत्रता–संग्राम में बहुत त्याग किया था, तथा वे इस बात का दावा करते हैं कि वे आराम और विलासिता पूर्ण जीवन के अधिकारी हैं और देश के विकास का भार अब नई पीढ़ी के छोटे लोगों को वहन करना है।

अशिक्षित नेतृत्व ने भी भ्रष्टाचार को विकसित करने में काफी सहायता पहुँचाई है। अपने अज्ञान के ही कारण मंत्रियों को प्रशासकों पर काफी निर्भर रहना पड़ता है जो उनकी कमजोरी से लाभ उठाते हैं। वह उन्हें भ्रष्ट बनने से नहीं रोकते, भ्रष्टाचार का सबसे गंभीर कारण यह है कि राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने वाले व्यक्ति और राष्ट्रीय संपत्ति को नियंत्रित करने वालों में घनिष्ठ संबंध पाया जाता है।

भ्रष्टाचार से मुक्त भारत ही विकसित हो सकता है।

हम सभी को अपने भारतीय होने पर गर्व है और मैं आशा करती हूँ कि आप सभी भी मेरी तरह भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त होते हुए देखना चाहते होंगे । यह कार्य काफी मुश्किल है। लेकिन, यह सोचकर हम भ्रष्टाचार मुक्त भारत की कल्पना या सपना तो नहीं छोड़ सकते है । हमें इसके लिए लगातार सही दिशा में कार्य करने होंगे ।

भ्रष्टाचार की समस्या का हल केवल कानूनी तौर पर ही नहीं किया जा सकता। इसके निवारण के लिए जन संचार माध्यमों का विशेष योगदान हो सकता है । हमें समाचार–पत्रों, दूरदर्शन, एवं आकाशवाणी प्रसारणों द्वारा भ्रष्टाचार के विरूद्ध जंग छेड़ देनी चाहिए । सबसे पहले तो ऐसी समितियाँ बनाई जानी चाहिए जो स्वयं कर्तव्य–परायण, ईमानदार, न्याय प्रियता में विश्वास रखती हो । इसके अतिरिक्त सामान्य विषमताओं को दूर करके सभी को समान सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए । आम जनता के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।

गाँधी जी के अनुसार यदि आप विश्व में परिवर्तन देखना चाहते है तो इसकी शुरुआत स्वयं से करनी होगी । यह एक ऐसी समस्या है जो कि देश को खोखला बना रही है । देश को बचाने के लिए समय रहते ही हम सभी को साथ मिलकर भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास करना चाहिए। जिस से हमारा देश भ्रष्टाचार मुक्त भारत बन सकेगा हमें हमारे देश के कानूनों को और अधिक कठोर करना होगा। भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए सभी संभव कार्यों को ऑनलाइन के माध्यम से किया जाए । इस पूरे तंत्र की सबसे छोटी और सबसे जरूरी कड़ी आम आदमी है।

आम आदमी अगर अपने आचरण में सुधार कर ले, तो आधी समस्या तो खुद ही सुलझ जाएगी। इसके साथ-साथ हमें बच्चों में सबसे पहले निष्ठा व देश-प्रेम की भावना को जगानी होगी। जिससे जब वह इस तंत्र में काम करें, तब वे भ्रष्टाचार के कार्यों से बच सके ।


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‘हमारे राष्ट्रीय पर्व’ पर निबंध लिखो।

ग्रीष्म अवकाश पर निबंध लिखें।

दिए गए वाक्यों में से विशेषण चुनकर उनके भेदों के नाम लिखिए- क) बाहर कुछ लोग खड़े हैं। ख) पाँच मीटर कपड़ा लाओ। ग) कुछ पक्षी पेड़ पर बैठे हैं। घ) वह किताब मेरी है। ङ) थोड़ी चीनी नीचे गिर गई।

विशेषण के नाम और भेद

क) बाहर कुछ लोग खड़े हैं।
विशेषण : कुछ
विशेष्य : लोग
विशेषण का भेद : परिमाणवाचक विशेषण
विशेषण का उपभेद : अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण

ख) पाँच मीटर कपड़ा लाओ।
विशेषण : पाँच मीटर
विशेष्य : कपड़ा
विशेषण का भेद : परिमाणवाचक विशेषण
विशेषण का उपभेद : निश्चित परिमाणवाचक विशेषण

ग) कुछ पक्षी पेड़ पर बैठे हैं।
विशेषण : कुछ
विशेष्य : पक्षी
विशेषण का भेद : संख्यावाचक विशेषण
विशेषण का उपभेद : अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण

घ) वह किताब मेरी है।
विशेषण : सार्वनमिक विशेषण
विशेष्य : किताब
विशेषण का भेद : संख्यावाचक विशेषण
विशेषण का उपभेद : अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण

ङ) थोड़ी चीनी नीचे गिर गई।
विशेषण : थोड़ी
विशेष्य : चीनी
विशेषण का भेद : परिमाणवाचक विशेषण
विशेषण का उपभेद : अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण


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“आज हमारे घर गाजर का स्वादिष्ट” हलवा बन रहा है।- रेखांकित अंश का पदबंध बताइए- A-संज्ञा पदबंध B-विशेषण पदबंध C-सर्वनाम पदबंध D-क्रिया विशेषण पदबंध

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‘भारत देश सीता-सावित्री का देश है।’ इस वाक्य में ‘सीता-सावित्री’ शब्द बोध कराते हैं- 1. व्यक्तिवाचक संज्ञा का 2. समूहवाचक संज्ञा का 3. जातिवाचक संज्ञा का 4. भाववाचक संज्ञा का

उचित विकल्प है :

3. जातिवाचक संज्ञा

स्पष्टीकरण :

‘भारत देश सीता सावित्री का देश है।’ इस वाक्य में सीता-सावित्री शब्द जातिवाचक संज्ञा का बोध कराते हैं। यहाँ पर सीता और सावित्री इन दो शब्दों को अलग-अलग प्रयोग किया जाए तो यह शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा होंगे क्योंकि यह किसी व्यक्ति विशेष का नाम है। लेकिन यहाँ पर सीता-सावित्री शब्द व्यक्ति के संदर्भ में नहीं प्रयुक्त किया गया है। बल्कि स्त्रियों की ऐसी जाति के संदर्भ में प्रयुक्त किया गया है, जो सीता-सावित्री जैसी हैं।

सीता-सावित्री मनुष्य की ऐसी जाति के रूप में प्रयुक्त किया गया है, जिसका आचरण सीता-सावित्री जैसा होता है। इसी कारण ‘भारत देश सीता सावित्री का देश है।’ इस वाक्य में जातिवाचक संज्ञा होगी।

जातिवाचक संज्ञा के माध्यम से एक संपूर्ण जाति का बोध कराया जाता है। यहाँ पर सीता-सावित्री के माध्यम से किसी व्यक्ति विशेष का नहीं पूरी बल्कि पूरी जाति का बोध हो रहा है। इसलिए यह जातिवाचक संज्ञा है। सीता सावित्री उस नारी के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है, जिसका आचरण शुद्ध हो, पवित्र हो। यहाँ पर सीता-सावित्री को उन सभी नारियों की जाति के संदर्भ में प्रयोग किया गया है, जिनका आचरण शुद्ध एवं पवित्र होता है। इसीलिए यह जातिवाचक संज्ञा होगी।


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निम्नलिखित वाक्यों से संज्ञा छाँटिए और उसके भेद लिखिए- वाक्य 1. अध्यापिका पढ़ाती हैं। 2. सच्चाई एक अच्छा गुण है। 3. हिमालय विशाल पर्वत है। 4. हीरा बहुमूल्य रत्न है। 5. भारतीय सेना बेहद कुशल सेना है। 6. जल ही जीवन है।

‘वे सुंदर मकानों में रहते हैं।’ इस वाक्य को ‘अपूर्ण वर्तमानकाल’ में बदले।

बेहतर भविष्य के लिए सिर्फ व्यवहारिक विषयों (गणित, विज्ञान, अर्थशास्त्र) की पढ़ाई होनी चाहिए। इस पर विचार लिखें।

विचार लेखन

बेहतर भविष्य के लिए सिर्फ व्यवहारिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, अर्थशास्त्र की पढ़ाई होनी चाहिए

बेहतर भविष्य के लिए सिर्फ व्यवहारिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, अर्थशास्त्र की पढ़ाई होनी चाहिए। इस विचार से हम पूरी तरह सहमत नहीं है, व्यवहारिक विषयों की पढ़ाई बेहद आवश्यक है और उनके महत्व को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन एक अच्छे नागरिक बनने के लिए सामाजिक और नैतिक विषयों की पढ़ाई भी आवश्यक है। किसी भी देश के एक अच्छे नागरिक के लिए उसमें संस्कार और नैतिकता होनी भी आवश्यक है ताकि वह अपने जिम्मेदारियों को समझ सके। पढ़ाई रोजगार उपयोगी होनी चाहिए, ये सही बात है, लेकिन एक निश्चित समय तक सामाजिक शिक्षा भी आवश्यक है ताकि छात्र के अंदर एक आदर्श नागरिक के गुण विकसित हो सकें।

सामाजिकता और व्यवहारिकता दोनों का समन्वय नागरिक के निर्माण में सही सही संयोजन होता है। हमारे विचार के अनुसार व्यवहारिक विषयों के साथा सामाजिक विषयों की पढ़ाई आवश्यक है। एक निश्चित समय तक साामाजिक और व्यवहारिक विषयों का संयुक्त पढ़ाई आवश्यक है। कम से कम 10वी कक्षा तक मिश्रित शिक्षा होनी चाहिए। 10वीं कक्षा के बाद व्यवहारिक शिक्षा के विषयों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।


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भाषा भिन्नता का आदर करना चाहिए। अपने विचार लिखिए।

किसी भी देश के विकास के लिए उसके नागरिक को स्वस्थ रहना आवश्यक है। जीवन में स्वस्थ रहने का क्या महत्व है? आप अपने स्वास्थ्य के लिए क्या-क्या उपाय करते हैं? अपने विचारों को प्रस्तुत के रूप में लिखिए।

आउटडोर खेलों का महत्व समझाते हुए माँ-बेटे के बीच संवाद लिखिए।

संवाद लेखन

आउटडोर खेल के महत्व को लेकर माँ-बेटे की बीच संवाद

 

माँ ⦂ बेटा, तुम फिर से टीवी के सामने बैठे हो? बाहर जाकर खेलते क्यों नहीं हो?

बेटा ⦂ माँ, बाहर धूप बहुत है आप मुझे टीवी देखने दो।

माँ ⦂ तुम समझते क्यों नहीं, हर समय या तो टीवी के आगे बैठे रहोगे या कम्प्यूटर-मोबाइल से चिपके रहोगे। तुम कोई भी आउटडोर खेल खेलने क्यों नहीं जाते?

बेटा ⦂ माँ खेल-खेल होता है आउटडोर हो या इंडोर।

माँ ⦂ नहीं बेटा, ऐसी बात नहीं। तुम जो घर पर बिस्तर पर बैठे या कुर्सी पर बैठे मोबाइल, कम्प्यूटर आदि पर जो गेम खेलते रहते हो उनसे तुम्हारे शरीर को कोई फायदा नहीं होता। जबकि तुम यदि बाहर जाकर खेल खेलोगे तो तुम्हारे शरीर को बहुत लाभ होगा।

बेटा ⦂ (आश्चर्य से) सच माँ? बाहर खेलने से क्या फायदे होते हैं?

माँ ⦂ हाँ, बिल्कुल। बाहर खेलने से तुम्हारा शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है। दौड़ने, कूदने, और खेलने से शरीर की सभी मांसपेशियां मजबूत होती हैं और तुम तंदुरुस्त रहते हो।

बेटा ⦂ अच्छा, और क्या?

माँ ⦂ इसके अलावा, जब तुम बाहर दोस्तों के साथ खेलते हो, तो तुम नई-नई चीजें सीखते हो, जैसे टीम वर्क, एक-दूसरे की मदद करना, और खेल के नियमों का पालन करना। यह सब चीजें तुम्हारे सामाजिक कौशल को बेहतर बनाती हैं।

बेटा ⦂ यह तो बहुत अच्छा है, माँ। और क्या?

माँ ⦂ बाहरी खेल खेलने से तुम्हारी मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होती है। ताजी हवा में खेलने से तुम्हारा दिमाग शांत होता है और तनाव कम होता है। इससे तुम्हारी एकाग्रता भी बढ़ती है, जो पढ़ाई में भी मदद करती है।

बेटा ⦂ तो माँ, कौन-कौन से खेल खेल सकता हूँ मैं?

माँ ⦂ बहुत सारे खेल हैं, बेटा। तुम क्रिकेट, फुटबॉल, बास्केटबॉल, बैडमिंटन जैसे खेल खेल सकते हो। ये सभी खेल तुम्हारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत अच्छे हैं।

बेटा ⦂ (उत्साहित होकर) माँ, अब मुझे समझ में आ गया। मैं अभी जाकर अपने दोस्तों के साथ खेलने जाता हूँ।

माँ ⦂ यह हुई ना बात, बेटा! जाओ और खूब खेलो। और हाँ, खेलते वक्त ध्यान रखना कि कोई चोट न लगे।

बेटा ⦂ ठीक है माँ, मैं ध्यान रखूँगा। धन्यवाद, माँ!

माँ ⦂ (मुस्कराते हुए) खुश रहो, बेटा। खेलो और स्वस्थ रहो।


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दिल्ली की गर्मी से राहत पाने के लिए किसी हिल स्टेशन जैसे शिमला, मनाली, कश्मीर आदि घूमने के बारे में माता-पिता और बेटी के बीच हुए संवाद को लिखिए।

मान लीजिए आपकी मुलाकात किसी दूसरे ग्रह के निवासी से हो जाती है। दूसरे ग्रह के निवासी के साथ हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

दिल्ली की गर्मी से राहत पाने के लिए किसी हिल स्टेशन जैसे शिमला, मनाली, कश्मीर आदि घूमने के बारे में माता-पिता और बेटी के बीच हुए संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

दिल्ली की गर्मी से राहत पाने के लिए हिल स्टेशन जाने के बारे में संवाद

 

माँ ⦂ बेटा, इस बार की गर्मी तो वाकई बहुत ज्यादा हो गई है।

बेटी ⦂ हाँ माँ, इस बार की गर्मी सच में असहनीय है। मुझे तो दिल्ली में रहना ही मुश्किल हो रहा है।

पिता ⦂ (हँसते हुए) तुम दोनों ठीक कह रहे हो। इस बार की गर्मी ने सबको परेशान कर दिया है।

बेटी ⦂ पापा, क्या हम इस बार कहीं घूमने जा सकते हैं? जैसे शिमला, मनाली या कश्मीर? वहाँ की ठंडी हवा में कुछ राहत मिलेगी।

माँ ⦂ (सहमत होते हुए) हाँ, यह अच्छा विचार है। हमें भी कुछ बदलाव की जरूरत है।

पिता ⦂ सही कहा, तुम्हारी माँ ने। चलो, हम योजना बनाते हैं। तुम दोनों शिमला और मनाली में से कौन-सा पसंद करोगे?

बेटी ⦂ (उत्साहित होकर) पापा, मुझे तो शिमला और मनाली दोनों ही पसंद हैं। लेकिन अगर चुनना हो, तो इस बार मनाली चलें? मैंने सुना है कि वहाँ के बर्फीले पहाड़ बहुत सुंदर हैं।

माँ ⦂ हाँ, मनाली भी बहुत अच्छा है। वहाँ के हिडिंबा मंदिर, सोलांग वैली और रोहतांग पास बहुत प्रसिद्ध हैं।

पिता ⦂ ठीक है, मनाली ही चलते हैं। मैं आज ही ऑनलाइन होटल बुक कर लेता हूँ और टिकट्स भी देख लेता हूँ।

बेटी ⦂ (खुश होकर) धन्यवाद, पापा! मुझे बहुत खुशी हो रही है। अब मैं जल्दी से अपनी पैकिंग कर लेती हूँ।

माँ ⦂ (मुस्कराते हुए) हाँ, बेटा, लेकिन अपने गर्म कपड़े और जरूरी चीजें रखना मत भूलना।

पिता ⦂ और हाँ, हम वहाँ जाकर ज्यादा घूम-फिर सकें, इसके लिए थोड़ी प्लानिंग भी कर लेते हैं।

बेटी ⦂ बिल्कुल पापा! मैं तो वहाँ की हर एक जगह देखना चाहती हूँ।

माँ ⦂ चलो, अब सब तैयारियाँ कर लेते हैं। मुझे भी मनाली में जाना बहुत अच्छा लगेगा।

पिता ⦂ तो फिर, मनाली की यात्रा के लिए तैयार हो जाओ। हम सब मिलकर इस गर्मी को ठंडी यादों में बदल देंगे!

बेटी ⦂ हुर्रे! मनाली, हम आ रहे हैं!

माँ ⦂ (मुस्कराते हुए) हाँ, अब मनाली की ठंडक में गर्मी को भूल जाएंगे।


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मान लीजिए आपकी मुलाकात किसी दूसरे ग्रह के निवासी से हो जाती है। दूसरे ग्रह के निवासी के साथ हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

अपनी सहेली के जन्मदिन पर जाने को लेकर माँ-बेटी के बीच संवाद लिखें।

‘काश मैंने समय का महत्व समझा होता तो आज मैं भी सफल होता।’ वाक्य को आधार बनाकर कोई घटना या कहानी लिखिए।

कहानी

काश मैंने समय का महत्व समझा होता तो आज मैं भी सफल होता।

 

समय इस संसार में सबसे बड़ा कीमती है। एक बार जो समय बीत गया, वह वापस नहीं लौटता है। सब कुछ वापस लौट सकता है, लेकिन समय वापस नहीं लौट सकता।इसलिए समय का महत्व समझना चाहिए। जीवन बहुत छोटा होता है और समय का एक एक पल कीमती होता है।

मैंने इस समय के महत्व को नहीं समझा और अपना समय व्यर्थ गवाँ दिया इसलिए जीवन में मैं वह सफलता प्राप्त नहीं कर पाया जो प्राप्त करनी चाहिए थी। बचपन में मेरे माता-पिता ने मुझे अच्छे स्कूल में दाखिला करा दिया था। मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही थी लेकिन फिर मेरी अपने मोहल्ले मे पड़ोस में ऐसे दोस्तों के साथ संगत हो गई, जिनके साथ रहकर पढ़ाई में कम ध्यान देने लगा और उन लोगों के साथ खेलकूद में अधिक ध्यान देने लगा।

मेरे माता-पिता मेरी बिगड़ती आदतों को देख कर मुझे मुझे समझाते रहते थे कि तुम बेकार के कामों में अपना समय मत गवाँओ। तुम्हारा अभी पढ़ाई का समय है। यदि तुमने यह समय गवा दिया तो तुम आगे बहुत पछताओगे। मैं उनकी बात नहीं सुनता था और कहता रहता था। नहीं मैं पढ़ाई पर भी ध्यान दे रहा हूँ जबकि मैं पढ़ाई पर ध्यान नहीं देता था और खेलकूद तथा बेकार की गतिविधियों में अपना समय गवाँता रहता था।

इसका परिणाम यह हुआ कि मैं पढ़ाई में पिछड़ता गया। दसवीं की परीक्षा में मेरे बहुत कम आए। उसके बाद भी मुझे अकल नही आयी। मेरे माता पिता नें मुझे बहुत समझाया और डांटा लेकिन मैं उनको सुधरने का वादा करके भी नही सुधरा और अपनी मनमर्जी करता रहा। उसके बाद 12वीं परीक्षा में भी मेरे बहुत कम आए।

मेरी कक्षा के लगभग सारे दोस्तों ने साइंस स्ट्रीम में दाखिला लिया जबकि मुझे कम अंक आने के कारण आर्ट में दाखिला लेना पड़ा। मैं अपने दोस्तों से पिछड़ चुका था। अब मुझे अपनी गलती का अहसास होने लगा था, इसलिए मैं तनावग्रस्त रहने लगा।

मैं ग्रेजुएशन पूरा नही कर पाया और मेरी पढ़ाई छूट गई। मुझे एक कंपनी में छोटी-मोटी नौकरी से संतोष करना पड़ा। जबकि मेरे सभी स्कूली दोस्त डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, आईएएस आदि बनकर अच्छा जीवन जी रहे हैं। यदि मैं अपने मोहल्ले के गलत दोस्तों की गलत संगत में नहीं पड़ता तो आज मैं भी सफल होता, लेकिन मैं वैसा नहीं बन पाया।

इसलिए समय बड़ा कीमती होता है। समय रहते उसकी पहचान कर लेनी चाहिए, नहीं तो बाद में पछताना पड़ता है।


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‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी को आप क्या शीर्षक देना चाहेंगे और क्यों? लिखिए।

शब्द शक्ति, अमिधा, लक्षणा, व्यंजना। (हिंदी व्याकरण)

शब्द शक्ति : हिंदी व्याकरण में शब्द शक्ति’ से तात्पर्य शब्दों की उस शक्ति से होता है जो शब्द के अर्थ का बोध कराती है। हर शब्द में एक अर्थ छिपा होता है। उस शब्द के मूल अर्थ का बोध कराने वाली शक्ति को शब्द शक्ति’ कहा जाता है। आइये शब्द शक्ति को समझते हैं…

शब्द शक्ति

शब्द शक्ति से तात्पर्य शब्द के अर्थ का भाव का बोध कराने वाली शब्द शक्ति से होता है। किसी भी शब्द या शब्द समूह में एक अर्थ छुपा होता है, वह मूल अर्थ का बोध कराने की शक्ति को शब्द शक्ति कहा जाता है। शब्द के अर्थ का बोध जिस भाव या रीत द्वारा कराया जाता है, वही उस शब्द की शक्ति है। शब्दों के अर्थ के बोध के अलग-अलग प्रकार होते हैं। उसी आधार पर शब्द शक्ति भी अलग-अलग प्रकार की होती है।

शब्द शक्ति के भेद

शब्दों के अनुसार शब्द के अर्थ तीन प्रकार के होते हैं।

  • वाच्यार्थ
  • लक्ष्यार्थ
  • व्यंग्यार्थ

इन्हीं तीन अर्थ के आधार पर शब्द शक्ति भी तीन प्रकार की होती है, जो कि इस प्रकार है :

✫  अमिधा
✫  लक्षणा
  व्यंजना

अभिधा

अमिधा शब्द शक्ति से तात्पर्य शब्द के उस अर्थ बोध से होता है, जो शब्द का सबसे प्रचलित एवं साधारण अर्थ होता है। किसी शब्द को सुनने या पढ़ने के बाद वाचक या श्रोता उस शब्द का जो सबसे प्रसिद्ध एवं प्रचलित अर्थ ग्रहण करें, वह ‘अमिधा’ शब्द शक्ति कहलाती है अमिधा शब्द शक्ति में शब्द के सांकेतिक अर्थ का बोध होता है।

अभिधा में शब्द शक्ति से युक्त शब्द के अर्थ में कोई विरोधाभास प्रकट नही होता और ना ही कोई कोई अवरोध नही होता और उसका सीधा अर्थ प्रकट होता है।

जैसे…
सुरेन्द्र खाना खा रहा है।

यहाँ पर सीधा स्पष्ट है कि सुरेन्द्र नाम का एक व्यक्ति खाना खा रहा है।

आशीष खेल रहा है।

यहाँ पर सीधा स्पष्ट है कि आशीष नाम का एक बालक खेल रहा है। इस तरह अमिधा शब्द शक्ति के माध्य से शब्द का सबसे सामान्य और सबसे प्रचलित अर्थ प्रकट होता है।

लक्षणा

‘लक्षणा’ शब्द शक्ति से तात्पर्य किसी शब्द की उस शक्ति से होता है, जिसमें वह शब्द अपना कोई सामान्य अर्थ प्रकट ना करके कोई विशिष्ट अर्थ प्रकट करता हो। लक्षणा शब्द शक्ति में इसमें शब्द की शक्ति लक्ष्यार्थ अर्थ होती है वो अपने मुख्य अर्थ को छोड़कर किसी अन्य विशेष अर्थ को प्रकट करती है।

अमिधा के अन्तर्गत सामान्य अर्थ में शब्द के जिस अर्थ को लिया जाता है, लक्षणा शब्द शक्ति के अंतर्गत उस अर्थ को किसी अन्य विशिष्ट अर्थ के संदर्भ में ग्रहण किया जाता है।

लक्षणा शब्द शक्ति में शब्दों का एक विशिष्ट अर्थ छिपा होता है, जो शब्द को सामान्य अर्थ से अलग विशिष्ट अर्थ प्रयुक्त करता है।

जैसे…
भारत जाग उठा।

यहाँ पर भारत से तात्पर्य एक व्यक्ति से नही बल्कि देश से है। भारत के जागने का विशिष्ट अर्थ है कि भारत देश में एक चेतना आयी।

दूसरा उदाहरण
हरीश बिल्कुल गधा है।

यहाँ पर हरीश नाम के व्यक्ति को गधा बताकर ये कहने का ये प्रयास नही किया जा रहा है कि हरीश गधा नामक जानवर है, बल्कि ये बताने का प्रयास किया जा रहा है कि गधा एक मूर्ख प्राणी माना जाता है इसलिये हरीश की संज्ञा गधे से करके हरीश को मूर्ख बताने का प्रयास किया गया है।

व्यंजना

व्यंजना शब्द शक्ति में शब्द का अर्थ ना तो वाच्यार्थ होता है और ना ही लक्ष्यार्थ होता है। यहाँ पर शब्द का अर्थ अलग-अलग संदर्भों में एक ही समय में अलग अलग हो सकता है। व्यंजना शक्ति में शब्द शक्ति में मुख्य और लक्ष्य अर्थ से अलग व्यंजन निहित होता है।

व्यंजना शब्द शक्ति से युक्त शब्द का अर्थ अलग अलग व्यक्ति के लिए अलग अलग हो सकता है। व्यंजना शब्द शक्ति में एक ही तरह के शब्दों से अलग-अलग व्यक्तियों के लिये अलग-अलग अर्थ प्रकट होते हों तो वहाँ ‘व्यंजना’ शब्द शक्ति होती है।

जैसे…
सुबह के पाँच बज गए।

सुबह के पाँच बजने का अलग-अलग लोगों के लिए अलग अर्थ होगा।

  • किसी घरेलू महिला के लिए इसका अर्थ घर के कामकाज को शुरु करना है।
  • किसी कामकाजी पुरुष या महिला के लिये इसका अर्थ अपने दफ्तर के लिए तैयार होने से है।
  • किसी छात्र के लिए इसका अर्थ विद्यालय जाने के लिए तैयार होने से है।
  • रात की पाली के किसी चौकीदार या किसी कारखाने के श्रमिक के लिए इसका अर्थ ड्यूटी समाप्त होने से है।

 


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दिए गए पदयांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। स्वतंत्रता की लड़ी लड़ाई। तुमने हमको मुक्ति दिलाई, हुई दासता दूर देश की। आया उत्तम-नूतन युग है। बापू ! तुमको कोटि नमन है। सत्य अहिंसा को अपनाया, प्रेम-एकता का गुण गाया। नैतिकता का पंथनछोड़ा, रखा पवित्र साध्य-साधन है। बापू! तुमको कोटि नमन है। तुमने किया समर्पित तन-मन, तुमने किया समर्पित जीवन। गए जेल आजादी के हित. किया तिर कष्ट-सहन है। बापू। तुमको कोटि नमन है। यह भारत है मणी तुम्हारा, तुम्हें न भूलेगा जग सारा। तुमसे सतत प्रेरणा लेकर, हो सकता प्रसन्न जन-जन है। बापू तुमको कोटि नमन है।। 1. कवि बापू के प्रति समर्पित क्यों है? 2. गांधी जी जेल क्यों गए थे? 3. बापू ने कौन से मार्ग पर चलने का प्रण लिया? 4. भारत देश गांधी का ऋणी क्यों है? 5. गांधी जी से क्या प्रेरणा ली जा सकती है?

स्वतंत्रता की लड़ी लड़ाई।
तुमने हमको मुक्ति दिलाई,
हुई दासता दूर देश की।
आया उत्तम-नूतन युग है।
बापू ! तुमको कोटि नमन है।
सत्य अहिंसा को अपनाया,
प्रेम-एकता का गुण गाया।
नैतिकता का पंथनछोड़ा,
रखा पवित्र साध्य-साधन है।
बापू! तुमको कोटि नमन है।
तुमने किया समर्पित तन-मन,
तुमने किया समर्पित जीवन।
गए जेल आजादी के हित.
किया तिर कष्ट-सहन है।
बापू। तुमको कोटि नमन है।
यह भारत है मणी तुम्हारा,
तुम्हें न भूलेगा जग सारा।
तुमसे सतत प्रेरणा लेकर,
हो सकता प्रसन्न जन-जन है।
बापू तुमको कोटि नमन है।।

1. कवि बापू के प्रति समर्पित क्यों है?

उत्तर : कवि बापू के प्रति समर्पित है क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और हमें दासता से मुक्ति दिलाई। उन्होंने सत्य और अहिंसा का पालन किया और प्रेम, एकता, और नैतिकता के गुण सिखाए।

2. गांधी जी जेल क्यों गए थे?

उत्तर : गांधी जी आजादी के हित के लिए जेल गए थे। उन्होंने तन-मन से समर्पित होकर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और कष्ट सहन किया।

3. बापू ने कौन से मार्ग पर चलने का प्रण लिया?

उत्तर : बापू ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का प्रण लिया। उन्होंने नैतिकता और प्रेम-एकता को अपनाया और इन्हें अपने जीवन में स्थान दिया।

4. भारत देश गांधी का ऋणी क्यों है?

उत्तर : भारत देश गांधी का ऋणी है क्योंकि उन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपने जीवन का समर्पण किया। उन्होंने देश को दासता से मुक्त कराया और उत्तम-नूतन युग की शुरुआत की।

5. गांधी जी से क्या प्रेरणा ली जा सकती है?

उत्तर : गांंधी जी से सत्य, अहिंसा, नैतिकता, प्रेम और एकता की प्रेरणा ली जा सकती है। उनके जीवन से यह सीख मिलती है कि किस प्रकार से संघर्ष और त्याग से महान उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।


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बड़े भाई साहब : प्रेमचंद (कक्षा-10 पाठ-8 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

बड़े भाई साहब : प्रेमचंद (कक्षा-10 पाठ-8 हिंदी स्पर्श 2)

BADE BHAISAHAB : Premchand (Class-10 Chapter-8 Hindi Sparsh 2)


बड़े भाई साहब : प्रेमचंद

पाठ के बारे में…

‘बड़े भाई साहब’ नामक पाठ मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक रोचक कहानी है, जिसमें एक बड़े भाई साहब हैं, जो हमेशा अपने छोटे भाई की पढ़ाई के विषय में सोचते रहते हैं। हालाँकि बड़े भाई साहब खुद स्वयं पढ़ाई में इतने अच्छे नहीं थे, लेकिन छोटे भाई के प्रति उनकी चिंता बड़े भाई होने के नाते उनके कर्तव्य का बोध कराती है। छोटे भाई से उम्र में केवल 5 साल बड़ा होने के कारण उनसे बड़ी-बड़ी अपेक्षा की जाती हैं। इसी कारण बड़ा होने के नाते वे खुद भी छोटे भाई के सामने  अपना बड़प्पन बनाए रखते हैं और छोटे भाई को किसी गलत राह पर चलने से रोकते-टोकते रहते हैं। बड़े भाई बने रहने के चक्कर में उनका उनका बचपन भी तिरोहित हो गया है, इस पाठ के माध्यम से लेखक ने यही बताने का प्रयत्न किया है।

लेखक के बारे में…

मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य का गौरव माने जाते हैं। उनका असली नाम धनपतराय था। उनका जन्म उत्तरप्रदेश के बनारस के लमही गाँव में हुआ था। वे हिंदी में मुंशी प्रेमचंद के नाम से और उर्दू में नवाबराय नाम से लिखते थे। ब्रिटिश शासन के समय उनका उर्दू में रचित कहानी संग्रह ‘सोज़े वतन’  अंग्रेजों की आँखों की किरकिरी बन गया था। उन्होंने ‘हंस’ नामक उन्होंने पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया और हंस के साथ-साथ ‘माधुरी’ नामक प्रमुख पत्रिका का संपादन किया।

उनके प्रसिद्ध उपन्यास गोदान, सेवासदन, निर्मला, रंगभूमि, मंगलसूत्र, कर्मभूमि, सेवाश्रम, गबन आदि के नाम प्रमुख हैं। बड़े भाई साहब उनके द्वारा रचित कहानियों में से एक है। इसके अलावा उन्होंने सैकड़ों कहानियों की रचना की जो एक से बढ़कर एक हैं। उनका निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ।



हल प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए।

प्रश्न-1 : कथा नायक की रूचि किन कार्यों में थी ?

उत्तर : कथा नायक की रुचि मुख्यतः खेलकूद का कार्य करने, कंकरिया उछालने, मैदानों की हरियाली का आनंद लेने, कनकौवे उड़ने यानी पतंगबाजी करने , दोस्तों से गपबाजी करने, दोस्तों के साथ कागज की तितलियां बनाकर उड़ाने, फाटक या चारदीवारी पर चढ़कर उछलने कूदने तथा फाटक को गाड़ी जैसा बनाकर उस पर झूला झूलने, सदा दोस्तों के साथ कई तरह की धमाचौकड़ी और मस्ती करने में होती थी। कथावाचक का मन पढ़ाई में बिल्कुल भी नहीं लगता था।

प्रश्न-2 : बड़े भाई छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?

उत्तर : बड़े भाई साहब छोटे भाई से हमेशा यही सवाल पूछते थे, कहाँ थे? जब भी छोटा भाई बाहर से घूम-फिर कर, दोस्तों के साथ गपबाजी, मस्ती करके, धमाचौकड़ी मचा कर घर वापस लौटा तो बड़े भाई साहब का छोटे भाई से सबसे पहला सवाल यही होता था, कहाँ थे?

प्रश्न-3 : दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर : दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के विवाह में यह परिवर्तन आया कि अब अधिक स्वतंत्र और स्वच्छंद हो गया था, क्योंकि दूसरी बार पास होने पर बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को डांटना, रोकना-टोकना कम कर दिया था। बड़े भाई साहब ने सहनशील रवैया अपना लिया था और वह छोटे भाई से हर घड़ी, कहाँ थे? नहीं पूछते थे और ना ही उसे बात-बात पर रोकते-टोकते थे। इस कारण छोटा भाई आजाद सा हो गया। अब  छोटा भाई अधिक मनमानी करने लगा था और उसे कनकौवे उड़ाने यानि पतंगबाजी करने का नया शौक पैदा हो गया था। अब वह खेलने कूदने में अधिक समय बिताने लगा था।

प्रश्न-4 : बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?

उत्तर : बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में पाँच साल बड़े थे और बड़े भाई साहब नवीं कक्षा में पढ़ते थे।बड़े  साहब छोटे भाई यानी कथा वाचक से मात्र पाँच साल बड़े होने के बावजूद उसे केवल तीन कक्षा तक का ही आगे थे। जब छोटा भाई पाँचवी कक्षा में पढ़ता था तो बड़े भाई साहब के उस वक्त नवीं कक्षा में पढ़ते थे। बाद में बड़े भाई साहब फेल होते गए और छोटे भाई और बड़े भाई के बीच का अंतर मात्र एक कक्षा का रह गया था।

प्रश्न-5 : बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?

