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आधुनिक राष्ट्र-राज्य का विशिष्ट लक्षण क्या है? (1) जनसंख्या (2) भू-भाग (3) सरकार (4) प्रभुसत्ता

इस प्रश्न का सही उत्तर है:

(4) प्रभुसत्ता

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व्याख्या

आधुनिक राष्ट्र-राज्य का विशिष्ट लक्षण प्रभुसत्ता है।

प्रभुसत्ता (Sovereignty) आधुनिक राष्ट्र-राज्य का सबसे विशिष्ट और महत्वपूर्ण लक्षण है। यह वह गुण है जो एक राष्ट्र-राज्य को अन्य राजनीतिक संगठनों से अलग करता है और उसे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में एक स्वतंत्र इकाई के रूप में स्थापित करता है।

प्रभुसत्ता के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के द्वारा समझा जा सकता है।

1. सर्वोच्च अधिकार : प्रभुसत्ता का अर्थ है कि राज्य अपने क्षेत्र और जनता पर सर्वोच्च अधिकार रखता है। कोई बाहरी शक्ति राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

2. आंतरिक और बाहरी स्वतंत्रता : प्रभुसत्ता राज्य को आंतरिक मामलों में स्वतंत्र निर्णय लेने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्र रूप से कार्य करने की शक्ति देती है।

3. कानून बनाने का अधिकार : प्रभुसत्तासंपन्न राज्य अपने लिए कानून बना सकता है और उन्हें लागू कर सकता है।

4. अंतरराष्ट्रीय मान्यता : प्रभुसत्ता एक राज्य को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत एक स्वतंत्र इकाई के रूप में मान्यता दिलाती है।

5. अन्य लक्षणों से अलग : जबकि जनसंख्या, भू-भाग और सरकार राष्ट्र-राज्य के महत्वपूर्ण तत्व हैं, ये अन्य प्रकार के राजनीतिक संगठनों में भी पाए जा सकते हैं। प्रभुसत्ता वह है जो एक राष्ट्र-राज्य को विशिष्ट बनाती है।

6. ऐतिहासिक महत्व : प्रभुसत्ता की अवधारणा 1648 के वेस्टफेलिया की संधि से उभरी, जो आधुनिक राष्ट्र-राज्य प्रणाली की नींव मानी जाती है।

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के उदय के साथ, प्रभुसत्ता की प्रकृति बदल रही है। फिर भी, यह आधुनिक राष्ट्र-राज्य का सबसे विशिष्ट लक्षण बनी हुई है, जो इसे अन्य राजनीतिक इकाइयों से अलग करती है।


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सही उत्तर है…

(2) मैकियावली

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व्याख्या

निकोलो मैकियावली (1469-1527) को अक्सर ‘नवजागरण का शिशु’ कहा जाता है। यह उपाधि उनके जीवन काल और उनके विचारों के प्रभाव को दर्शाती है।

मैकियावली इटली के फ्लोरेंस में पैदा हुए थे, जो नवजागरण (Renaissance) का केंद्र था। नवजागरण 14वीं से 17वीं शताब्दी तक चला एक सांस्कृतिक आंदोलन था, जिसने कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान और राजनीति में नए विचारों और दृष्टिकोणों को जन्म दिया।

मैकियावली को ‘नवजागरण का शिशु’ कहने के कई कारण हैं:

1. आधुनिक राजनीतिक विचार : मैकियावली को आधुनिक राजनीतिक विचार का जनक माना जाता है। उन्होंने राजनीति को धर्म और नैतिकता से अलग करके देखा, जो उस समय के लिए क्रांतिकारी था।

2. यथार्थवादी दृष्टिकोण : उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “द प्रिंस” में, उन्होंने राजनीति को जैसा है वैसा देखने का आह्वान किया, न कि जैसा होना चाहिए। यह दृष्टिकोण नवजागरण के वैज्ञानिक और तर्कसंगत सोच के अनुरूप था।

3. मानवतावादी परंपरा : मैकियावली ने मानव स्वभाव और इतिहास का गहन अध्ययन किया, जो नवजागरण के मानवतावादी दृष्टिकोण को दर्शाता है।

4. क्लासिकल ज्ञान का प्रयोग : उन्होंने प्राचीन रोमन और यूनानी विचारकों के कार्यों का उपयोग किया, जो नवजागरण की एक प्रमुख विशेषता थी।

5. इतालवी भाषा का प्रयोग : मैकियावली ने अपने लेखन में लैटिन के बजाय इतालवी भाषा का प्रयोग किया, जो नवजागरण के दौरान स्थानीय भाषाओं के उदय को दर्शाता है।

मैकियावली के विचारों ने न केवल उनके समय को प्रभावित किया, बल्कि आने वाली शताब्दियों में राजनीतिक चिंतन को भी आकार दिया। इस प्रकार, ‘नवजागरण का शिशु’ शीर्षक उनके नवजागरण के युग में जन्म लेने और उस युग के विचारों को आगे बढ़ाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।


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सही उत्तर है…

(4) ग्रीन

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व्याख्या

ग्रीन को मद्य निषेध का समर्थक विचारक का समर्थक विचारक माना जाता है। ग्रीन का पूरा नाम टी. एच. ग्रीन (Thomas Hill Green) था।

टी.एच. ग्रीन (Thomas Hill Green, 1836-1882) ब्रिटिश दार्शनिक और राजनीतिक विचारक थे, जो मद्य निषेध (शराबबंदी) के प्रमुख समर्थकों में से एक थे। ग्रीन के दर्शन में नैतिक और सामाजिक सुधार का विचार केंद्रीय था, और वे मानते थे कि शराब समाज के लिए एक गंभीर समस्या है।

ग्रीन का मानना था कि शराब व्यक्तियों की स्वतंत्रता और आत्म-निर्धारण की क्षमता को कमजोर करती है। उनका तर्क था कि शराब का सेवन लोगों को उनकी तार्किक और नैतिक क्षमताओं से वंचित करता है, जो कि एक स्वतंत्र और नैतिक जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं। इसलिए, उन्होंने माना कि शराब पर प्रतिबंध लगाना व्यक्तियों और समाज दोनों के हित में है।

ग्रीन के लिए, मद्य निषेध का समर्थन उनके व्यापक दार्शनिक दृष्टिकोण का हिस्सा था, जिसमें राज्य की भूमिका नागरिकों के नैतिक विकास को बढ़ावा देना था। उन्होंने तर्क दिया कि राज्य का कर्तव्य है कि वह ऐसी परिस्थितियाँ बनाए जो लोगों को अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने में मदद करें, और उनके विचार में, शराब इस लक्ष्य में एक बाधा थी।

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि ग्रीन का दृष्टिकोण उनके समय के सामाजिक और नैतिक चिंताओं को प्रतिबिंबित करता है। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में, शराब की लत को एक गंभीर सामाजिक समस्या के रूप में देखा जा रहा था, विशेष रूप से श्रमिक वर्ग में।

ग्रीन के विचार आधुनिक उदारवादी दर्शन के विकास में महत्वपूर्ण रहे हैं, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करता है। हालांकि आज शराबबंदी के प्रति दृष्टिकोण बदल गया है, ग्रीन के विचार सामाजिक नीति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संबंधों पर चल रही बहस में अभी भी प्रासंगिक हैं।


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सही उत्तर है…

(2) उदारवादी

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व्याख्या

संपत्ति के संबंध में ग्रीन का विचार उदारवादी है।

टी.एच. ग्रीन (Thomas Hill Green, 1836-1882) एक प्रमुख ब्रिटिश दार्शनिक और राजनीतिक विचारक थे, जिन्हें नव-उदारवाद या आदर्शवादी उदारवाद के संस्थापकों में से एक माना जाता है। संपत्ति के संबंध में ग्रीन के विचार उदारवादी दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करते हैं, लेकिन यह एक संशोधित और सामाजिक रूप से जागरूक उदारवाद है।

ग्रीन ने संपत्ति के अधिकार को मान्यता दी, लेकिन उन्होंने इसे एक निरपेक्ष या असीमित अधिकार नहीं माना। उनका मानना था कि संपत्ति का अधिकार व्यक्ति के नैतिक विकास और स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन यह अधिकार समाज के प्रति जिम्मेदारियों के साथ संतुलित होना चाहिए।

