गांधीजी को ‘कोटि-मूर्ति’ और ‘कोटि-बाहु’ इसलिए कहा गया है, क्योंकि गांधीजी स्वाधीनता आंदोलन के समय कोटि भारतवासियों यानी करोड़ों भारतवासियों के पथ प्रदर्शक थे। गांधीजी उस समय जो भी करते, करोड़ों भारतवासी उसका अनुसरण करते थे। वह भारत वासियों के लिए प्रेरणा स्रोत थे, यानी गांधी जी के अकेले गांधी जी नही थे, बल्कि गांधी जी के रूप में करोड़ों भारतवासी स्वयं गांधीजी के समान थे। इसीलिए गांधीजी कोटि मूर्ति के समान है। इसके अतिरिक्त गांधीजी की दो भुजाएं नहीं थीं। उनकी कोटि भुजाएं थीं। करोड़ों भारतीयों की भुजाएं गांधी जी की भुजाओं के समान थी। गांधीजी जिधर दृष्टि डालते करोड़ों आँखें उधर ही मुड़ जाती थीं। गांधीजी जिधर चल पड़ते, करोड़ों भारतवासी उनका अनुसरण करते उसी पथ पर चल पड़ते थे, इसी कारण गांधी जी को कोटि-मूर्ति और कोटि-बाहु कहा गया है।
कोटि शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, यहाँ पर कोटि का अर्थ करोड़ से है। गाँधी करोड़ों व्यक्ति के रूप में थे तो उनकी करोड़ों भुजाएं थीं।
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