उत्तर : बड़े भाई साहब अपने दिमाग को आराम देने के लिए अनेक तरह के यतन-जतन करते रहते थे, कभी वह किताब के हाशियों पर चिड़ियों, बिल्लियों, कुत्तों आदि के चित्र आदि बनाते रहते थे। इसके अलावा वे कापी में एक ही शब्द को कई बार लिखने लगते थे और कभी-कभी तो वे बेमेल शब्द को लिखते रहते थे। कभी-कभी वह सुंदर शायरी भी लिखा करते थे। इस तरह बड़े भाई साहब अपने दिमाग को आराम देने के लिए तरह-तरह के प्रयोजन अपनाते थे।


लिखित

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए।

प्रश्न-1 : छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?

उत्तर : छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम टेबल बनाते समय यह सोचा था कि वह अब खूब मन लगाकर पढ़ाई करेगा और अपने बड़े भाई साहब को शिकायत का एक भी मौका नहीं देगा। इसी कारण छोटे भाई ने टाइम टेबल बनाते समय रात ग्यारह बजे तक का टाइम टेबल बना लिया था और हर विषय के लिए अलग समय निर्धारित कर लिया था। लेकिन छोटे भाई ने टाइम टेबल में खेल के लिए कोई समय नहीं दिया था, इसी कारण उसका ध्यान हर समय खेल के मैदान बाहर की धमाचौकड़ी, हवा के हल्के-हल्के झोंके, फुटबॉल आदि खेलना, कबड्डी, वॉलीबाल जैसे खेल खेलना आदि गतिविधियों में ही लगा रहता था, इसी कारण वह अपने पढ़ाई के टाइम टेबल का पालन नहीं कर पाया।

प्रश्न-2 : एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटे भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर : एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई वापस घर आया तो बड़े भाई के सामने पड़ने पर बड़े भाई उस पर बेहद के क्रोधित हुए। उन्होंने यह जानकर कि छोटा भाई गुल्ली-डंडा खेल कर आया है, उसे बहुत डांटा। उन्होंने छोटे भाई से अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा और गुल्ली-डंडा खेल की बहुत आलोचना की। उन्होंने गुल्ली-डंडा खेल की बुराइयां बताते हुए कहा कि यह खेल खेलने से तुम्हारा भविष्य चौपट हो जाएगा। उन्होंने छोटे भाई को यह भी ताना दिया कि वो कक्षा में अव्वल आ गया है, इसी कारण से अहंकार हो गया है और अहंकार तो रावण का भी नहीं रहता और सब के अहंकार का एक न एक दिन अंत होता ही है। इसीलिए उसे अपने अव्वल आने पर अहंकार  नहीं करना चाहिए और अपनी पढ़ाई पर अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए।

प्रश्न-3 : बड़े भाई को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?

उत्तर : बड़े भाई को अपने मन की इच्छाएं इसलिए दबानी पड़ती थीं, क्योंकि वह छोटे भाई से पाँच साल उम्र में बड़े थे। दोनों भाई एक हॉस्टल में रहते थे, इस कारण बड़े भाई होने के नाते वह छोटे भाई के अभिभावक के रूप में के। अभिभावक की भूमिका निभाने के कारण उन्होंने छोटे भाई के सामने अपना बड़प्पन प्रदर्शित करना होता था। वे ऐसा कोई भी गलत कार्य करना चाहते थे, कि जिसे देखकर छोटा भाई उनका अनुकरण करें और अपनी पढ़ाई से अपना ध्यान हटा ले। इसीलिए अपने स्वभाव का वैसा ही प्रदर्शन करते थे, जैसे बड़े लोग अपनी छोटो के सामने करते है। उनका सोचना कि यदि गलत रास्ते पर चलेंगे, तो छोटा की जिम्मेदारी कौन संभालेगा। बड़े भाई साहब का भी मन बाल सुलभ हरकतों को करने का करता था। उनका मन भी मौज मस्ती करने पतंग उड़ाने का करता था, लेकिन छोटे भाई के प्रति अपने नैतिक कर्तव्य बोध के कारण वह अपने मन की इच्छाओं को दबा लेते थे।

प्रश्न-4 : बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों?

उत्तर : बड़े भाई साहब छोटे भाई को हमेशा पढ़ाई में अधिक से अधिक ध्यान देने की सलाह देते रहते थे। वे चाहते थे कि छोटा भाई हर समय पढ़ाई करें और अच्छे अंको से पास हो। वे यह नहीं चाहते थे कि छोटा भाई खेलकूद में अधिक समय बिताये और उसका ध्यान पढ़ाई हटे। छोटे भाई को अंग्रेजी विषय पर अधिक ध्यान देने के लिए भी सलाह देते रहते थे, वह कहते थे कि अंग्रेजी विषय को पढ़ने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है और यदि मेहनत नहीं करोगे तो तुम उसी दर्जे में रह जाओगे, पास नहीं हो पाओगे। इस तरह छोटे भाई को हमेशा पढ़ाई पर अधिक से अधिक ध्यान देने की सलाह और खेलकूद में से दूर रहने की सलाह देते रहते थे।

प्रश्न-5 : छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया?

उत्तर : छोटे भाई ने बड़े भाई के नरम व्यवहार का अनुचित फायदा उठाया। जब छोटा भाई दूसरी बार अपनी कक्षा में अव्वल आ गया तो बड़े भाई ने उसे रोकना-टोकना कम कर दिया था। बड़े भाई ने छोटे भाई के प्रति अब अधिक सहनशील रवैया अपना लिया था और वो ज्यादा रोक-टोक नही पाते थे। छोटे भाई के अव्वल आने के कारण  छोटे भाई का आत्मविश्वास बढ़ गया था और बड़े भाई का रौब छोटे भाई पर पहले जैसा नहीं रहा था। इसी कारण छोटे भाई ने उसका अनुचित लाभ उठाना शुरू कर दिया। अब वह  अधिक स्वतंत्र और स्वच्छंद हो गया था। वो अधिक मनमानी करने लगा था और खेलकूद में अधिक ध्यान देने लगा था। अब उसे पतंग उड़ाने का नया शौक पैदा हो गया था। छोटे भाई को मन में यह सोच आ गई थी कि जिस तरह अपनी कक्षा में अव्वल आ गया है, वैसे ही अगली कक्षा में आ जायेगा।


निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए।

प्रश्न-1 : बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए ।

उत्तर : बड़े भाई साहब की डांट-फटकार अगर छोटे भाई को ना मिली होती तो छोटा भाई कक्षा में अव्वल आ ही नहीं आ पाता। क्योंकि छोटा भाई पढ़ने के साथ-साथ खेलकूद पर भी बहुत ध्यान देता था और उसका मन पढ़ाई से अधिक खेलकूद में लगता था। हालांकि यह बात अलग थी कि वह पढ़ाई में होशियार था, लेकिन खेलकूद की तरफ उसका आकर्षण निरंतर बढ़ते रहने के कारण यदि बड़े भाई साहब उसे रोकते-टोकते नहीं तो वह खेलकूद की ओर अधिक आकर्षित होता जाता और पढ़ाई की तरफ से उसका ध्यान कम हो सकता था।

बड़े भाई साहब की डांट फटकार और नसीहत के कारण छोटा भाई थोड़ा सचेत हो गया था। उसे बड़े भाई साहब का भय लगा रहता था, इसी कारण वह ध्यान पूर्वक पढ़ाई करने लगा था। यदि बड़े भाई साहब उसे इस तरह डांटते-फटकारते पर करते नहीं, तो हो सकता है कि वह पढ़ाई से अधिक खेलकूद की तरफ ध्यान देता और तब वह परीक्षा में अव्वल आ ही नहीं पाता।

प्रश्न-2 :  बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?

उत्तर : बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ अनुभवों से आती है, केवल किताबी ज्ञान से नहीं आती है। बड़े भाई साहब जीवन के व्यावहारिक अनुभवों को किताबी ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। उनके अनुसार किताबी ज्ञान प्राप्त कर डिग्रियां हासिल करने से आदमी विद्वान नहीं बन जाता। जब तक उसे जीवन के वास्तविक एवं व्यवहारिक रूप का अनुभव नहीं होगा, तब तक वह जीवन में सफल नहीं हो सकता। किताबी ज्ञान द्वारा शिक्षा प्राप्त करने के अलावा जीवन के व्यवहारिक रूप को भी समझना आवश्यक होता है। दोनों के मिले-जुले रूप से ही जीवन की समझ आती है। इसीलिए बड़े भाई साहब के अनुसार किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यहारिक ज्ञान भी प्राप्त करते रहना चाहिए। तब ही  शिक्षा का सही अर्थ सार्थक होगा। किताबी ज्ञान के अलावा जीवन में सदगुणों का विकास भी जरूरी है, जो मनुष्य के चरित्र का निर्माण करते हैं।

प्रश्न-3 : छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?

उत्तर : छोटे भाई के मन में बड़े भाई के प्रति श्रद्धा इसलिए उत्पन्न हुई, क्योंकि जब वह अपनी परीक्षा में दूसरी बार भी अव्वल आया तो उसे यह एहसास हो गया था कि उसकी सफलता के पीछे बड़े भाई साहब का ही हाथ है। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को बेहद समझाया था कि पढ़ाई में भले ही अच्छा हो गया हो और उस उनसे अधिक अंक लाता हो, लेकिन जीवन के अनुभवों में वह अभी भी कच्चा है क्योंकि वह उनसे छोटा है। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को जीवन संबंधित अनेक नसीहतें देते हुए समझाया कि जीवन में अपने से बड़ों का अलग महत्व होता है। वह छोटों का विशेष ध्यान रखते हैं और किसी भी तरह की विपत्ति आने पर उसको संभाल लेते हैं, जिससे उनके छोटे बेफिक्र रहते हैं।

बड़े भाई साहब ने समझाया कि उनका काम भी यही है कि वह अपने छोटे भाई का ध्यान रखें और उसे किसी भी तरह की परेशानी ना पैदा होने दें। बड़े भाई साहब ने उसे आने वाली कक्षा की पढ़ाई की कठिनाइयों के बारे में भी बताया और कहा कि उसकी भलाई के कारण ही वह अपनी इच्छाओं का दमन करते हैं और उस पर विशेष ध्यान देते हैं। बड़े भाई की ये सारी  नसीहत और बातें सुनकर छोटे भाई की आँखें खुल गई और उसे एहसास हो गया कि यदि परीक्षा में अव्वल आ रहा है, तो इसमें उसके बड़े भाई साहब का भी योगदान है, क्योंकि उन्होंने डांटते-फटकारते हुए उसे गलत राह पर चलने से हमेशा रोका। इन्हीं सब कारणों से छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई।

प्रश्न-4 : बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?

उत्तर : बड़े भाई साहब की स्वभावगत विशेषताएं इस प्रकार हैं…

आदर्श भाई : बड़े भाई साहब का सबसे प्रमुख स्वभाव यह है कि वह एक आदर्श भाई थे, और उसी तरह का व्यवहार भी करते हैं। उन्हें अपने छोटे भाई के हित की चिंता हमेशा लगी रहती थी। इसी कारण वे अपने छोटे भाई को किसी भी तरह के गलत राह पर भटकने से रोकते रहते थे। एक बड़े भाई का जो कर्तव्य होता है वह सभी कर्तव्य निभाते थे।
संस्कारी : बड़े भाई साहब बड़ों का आदर करने वाले एक संस्कार व्यक्ति थे। वह अपने बड़ों, अपने माता-पिता तथा गुरुजनों सभी का सम्मान करते थे। इसी कारण वह अपने छोटे भाई को भी बड़ों का सम्मान करने की सीख दिया करते हैं।
संयमी और कर्तव्य परायण : बड़े भाई साहब बेहद संयमित स्वभाव के व्यक्ति थे। छोटे भाई को मौज मस्ती करते देखकर और घूमते देखकर उनका मन भी वैसा ही सब करने का करता था, लेकिन वह स्वयं पर संयम स्थापित करके रखते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि यदि वह भी अपने छोटे भाई की तरह आचरण करने लंगेगे हो जाएंगे तो फिर छोटे भाई को कौन संभालेगा। यह उनका अपने छोटे भाई के प्रति कर्तव्य को भी प्रकट करता है।
परिश्रमी : बड़े भाई साहब खासे परिश्रमी थे और वे हमेशा परिश्रम को महत्व देते थे। हालाँकि वे पढ़ाई में कमजोर थे, लेकिन वह पढ़ाई में परिश्रम पूरा करते थे। उन्हें चित्रकारी करने का बेहद शौक था। वे आराम के क्षणों में जानवरों के चित्र बनाते थे।
अनुभवी एवं समझदार : बड़े भाई साहब छोटे भाई से केवल 5 वर्ष अधिक थे, लेकिन उन्हें जीवन के अनुभवों की अधिक समझ थी। अपने छोटे भाई के सामने ऐसी बातें करते थे और ऐसा आचरण प्रदर्शित करते थे जैसे कोई घर का बड़ी उम्र का व्यक्ति करता है।  उन्हें जीवन के अनुभवों की समझ अपनी उम्र से अधिक और छोटे भाई को भी जीवन के व्यहारिक अनुभवों के बारे में नसीहतें देते रहते थे।

प्रश्न-5 : बड़े भाई साहब ने ज़िंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्वपूर्ण कहा है?

उत्तर : बड़े भाईसाहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को अधिक महत्वपूर्ण कहा है। बड़े भाई साहब जिंदगी के अनुभव को अधिक महत्व देते थे। उनका मानना था कि ज्यों-ज्यों मनुष्य की उम्र बीत जाती है, उसे जिंदगी के अधिक अनुभव प्राप्त होने लगते हैं। वह अच्छे और बुरे के भेद को समझने लगता है। उनका कहना था कि बड़ों के पास भले ही बड़ी-बड़ी डिग्रियां ना हो लेकिन उनके पास जिंदगी के अनुभवों की कोई कमी नहीं होती है। बड़े भाई साहब का मानना था जिंदगी जीने के लिए जिंदगी के व्यावहारिक अनुभव महत्वपूर्ण होते हैं। भले ही हम एम. ए. की डिग्री हासिल कर ले, लेकिन घर जाने के लिए जिंदगी का व्यावहारिक अनुभव होना आवश्यक होता है। उनके अनुसार जिंदगी के अनुभव को पुस्तक किताबी ज्ञान से प्राप्त नहीं किया जा सकता। उसके लिए जीवन के व्यवहारिक रूप को समझना आवश्यक होता है। केवल किताबों में सिर खपाने की जगह जिंदगी के व्यावहारिक कार्यों को भी करते रहना चाहिए ताकि जिंदगी व्यावहारिक अनुभव प्राप्त हो सके।

प्रश्न-6 : बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि −
(क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
(ख) भाई साहब को ज़िंदगी का अच्छा अनुभव है।
(ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
(घ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।

उत्तर : 
(क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
पाठ के अंश : फिर भी मैं भाई साहब का आदर करता था और उनकी नजर बचाकर कनकौए उड़ाता था। मांझा देना, कन्ने बांधने, पतंग टूर्नामेंट की तैयारियां आदि समस्याएं सब गुप्त रूप से हल की जाती थी। मैं भाई साहब को यह संदेह ना करने देना चाहता था कि उनका सम्मान और लिहाज मेरी नजरों में कम हो गया है।

(ख) भाई साहब को ज़िंदगी का अच्छा अनुभव है।
पाठ के अंश : मैं तुमसे 5 साल बड़ा हूं और हमेशा रहूंगा। मुझे दुनिया का और जिंदगी का जो तजुर्बा है, तुम उसकी बराबरी नहीं कर सकते, चाहे तुम एम. ए., एम. फिल् और डी. लिट् ही क्यों ना हो जाओ। समझ किताबें पढ़ने से नही आती–दुनिया देखने से आती है।

(ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
पाठ के अंश : संयोग से उसी वक्त एक कटा हुआ कनकौवा हमारे ऊपर से गुजरा। उसकी डोर लटक रही थी। लड़कों का एक गोल पीछे पीछे दौड़ा चला आता था। भाई साहब लंबे है। उछलकर उसकी डोर पकड़ ली और बेतहाशा हॉस्टल की तरफ दौड़ लगे, मैं पीछे पीछे दौड़ रहा था।

(घ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।
पाठ के अंश : तो भाईजान, यह गरूर दिल से निकाल डालो कि तुम मेरे समीप आ गए हो और अब स्वतंत्र हो। मेरे रहते तुम बेराह ना चलने पाओगे। अगर तुम जो ना मानोगे तो मैं थप्पड़ देखा कर इसका प्रयोग भी कर सकता हूँ। मैं जानता हूँ, तुम्हें मेरी बातें जहर लग रही है।


(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न-1 : इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास।

उत्तर : बड़े भाई साहब के अनुसार केवल इम्तिहान पास कर लेना ही बुद्धि का विकास नहीं होता महत्वपूर्ण नहीं होता यानी केवल परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाने से ही जीवन में सफलता नहीं मिल जाती। जीवन में व्यवहारिक ज्ञान का भी अलग महत्व होता है। जीवन के अलग-अलग पहलुओं को व्यावहारिक रूप से समझने से भी बुद्धि का विकास होता है। जीवन व्यावहारिक अनुभवों के आधार पर ही जिया जाता है। अनपढ़ लोग भी अपना जीवन किसी ना किसी तरह जीते ही हैं। इसलिए केवल इम्तिहान पास कर लेना कोई बड़ी बात नहीं बल्कि इम्तिहान पास करने के साथ-साथ जीवन के व्यवहारिक अनुभव को हासिल करने से ही बुद्धि का विकास होता है।

प्रश्न-2 : फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुडकियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था।

लेखक के अनुसार जिस तरह जीवन में अनेक तरह की संकट, दुख, कष्ट आदि आने के बावजूद मनुष्य जीवन के मोह-माया और सांसारिक भोग विलास के आकर्षण में उलझा ही रहता है। वह उनके प्रति महू छोड़ नहीं पाता, उसी तरह छोटा भाई भी अपने बड़े भाई से रोज डाँट-डपर सुनकर, तरह-तरह के ताने-उलाहने सुनकर भी खेलकूद के प्रति अपने मोह का त्याग नहीं कर पाता था। यही लेखक ने स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है।

प्रश्न-3 : बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायेदार बने?

उत्तर : बड़े भाई साहब के अनुसार जब तक मकान की नींव मजबूत नहीं होगी उस पर ऊँचा मकान कैसे बन सकता है। अर्थात एक मजबूत भवन के निर्माण के लिए उसकी नींव को उतना ही अधिक मजबूत होना आवश्यक है। यहाँ पर बड़े भाई साहब ने मनुष्य के जीवन के विकास के संदर्भ में यह बात कही है । अच्छी शिक्षा और जीवन का व्यावहारिक अनुभव एक बुनियाद की तरह काम करता है। सुनहरे भविष्य के लिए अच्छी शिक्षा, अच्छे संस्कार और जीवन का व्यावहारिक अनुभव आवश्यक है।

प्रश्न-4 : आँखे आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।

उत्तर : इस पंक्ति में लेखक ने छोटे भाई द्वारा पतंग लूटे जाने के प्रसंग का वर्णन किया है। लेखक जब पतंग लूट रहा था तो उसकी आँखें आसमान की तरफ थी और उसका मन पतंग में ही उलझा हुआ था। उसे पतंग एक दिव्य आत्मा की तरह दिखाई दे रही थी और आसमान से धीरे धीरे लहराकर मंद-मंद गति से धरती की और आती हुई पतंग ऐसे लग रही थी कि जैसे कोई आत्मा एकदम विरक्त भाव से पृथ्वी पर दूसरा जन्म लेने हेतु आ रही हो।


भाषा अध्ययन

प्रश्न-1 : निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए।
नसीहत, रोष, आज़ादी, राजा, ताज्जुब

उत्तर : दिए गए शब्दों के पर्यायवाची इस प्रकार होंगे…
नसीहत : सीख, सलाह
रोष : क्रोध, गुस्सा
आज़ादी : स्वतंत्रता, मुक्त
राजा : नृप, नरेश
ताज्जुब : आश्चर्य, हैरानी

प्रश्न-2 : प्रेमचंद की भाषा बहुत पैनी और मुहावरेदार है। इसीलिए इनकी कहानियाँ रोचक और प्रभावपूर्ण होती हैं। इस कहानी में आप देखेंगे कि हर अनुच्छेद में दो-तीन मुहावरों का प्रयोग किया गया है। उदाहरणतः इन वाक्यों को देखिए और ध्यान से पढ़िए-

निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
सिर पर नंगी तलवार लटकना, आड़े हाथों लेना, अंधे के हाथ बटेर लगना, लोहे के चने चबाना, दाँतों पसीना आना, ऐरागैरा नत्थू-खैरा।

उत्तर : मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग इस प्रकार होगा…

1. सिर पर नंगी तलवार लटकना
वाक्य प्रयोग : उसका प्रमोशन रोक दिया गया है और अब उसके सिर पर नंगी तलवार लटक रही है, क्योंकि कंपनी उसे निकालने का सोच रही है।

2. आड़े हाथों लेना
वाक्य प्रयोग : शिक्षक ने देर से आने वाले छात्रों को आड़े हाथों लिया और उन्हें सख्त चेतावनी दी।

3. अंधे के हाथ बटेर लगना
वाक्य प्रयोग : उसकी लॉटरी में इतनी बड़ी रकम निकल आई, यह तो अंधे के हाथ बटेर लगने जैसा ही है।

4. लोहे के चने चबाना
वाक्य प्रयोग : नए खिलाड़ी को टीम में अपनी जगह बनाने के लिए वाकई लोहे के चने चबाने पड़े।

5. दाँतों पसीना आना
वाक्य प्रयोग : इस कठिन गणित के सवाल को हल करते हुए मेरे दाँतों पसीना आ गया।

6. ऐरागैरा नत्थू-खैरा
वाक्य प्रयोग : इस महत्वपूर्ण बैठक में ऐरागैरा नत्थू-खैरा को बुलाना सही नहीं होगा, केवल संबंधित विशेषज्ञ ही शामिल हों।

प्रश्न-3 : निम्नलिखित तत्सम, तद्भव, देशी, आगत शब्दों को दिए गए उदाहरणों के आधार पर छाँटकर लिखिए।
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब Q3
तालीम, जल्दबाज़ी, पुख्ता, हाशिया, चेष्टा, जमात, हर्फ़, सूक्ति-बाण, जानलेवा, आँखफोड़, घुड़कियाँ, आधिपत्य, पन्ना, मेला-तमाशी, मसलन, स्पेशल, स्कीम, फटकार, प्रात:काल, विद्वान, निपुण, भाई साहब, अवहेलना, टाइम-टेबिल

उत्तर : सभी शब्दों की छंटनी नीचे टेबल में दी गई है।

तत्समतद्भवदेशजआगत
चेष्टाजानलेवाघुड़कियाँतालीम (उर्दू)
सूक्ति-बाणआँखफोड़फटकारजल्दबाज़ी (उर्दू)
अधिपत्यपन्नापुख्ता (उर्दू)
मेलाभाई साहबहाशिया (उर्दू)
प्रातःकालहर्फ़ (उर्दू)
विद्वानजमात (उर्दू)
निपुणस्कीम (अंग्रेजी)
अवहेलनास्पेशल (अंग्रेजी)
टाइम-टेबिल (अंग्रेजी)

 

प्रश्न-4 : क्रियाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-सकर्मक और अकर्मक
सकर्मक क्रिया- वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं;
जैसे- शीला ने सेब खाया।
मोहन पानी पी रहा है।
अकर्मक क्रिया- वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा नहीं होती, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं;
जैसे- शीला हँसती है।
बच्चा रो रहा है।
नीचे दिए वाक्यों में कौन-सी क्रिया है- सकर्मक या अकर्मक? लिखिए-
  1. उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया।
  2. फिर चोरों-सी जीवन कटने लगा।
  3. शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा।
  4. मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता।
  5. समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो।
  6. मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था।

उत्तर :  क्रियाएं इस प्रकार होंगी..

  1. उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया। — सकर्मक क्रिया
  2. फिर चोरों-सा जीवन कटने लगा। — सकर्मक क्रिया
  3. शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा। — सकर्मक क्रिया
  4. मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता। — सकर्मक क्रिया
  5. समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो। — सकर्मक क्रिया
  6. मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था। — अकर्मक क्रिया
प्रश्न-5 : ‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए-
विचार, इतिहास, संसार, दिन, नीति, प्रयोग, अधिकार
उत्तर : इस प्रत्यय लगाकर शब्द..

प्रमाण + इक — प्रमाणिक
तमस + इक — तामसिक
विचार + इक — वैचारिक
साहस + इक — साहसिक
मूल + इक — मौलिक


योग्यता विस्तार

प्रश्न-1 : प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। इनमें से कहानियाँ पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। कुछ कहानियों का मंचन भी कीजिए।

उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी अपनी कक्षा में इस करने का प्रयास करें। वे प्रेमचंद की कहानियाँ पढ़ें और अपनी कक्षा में सुनाएं। कहानियों का मंचन भी करें।

प्रश्न-2 : शिक्षा रटंत विद्या नहीं है-इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

उत्तर : शिक्षा का उद्देश्य केवल रटंत विद्या तक सीमित नहीं होना चाहिए। शिक्षा का मूल उद्देश्य छात्रों को जीवन के विभिन्न पहलुओं के लिए तैयार करना है, जिसमें ज्ञान, समझ, और व्यावहारिक कौशल शामिल हैं। रटंत विद्या से छात्र केवल परीक्षा पास करने के लिए सामग्री याद कर लेते हैं, बिना उसकी गहरी समझ के। यह ज्ञान जल्दी ही भूल जाता है और छात्रों में सृजनात्मकता और समस्या समाधान कौशल का विकास नहीं हो पाता। सच्ची शिक्षा वह है जो छात्रों को सोचने, समझने और ज्ञान को व्यावहारिक जीवन में लागू करने की क्षमता देती है।

शिक्षा का लक्ष्य छात्रों को समग्र रूप से विकसित करना है, न कि केवल रटंत विद्या तक सीमित रखना। शिक्षण विधियों में परिवर्तन की आवश्यकता है, जिससे छात्रों में गहन समझ, सृजनात्मकता, और व्यावहारिक कौशल का विकास हो सके। यह सुनिश्चित करेगा कि वे केवल जानकारी को याद न करें, बल्कि उसे समझें और जीवन में उपयोग कर सकें।

प्रश्न 3. क्या पढ़ाई और खेलकूद साथ-साथ चल सकते हैं-कक्षा में इस पर वाद-विवाद कार्यक्रम आयोजित कीजिए।

उत्तर : वाद-विवाद : क्या पढ़ाई और खेलकूद साथ-साथ चल सकते हैं?

पक्ष में

हाँ, पढ़ाई और खेलकूद साथ-साथ चल सकते हैं। दोनों का संतुलन छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण है। खेलकूद से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, जो मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। इससे छात्र अधिक सक्रिय और ऊर्जावान महसूस करते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई में भी सुधार होता है। कई अध्ययन बताते हैं कि खेलकूद में भाग लेने वाले छात्रों की एकाग्रता और स्मरण शक्ति बेहतर होती है। इसलिए, खेलकूद और पढ़ाई का मेल छात्रों को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है।

विपक्ष में

नहीं, पढ़ाई और खेलकूद का साथ-साथ चलना मुश्किल है। दोनों में संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि समय का उचित बंटवारा नहीं हो पाता। खेलकूद में अधिक समय देने से पढ़ाई का समय कम हो जाता है, जिससे अकादमिक प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। छात्रों को अच्छे अंक पाने के लिए अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसके अलावा, खेलकूद में लगी चोटें भी पढ़ाई में बाधा बन सकती हैं।

प्रश्न 4. क्या परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार है? इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर : परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार है इस विषय पर चर्चा इस प्रकार होगी..

पहला मत

परीक्षा पास करना एक महत्वपूर्ण योग्यता का मापदंड है क्योंकि यह छात्रों की ज्ञान और समझ को मापता है। परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने से यह साबित होता है कि छात्र ने विषय को अच्छी तरह से समझा और सीखा है। यह नौकरी और उच्च शिक्षा के लिए प्राथमिक मानदंड भी है।

दूसरा मत

परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का संपूर्ण आधार नहीं हो सकता। योग्यता का अर्थ केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान, नैतिक मूल्य, और सृजनात्मकता भी है। कुछ छात्र परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते लेकिन वे अन्य क्षेत्रों में अत्यधिक सक्षम हो सकते हैं।



परियोजना कार्य

प्रश्न-1 : कहानी में जिंदगी से प्राप्त अनुभवों को किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बताया गया है। अपने माता-पिता बड़े भाई-बहिनों या अन्य बुजुर्ग/बड़े सदस्यों से उनके जीवन के बारे में बातचीत कीजिए और पता लगाइए कि बेहतर ढंग से जिंदगी जीने के लिए क्या काम आया-समझदारी/पुराने अनुभव या किताबी पढ़ाई?

उत्तर : कहानियों और जिंदगी के अनुभवों में हमें अक्सर यह सिखाया जाता है कि वास्तविक जीवन के अनुभव किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। इस विषय पर, मैंने अपने माता-पिता और बड़े भाई-बहनों से बातचीत की और उनके जीवन के अनुभवों से कुछ महत्वपूर्ण बातें सीखीं।

मेरे पिता ने बताया कि उनके जीवन में कई ऐसी परिस्थितियाँ आईं जहाँ किताबी ज्ञान से ज्यादा समझदारी और पुराने अनुभव काम आए। जब उन्होंने अपना व्यापार शुरू किया, तो कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन समस्याओं को हल करने में उनके जीवन के अनुभव और समझदारी ने अधिक मदद की। उन्होंने यह भी कहा कि किताबी ज्ञान आवश्यक है, लेकिन समझदारी और अनुभव के बिना वह अधूरा है।

मेरी माँ ने भी अपने जीवन से कुछ उदाहरण साझा किए। उन्होंने बताया कि परिवार का प्रबंधन और बच्चों की परवरिश में किताबी ज्ञान से ज्यादा समझदारी और अनुभव ने मदद की। उन्होंने कई बार पुरानी पीढ़ियों के अनुभवों से सीखा और उन्हें अपने जीवन में लागू किया।

मेरे बड़े भाई ने यह बताया कि उनके करियर में किताबी ज्ञान के साथ-साथ अनुभवी लोगों से मिली सलाह और उनके स्वयं के अनुभवों ने उन्हें आगे बढ़ने में मदद की। उन्होंने कई बार किताबी ज्ञान का उपयोग किया, लेकिन उसे व्यावहारिक जीवन में लागू करने के लिए समझदारी और अनुभव की जरूरत पड़ी।

बातचीत से यह स्पष्ट हुआ कि बेहतर ढंग से जिंदगी जीने के लिए समझदारी और पुराने अनुभव अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। किताबी पढ़ाई महत्वपूर्ण है और हमें मूलभूत ज्ञान प्रदान करती है, लेकिन जिंदगी की वास्तविक समस्याओं को हल करने के लिए अनुभव और समझदारी की आवश्यकता होती है।

इसलिए, हमें दोनों का संतुलन बनाए रखना चाहिए और जीवन के अनुभवों से सीखना चाहिए ताकि हम जिंदगी को बेहतर ढंग से जी सकें।

प्रश्न-2 : आपकी छोटी बहिन/छोटा भाई छात्रावास में रहती/रहता है। उसकी पढ़ाई-लिखाई के संबंध में उसे एक पत्र लिखिए।

उत्तर : छोटी बहन को पत्र

प्रिय छोटी बहिन रजनी
खुश रहो,

आशा है तुम स्वस्थ और प्रसन्न हो। यहाँ सब कुशल हैं। तुम छात्रावास में अच्छे से रह रही हो और अपनी पढ़ाई में ध्यान दे रही हो, यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई।

पढ़ाई के इस महत्वपूर्ण समय में कुछ बातें तुम्हें याद दिलाना चाहता हूँ। सबसे पहले, अपने दिनचर्या को सही तरीके से व्यवस्थित करो। समय पर उठो, नियमित रूप से कक्षाओं में भाग लो, और जो भी काम मिले उसे समय पर पूरा करो। खुद पर विश्वास रखो और मेहनत से पढ़ाई करो। कोई भी विषय कठिन लगे तो तुरंत अपने शिक्षक से पूछो या अपने मित्रों की सहायता लो।

अपनी सेहत का भी ध्यान रखो। नियमित रूप से भोजन करो और पर्याप्त नींद लो। पढ़ाई के साथ-साथ थोड़ी बहुत खेलकूद भी जरूरी है, इससे मन ताज़ा रहता है और पढ़ाई में भी मन लगता है।

याद रखो कि हम सब तुम्हारे साथ हैं और तुम्हें हर कदम पर सपोर्ट करेंगे। अगर तुम्हें कभी किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो या किसी समस्या का सामना करना पड़े, तो बिना हिचकिचाए हमें लिखो या फोन करो।

तुम्हारे उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए,

तुम्हारा भाई
रमन


बड़े भाई साहब, लेखक – प्रेमचंद (कक्षा-10, पाठ-8 हिंदी, स्पर्श भाग 2) (NCERT Solutions)


कक्षा-10 हिंदी स्पर्श 2 पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ

साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

कर चले हम फिदा : कैफ़ी आज़मी (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श भाग-2) (हल प्रश्नोत्तर)

आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

अफ़ासानी निकितन किसके काल में भारत आया?​

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अफ़ासानी निकितन एक रूसी व्यापारी था जो पंद्रहवीं शताब्दी में भारत आया था। उस दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य जैसे साम्राज्य थे और राजा कृष्णदेव राज के पूर्ववर्ती राजा का शासन था।

अफ़ासानी निकितन सन 1466 से 1475 के बीच रूस से अपने विशेष विदेश यात्रा पर निकला था। 8 वर्षों की अपनी विदेश यात्रा के काल में वह 3 वर्षों तक भारत रहा। वह जब रूसे व्यापार हेतु चला दो रास्त में वह कई बार लूटा गया। बाद में उसने विदेश यात्रा करने निर्णय लिया। उसने भारत के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। वह रूस से चलकर जॉर्जिया, आर्मेनिया और ईरान के रास्ते भारत आया था।

अफ़ासानी निकितन का भारत में पहला पड़ाव महाराष्ट्र में मुंबई के निकट ‘चौपा’ नामक गाँव था। यह एक समुद्र तटीय गाँव था। जहाँ पर अफ़ासानी निकितन ने अपना पहला कदम रखा। वहाँ से उसने भारत में कई जगह की यात्राएं की और अपने साथ वह जो सामान लाया था, उसने वह सामान बेचा। अपने साथ वह एक अच्छी नस्ल का घोड़ा भी लाया था क्योंकि उस समय भारत में अच्छी नस्ल के घोड़ों की कमी होती थी और भारत के बाहर से अरबी व्यापारी आकर भारत में उच्च कोटि की नस्ल के घोड़े बेचते थे। अफासानी निकितन ने भी अपने साथ एक अच्छी नस्ल का घोड़ा लाकर, उसने वह घोड़ा भारत में बेचा।

अफ़ासानी निकितन 3 वर्षों तक भारत में रहा और उसने अपनी भारत यात्रा पर एक पुस्तक भी लिखी, जिसका नाम ‘तीन समुद्र पार का सफरनामा’ है। मूल रूप से रूसी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में अफ़ासानी निकितन ने अपनी भारत यात्रा का वर्णन किया है। उसने अपनी भारत यात्रा के दौरान विजयनगर साम्राज्य, गुलबर्गा, बीदर, गोलकुंडा जैसे राज्यों की यात्रा की, क्योंकि उसने इन सभी जगह का वर्णन अपनी पुस्तक में किया है। इस तरह अफ़ासानी निकितन जब भारत आया था तो उस समय दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य का शासन था।


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स्तूपों की खोज कैसे हुई? समझाइए।

किताब-उल-हिंद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

निम्नलिखित शब्दों में संधि कीजिए- 1. सम् + चय 2. वाक् + मय 3. राका + ईश 4. सत् + मार्ग 5. निः + पक्ष 6. सु + आगत 6. उत् + लेख 7. एक + एक 8. तत् + लीन 9. तपः + बल

निम्नलिखित शब्दों में संधि कीजिए…

1. सम् + चय : संचय
संधि भेद : व्यंजन संधि

2. वाक् + मय : वांङ्मय
संधि भेद : व्यंजन संधि

3. राका + ईश : राकेश
संधि भेद : गुण स्वर संधि

4. सत् + मार्ग : सत्मार्ग
संधि भेद : व्यंजन संधि

5. निः + पक्ष : निष्पक्ष
संधि भेद : विसर्ग संधि

6. सु + आगत : स्वागत
संधि भेद : यण स्वर संधि

6. उत् + लेख : उल्लेख
संधि भेद : व्यंजन संधि

7. एक + एक : एकाएक
संधि भेद : गुण स्वर संधि

8. तत् + लीन : तल्लीन
संधि भेद : व्यंजन संधि

9. तपः + बल : तपोबल
संधि भेद : विसर्ग संधि

संधि के तीन भेद होते हैं..