ग्रीन के दृष्टिकोण में, संपत्ति का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं, बल्कि सामाजिक कल्याण में योगदान देना भी है। उन्होंने तर्क दिया कि राज्य को संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन अधिकारों का उपयोग सामाजिक हित में हो।

यह दृष्टिकोण क्लासिकल उदारवाद से अलग है, जो संपत्ति के अधिकारों को अधिक निरपेक्ष रूप से देखता है, और समाजवाद से भी भिन्न है, जो निजी संपत्ति के विचार को ही चुनौती देता है। ग्रीन का उदारवाद एक मध्यम मार्ग प्रस्तुत करता है, जो व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करता है।

इस प्रकार, ग्रीन का संपत्ति संबंधी दृष्टिकोण उदारवादी है, लेकिन यह एक सामाजिक रूप से जागरूक और नैतिक रूप से प्रेरित उदारवाद है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है।


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जेरेमी बेंथम किस देश का रहने वाला था? (1) फ्रांस (2) इंग्लैंड (3) अमेरिका (4) यूनान

सही उत्तर है…

(2) इंग्लैंड

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व्याख्या

जेरेमी बेंथम (1748-1832) इंग्लैंड के प्रसिद्ध दार्शनिक, कानूनवेत्ता और सामाजिक सुधारक थे। वे लंदन में जन्मे और वहीं रहे। बेंथम उपयोगितावाद के संस्थापक माने जाते हैं, जो एक नैतिक और राजनीतिक दर्शन है। इस सिद्धांत के अनुसार, किसी कार्य या नीति का मूल्यांकन उसके परिणामों के आधार पर किया जाना चाहिए, विशेष रूप से यह देखते हुए कि वह कितने लोगों को कितना खुश करती है।

बेंथम ने ‘अधिकतम लोगों का अधिकतम हित’ का सिद्धांत प्रतिपादित किया, जो आधुनिक लोकतांत्रिक और कल्याणकारी राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण आधार बना। उन्होंने कानूनी और सामाजिक सुधारों के लिए भी काम किया, जिसमें जेल सुधार, शिक्षा का विस्तार, और गरीबी उन्मूलन शामिल थे।

बेंथम के विचारों ने न केवल इंग्लैंड बल्कि पूरे यूरोप और अमेरिका में भी गहरा प्रभाव डाला। उनके शिष्य जॉन स्टुअर्ट मिल ने उपयोगितावाद के सिद्धांत को और आगे बढ़ाया। बेंथम की विरासत आज भी नीति निर्माण, कानून, और नैतिक दर्शन में देखी जा सकती है।

यह उल्लेखनीय है कि हालांकि बेंथम इंग्लैंड के थे, उनके विचारों का प्रभाव अंतरराष्ट्रीय था, जो दर्शाता है कि महान विचारकों के योगदान अक्सर राष्ट्रीय सीमाओं से परे होते हैं।


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पतझर में टूटी पत्तियाँ (I) गिन्नी का सोना (II) झेन की देन : रवींद्र केलेकर (कक्षा-10 पाठ-13 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

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NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

पतझर में टूटी पत्तियाँ (I) गिन्नी का सोना (II) झेन की देन : रवींद्र केलेकर (कक्षा-10 पाठ-13 हिंदी स्पर्श 2)

PATJHAR ME TUTI PATTIYAN (I) GINNI KA SONA (II) JHEN KI DEN : Ravindra Kelekar (Class-10 Chapter-13 Hindi Sparsh 2)


पतझर में टूटी पत्तियाँ (I) गिन्नी का सोना (II) झेन की देन : रवींद्र केलेकर

पाठ के बारे में…

प्रस्तुत पाठ ‘पतझर में टूटी पत्तियां’ रविंद्र केलेकर द्वारा रचित एक निबंध है, उसमें उन्होंने दो प्रसंगों का वर्णन किया है। पहला प्रसंग उन लोगों से परिचित कराता है, जो अपने लिए जीवन में सुख सुविधा नहीं जुटाते बल्कि इस जगत को जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं।

दूसरा प्रसंग जापान के लोगों के बारे में बताता है, जो अपने व्यस्ततम दिनचर्या के बीच टी-सेरेमनी जैसे कुछ आयोजनों द्वारा अपने जीवन में कुछ चैन भरे पल जुटा लेते हैं। पाठ में दोनों प्रसंगों के माध्यम से लेखक ने थोड़े शब्दों में ही बहुत बड़ी और गूढ़ बातें कह दी हैं।

लेखक के बारे में…

रविंद्र केलेकर हिंदी मराठी और कोंकणी भाषा के लेखक और पत्रकार रहे हैं। उनका जन्म 7 मार्च 1925 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में हुआ था। वह गोवा मुक्ति आंदोलन के सेनानी भी थे। वह गांधीवादी चिंतक विचारक के रूप में प्रसिद्ध रहे । उन्होंने कोंकणी भाषा में 25, मराठी भाषा में 3 तथा हिंदी और गुजराती भाषा में भी कुछ पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें गोवा कला अकादमी का साहित्य पुरस्कार भी मिल चुका है।

उनकी प्रमुख कृतियों में हिंदी भाषा में ‘पतझर में टूटी पत्तियां’ प्रसिद्ध है, जबकि कोंकणी भाषा में उजबाढ़ाचे सूर, समिधा, सांगली, ओथांबे तथा मराठी भाषा में कोंकणीचे राजकरण, जापान जैसा दिसला आदि के नाम प्रमुख हैं। उनका निधन 2010 में हुआ।



हल प्रश्नोत्तर

मौखिक
प्रश्न 1 :  शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?

उत्तर : शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग-अलग इसलिए होता है, क्योंकि शुद्ध सोना पूरी तरह शुद्ध खरा सोना होता है। लेकिन शुद्ध सोने में अधिक चमक नहीं होती। जबकि गिन्नी के सोने में ताँबा मिलाया जाता है और यह अधिक चमकीला होता है। चमकीला होने के साथ-साथ  गिन्नी का सोना शुद्ध सोने की तुलना में अधिक मजबूत होता है।


प्रश्न 2 : प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?

उत्तर : प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट उन लोगों को कहते हैं, जो अपने जीवन में आदर्श और व्यवहार का घालमेल कर देते हैं। वे अपने आदर्शों में व्यवहारिकता को भी मिला देते हैं। लेकिन जब व्यवहारिकता का बखान अधिक होने लगता है, तो वह अपने आदर्शों को भूलकर व्यवहारिकता पर अधिक जोर देते हैं यानी वे आदर्शों पर टिके नही रहते है। ऐसे लोगों को प्रैक्टिकल आयडियालिस्ट कहते हैं।


प्रश्न 3 : पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?

उत्तर : ‘पतझर में टूटी पत्तियां’ पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श वे आदर्श हैं जिनमें व्यवहारिकता का कोई भी मिश्रण ना हो। शुद्ध आदर्श शुद्ध सोने की तरह है, जिनमें व्यवहारिकता नही मिलाई जा सकती है। शुद्ध सोने में ताँबा मिलाने से भले भी वह अधिक चमकदार और टिकाऊ हो जाता हो लेकिन उसकी शुद्धता जाती रहती है। उसी तरह शुद्ध आदर्शों में व्यवहारिकता का मेल नहीं किया जा सकता, वह हमेशा शुद्ध आदर्श ही रहते हैं।


प्रश्न 4 : लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?

उत्तर : लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ इंजन लगने की बात इसलिए कही है, क्योंकि जापानी लोग हर कार्य को बेहद तेज गति से करते हैं। जापानी लोग हमेशा अमेरिका के साथ होड़ में रहते हैं और वह अमेरिका से हर हालत में आगे निकलना चाहते हैं। जापानी लोग एक महीने का काम एक दिन में ही पूरा करना चाहते हैं और उनका दिमाग हमेशा तेज रफ्तार से कुछ ना कुछ सोचता रहता है, इसीलिए लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ इंजन लगा होने की बात कही है।


प्रश्न 5 : जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?

उत्तर : जापान में चाय पीने की विधि यानी टी सेरेमनी को ‘चा-नो-यू’ कहते हैं। जापान में चाय पिलाने की एक विशेष विधि होती है। यह विधि चा-नो-यू’ के नाम से जानी जाती है, जो जापानी लोगों में मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए एक विशिष्ट पारंपरिक विधि है। चाय पिलाने वाले व्यक्ति को ‘चाजीन’ कहा जाता है।


प्रश्न 6 : जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?