  1. स्वर संधि
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

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चोल साम्राज्य पर एक लेख लिखिए।

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चोल साम्राज्य

परिचय

चोल राज्य दक्षिण भारत का एक प्रमुख और शक्तिशाली साम्राज्य था जो लगभग 9वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी तक फलता-फूलता रहा। इस साम्राज्य का योगदान कला, वास्तुकला, साहित्य, और प्रशासन के क्षेत्र में अद्वितीय रहा है।

स्थापना और विस्तार

चोल वंश की स्थापना करिकाल चोल ने की थी, लेकिन इसे वास्तविक महानता राजराजा चोल और उनके पुत्र राजेंद्र चोल के शासनकाल में मिली। राजराजा चोल प्रथम (985-1014 ईस्वी) ने चोल साम्राज्य का विस्तार किया और इसे एक शक्तिशाली नौसैनिक शक्ति बनाया। उनके पुत्र, राजेंद्र चोल प्रथम (1014-1044 ईस्वी) ने इस साम्राज्य को और भी विस्तारित किया, जिसमें उन्होंने बंगाल की खाड़ी के पार श्रीविजय साम्राज्य (वर्तमान इंडोनेशिया और मलेशिया) तक अपने अभियानों को फैलाया।

प्रशासन

चोलों का प्रशासनिक तंत्र अत्यंत व्यवस्थित और सुसंगठित था। उन्होंने केंद्र, प्रांत, और स्थानीय स्तर पर प्रशासन का संचालन किया। गांवों में स्वायत्तता दी गई थी और वे अपने मामलों का संचालन स्वयं करते थे, जो “उर” और “सभाएँ” कहलाती थीं। कर संग्रह, भूमि रिकॉर्ड और सैन्य संगठन में भी चोल प्रशासन का विशेष योगदान था।

कला और वास्तुकला

चोल काल में कला और वास्तुकला ने अत्यधिक प्रगति की। बृहदेश्वर मंदिर (राजराजेश्वर मंदिर) तंजावुर में राजराजा चोल प्रथम द्वारा बनवाया गया था, जो चोल वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। चोल शासकों ने कांस्य मूर्तिकला में भी विशेष योगदान दिया, जिनमें नटराज की मूर्तियाँ विश्व प्रसिद्ध हैं।

साहित्य और संस्कृति

चोल राज्य के दौरान तमिल साहित्य और संस्कृति का बहुत विकास हुआ। संगम साहित्य, भक्ति काव्य, और धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई। चोल शासकों ने तमिल भाषा और साहित्य को प्रोत्साहन दिया।

अंतिम समय

13वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, चोल साम्राज्य का पतन प्रारंभ हो गया। पंड्या और होयसला साम्राज्यों ने चोलों की शक्ति को चुनौती दी और अंततः 1279 ईस्वी में पंड्या साम्राज्य ने चोलों को परास्त कर दिया।

निष्कर्ष

चोल राज्य ने दक्षिण भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी प्रशासनिक नीतियों, कला, वास्तुकला, और सांस्कृतिक योगदान ने भारतीय उपमहाद्वीप की धरोहर को समृद्ध किया। चोल शासकों का गौरवशाली युग भारतीय इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा।


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स्तूपों की खोज कैसे हुई? समझाइए।

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स्तूपों की खोज कैसे हुई? समझाइए।

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स्तूपों की खोज और उनके पुनः प्रकाश में आने की कहानी काफी रोचक और ऐतिहासिक है। यह विशेष रूप से 19वीं और 20वीं शताब्दी में हुई जब भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में पुरातात्विक खोजें जोर पकड़ने लगीं।

स्तूपों की खोज कैसे हुई? जानते हैं…

प्रारंभिक साक्ष्य और इतिहास

1. अशोक का योगदान : मौर्य सम्राट अशोक (273-232 ईसा पूर्व) ने बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद भारत में कई स्तूपों का निर्माण कराया। उन्होंने गौतम बुद्ध के अवशेषों को पूरे देश में विभाजित किया और उन्हें स्तूपों में संरक्षित किया। अशोक ने स्तूपों को बौद्ध धर्म के प्रचार के माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया।

2. साहित्यिक साक्ष्य : प्रारंभिक बौद्ध साहित्य, जैसे कि त्रिपिटक, में स्तूपों का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में स्तूपों के महत्व और उनके निर्माण की विधि का वर्णन है।

यूरोपीय खोज और पुरातत्व

1. अलेक्जेंडर कनिंघम : 19वीं शताब्दी में अलेक्जेंडर कनिंघम, जो कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संस्थापक थे, ने भारत में कई प्रमुख बौद्ध स्थलों की खोज की। उन्होंने सांची, सारनाथ, और बोद्धगया जैसे महत्वपूर्ण स्थलों की खुदाई की और वहाँ स्तूपों की पहचान की।

2. जेम्स प्रिंसेप : जेम्स प्रिंसेप ने भारतीय पुरालेखों और शिलालेखों का अध्ययन किया। उन्होंने ब्राह्मी लिपि को डिकोड किया, जिससे हमें अशोक के शिलालेखों को पढ़ने में मदद मिली और बौद्ध धर्म के इतिहास को समझने में सहायता मिली।

महत्वपूर्ण खोजें

1. सांची स्तूप : सांची का महान स्तूप, जो मध्य प्रदेश में स्थित है, भारत के सबसे महत्वपूर्ण और संरक्षित स्तूपों में से एक है। इसकी खोज 19वीं शताब्दी में हुई और यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

2. अमरावती स्तूप : आंध्र प्रदेश में स्थित यह स्तूप प्रारंभिक भारतीय कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यहाँ की खुदाई में सुंदर नक्काशी और बौद्ध कला के नमूने मिले।

3. धमेक स्तूप : सारनाथ में स्थित यह स्तूप वह स्थल है जहाँ गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। यह स्तूप अशोक द्वारा निर्मित मूल स्तूप के स्थान पर बना है।

आधुनिक समय में

1. यूनेस्को और संरक्षण : कई प्रमुख स्तूपों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली है, जिससे उनके संरक्षण और पुनर्निर्माण के प्रयासों में वृद्धि हुई है।

2. वैज्ञानिक विधियाँ : आधुनिक पुरातात्विक तकनीकों, जैसे कि रेडियोग्राफी और कार्बन डेटिंग, ने स्तूपों की खोज और उनके निर्माण की तिथि निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

निष्कर्ष

स्तूपों की खोज ने न केवल बौद्ध धर्म के इतिहास को उजागर किया है, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को भी पुनर्जीवित किया है। इन खोजों ने हमें प्राचीन काल की स्थापत्य कला, धार्मिक मान्यताओं और सामाजिक संरचना के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान की हैं।


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स्तंभ लेख से क्या तात्पर्य है?

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सामान्य तथा निकृष्ट वस्तुओं में अन्तर बताएं।

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सामान्य तथा निकृष्ट वस्तुओं में अन्तर

अर्थशास्त्र के संदर्भ में सामान्य वस्तुएं अथवा श्रेष्ठ वस्तुएं वह वस्तुएं होती हैं, जो उपभोक्ता की दृष्टि में उपभोग की दृष्टि से श्रेष्ठ होती है और जिन्हें उपभोक्ता आय में वृद्धि होने पर प्राथमिकता देता है। ऐसी वस्तुओं की गुणवत्ता उत्तम होती है। सामान्य वस्तुओं के मूल्य और उनकी मांग के वक्र में धनात्मक संबंध होता है। ऐसी वस्तुओं की आय-मांग का वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है, अर्थात ये वक्र बाएं से दाएं ऊपर की ओर चढ़ता चला जाता है। जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है, ऐसी वस्तुओं की उसकी मांग में भी वृद्धि होती है और यदि उपभोक्ता की आय में कमी होती है तो मांग में भी कमी होती है। ऐसी वस्तुएं उपभोक्ता अच्छी आय होने पर खरीदते हैं और उनके लिए ऐसी वस्तुएं महत्व रखती हैं, जिससे उन्हें पूर्ण संतुष्टि का अनुभव होता है।

जैसे देसी घी, रेशमी कपड़े, बासमती चावल, उच्च स्तरीय ब्रांड की वस्तुएं आदि ।

निकृष्ट अथवा निम्न वस्तुओं से तात्पर्य उन वस्तुओं से है जो उपभोक्ता की दृष्टि में कमतर अर्थात हीन होती हैं। ऐसी वस्तुओं को उपभोक्ता केवल आय और खरीदारी सामर्थ्य कम होने पर ही खरीदता है अथवा श्रेष्ठ वस्तुओं की अनुलब्धता में और कोई विकल्प न होने पर ही खरीदता है। निकृष्ट वस्तुओं की आय-मांग वक्र में ऋणात्मक संबंध होता है। अर्थात ये वक्र बायें से दायें ऊपर से नीचे की ओर गिरता जाता है। जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय में कमी होती है वह निकृष्ट वस्तुओं की खरीदने को विवश होता है। जैसे ही उपभोक्ता आय बढ़ने लगती है, वह निकृष्ट वस्तुओं का उपभोग छोड़कर श्रेष्ठ वस्तुओं को खरीदने लगता है।

जैसे देसी घी के स्थान पर वनस्पति घी, रेशमी कपड़े के स्थान पर सूती या खादी कपडे, बासमती चावल के स्थान पर मोटा अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, साधारण चावल आदि।


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स्पष्टीकरण :

‘धूलि-धूसर’ इसमें ‘करण तत्पुरुष समास’ है। इसमें तत्पुरुष समास का उपभेद ‘करण तत्पुरुष’ समास है। इसका मुख्य कारण ये है कि ‘धूलि-धूसर’ का जब समास विग्रह करेंगे को तो इसमें ‘से’ कारक चिन्ह का प्रयोग होगा। उसका समस्त पद बनाते समय इस कारक चिन्ह का लोप हो जाएगा।

करण तत्पुरुष समास तत्पुरुष समास का एक उपभेद है। ‘करण तत्पुरुष’ समास में समस्त पद का विग्रह करते समय ‘से’ अथवा ‘के द्वारा’ कारक चिन्ह का लोप होता है।

जैसे :

शोकाकुल : शोक से आकुल
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सीताएलिया की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

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सीताएलिया वह स्थान है जहाँ पर रावण ने माता सीता का अपहरण कर उन्हें कैदी बनाकर रखा था। सीताएलिया श्रीलंका में स्थित एक प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान है। यहाँ पर अनके पहाड़ियां हैं और उन पारियों में गुफाएं हैं। इन्हीं में से एक गुफा में रावण ने सीता माता का अपहरण करके उन्हें कैदी बनाकर रखा था।

अशोक वाटिका यहीं पर स्थित गुफा है, जहाँ पर सीता माता को कैद करके रखा गया था। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान है, जहां पर चारों तरफ पहाड़ियां ही पहाड़िया है और चारों तरफ ऊंचे ऊंचे हरे-भरे वृक्ष फैले हैं। यहाँ पर सीता माता का मंदिर भी जो इस बात को प्रकट करता है कि कभी यहाँ पर माता सीता रहीं थी।

सीताएलिया (या नुवारा एलिया) श्रीलंका के सेंट्रल प्रांत में स्थित है। यह स्थान श्रीलंका के पहाड़ी क्षेत्रों में आता है और अपनी ठंडी जलवायु, हरे-भरे चाय के बागान, और सुंदर प्राकृतिक दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। नुवारा एलिया को ‘लिटिल इंग्लैंड’ भी कहा जाता है क्योंकि इसका वातावरण और स्थापत्य शैली ब्रिटिश औपनिवेशिक युग की याद दिलाते हैं।

सीताएलिया के चारों ओर हरे-भरे जंगल फैले हुए हैं, जो इसकी प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ा देते हैं। इन जंगलों में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, जो यहाँ की जलवायु को शीतल और ताजगी से भरपूर बनाते हैं।

सीताएलिया की पहाड़ियाँ और पर्वत श्रृंखलाएं इसके प्राकृतिक सौंदर्य को एक नया आयाम देती हैं। ये पर्वत अपनी ऊँचाई से एक भव्य दृश्य प्रस्तुत करते हैं और यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य अत्यंत सुंदर दिखाई देता है।

सीताएलिया की नदियाँ और झरने यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं। बहते हुए पानी की कलकल ध्वनि और झरनों का शीतल जल यहाँ आने वाले पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। ये झरने और नदियाँ इस क्षेत्र की जैव विविधता को भी समृद्ध करते हैं।

नुवारा एलिया का शांत और ठंडा वातावरण, हरी-भरी पहाड़ियाँ, और आकर्षक स्थलों की वजह से यह जगह पर्यटकों के बीच बहुत ही लोकप्रिय है।


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“आज हमारे घर गाजर का स्वादिष्ट” हलवा बन रहा है।- रेखांकित अंश का पदबंध बताइए- A-संज्ञा पदबंध B-विशेषण पदबंध C-सर्वनाम पदबंध D-क्रिया विशेषण पदबंध

सही विकल्प है :

B – विशेषण पदबंध

विस्तृत विवरण :

इस वाक्य में “आज हमारे घर गाजर का स्वादिष्ट” यह पदसमूह​ एक विशेषण पदबंध होगा। ‘विशेषण पदबंध’ वे पदबंध होते हैं, जिनमें पूरा पद समूह एक विशेषण की तरह कार्य कर रहा होता है।

इस वाक्य में “आज हमारे घर गाजर का स्वादिष्ट” यह पूरा पदसमूह एक विशेषण की तरह कार्य कर रहा है और हलवे की विशेषता को बता रहा है। इसलिए यह एक विशेषण पदबंध है।

पदबंध क्या हैं?

पदबंध से तात्पर्य पदों के उस समूह से होता है जो मिलकर किसी एक पद का कार्य करते हैं। अर्थात दो या दो से अधिक पद जब मिलकर किसी एक पद की तरह कार्य करते हैं तो वह पदबंध कहलाते हैं।


अस्वाद व्रत का अर्थ ​क्या है?

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अस्वाद का अर्थ है, स्वाद ना लेना और अस्वाद व्रत का अर्थ है, स्वाद की कामना न करना और अपनी जिह्वा पर नियंत्रण रखना। स्वाद यानि रस मजा यानी कोई भी खाद्य पदार्थ खाते वक्त हमें जो स्वाद लगता है वह ही आस्वाद है। अस्वाद व्रत का अर्थ है स्वाद के खाने हेतु स्वाद की मनोवृति पर अंकुश लगाना अर्थात भोजन को स्वाद के लिए नहीं बल्कि शरीर की जरूरत के अनुसार मानकर खाना। भोजन करते समय लोग स्वाद को अधिक महत्व देते हैं और स्वाद के कारण अलग-अलग तरह की चीजें खाते हैं, उसमें वह यह नहीं देखते कि उनके शरीर को इससे क्या लाभ क्या हानि है। उन्हें उसका स्वाद अच्छा लग रहा है, इसलिए वह खा रहे हैं। स्वाद की प्रवृत्ति पर नियंत्रण लगाना और स्वाद के प्रति निर्विकार भाव रखना ही आस्वाद व्रत है ।


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अगर दरिया कंकड़ और रोड़े को और आगे ले जाता, तो क्या होता है? विस्तार से बताइए।

दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। (नमक का दरोगा)

अगर दरिया कंकड़ और रोड़े को और आगे ले जाता, तो क्या होता है? विस्तार से बताइए।

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अगर दरिया कंकड़ और रोड़े को और आगे ले जाता तो धीरे-धीरे कंकड़ या रोड़ा छोटा होता जाता और छोटा होते-होते अंत में वह बालू के एक जर्रे यानी रेत के एक कण जितना छोटा हो जाता और समुद्र के किनारे अन्य बालू भाइयों यानि अन्य बालू के कणों से जा मिलता। इस तरह वह एक सुंदर बालू का किनारा बन जाता। इस बालू के किनारे पर छोटे-छोटे बच्चे खेलते और बालू के घरोंदे बनाते। इस तरह भले ही कंकड़ और रोड़े का मूल अस्तित्व भले ही समाप्त हो जाता लेकिन वे रेत के कण के रूप में अपनी सार्थक उपयोगिता के रूप में रहता।

संदर्भ पाठ

पाठ – संसार पुस्तक है, लेखक – जवाहरलाल नेहरु (कक्षा-6 पाठ-12)


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गर्मियों की छुट्टियों में तुम्हारे दिन कैसे बीते हैं, अपनी बुआजी को पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

छुट्टियों के बारे में बताते हुए बुआजी को पत्र

 

दिनांक : 2 जुलाई 2024,

प्रिय बुआ जी,
चरण स्पर्श ।

मुझे पूरी आशा है कि आप स्वस्थ और प्रसन्न होंगी। हम सब भी यहाँ पर स्वस्थ और प्रसन्न हैं।

बुआजी, आज ही आपका पत्र प्राप्त हुआ था। आपने मुझसे मेरी गर्मियों की छुट्टियों के बारे में पूछा कि मैं गर्मियों की छुट्टियों में मेरा समय कैसे बीता और मैं कहाँ गईं? तो बुआजी गर्मियों की छुट्टियों में मेरा समय बहुत अच्छा बीता। बुआजी, गर्मियों की छुट्टियों में पहले हम अपनी नानी के घरगए थे। वहाँ पर मैं 15 दिनों तक रही। नानी के साथ समय बिताना बहुत ही मजेदार था। नानी ने हमें तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाकर खिलाए। नानी, बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाती हैं। नानी के बगीचे में सेब और आम के पेड़ लगे थे। हमने जीभर कर आम और सेबों का मजा लिया। एक दिन हम सब लोग गाँव के पास एक झील के किनारे पिकनिक पर भी गए थे, जहां पर हमने बहुत मजे किए और झील के किनारे बैठकर खूब गप्पें मारी।

इसके बाद हम पहाड़ों की यात्रा पर गए। वहां का मौसम बहुत सुहावना था। हमने बहुत सारी नई जगहें देखीं और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लिया। पहाड़ों में ट्रैकिंग करना और झरने के पास बैठकर पानी की कलकल ध्वनि सुनना एक अद्भुत अनुभव था।

मुझे फोटोग्राफी का बहुत शौक है, इसलिए मैंने वहां की सुंदर तस्वीरें भी खींची हैं। मैं जल्द ही आपको वो तस्वीरें दिखाऊंगी।

छुट्टियों के दौरान मैंने कुछ नई किताबें भी पढ़ीं और बहुत कुछ सीखा। अब स्कूल खुलने का समय आ गया है और मैं नई ऊर्जा के साथ तैयार हूँ।

आपकी भतीजी
ज्योत्सना,
शिमला


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‘सीना-पिरोना’ का समास विग्रह कीजिए।

सीना-पिरोना सीना पिरोना का समास विग्रह इस प्रकार है..

समस्त पद : सीना-पिरोना
समास विग्रह : सीना और पिरोना
समास का नाम : द्वन्द्व समास

स्पष्टीकरण :

‘सीना-पिरोना’ में जंतु समाज इसलिए है क्योंकि सीना-पिरोना इस समस्त पद में दोनों पद प्रधान है। द्वंद्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं। द्वंद्व समास का विग्रह करते समय किसी योजक द्वारा उन्हें पृथक किया जाता है। सीना और पिरोना दोनों पद प्रधान है और दोनों पदों का समान मुख्य अर्थ है, इसी कारण यहां पर द्वंद्व समास प्रयुक्त हो रहा है।

द्वंद्व समास की परिभाषा के अनुसार दोनों समास में दोनों पद प्रधान होते हैं तथा जब इन पदों का समास विग्रह किया जाता है तो इन पदों के बीच ‘और’, ‘अथवा’, ‘या’, ‘एवं’ जैसे योजक लगते हैं।

द्वंद्व समास के कुछ उदाहरण…

माता-पिता : माता और पिता
राजा-रानी : राजा और रानी
सुख-दुख : सुख और दुख


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‘दुनिया सोती थी पर दुनिया की जीभ जागती थी।’ कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। (नमक का दरोगा)

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‘दुनिया सोती थी पर दुनिया की जीभ जागती थी’ इस कथन का आशय यह है कि किसी भी घटना के प्रसारित होने में समय नहीं लगता। पंडित अलोपदीन को जैसे ही दरोगा वंशीधर ने गिरफ्तार किया वैसे ही घटना तेजी से पूरे नगर में फैल गई। इस कथन का आशय भी यही है कि किसी भी घटना को प्रसारित में लोग दिन-रात भी नहीं देखते। ऐसा भले ही लग रहा हो कि रात का समय और दुनिया सो रही हो लेकिन लोग की जुबान शांत नही रहती। उनकी जुबान पर कोई बात स्थिर नही रह पाती। वह जो कुछ सुनते है उसे दूसरे तक पहुँचाने में जरा भी देरी नहीं करते। इस तरह लोगों की जुबान (जीभ) शांत नही रहती थी।

‘नमक का दरोगा’ कहानी में यह कथन उस समय आया है, जब दरोगा वंशीधर ने पंडित अलोपदीन को गिरफ्तार कर लिया। पंडित अलोपदीन शहर की जानी-मानी हस्ती थे। उनके पास अपार धन था फिर भी दरोगा बंशीधर ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया तो लोगों को आश्चर्य हुआ कि अपनी धन संपत्ति के बलबूते पर किसी को भी खरीद लेने वाले पंडित अलोपदीन आज गिरफ्तार कैसे हो गए। रात में वंशीधर ने अलोपदीन को गिरफ्तार किया था लेकिन सुबह होते-होते यह घटना पूरे नगर में आज की तरह फैल गई थी।


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‘काई सा फटे नहीं’ पंक्तियों का आशय स्पष्ट करो।

किसे ‘देव-दुर्लभ त्याग’ कहा गया है और क्यों?

‘नमक का दरोगा’ पाठ में धर्म को ‘देव-दुर्लभ त्याग’ कहा गया है। यहाँ पर दरोगा वंशीधर धर्म का प्रतीक है क्योंकि वह अपने कर्तव्यपथ पर अडिग है। उसने किसी भी तरह के लोभ के जाल में न फंसते हुए अपने कर्तव्य का पालन किया। इस तरह वंशीधर ने देव दुर्लभ त्याग किया। ऐसा त्याग करना आसान नहीं होता। ऐसे त्याग करने के लिए देवता भी हिचकिचा जाते हैं, लेकिन दरोगा मुंशी वंशीधर ने ऐसे त्याग को करने में जरा भी संकोच नहीं दिखाया।

मुंशी वंशीधर ने अपनी कर्तव्य निष्ठा का पालन करते हुए पंडित अलोपदीन द्वारा दी गई हजारों रुपए की रिश्वत को भी ठुकरा दिया। 40000 रुपए की रिश्वत ठुकराना कोई आसान कार्य नहीं होता। इतनी बड़ी राशि को देखकर बड़े-बड़े के ईमान डोल जाते हैं, लेकिन दरोगा मुंशी वंशीधर का ईमान इतनी बड़ी राशि को देखकर भी नहीं डोला और उसने अपनी कर्तव्य निष्ठा का पालन किया और रिश्वत लेना स्वीकार नहीं किया।

मुंशी वंशीधर धर्म का प्रतीक था। धर्म हमेशा बुद्धिहीन और देव-दुर्लभ त्याग के लिए जाना जाता है। इसीलिए मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानी ‘नमक का दरोगा’ में दरोगा मुंशी वंशीधर को धर्म का प्रतीक और देव-दुर्लभ त्याग कहा है।


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ओहदे को पीर की मजार कहने में क्या व्यंग्य है? ‘नमक के दारोगा’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

पंडित अलोपदीन कौन थे? पंडित अलोपदीन की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए। (नमक का दरोगा)

भगवद्गीता के किस श्लोक में बतलाया गया हैं कि हर मनुष्य को अपने धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए. जैसे- विद्यार्थी का धर्म है विद्या प्राप्त करना, सैनिक का कर्म है देश की रक्षा करना है। देह निर्वाह के लिए त्याग (संन्यास) का अनुमोदन न तो भगवान करते हैं और न कोई धर्मशास्त्र ही। (1) अध्याय 4 श्लोक 12 (2) अध्याय 16 श्लोक 12 (3) अध्याय 8 श्लोक 2 (4) अध्याय 3 श्लोक 8

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इस प्रश्न का सही विकल्प होगा :

अध्याय 3 श्लोक 8

विस्तार से समझें…

भगवद्गीता के अध्याय 3 श्लोक संख्या 8 में बताया गया है कि मनुष्य को अपना कर्म अपने धर्म के अनुसार ही करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि…

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण:।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण:।।

अर्थात हर मनुष्य को अपने धर्म के अनुसार कर्म का आचरण करना चाहिए। यह बिल्कुल उसी तरह है जैसे किसी विद्यार्थी का धर्म विद्या प्राप्त करना है, किसी सैनिक का कर्म देश की रक्षा करना है। जो लोग कर्म नहीं करते उनसे श्रेष्ठ तो वे लोग होते हैं, जो अपने धर्म के अनुसार कर्म करते हैं, क्योंकि धर्म के अनुसार कर्म किए बिना शरीर का पालन पोषण करना संभव नहीं। जिस व्यक्ति का जो धर्म है, उसे निभाते हुए अपना कर्म पूरा करना चाहिए।


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प्रदोषे दीपकः चन्द्रः प्रभाते दीपकः रविः। त्रैलोक्ये दीपकः धर्मः सुपुत्रः कुल-दीपकः।। स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।। उत्तमे तु क्षणं कोपो मध्यमे घटिकाद्वयम्। अधमे स्याद् अहोरात्रं चाण्डाले मरणान्तकम्।। शैले-शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे-गजे। साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने।। उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे। राजद्वारे श्मशाने च यः तिष्ठति स बान्धवः।। सभी श्लोक का अर्थ बताएं।

‘डिजीभारतम्’ पाठ का सारांश हिंदी में लिखिए।

अपने चाचा-चाची को अपने जन्मदिन के लिए निमंत्रण पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

चाचा-चाची को जन्मदिन का निमंत्रण पत्र

 

श्री अशोक चंद्र,
14, शारदा भवन,
करोल बाग,
नई दिल्ली

30-06-2024

आदरणीय चाचा और चाची जी,
चरण स्पर्श

मैं यहाँ पर परिवार सहित कुशल से हूँ और आशा करता हूं कि आप भी वहाँ स्वस्थ और सानंद से होंगे । पिछली बार मैं छुट्टियों में आपसे मिलने नहीं आ पाया इसलिए आप मुझसे नाराज़ हो । जब आप इस शहर में रहते थे तब आपके साथ मुझे बहुत अच्छा लगता था लेकिन जब तबादले के कारण आपको यहाँ से जाना पड़ा और हम अलग हो गए और मिलने के अवसर भी कम हो गए ।

शायद आपको याद ही होगा कि 20 जुलाई को एक ऐसा अवसर आने वाला है जिसमें हमारी मुलाकात हो सकती हैं और वह है मेरा जन्मदिन। मैं जानता हूँ कि आप लोग मेरा जन्म दिन कभी नहीं भूल सकते । इस बार मेरे जन्मदिन पर माँ और पापा ने दिन में सत्यनारायण की कथा रखी है और शाम को एक छोटी-सी पार्टी का आयोजन किया अगर आप और चाची जी मेरे जन्मदिन पर आते हो तो यही मेरे लिए मेरे जन्मदिन का तोहफा होगा और मुझे बहुत अच्छा लगेगा। मैं जनता हूँ कि आप यह तोहफा मुझे जरूर दोगे । चाची जी को मेरी ओर से चरण – स्पर्श कहना। शेष मिलने पर…

आपका भतीजा,
निलेश

 


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अपने चाचाजी को पत्र लिखकर विद्यालय के वार्षिक उत्सव में आमंत्रित कीजिए।

चाचा जी को अपने जन्मदिन पर आने का आग्रह करते हुए करते हुए पत्र लिखें।

मान लीजिए आपके चाचा जी आपके मित्र के पड़ोसी हैं। आपने अपने मित्र को कुछ सामान अलग-अलग लिफाफों में डालकर उन्हें देने के लिए दिया। मित्र द्वारा सामान चाचा जी को पहुंचाने के बाद उसका विवरण देते हुए आपके मित्र और आप में हुई बातचीत को लिखें।​

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध किस नाम से प्रकाशित हैं। A. मणि B. फुलमणि C. चिंतामणि D. नीलमणि ​

सही विकल्प होगा…

C. चिंतामणि

विस्तृत विवरण :

‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल’ द्वारा लिखे गए निबंध ‘चिंतामणि’ नामक निबंध संग्रह में संग्रहित किए गए हैं। इस निबंध संग्रह का प्रकाशन 1919 में हुआ था। चिंतामणि नामक निबंध संग्रह में आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखे गए कुल 17 निबंधों का संग्रह किया गया है। वह निबंध इस प्रकार हैं…

  1. भाव या मनोविकार
  2. उत्साह
  3. श्रद्धा-भक्ति
  4. करुणा
  5. लज्जा और ग्लानि
  6. लोभ और प्रीति
  7. घृणा
  8. ईर्ष्या
  9. भय
  10. क्रोध
  11. कविता क्या है?
  12. भारतेंदु हरिश्चंद्र
  13. तुलसी का भक्ति मार्ग
  14. ‘मानस’ की धर्म भूमि
  15. काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था
  16. साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद
  17. रसात्मक बोध के विविध रूप

आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी के जाने-माने आलोचक कहानीकार निबंधकार रहे हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य में अनेक महत्वपूर्ण निबंधों की रचना की। उनके द्वारा रचित की गई पुस्तक ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ के आधार पर हिंदी साहित्य का काल निर्धारण किया जाता है।

उनका जन्म 4 अक्टूबर 1882 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगोना नामक गांव में हुआ था। उनका निधन 2 फरवरी 1941 को वाराणसी में हुआ।


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‘कलम का सिपाही’ किस विधा की रचना है?

कविता किसे कहते हैं? विभिन्न विद्वानों के कथनों द्वारा पुष्टि कीजिए।

कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) में क्या अंतर होता है?

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भारत की सरकार में मंत्रियों के विभिन्न स्तर होते हैं। कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के मंत्री। मंत्रियों के तीन स्तर हैं तो उनके बीच कुछ अंतर भी होता होगा। मंत्रियों के इन तीनों स्तरों के बीच मुख्य अंतर इस प्रकार हैं..

1. कैबिनेट मंत्री

सरकार में सर्वोच्च स्तर के मंत्री होता है। कैबिनेट मंत्री किसी पूर्ण मंत्रालय या विभाग के प्रभारी होते हैं। वे कैबिनेट बैठकों में भाग लेते हैं और नीतिगत निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कैबिनेट मंत्री सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। कैबिनेट मंत्री को मिलने वाली सारी उच्चतम स्तर की सुविधाएं मिलती हैं।

2. राज्य मंत्री

राज्य मंत्री कैबिनेट मंत्री के अधीन काम करते हैं। आमतौर पर किसी विशिष्ट मंत्रालय या विभाग के एक हिस्से की जिम्मेदारी संभालते हैं। राज्य मंत्री कैबिनेट बैठकों में भाग नहीं लेते, जब तक विशेष रूप से आमंत्रित न किया जाए।
ये अपने सभी कार्यों की रिपोर्ट संबंधित कैबिनेट मंत्री को रिपोर्ट करते हैं।

3. राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार

स्वतंत्र प्रभार वाले कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री के बीच की स्थिति है। ये मंत्री किसी मंत्रालय या विभाग के स्वतंत्र प्रभारी होते हैं, लेकिन कैबिनेट का हिस्सा नहीं होते। ये अपने मंत्रालय के लिए स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकते हैं। ये सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं, लेकिन कैबिनेट बैठकों में भाग नहीं लेते।

वेतन और सुविधाएं

कैबिनेट मंत्रियों को आमतौर पर उच्चतम वेतन और सुविधाएं मिलती हैं। राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार और राज्य मंत्रियों के वेतन और सुविधाएं कुछ कम होती हैं, लेकिन फिर भी उच्चमत स्तर की सुविधाएं होती हैं।

कैबिनेट मंत्री को हर महीने 1,00,000 रुपए मूल वेतन मिलता है। इसके अलावा उसे 70,000 रुपये अपने निर्वाचन क्षेत्र का भत्ता 60,000 रुपए कार्यालय भत्ता और 2,000 सत्कार भत्ता मिलता है।

राज्य मंत्रियों को 1,000 रुपए प्रतिदिन का भत्ता मिलता है तो उनका वेतन कैबिनेट मंत्री के समान ही होता है। इसके अलावा उन्हें संसद सदस्य की तरह की यात्रा भत्ता, यात्रा सुविधाएं, रेल यात्रा सुविधाएं, स्टीमर पास, आवास, टेलीफोन सुविधाएं और वाहन क्रय हेतु भत्ता मिलता है।

मुख्य अंतर शक्तियों, जिम्मेदारियों और निर्णय लेने की क्षमता में है। कैबिनेट मंत्री सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं, उसके बाद राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार, और फिर राज्य मंत्री आते हैं।


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कौन से नेता ने किसी लोकसभा चुनाव में एक ही समय में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा? कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी सीटों पर चुनाव लड़ सकता है?