उत्तर : जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की विशेषता यह होती है कि ये स्थान अत्यंत शांतिपूर्ण होता है। यह स्थान शालीन तरीके से सजाई हुई कुटी होती है। इस स्थान पर बेहद गरिमापूर्ण व्यवहार किया जाता है। इस स्थान में शांति बनाए रखने का बेहद ध्यान रखा जाता है।

इस स्थान पर चाय पीने आने वाले लोगों के लिए शांति मानसिक शांति प्राप्त करना महत्वपूर्ण होता है। इसी कारण यहां पर अधिकतम एक बार में तीन लोग ही आकर चाय पी सकते हैं। चाय बनाकर पिलाने वाले व्यक्ति को चाजीन कहते हैं। और वह बेहद कलात्मक तरीके से चाय बनाकर खिलाता है। एक डेढ़ घंटे तक चलने वाली ये टी-सेरेमनी जापान के लोगों में मानसिक शांति प्राप्त करने का एक पारंपरिक उपाय है।


लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1 : शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?

उत्तर : शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से एवं व्यवहारिकता की तुलना ताँबे से इसलिए की गई है, क्योंकि शुद्ध आदर्श हमेशा शुद्ध सोने के समान होते हैं। जिस तरह शुद्ध सोने में किसी तरह की मिलावट नहीं की जा सकती, उसी कारण वो शुद्ध कहलाता है, उसी तरह शुद्ध आदर्शों में भी किसी तरह की मिलावट नहीं की जाती, इसी कारण वह शुद्ध आदर्श कहे जाते हैं।

तांबे की तुलना व्यवहारिकता से इसलिए की गई है, क्योंकि शुद्ध सोने में यदि ताँबे की कुछ मात्रा मिला दी जाए तो सोना अधिक उपयोगी बन जाता है यानी वह अधिक चमकीला एवं अधिक मजबूत हो जाता है। हमारा जीवन भी इसी तरह का होता है। जीवन केवल आदर्शों से नहीं चलता बल्कि उसमें व्यवहारिकता का भी मेल होना चाहिए। यदि आदर्शों में थोड़ा व्यवहारिकता का मेल कर दिया जाए तो उन आदर्शों का अच्छी तरह पालन किया जा सकता है।

आदर्शों का एकदम शुद्ध रूप में पालन करना हर समय संभव नहीं हो पाता। आवश्यकता पड़ने पर उसमें थोड़ा बहुत व्यवहारिकता का मेल कर देने से आदर्श अधिक उपयोगी और सार्थक बन जाते हैं।


प्रश्न 2 : चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?

उत्तर : चाजीन ने शुरू से लेकर आखिर तक सभी क्रियाएं बेहद गरिमापूर्ण ढंग से संपन्न की थीं। जब अतिथियों ने प्रवेश किया तो चाजीन ने सिर झुका कर उनका स्वागत किया और कहा ‘दो झो’ यानी आइए तस्वीर लाइए। चाजीन ने अतिथियों को बैठने की जगह दिखाई। फिर उसने अंगीठी सुलगाई और उस पर चायदानी रखी और चाय बनाने लगा। फिर वह बगल के कमरे से जाकर कुछ बर्तन ले आया। उसने तौलिये से बर्तन साफ करके रखें। उसने यह सारी क्रियाएं शांतिपूर्ण ढंग से की थी।

सारी क्रियायें करने में उसने जरा भी आवाज नहीं की और वातावरण इतना शांत था कि चाय बनाने को रखी केतली के खदबदाने की आवाज भी स्पष्ट सुनाई दे रही थी। उसने सलीके से चाय को केतली से प्यालों में डाला और प्याले अतिथियों के सामने रख दिए। इस तरह उसने शुरू से लेकर आखिर सारी क्रियायें गरिमापूर्म ढंग से की।


प्रश्न 3 : टी-सेरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?

उत्तर : टी-सेरेमनी में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता था। केवल तीन आदमियों को प्रवेश देने का मुख्य उद्देश्य शांति बनाए रखना था। जापान में ‘टी सेरेमनी ‘चा-नो-यू’ मानसिक शांति प्राप्त करने की एक पारंपरिक विधि थी। इसके अंतर्गत लोग विशेष रूप जो टी सेरेमनी के लिए विशेष रूप से बनाया गया होता था। वहां पर जाकर कुछ समय तक तक चाय पीते हैं।

इस स्थान पर शांति और गरिमापूर्ण व्यवहार का विशेष ध्यान रखा जाता । अधिक लोगों के होने से शांति भंग होने की संभावना होती थी, इसलिए केवल 3 लोगों को एक बार में प्रवेश किया जाता था, जो एक या डेढ़ घंटे तक धीरे-धीरे चाय पी कर अपने मन की मानसिक शांति प्राप्त करते थे।


प्रश्न 4 : चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?

उत्तर : चाय पीने के बाद लेखक से दिमाग की रफ्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ती गई। लेखक को ऐसा लगा कि उसका दिमाग सुन्न पड़ गया हो। लेखक को ऐसा महसूस होने लगा कि जैसे वह अनंतकाल में जी रहा हो। लेखक को चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा महसूस होने लगा। और लेखक भूत एवं भविष्य के बारे में नहीं सोच रहा था। उसे केवल वर्तमान ही दिखाई दे रहा था। भूत और भविष्य के काल अब हवा में उड़ गए थे। लेखक को जो नजर आ रहा था वह उसका वर्तमान है , वही सच है। जो सच होता है, वह ही लेखक वह ही सामने नजर आ रहा था।


(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1 : गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।

उत्तर : गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी, इस बात में कोई भी संशय नहीं था। उनके अद्भुत नेतृत्व के कारण ही भारत स्वाधीनता संग्राम के आंदोलन को इतने विशाल स्तर पर सफल बना पाया। उनके सफल नेतृत्व के गुण के कारण ही भारत का स्वाधीनता संग्राम एक विशाल आंदोलन में एकजुट हो गया था। उनकी लोकप्रियता पूरे भारत में एक समान थी और लोग उनकी एक आवाज पर उनके पीछे चल पड़ते थे।

उन्होंने अनेक सफल आंदोलनों का नेतृत्व किया जिसमें असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च, भारत छोड़ो आंदोलन आदि प्रमुख थे। गांधीजी आदर्शवादी नेता थे। उनके जीवन में आदर्शों का बेहद महत्व था। वह आदर्श में व्यवहारिकता का नहीं बल्कि व्यवहारिकता में  आदर्शों को मिला देते थे। यानि वह में सोने में तांबे को मिलाकर नहीं बल्कि तांबे में सोना मिलाकर तांबे के मूल्य को बढ़ा देते थे। इसी कारण वह अपने आदर्शों को इतना अधिक लोकप्रिय बना पाये कि उनके आदर्श आज भी पालन किए जाते है।


प्रश्न 2 : आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : हमारे विचार में सत्य, अहिंसा, ईमानदारी, दया, करुणा, प्रेम एवं भाईचारा यह जीवन के शाश्वत मूल्य हैं, जो प्राचीन काल से व्यवहार में लाए जाते रहे हैं और हर समय प्रासंगिक रहेंगे। मानव जीवन को इन मूल्यों की हमेशा आवश्यकता रही है। सत्य एवं अहिंसा का मूल्य गांधी जी द्वारा प्रतिपादित किया गया था लेकिन यह भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही रहा है। ईमानदारी, दया, सब के प्रति करुणा, आपसी प्रेम एवं आपसी भाईचारा यह सभी मूल जीवन के शाश्वत मूल्य हैं, जिनका निरंतर पालन किए जाने की आवश्यकता है।

इन मूल्यों के पालन से ही समाज की अवधारणा बनी रह सकती है। यदि इन शाश्वत मूल्यों का पूरी तरह से तैयार कर दिया तो समाज भी बिखर जाएगा और यह सभ्य समाज आदिम समाज में बढ़कर रह जाएगा। ऐसा संभव नहीं है क्योंकि प्राचीन काल से यह मूल्य किसी न किसी रूप में पालन किए जाते रहे हैं और आगे पालन किए जाते हैं, भले ही आज किसी भी तरह की नकारात्मकता क्यों ना हो, लेकिन इन मूल्यों ने ही समाज की अवधारणा को कायम रखा है।