भारत में अभी तक तक कुल कितने लोकसभा अध्यक्ष हुए हैं? सबके नाम बताएं।

आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

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आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2)

ATMATRAN : Ravindranath Thakur (Class 10 Chapter 7 Hindi Sparsh 2)


आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर

पाठ के बारे में…

इस पाठ में रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित कविता ‘आत्मत्राण’ को प्रस्तुत किया गया है। यह कविता मूल रूप से बांग्ला में लिखी गई थी, जिसका अनुवाद हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी में किया है। इस कविता के माध्यम से कवि गुरु रविंद्र टैगोर मानते हैं कि ईश्वर ने सब कुछ संभव कर देने की सामर्थ होती है, फिर भी ईश्वर नहीं चाहते कि वह वही सब कुछ करें। क्योंकि ईश्वर चाहते हैं कि मनुष्य अपने जीवन में आपदा विपदा, कष्ट से आदि की स्थिति में स्वयं संघर्ष करना सीखें । कविता में कवि ने कहा है कि तैरना चाहने वालों को पानी में कोई उतार तो सकता है, लेकिन तैरना सीखने के लिए तैरने वाले को ही स्वयं हाथ पैर चलाने पड़ते हैं। तभी वह तैराक बनाता है।

परीक्षा देने जाने वाला छात्र अपने बड़ों से और गुरुजनों से आशीर्वाद लेता है और उसके बड़े उसे सफल होने का आशीर्वाद तो देते हैं, लेकिन आशीर्वाद देने से ही सफल नही हुआ जा सकता है, उसे स्वयं परीक्षा देनी होगी, तभी आशीर्वाद फलीभूत होगा। कविता में कवि के कहने का मूलभाव यही है कि मनुष्य को जीवन में स्वयं संघर्ष करना सीखना चाहिए तो ईश्वर उसके संघर्ष को आसान बना सकते हैं। हाथ-पर हाथ रखरकर बैठने वाले की ईश्वर सहायता नहीं करतेष ईश्वर केवल कर्मशील मनुष्य की सहायता करते हैं।

रचनाकार के बारे में…

रवींद्रनाथ ठाकुर बंगाली भाषा के महान कवि एवं लेखक थे। उनका जन्म 6 मई 1818 को कोलकाता के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। वह साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय भी हैं। उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार उनकी काव्य कृति ‘गीतांजलि’ के लिए मिला था। उनके उनके द्वारा रची गई अन्य काव्य कृतियों के नाम इस प्रकार हैं, पूरबी, काबुलीवाला,  नैवेद्य, बलाका, क्षणिका, चित्र और सांध्यगीत। इनके अलावा उन्होंने अनेकों कहानियां लिखी थीं। उनका निधन 1941 में हुआ था।



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न-1 : कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?

उत्तर : कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। कवि ईश्वर से यह प्रार्थना कर रहा है कि ईश्वर उसे हर विपत्ति से सामना करने की सामर्थ्य प्रदान करें। ईश्वर उसे निर्भय होने का वरदान प्राप्त करें ताकि वह जीवन के संघर्षों से भयमुक्त होकर सामना कर सके। कवि ईश्वर से प्रार्थना कर के स्वंय के लिए आत्मबल और पुरुषार्थ पाने की कामना कर रहा है। कवि स्वयं को मजबूत बनाना चाहता है ताकि वह किसी भी तरह की आपदा, विपदा, निराशा, दुख, कष्ट, संकट आदि से सामना करने के लिए आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो सके ।

प्रश्न-2 : ‘विपदाओं से मुझे बचाओं, यह मेरी प्रार्थना नहीं’ − कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?

उत्तर : विपदाओं से मुझे बचाओ यह प्रार्थना नहीं’ इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि ईश्वर उन्हें जीवन में आने वाले दुख, कष्ट, आपदा, विपदा, संकट आदि से सीधे तौर पर नहीं बचाया बल्कि वह इन सबको सहने और इनसे संघर्ष करने का साहस और बल प्रदान करें। कवि के कहने का भाव यह है कि वह खुद कर्म करना चाहता है और आपदा-विपाद से घबराकर हार मानकर नहीं बैठना चाहता। वह ईश्वर से यह कामना नहीं करता कि ईश्वर उसकी हर विपदा को चुटकियों  में सुलझा दे। इससे तो वह कर्महीन हो जाएगा और उसके अंदर संघर्ष करने की सामर्थ्य खत्म हो जाएगी । कवि केवल यह चाहता है कि ईश्वर उसे आत्मबल और शक्ति प्रदान करें ताकि वह संघर्ष करके अपने ऊपर आने वाली आपदाओं और विपदाओं पर विजय पा सके।

प्रश्न-3 : कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?

उत्तर : कवि सहायक के न मिलने पर यह प्रार्थना करता है कि भले ही उसे जीवन में कोई सहायक ना मिले, भले ही पूरा संसार उसके विरुद्ध हो जाए, लेकिन आपदा-विपदा की स्थिति में उसका साहस और आत्मबल कभी कम ना हो। विपत्ति में उसका आत्मबल और उसका पौरुष कभी न डिगे। किसी भी तरह की आपदा-विपदा में भले ही संसार उसका सहयोग ना करें, उसे कोई भी सहायक ना मिले लेकिन उसका आत्मविश्वास, उसका आत्मबल, उसका साहस, उसक पौरुष कभी कम न हो, क्योंकि ये ही उसके सबसे बड़े सहायक है। कवि ईश्वर से यही प्रार्थना कर रहा है कि उसके ये गुण उसके साथ बने रहें।

प्रश्न-4 : अंत में कवि क्या अनुनय करता है?

उत्तर : अंत में कवि यहीं अनुनय करता है कि चाहें उसके जीवन में सुख के पल हों अथवा उसके जीवन में दुख के पल हों, वह हर समय ईश्वर को निरंतर याद करता रहे। उसके मन से ईश्वर के प्रति आस्था-विश्वास कभी भी कम ना हो। चाहे पूरे संसार के लोगों उसे धोखा दे दें, चाहे चारों तरफ उसे दुख घेर लें, लेकिन ईश्वर के प्रति उसकी आस्था उसका विश्वास कभी कम ना हो। ईश्वर के प्रति उसकी आस्था विश्वास ही उसे हर संकट से सामना करने की सामर्थ्य प्रदान करेगा और सुख के पलों में ईश्वर के प्रति उसकी आस्था उसका विश्वास से वह कोई भी गलत कार्य करने से बचेगा।

प्रश्न-5 : ‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : ‘आत्मत्राण’ कविता का शीर्षक कविता के मूल भाव को स्पष्ट करता है, इसीलिए कविता का शीर्षक पूरी तरह सार्थक शीर्षक है। ‘आत्मत्राण’ का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात स्वयं के मन के भय का निवारण करना और भय से मुक्ति पाना। कवि स्वयं यही चाहता है कि उसके मन में व्याप्त उसका भय पूरी तरह दूर हो जाए और वह निर्भय होकर अपना जीवन जिए।

‘आत्मत्राण’ शीर्षक में ‘आत्म’ शब्द का प्रयोग कवि ने स्वयं के लिए तथा प्राण शब्द का प्रयोग बचाव के लिए किया है, अर्थात कवि स्वयं के बचाव की प्रार्थना ईश्वर से कर रहा है। कवि ईश्वर से यह नहीं चाहता कि उसे जीवन में कोई दुख तकलीफ ना हो, उस पर कोई आपदा विपदा ना आए। यह जीवन के अहम चरण हैं, जो आने ही हैं। कवि ईश्वर से यह भी नहीं चाहता कि ईश्वर उसकी हर आपदा-विपदा, परेशानी को चुटकियों में हल कर दें। बल्कि कवि ईश्वर से यह चाहता है कि उसके जीवन में जो भी आपदा आये, ईश्वर उसे इन सब से संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करें। ईश्वर उसे आत्मविश्वास, आत्मबल, साहस प्रदान करें ताकि वह इन सभी  से संघर्ष कर इन पर विजय पा सके और भय मुक्त होकर रह सके।

प्रश्न-6 : अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।

उत्तर : अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम ईश्वर की प्रार्थना करने के अलावा कई अन्य प्रयास भी करते हैं। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम सबसे पहले कर्म को महत्व देते हैं। ईश्वर की प्रार्थना हमेशा साहस और बल प्रदान करती है, लेकिन आखिर में कर्म तो हमें ही करना है, यह बात हम हमें पता है। इसीलिए हमारे लिए पहले कर्म करना महत्वपूर्ण है। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम एक लक्ष्य बनाकर और उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक योजना बनाते हैं और उसी योजना के अनुसार कार्य करने के लिए कठोर परिश्रम करते हैं।

हमें अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए धैर्य और परिश्रम के समन्वय की आवश्यकता होती है। धैर्य धारण करते हुए निरंतर परिश्रम करते रहेंगे तो हमारी कोई भी इच्छा पूरी हो सकती है। ईश्वर से प्रार्थना करने से हमारे जो संघर्ष है, हमारा जो परिश्रम है, वह आसान हो जाता है। इसलिये ईश्वर से प्रार्थन के अतिरिक्त हमें परिश्रम, धैर्य, आत्मविश्वास, आत्मबल की भी आवश्यकता होती है।

प्रश्न-7 क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?

उत्तर : कवि की यह प्रार्थना हमें अन्य प्रार्थना से अलग लगती है, क्योंकि अन्य प्रार्थना में लोग स्वयं के लिए धन-वैभव, सुख-संपत्ति, संतान, समृद्धि, भौतिक वस्तुएं आदि यह सभी मांगते हैं। वह अपने जीवन को सुख वैभव सुख से परिपूर्ण करने के लिए ही प्रार्थना करते हैं। जबकि इस प्रार्थना में कवि ऐसा कुछ नहीं मांग रहा। वह ईश्वर से सीधे तौर पर धन-वैभव, संपत्ति, सुख आदि की कामना नहीं कर रहा।

कवि इस प्रार्थना के माध्यम से स्वयं के लिए संघर्ष करने की शक्ति मांग रहा है, आत्मबल मांग रहा है, वह आत्मविश्वास मांग रहा है और इस प्रार्थना में वह केवल स्वयं के लिए ही नही बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए ही इन गुणों की मांग रहा है। कवि इस प्रार्थना के माध्यम से ईश्वर से सीधे तौर पर सुख-वैभव नहीं मांग कर अपने लिए जीवन में संघर्ष करने की सामर्थ्य मांग रहा है। इस तरह इस प्रार्थना में कर्महीन न बनकर कर्मशील बनने की प्रार्थना कर रहा है, इसलिए ये प्रार्थना उसे दूसरी प्रार्थनाओं से अलग करती है।



(ख) निम्नलिखित अंशो का भाव स्पष्ट कीजिए।

1. नत शिर होकर सुख के दिन में तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।

भाव : कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहता है कि हमें ईश्वर को हर पल, हर क्षण, हर घड़ी याद करते रहना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है कि हम मनुष्य लोग ईश्वर को दुख की घड़ी में तो खूब याद करते हैं, लेकिन जब हम सुख के पलों में होते हैं तो ईश्वर तो भूल जाते हैं। तब हमें स्वयं पर अहंकार हो जाता है कि हमने जो भी सुख अर्जित किया है वह अपने कर्मों से अर्जित किया है और उसमें ईश्वर का कोई योगदान नहीं। इसलिए हम ईश्वर को याद करना भूल जाते हैं। लेकिन जब दुख की घड़ी आती है तो हमें ऐसा लगता है कि हमें जो दुख मिले हैं वह हमें ईश्वर ने दिए हैं और फिर हम ईश्वर से उन दुखों से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। तब हमें ईश्वर ही याद आते हैं।

कवि कहना चाहता है कि भले ही हमारे कर्म उत्तरदायी होते हैं, लेकिन सब हमें ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद के फलस्वरुप ही मिलता है, इसीलिए हमें सुख-दुख दोनों घड़ियों में ईश्वर को समान भाव से स्मरण करते रहना चाहिए और सुख की घड़ी में कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए।

2. हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही तो भी मन में ना मानूँ क्षय।

भाव : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है जीवन में ऐसे अनेक पल आएंगे, जब हमें दूसरों के कारण हानि उठानी पड़ सकती है, हमें संसार के लोगों से छल कपट का सामना करना पड़ सकता है। हमें ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, जब हमारा कोई साथ ना दे रहा हो और सब हमारे विरुद्ध हो गए हों। लेकिन इन सब बातों के लिए हमें कभी भी ईश्वर को दोष नहीं देना चाहिए और ईश्वर के प्रति आस्था एवं विश्वास बनाए रखना चाहिए।

हमें अपने मन में निराशा और दुख हो का भाव कभी भी उत्पन्न नहीं होने देना है। हमारा आत्मबल, हमारा मनोबल सदैव बना रहे, चाहे कैसी भी स्थिति क्यों ना हो। कवि के कहने का भाव यह है कि चाहे कितनी भी दुख की स्थिति क्यों न हो, कितनी भी हानि क्यों ना हो, लेकिन ईश्वर के प्रति हमारा विश्वास कभी भी डगमगाना नहीं चाहिए और हमारा आत्मबल कमजोर नहीं पड़ना चाहिए।

3. तरने की हो शक्ति अनामय मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।

भाव : कवि यह कहना चाहता है कि जीवन में किसी भी तरह की विपरीत परिस्थितियों से घिरा होने पर भी यदि उसे ईश्वर से अन्य किसी से कोई सांत्वना, सहायता आदि ना मिले तो भी कोई बात नहीं। जीवन की विपरीत परिस्थितियों में उसे लोगों से सहयोग ना मिले तो भी कोई बात नहीं। वह ये नही चाहता कि ईश्वर उसके दुखों का भार एकदम से कम कर दे बल्कि वह यह चाहता है कि उसे इन दुखों से लड़ने की सामर्थ्य, शक्ति ईश्वर से सदैव मिलती रहे ताकि वह अपनी साहस और आत्मबल से इन सभी दुखों पर विजय पा सके।

कवि सांत्वना अथवा सहायता की अपेक्षा की जगह जीवन के संघर्षों से सामना करने की सामर्थ्य चाहता है, ताकि वह निर्भय होकर और विपरीत परिस्थिति से लड़ सके और उन पर विजय पा सके।



योग्यता विस्तार

1. रविंद्र नाथ ठाकुर ने अनेक गीतों की रचना की है। उनके गीत संग्रह में से दो गीत छांटे और कक्षा में कविता पाठ कीजिए।

उत्तर : रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने जीवनकाल में कई अद्भुत गीतों की रचना की है। यहाँ उनके गीत संग्रह में से दो प्रसिद्ध गीत दिए जा रहे हैं जिन्हें विद्यार्थी अपनी कक्षा में कविता पाठ के लिए चुन सकते हैं। विद्यार्थिोयों की सहायता के लिए दो गीत यहाँ पर दिए जा रहे हैं।

गीत 1: एकला चलो रे

यह गीत आत्मविश्वास और साहस का प्रतीक है। इसमें संदेश दिया गया है कि अगर कोई आपका साथ नहीं देता है, तो भी अपने रास्ते पर अकेले चलना चाहिए।

गीत

जोदि तोर डाक शुने केउ ना आशे
तोबे एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे।

जोदि केउ काथा ना कोए,
ओ रे ओ रे ओ अबाक ओरे,
तोबे पोथेर काँटा डुराए मोंथा,
एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे।

जोदि आलो ना धोरे,
ओ रे ओ रे ओ अबाक ओरे,
तोबे जोलाए निजेर पाँजर लाल,
एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे।

गीत 2 : आमार शोनार बांग्ला

यह गीत रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित और बांग्लादेश का राष्ट्रगान है। इस गीत में बांग्ला भूमि की सुंदरता और उसकी महानता का वर्णन किया गया है।

गीत

आमार शोनार बांग्ला, आमी तोमाय भालोबाशी।
चिर दिन तोमार आकाश, तोमार बाताश, आमा प्राणे बाजाए बाशी।
आमार शोनार बांग्ला, आमी तोमाय भालोबाशी।

ओ माँ, फागुनेर आमेर बने, घेरो आछे तुमि,
ओ माँ, ओ माँ, हेमन्ते फुलो भरे, ओ माँ, तुमारो दलारी छुमि।
ओ माँ, ओ माँ।
आमार शोनार बांग्ला, आमी तोमाय भालोबाशी।“`

इन दोनों गीतों का पाठ कक्षा में करने से विद्यार्थियों को रवींद्रनाथ ठाकुर की काव्य प्रतिभा और उनके गीतों में छिपे संदेश को समझने का अवसर मिलेगा।

2. अनेक अन्य कवियों ने भी प्रार्थना गीत लिखे हैं, उन्हें पढ़ने का प्रयास कीजिए जैसे…
(क) महादेवी वर्मा – ‘क्या पूजा क्या अर्चना रे’
(ख) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला – दलित जन पर करो करुणा
(ग) इतनी शक्ति हमें देना दाता
मन का विश्वास कमजोर हो न
हम चले नेक रस्ते पर हमसे
भूलकर भी कोई भूल हो ना
इस प्रार्थना को ढूंढ कर पूरा पढ़िए और समझिए कि दोनों प्रार्थनाओं में क्या समानता है। क्या आपको दोनों प्रार्थनाओं में कोई भी अंतर प्रतीत होता है? इस पर आपस में चर्चा कीजिए।

उत्तर : हमने महादेवी वर्मा द्वारा लिखित प्रार्थना ‘क्या पूजा क्या अर्चना रे’ पढ़ी। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित प्रार्थना ‘दलित जन पर करो करुणा’ पढ़ी और उसके अतिरिक्त ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ जैसी प्रसिद्ध प्रार्थना भी पढ़ी। इन तीनों प्रार्थनाओं की तुलना जब रविंद्र नाथ ठाकुर द्वारा रचित ‘आत्मत्राण’ नामक कविता से की तो सभी में हमें यही समानता दिखाई थी कि सब में मानवता की बात की गई है। हर प्रार्थना में ईश्वर से प्रार्थना करते हुए मानव के हित के लिए प्रार्थना की गई है और सभी प्रार्थनाओं में करुणा और संवेदना प्रकट होती है, जो समाज के असहाय और निर्बल वर्गों के लिए ही हैं।



परियोजना कार्य

1. रवींद्र नाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय होने का गौरव प्राप्त है। उनके विषय में और जानकारी एकत्र कर परियोजना पुस्तिका में लिखिए।

उत्तर : रवींद्रनाथ ठाकुर के बारे मे जानकारी

परिचय
रवींद्रनाथ ठाकुर, जिन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय कवि, संगीतकार, और दार्शनिक थे। उनका जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। ठाकुर भारतीय साहित्य, कला और संगीत में अद्वितीय योगदान के लिए जाने जाते हैं। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीता।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म एक समृद्ध और सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ ठाकुर और माता का नाम शारदा देवी था। ठाकुर ने औपचारिक शिक्षा की अपेक्षा घर पर ही शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने विदेशों में भी शिक्षा ग्रहण की, लेकिन उनकी रुचि भारतीय साहित्य और संगीत में अधिक थी।

साहित्यिक योगदान
रवींद्रनाथ ठाकुर ने विभिन्न साहित्यिक रचनाओं की रचना की, जिनमें कविताएं, कहानियां, उपन्यास, नाटक और निबंध शामिल हैं। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं:
1. गीतांजलि – यह कविताओं का संग्रह है जिसके लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार मिला।
2. गोरा – यह एक सामाजिक उपन्यास है जो भारतीय समाज की जटिलताओं को उजागर करता है।
3. घरे-बाइरे (घर और बाहर) – यह उपन्यास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि पर आधारित है।
4. चित्रांगदा – यह एक नाटक है जो महाभारत की एक कहानी पर आधारित है।

संगीत और कला
रवींद्रनाथ ठाकुर ने ‘रवींद्र संगीत’ नामक एक अनूठी संगीत शैली की रचना की, जो आज भी बंगाल और पूरे भारत में लोकप्रिय है। उन्होंने कई प्रसिद्ध गीतों की रचना की जिनमें ‘एकला चलो रे’ और ‘आमार शोनार बांग्ला’ शामिल हैं। ‘आमार शोनार बांग्ला’ बांग्लादेश का राष्ट्रगान है।

नोबेल पुरस्कार 
रवींद्रनाथ ठाकुर को 1913 में उनके कविता संग्रह “गीतांजलि” के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। यह पुरस्कार पाने वाले वे पहले गैर-यूरोपीय और पहले भारतीय थे। उनके इस सम्मान ने भारतीय साहित्य को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।

शांति निकेतन
रवींद्रनाथ ठाकुर ने 1901 में शांति निकेतन की स्थापना की, जो एक अद्वितीय शिक्षण संस्थान है। इसका उद्देश्य था भारतीय और पश्चिमी शिक्षा का समन्वय करना और एक ऐसी शिक्षा प्रणाली प्रदान करना जो प्रकृति के करीब हो। शांति निकेतन आज भी एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है, जिसे विश्वभारती विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है।

निधन
रवींद्रनाथ ठाकुर का निधन 7 अगस्त 1941 को कोलकाता में हुआ। उनकी मृत्यु भारतीय साहित्य और कला के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन उनकी रचनाएं और विचार आज भी जीवित हैं और लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष
रवींद्रनाथ ठाकुर भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रतीक थे। उनके अद्वितीय योगदान ने न केवल भारतीय साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और विचारधारा का प्रचार-प्रसार भी किया। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय होने के नाते, उन्होंने भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय मंच पर गौरवान्वित किया। उनकी रचनाएं और उनके द्वारा स्थापित संस्थान शांति निकेतन उनकी विरासत को हमेशा जीवित रखेंगे।

सन्दर्भ
1. रवींद्रनाथ ठाकुर की जीवनी और रचनाएं।
2. गीतांजलि और अन्य प्रमुख रचनाएं।
3. शांति निकेतन और उसके उद्देश्य।
4. नोबेल पुरस्कार और उसकी महत्ता।

इस प्रकार की परियोजना पुस्तिका के माध्यम से रवींद्रनाथ ठाकुर के जीवन और उनके महान कार्यों को समझा और प्रस्तुत किया जा सकता है।

2. रविंद्र नाथ ठाकुर की गीतांजलि को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।

उत्तर :  विद्यार्थी अपने गाँव-शहर के नजदीक पुस्तकालय जाएं और वहाँ से रवींद्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ पुस्तक को लेकर पढ़ें। यदि पुस्तक उपलब्ध नहीं हो तो पुस्तकालय के संचालकों से पुस्तक मंगाने का अनुरोध करें।

3. रविंद्र नाथ ठाकुर ने कलकत्ता (कोलकाता) के निकट एक शिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। पुस्तकालय की मदद से उसके विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।

उत्तर : रवींद्रनाथ ठाकुर ने 1901 में पश्चिम बंगाल के बोलपुर, बीरभूम जिले के पास एक छोटे से गांव में ‘शांति निकेतन’ की स्थापना की थी। इस संस्थान का उद्देश्य भारतीय और पश्चिमी शिक्षा का समन्वय करना और एक ऐसी शिक्षा प्रणाली प्रदान करना था जो प्रकृति के करीब हो और सृजनात्मकता को बढ़ावा दे। बाद में, 1921 में शांति निकेतन को ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ का दर्जा प्राप्त हुआ।

रवींद्रनाथ ठाकुर का मानना था कि शिक्षा केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उन्होंने शिक्षा को जीवन का एक अभिन्न हिस्सा मानते हुए उसे व्यापक दृष्टिकोण से देखा। उन्होंने विद्यार्थियों में स्वतंत्र सोच और नवाचार को बढ़ावा देने पर बल दिया।

1921 में शांति निकेतन को ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ का दर्जा प्राप्त हुआ। यह विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र बना। विश्वविद्यालय का उद्देश्य था ‘यत्र विश्वम भवत्येक नीडम’ अर्थात ‘जहां पूरी दुनिया एक परिवार बन जाती है’।

शांति निकेतन और विश्वभारती विश्वविद्यालय भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। रवींद्रनाथ ठाकुर के दृष्टिकोण और उनके प्रयासों ने इस संस्थान को विशिष्ट और अद्वितीय बनाया है। यहां की शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों में स्वतंत्रता, सृजनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा देती है। शांति निकेतन और विश्वभारती विश्वविद्यालय आज भी ठाकुर की शिक्षाओं और विचारधाराओं को जीवित रखे हुए हैं, और विश्वभर में शिक्षा के एक अनूठे मॉडल के रूप में जाने जाते हैं।

4. रविंद्र नाथ ठाकुर ने अनेक गीत लिखे, जिन्हें आज भी गया जाता है और उसे रवींद्र संगीत कहा जाता है। यदि संभव हो तो रवींद्र संगीत संबंधी कैसेट व सीडी लेकर सुनिए।

उत्तर : आजकल कैसेट और सीडी का प्रचलन खत्म हो गया है। विद्यार्थी चाहें तो रवींद्र संगीत के गीत किसी पेनड्राइव में भरवा कर अपने कम्प्यूटर के माध्यम से सुन सकते हैं। अथवा इंटरनेट से रवींद्र संगीत डाउनलोड कर सकते हैं।


आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions)


कक्षा-10 हिंदी स्पर्श 2 पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ

साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

कर चले हम फिदा : कैफ़ी आज़मी (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श भाग-2) (हल प्रश्नोत्तर)

मान लीजिए आपकी मुलाकात किसी दूसरे ग्रह के निवासी से हो जाती है। दूसरे ग्रह के निवासी के साथ हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद

दूसरे ग्रह के निवासी के साथ हुई बातचीत

 

(पृथ्वी से लाखों किलोमीटर दूर स्थित एक ग्रह एक एलियन पृथ्वी पर आता है, जहाँ वो मुझसे टकरा जाता है। हमारी बातचील का सिलसिला शुरु होता है। उसके साथ हुई बातचीत  इस प्रकार है।)

एलियन ⦂ डोको डोको, मित्र।

मैं ⦂ ये आप क्या कह रहे हो? ये डोको डोको क्या है? यह डोको डोको क्या है मित्र और आपकी शक्ल भी मुझे अजीब सी दिखाई दे रही है। आपके कान बेहद लंबे हैं। आपकी नाक भी बेहद नुकीली और तीखी है जो आगे की तरफ मुड़ी हुई है। आपकी आँखें भी बड़ी-बड़ी हैं और आपके बाल बेहद छोटे-छोटे हैं। मुझे लगता है, आप किसी नाटक कंपनी में काम करते हो या किसी फिल्म में काम करने के लिए आपने यह मेकअप किया हुआ है।

एलियन ⦂ नहीं, मित्र मैंने मेकअप नहीं किया है। मैं सचमुच में एलियन हूँ और आपकी पृथ्वी से लाखों किलोमीटर दूर स्थित ‘बोकोरा’ नामक ग्रह से आया हूँ। ‘डोको डोको’ हमारे यहाँ किसी भी अजनबी या मित्र आदि से अभिवादन करने की शैली है, जैसे आपके यहाँ भारत में ‘नमस्ते’ कहकर अभिवादन किया जाता है।

मैं ⦂ वाह! आप सचमुच में एलियन हो। फिर तो बहुत अच्छा है। मेरी तरफ से आपको भी डोको डोको मित्र। मुझे आपसे मिलकर बड़ी खुशी हुई। यह तो बहुत रोमांचित करने वाली बात है कि मैं अपनी आँखों से किसी एलियन को देख रहा हूँ। मैंने अभी तक एलियन के बारे में केवल किताबों और टीवी में पढ़ा-देखा-सुना था। आज मैं सचमुच किसी एलियन को देख रहा हूँ। मेरे लिए कितना रोमांचक पल है।

एलियन ⦂ हाँ, मित्र मैं सचमुच में एलियन हूँ। मुझे भी आपसे मिलकर बड़ी खुशी हुई।

मैं ⦂ आपको हमारे भारत देश का नाम भी पता है। हमारी सुंदर पृथ्वी और हमारे प्यारे देश भारत मे आपका स्वागत है।  मित्र, क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ।

एलियन ⦂ मित्र मेरा नाम ‘डोंगो’ है। जैसा कि मैंने आपको पहले बताया कि मैं ‘बोकोरा’ नामक ग्रह से आया हूँ। मित्र, आपका नाम क्या है?

मैं ⦂ डोंगो जी, मेरा नाम शिवम है। आपका हमारी पृथ्वी पर आना कैसे हुआ?

एलियन ⦂ मित्र शिवम, हमारे ग्रह पर अलग-अलग ब्रह्मांड के उन ग्रहों को खोजने का कार्य चल रहा है, जिन पर जीवन है। इसी क्रम में हमें आपकी पृथ्वी के बारे में जानकारी मिली और फिर हमारे ग्रह के वैज्ञानिकों ने मुझे आपकी पृथ्वी पर भेजा था कि मैं यहां से जानकारी प्राप्त कर सकूं। आपकी पृथ्वी के जीवन को समझ सकूं।

मैं ⦂ लेकिन मित्र, आप आप इतनी अच्छी हिंदी कैसे बोल पा रहे हो? आपको हमारी भाषा कैसे आती है?

एलियन ⦂ मित्र, हमारे ग्रह की तकनीक बेहद एडवांस है। हमारे मस्तिष्क में एक ऐसा यंत्र चिप के रूप में फिट है, जिसके माध्यम से हम किसी भी भाषा को समझ सकते हैं और उसे आसानी से बोल सकते हैं।

मैं ⦂ मित्र, आपके ग्रह की ये तकनीक तो अद्भुत है। आपको हमारी पृथ्वी कैसी लगी?

एलियन ⦂ आपकी पृथ्वी बहुत सुंदर है, मित्र। आपकी पृथ्वी पर बहुत हरियाली है। आपकी पृथ्वी प्राकृतिक सुंदरता से समृद्ध है। हमारे ग्रह पर इतनी अधिक प्राकृतिक सुंदरता नहीं है। मैं कई ग्रहों पर गया लेकिन आपकी पृथ्वी जितना सुंदर ग्रह और कोई नहीं है।

मैं  ये बात तो है मित्र। हमारी पृथ्वी सुंदर तो है। हमारी पृथ्वी के बारे में इतनी प्रशंसा के लिए आपका शुक्रिया है। आपको हमारा भारत देश कैसा लगा?

एलियन ⦂ मुझे आपका भारत देश भी अच्छा लगा। हमारे अंतरिक्ष यान ने सबसे पहले आपके भारत देश मे ही लैंड किया। उसके बाद मैं अलग-अलग देशों मे गया, लेकिन मुझे आपका भारत देश सबसे अधिक सुंदर और प्यारा लगा, इसलिए पूरी पृथ्वी पर घूमने के बाद मैं आपके देश में वापस आया और अब यहीं से अपने ग्रह वापस जाऊंगा।

मैं ⦂ मित्र! आप मेरे घर चलो, मैं आपको स्वादिष्ट भारतीय भोजन कराता हूँ।

एलियन ⦂ बहुत-बहुत शुक्रिया मित्र, लेकिन अभी मेरे पास समय नहीं है। मेरा अंतरिक्ष मुझे वापस ले जाने के लिए थोड़ी ही देर में वापस आने वाला है। मेरे पास उसके सिग्नल आ रहे है। मुझे आपकी पृथ्वी और आपका देश बहुत अच्छा लगा। मैं यहाँ पर फिर आऊंगा और इस बार अपने मित्र और बेटे को साथ लेकर आऊंगा। मुझे उनको आपकी सुंदर पृथ्वी दिखानी है। तब मैं आपके घर भोजन जरूर करूंगा।

मैं ⦂ ठीक है मित्र। मैं आपका इंतजार करूंगा। आप इसी पार्क में आ जाना। मैं आपको शाम के समय यहीं मिलूंगा।

एलियन ⦂ ठीक है मित्र, आपको मेरी तरफ से नमस्ते और डोको डोको।

मैं ⦂ नमस्ते, डोको डोको जी।


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जब मैं बारिश में भीगा…

 

बारिश का मौसम हमेशा से मुझे बहुत प्रिय रहा है। जब भी बादल गरजते हैं और बारिश की बूंदें धरती पर गिरती हैं, तो मेरा मन खुशी से झूम उठता है। एक दिन, जब मैं स्कूल से घर लौट रहा था, अचानक बारिश शुरू हो गई। मेरे पास छाता नहीं था, लेकिन मैंने सोचा कि क्यों न इस बारिश का आनंद लिया जाए। मैंने अपने बैग को एक दुकान में सुरक्षित रखा और खुले आसमान के नीचे आ गया। बादलों से झमाझम बारिश हो रही थी, और मैं बारिश में भीगने का आनंद लेने लगा।

बारिश की ठंडी बूंदें जब मेरे चेहरे और हाथों पर गिरने लगीं, तो एक अलग ही सुकून का अनुभव हुआ। मेरी सारी थकान और तनाव पल भर में गायब हो गए। हर बूंद जैसे मेरे मन को शांति और ताजगी का एहसास कराती रही। मैंने भीगते-भीगते रास्ते में बने छोटे-छोटे पानी के गड्ढों में कूदना शुरू कर दिया, जिससे मेरे कपड़े और भीग गए। बच्चों की तरह मस्ती करते हुआ बहुत देर तक यूँ ही बारिश में मस्ती करता रहा।

रास्ते में मुझे बहुत सारे लोग दिखे जो बारिश से बचने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे, लेकिन मैंने उनकी परवाह नहीं की। मेरे लिए वह पल सबसे खास था। जब मैं घर पहुंचा, तो माँ ने मुझे भीगा देखकर पहले गुस्सा जताया फिर मेरे चेहरे की खुशी देखकर वह भी मुस्कुरा दीं।

उस दिन मैंने महसूस किया कि कभी-कभी हमें अपने रोजमर्रा के जीवन से थोड़ा हटकर ऐसे पलों का आनंद लेना चाहिए। बारिश में भीगने का वह अनुभव मेरे जीवन के सबसे खूबसूरत पलों में से एक बन गया।


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मेरा प्रिय मित्र का नाम अनिकेत है। वह न केवल मेरा सहपाठी है, बल्कि मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा भी हैं। अनिकेत मेरे सभी मित्रों में मुझे सबसे अधिक प्रिय है। अनिकेत का स्वभाव बहुत ही सरल और सौम्य है। वह हमेशा मेरी मदद करने के लिए तत्पर रहता है। चाहे पढ़ाई हो या कोई व्यक्तिगत समस्या वह हर समय मेरे लिए उपलब्ध रहता है। उसकी सबसे खास बात यह है कि वह कभी भी किसी को निराश नहीं करता और हमेशा सकारात्मक सोचता है। हम दोनों के बीच मित्रा का संबंध बहुत अधिक मजबूत है और हमारे बीच गहरी समझ है। अनिकेत एक कुशल खिलाड़ी भी है और वह हमारे विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान भी है। मैं उसके नेतृत्व में खेलकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हूँ। उसकी मेहनत और लगन मुझे प्रेरित करती है। उसके साथ बिताए हुए सभी पल मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। अनिकेत की दोस्ती मेरे लिए इस जीवन में अनमोल उपहार से कम नहीं है। मेरे प्रिय मित्र अनिकेत की दोस्ती ने मेरे जीवन को खुशियों और आनंद से भर दिया है। मुझे अपने प्रिय मित्र अनिकेत पर बहुत गर्व है।


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यदि मैं हवाई जहाज होता, तो आसमान में ऊँची उड़ान भरता और दुनिया के हर कोने को देखने का मौका पाता। मैं बादलों के बीच से गुजरते हुए विभिन्न देशों और उनकी संस्कृतियों का अनुभव करता। हर दिन नई-नई जगहों पर उतरता और लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाता।

यदि मैं हवाई जहाज होता तो मेरा जीवन रोमांचक और चुनौतीपूर्ण होता क्योंकि मैं अलग-अलग देशों में जाता, जहाँ पर अलग-अलग भौगोलिक परिस्थातियां होती है। हवाई जहाज होने पर मैं ऊंचाईयों को छूता और हवा से बातें करता हुआ बादलों के बीच से गुजरता। मैं बादलों से बातें करता और उनसे कहता कि तुम समय पर बरस जाया करो। अलग-अलग देशों के हवाई अड्डों पर रुकते समय, मुझे विभिन्न भाषाओं को जानने का मौका मिलता और तरह-तरह के लोगों से मुलाकात होती।

यदि मैं हवाई जहाज होता तो लोग मेरी वजह से अपने प्रियजनों से मिलते, नए स्थानों की खोज करते और अपने सपनों को पूरा करते। इस तरह लोगों को उनके प्रियजनों से मिलाकर, उनके गंतव्य तक पहुँचाकर मुझे अपार आनंद आता। यदि मैं हवाई जहाज होता मैं देशों की सीमाओं के बंधन से परे आसमान की उँचाईयों को छूता और विभिन्न देशों की दूरियों को नापता।


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अनुवांशिक लक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चरणबद्ध संचरण क्या कहलाता है?