प्रश्न 3 : अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब
  1. शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
  2. शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।

उत्तर : ऐसी दो घटनाएं इस प्रकार हैं…

(1) शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।

हमने एक नई मिठाई की दुकान खोली। हमने यह निश्चित किया था कि हम मिठाई में किसी भी तरह की मिलावट नहीं करेंगे।  हम शुद्ध खोये की मिठाई बनाएंगे। चाहे किसी भी त्यौहार का सीजन क्यों ना हो। हम लाभ कमाने के चक्कर में गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करेंगे। हमने इस आदर्श को सख्ती से दृढ़ता से अपनाया। हमारे आसपास के कई प्रतिद्वंदी भी दुकानदार मिठाई में मिलावट करते थे और त्योहारों के समय अधिक मिठाई का उत्पादन कर खूब लाभ कमाते थे, लेकिन हमने मिलावट ना करने का आदर्श अपनाया। धीरे-धीरे हमारी दुकान की साख बढ़ती गई। आज हमारी दुकान अन्य मिलावटी दुकानदारों से अधिक चलती है और हमारी दुकान की एक ब्रांड वैल्यू बन चुकी है। यह हमारे द्वारा मिलावट ना करने के आदर्श के कारण ही संभव हो पाया।

(2) शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।

मैंने यह निश्चित किया था कि रोज सुबह 5 बजे उठ जाना है और रात 11 बजे से पहले सो जाना है। यह आदर्श का मैं हमेशा पालन करता था लेकिन कभी-कभी इस आदत में ढील भी दे देता था क्योंकि कभी-कभी किसी काम के लिए देर रात तक जगना पड़ता था। इससे मैं अपने जल्दी सोने और जल्दी उठने के आदर्श का आसानी से पालन कर पाता हूँ और मुझे यह आदर्श बोझ नहीं लगता। यदि मैं  इसमें व्यावहारिकता का पुट नहीं देता तो एक समय आदर्श बोझ लगने लगता।


प्रश्न 4 : ‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधी जी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : गाँधी जी पक्के आदर्शवादी थे। वह अपने आदर्शों के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं कर सकते थे। लेकिन जीवन में व्यवहारिकता भी जरूरी थी। वह सोने में ताँबा नहीं मिला सकते थे, इसलिए उन्होंने ताँबे में ही सोना मिला दिया, इससे ताँबे की कीमत बढ़ गई।

उन्होंने अपने आदर्शों के साथ किसी भी तरह का समझौता तो नहीं किया और व्यवहारिकता को भी अपनायें उन्होंने व्यावहारिकता में अपने आदर्शों को भी थोड़ा बहुत मिला दिया । इससे व्यवहारिकता का अच्छे से पालन भी कर पाए और उनके आदर्श भी शुद्ध रहे।  इस तरह उन्होंने व्यावहारिकता का मूल्य भी बढ़ा दिया और अपने आदर्शों को अशुद्ध भी नहीं होने दिया।


प्रश्न 5 : ‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?

उत्तर : गिरगिट कहानी का पुलिस इंस्पेक्टर आदर्शवादी नहीं था बल्कि वह पल पल रंग बदलने वाला व्यक्ति था, जो जीवन में जरूरत से ज्यादा व्यवहारिक था। उसके जीवन में आदर्श का कोई महत्व नहीं था। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए बिल्कुल भी जरूरी नहीं और समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। जीवन में आदर्श और व्यवहारिकता दोनों जरूरी है, लेकिन आदर्श अधिक जरूरी है।

हर समय व्यावहारिकता अपनाना स्वार्थी प्रवृत्ति को जन्म देता है। जो लोग जरूरत से अधिक व्यवहारिक होते हैं, वह किसी एक बात पर टिके नहीं रहते और जहां उन्हें लाभ दिखाई दे रहा है, वहाँ खिंचे चले जाते हैं। आदर्शवादी होना बेहद आवश्यक गुण है। आदर्शों से ही समाज की संरचना होती है और सांस्कृतिक मूल्य विकसिती होते हैं।

यह अलग बात है कि थोड़े बहुत आदर्शों के साथ समझौता करके व्यवहारिकता का पुट दिया जा सकता है, लेकिन जीवन में आदर्शों का अधिक महत्व है। आदर्शों और थोड़ी बहुत व्यवहारिकता के मेल ही सबसे उपयुक्त संयोजन है।


प्रश्न 6 : लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर : लेखक के मित्र ने इस पाठ में मानसिक रोग के अनेक कारण बताए हैं। लेखक ने जापानी लोगों के मानसिक रोग के यह कारण बताए हैं कि जापानी लोग बहुत तेज गति से कार्य करना पसंद करते हैं। उनके अंदर हर समय अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करने की भावना बनी रहती है। वे  हर हालत में अमेरिका से आगे निकलना चाहते हैं।

जापानी लोगों की मनोवृति ऐसी है कि वह 1 महीने का काम 1 दिन में ही कर देना चाहते हैं जो कि व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं है। जापानी लोगों ने स्वयं के ऊपर काम का अत्याधिक बोझ ग्रहण कर लिया है जापानी लोग यह नहीं समझते कि वह एक मानव है, मशीन नहीं। क्षमता से अधिक कार्य करने और जिम्मेदारी लेने से उनके शारीरिक और मानसिक स्तर पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है और अनेक तरह के मानसिक रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं।

मनुष्य की तरह ही काम कर सकता है। वह मशीन की तरह काम नहीं कर सकता। इसलिए जापानी लोगों ने जिस तरह की मशीन की तरह काम करने की प्रवृत्ति अपनाई, वही उनके मानसिक रोगों का कारण बनी। लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के जो कारण बताए हम सभी कारणों से पूरी तरह सहमत हैं।


प्रश्न 7 : लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वर्तमान ही  प्रत्यक्ष प्रमाण का रूप होता है। वर्तमान हमें सामने स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। भूतकाल समय बीत गया, वह बदलना हमारे हाथ में नहीं है। जो हो गया वह हो गया उसमें अब हम कुछ नहीं कर सकते।

हम भूतकाल की गलतियों पर पछता कर कुछ हासिल नहीं कर सकते। उसी तरह भविष्य बदलना भी हमारे हाथ में पूरी तरह नहीं है। हम अपने वर्तमान को ही बदल सकते हैं, क्योंकि वह हमारे सामने है । वही सत्य के प्रमाण के रूप में हमारे सामने प्रत्यक्ष है। इसीलिए हमें एवं भविष्य की चिंता करते हुए वर्तमान में ही जीना चाहिए तभी जीवन का सच्चा आनंद मिल सकता है, लेखक ने यही समझाने का प्रयत्न किया है।



(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

 1. I. : समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।

आशय : यह पंक्ति आदर्श के महत्व को स्पष्ट करती है। वास्तव में समाज में जो भी आदर्श व्याप्त हैं, वह  आदर्शवादी लोगों के कारण ही व्याप्त हैं। शाश्वत मूल्य समाज के वह मूल्य हैं जो प्राचीन काल से अभी तक निरंतर चले आ रहे हैं। सत्य, अहिंसा, त्याग, परोपकार, बंधुत्व, ईमानदारी, दया, करुणा यह सभी शाश्वत मूल्य हैं, जो किसी भी आदर्श समाज के मूल्य होते हैं। इन मूल्यों का पालन करने वाले लोग ही आदर्शवादी लोग कहलाते हैं। यदि यह मूल्य अभी तक हैं, तो इसका मुख्य कारण ऐसे आदर्शवादी व्यक्ति महान व्यक्ति हैं जो इन मूल्यों को निरंतर आगे बढ़ाते रहे और कभी भी इन मूल्यों के स्तर को गिरने नहीं दिया। आगे भी ऐसे आदर्शवादी व्यक्ति उत्पन्न होते रहेंगे जो इन मूल्यों को आगे बढ़ाते रहेंगे।


II : जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी त्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।