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आनुवंशिक लक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चरणबद्ध संचरण ‘वंशागति’ कहलाता है।

जब किसी परिवार में किसी संतान का जन्म होता है तो संतान के आँख, नैन-नक्श, रंग-रूप, बाल के रंग आदि माता-पिता अथवा उसके भाई-बहनों अथवा दादा-दादी, नाना-नानी आदि से मिलते हैं। यह सभी लक्षण संतान अपने पूर्वजों विशेषकर माता-पिता से प्राप्त करती है। पीढ़ी दर पीढ़ी अनुवांशिकता के इन लक्षणों का संचरण वंशागति कहलाता है। कहने का अर्थ यह है कि अभिलक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अर्थात माता-पिता से संतति में संचरण वंशागति कहलाता है। पीढ़ी दर पीढ़ी ये क्रम चलता रहता है। हालाँकि माता-पिता के सभी लक्षण संतार में समान नही होते कुछ लक्षण संतति में भिन्न भी होते है।


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बुद्धि लब्धि क्या है? विस्तार से बताएं। इंटेलीजेंट कोशेंट (आइक्यू) — Intelligent Quotient (IQ)

रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या निर्धारण कैसे किया जाता है ?

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रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या का निर्धारण करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि पात्रों की संख्या बहुत अधिक नहीं हो। किसी भी रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या अधिकतम लगभग 5 या 6 ही रखी जाती है। पात्रों की संख्या 5 या 6 रखे जाने का मुख्य कारण यह होता है कि अधिक संख्या में प्राप्त होने पर श्रोता भ्रमित हो सकते हैं। रेडियो नाटक केवल सुना जाता है और रेडियो नाटक को सुनने वाला श्रोता अपनी क्षमता के आधार पर ही पात्रों को याद रख पाता है।

यदि रेडियो नाटक में बहुत अधिक संख्या में पात्र होंगे तो श्रोता सभी पात्रों को याद नहीं रख पाएगा। कम पात्रों के होने पर श्रोता पात्रों को ठीक-ठाक से याद रख पाता है और उसे नाटक में भी आनंद आता है। जब तक श्रोता पात्र को सही से समझ नहीं पाएगा उसे पात्रों के नाम याद नहीं होंगे, उसे नाटक में भी आनंद नहीं आएगा और ना ही नाटक की कथावस्तु से समझ में आएगी। इसलिए रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या तथा इसकी अवधि दोनों सीमित रखे जाते हैं ताकि श्रोता पात्रों को अच्छे से याद कर नाटक का भरपूर आनंद ले सके बल्कि सही समय पर नाटक समाप्त हो जाए और श्रोता बोर नहीं हो।


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‘भवनम’ का संधि विच्छेद करो।

भवनम का संधि विच्छेद :

भवनम : भो + अनम
संधि भेद : अयादि स्वर संधि

स्पष्टीकरण

‘भवनम’ में अयादि स्वर संधि है, क्योकि अयादि स्वर संधि के नियम के अनुसार जब ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ के साथ अन्य कोई भी स्वर हो तो ‘ए’ का ‘अय’ बन जाता है, ‘ऐ’ का ‘आय’ बन जाता है, ‘ओ’ का ‘अव’ तथा ‘औ’ का ‘आव’ बन जाता है।
‘भवनम’ में ‘ओ’ और ‘अ’ का मेल होकर ‘अव’ बन रहा है, इसलिए ‘भवनम’ में ‘अयादि स्वर संधि’ है।

अयादि संधि, स्वर संधि के पाँच उपभेदों में एक भेद होती है।
स्वर संधि के पाँच भेद होते है।

  1. दीर्घ स्वर संधि
  2. गुण स्वर संधि
  3. वृद्धि स्वर संधि
  4. यण स्वर संधि
  5. अयादि स्वर संधि

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आदि + अंत की संधि और संधि का नाम लिखिए।

‘निः + आकार’ में संधि बताइए।

बंधक भंडारगृह के तीन लाभों की गणना कीजिए।

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बंधक भंडारगृह के तीन लाभ इस प्रकार हैं…

  • बंधक भंडार गृह के निर्माण का मुख्य उद्देश्य आयातित वस्तुओं के भंडार के लिए ही किया जाता है।
  • बंधक भंडार गृह में उन आयातित वस्तुओं का भंडारण किया जाता है, जिन पर आयात कर नहीं चुकाया गया है। बिना आयातकर चुकाये ये आयातित माल आयातक बंदरगाह से बाहर नहीं ले जा सकता और उसे तब तक बंधक भंडार गृह में रखा जाता है, जब तक आयातक उस पर लागू आयात कर सरकार को चुका ना दें।
  • बंधक भंडार गृह वे भंडार गृह होते हैं जो सामान्यतः किसी बंदरगाह अथवा गोदी के पास स्थित होते हैं और बंदरगाह या गोदी प्राधिकरण द्वारा समुद्र तट के आसपास संचालित किए जाते हैं।
  • बंधक भंडार ग्रह का स्वामित्व सरकार अथवा निजी संस्थानों के पास होता है। निजी संस्थानों को बंधक भंडार गृह संचालन करने के लिए सरकार द्वारा लाइसेंस लेना आवश्यक होता है।
वस्तुओं के भंडार के आधार पर भंडारगृह पाँच प्रकार के होते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं…
  • निजी भंडारगृह
  • सार्वजनिक भंडारगृह
  • सरकारी भंडारगृह
  • बंधक भंडारगृह
  • सहकारी भंडारगृह

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थल थल में बसता है शिव ही, भेद न कर क्या – हिन्दू मुसलमाँ। ज्ञानी है तो स्वयं को जान, वहीं है साहिब की पहचान।। (भावार्थ बताएं)

पंखि उड़ानी गगन कौं, पिण्ड रहा परदेस । पानी पीया चंचु बिनु, भूलि या यहु देस ।। व्याख्या कीजिए।

जीवन रूपी पथ पर निरंतर गतिशील रहने की प्रेरणा देते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें​।

अनौपचारिक पत्र

जीवन रूपी पथ पर निरंतर गतिशील रहने की प्रेरणा देते हुए मित्र को प्रेरणादायी पत्र

 

दिनांक : 21 जून 2024

प्रिय मित्र दीपांशु,
तुम्हें मेरा स्नेह रूपी अभिवादन,

तुम्हारी कुशलता की कामना करते हुए आज तुम्हे कुछ प्रेरणादायी बाते कहना चाहता हूँ। मुझे पता चला है कि तुम आजकल कुछ निराशा के दौर से गुजर रहे हो। तुम जिस काम में संलग्न हो उसमें सफलता नहीं मिलने के कारण तुम्हारे मन में निराशा के भाव उत्पन्न हो रहे हैं।
मित्र, मैं तुम्हें समझाना चाहूंगा कि यह जीवन है। इसमें हमें सुख-दुख सभी का सामना करना पड़ता है, लेकिन हमें जीवन रूपी पथ पर निरंतर गतिशील रहना पड़ता है। यह जीवन एक यात्रा के समान है। इस जीवन रूपी पथ पर जब तक हम निरंतर चलते रहेंगे तब ही हम अपने लक्ष्य को पा सकते हैं। जीवन रूपी इस पथ में हमारे रास्ते में कई तरह की बाधाएं भी आ सकती हैं, लेकिन हमें उन बाधाओं से घबराना नहीं है और निरंतर इस पथ पर चलते ही जाना है तो एक न एक दिन हमारा लक्ष्य हमें अवश्य प्राप्त होगा।

इसलिए मैं तुमको कहना चाहूंगा कि तुम अपने कार्य में आने वाली किसी भी तरह की बाधाओं से निराश मत हो बल्कि यह समझ लो यह तुम्हारी परीक्षा की घड़ी है। तुम्हें इस परीक्षा में उत्तीर्ण होना है और निरंतर आगे बढ़ते रहना है। एक ना एक दिन तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होगी। आशा है मेरी बातें तुम्हारी मन की निराशा को दूर करने मैं सहायक सिद्ध होंगी।

तुम्हारा अभिन्न मित्र,
निरंजन ।


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माँ के बिना बच्चे का उचित विकास नहीं हो पाता है, क्योंकि बिना माँ के बच्चे अपना जीवन व्यतीत तो कर लेते है लेकिन वह माँ को हर बात पर महसूस करते है। वह बिना माँ के अपने जीवन में बहुत कुछ सीखते तो हैं, पर हर पल वह अपनी माँ के आंचल का अभाव महसूस करते है। माँ के बिना बच्चे को वह प्रेम और स्नेह नहीं मिल पाता जिसकी उन्हें बचपन में जरूरत होती है। इसलिए ऐसे बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं।

माँ तो भगवान के समान होती है, जो हमेशा अपने से पहले अपने बच्चों के बारे में सोचती है । माँ हमेशा अपने बच्चे को पहले से दिन से बहुत कुछ सिखाती है । बिना के बच्चे के विकास एक कमी हमेशा कमी रह जाती है। बिना माँ के बच्चे को अपने जीवन अपने आप खुद ही संभालना पड़ता है। उसे स्वयं ही अपने जीवन में अपने आप को मजबूत बनाना पड़ता है । यह एक कटु सत्य है कि माँ के बिना बच्चे का उचित विकास नहीं हो पाता है। उसके जीवन में कुछ न कुछ कमी जरूर रह जाती है। बिना माँ का बच्चा पूरी जिंदगी अपने जीवन में माँ के अभाव को महसूस करता है।


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किसी वैज्ञानिक यात्रा का वर्णन करते हुए अपने मित्र के नाम पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

वैज्ञानिक यात्रा का वर्णन करते हुए अपने मित्र के नाम पत्र

 

दिनांक : 20 जून 2024

 

प्रिय मित्र सुधीर,
तुम कैसे हो?

मैं तुम्हें अपने कल की वैज्ञानिक यात्रा के बारे में बताता हूँ। कल संडे की छुट्टी होने के कारण मैं अपने पड़ोस के कुछ दोस्तों के साथ नेहरू साइंस सेंटर गया था, जोकि मुंबई के वर्ली क्षेत्र में स्थित है। ये एक विज्ञान केंद्र है, जहाँ पर विज्ञान से संबंधित अनेक वस्तुएं रखी है। यहाँ पर वैज्ञानिक सिद्धांतों की व्याख्या करने वाली अनेक जानकारियां प्राप्त होती हैं।

इस साइंस सेंटर में विज्ञान संबंधी अनेक प्रदर्शियां लगती है। यहां पर एक तारामंडल भी है, जिसे नेहरू तारामंडल कहते हैं। हमने नेहरू तारामंडल में जाकर अपने सौरमंडल के बारे में जाना। इसके अलावा हमने साइंस सेंटर में अनेक तरह के वैज्ञानिक प्रयोगों को जाना और समझा तथा वैज्ञानिक उपकरणों को देखा। कल की वैज्ञानिक यात्रा अविस्मरणीय रही। जब भी तुम्हें आओगे तो मैं तुम्हें नेहरू तारामंडल लेकर जाऊंगा तुम्हें वहां जाकर बहुत मजा आएगा।

तुम्हारा मित्र,
धीरज ।


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विद्युत कटौती से होने वली असुविधा की सूचना देते हुए अवर अभियंता को पत्र लिखिये।

अपने नगर के चिड़ियाघर को देखने पर वहाँ की अव्यवस्था से आपको बहुत दुःख हुआ। इस अव्यवस्था के प्रति चिड़ियाघर के निदेशक का ध्यान आकृष्ट करते हुए एक पत्र लिखें।

विद्युत कटौती से होने वली असुविधा की सूचना देते हुए अवर अभियंता को पत्र लिखिये।

औपचारिक पत्र

अवर विद्युत अभियंता को विद्युत कटौती के संबंध में पत्र

 

दिनांक : 19 जून 2024

सेवा में,
श्रीमान अवर विद्युत अभियंता,
जालंधर विद्युत निगम,
जालंधर (पंजाब)

विषय : विद्युत कटौती के संबंध में पत्र

माननीय महोदय,

मैं मोंगा नगर का निवासी दिनेश जुनेजा, हमारे मोंगानगर में लगातार हो रही विद्युत कटौती के संबंध में यह पत्र लिख रहा हूँ। पिछले 15 दिनों से हमारे मोंगानगर में लगातार विद्युत विभाग द्वारा लगातार बिजली की कटौती की जा रही है। इस कारण हमारी कॉलोनी के निवासियों को बड़ी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। इस समय बच्चों की परीक्षायें चल रही है और विद्युत विभाग द्वारा की जा रही कटौती के कारण उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है।

हम सब कामकाजी पुरुष भी जब शाम को अपने ऑफिस से घर आते हैं तो घर में अंधेरा पाते हैं, तब हमें बेहद निराशा का सामना करना पड़ता है। बिजली विद्युत कटौती का कोई निश्चित समय नहीं है और कभी भी बिजली चली जाती है। आपसे अनुरोध है कि विद्युत विभाग द्वारा लगातार की जा रही विद्युत कटौती के संबंध में उचित कार्रवाई करें और अनियमित विद्युत कटौती को रोकें। अनियमित विद्युत कटौती के अलावा विद्युत कटौती यदि आवश्यक हो तो एक समय निश्चित कर दें, ताकि हम सभी नागरिक उसके अनुसार अपने कार्यक्रम को बना सकें।

आशा है, आप इस संबंध में तुरंत ही उचित कार्रवाई करेंगे और हम नागरिकों को राहत प्रदान करेगे।

भवदीय,
दिनेश जुनेजा,
मोंगा नगर, जालंधर


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अपने नगर के चिड़ियाघर को देखने पर वहाँ की अव्यवस्था से आपको बहुत दुःख हुआ। इस अव्यवस्था के प्रति चिड़ियाघर के निदेशक का ध्यान आकृष्ट करते हुए एक पत्र लिखें।

अपने विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस मनाने हेतु विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखें।

‘आटे-दाल’ इस समस्त पद का समास विग्रह और समास भेद क्या होगा?

आटे-दाल इस शब्द का समास विग्रह और समास भेद

आटे-दाल : आटा और दाल
समास भेद : द्वंद्व समास

स्पष्टीकरण :

‘आटे-दाल’ में द्वंद्व समास इसलिए है क्योंकि ‘आटे-दाल’ इस समस्त पद में दोनो पद प्रधान हैं। द्विगु समास में दोनो पद प्रधान होते हैं।
समास के संक्षिप्तीकरण की क्रिया समासीकरण कहलाती है। समासीकरण के पश्चात जो नया शब्द बनता है, उसे समस्त पद कहते हैं। समस्त पद को पुनः मूल शब्दों में लाने की प्रक्रिया ‘समास विग्रह’ कहलाती है।


‘हमारे राष्ट्रीय पर्व’ पर निबंध लिखो।

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निबंध

हमारे राष्ट्रीय पर्व

 

भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है, यहां कई धार्मिक त्योहारों के साथ 3 मुख्य राष्ट्रीय त्योहार बड़े धूम-धाम से मनाए जाते हैं ।

स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती और गणतंत्र दिवस यह तीनों राष्ट्रीय त्योहार भारत की स्वतंत्रता से सम्बंधित हैं । भारत सरकार ने देश के राष्ट्रीय पर्वों पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर दिया है । देश भर में सभी स्कूल, कॉलेज, कार्यालय और बाजार इन पर्वों पर बंद होते हैं । भारतीय समाज के सभी धर्म, जाति और वर्ग के लोग अमीर, गरीब, बच्चे, बूढ़े तथा जवान इन राष्ट्रीय त्योहारों को बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं । यह सभी के अंतर्मन को गर्व से भर देता है । ये त्योहार हमारे अध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्जीवित करता है और हमें शहीदों की याद दिलाता है ।

26 जनवरी, गणतंत्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है । इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था । यह भारत के तीन राष्ट्रीय अवकाशों में से एक है, अन्य दो स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती हैं । एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए 2 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा इसे अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था । इसे लागू करने के लिये 26 जनवरी की तिथि को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था ।

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाता है, यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है । सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी । प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हैं । 15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था । महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लोगों ने काफी हद तक अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में हिस्सा लिया ।

2 अक्तूबर, यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है । राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी थी । उन्होंने सत्य और अहिंसा के आदर्शों पर चलकर भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराया था । गांधी जयंती के रूप में उनके जन्मदिन मनाकर देश राष्ट्रपिता को श्रद्धासुमन अर्पित करते है । इस दिन को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है ।


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चिड़ियाघर के निदेशक को पत्र

 

दिनांक : 29 जून 2024

सेवा में,
मुख्य निदेशक,
कुफरी चिड़ियाघर, शिमला ।

विषय : चिड़ियाघर में व्याप्त अव्यवस्था के संबंध में

महोदय,
निवेदन इस प्रकार है, मेरा नाम विनय कुमार, मैं चंडीगढ़ शहर का रहने वाला हूँ। महोदय मैं चंडीगढ़ से शिमला घूमने आया था। एक दिन मैं जब कुफरी में स्थित चिड़ियाघर घूमने गया तो वहाँ पर मैने चिड़ियाघर में चारों तरफ अव्यवस्था ही देखी। मैं आपसे चिड़ियाघर की अव्यवस्था की अवस्था के बारे में ध्यान आकृष्ट चाहता हूँ । यहाँ पर चिड़ियाघर की हालत बहुत खराब है । पशु-पक्षियों का अच्छे ध्यान नहीं रखा जाता है । आस-पास कोई सफाई नहीं थी। जानवर के बाड़े में बहुत गंदगी थी। पर्यटक जानवरों को तंग कर रहे थे, उन्हें टोकने के लिए कोई भी कर्मचारी नहीं था । सभी जानवरों को देख कर ऐसा लग रहा था, उन पर कोई ध्यान नहीं देता है। चिड़ियाघर में जानवरों की देखभाल और रखरखाव का  मुझे उचित प्रबंध नहीं दिखाई नहीं दिया ।
मुझे यह देखकर बहुत दुःख हुआ कि चिड़ियाघर में जहाँ सभी जानवर रहते है, जिनके कारण ही चिड़ियाघर चलता है, उन्हीं का उचित ध्यान नहीं रखा जा रहा है । ये पशुओ के प्रति असंवदेनात्मक व्यवहार है।
मैं आपसे प्रार्थना करना चाहता हूँ कि आप चिड़ियाघर की अव्यवस्था की और ध्यान दें। सारी अव्यवस्था को दूर करने के लिए उचित कदम उठाएं।
धन्यवाद,

भवदीय,
विनय कुमार


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अपने विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस मनाने हेतु विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखें।

आपके विद्यालय की कैंटीन काफी दिनों से बंद है। अपने विद्यालय के प्रिंसिपल को कैंटीन दोबारा खोलने के लिए पत्र लिखें।

अपनी सहेली के जन्मदिन पर जाने को लेकर माँ-बेटी के बीच संवाद लिखें।

संवाद लेखन

सहेली के जन्मदिन पर जाने को लेकर माँ-बेटी के बीच संवाद

 

माँ ⦂ आ गई बेटी, तुम स्कूल से ?

बेटी ⦂ हाँ, माँ मैं आ गई। माँ मैं आज बहुत खुश हूँ।

माँ ⦂ बताओ क्या बात है।

बेटी ⦂ माँ, कल मेरी सहेली का जन्मदिन है, उसने मुझे अपने जन्मदिन पर घर बुलाया है। माँ मुझे जाना है। क्या आप मुझे जाने की अनुमति दोगे?

माँ ⦂ यह तो बहुत अच्छी बात है, कब जाना है?

बेटी ⦂ माँ वह अपना जन्मदिन दिन में ही मनाएगी, कल छुट्टी है, कल जाना है।

माँ ⦂ ठीक है चली जाना, पर समय पर वापिस आ जाना।

बेटी ⦂ माँ, मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं अपनी सहेली को क्या उपहार दूँ।

माँ ⦂ तुम उसकी पसंद का कुछ अच्छा सा उपहार दे दो, जो उसे पसंद आए।

बेटी ⦂ ठीक है माँ, मैं सोचती हूँ।

माँ ⦂ ऐसा उपहार देना जो उसके काम आए।

बेटी ⦂ हाँ माँ, मैंने उसके लिए एक सुंदर की घड़ी खरीदी है। धन्यवाद माँ।


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वायु और जल के बीच संवाद लिखिए।

अपनी छोटी बहन को पढ़ाई के साथ-साथ व्यायाम का महत्व बताते हुए पत्र लिखिए​।

अनौपचारिक पत्र

व्यायाम का महत्व बताते हुए छोटी बहन को पत्र

 

दिनांक : 18/11/2024

34/3, आशीर्वाद भवन,
सुंदरनगर, मंडी (हि. प्र.)

प्रिय बहन रागिनी,
सदैव खुश रहो !

मैं यहाँ कुशलता से हूँ और ईश्वर से तुम्हारी कुशलता की मंगल कामना करता हूँ। आज मुझे तुम्हारे प्रधानाचार्य का पत्र मिला जिससे पता चला कि तुमने परीक्षा में अच्छे अंक लाकर अपने माता-पिता का ही नहीं अपितु अपने गुरुजनों व अपने विद्यालय के नाम को भी गौरवान्वित किया है।

तुम्हारा परीक्षा परिणाम सुनकर माता जी फूली नहीं समा रही हैं। उन्होंने पत्र में ये भी लिखा था कि आजकल तुम्हारी तबीयत कुछ नाजुक रहती है। शरीर के अलग-अलग हिस्सों में दर्द होता है। पढ़ाई के साथ–साथ तुम्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी है । तुम्हें यह याद रखना चाहिए कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। अतः तुम्हें रोज व्यायाम करना चाहिए और सुबह-सुबह टहलना चाहिए। खान-पान का समुचित ध्यान रखना चाहिए। व्यायाम और खान-पान में भी उसी मनोयोग से ध्यान दो जिस मनोयोग से पढ़ाई में ध्यान देती हो। यदि हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहता है तो जीवन सुख पूर्वक व्यतीत होता है ।

व्यायाम के माध्यम से हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते है । अगर व्यायाम नियमित रूप से किया जाए तो शरीर में होने वाले दर्द से निजात पाई जा सकती है। मैंने हाल ही में व्यायाम करना शुरू किया है और मुझे इससे बहुत ही आराम है। मैं व्यायाम की वजह से तरोताजा महसूस करता हूँ और ये शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। तुम्हारे लिए व्यायाम एक अच्छा उपचार सिद्ध होगा। आशा करता हूँ कि तुम मेरी सलाह को मानोगी और व्यायाम को अपने जीवन में स्थान दोगी। इस बार तुम जब गर्मियों की छुट्टियों में घर आओगी तो हम साथ में मिलकर व्यायाम करेंगे। अपना ख्याल रखना। शेष मिलने पर ।

तुम्हारा भाई,
अजय


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नगाँव सिटी की सुंदरता के विषय में बताते हुए राजस्थान में बसे अपने मित्र को पत्र लिखिए।

बाढ़ पीड़ितों की मदद के दौरान हुए अपने अनुभवों को साझा करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए​।

अपने देश को स्वच्छ व सुंदर बनाने के लिए हमारे क्या प्रयत्न होने चाहिए?

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किसी देश के हर नागरिक का कर्तव्य है कि अपने देश को स्वच्छ व सुंदर बनाए रखने में अहम योगदान दे। अपने देश को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं…

स्वच्छता अभियान 

    • अपने देश को स्वच्छ और सुंदर बनाए रखने के लिए हमें लगातार स्वच्छता अभियान चलाते रहने की आवश्यकता है। यह स्वच्छता अभियान में हमें बढ़-चढ़कर भाग लेना होगा ताकि हमारे देश का हर कोना-कोना स्वच्छ रहे।

कचरा प्रबंधन

    • उचित कचरा प्रबंधन अपने देश को स्वच्छ बनाने के लिए हमें अपने देश में सही कचरा प्रबंधन करना होगा और कचरे के निपटान के लिए सही उपाय करने होंगे।  जैविक और अजैविक कचरा को अलग-अलग करके हमें उनके निपटान का सही प्रबंधन करना होगा। कचरे के पुनर चक्रीकरण यानी रीसाइकलिंग को भी बढ़ावा देना होगा ताकि कचरे को उपयोगी बनाया जा सके।

पेड़-पौधे लगाना

    • देश को सुंदर बनाने के लिए पेड़-पौधे लगाने की प्रवृत्ति को विकसित करना होगा और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा। जब देश में जगह-जगह हरियाली होगी तो हमारा देश सुंदर लगेगा। पेड़ पौधे न केवल देश की सुंदरता को बढ़ाएंगे बल्कि पर्यावरण को भी मजबूत करेंगे।

जल स्रोतों की सफाई

    • देश को स्वच्छ रखने के लिए उपलब्ध जितने भी जल स्रोत हैं। उनकी हमें सफाई करनी होगी। हमारी नदियां प्रदूषित हो चुकी है। उन सभी नदियों को स्वच्छ और साफ करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में उनमें कोई भी गंदगी नहीं डाली जाए। इससे न केवल जलप्रदूषण में कमी आएगी बल्कि नदिया स्वच्छ और सुंदर होंगी।

प्लास्टिक का कम उपयोग

    • अपने देश को स्वच्छ एवं सुंदर बनाने के लिए प्लास्टिक के कम उपयोग को बढ़ावा देना होगा। प्लास्टिक पर्यावरण के दुश्मन के समान है यह आसानी से नष्ट नहीं होता। प्लास्टिक का कचरा इधर-उधर जमा होकर सुंदरता देश की सुंदरता को खराब करता है। इसलिए हमें प्लास्टिक के कम उपयोग की प्रवृत्ति को विकसित करके ऐसे वैकल्पिक उपायों को खोजना होगा जो प्लास्टिक की जगह पर प्रयोग किया जा सकें।

सार्वजनिक स्थानों की देखभाल

    • सार्वजनिक स्थानों की देखभाल हमें अपने देश को स्वच्छ एवं सुंदर बनाए रखने के लिए जो भी स्वच्छ सार्वजनिक स्थान हैं, जैसे शहर, नगर, गाँव की सड़क, पार्क, सरकारी इमारते आदि इन सबकी स्वच्छता का ध्यान रखना होगा। हमें  इधर-उधर कूड़ा फेंकने की प्रवृत्ति से बचना होगा।

जागरूकता

    • लोगों में स्वच्छता से रहने के प्रति जागरूकता की प्रवृत्ति विकसित करना। अपने देश को स्वच्छ एवं सुंदर बनाने के लिए हमें लोगों में सफाई एवं सुंदरता की प्रवृत्ति को विकसित करना होगा। उन्हें जागरूक करना होगा तो वह ताकि वह स्वच्छता के प्रति सचेत हो सकें और स्वत ही स्वच्छता की आदत को अपने जीवन की नियमित दिनचर्या बना लें।

प्रशासन के साथ सहयोग और नियमों का पालन

    • हमें यह ध्यान रखना होगा कि हम अपने देश में बनाए गए स्वच्छता संबंधी सभी कानून का उचित पालन करें। इस तरह अपने देश को स्वच्छ एवं सुंदर बनाने में हम एक जिम्मेदार नागरिक की दृष्टि से एक अपना अहम योगदान दे सकते हैं।

इन प्रयासों के माध्यम से हम अपने देश को स्वच्छ, सुंदर और हरियाली से भरपूर बना सकते हैं।


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स्वच्छता के ऐसे काम की सूची बनाओ, जिन्हें आप हर रोज कर सकते हैं।

हम अपने क्षेत्र को कैसे साफ रख सकते हैं? 10 वाक्यों में सुझाव लिखिए।

बच्चे अपने आप को बीमारी से कैसे बचा सकेंगे ?

यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र राज्य की तरह काम कर रहा है।” इस कथन का औचित्य सिद्ध कीजिए।

यूरोपीय संघ एक काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह काम कर रहा है, क्योंकि यूरोपीय संघ यूरोप के अधिकतर देशों का एक विशाल संघ है। यूरोपीय संघ स्थापना यूरोप के देशों को एक मंच पर लाने के लिए की गई थी। यूरोपीय संघ का अपना साझा झंडा, साझा गान और साझी मुद्रा है, जिसे यूरो कहते हैं। हालांकि यूरोपीय संघ का एक साझा संविधान बनाने की का प्रयास तो असफल हो गया, लेकिन फिर भी यूरोपीय संघ के अधिकतर देश समान साझा कार्यक्रम के तहत कार्य करते हैं।

यूरोपीय संघ के देशों ने विश्व के अन्य देशों के साथ एक साझी विदेश और सुरक्षा नीति बना ली है। यूरोपीय संघ के देशों में एक दूसरे देश में जाना और अधिक कठिन नहीं रह गया है। ये बिल्कुल उसी तरह जैसे किसी देश के एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते हैं।

यूरोपीय संघ में अधिकतर देश यूरोपीय संघ से जुड़ते जा रहे हैं। कुछेक देशों को छोड़कर लगभग सभी देश यूरोपीय संघ में शामिल हो गए हैं। यूरोपीय संघ के कार्यक्रम और सभी तरह के सहयोग को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह अलग-अलग देशों का महाद्वीप नहीं बल्कि एक विशाल राष्ट्र हो।

आगे भविष्य में हो सकता है कि यूरोपीय संघ एक अलग-अलग देशों का एक विशाल राष्ट्र बन जाए। जैसा अमेरिका में है। अमेरिका 50 स्वतंत्र राज्यों का एक संघ है, जो एक राष्ट्र कहलाता है। भविष्य में संभव है कि यूरोप के देश भी ऐसा ही कोई संघ बनाकर एक विशाल देश का निर्माण करें।  इसीलिए यह कहना बिल्कुल सही है कि यूरोपीय संघ काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र राज्य की तरह काम करने लगा है।


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कर चले हम फिदा : कैफ़ी आज़मी (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श भाग-2) (हल प्रश्नोत्तर)

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NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

कर चले हम फिदा : कैफ़ी आज़मी (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श भाग 2)

KAR CHALE HAM FIDA : Kaifi Azami (Class 10 Chapter 6 Hindi Sparsh 2)



कर चले हम फिदा : कैफ़ी आज़मी

पाठ के बारे में…

इस पाठ में ‘कर चले हम कविता’ को प्रस्तुत किया गया है। ‘कर चले हम फिदा’ ‘कैफी आज़मी’ द्वारा लिखी गई कविता है, जो उनके जो उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी थी। इस कविता के माध्यम से उन्होंने भारतीय सैनिकों की वीरता और उनके बलिदान का वर्णन किया है। यह कविता हिंदी फिल्म ‘हकीकत’ में गीत के रूप में फिल्माई गई थी।


रचनाकार के बारे में…

कैफ़ी आज़मी हिंदी उर्दू साहित्य के जाने-माने कवि और गीतकार तथा गज़लकार रहे हैं। उन्होंने उर्दू अदब की दुनिया में काफी नाम कमाया। उनकी गिनती उर्दू कवियों की पहली पंक्ति में की जाती है।उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता का कार्य किया है। उनका जन्म 19 जनवरी 1919 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मजमां गाँव में हुआ था।

उनके कुल 5 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें झंकार, आखिर-ए-शब, अवारा सज़दे, सरमाया का नाम प्रमुख है। इसके अलावा उनका फिल्मी गीतों का संग्रह ‘मेरी आवाज सुनो’ प्रकाशित हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई जाने-माने पुरस्कार मिल चुके हैं। 10 मई 2002 को उनका निधन हुआ।



प्रश्न-1 : क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है?

उत्तर : इस गीत की एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। यह गीत सन 1962 में हुए भारत एवं चीन के बीच हुए युद्ध पर आधारित था। सन 1962 में भारत ने चीन पर आक्रमण कर दिया था। तब भारतीय सैनिकों ने वीरता से लड़ते-लड़ते अपने देश की रक्षा के लिए अपना बलिदान कर दिया था।

यह गीत युद्ध को आधार बनाकर रखा गया है। इस गीत को इसी युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी, हिंदी फिल्म ‘हकीकत’ में भी फिल्माया गया है। यह गीत भारत और चीन के बीच युद्ध की वास्तविकता और सैनिकों की भावना को प्रदर्शित करता है और यह गीत विशेष रूप से इसी दिन के लिए कवि ‘कैफ़ी आज़मी’ द्वारा लिखा गया था।

प्रश्न-2 : ‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया’, इस पंक्ति में हिमालय किस बात का प्रतीक है?

उत्तर : सर हिमालय का हमने ना झुकने दिया’ , इस पंक्ति में हिमालय इस बात का भारत के मान और सम्मान का प्रतीक है। भारत चीन के बीच हुए युद्ध में भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान तो कर दिया, लेकिन उन्होंने भारत के सम्मान पर आँच ना आने दी। उन्होंने हिमालय का न झुकने दिया। 1962 में भारत और चीन के बीच हिमालय की घाटियों में ही युद्ध हुआ था।

उस समय भारत के अनेक सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान कर देश की सीमाओं की रक्षा की थी। भारतीय सैनिकों के उस बहादुरी एवं अद्भुत बलिदान कारण ही हिमालय का सर नहीं झुका था, यानी भारत का मान सम्मान कायम रहा। इन भारत के इन वीर सैनिकों ने अपने प्राणों की बलिदान करके भारत की मान-सम्मान की रक्षा की।

 

प्रश्न-3 : इस गीत में धरती को दुलहन क्यों कहा गया है?