आशय : इस पंक्ति का आशय यह है कि जब-जब व्यावहारिकता आदर्शों पर हावी होने लगती है, तो आदर्श पीछे छूट जाते हैं और व्यक्ति की स्वार्थी प्रवृत्ति आगे आ जाती है। पूरी तरह व्यवहारिक होने का तात्पर्य है कि व्यक्ति पूरी तरह यदि स्वार्थ केंद्रित हो गया है। व्यवहारिकता होनी जरूरी है लेकिन आवश्यकता से अधिक व्यावहारिक होना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं। आदर्शों का अपना अलग महत्व होता है उसमें थोड़ा बहुत व्यवहारिकता का पुट दिया जा सकता है, लेकिन जो लोग व्यवहारिकता को अधिक महत्व देने लगते हैं, तो वह अपने आदर्शों को भूल जाते हैं और आदर्शों के महत्व को नहीं समझते। लेखक ने यही बताने का प्रयत्न किया है।


2. I : हमारे जीका की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।

आशय :  इन पंक्तियों के माध्यम से जापानी लोगों की अत्याधिक तेज गति से काम करने की प्रवृत्ति को रेखांकित किया गया है। जापानी इतनी तेज गति से काम करना पसंद करते हैं कि वह हर काम को मिनटों में समाप्त कर देना चाहते हैं। वे एक दिन के काम को एक मिनट में और एक महीने के काम को एक दिन में खत्म कर लेना चाहते हैं। उनमें अमेरिकियों से आगे निकलने की होड़ मची हुई है। वे बोलते नहीं, बकते हैं, चलते नहीं दौड़ते हैं। वे मशीन की तरह कार्य करना चाहते हैं, जबकि वह मानव हैं। वे अपने ऊपर अत्याधिक बोझ डालने के कारण वह मानसिक एवं शारीरिक रोगों से सारे लोगों से ग्रस्त होने लगे हैं और तनाव के शिकार हो रहे हैं।


2. II : अभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूंज रहे हों।

आशय :  इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने चाजीन के द्वारा की जाने वाली शालीनतापूर्ण गतिविधियों को बताया है। लेखक जब अपने मित्र के साथ टी सेरेमनी में शामिल होने गया तो चार्जिंग ने बेहद शालीनतापूर्वक उन लोगों का स्वागत किया। चाजीन ने बेहद सलीके से सारे कार्य संपन्न किए। उसके हर क्रियाकलाप से शालीनता और सलीकेपन और शिष्टता झलक रही थी। चाजीन ने बेहद शालीनता से अंगीठी सुलगाई, चाय बनाई, बर्तनों को साफ किया, चाय को प्यालों में डाला और मेहमानों के सामने चाय परोसी।  चाजीन की ये सारी क्रियायें बेहद शांत, गरिमामय और शालीन थीं, इसलिए लेखक ने ये पंक्तियां कहीं।



भाषा अध्ययन

प्रश्न 1 : नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-
व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत

उतर : दिए गए शब्दों को वाक्यों में प्रयोग इस प्रकार होगा…

1. व्यावहारिकता
जीवन में सफलता पाने के लिए सिर्फ ज्ञान ही नहीं, बल्कि व्यावहारिकता का होना भी बहुत जरूरी है।

2. आदर्श
महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के आदर्श आज भी दुनिया भर में लोगों को प्रेरित करते हैं।

3. सूझबूझ
कठिन परिस्थितियों में सूझबूझ से काम लेने वाला व्यक्ति हमेशा सफल होता है।

4. विलक्षण
आइंस्टीन की विलक्षण प्रतिभा ने विज्ञान के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए।

5. शाश्वत
प्रेम और करुणा जैसे मूल्य शाश्वत हैं, जो हर युग और संस्कृति में महत्वपूर्ण रहे हैं।


प्रश्न 2 : लाभ-हानि’ का विग्रह इस प्रकार होगा-लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिह्न लगाया जाता है। नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए-
  1. माता-पिता = ……..
  2. पाप-पुण्य = …….
  3. सुख-दुख = ………
  4. रात-दिन = ……….
  5. अन्न-जल = ……….
  6. घर-बाहर = ………..
  7. देश-विदेश = ………..

उत्तर : दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह इस प्रकार होगा…

  1. माता-पिता : माता और पिता
  2. पाप-पुण्य : पाप और पुण्य
  3. सुख-दुख : सुख और दुख
  4. रात-दिन : रात और दिन
  5. अन्न-जल : अन्न और जल
  6. घर-बाहर : घर और बाहर
  7. देश-विदेश : देश और विदेश

प्रश्न 3 : नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए-
  1. सफल = ………
  2. विलक्षण = ………….
  3. व्यावहारिक = ……………
  4. सजग = ………..
  5. आदर्शवादी = ……….
  6. शुद्ध = ………

उत्तर : दिए गए शब्दों की भाववाचक संंज्ञा इस प्रकार होगी…

  1. सफल = सफलता
  2. विलक्षण = विलक्षणता
  3. व्यावहारिक = व्यावहारिकता
  4. सजग = सजगता
  5. आदर्शवादी = आदर्शवादिता
  6. शुद्ध = शुद्धता

प्रश्न 4 : नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए-
(क) शुद्ध सोना अलग है।
(ख) बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।
ऊपर दिए गए वाक्यों में सोना” का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना” का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ को अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
उत्तर, कर, अंक, नग

उत्तर :
उत्तर : सड़क की उत्तर दिशा में डाकखाना है।
मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मालूम है।
कर – हमें आय कर चुका कर देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए।
अध्यापक को दखते ही मैंने कर बद्ध प्रणाम किया।
अंक – माँ ने सोते बच्चे को अंक में उठा लिया।
एक अंक की कुल 4 संख्याएँ हैं।
नग – हिमालय को नग राज कहा जाता है।
उसके घर में कीमती नग जड़ा है।


प्रश्न 5 : नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए-
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
(ख) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।

उत्तर : संयुक्त वाक्यों में प्रयोग इस प्रकार होगा…
(क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिये से बरतन साफ़ किए।


प्रश्न 6 : नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए-
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।

उत्तर : दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य इस प्रकार होंगे।
(क) चाय पीने की यह एक विधि है, जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) उस बर्तन में पानी भरा था, जो बाहर बेढब-सा मिट्टी का बना था।
(ग) जब चाय तैयार हुई, तब वह प्यालों में भर कर हमारे सामने रखी गई।



योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 : गांधी जी के आदर्शों पर आधारित पुस्तकें पढ़िए; जैसे- महात्मा गांधी द्वारा रचित ‘सत्य के प्रयोग’ और गिरिराज किशोर द्वारा रचित उपन्यास ‘गिरमिटिया’।

उत्तर : यह एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी दोनों पुस्तकों के पढ़ें। वह इन पुस्तकों को पाने के लिए अपने गाँव-शहर की निकटतम लाइब्रेरी में जा सकते हैं अथवा किसी बुक स्टॉल के पुस्तक को खरीदें अथवा ऑनलाइन पुस्तक को मंगाएं। ये पुस्तकें अत्यन्त महत्वपूर्ण और संग्रह करने लायक पुस्तकें है। इसलिए यदि विद्यार्थियों को पुस्तकों को खरीदने की आवश्यकता पड़े तो संकोच न करें।


प्रश्न 2 : पाठ में वर्णित ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर : टी-सेरेमनी का शब्द चित्र

‘टी-सेरेमनी’ का दृश्य एक छह मंजिला इमारत की छत पर स्थित एक सादे झोपड़ीनुमा कक्ष में उभरता है। कमरे की दीवारें दफ़्ती से निर्मित हैं और फर्श पर एक सरल चटाई बिछी हुई है। परिवेश अत्यंत शांत और सुकून भरा है। प्रवेश द्वार के बाहर एक विशाल, अनगढ़ मिट्टी का बर्तन रखा है, जिसमें आगंतुक अपने हाथ-पैर धोते हैं।

अंदर, चाजीन विनम्रतापूर्वक झुककर अभिवादन करता है। वह मेहमानों को बैठने का संकेत देता है और चाय तैयार करने के लिए अँगीठी प्रज्वलित करता है। उसके उपकरण अत्यंत स्वच्छ और सुंदर हैं। वातावरण इतना निस्तब्ध है कि चायदानी में उबलते जल की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है।