उत्तर : इस गीत में कवि ने धरती को दुल्हन इसलिए कहा है, क्योंकि कवि ने यहाँ पर प्रतीक के रूप में धरती दुल्हन और सैनिकों को दूल्हे का रूप बनाया है। भारतीय सैनिकों के शौर्य और बहादुरी के कारण बलिदान के कारण उनके खून से धरती लाल रंग से रंग गई थी।

दुल्हन भी लाल लिबास पहनती है। लाल रंग से रंगने के कारण ऐसा लग रहा था की धरती दुल्हन बन गई है और भारतीय सैनिक अपने प्राणों का बलिदान करके अपने खून से रंगकर को दुल्हन का लिबास प्रदान किया है, इसीलिए कवि ने लड़की को दुल्हन कहा है।

 

प्रश्न-4 : गीत में ऐसी क्या खास बात होती है कि वे जीवन भर याद रह जाते हैं?

उत्तर : गीत में जीवन भर याद रहने वाली अनेक खास बातें होती हैं। गीत भावना से भरे होते हैं। उनमें मधुरता होती है, संगीत की लय होती है, गेयता का गुण होता है। गीत सच्चाई से भरे होते हैं,जो मन के भावों को व्यक्त करते हैं, मर्मस्पर्शी होते हैं, जो ह्रदय के तारों को छेड़ देते हैं।

इसी कारण यह जीवन भर याद रह जाते हैं। ‘कर चले हम फिदा’ गीत के माध्यम से भी सैनिकों की भावना और उनके बलिदान उदात्ता प्रकट हो रही है जो सीधे-सीधे दिल को छू ले रही है, इसीलिए यह गीत अमर बन गया। यह केवल किसी एक व्यक्ति का गीत नहीं सैनिकों की तरफ से सभी भारतीयों का गीत है। गीत के इन्हीं गुणों के कारण ही गीत जीवनभर याद रह जाते हैं।

 

प्रश्न-5 : कवि ने ‘साथियो’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है?

उत्तर : कवि ने इस कविता में ‘साथियों’ संबोधन का प्रयोग समस्त भारत वासियों के लिए किया है। इस कविता में सैनिकों के मन की भावना व्यक्त हो रही है। उन्होंने वह बलिदान की राह पर चल रहे हैं। वह अपने प्राणों का बलिदान करने जा रहे हैं, लेकिन बलिदान करने से पूर्व या बलिदान करते समय व समस्त भारतवासियों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि हम ने तो अपना कर्तव्य निभा दिया, अब आगे का कर्तव्य निभाना तुम्हारा काम है। अब तुम्हें ही इस देश को संभालना है और इसकी रक्षा करनी है। इस तरह कवि ने साथियों संबोधन का प्रयोग समस्त भारत वासियों के लिए किया है।

 

प्रश्न-6 : कवि ने इस कविता में किस काफ़िले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है?

उत्तर : कवि ने इस कविता में अपने देश पर मर मिटने वाले बलिदानी सैनिकों के काफ़िले को आगे बढ़ते रहने की बात कही है। कवि ने कहा है कि बलिदान का यह कार्य रुकना नहीं चाहिए और जब-जब देश को आवश्यकता पड़े सैनिकों को अपने प्राणों का बलिदान करने में संकोच नहीं करना चाहिए।

देश की सीमाएं तभी सुरक्षित रह सकती है जब देश के वासी और सैनिक अपने देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए सदैव तत्पर रहें। कवि का कहना है कुछ सैनिकों ने अपने देश की सीमा की रक्षा के लिए बलिदान तो कर दिया है लेकिन यह क्रम आगे भी चलता रहना चाहिए क्योंकि अभी और रास्ता तय करना है। अभी शत्रुओं को पूरी तरह परास्त कर पूरी तरह विजय प्राप्त करना है। तभी सैनिकों का बलिदान सार्थक होगा।

 

प्रश्न-7 : इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ किस ओर संकेत करता है?

उत्तर : इस गीत में सर पर कफन बांधना सैनिकों के उस भावों की ओर संकेत करता है, जिसमें वह अपने देश की रक्षा के लिए अपने जीवन को बलिदान करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। सर पर कफन बांधना का अर्थ है, बिना किसी संकोच के हर पल अपने देश की रक्षा करना और आवश्यकता पड़ने पर अपने प्राणों के बलिदान करने से भी संकोच ना करना।

सर पर कफन बांधना अर्थात यह जानते हुए भी कि मेरे जीवन को खतरा है, हँसते-हँसते युद्ध करना ही सर पर कफन बाँधना होता है। सर पर कफन बाँधना निडरता का सूचक होता है। देश की रक्षा करने वाला सैनिक मौत से नहीं डरता और हमेशा मौत का खतरा होते हुए भी देश की रक्षा करने के लिए तैयार रहता है।

प्रश्न-8 : इस कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : ‘कर चले हम कविता’ का प्रतिपाद्य इस प्रकार होगा। ‘कर चले हम फिदा’ कविता उर्दू के प्रसिद्ध कवि कैफी आज़मी द्वारा रचित एक कविता है।

यह कविता उन्होंने फिल्मी गीत के रूप में एक हिंदी फिल्म ‘हकीकत’ के लिए लिखी थी। यह कविता हकीकत फिल्म में गीत के रूप में फिल्माई गई थी। यह फिल्म भारत चीन 1962 में हुए भारत चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी थी। यह कविता भी उसी युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिसके माध्यम से सैनिकों ने अपने देश की रक्षा में अपने प्राणों का बलिदान करने वाले सैनिकों ने जाते-जाते अपने हृदय के भावों को व्यक्त किया है।

कवि ने अपने शब्दों के माध्यम से कवि के हृदय की आवाज को कविता में उतारा है।  इस कविता में सैनिक अपने देशवासियों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि उन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया है यानी उन्होंने अपना कर्तव्य निभा दिया है। अब दूसरे सैनिकों और देश के सभी वासियों के हाथ में यह देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। अब उन्हें अपना कर्तव्य निभाना है और देश को ना केवल देश की रक्षा करनी है बल्कि देश के मान सम्मान को भी बढ़ाना है।

अपने देश की रक्षा करने के लिए देश की आन, बान और शान पर आँत नहीं आने देने के लिए समय आने पर अपना बलिदान करने से नहीं चूकते और वह हमेशा यह कार्य करते रहेंगे। यही इस कविता का प्रतिपाद्य है।


(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया

भाव : कवि कहता है कि देश की रक्षा के लिए जाने वाले सैनिक अपने वचन का पालन करने के लिए कृत संकल्प थे। इसी कारण वह अपने जीवन का अंतिम युद्ध लड़ते गए। जब तक उन सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान नहीं कर दिया उन्होंने हार नहीं मानी।

उनके प्राण निकलते जा रहे थे लेकिन वह लड़ते जा रहे थे। उनका भले ही उनका जीवन संकट में आ गया था लेकिन वह लड़ने से पीछे नहीं हटे और उनके आगे बढ़ते कदमों को शत्रु रोक नहीं पाया। किसी भी तरह की परिस्थिति में उनके कदम डगमगाए नहीं। देश की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगा दी लेकिन देश के सम्मान पर आँच न आने दी।

प्रश्न 2.
खींच दो अपने खू से जमीं पर लकीर
इस तरफ़ आने पाए न रावन कोई

भाव : कवि कहता है कि युद्ध के मैदान में देश की रक्षा में लगे सैनिक अपनी अंतिम सांस तक देश की रक्षा करते है। वह सैनिकों से रावण रूपी शत्रु के लिए लक्ष्मणरेखा खींचने की बात कह रहा है। कवि का भाव यह है कि देश की धरती पवित्र है। यह धरती सीता के समान है और सैनिक लक्ष्मण के समान। सीता रूप भूमि पर शत्रु रूपी रावण यदि सीता का हरण करने आएगा तो अपने खून से लक्ष्मण रेखा खींचकर सैनिक इस देश की रक्षा करेंगे ताकि रावण रूपी शत्रु न आने पाये।

प्रश्न 3.
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो

भाव : यह भारत भूमि सीता के समान है। सीता की तरह पवित्र है और इस देश के निवासी-सैनिक सभी राम-लक्ष्मण की तरह है। इसलिए इस सितारों की धरती पर यदि शत्रु रूपी रावण आँख उठाकर बुरी नजर से देखने की जुर्रत करेगा तो राम-लक्ष्मण रूपी भारत के सैनिक और जनता शत्रु की ईंट से ईंट बजा देगी और अपने देश के मान सम्मान की रक्षा करने के पीछे नहीं हटेगी। ऐसे कम ही लोग होते हैं जो देश की रक्षा करने में अपने प्राणों का बलिदान करने में संकोच करते हो लेकिन भारत के वीर जवानों की रक्षा करते हुए ऐसा ही किया है।


भाषा अध्ययन

1. इस गीत में कुछ विशिष्ट प्रयोग हुए हैं। गीत संदर्भ में उनका आशय स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए। कट गए सर, नब्ज़ जमती गई, जान देने की रुत, हाथ उठने लगे

उत्तर : गीत में प्रयुक्त विशिष्ट प्रयोग के अंतर्गत इन शब्दों का आशय और उनका वाक्य में प्रयोग इस प्रकार होगा :

कट गए सर
आशय : बलिदान होना, अपने प्राणों का बलिदान कर देना।
वाक्य प्रयोग : भारत-चीन युद्ध के मैदान में सैनिक बहादुरी से लड़ते रहे उनके सर कटते गए लेकिन वह निरंतर आगे बढ़ते रहे।

नब्ज़ जमती गई 
आशय : ठंड के कारण नसों में खून का जमना।
वाक्य प्रयोग : जब भारत-चीन युद्ध चल रहा था तब बर्फीली चोटियों पर हिमालय की वादियों में युद्ध लड़ा जा रहा था। जहाँ पर हिमालय की वादियों में लेह लद्दाख की कड़ी सर्दी में वीर जांबाज सैनिकों की नब्ज़ जमती गई लेकिन फिर भी वह युद्ध करते गए।

जान देने की रुत
आशय :
अपनी मातृभूमि के लिए अपने जीवन का बलिदान कर का अवसल मिलना।
वाक्य प्रयोग : भारत-चीन युद्ध में सैनिक बहादुरी से लड़े और जब उन्हें लगा कि अबउनकी जान देने की रुत आ गई है, तो उन्होंने संकोच नहीं किया।

हाथ उठने लगे
आशय :
आक्रमणकारियों का आक्रमण करना।
वाक्य प्रयोग : जब चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और आक्रमणकारियों के हाथ उठने लगे तो भारत के सैनिकों ने मुंह तोड़ जवाब दिया।

2. ध्यान दीजिए संबोधन में बहुवचन शब्द रूप पर अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता, जैसे भाइयों, बहनों, देवियों, सज्जनों आदि

उत्तर : विद्यार्थी ऐसे समझें…
भाइयो : सफ़ाई कर्मचारियों के नेता ने कहा, भाइयो! कहीं भी गंदगी न रहने पाए।
बहिनो- समाज सेविका ने कहा, बहिनो! कल पोलियो ड्राप पिलवाने ज़रूर आना।
देवियो- पुजारी ने कहा, देवियो! देवियो! कलश पूजन में जरूर शामिल होना।
सज्जनो- सज्जनो! यहाँ सफ़ाई बनाए रखने की कृपा करें।


योग्यता विस्तार

प्रश्न 1: कैफ़ी आज़मी उर्दू भाषा के एक प्रसिद्ध कवि और शायर थे। ये पहले गज़ल लिखते थे। बाद में फ़िल्मों में गीतकार और कहानीकार के रूप में लिखने लगे। निर्माता चेतन आनंद की फ़िल्म ‘हकीकत’ के लिए इन्होंने यह गीत लिखा था, जिसे बहुत प्रसिद्धि मिली। यदि संभव हो सके तो यह फ़िल्म देखिए।

उत्तर : सिनेमा हॉल में जाकर ये फिल्म देखना संभव नहीं है। विद्यार्थी ये फिल्म टीवी अथवा यूट्यूब पर देख सकते हैं। इंटरनेट पर ये फिल्म सर्च करने पर मिल सकती है। ये एक श्वेत-श्याम (ब्लैक एंड व्हाइट) फिल्म है। इस फिल्म में धर्मेंद ने मुख्य भूमिका निभाई थी। ये फिल्म देशभक्ति की भावना से भरी फिल्म है। फिल्म को देखें, समझें और फिल्म के भाव को महसूस करें।

प्रश्न 2. ‘फ़िल्म का समाज पर प्रभाव’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

उत्तर : फ़िल्म का समाज पर प्रभाव पर परिचर्चा इस प्रकार हो सकती है…

अध्यापक : बच्चों, आज हम ‘फ़िल्म का समाज पर प्रभाव’ विषय पर चर्चा करेंगे। फ़िल्में हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं और समाज पर गहरा प्रभाव डालती हैं। क्या कोई बता सकता है कि फ़िल्में समाज को कैसे प्रभावित करती हैं?
राजेश : सर, फ़िल्में समाज में जागरूकता फैलाने का काम करती हैं। उदाहरण के लिए, ‘पिंक’ जैसी फ़िल्म ने महिलाओं के अधिकारों और सहमति के महत्व पर रोशनी डाली।
अध्यापक : बहुत अच्छा, राजेश। और कोई?
रोशनी : सर, फ़िल्में हमें मनोरंजन तो देती ही हैं, साथ ही सामाजिक मुद्दों पर भी ध्यान आकर्षित करती हैं। ‘तारे ज़मीन पर’ ने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाई।
अध्यापक : सही कहा, रोशनी तुमने। फ़िल्में मनोरंजन का माध्यम होने के साथ-साथ सामाजिक संदेश भी देती हैं। और किसी का कोई विचार?
सोनम : सर, कुछ फ़िल्में समाज में नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकती हैं। हिंसा और नशे को बढ़ावा देने वाली फ़िल्में युवाओं पर बुरा असर डालती हैं।
अध्यापक : बिल्कुल सही, सोनम। फ़िल्में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव डाल सकती हैं। इसलिए हमें फ़िल्में चयनित और सोच-समझकर देखनी चाहिए।
आशुतोष : सर, फ़िल्में समाज में बदलाव लाने का भी जरिया बन सकती हैं। ‘लगान’ जैसी फ़िल्में हमें एकजुटता और संघर्ष की प्रेरणा देती हैं।
अध्यापक : बहुत अच्छा, अजय। फ़िल्में समाज में जागरूकता, प्रेरणा, और मनोरंजन का माध्यम हैं। लेकिन हमें हमेशा उनकी सामग्री और संदेश के प्रति सजग रहना चाहिए।
अध्यापक : धन्यवाद बच्चों, आज की परिचर्चा यहीं समाप्त होती है। मुझे खुशी है कि आप सबने अपने विचार साझा किए।

 

प्रश्न 3. कैफ़ी आज़मी की अन्य रचनाओं को पुस्तकालय से प्राप्त कर पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। इसके साथ ही उर्दू भाषा के अन्य कवियों की रचनाओं को भी पढ़िए।
उत्तर : विद्यार्थी अपने गाँव, कस्बे या शहर के नजदीकी पुस्तकालय जाएं। वहाँ पर कैफी आज़मी से संबंधित साहित्य को ढूंढे। उनकी पुस्तकें प्राप्त करें। उन रचनाओं कों पढ़ें। उर्दू भाषा के कई अन्य कवि साहित्यकार जैसे मिर्जा ग़ालिब, मीर आदि को पढ़ें।

 

प्रश्न 4. एन० सी० ई० आर० टी० द्वारा कैफ़ी आज़मी पर बनाई गई फ़िल्म देखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर : विद्यार्थी एन. सी. ई. आर. टी. की वेबसाइट पर जाएं वहाँ पर फिल्म को तलाशें। या इंटरनेट पर अन्य माध्यमों जैसे हिंदी और ऊर्दू कवियों-शायरों-गीतकारों से संबंधित वेबसाइट पर फिल्म को तलाशें। फिल्म मिलने के बाद उसे देखें और कैफी आज़मी के जीवन को समझने का प्रयास करें।

 

परियोजना कार्य

प्रश्न 1. सैनिक जीवन की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक निबंध लिखिए।

उत्तर : विद्यार्थी इस विषय पर स्वयं निबंध लिखने का प्रयास करें। उनकी सहायता के लिए एक निबंध का लिंक दिया जा रहा है। इस लिंक पर जाकर संबंधित विषय पर लिखे निबंध को देख सकते हैं।

‘सैनिक जीवन की चुनौतियाँ’ इस विषय पर एक निबंध लिखें।

प्रश्न 2. आज़ाद होने के बाद सबसे मुश्किल काम है ‘आज़ादी बनाए रखना’। इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी अपनी कक्षा में विषय पर आपस में चर्चा करें। सहायता हेतु इस लिंक पर जाएं कि कैसे चर्चा हो सकती है।

आज़ाद होने के बाद सबसे मुश्किल काम है ‘आज़ादी बनाए रखना’। इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

प्रश्न 3 : अपने स्कूल के किसी समारोह पर यह गीत या अन्य कोई देशभक्तिपूर्ण गीत गाकर सुनाइए।

उत्तर : ‘कर चले हम फिदा’ ये गीत विद्यार्थी अपने विद्यालय के समारोह में सुना सकते हैं। या अपनी पसंद का कोई भी देशभक्ति भरा गीत चुन सकते हैं…

जैसे..
मेरे देश की धरती सोना (फिल्म – उपकार)
ये प्रीत जहाँ की रीत सदा (फिल्म – पूरब और पश्चिम)
होठों पर सच्चाई रहती है (जिस देश में गंगा बहती है)
ये देश है मेरा स्वदेश है मेरा (स्वदेस)


कर चले हम फिदा : कैफ़ी आज़मी (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श भाग 2) (NCERT Solutions)

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आज़ाद होने के बाद सबसे मुश्किल काम है ‘आज़ादी बनाए रखना’। इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

परिचर्चा

आज़ाद होने के बाद सबसे मुश्किल काम है ‘आज़ादी बनाए रखना’

 

अध्यापक ⦂ बच्चों, आज हम एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करेंगे कि ‘आज़ाद होने के बाद सबसे मुश्किल काम है, ‘आज़ादी बनाए रखना’।” स्वतंत्रता प्राप्त करना एक बड़ी उपलब्धि होती है, लेकिन उसे बनाए रखना उससे भी बड़ी चुनौती होती है। क्या कोई बता सकता है कि क्यों?

अंशुल ⦂ सर, मुझे लगता है कि आज़ादी प्राप्त करने के बाद देश को स्थिर और संगठित रखना कठिन होता है। विभिन्न विचारधाराओं और समूहों के बीच तालमेल बिठाना एक बड़ी चुनौती होती है।

अध्यापक ⦂ सही कहा तुमने अंशुल। देश की विविधता को एकता में बांधना और सभी को साथ लेकर चलना बहुत महत्वपूर्ण है। और कोई?

महिमा ⦂ सर, आर्थिक विकास भी एक बड़ी चुनौती होती है। आज़ादी के बाद देश को आत्मनिर्भर बनाने और आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए ठोस नीतियों और योजनाओं की आवश्यकता होती है।

अध्यापक ⦂ बिल्कुल सही, अध्यापक। आर्थिक स्थिरता के बिना स्वतंत्रता का पूर्ण लाभ नहीं उठाया जा सकता। और किसी का कोई विचार?

वरुण ⦂ सर, बाहरी खतरों से भी देश को सुरक्षित रखना बहुत महत्वपूर्ण है। हमारी आज़ादी को बनाए रखने के लिए सेना और सुरक्षा बलों का मजबूत होना आवश्यक है।

अध्यापक ⦂ बिल्कुल सही, वरुण। राष्ट्रीय सुरक्षा का ध्यान रखना एक बड़ी जिम्मेदारी होती है। इसके अलावा?

वैदेही ⦂ सर, सामाजिक न्याय और समानता भी आवश्यक हैं। आज़ादी का सही अर्थ तभी है जब हर नागरिक को समान अधिकार और अवसर मिलें।

अध्यापक ⦂ हाँ, वैदेही। सामाजिक न्याय और समानता के बिना स्वतंत्रता अधूरी है। हमें हर व्यक्ति के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।

सार्थक ⦂ सर, शिक्षा भी महत्वपूर्ण है। शिक्षित नागरिक ही स्वतंत्रता का सही अर्थ समझ सकते हैं और उसे बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।

अध्यापक ⦂ हाँ, सार्थक। शिक्षा समाज के विकास का आधार है। शिक्षित नागरिक ही अपने अधिकारों और कर्तव्यों को भली-भांति समझ सकते हैं।

अध्यापक ⦂ बच्चों, आज़ादी बनाए रखना एक सतत प्रक्रिया है। इसके लिए हमें सतर्क, संगठित और प्रतिबद्ध रहना होगा। हमें अपने देश की प्रगति के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। इसी से हमारी आज़ादी सुरक्षित और सुदृढ़ रहेगी।

सभी छात्र ⦂ हाँ, सर हम आपकी बात अच्छी तरह समझ गए।

अध्यापक ⦂ धन्यवाद बच्चों, आपने बहुत अच्छे विचार साझा किए। हमें मिलकर अपनी आज़ादी को बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहना होगा।


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सैनिक जीवन की चुनौतियाँ

 

सैनिक जीवन एक ऐसा मार्ग है जो कर्तव्य, समर्पण और बलिदान से परिपूर्ण है। यह जीवन जितना सम्माननीय है, उतना ही चुनौतियों से भरा हुआ भी है। एक सैनिक का कर्तव्य केवल देश की सीमाओं की रक्षा तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि वह अपने परिवार और निजी जीवन की कुर्बानी देकर राष्ट्र की सेवा में समर्पित होता है।

प्रथम चुनौती होती है कठिन प्रशिक्षण। एक सैनिक को शारीरिक और मानसिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है। यह प्रशिक्षण न केवल शारीरिक सहनशक्ति बढ़ाता है, बल्कि मानसिक दृढ़ता भी प्रदान करता है, जो युद्धक्षेत्र में अत्यंत आवश्यक होती है।

दूसरी चुनौती होती है परिवार से दूर रहना। सैनिकों को लंबे समय तक अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है, जिससे वे अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों से वंचित रह जाते हैं। यह दूरी उनके मनोबल पर प्रभाव डाल सकती है, लेकिन देश के प्रति कर्तव्य उन्हें इस कठिनाई का सामना करने की शक्ति देता है।

तीसरी चुनौती होती है अनिश्चितता का सामना करना। युद्धक्षेत्र में हर क्षण जीवन और मृत्यु के बीच का होता है। किसी भी समय दुश्मन का हमला हो सकता है, और सैनिक को हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना पड़ता है। यह अनिश्चितता मानसिक तनाव का कारण बनती है, लेकिन सैनिक अपने देशप्रेम और साहस से इसे पार कर लेते हैं।

चौथी चुनौती होती है मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों का सामना करना। बर्फीले पहाड़ों से लेकर तपते रेगिस्तान तक, सैनिक हर परिस्थिति में अपनी ड्यूटी निभाते हैं। यह परिस्थितियाँ उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल सकती हैं।

अंत में, सैनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करना आसान नहीं है, लेकिन देश के प्रति उनका अटूट प्रेम और कर्तव्यनिष्ठा उन्हें इन सभी कठिनाइयों को सहन करने की शक्ति देती है। सैनिकों का यह जीवन हमें न केवल प्रेरित करता है, बल्कि हमें उनके प्रति कृतज्ञता और सम्मान का भाव भी सिखाता है।


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मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा

पाठ के बारे में…

इस पाठ में हिंदी की सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा की कविता ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ को प्रस्तुत किया गया है। इस कविता के माध्यम से कवयित्री अपने आप से जो अपेक्षाएं करती है, यदि वह पूरी हो जाए तो ना केवल उसका अपना भला होगा बल्कि हर आमजन का कितना भला हो सकता है, यह बताने का प्रयास कवयित्री ने किया है। कवयित्री के अनुसार हम सब भले ही अलग-अलग शरीर धारी हों, लेकिन हैं हम एक ही, जो हमें मनुष्य नाम की जाति के रूप में पहचान प्रदान करता है।

कवयित्री के अनुसार औरों से बतियाना, औरों को समझाना, औरों को राह सुझाना तो सभी कर ही लेते हैं लेकिन उससे ज्यादा कहीं कठिन और श्रम साध्य कार्य यह है, अपने आप को समझाना। अपने आप से बतियाना और अपने आप को सही राह पर बनाए रखने के लिए तैयार करना।



कवयित्री के बारे में…

महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य जगत की छायावाद युग की एक प्रमुख कवयित्री रही हैं। वह छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में से एक प्रमुख स्तंभ रही हैं। महादेवी वर्मा का जन्म 1907 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ था। वह एक प्रसिद्ध कवयित्री और बेजोड़ लेखिका रही है। उन्होंने अनेक मर्मस्पर्शी कविताएं एवं संवेदनशील कहानियों की रचना की है। उनकी अधिकतर कहानियां उनके जीवन के संस्मरणों से संबंधित रही हैं।

महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाओं में रश्मि, नीहार, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, प्रथम आयाम, अग्नि आदि के नाम प्रमुख है। इसके अलावा उन्होंने अतीत के चलचित्र, श्रंखला की कड़ियां, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, मेरा परिवार और चिंतन के क्षण जैसी गद्य कृतियों की भी रचना की। उनका निधन 11 सितंबर 1987 को हुआ।



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखिथ प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1 : प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?

उत्तर : प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ ईश्वर के प्रति कवियत्री की आस्था तथा आत्मा का प्रतीक है और ‘प्रियतम’ ईश्वर का प्रतीक है। कवयित्री ने दीपक के माध्यम से ईश्वर के प्रति आस्था और आत्मा को आधार बनाया है। जबकि प्रियतम के माध्यम से वह अपने आराध्य ईश्वर को प्रतीक बनाती हैं।

कवयित्री दीपक से प्रार्थना कर रही हैं कि जीवन की प्रत्येक विषम परिस्थिति से जूझकर भी प्रसन्नतापूर्वक ज्योति फैलाए हैं, जिससे उसके प्रियतम को पाने का पथ आलोकित हो और वह उस पथ पर सहज भाव से चल सके। कवयित्री अपनी आत्मारूपी दीपक को जलाकर अपने प्रियतम यानी परमात्मा को पाने के पथ को आलोकित करना चाहती हैं।

प्रश्न 2 दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?

उत्तर : दीपक से इस बात का आग्रह किया जा रहा है कि वह कैसी भी परिस्थिति क्यों ना हो, कितनी भी विषम परिस्थिति क्यों ना हो, हर तरह की परिस्थिति में निरंतर जलता रहे।

कवयित्री दीपक से ऐसा आग्रह इसलिए कर रही हैं, क्योंकि दीपक के प्रकाश से उनके अपने प्रियतम को पाने का पथ आलोकित होता रहे और वह अपने प्रियतम यानि अपने आराध्य ईश्वर को पाने के मार्ग पर सहज रूप से चल सकें।

यहाँ पर कवयित्री ने दीपक को आत्मा का प्रतीक बनाया है। वह अपनी आत्मा के प्रकाश से अपने प्रियतम यानी कि ईश्वर को पाने का पथ आलोकित करना चाहती हैं। उनके अनुसार प्रियतम से उनका मिलन अर्थात ईश्वर को पाना ही उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है।

प्रश्न 3 : विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?

उत्तर : इन पंक्तियों में विश्व-शलभ से तात्पर्य पूरे संसार से है। विश्व-शलभ यानी पूरा संसार दीपक के साथ इसलिए जल जाना चाहता है, ताकि वह अपने अंदर के अहंकार, लोभ तथा विषय विकारों आदि को मिटा सके और ईश्वर में लीन हो जाए। विश्वशलभ दीपक के साथ जलकर अपने अस्तित्व को मिटा देना चाहता है ताकि उसके अंदर ज्ञान का प्रकाश प्रज्जवलित हो और वह ईश्वर को पा सके।

कवयित्री कहती है कि जिस तरह पतंगा दीपक की लौ के प्रति समर्पित होकर उसकी आग में जलकर अपने जीवन को मिटा देता है। उसी प्रकार यह सारा संसार भी प्रभु की भक्ति में लीन होकर अपने अंदर के अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह-माया आदि आदि को मिटा देता है ताकि उसके अंदर ज्ञान का प्रकाश जले और वह अपने प्रियतम ईश्वर को पा सके। सरल शब्दों में कहें तो संसार के लोग अपने अंदर के अहंकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश प्रज्जवलित करके ईश्वर को पाना चाहते हैं, इसीलिए विश्व-शलभ दीपक के साथ जल जाता है।

 

प्रश्न 4 : आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है −
(
क) शब्दों की आवृति पर।
(
ख) सफल बिंब अंकन पर।

उत्तर : हमारी दृष्टि में ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य शब्दों की आवृत्ति और सफल बिंब अंकन दोनों पर निर्भर है। जहाँ कवियत्री ने कविता में शब्दों की आवृत्ति से अद्भुत सौंदर्य बोध कराया है और कविता में जगह-जगह पर शब्दों की आवृत्ति कविता को विशिष्टता प्रदान कर रही है, वहीं कविता का सफल बिंबाकन भी कविता को एक अलग विशिष्टता प्रदान कर रहा है।

कवयित्री ने मधुर-मधुर, युग-युग, सिहर-सिहर, बिहँस-बिहँस जैसे शब्द युग्म के माध्यम से ‘पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार’ की छटा बिखेरी है।

कवयित्री ने इन पंक्तियों के माध्यम से बिंबों का सफल अंकन किया है। ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल सौरभ फैला विपुल धूप बन विश्व-शलभ सिर धुनता कह मैं, जलते नभ में देख असंख्य स्नेहनीत नित कितने दीपक विद्युत बन ले घिरता है बादल।

प्रश्न 5 : कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?

उत्तर : कवयित्री अपने प्रियतम को पाने वाला पथ आलोकित करना चाह रही हैं ताकि उसके प्रियतम यानि परमात्मा तक पहुंचने का उनका रास्ता सरल हो जाए। कवयित्री अपनी आस्था एवं आत्मा रूपी दीपक को जलाकर अपने परमात्मा यानी प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं।

अपने प्रियतम यानी परमात्मा को ही पाना उनका अंतिम लक्ष्य है और वह इस पथ को आलोकित करके निरंतर उस पथ पर चलते रहना चाहती है, ताकि वह अपने प्रियतम को पा सकें। कवयित्री के कहने का भाव यह है कि उनके मन की अज्ञानता ही उनका मन का अंधकार है और वह इस अंधकार को मिटाकर देना चाहती हैं ताकि उनके अंदर ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हो। यह ज्ञान का प्रकाश ही ईश्वर को पाने का पथ है।

प्रश्न 6 : कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?

उत्तर : कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से इसलिए प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि कवयित्री को लगता है कि इन तारों में तेल समाप्त हो गया है, जिस कारण उनमें प्रकाश नहीं उत्पन्न हो रहा और यह तारे दया, प्रेम, करुणा, प्रेम जैसे भावों से रहित हैं, इसी कारण वे स्नेहहीन हो गए हैं।

कवयित्री  ने आकाश के तारे संसार के मनुष्यों के प्रतीक बनाकर प्रयोग किए हैं। कवियत्री के अनुसार संसार के मनुष्यों में दया, प्रेम, करुणा, विनम्रता, सहानुभूति जैसे गुणों का अभाव हो गया है। इसी कारण उनमें स्नेह नही दिखता। इन तारों को यानि संसार के मनुष्यों को तेल मिल जाए यानी संसार के सभी मनुष्य प्रेम एवं सौहार्द की भावना से रहे तो उनके अंदर स्वतः ही स्नेह फूट पड़ेगा।

 

प्रश्न 7 : पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?

उत्तर : पतंगा अपने सिर को धुनकर अपना क्षोभ व्यक्त कर रहा है। पतंगा दीपक की लौ में जलकर अपने अस्तित्व को मिटा देना चाहता है, क्योंकि वह दीपक से परम स्नेह करता है और उसके प्रति पूरी तरह समर्पित होकर स्वयं के अस्तित्व को उसमें ही विलीन कर देना चाहता है। जब वह अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पाता तो वह अपना सिर धुन-धुन कर अपना क्षोभ व्यक्त कर रहा है। इसी तरह की स्थिति मनुष्य के साथ भी है।

मनुष्य अपने अहंकार को त्याग कर परमात्मा में स्वयं को विलीन कर देना चाहता है। लेकिन अनेक कारणों से वह अपने अहंकार का त्याग नहीं कर पाता और ईश्वर को पाने में विफल रहता है। इस तरह वह भी जब ईश्वर को पाने मे विफल रहता है, तो ईश्वर को शिकायत करके अपना क्षोब व्यक्त करता है जबकि वास्तव में गलती उसी की होती है, क्योंकि उसने अपने अंदर के अहंकार तो मिटाया ही नही है।

प्रश्न 8 : मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस, कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवयित्री ने मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस इन अलग-अलग तरीकों से दीपक को बार-बार जलने के लिए इसलिए कहा है क्योंकि कवयित्री यह चाहती है कि ये दीपक हर परिस्थिति में निरंतर अपनी लो जलाए रखें। कवयित्री चाहती है कि किसी भी तरह की परिस्थिति में भी दीपक की लौ बुझने ना पाए। वह प्रभु के प्रति अपनी आस्था और अपनी आत्मा का दीपक निरंतर जलाए रखना चाहती है, चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों ना हो। यदि कवयित्री की आस्था और आत्मा का ये दीपक हर परिस्थिति में जलता रहेगा तो कवयित्री को परमात्मा को पाने का पथ हमेशा आलोकित रहेगा और वह निरंतर इस पथ पर आगे बढ़ती रहेगी। इसीलिए कवयित्री ने दीपक को हर बार बार अलग-अलग रूप में जलने को कहा है।

प्रश्न 9 : नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए −

जलते नभ में देख असंख्यक, स्नेहहीन नित कितने दीपक; जलमय सागर का उर जलता, विद्युत ले घिरता है बादल! विहँस विहँस मेरे दीपक जल!
(क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?
(
घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
उत्तर : (क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर :  स्नेहहीन दीपक से तात्पर्य कांतिहीन दीपक से है अर्थात बिना तेल का दीपक। कवयित्री कहती हैं कि ऐसा दीपक जिसमें स्नेह रूपी तेल नही है, जिसके अंदर प्रभु के प्रति भक्ति नहीं है। ऐसा दीपक स्नेहहीन दीपक है।  यह बात कवयित्री ने उस व्यक्ति के लिए कही है, जिसके मन में स्नेह, करुणा, दया, प्रभु-भक्ति  आदि भाव नहीं होते।

(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?

उत्तर : सागर को जलमय कहने का अभिप्राय यह है कि यह लोग सांसारिक सुख-वैभव से तो भरपूर है परंतु सुख समृद्धि में भी यह लोग आपसी ईर्ष्या, द्वेष और घृणा के भाव के कारण जल रहे हैं। ऐसे व्यक्ति सांसारिक विषय-वासनाओं के कारण जल रहे हैं और उन्हीं के बीच में फंसे हुए हैं, इससे उनके अंदर आध्यात्मिक ज्योति नही जल नहीं पा रही और उनका हृदय तो केवल सांसारिक विकारों के कारण ही जल रहा है।

(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?