चाजीन धैर्यपूर्वक, बिना किसी शीघ्रता के चाय तैयार करता है। वह प्रत्येक कप में केवल दो-तीन घूँट चाय परोसता है, जिसे अतिथि धीरे-धीरे, छोटी-छोटी चुस्कियों में लेते हुए, लगभग डेढ़ घंटे में आस्वादित करते हैं। यह प्रक्रिया चाय पीने को एक ध्यानपूर्ण, आध्यात्मिक अनुभव में परिवर्तित कर देती है।


परियोजना कार्य

प्रश्न 1 : भारत के नक्शे पर वे स्थान अंकित कीजिए जहाँ चाय की पैदावार होती है। इन स्थानों से संबंधित भौगोलिक स्थितियों और अलग-अलग जगह की चाय की क्या विशेषताएँ हैं, इनका पता लगाइए और परियोजना पुस्तिका में लिखिए।

उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है, जिसमें विद्यार्थियों को नक्शे पर वह स्थान अंकित कर सकते हैं। विद्यार्थियों की सहायता के लिए भारत के उन महत्वपूर्ण स्थान दिए जा रहे हैं…

1. असम
भौगोलिक स्थिति: पूर्वोत्तर भारत, ब्रह्मपुत्र नदी घाटी
विशेषताएँ: मजबूत, मालदार स्वाद, तांबई रंग
जलवायु: गर्म, आर्द्र

2. दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल)
भौगोलिक स्थिति: पूर्वी हिमालय की तलहटी
विशेषताएँ: हल्का, फूलों जैसी सुगंध, मस्कैटल फ्लेवर
जलवायु: ठंडी, पहाड़ी

3. नीलगिरि (तमिलनाडु)
भौगोलिक स्थिति: दक्षिणी भारत की नीलगिरि पहाड़ियाँ
विशेषताएँ: हल्का, सुगंधित, फलों का स्वाद
जलवायु: उष्णकटिबंधीय पहाड़ी

4. कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
भौगोलिक स्थिति: उत्तर-पश्चिमी हिमालय
विशेषताएँ: हल्का, फूलों की सुगंध
जलवायु: शीतोष्ण

5. मुन्नार (केरल)
भौगोलिक स्थिति: पश्चिमी घाट
विशेषताएँ: गहरा रंग, मजबूत स्वाद
जलवायु: उष्णकटिबंधीय

6. सिक्किम
भौगोलिक स्थिति: पूर्वी हिमालय
विशेषताएँ: हल्का, फूलों की सुगंध
जलवायु: उप-उष्णकटिबंधीय


पतझर में टूटी पत्तियाँ (I) गिन्नी का सोना (II) झेन की देन : रवींद्र केलेकर (कक्षा-10 पाठ-13 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions)


कक्षा-10 हिंदी स्पर्श 2 पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ

साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

कर चले हम फिदा : कैफ़ी आज़मी (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श भाग-2) (हल प्रश्नोत्तर)

आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

बड़े भाई साहब : प्रेमचंद (कक्षा-10 पाठ-8 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

डायरी का एक पन्ना : सीताराम सेकसरिया (कक्षा-10 पाठ-9 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तताँरा-वामीरो की कथा : लीलाधर मंडलोई (कक्षा-10 पाठ-10 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र : प्रहलाद अग्रवाल (कक्षा-10 पाठ-11 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले : निदा फ़ाज़ली (कक्षा-10 पाठ-12 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम हित’ की धारणा किसने प्रतिपादित किया? (1) आदर्शवादियों ने (2) साम्यवादियों ने (3) उपयोगितावादियों ने (4) व्यक्तिवादियों ने

सही उत्तर है…

(3) उपयोगितावादियों ने

══════════════════════

व्याख्या:

‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम हित’ की धारणा उपयोगितावाद के मूल सिद्धांतों में से एक है। यह विचार मुख्य रूप से जेरेमी बेंथम और जॉन स्टुअर्ट मिल जैसे उपयोगितावादी दार्शनिकों द्वारा प्रतिपादित किया गया था। उपयोगितावाद एक नैतिक सिद्धांत है जो मानता है कि कोई कार्य या नीति तभी सही है जब वह अधिकतम लोगों के लिए अधिकतम खुशी या कल्याण लाती है।

इस सिद्धांत के अनुसार, किसी भी नैतिक निर्णय या सामाजिक नीति का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाना चाहिए कि वह कितने लोगों को लाभ पहुँचाती है और किस हद तक। यह दृष्टिकोण व्यक्तिगत हितों की तुलना में सामूहिक हित को प्राथमिकता देता है, लेकिन साथ ही यह भी मानता है कि समाज का कल्याण अंततः उसके सदस्यों के कल्याण पर निर्भर करता है।

यह धारणा आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों और कल्याणकारी राज्य के विचार में भी प्रतिबिंबित होती है, जहाँ सरकारें अधिकतम लोगों के लिए अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने का प्रयास करती हैं। हालाँकि, इस सिद्धांत की आलोचना भी की गई है, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि यह कभी-कभी अल्पसंख्यक समूहों के अधिकारों की अनदेखी कर सकता है।


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क्या आप जानते हैं? एक गाँव ऐसा भी है, जहाँ के लोग 1 हफ्ते से लेकर 1 महीने तक सोते रहते हैं।

0
क्या आप जानते हैं? किस जगह के लोग सबसे ज्यादा सोते हैं।

आमतौर पर हमारी सोने की अवधि 6 से 8 घंटे की होती है। इससे अधिक न तो मनुष्य सो पाता है, और न ही सोना चाहिए। सामान्यतः एक मनुष्य 8 घंटे नींद रात में लेकर सुबह तरोताजा हो जाता है। उसे अगली नींद दिनभर के कामकाज की थकान के बाद अगली रात को ही आती है। यानि हम सभी सामान्यतः 24 घंटों में 6-8 या 10 घंटे सोते हैं।

लेकिन क्या जानते हैं कि इस दुनिया में एक गाँव ऐसा भी है, जहाँ के लोग पूरे दिन के 24 घंटे ही नही बल्कि सप्ताह के सात दिन और कभी-कभी तो पूरे महीने सोते रहते हैं।

है न हैरान करने वाली! चलिए हम आपको उस गाँव का नाम बताते हैं, तो उस गाँव का नाम है…

कालाची (KALACHI)

कालाची (KALACHI) गाँव कजाख़स्तान (Kazakhstan) में है।

कजाखस्तान का कालाची नामक गाँव एक ऐसा गाँव है, जहाँ के लोग बहुत अधिक सोने के लिए जाने जाते हैं। कालाची गाँव के लोग हर समय सोते रहते हैं। उनकी सोने की अवधि इतनी लंबी होती है कि कभी-कभी वह 1 सप्ताह से लेकर 1 महीने तक सोते रहते हैं।

दरअसल कालाची गाँव जोकि कजाख़स्तान के उत्तरी क्षेत्र में पड़ता है, उस गाँव के लोग ‘स्लीप सिंड्रोम’ नामक एक बीमारी से पीड़ित होते हैं। जिस कारण इन लोगों पर के दिमाग पर मतिभ्रम या नशा या उनींदी जैसा अवस्था छाई रहती है। इस कारण गाँव के लोग हफ्तों से लेकर महीनों तक सोते रहते हैं।

इस गाँव के अधिकतर लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी के होने का मुख्य कारण यहाँ के भूजल का प्रदूषित होना बताया जाता है। ये भूजल उन रसायनों से दूषित हो गया जो सोवियत संघ द्वारा प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अलग-अलग युद्ध अभियानों में प्रयोग में लाया जाए। यहाँ की हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा अधिक है और ऑक्सीजन की मात्रा कम है। गाँव के लोगों के दिमाग पर इसका असर होता है और उनका दिमाग नशे की अवस्था में रहता है और उन्हें हर समय नींद सी आती रहती है। यही कारण है इस गाँव के लोग ज्यादातर समय सोने के लिए जाने जाते हैं।

तो क्या आप ये बात जानते थे, या अभी आपको पता चला। वैसे है न ये हैरान करने वाली बात।


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पहेली बताइए – ‘हाथ से निकला रस, तो शहर गया बस।’

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सही उत्तर है…

(1) जेरमी बेन्थम

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

व्याख्या

‘उपयोगितावाद’ (Utilitarianism) का प्रतिपादक जेरेमी बेन्थम (Jeremy Bentham) है। उन्होंने इस सिद्धांत को विकसित किया और उसे स्पष्टीकृत किया कि किस प्रकार से किसी कार्रवाई की प्राथमिकता उसकी उपयोगिता या सुखदायकता के आधार पर होनी चाहिए।