उत्तर : बादलों की विशेषता कवयित्री ने ये बताई है, कि जिस तरह बादल अपने जल के द्वारा धरती को शीतल और हरा-भरा कर देते हैं और उनमें पैदा होने वाली बिजली पलभर के लिए चमक कर चारों तरफ प्रकाश फैला देती है, उसी तरह इस संसार में कुछ महा प्रतिभाशाली लोग कुछ समय के लिए अपने प्रतिभा का प्रकाश संसार में बिखेकर संसार को कुछ समय के लिए आलोकित कर देते हैं और फिर विलीन हो जाते हैं।

(घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?

उत्तर : कवयित्री ने विहँस-विहँस कर जलने की बात इसलिए है क्योंकि वह चाहती है की यह दीपक निरंतर चलता रहे और किसी भी तरह की विषम परिस्थिति क्यों ना हों यानी उसे किसी भी विषम परिस्थिति में बुझना नहीं है, बल्कि दूसरों को प्रकाश पहुँचा कर उसे राह दिखाना है।

 

प्रश्न 10 : क्या मीराबाई और आधुनिक मीरा ‘महादेवी वर्मा’ इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने कि लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अतंर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए?

उत्तर : मीराबाई और आधुनिक मीरा महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियां अपना ही है उनमें कुछ तो समानता है लेकिन अधिकतर में असमानता ही है। इसका मुख्य कारण यह है कि जहाँ मीराबाई ने अपने आराध्य के  सगुण रूप की आराधना की है, वही महादेवी वर्मा ने अपने आराध्य के निर्गुण रूप की आराधना की है। मीराबाई ने कृष्ण भगवान के सुंदर रूप को अपनाकर उनकी आराधना उपासना । वहश्री कृष्ण के रूप सौंदर्य पर मोहित है। वह श्री कृष्ण से मिलने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है वह उनके घर में बाग-बगीचे लगाने के लिए तैयार हैं। वह श्रीकृष्ण के घर में चाकरी करने तक के लिए तैयार है। ताकि रोज श्रीकृष्ण के सुंदर मनोहारी रूप का दर्शन कर सकें। इसके विपरीत महादेवी वर्मा ने निराकार ब्रह्मा को उपासना का आधार बनाया है।दोनों में समानता यह है कि दोनों अपने अपने आराध्य की अन्यतम भक्त हैं और अपने आराध्य को पाने के लिए किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार है। वह ऐसा कुछ भी करने के लिए तैयार हैं जो उनको उनके आराध्य तक पहुंचाने में मदद करें।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 1 : दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल गल!

भाव : तेरे जीवन का अणु गल गल!इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री ने  दीपक को निरंतर जलते रहने का संदेश दिया है और कहा है कि वह अपने कण-कण को जला दे, गला दे और इस संसार को अपने प्रकाश से आलोकित कर दे। वह सागर की भांति स्वयं को विस्तृत रूप से फैला दें ताकि उसके प्रकाश के आलोक से संसार के सभी लोग उसका लाभ उठा सकें।

प्रश्न 2 : युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल, प्रियतम का पथ आलोकित कर!

भाव : इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री ने दीपक को निरंतर हर-पल, हर-समय जलते रहने के लिए कहा है। कवयित्री के कहने का भाव यह है कि उसके अंदर आस्था रूपी ज्ञान का दीपक हर-पल, हर-क्षण, हर-दिन निरंतर जलता रहे और युगों-युगों तक अपने प्रकाश से आलोकित करता रहे। कवयित्री चाहती है कि जब तक उसका हृदय रूपी दीपक निरंतर जलता रहेगा तभी उसके मन में व्याप्त अंधकार नष्ट होगा और वह अपने प्रियतम रूपी ईश्वर को पाने के आलोकित पथ पर चल सकेगी।

प्रश्न 3 : मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन!

भाव : इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने अपने समर्पण भाव को प्रदर्शित किया है। कवयित्री का कहना है कि इस कोमल तन को मोम की तरह एकदम भूल जाना होगा, तभी वो अपने प्रियतम यानि ईश्वर को पा सकेगी। कवयित्री के कहने का भाव है कि ईश्वर को पाना आसान नहीं है। ईश्वर को पाने के लिए कठोर तपस्या, कठोर साधना करनी पड़ेगी। ईश्वर के चरणों में अपना सब कुछ अर्पित कर देना होगा यानी स्वयं को मिटा देना होगा, मोम की तरह गला देना होगा, तब ही हम ईश्वर को पा सकते हैं।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1 : कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है, और वह योजक चिन्ह द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ ‘पुनरुक्ति प्रकाश’ अलंकार होता है; जैसे ‘पुलक-पुलक’इसी प्रकार के और शब्द खोजिए और जिनमें यह अलंकार हो।

उत्तर : कविता में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार वाले अनेक शब्द आए हैं, जो कि इस प्रकार हैं…

  • मधुर मधुर
  • सिहर सिहर
  • विहँस विहँस
  • युग युग
  • गल गल
  • पुलक पुलक

यह शब्द पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार को प्रकट कर रहे हैं। पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार वहाँ पर प्रकट होता है, जहाँ पर एक ही शब्द की लगातार दो बार पुनरावृत्ति हो।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 इस कविता में जो भाव आए हैं, उन्हीं भावों पर आधारित कवयित्री द्वारा रचित कुछ अन्य कविताओं का अध्ययन करें। जैसे, (क) मैं नीर भरी दुख की बदली (ख) जो तुम जाते एक बार (यह सभी कविताएं ‘सन्धिनी’ में संकलित हैं। )

उत्तर : विद्यार्थी इन कविताओं का अध्ययन करें जो कि महादेवी वर्मा द्वारा ही रचित की गई हैं। विद्यार्थियों के सुविधा के लिए दोनों कविताएं दी जा रही हैं।

(क) मैं नीर भरी दुख की बदली

मैं नीर भरी दुख की बदली!
स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा क्रन्दन में
आहत विश्व हँसा नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झारिणी मचली!
मेरा पग-पग संगीत भरा
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा
नभ के नव रंग बुनते दुकूल छाया में
मलय-बयार पली।
मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर
धूमिल चिन्ता का भार बनी
अविरल रज-कण पर
जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली!
पथ को न मलिन करता आना
पथ-चिह्न न दे जाता जाना;
सुधि मेरे आगन की जग में सुख की
सिहरन हो अन्त खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना, इतिहास यही-
उमड़ी कल थी, मिट आज चली!

(ख) जो तुम जाते एक बार

जो तुम आ जाते एक बार।
कितनी करुणा कितने संदेश।
पथ में बिछ जाते बन पराग,
गाता प्राणों का तार-तार।
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पद पखार।
हँस उठते पल में आर्द्र नयन,
धुल जाता ओठों से विषाद।
छा जाता जीवन में वसंत,
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देती सर्वस्व वार,
जो तुम आ जाते एक बार।

 

प्रश्न 2 : इस कविता को कंठस्थ करें तथा कक्षा में संगीतमय प्रस्तुति करें।

उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी पाठ मे दी गई कविता को याद करें और अपनी कक्षा में संगीतमय प्रस्तुति करें।

प्रश्न 3 : महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। इस विषय पर जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर : जीहाँ, महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं के माध्यम से अपने प्रियतम के ना मिल पाने की जो पीड़ा व्यक्त की है, वही पीड़ा मीरा ने अपने पदों के माध्यम से श्रीकृष्ण से ना मिल पाने की पीड़ा व्यक्त की थी।

जहाँ मीरा ने अपने पदों के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति आपने अनन्य प्रेम को प्रकट किया, उसी प्रकार महादेवी वर्मा ने भी अपनी कविताओं के माध्यम से अपने प्रियतम के प्रति अनन्य प्रेम को प्रकट किया है। मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण से मिलने के लिए निरंतर उनकी भक्ति करती रहती हैं और उनके प्रति आस्थावान रहती है। उसी प्रकार महादेवी वर्मा भी अपने आराध्य प्रभु से मिलने के लिए निरंतर उनकी भक्ति साधना करती हैं और अपनी आशा एवं आस्था का दीप जलाए रखती हैं।

इस तरह मीराबाई के पदों और महादेवी वर्मा की कविता तथा मीराबाई के पदों में भावों के समानता के कारण महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है।

 

मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions)

 


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‘भाग मिल्खा भाग’ फिल्म के बारे में बातचीत करते हुए दो दोस्तों के बीच हुए संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

‘भाग मिल्खा भाग’ फिल्म पर संवाद

 

रवि ⦂ रोहित, क्या तुमने ‘भाग मिल्खा भाग’ फिल्म देखी है? जो पूर्व ओलंपियन ‘मिल्खा सिंह’ के जीवन पर बनी बायोपिक है।

रोहित ⦂ हाँ रवि, मैंने वो फिल्म टी.वी. पर देखी थी। फिल्म 2013 में रिलीज हुई थी। मैंने फिल्म को 2022 में टी.वी. पर देखा था। क्या शानदार फिल्म है! ‘उड़न सिख’ के नाम से मशहूर पूर्व भारतीय खिलाड़ी मिल्खा सिंह की कहानी को इतनी खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है।

रवि ⦂ बिल्कुल सही कहा। फरहान अख्तर ने मिल्खा सिंह का किरदार इतनी बेहतरीन तरीके से निभाया है कि ऐसा लगता है जैसे हम असली मिल्खा सिंह को ही देख रहे हैं।

रोहित ⦂ हाँ, फरहान ने अपनी बॉडी और रनिंग स्टाइल पर काफी मेहनत की है। उनका अपने रोल के प्रति समर्पण साफ नजर आता था। उन्होंने अपने जीवंत अभिनय से इस रोल में जान डाल दी।

रवि ⦂ और फिल्म के गाने! ‘जिंदा’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ जैसे गाने तो प्रेरणा देने वाले हैं।

रोहित ⦂ सच में, संगीत ने फिल्म में जान डाल दी। शंकर-एहसान-लॉय ने कमाल का काम किया है। ‘हवन करेंगे, हवन करेंगे’ गाना भी बहुत लोकप्रिय हुआ है।

रवि ⦂ फिल्म का निर्देशन भी बहुत बढ़िया है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने मिल्खा सिंह की जिंदगी के हर पहलू को बारीकी से दिखाया है।

रोहित ⦂ हाँ, खासकर वह दृश्य जब मिल्खा सिंह अपने बचपन की यादों से जूझते हैं। वह सीन बहुत इमोशनल था।

रवि ⦂ और जब मिल्खा सिंह ओलंपिक में दौड़ते हैं, वह सीन देखकर तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

रोहित ⦂ हाँ, वह सीन बहुत ही प्रेरणादायक है। फिल्म ने हमें सिखाया कि मेहनत और लगन से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।

रवि ⦂ सही कहा। मिल्खा सिंह की कहानी हमें यह बताती है कि कितनी भी मुश्किलें आएं, हार नहीं माननी चाहिए।

रोहित ⦂ हाँ, और यही वजह है कि ‘भाग मिल्खा भाग’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक कहानी है जिसे हर किसी को देखनी चाहिए।

रवि ⦂ बिलकुल सही कहा। मेरे विचार में ऐसी प्रेरणादायक फिल्में और अधिक बननी चाहिए ताकि लोग इनसे प्रेरणा लें।

रोहित ⦂ मैं तुम्हारी बात से बिल्कुल सहमत हूँ।


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वायु ⦂ जल भाई, तुम कैसे हो?

जल ⦂ ठीक हूँ, बहन। तुम सुनाओ कहाँ घूम रही हो?

वायु ⦂ मैं बहुत दूर एक गाँव में जा रही हूँ, वहाँ पर बहुत गर्मी पड़ रही है। मैं वहाँ के लोगों को राहत देने के लिए जा रही हूँ।

जल ⦂ अच्छा, तुम्हारे मजे हैं। तुम तो हवा में तैरती रहती हो और जगह-जगह घूमती रहती हो।

जल ⦂ तो तुम भी कहाँ एक जगह पर घूमते रहते हो। तुम भी तो सब जाते हो।

जल ⦂ मेरे और तुम्हारे घूमने में फर्क है। तुम किसी भी दिशा में कहीं पर भी घूम लेती हो। जिधर तुम्हारा मन होता है, उधर तुम्हारा रुख हो जाता है। मैं नदी तालाबों के ऊपर निर्भर हूँ। मैं केवल नदी के रूप में ही घूम पाता हूँ। तालाब के रूप में एक जगह रह जाता हूँ। नदी में भी मेरी एक निश्चित दिशा होती है। मैं हर जगह नहीं जा सकता।

वायु ⦂ वह तो है। हर किसी का अपना अपना कर्म निर्धारित है। प्रकृति ने हमारा जो कर्म हमें निर्धारित किया है, हमें वैसा ही करना पड़ेगा।

जल ⦂ सही कह रही हो। हम इस प्राणी जगत के काम आते हैं, यही हमारे लिए सबसे अच्छा खुशी का अवसर है।

वायु ⦂ लेकिन कभी-कभी हमें गुस्से में भी आना पड़ता है और फिर मैं आंधी के रूप में और तुम बाढ़ के रूप में अपना विकराल रूप धारण कर लेते हो। तब लोगों को हमसे बड़ी असुविधा होती है।

जल क्या करें, यह मानव प्राणी ऐसा है, कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता है तो हमें भी अपने गुस्सा दिखाकर इसे समझाना पड़ता है कि ये प्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करे।

जल ⦂ यह सही बात है, लेकिन जो भी है हम दोनों मानव और सभी प्राणियों के लिए बेहद आवश्यक हैं और हमारे बिना इनका जीवन संभव नहीं। हमें अपने कर्म में लगे रहना है।

वायु  ⦂ बिल्कुल सही।


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तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2)

TOP : Viren Dangwal (Class 10 Chapter 5 Hindi Sparsh 2)


तोप : वीरेन डंगवाल

पाठ के बारे में…

‘तोप’ नामक कविता के माध्यम से कवि वीरेन डंगवाल ने ऐतिहासिक विरासत वाली वस्तुओं की महत्ता की ओर संकेत किया है। कवि ने कविता के माध्यम से यह बताने का प्रयत्न किया है कि प्रतीक और धरोहर दो तरह की हुआ करती हैं। एक धरोहर जिसे देखकर या जिसके बारे में जानकर हमें अपने देश और समाज की प्राचीन उपलब्धियों का ज्ञान मिलता है। वहीं दूसरी धरोहर वे धरोहरें होती हैं, जो हमें बताती हैं कि हमारे पूर्वजों से कब, क्या और कहाँ चूक हुई, जिसके कारण हमारे देश की कई पीढ़ियों को  दुख और दमन चलना पड़ा था।

‘तोप’ कविता के माध्यम से ऐसे ही दो प्रतीकों के बारे में बताया है। कवि ने कविता में कंपनी बाग में रखी एक ऐतिहासिक तोप के माध्यम से यही बात बताने का प्रश्न किया है। यह तोप ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाई गई थी जो देश के स्वाधीनता संग्राम  सेनानियों के विरुद्ध दमन के लिए प्रयोग में लाई गई थी। आज कंपनी बाग में रखी गई तोप हमें उसकी याद आती है।


कवि के बारे में…

वीरेंद्र डंगवाल हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध कवि रहे हैं, जिनका जन्म 5 अगस्त 1947 को उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले के कीर्ति नगर में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा दीक्षा पहले नैनीताल में और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में हुई। वह पेशे से अध्यापक थे। इसके बाद पत्रकारिता से भी जुड़े रहे।

वीरेंद्र डंगवाल की कविताओं की विशेषता समाज के साधारण जन और हाशिए पर स्थित जीवन के लक्षण को प्रस्तुत करने की रही है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से ऐसी बहुत सी चीजों और जीव-जंतुओं आदि को अपनी कविता का आधार बनाया है, जिनकी प्रायः अनदेखी की जाती रही है।

उनके दो कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में’ और ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ नाम से प्रकाशित हो चुके हैं। अपने पहले कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में’ के लिए उन्हें ‘श्रीकांत वर्मा पुरस्कार’ भी मिला था तथा दूसरे कविता संग्रह ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ मिला इसके अलावा उन्हें अन्य कई छोटे-बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्होंने अन्य भाषाओं के कई महत्वपूर्ण कवियों की कृतियों का हिंदी में अनुवाद भी किया है।

28 सितंबर सन 2015 को उनका निधन हो गया



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखिथ प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1 : विरासत में मिली चीजों की बड़ी संभाल क्यों होती है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : विरासत में मिली चीजों की बड़ी संभाल इसलिए होती है, क्योंकि विरासत में मिली वस्तुएं हमें चीजें हमें हमारे प्राचीन इतिहास का अनुभव कराती है। यह हमें हमारे पूर्वजों और परंपरा तथा भूतकाल की याद दिलाती हैं। यह हमारे पूर्वजों की धरोहर होती हैं। जिनके माध्यम से हम अपने बीते हुए समय चाहे वह समृद्ध रहा हो या नहीं रहा हो, उसको महसूस करते हैं।

इन चीजों के माध्यम से हमें तत्कालीन समय के परिवेश और इतिहास की जानकारी भी प्राप्त होती है और उससे फिर हम वर्तमान का संदर्भ जोड़कर भविष्य की संरचना करते हैं। यह चीजें हमें अपनी पुरानी पीढ़ी से जुड़े रहने के लिए कड़ी का काम करती है। और हमें अपने पिछले अतीत से कुछ सीख लेने के का काम करती हैं।

प्रश्न 2 : इस कविता से तोप के विषय में क्या जानकारी मिलती है?

उत्तर : इस कविता से तोप के विषय में हमें यह जानकारी मिलती है कि यह तो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध शक्तिशाली हथियार के रूप में प्रयोग की गई थी। यह वह तो है, जिसने भारत के अनेक शूरवीर स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन की लीला मिटा दी थी।

अंग्रेजों ने इस तोप का उपयोग स्वाधीनता सेनानियों के दमन के लिए किया था। आज कंपनी बाग में रखी है तो केवल खिलौना है, क्योंकि अब इसका प्रयोग कोई नहीं करता। अब यह तोप दर्शनीय वस्तु है, जिस पर पक्षियों ने अपना घोंसला बना रखा है और बच्चे इससे खेलते हैं। यह तोप हमें बताती है कि किसी का भी समय सदैव एक समान नही रहता, चाहे कोई कितना भी ताकतवर क्यों ना हो।

प्रश्न 3 : कंपनी बाग में रखी तोप क्या सीख देती है?

उत्तर : कंपनी बाग में रखी तोप हमें यह सीख देती है कि कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो एक ना एक दिन उसे समय के फेर में आकर झुकना ही पड़ता है। समय हमेशा एक समान नहीं रहता। बड़े से बड़े शक्तिशाली सूरमा भी एक दिन दयनीय बन चुके हैं। समय परिवर्तनशील है और यह अच्छे-अच्छे ताकतवर के अहंकार को चूर कर चुका है।

कभी एक समय ये तोप बेहद ताकतवर हुआ करती थी और जिसने कई स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के जीवन का बलिदान लिया था। आज इस तोप की दशा दयनीय बन चुकी है, अब तोप कोई नहीं पूछता बच्चों के खेलने का खिलौना मात्र बन कर रही हो। एक समय में ये तोप भले ही स्वाधीनता सेनानियों पर गरजती हो लेकिन आज उसकी वह गर्जन शांत हो चुकी है।

प्रश्न 4 : कविता में तोप को दो बार चमकाने की बात की गई है। ये दो अवसर कौन-से होंगे?

उत्तर : कविता में तोप  को दो बार चमकाने की बात की गई है। यह दो दिवस  15 अगस्त और 26 जनवरी होते हैं। 15 अगस्त को देश की स्वतंत्रता का दिवस होता है, जबकि 26 जनवरी देश का गणतंत्र दिवस होता है। यह दोनों दिवस राष्ट्रीय पर्व से संबंधित हैं और राष्ट्रीय गौरव एवं स्वाभिमान से जुड़े हुए हैं।

इसी कारण 15 अगस्त और 26 जनवरी को तोप को चमका कर कंपनी बाग में सजा कर रखा जाता है। इस तोप के माध्यम आजादी से पहले के उन दिनों को याद किया जाता है ताकि आने वाली नई पीढ़ी उनसे कुछ प्रेरणा ले सकें।


(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 1 : अब तो बहरहाल छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फ़ारिग हो तो उसके ऊपर बैठकर चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप।

भाव : ‘तोप’ कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने यह बताया है कि समय बड़ा बलवान होता है। कवि ने कंपनी बाद में रखी एक ऐतिहासिक तोप की वर्तमान स्थिति का वर्णन करते हुए कहा है कि यह तोप एक समय में बेहद शक्तिशाली हुआ करती थी और जोर-जोर से गरजा करती थी।

सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस तोप कोहराम मचा रखा था और अनेक स्वाधीनता सेनानियों की जान ली थी। उस समय यह तो आतंक का पर्याय थी। लेकिन अब यह तो शांत है, बेबस है और खिलौना मात्र बनकर रह गई है। अब तो छोटे बच्चे इस पर सवारी करते हैं, खेलते-कूदते हैं। जब बच्चे नहीं होते तब तोप पर चिड़ियों का झुंड इकट्ठा होकर अपनी चहचहाट से परेशान करता है।

किसी समय में बड़े-बड़े सूरमाओं के हौसले पस्त कर देने वाली यह तोप आज  बच्चों की खिलखिलाहट और चिड़ियों की चहचहाट और गपशप सुनने के लिए विवश है। कवि ने  इन पंक्तियों के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयत्न किया है कि समय अच्छे से अच्छे बलवान को धरातल पर पटकता है।

प्रश्न 2 : वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद।

भाव : ‘तोप’ कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि वीरेन डंगवाल ने यह बताया है की भले ही एक ऐसा समय था, जब तोप बड़ा गरजा करती थी और अपने आतंक से अच्छे-अच्छों का मुँह बंद कर देती थी, लेकिन आज यह समय भी है जब स्वयं उसका मुँह बंद है और वह गरजने की जगह शांत पड़ी है, क्योंकि एक ना एक दिन ऐसा होना ही था।

कवि समय की परिवर्तनशीलता को बताते हुए कहता है कि बड़े से बड़ा शक्तिशाली व्यक्ति क्यों ना हो कितना भी कोई अत्याचारी क्यों ना हो, उसके अत्याचार का अंत एक ना एक दिन अवश्य होना है। तोप ने अपने-अपने समय में भले ही अनेक स्वाधीनता सेनानियों के जीवन को समाप्त किया था, उनका मुँह बंद किया था, लेकिन आज वह स्वयं दयनीय अवस्था में पड़ी हुई है।

आज कोई उसको पूछने वाला नहीं है। आज उसका स्वयं का मुँह बंद है। कोई भी कितना शक्तिशाली और अत्याचारी हो उसका अंत ऐसा ही होता है।

प्रश्न 3 : उड़ा दिए थे मैंने अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे।

भाव : ‘तोप’ कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि वीरेन डंगवाल ने यह बताया है कि तोप अपनी पुरानी गाथा का वर्णन करते हुए कहती है कि एक समय उसका भी था जब उसने किसी की भी नहीं सुनी। इतने बड़े बड़े सूरमाओं को अपने आगे उड़ा दिया। उस तोप का उसका इतना आतंक था कि सब लोग उससे घबराते थे। बड़े से बड़ा वीर भी उसके सामने टिक नहीं पाता था। तोप अपने उन दिनों को याद करती है, जब वह बेहद ताकतवर थी और आज वह बेहद कमजोर हो गई है। जिस तोप की एक समय धाक थी, आज उसकी बच्चे कर रहे है।


भाषा अध्ययन

प्रश्न 1 : कवि ने इस कविता में शब्दों का सटीक और बेहतरीन प्रयोग किया है। इसकी एक पंक्ति देखिए, ‘धर रखी गई है, यह 1857 की तोप’। ‘धर’ शब्द देशज है और कवि ने इसका कई अर्थों में प्रयोग किया है। ‘रखना’, ‘धरोहर’ और ‘संचय’ के रूप में। कविता रचना करते समय उपयुक्त शब्दों का चयन और उनका सही स्थान पर प्रयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है।

उत्तर : कवि ने इस कविता में जिस तरह एक ही शब्द को अलग-अलग अर्थों में प्रयुक्त किया है, वैसे ही कुछ और उदाहरण इस प्रकार हैं…

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
पानी गए ऊबरै, मोती मानुष चून।

इस पद में पानी शब्द का तीन बार अलग-अलग अर्थों में प्रयोग किया है। पानी शब्द का मनुष्य की प्रतिष्ठा, मोती की चमक और आटे के लिए जरूरी द्रव के संबंध में प्रयुक्त किया है।

कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाए,
वा खाये बौराए, जा पाय बौराए

इस दोहे में कनक शब्द को दो बार धतूरे और सोने के संदर्भ में प्रयुक्त किया है।

प्रश्न 2 : तोप’ शीर्षक कविता का भाव समझते हुए इसका गद्य में रूपांतरण कीजिए।

उत्तर : ‘तोप’ शीर्षक कविता का गद्य रूपांतरण इस प्रकार होगा :

एक समय था, जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आई। भारत ने अपनी अतिथि परंपरा का पालन करते हुए उसको हाथों-हाथ लिया और उसको अपने यहाँ जगह दी। लेकिन उस कंपनी का उद्देश्य कुछ दूसरा ही था, वह धीरे-धीरे हमारे साधनों पर कब्जा करते हुए हमारे ऊपर ही शासन करने लगी। धीरे-धीरे हमारी शासक बन बैठी। उसने अनेक बाग-बगीचों, हथियारों, तोपों आदि का निर्माण किया।

हमारे साधनों से ही बनाए गए इन सभी यंत्रों का उसने शक्तिशाली हथियार के रूप में हम पर ही प्रयोग किया। 1857 के स्वाधीनता संग्राम में इस तोप ने कहर मचा रखा था और भारत के अनेक स्वाधीनता संग्राम सेनानियों की जान ली थी। तब यह तोप बेहद शक्तिशाली थी और आतंक का पर्याय बन चुकी थी। आज हालत यह है कि यह तोप खिलौना मात्र बनकर रह गई है।

आज इस तोप पर बच्चे सवारी करते हैं, पक्षी अपना घोंसला बनाकर रहते हैं। जो तोप कभी  बेहद शक्तिशाली थी वह आज बेहद दयनीय अवस्था में उपेक्षा की शिकार पड़ी है, जिसे केवल साल में दो बार 15 अगस्त और 26 जनवरी को याद किया जाता है। बाकी पूरे साल वह उपेक्षा का शिकार रहती है।

कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो, अत्याचारी क्यों ना हो। उसके अत्याचार का एक ना एक दिन तो अंत होना ही है। शक्तिशाली से शक्तिशाली व्यक्ति को एक न एक दिन धरातल पर आना ही है।


योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 : कविता लिखने का प्रयास कीजिए और उसे समझिए। 

उत्तर : विद्यार्थी स्वयं के प्रयास और अनुभव से कोई कविता लिखें। विषय अपनी इच्छानुसार चुन सकते हैं। एक स्वरचित कविता प्रस्तुत है…

यह है मेरा भारत देश अनेक भाषा,
अनेक वेश एक सूत्र में बंधे सारे प्रदेश
नही होता कोई कलेश ये है
यह है मेरा भारत देश
जग में सबसे रहे महान 
ऊँची सदा इसकी रहे शान
मेरा भारत मेरी पहचान
मेरा भारत महान

प्रश्न 2 : तेजी से बढ़ती जनसंख्या और घनी आबादी वाले वाली जगहों के आसपास पार्कों का होना क्यों जरूरी है? कक्षा में परिचर्चा कीजिए।

उत्तर : तेजी से बढ़ती जनसंख्या और घनी आबादी वाली जगहों के आसपास पार्कों का होना इसलिए जरूरी है क्योंकि लोग चंद पलों के लिए खुली हवा में सांस ले सकें। स्वच्छ वायु हर किसी के स्वास्थ्य के लिए बेहद आवश्यक है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण ऊँची-ऊँची इमारतें खड़ी हो रही है और लोगों के रहने की जगह कम होती होती जा रही है। उन्हें खुला वातावरण मिलना बेहद मुश्किल होता जा रहा है।

ऐसे में घनी आबादी के बीच पार्कों के होने से लोग कुछ समय के लिए खुली हवा में चैन की सांस ले सकते हैं और प्रकृति के दृश्यों को का आनंद भी ले सकते हैं। यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। इसलिए तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के आसपास का पार्कों का होना जरूरी है।


परियोजना कार्य

प्रश्न 1 : परियोजना कार्य स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा संबंधी पुस्तकों पुस्तकालय से प्राप्त कीजिए और पढ़कर कक्षा में सुनाइए।

उत्तर : विद्यार्थी स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा संबंधी पुस्तकों को पुस्तकालय से लेकर आएं और उन्हें पढ़कर अपनी कक्षा में अपने साथी छात्रों को सुनाएं। विद्यार्थियों की सुविधा के लिए कुछ महान स्वतंत्रता सेनानियों के नाम प्रस्तुत हैं। विद्यार्थी इन स्वतंत्रता सेनानियों की जीवन गाथा संबंधी पुस्तकों को खोजें और लाएं..

  • सुभाषचंद्र बोस
  • महात्मा गाँधी
  • भगतसिंह
  • चंद्रशेखर आजाद
  • लाला लाजपत राय
  • राम प्रसाद बिस्मिल
  • राजगुरु
  • सुखदेव
  • अशफाकउल्ला खाँ
  • ऊधम सिंह
  • रासबिहारी बोस
  • बिपिनचंद्र पाल
  • बाल गंगाधर तिलक

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पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत

पाठ के बारे में…

इस पाठ में कवि सुमित्रानंदन द्वारा रचित ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ नामक कविता प्रस्तुत की गई है, जो प्रकृति के रोमांच और प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी आँखों से निरखने की अनुमति देती है। सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं और उनकी अधिकांश कविताओं में प्रकृति की ऐसी ही सुखद अनुभूति होती है। उनकी कविताएं पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि हम स्वयं उस प्राकृतिक वातावरण में विचरण कर रहे हो और ऐसे ही किसी प्राकृतिक मनोहर स्थल पर आ गए हो।

प्रस्तुत कविता में भी कवि सुमित्रानंदन पंत ने पर्वत प्रदेश में वर्षा ऋतु के समय के सौंदर्य का वर्णन किया है। कविता के माध्यम से कवि ने पहाड़ों के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करके उसकी अनुभूति कराने का अवसर दिया है। कविता पढ़कर ऐसा लगता है कि अभी-अभी पर्वतीय स्थल का विचरण करके वापस लौटे हों।



रचनाकार के बारे में…

सुमित्रानंदन पंत जोकि छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे, वह प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य का जितना सुंदर चित्रण उन्होंने किया है, उतना अन्य किसी ने नहीं किया।

सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 उत्तराखंड के कौसानी (अल्मोड़ा) में हुआ था। वह बचपन से ही काव्य प्रतिभा के धनी थे और मात्र 7 साल की आयु में ही उन्हें अपने विद्यालय में काव्य पाठ के लिए पुरस्कार प्राप्त हुआ था। उन्होंने मात्र 15 वर्ष की आयु से ही स्थाई रूप से साहित्य का कार्य आरंभ कर दिया था।

उनकी कविता में प्रकृति प्रेम और राष्ट्रवाद की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। उनकी कविता में महात्मा गांधी तथा अरविंद दर्शन का प्रभाव भी नजर आता है।

सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख कृतियों में वीणा, पल्लव, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, लोकायतन, कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा आदि के नाम प्रमुख हैं। उन्हें 1961 में भारत सरकार के तृतीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें साहित्य का ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिल चुका। उन्हें 1960 में उनके ‘कला और बूढ़ा चाँद’ नामक कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला।

सुमित्रानंदन पंत का निधन सन 28 दिसंबर 1977 को हुआ।



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1: पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए?

उत्तर : पावस ऋतु में प्रकृति में अनेक परिवर्तन आते हैं। पावस ऋतु यानि वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेशों में प्रकृति में निरंतर परिवर्तनशील रहती है। वर्षा ऋतु में मौसम हर पल बदलता रहता है। कभी अचानक से तेज वर्षा होने लगती है और वर्षा का जल पहाड़ों के नीचे जमा हो जाता है । इस जल को देखकर दर्पण के जैसा आभास होता है, जिसमें पर्वतमाला पर खिले हुए फूलों का प्रतिबिंब दिखाएं देता है। तब ऐसा लगता है कि पर्वत अनेक नेत्र खोलकर प्रकृति के मनोरम दृश्य को देख रहा हो और उसका प्रतिबिंब दर्पण रूपी तालाब में नजर आ रहा हो।

पर्वत से गिरते हुए झरने ऐसे प्रतीत होते हैं, जैसे वह पर्वत की गौरव गाथा का गान कर रहे हों। ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर एकटक निहारते हुए चिंतामग्न से दिखाई देते हैं। इस परिवर्तनशील मौसम में अचानक काले-काले बादल घिरने लगते हैं और तब ऐसा लगता है कि मानो बादल के रूप में पंख लगाकर पर्वत स्वयं कहीं उड़ जाना चाहते हों।

चारों तरफ फैला हुआ कोहरा धुएँ के समान दिखाई देता है। तालाबों से उठते कोहरे के देखकर ऐसा लगता है कि तालाब में चारों तरफ आग लग गई हो। आकाश में मंडराते हुए बादलों के देखकर ऐसा लगता है कि मानों स्वयं इंद्र देवता बादलों की सवारी कर रहे हों।


प्रश्न 2 ‘मेखलाकार’ शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?

उत्तर : मेखलाकार शब्द का अर्थ है मेखला अर्थात करधनी नाम का एक आभूषण, जो स्त्रियों द्वारा कमर में पहना जाता है। मेखलाकार मेखला और आकार इन दो शब्दों से मिलकर बना है। मेखला मतलब करधनी, जो स्त्रियों का आभूषण होता है, जिसे वह कमर में पहनती हैं।

कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि पर्वतों का ढलान देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे प्रकृति ने मेखला आभूषण से आवृत कर रखा हो।

कविता यहां पर कहने का तात्पर्य यह है कि विशाल पहाड़ जो पृथ्वी को चारों तरफ से घेरे हुए हैं, वे पर्वत चारों तरफ गोल-गोल आकृति में फैले हुए हैं, जो करधनी का आभास देते हैं। इसीलिए कवि ने मेखलाकार शब्द का प्रयोग किया है।


प्रश्न 3 : सहस्र दृग-सुमन’ से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?

उत्तर : ‘सहस्र दृग सुमन’ से कवि का तात्पर्य है कि हजारों पुष्प की आँखें। कवि ने इस पद का प्रयोग उन अंसख्य फूलों के लिए किया है, जो पर्वत पर चारों तरफ फैले हुए हैं।

पावस ऋतु में पर्वत पर असंख्य फूल खिल जाते हैं और वह वे असंख्य  फूल ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे पर्वत की हजारों आँखे हों। पर्वत उन आँखों से तालाब में अपना प्रतिबिंद को देखकर अपने अनुपम सौंदर्य को निहार रहा हो। इसीलिए कवि ने दृग सुमन का प्रयोग पर्वत पर खिले फूल के लिए किया है और और उन्हें पर्वत की आँखों की उपमा दी है।


प्रश्न 4 : कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?

उत्तर : कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ की है। कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ करते हुए इसका कारण बताया है। कवि के अनुसार जब घनघोर वर्षा के कारण पर्वत प्रदेशों में पानी एक जगह जमा हो जाता है तो वह तालाब का रूप ले लेता है। उस तालाब में पर्वत पर खिले असंख्य फूल सहित पर्वत का प्रतिबिंब दिखाई देता है।

तालाब के स्वच्छ एवं निर्मल जल में जब पर्वत का प्रतिबिंब दिखाई देता है तो ऐसा लगता है कि तालाब नहीं हो कोई दर्पण हो, जिसमें पर्वत अपना प्रतिबिंब देखकर अपने सौंदर्य को निहार रहा हो।


प्रश्न 5 : पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की और क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?

उत्तर : पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर इसलिए देख रहे थे जैसे उन्हें कोई चिंता हो रही थी। ऐसा लगता था कि वे आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहते थे। वे अपनी किसी उच्च आकांक्षा को पाने के लिए आकाश की ओर देख रहे थे। वह इस बात का प्रतिबिंबित करते हैं कि बिल्कुल मौन रहकर भी कोई संदेश दिया जा सकता है। अर्थात अपने उद्देश्य को पाने के लिए केवल अपने मन और दृष्टि को ही स्थिर रखना आवश्यक है अर्थात जीवन में अपने लक्ष्य को पाने के लिए मौन रहकर चुपचाप अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते रहना चाहिए। वृक्ष इसी बात को प्रतिबिंबित करते हैं।


प्रश्न 6 : शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?

उत्तर : शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में इसलिए धँस गए क्योंकि पर्वतीय प्रदेशों में घनघोर वर्षा होने के कारण बादल काफी नीचे तक आ जाते हैं। अचानक बड़े-बड़े बादलों के आ जाने से और मूसलाधार वर्षा होने से घनघोर वर्षा के कारण बादल और कोहरा चारों तरफ इतना अधिक छा जाता है कि चारों तरफ का दृश्य देखना तक बंद हो जाता है। ऐसे में शाल के वृक्ष भी बादलों के बीच ढंक जाते हैं तो ऐसा लगता है कि मूसलाधार वर्षा के कारण शाल के भयभीत होकर धरती में धँस गए हैं।


प्रश्न 7 : झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

उत्तर : झरने पर्वत के गौरव का गान कर रहे हैं। कवि ने बहते हुए झरने की तुलना ऐसे की है, जैसे पर्वत की छाती पर मोतियों की कोई लड़ी सजी हो। ऊँचे-ऊँचे पर्वत के शिखरों से गिरने वाले झरने गिरते हुए ऐसा प्रतीत हो रहे हैं, जैसे वे झर-झर करते ध्वनि करते हुए पर्वत के गौरव का गुणगान कर रहे हों। गिरते हुए झरने बेहद मनोरम दिखाई पड़ रहे हैं, जो जीवन में उत्साह और उमंग भर रहे हैं।


प्रश्न 8 : (ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।
2. यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उत्तर : भाव इस प्रकार होंगे…

1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।

भाव : इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने वर्षा के मूसलाधार स्वरूप का वर्णन किया है। पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु में जब चारों तरफ काले-काले धने घनघोर बादल छा जाते हैं तो वह ऐसी घनघोर वर्षा करने लगते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश धरती पर टूट पड़ा है।वर्षा इतनी मूसलाधार होती है कि ऐसा लगता है कि आकाश धरती तक आ गया है।

2. −यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

भाव : इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने पावस ऋतु में पर्वत प्रदेश में प्रकृति के बदलते रूप का वर्णन किया है। वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेशों में बादल कितने घने हो जाते हैं और चारों तरफ ऐसा कहा जाता है कि पेड़-पौधे, पर्वत, झरने, तालाब आदि सब कोहरे से आच्छादित होकर अदृश्य हो जाते हैं और दिखाई नहीं देते। तालाबों से कोहरे के रूप में उठता हुआ ऐसे लगता है कि तालाबों में आग लग गई हो।

शाल के वृक्ष भी भयभीत होकर धरती में से हुए घँसे हुए नजर आते हैं। बादल और वर्षा के कारण और कोहरे के कारण शाल के वृक्ष बादलों के बीच ढंक जाते हैं और ऐसा लगता है कि वह धरती में धँस गए हो। बादल आकाश से उतरकर इतने नीचे आ जाते हैं कि वह पहाड़ के ऊपर उड़ते होते हुए प्रतीत होते हैं। इससे ऐसा आभास होता है कि पहाड़ भी बादलों के साथ उड़े रहे हैं। उड़ते हुए बादलों को देखकर ऐसा लगता है कि इन बादल रूपी वाहन में स्वयं इंद्र अपनी लीला को देखने निकले हैं।

3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

भाव : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने पर्वतीय प्रदेशों में वर्षा ऋतु के समय सौंदर्य का वर्णन करते हुए वृक्षों की क्रियाओं का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु में वृक्ष पर्वत के हृदय से ऊपर उठकर आकाश की ओर देखते हुए ऐसे प्रतीत हो रहे हैं कि जैसे उनके मन में भी कोई उच्च आकांक्षा रही हो। वे आकाश की ओर स्थिर दृष्टि से देखते हैं। यह स्पष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं कि वह भी आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं।

वृक्ष आकाश की ऊँचाइयों को छू तो लेना चाहते हैं पर उनके मन में कुछ चिंता भी दिखाई दे रही है। कवि ने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि मनुष्य को अपने लक्ष्य की ओर स्थिर भाव ध्यान मग्न होकर उसी ओर निरंतर अग्रसर होना चाहिए।


कविता का सौंदर्य

प्रश्न 1 : इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : इस कविता में कवि ने अनेक पंक्तियों में मानवी करण अलंकार का प्रयोग किया है। मानवीकरण अलंकार वहाँ पर प्रयोग किया जाता है, जहाँ पर प्रकृति के तत्वों को मानव रूप में क्रिया संपन्न करते हुए दर्शाया जाता है। कवि ने ‘पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु’ कविता में प्रकृति के अनेक तत्वों को मानवीय रूप में क्रियाएं संपन्न करते हुए दर्शाया है।

उदाहरण के लिए…

पर्वत द्वारा अपने फूल रूपी नेत्रों के माध्यम से अपना प्रतिबिंब निहारते हुए गौरव गान का अनुभव करना,
झरनों द्वारा पर्वत का यशोगान करना,
पेड़ों का आकाश की ओर देखना और उच्च आकांक्षा प्रकट करना,
बादलों का पंख फड़फड़ाना,
इंद्र द्वारा बादल पर बैठकर सवारी करना और अपना जादुई खेल दिखाना

यह सब क्रियाओं में प्रकृति के तत्व मानव के रूप में संपन्न करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसलिए इन सब में मानवीकरण अलंकार है।


प्रश्न 2 : आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है −
(क) अनेक शब्दों की आवृति पर
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर

उत्तर : हमारी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य नीचे दिए गए तीनों विकल्पों पर निर्भर करता है अर्थात कविता का सौंदर्य किसी भी एक कारक पर निर्भर नहीं है। तीनों ही कारक कविता को सुंदर बनाते हैं।

(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर : पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश गिरी का गौरव गाकर झर-झर मद में नस-नस उत्तेजित कर गिरवर के उर से उठ-उठ करइन शब्दों की आवृत्ति कविता में हुई है, जो कविता को बेहद सुंदर बना रही है और कविता की गति को एक लय प्रदान कर रही है।

(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर : कवि ने कविता में शब्दों को चित्रमयी भाषा के रूप में प्रस्तुत किया है। जैसे मेखलाकार पर्वत, अपार उड़ गया, अचानक लो भूधर फड़का अपार पारद के पर है टूट पड़ा भू पर अंबर इन सभी उन के माध्यम से कवि ने कविता की चित्रमयी भाषा प्रकट की है, जो कविता के सौंदर्य को बढ़ाती है।

(ग) कविता की संगीतात्मकता पर : कवि ने कविता में संगीतात्मकता और लय को भी ध्यान रखा है। कविता सुनने और पढ़ने में सरस और बेहद मधुर लगती है। कविता को कविता का पठन और श्रवण मधुरता उत्पन्न करता है, जो कविता की सार्थकता को प्रकट कर रहा है।


प्रश्न 3 : कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।

उत्तर : कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ये पंक्तियां इस प्रकार हैं…
1. मेखलाकार पर्वत अपार अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़, अवलोक रहा है बार-बार नीचे जल में निज महाकार जिसके चरणों में पला ताल दर्पण फैला है विशाल!
2. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर उच्चाकांक्षाओं से तरुवर हैं झाँक रहे नीरव नभ पर अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।


योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 : इस कविता में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात कही गई है। आप अपने यहाँ वर्षा ऋतु से में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर : इस पाठ में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात कही गई है। हमारे यहां भी वर्षा ऋतु में अनेक तरह के प्राकृतिक परिवर्तन होते हैं। हमारा क्षेत्र समुद्र तटीय क्षेत्र है, जहाँ पर अत्यधिक वर्षा होती है। वर्षा के आगमन से ही गर्मी का नामोनिशान मिट जाता है और मौसम बेहद सुहावना हो जाता है।

हमारे क्षेत्र में जो पानी की झीले सूख रही होती हैं, वह पानी से लबालब भर जाती हैं। पेड़ पौधे भी हरे हो जाते हैं। प्राकृतिक वातावरण बेहद मनमोहक हो जाता है और चारों तरफ पक्षियों आदि की चहचहाहट सुनाई देने लगती है। वर्षा के कारण चारों तरफ पानी और कीचड़ दिखाई देने लगता जिससे फिसलन हो जाती है। घर से बाहर निकलते समय हमेशा छाता लेकर निकलना पड़ता है ताकि अचानक हुई वर्षा से बचा जा सके।


परियोजना कार्य

प्रश्न 1 : वर्षा ऋतु पर लिखी गई उन कवियों की कविताओं का संग्रह कीजिए और कक्षा में सुनाइए।

उत्तर : विद्यार्थी विभिन्न और पत्र-पत्रिकाओं आदि में वर्षा ऋतु पर कविताओं का संग्रह करके उन्हें अपनी कक्षा में सुनाएं।


प्रश्न 2 : बारिश, झरने, इंद्रधनुष, बादल, कोयल, पानी, पक्षी, सूरज, हरियाली और प्रकृति विषयक शब्द का प्रयोग करते हुए एक कविता लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर : दिए गए शब्दों का प्रयोग करते हुए एक कविता इस प्रकार है…

वर्षा रानी-वर्षा रानी,
लायी है बारिश का पानी,
चारों तरफ बह रहे हैं झरने,
इंद्रधनुष के क्या हैं कहने,
पक्षी लगे हैं चहकने,
फूल भी लगे हैं महकने,
बादल की गूंजी गड़गड़ाहट,
पक्षियों की चहचहाहट,
सूरज बाबा कहाँ गुम हो गए,
बादलों के पीछे ही छुप गए
चारों तरफ फैली हरियाली
मन को मोहित करने वाली


पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions हिंदी)

कक्षा-10 हिंदी स्पर्श 2 इस पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ…

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पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)


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कबीर सुमिरन सार है, और सकल जंजाल। आदि अंत सब सोधिया, दूजा देखौं काल।। अर्थ बताएं?

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एकस्मिन् बने एकः शृगालः वसति स्म। एकास्मिन् दिवसे सः नीलवर्णस्य कुण्डे अपतत्। `यदा सः कुण्डात् बहिः आगतः तदा सः नीलवर्णः जातः । सः अतिप्रसन्नः अभवत् वनम् अगच्छत् च। सः वनस्य सर्वेषां पशूनां सभाम् आमन्त्रितं कृत्वा आत्मानं राजा अघोषत् । वनस्य अन्ये जन्तवः तस्मात् ईष्यां कुर्वन्ति स्म से राती एकत्रीः भूत्वा उच्चैः अक्रन्दन् सः शृगालरूपे राजा अपि त आगच्छत् अक्रन्दत् च। सिहाः अवागच्छन् यत् सः शृगालः अस्ति । ते तस्मै अक्रुध्यन् तम् तत्रैव अमारयन् । हिंदी में अर्थ।

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एकस्मिन् बने एकः शृगालः वसति स्म। एकास्मिन् दिवसे सः नीलवर्णस्य कुण्डे अपतत्। `यदा सः कुण्डात् बहिः आगतः तदा सः नीलवर्णः जातः । सः अतिप्रसन्नः अभवत् वनम् अगच्छत् च। सः वनस्य सर्वेषां पशूनां सभाम् आमन्त्रितं कृत्वा आत्मानं राजा अघोषत् । वनस्य अन्ये जन्तवः तस्मात् ईष्यां कुर्वन्ति स्म से राती एकत्रीः भूत्वा उच्चैः अक्रन्दन् सः शृगालरूपे राजा अपि त आगच्छत् अक्रन्दत् च। सिहाः अवागच्छन् यत् सः शृगालः अस्ति । ते तस्मै अक्रुध्यन् तम् तत्रैव अमारयन् ।

हिंदी अनुवाद :

एक जंगल में एक सियार रहता था। एक दिन वह एक नीले तालाब में गिर गया। जब वह तालाब से बाहर निकला तो वह नीला रंग का हो गया था। वह बहुत खुश हुआ और जंगल में चला गया। उसने जंगल के सभी जानवरों की एक सभा को आमंत्रित किया और खुद को राजा घोषित कर दिया। जंगल के अन्य जानवर उससे ईर्ष्या करते थे और उस रात वे एक साथ इकट्ठे होकर जोर से चिल्लाने लगे। सियार के रूप में राजा भी आया और चिल्लाया। तब शेरों को पता चल गया कि वह एक सियार था। वे उस पर क्रोधित हो गए और उसे वहीं पर ही मार डाला।


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अस्माकं देशस्य नाम भारतवर्षम् अस्ति। भारतवर्षम् एकः महान् देशः अस्ति। अस्य संस्कृतिः अति प्राचीना अस्ति। अस्य प्राचीनं नाम आर्यावर्तः अस्ति। पुरा दुष्यन्तः नाम नृपः अभवत्। सः महर्षेः कण्वस्य सुतया शकुन्तलया सह विवाहम् अकरोत्। तस्य भरतः नाम्नः पुत्रः अभवत्। इति कथयन्ति स्म यत् तस्य नामानुसारेण देशस्य नाम अपि भारतम् अभवत्।​ इस संस्कृत गद्यांश का हिंदी अनुवाद करें।

ग्रीष्म अवकाश पर निबंध लिखें।

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निबंध

ग्रीष्म अवकाश

ग्रीष्म अवकाश का हर छात्र के जीवन में एक विशेष महत्व होता है। यह वह समय होता है जब स्कूल बंद होते हैं और छात्रों को पढ़ाई के तनाव से राहत मिलती है। ग्रीष्म ऋतु की भीषण गर्मी के बावजूद, यह अवकाश हमेशा से बच्चों के लिए खुशियों और उत्साह का समय होता है।

ग्रीष्म अवकाश की शुरुआत होते ही सभी छात्र अपने-अपने ढंग से इसका आनंद लेने की योजना बनाने लगते हैं। कोई अपने नानी-नाना के घर जाने की तैयारी करता है तो कोई अपने दोस्तों के साथ खेलकूद में समय बिताने की सोचता है। परिवार के साथ समय बिताना, नये स्थानों की यात्रा करना, और विभिन्न प्रकार के खेल खेलना, यह सब ग्रीष्म अवकाश को और भी मजेदार बना देते हैं।

मुझे भी ग्रीष्म अवकाश का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस बार ग्रीष्म अवकाश के दौरान मैंने अपने परिवार के साथ पहाड़ों की यात्रा करने की योजना बनाई थी। हम सब ने मिलकर शिमला की यात्रा की। शिमला की खूबसूरत वादियाँ और ठंडी हवा ने हमें भीषण गर्मी से राहत दिलाई। वहां के हरे-भरे पेड़ और शांत वातावरण ने हमें शांति और सुकून का अनुभव कराया। हम ने वहां कई दर्शनीय स्थलों की सैर की, जैसे माल रोड, कुफरी, और जाखू मंदिर। इन स्थलों की सुंदरता ने हमें मंत्रमुग्ध कर दिया।

ग्रीष्म अवकाश का एक और महत्वपूर्ण पहलू है कि यह हमें हमारे शौक और रुचियों को आगे बढ़ाने का समय देता है। मैंने इस अवकाश के दौरान चित्रकारी और पुस्तकें पढ़ने में भी समय बिताया। यह गतिविधियाँ मुझे रचनात्मकता और ज्ञान के नए आयामों से परिचित कराती हैं। इसके अलावा, मैंने अपने छोटे भाई-बहनों के साथ विभिन्न खेल खेले, जो हमारे आपसी संबंधों को और भी मजबूत बनाते हैं।

ग्रीष्म अवकाश के दौरान मैंने कुछ नई चीजें भी सीखी। मैंने अपने दादी-नानी से उनके बचपन की कहानियाँ सुनीं और उनसे कई जीवन के महत्वपूर्ण सबक सीखे। मैंने अपने माता-पिता की मदद से खाना बनाना भी सीखा, जो एक नया और रोचक अनुभव था।

अंत में…

ग्रीष्म अवकाश न केवल हमें आराम और मनोरंजन का अवसर देता है, बल्कि यह हमें अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने का भी मौका प्रदान करता है। यह हमें नई चीजें सीखने और अपनी रचनात्मकता को विकसित करने का समय भी देता है। इसलिए, ग्रीष्म अवकाश हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जो हमारी पढ़ाई के आने वाले सालों के लिए हमें ऊर्जा और उत्साह से भर देता है। ग्रीष्म अवकाश के बाद जब हम नई कक्षा में जाते है, एकदम तरोताजा होते हैं, जिससे पढ़ाई में आनंद आता है। इसलिए ग्रीष्म अवकाश का हम सभी के विशेषकर हम विद्यार्थिोयों के जीवन में विशेष महत्व है।


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अपने विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस मनाने हेतु विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

स्वतंत्रता दिवस हेतु विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र

 

दिनाँक : 7 अगस्त 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
दयानंद विद्यालय,
निर्माण विहार, दिल्ली

विषय : विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस मनाने हेतु कार्यक्रम के आयोजन संबंध में

आदरणीय प्रधानाचार्य सर

हम सभी कक्षा 9 व 10 के छात्र हैं। हम आपको यह पत्र आने वाले स्वतंत्रता दिवस के मनाने के संबंध में लिख रहे हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आगामी 15 अगस्त को हमारे भारत का स्वतंत्रता दिवस है। यह एक राष्ट्रीय पर्व है और इस पर्व पर अनेक आयोजन किए जाते हैं। हमारे विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस लंबे समय से मनाया जाता रहा है, लेकिन स्वतंत्रता दिवस पर कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन का अभाव रहता है।

सर, हम सभी छात्रों का आपसे अनुरोध है कि इस बार स्वतंत्रता दिवस पर विद्यालय में देशभक्ति संबंधी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाए। हम सभी विद्यार्थियों ने इस संबंध में मंचन के लिए कुछ कार्यक्रम भी तैयार किए हैं, जिमनें देशभक्ति के गीत, कविताएं, लघु नाटक और नृत्य नाटिका शामिल है। आशा है आप हम सभी विद्यार्थियों का अनुरोध ध्यान में रखते हुए इस स्वतंत्रत दिवस पर विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन की भी अनुमति देंगे और इसके संबंध में शीघ्र ही व्यवस्था करेंगे।
धन्यवाद

प्रार्थी,
कक्षा-9 व 10 के सभी छात्र,
दयानंद विद्यालय,
निर्माण विहार,
दिल्ली


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आपकी कक्षा के कुछ बच्चे अंग्रेज़ी के पीरियड में अंग्रेजी नहीं बोलते बल्कि गलत शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। कक्षा मॉनिटर होने के नाते उनकी शिकायत करते हुए प्रधानाचार्य को पत्र लिखिए।

विद्यालय के प्रधानाचार्य को चरित्र प्रमाण-पत्र देने का अनुरोध करते हुए एक प्रार्थना पत्र लिखिए ।

फ़ीस माफ़ी के लिए प्रधानाचार्य को पत्र लिखो।

विद्यालय छोड़ने का प्रमाण पत्र लेने के लिए प्रधानाचार्य को पत्र लिखें।

‘कर्तव्य एवं अधिकार’ विषय पर 250 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।​

अनुच्छेद

कर्तव्य एवं अधिकार

 

कर्तव्य और अधिकार मनुष्य के जीवन के दो महत्वपूर्ण विषय है। कर्तव्य और अधिकार दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए भी है, लेकिन अक्सर लोग दोनों में अंतर नहीं कर पाते। लोगों को अपने अधिकार की तो बहुत अधिक चिंता रहती है, लेकिन अपने कर्तव्यों को निभाने में आलस करते हैं। जबकि किसी भी लोकतंत्र में कर्तव्य और अधिकार दोनों का अपना महत्व है। हम अपने अधिकारों की मांग तभी कर सकते हैं जब हमने अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी पूरी ईमानदारी से किया हो।

जिस तरह भारतीय नागरिक के 6 मूल अधिकार हैं। उसी तरह भारत के संविधान में भारत के नागरिक के मौलिक कर्तव्य भी निर्धारित किए गए हैं, लेकिन हम सभी को अक्सर अपने अधिकारों का ही अधिक ध्यान रहता है। अधिकारों की सभी बातें करते हैं लेकिन मौलिक कर्तव्यों की कोई बात नहीं करता जबकि दोनों का अपना-अपना महत्व है।

अधिकार और कर्तव्य दोनों एक दूसरे से संबंध रखते हैं। जब तक हम अपने कर्तव्य का निर्वहन सही ढंग से नहीं करेंगे। हमें अपने अधिकारों के बारे में भी बात करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। भारत के संविधान में भारत के नागरिकों के लिए 6 मौलिक अधिकार इस प्रकार हैं..

  • समता का अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार
  • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
  • संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार

यह सभी 6 मौलिक अधिकार हर भारतीय नागरिक को प्राप्त हैं लेकिन इसके अलावा भारत के संविधान में भारतीय नागरिक के लिए कुछ कर्तव्य भी निर्धारित किए गए हैं। यह कर्तव्य इस प्रकार हैं..

  • अपने संविधान का नियम अनुसार सत्य और निष्ठा से पालन करना।
  • भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता को बनाए रखने तथा उसकी रक्षा करना।
  • देश की रक्षा करना और आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्र के लिए अपनी सेवा अर्पित करना।
  • देश में धार्मिक आधार पर और भाषाई आधार पर और क्षेत्रीय आधार पर भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और सामान भाईचारे की भावना से रहना।
  • देश की समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देखना देना और उन्हें संरक्षित करना।
  • देश की प्राकृतिक और वन संपदा तथा पर्यावरण की रक्षा करना।
  • देश की सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना। किसी भी तरह की हिंसा न करना जिससे जन-धन की हानि होती हो।

यह सभी देश के नागरिकों के मौलिक कर्तव्य हैं लेकिन इन कर्तव्यों की ओर कोई ध्यान नहीं देता सब अपने अधिकार को पाने की जुगाड़ में लगे रहते हैं और कर्तव्य को कर्तव्यों को निभाने से बचना चाहते हैं हमें दोनों को समान महत्व देखना देना चाहिए तभी भारत के सचिन आगे कहलाएंगे


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फौजी की माँ पर अनुच्छेद लिखें।

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‘आलस करना बुरी आदत है’ इस विषय पर अनुच्छेद लिखें।

क) कवि को किस प्रकार सताया गया है? ख) ‘सताए हुए को सताना’ क्यों बुरा है? ग) कवि ने दान और भीख की बात क्यों की है? घ) कवि को किसका नियन्त्रण स्वीकार नहीं है? ङ) प्रकृति के पटल पर कवि को किस प्रकार अधूरा बनाकर मिटाया गया है? च) कवि ने अपने मिलन के बारे में क्या कहा है? ​

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ये सभी प्रश्न कवि ‘बलबीर सिंह रंग’ द्वारा रचित कविता ‘न छेड़ो मुझे, मैं सताया गया हूँ’ नामक कविता से संबंधित हैं। सभी प्रश्नों का उत्तर इस प्रकार है..

क) कवि को किस प्रकार सताया गया है?

उत्तर : कवि को इस तरह सताया गया है कि उसे हसाँते हुए रुलाया गया है। कवि के मन पर भावनात्मक चोट पहुँचाई गई है, उसकी खुशियों पर कुठाराघात किया है। उसे पीड़ा पहुँचाई गई है।

ख) ‘सताए हुए को सताना’ क्यों बुरा है?

उत्तर : ‘सताए हुए को सताना’ इसलिए बुरा है क्योंकि इससे उसके मन को पीड़ा पहुँचती है। जो पहले से ही दुखी है, उसको और दुखी करने से निकृष्ट कर्म कोई नही है। सताए हुए यानि पीड़ित व्यक्ति को और अधिक पीड़ा पहुँचाना पीड़ित व्यक्ति दुख के अथाह सागर धकेल देता है। इसलिए सताए हुए को सताना बुरा है।

ग) कवि ने दान और भीख की बात क्यों की है?

उत्तर :  कवि ने दान और भीख की बात इसलिए की है क्योंकि कवि ने अपने जीवन में कुछ भी अर्जित नहीं किया। कवि के पास जो कुछ भी था वह उसने सबको दे दिया या लोगों ने उससे छल-कपट से ले लिया। कवि दान का बात इसलिए करता है क्योंकि उसके पास ऐसा कुछ है नही जो वह दान दे सके। वह भीख की बात इसलिए करता है क्योंकि भीख मांगना उसके लिए असम्मानजनक है।

घ) कवि को किसका नियन्त्रण स्वीकार नहीं है?

उत्तर : कवि को इस दुनिया को लोगों का स्वयं पर नियंत्रण स्वीकार नहीं है। वह अपने जीवन में स्वतंत्र रहना चाहता है। उसे किसी के बंधन में नहीं बंधना है।

ङ) प्रकृति के पटल पर कवि को किस प्रकार अधूरा बनाकर मिटाया गया है?

उत्तर : प्रकृति के पटल पर कवि को इस प्रकार अधूरा बनाकर मिटाया गया है कि जीवन में उसे अपने कार्यों को पूरा नहीं करने दिया है। वो जीवन में जो कुछ करना चाहता था, उन कार्यों को करने की राह में उसकी किस्मत, दुनिया के लोग और अन्य कई तरह की बाधाएं उत्पन्न हुईं। इसी कारण वह अधूरा रह गया और उसका अस्तित्व भी समाप्त हो गया।

च) कवि ने अपने मिलन के बारे में क्या कहा है? ​

उत्तर : कवि अपने मिलन के बारे में बताता हुआ कहता है कि उस पर हँसों नहीं। वह यहाँ पर आया नही बल्कि बुलाया गया है। वह अपनी मर्जी से यहाँ पर नहीं आया है, उसे किसी ने बुलाया है, इसलिए उसके मिलन पर मत हँसो।

पूरी कविता इस प्रकार है…

न छेड़ो मुझे, मैं सताया गया हूँ।
हंसाते-हंसाते रुलाया गया हूँ।

सताए हुए को सताना बुरा है,
तृषित को तृषा का बढ़ाना बुरा है,
विफल याचना की अकर्मण्यता पर-
अभय-दान का मुस्कराना बुरा है।

करूँ बात क्या दान या भीख की मैं,
संजोया नहीं हूँ, लुटाया गया हूँ।
न छेड़ो मुझे…

न स्वीकार मुझको नियंत्रण किसी का,
अस्वीकार कब है निमंत्रण किसी का,
मुखर प्यार के मौन वातावरण में-
अखरता अनोखा समर्पण किसी का।

प्रकृति के पटल पर नियति तूलिका से,
अधूरा बना कर, मिटाया गया हूँ।
न छेड़ो मुझे…

क्षितिज पर धरा व्योम से नित्य मिलती,
सदा चांदनी में चकोरी निकलती,
तिमिर यदि न आह्वान करता प्रभा का-
कभी रात भर दीप की लौ न जलती।

करो व्यंग मत व्यर्थ मेरे मिलन पर,
मैं आया नहीं हूँ, बुलाया गया हूँ।
न छेड़ो मुझे…


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“बूँद टपकी एक नभ से; किसी ने झुककर झरोखे से; कि जैसे हँस दिया हो।’ नभ से एक बूँद टपकने से कवि के मन में कौन-सी अनुभूति उदित होती है?

वाणी मनुष्य के लिए परमात्मा का एक अनुपम वरदान है। इस वरदान के कारण ही मनुष्य सचमुच मनुष्य है । यह वरदान एक अभिशाप भी बन सकता है, यदि इसका उपयोग समझ कर नही किया जाय तो । बिना सोच-विचार के मुह से निकले शब्द अनर्थ कर सकते हैं। इसीलिए यह परामर्श दिया गया है कि देखो और सुनों अथिक और बोलो कम । प्रश्नः 1. वाणी का वरदान किसे प्राप्त हुआ ? प्रश्नः 2. वरदान अभिशाप कब बन सकता है ? प्रश्नः 8. शब्द अनर्थ कैसे होते हैं ? प्रश्नः 9. गद्यांश में युग्म शब्द पहचान कर लिखिए । प्रश्नः 10. उपयुक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए ।

आपके विद्यालय की कैंटीन काफी दिनों से बंद है। अपने विद्यालय के प्रिंसिपल को कैंटीन दोबारा खोलने के लिए पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

विद्यालय की कैंटीन दुबारा खोलने के लिए प्रधानाचार्य को पत्र

 

दिनांक – 25/11/2023

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य,
डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल,
न्यू शिमला 171009 ।

विषय – कैंटीन दोबारा खुलवाने के लिए प्रार्थना पत्र ।

आदरणीय सर,

सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय का छठी कक्षा का छात्र हूँ। मैं हम सभी विद्यार्थियों की तरफ से आपको विद्यार्थियों के हित से संबंधित एक सुझाव देना चाहता हूँ। कुछ माह पूर्व हमारे विद्यालय की कैंटीन खानपान की गुणवत्ता के विवाद पर बंद हो गई थी। उसके बाद से हमारे विद्यालय की कैंटीन बंद पड़ी है। हमारे विद्यालय में बच्चों को जलपान के लिए एक कैंटीन होना बहुत जरूरी है। कभी-कभी बच्चे अपना खाने का डिब्बा (लंच बॉक्स) लाना भूल जाते हैं। ऐसी स्थिति में कैंटीन न होने से उन्हें भूखे रहना पड़ता है। अतः आपसे निवेदन है कि आप विद्यालय में कैंटीन दोबारा खोलने की व्यवस्था करें। कैंटीन की सुविधा उपलब्ध होने से हम सभी छात्रों को अनावश्यक भूखा नहीं रहना पड़ेगा। आपके इस सहयोग के लिए हम सभी छात्र आपके सदा आभारी रहेंगे।
धन्यवाद,

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
अजय,
कक्षा – 6-ब,
अनुक्रमांक 04
डीएवी विद्यालय,
न्यू शिमला ।


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औपचारिक पत्र

कक्षा के छात्रों की शिकायत करते हुए प्रधानाचार्य को पत्र

 

दिनांक –  22 जुलाई 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य,
डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल,
न्यू शिमला 171009,

विषय : छात्रों के अनुचित व्यवहार के संबंध में

आदरणीय सर,
अत्यंत विनम्रता पूर्वक मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि मैं डी.ए.वी. विद्यालय का दसवीं कक्षा का छात्र हूँ। मैं कक्षा का मॉनीटर भी हूँ। इस पत्र के द्वारा मैं आपसे कुछ छात्रों के संबंध में शिकायत करना चाहता हूँ । कल अंग्रेज़ी के पीरियड अध्यापिका जी के कहे अनुसार मुझे इस बात का ध्यान रखना था कि सभी छात्र अंग्रेज़ी में बात करें परंतु मेरे दो सहपाठी सोहन और मोहन अंग्रेजी में बात नहीं करते है। वे कुछ गलत शब्दों का इस्तेमाल करते है।

उनसे मैंने कई बार आग्रह किया कि वह अंग्रेज़ी में बात करें , उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी बल्कि मेरे साथ बुरा व्यवहार किया। अध्यापिका जी ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन उनकी परवाह न करते हुए उन्होंने गलत शब्दों का प्रयोग किया और छुट्टी के बाद देख लेने की धमकी दी। मैं अत्यंत विनम्रता के साथ यह कहना चाहता हूँ कि ऐसे छात्रों के कारण हमारे विद्यालय की गरिमा को चोट लगेगी। यदि इनके ऊपर सख्त कार्रवाई न की गई तो इनका हौसला और बढ़ेगा और ये स्कूल के अन्य छात्रों के साथ भी यही व्यवहार अपनाएंगे।

अतः आपसे निवेदन है कि आप इन छात्रों के विरुद्ध ठोस कार्यवाई करें जिससे अन्य छात्रों को भी इससे सीख मिले ।
आपके इस सहयोग के लिए मैं आपका सदा आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
रोहन,
कक्षा– दसवीं,
अनुक्रमान 24
डीएवी विद्यालय,
न्यू शिमला ।


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विद्यालय द्वारा आयोजित स्काउट/गाइड कैंप हेतु विद्यार्थियों को प्रधानाचार्य की ओर से निमंत्रित करते हुए सूचना लिखिए l

सब्जी मंडी का कोई भी सब्जी वाले बाबू हनुमान प्रसाद जी को अपनी दुकान पर बुलाना क्यों नहीं चाहते थे?

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सब्जी मंडी का कोई भी सब्जी वाले बाबू हनुमान प्रसाद को अपनी दुकान पर इसलिए नहीं बुलाना चाहते थे, क्योंकि बाबू हनुमान प्रसाद की बेहद खराब आदत थी। वह सब्जी खरीदते समय सब्जी वाले से हरे धनिये की गड्डी मुफ्त में मांगते थे। शलजम के पत्ते तुड़वाकर तोलने का आग्रह करते थे। आलू भी छांट-छांटकर चुनते। अरबी को धुलावकर, मिट्टी हटवाकर ही लेते थे। इसके अलावा वह सब्जी खरीदते समय मोलभाव बहुत अधिक करते थे। सब्जी वाले उनकी आदतों से बहुत परेशान हो जाते थे। इसी कारण सब्जीवाले हनुमान प्रसाद को अपने पास सब्जी के लिये नही बुलाना चाहते थे।

(संदर्भ पाठ : गोभी का फूल, लेखक – केशवचंद्र वर्मा, कक्षा-10, पाठ-5, हिंदी, दिशा)


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भाषा भिन्नता का आदर करना चाहिए। अपने विचार लिखिए।

परिमल-हीन पराग दाग-सा बना पड़ा है, हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।” आशय स्पष्ट करें