जेरमी बेन्थम (1748-1832) उपयोगितावाद के प्रमुख प्रतिपादक और आधुनिक उपयोगितावादी दर्शन के संस्थापक माने जाते हैं। उन्होंने 18वीं शताब्दी के अंत और 19वीं शताब्दी की शुरुआत में इस सिद्धांत को विकसित किया।

बेन्थम का मूल विचार था कि किसी कार्य या नीति की नैतिकता का निर्धारण उसके परिणामों से होना चाहिए, विशेष रूप से वह कितने लोगों को कितना सुख या दुख पहुंचाती है। उन्होंने “अधिकतम लोगों के लिए अधिकतम खुशी” के सिद्धांत को प्रतिपादित किया, जो उपयोगितावाद का मूल मंत्र बन गया। बेन्थम ने अपने विचारों को विभिन्न क्षेत्रों जैसे कानून सुधार, अर्थशास्त्र और नैतिक दर्शन में लागू किया, जिससे उपयोगितावाद एक व्यापक दार्शनिक और नैतिक सिद्धांत बन गया।


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सही उत्तर है…

(4) रूसो

○○○○○○○○○○○○○○○○○○

व्याख्या

‘सामाजिक समझौता’ (Du Contrat Social या The Social Contract) जीन-जैक्स रूसो (Jean-Jacques Rousseau) द्वारा लिखी गई एक प्रसिद्ध पुस्तक है। यह पुस्तक 1762 में प्रकाशित हुई थी और राजनीतिक दर्शन में एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है।

इस पुस्तक में रूसो ने अपने सामाजिक समझौते के सिद्धांत को विस्तार से प्रस्तुत किया, जिसमें ‘सामान्य इच्छा’ (General Will) की अवधारणा केंद्रीय है।

रूसो का मानना था कि एक न्यायसंगत समाज के लिए, व्यक्तियों को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कुछ हिस्सा समुदाय की भलाई के लिए त्यागना चाहिए। यह पुस्तक फ्रांसीसी क्रांति और बाद के लोकतांत्रिक आंदोलनों पर बहुत प्रभावशाली रही।

हॉब्स और लॉक ने भी सामाजिक समझौते के सिद्धांत पर लिखा, लेकिन उनकी कोई पुस्तक विशेष रूप से ‘सामाजिक समझौता’ शीर्षक से नहीं है।

जे.एस. मिल उदारवादी दर्शन के एक महत्वपूर्ण चिंतक थे, लेकिन वे सामाजिक समझौते के सिद्धांत के प्रमुख प्रतिपादकों में नहीं गिने जाते।


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सही उत्तर है…

जॉर्ज विल्हेल्म फ्रेडरिक हीगल

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

व्याख्या

उपरोक्त चारों विकल्पों में ‘जॉर्ज विल्हेल्म फ्रेडरिक हीगल’ (Georg Wilhelm Friedrich Hegel) सामाजिक समझौते के सिद्धांत का प्रतिपादक नही है। बाकी तीनों विचारक थॉमस हॉब्स, जॉन लॉक और जीन-जैक्स रूसो ने सामाजिक समझौते के सिद्धांत पर महत्वपूर्ण काम किया और इसे विकसित किया। ये तीनों सामाजिक समझौते के सिद्धांत के प्रतिपादक रहे हैं।

जॉर्ज विल्हेल्म फ्रेडरिक हीगल, हालांकि एक महत्वपूर्ण दार्शनिक थे, लेकिन वे सामाजिक समझौते के सिद्धांत के प्रमुख प्रतिपादकों में नहीं गिने जाते। हीगल का समाजिक समझौते के सिद्धांत से सीधा संबंध नहीं है। उनका मुख्य ध्येय था विकासवाद और आध्यात्मिक इतिहास का अध्ययन। हीगल ने राज्य और समाज के विकास पर अलग दृष्टिकोण रखा, जो द्वंद्वात्मक प्रक्रिया पर केंद्रित था, न कि सामाजिक समझौते पर।

थॉमस हॉब्स ने माना कि प्राकृतिक अवस्था में जीवन नासूर, गरीब, दुष्ट, पशुवत और छोटा था। लोग एक शक्तिशाली शासक (लेवियाथन) के पक्ष में अपने अधिकारों को त्यागने के लिए सहमत हुए। हॉब्स का मुख्य सिद्धांत था कि लोगों ने समाज को स्थापित करने के लिए समाजिक समझौते किया है, जिसमें वे अपने अधिकारों का कुछ हिस्सा सरकार को सौंपते हैं।

जॉन लॉक ने भी सामाजिक समझौते के सिद्धांत को प्रतिपादित किया, जिसमें उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संपत्ति के संरक्षण के साथ-साथ सरकार के अधिकारों की सीमाओं को भी मान्यता दी। लॉक ने एक अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण रखा, जहां लोग अपने प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार बनाने पर सहमत हुए।

जाँ जाक रूसो ने सामाजिक समझौते के सिद्धांत को सामाजिक संविदान के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें समाज के सभी सदस्यों के साथ समान और स्थायी समझौते की आवश्यकता को माना गया। रूसो ने सामान्य इच्छा की अवधारणा पेश की, जहां समाज का प्रत्येक सदस्य अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को समुदाय की भलाई के लिए समर्पित करता है।


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सही उत्तर है…

(3) जॉन लॉक

○○○○○○○○○○○○○○○○○

व्याख्या

प्रसिद्ध विचारक ‘जॉन लॉक’ को ‘उदारवाद का जनक’ माना जाता है।

उदारवाद (Liberalism) का जनक जॉन लॉक (John Locke) को माना जाता है। जॉन लॉक के राजनीतिक और दार्शनिक विचारों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, प्राकृतिक अधिकारों और सामाजिक अनुबंध के सिद्धांतों को स्थापित किया, जो आधुनिक उदारवाद की नींव बने। उन्होंने अपनी कृतियों ‘टू ट्रीटाइसेज़ ऑफ गवर्नमेंट’ में इन विचारों को विस्तार से प्रस्तुत किया और यह बताया कि सरकार का मुख्य उद्देश्य जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की रक्षा करना है। लॉक के विचारों ने आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों और पश्चिमी राजनीतिक विचारधारा पर गहरा प्रभाव डाला।

जॉन लॉक 17वीं शताब्दी के अंग्रेज दार्शनिक थे, जिन्हें आधुनिक उदारवाद का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सीमित सरकार, और प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांतों पर जोर दिया, जो उदारवादी विचारधारा के मूल में हैं।

जॉन लॉक का जन्म 1632 में इंग्लैंड में हुआ था और उनकी मृत्यु 1704 में हुई। वे प्रबोधन काल के प्रमुख दार्शनिक थे।

जॉन लॉक ने माना कि सभी मनुष्यों के पास जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के प्राकृतिक अधिकार हैं। उन्होंने सिद्धांत दिया कि सरकार लोगों की सहमति पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने सरकार की शक्तियों को विभाजित करने का समर्थन किया।

लॉक के विचारों ने अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा को प्रभावित किया। उनके सिद्धांतों ने फ्रांसीसी क्रांति के दौरान स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के विचारों को प्रेरित किया। लॉक के विचार आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों की नींव बने और उदारवादी राजनीतिक दर्शन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जॉन लॉक की प्रमुख कृतियां हैं…

•  टू ट्रीटाइसेज़ ऑफ गवर्नमेंट (Two Treatises of Government)
•  एन एस्से कन्सर्निंग ह्यमन अंडरस्टैडिंग (An Essay Concerning Human Understanding


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आधुनिक युग का जनक किस विचारक को कहा जाता है। (1) जॉन लॉक (2) मार्क्स (3) मैकियावेली (4) रूसो

सही उत्तर है…

(3) मैकियावेली

○○○○○○○○○○○○○○○○○○

व्याख्या

आधुनिक युग का जनक निकोलो मैकियावली (Niccolò Machiavelli) को कहा जाता है। मैकियावली ने राजनीति के क्षेत्र में यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और अपने समय की पारंपरिक नैतिक और धार्मिक धारणाओं से हटकर शासन और सत्ता की व्यावहारिकता पर बल दिया। उनकी प्रसिद्ध कृति ‘द प्रिंस’ (The Prince) ने राजनीति को एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्थापित किया, जो शक्ति और राज्य की स्थिरता पर केंद्रित था। उनके विचारों ने आधुनिक राजनीतिक सिद्धांतों की नींव रखी और उन्हें आधुनिक राजनीतिक दर्शन का संस्थापक माना जाता है।

निकोलो मैकियावेली, 16वीं शताब्दी के इतालवी राजनीतिक दार्शनिक और लेखक, को इस उपाधि से सम्मानित किया जाता है। उनके विचारों ने राजनीतिक चिंतन में एक नए युग की शुरुआत की, जो मध्ययुगीन विचारधारा से एक स्पष्ट विच्छेद था।

मैकियावेली की प्रसिद्ध कृति ‘द प्रिंस’ ने राजनीति को धर्म और नैतिकता से अलग करके देखने का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने राजनीति को एक स्वतंत्र विषय के रूप में प्रस्तुत किया, जो अपने स्वयं के नियमों और तर्कों पर आधारित है। मैकियावेली ने राजनीतिक यथार्थवाद की नींव रखी, जहां उन्होंने राज्य के हित और स्थिरता को सर्वोपरि माना।

उनके विचारों ने पारंपरिक धार्मिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित राजनीतिक चिंतन को चुनौती दी। मैकियावेली ने तर्क दिया कि एक शासक को अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कभी-कभी अनैतिक साधनों का भी उपयोग करना पड़ सकता है। यह विचार उस समय के लिए क्रांतिकारी था और इसने बाद के राजनीतिक चिंतन को गहराई से प्रभावित किया।

मैकियावेली के कार्य ने राज्य, सत्ता, और राजनीति के आधुनिक सिद्धांतों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। उनके विचारों ने धर्मनिरपेक्ष राजनीति और राष्ट्र-राज्य की अवधारणाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो आधुनिक युग की प्रमुख विशेषताएं हैं। इस प्रकार, मैकियावेली को आधुनिक राजनीतिक चिंतन का अग्रदूत और आधुनिक युग का जनक माना जाता है।


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सनकी व्यक्तियों को भी विचार की स्वतंत्रता देने के पक्ष में कौन था? (1) बेथम (2) जेम्स मिल (3) जे. एस. मिल (4) हीगल

सही उत्तर है…

(3) जे. एस. मिल

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

व्याख्या

सनकी व्यक्तियों को भी विचार की स्वतंत्रता देने के पक्ष में जे. एस. मिल (John Stuart Mill) थे। जे. एस. मिल ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘ऑन लिबर्टी’ (On Liberty) में स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर गहन विचार व्यक्त किए। उन्होंने यह तर्क दिया कि समाज को व्यक्तियों को उनके विचारों और अभिव्यक्तियों की स्वतंत्रता देनी चाहिए, चाहे वे विचार कितने ही अपरंपरागत या सनकी क्यों न हों।

जे. एस. मिल का मानना था कि किसी भी विचार को दबाने से सत्य और ज्ञान की खोज बाधित होती है। उन्होंने कहा कि विचारों के मुक्त आदान-प्रदान से समाज का बौद्धिक और नैतिक विकास होता है। इस प्रकार, मिल ने स्वतंत्र विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थन में जोर दिया, जो आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।

जॉन स्टुअर्ट मिल, 19वीं शताब्दी के प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक और अर्थशास्त्री, ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘ऑन लिबर्टी’ में इस विचार को विस्तार से प्रस्तुत किया।

मिल का मानना था कि विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, चाहे वे विचार कितने ही असामान्य या विवादास्पद क्यों न हों। उन्होंने तर्क दिया कि यहां तक कि सनकी या अतिवादी विचारों को भी दबाया नहीं जाना चाहिए, क्योंकि इससे समाज में विचारों के स्वतंत्र आदान-प्रदान और बौद्धिक विकास पर रोक लग सकती है। मिल का मानना था कि विचारों की खुली बहस से ही सत्य का पता चल सकता है और समाज प्रगति कर सकता है।

उन्होंने यह भी कहा कि किसी विचार को गलत मानकर दबाने से यह संभावना बनी रहती है कि वह विचार सही हो सकता है, या उसमें सत्य का कुछ अंश हो सकता है। इसलिए, मिल ने सभी प्रकार के विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का समर्थन किया, जब तक वे दूसरों को प्रत्यक्ष नुकसान न पहुंचाएं। यह विचार आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार के रूप में महत्वपूर्ण माना जाता है।


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राजनीति का नैतिकता से पृथक्करण करने वाला विचारक है? (1) प्लेटो (2) अरस्तू (3) मैकियावली (4) लॉक

सही उत्तर है…

(3) मैकियावली

○○○○○○○○○○○○○○○○○○

व्याख्या

राजनीति का नैतिकता से पृथक्करण करने वाला विचारक निकोलो मैकियावली (Niccolò Machiavelli) है। मैकियावली की कृति ‘द प्रिंस’ (The Prince) में उन्होंने यह तर्क दिया कि शासकों को अपने राज्य की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए नैतिकता की परवाह किए बिना कोई भी उपाय अपनाना चाहिए। उनके विचार में, राजनीति की सफलता नैतिक सिद्धांतों के बजाय व्यावहारिकता और परिणामों पर आधारित होनी चाहिए।

निकोलो मैकियावली (Niccolò Machiavelli), 16वीं शताब्दी के इतालवी राजनीतिक दार्शनिक और लेखक थे।

मैकियावली ने राजनीति को एक स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में देखा, जो पारंपरिक नैतिक मूल्यों से अलग है। उनका मानना था कि एक शासक को राज्य के हित और स्थिरता के लिए कभी-कभी नैतिक मूल्यों की अवहेलना करनी पड़ सकती है। मैकियावली ने तर्क दिया कि राजनीतिक सफलता के लिए कुछ परिस्थितियों में धोखा, बल प्रयोग, या अन्य अनैतिक माने जाने वाले कार्य भी उचित हो सकते हैं।

यह दृष्टिकोण पारंपरिक दार्शनिक विचारों से एक महत्वपूर्ण विचलन था, जो राजनीति और नैतिकता को अभिन्न मानते थे। मैकियावली का यह विचार ‘राजनीतिक यथार्थवाद’ का आधार बना और आधुनिक राजनीतिक चिंतन को गहराई से प्रभावित किया। हालांकि उनके विचारों की अक्सर आलोचना की गई, लेकिन इन्होंने राजनीतिक सिद्धांत और व्यवहार में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जो आज भी विवादास्पद और प्रासंगिक बना हुआ है।


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राजनीतिक शक्ति बन्दूक की नली से उत्पन होती है किसका कथन है (1) माओत्लो तुंग (2) वी आई. लेनिन (3) कार्ल मार्क्स (4) इनमें से कोई नहीं

‘संप्रभुता’ शब्द का सबसे पहले स्पष्ट प्रयोग किया…? (1) प्लेटो (2) जीन बोंदा (3) हॉब्स (4) हीगल

सही उत्तर है…

(2) जीन बोंदा

○○○○○○○○○○○○○○○○○○

व्याख्या

‘संप्रभुता’ शब्द का सबसे पहले स्पष्ट प्रयोग ‘जीन बोंदा’ ने किया था। जीन बोंदा (Jean Bodin), 16वीं शताब्दी के फ्रांसीसी राजनीतिक दार्शनिक और कानूनविद थे, जिन्होंने राजनीतिक सिद्धांत में ‘संप्रभुता’ की अवधारणा को व्यापक रूप से विकसित किया।

बोंदा ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Six Books of the Commonwealth’ (1576) में संप्रभुता की अवधारणा को विस्तार से प्रस्तुत किया। उन्होंने संप्रभुता को राज्य की सर्वोच्च, स्थायी और निरपेक्ष शक्ति के रूप में परिभाषित किया, जो किसी भी कानूनी सीमा से परे होती है। बोंदा का यह विचार तत्कालीन युग में राजतंत्र की शक्ति को सैद्धांतिक आधार प्रदान करने में महत्वपूर्ण था।

हालांकि संप्रभुता की अवधारणा के तत्व प्राचीन यूनानी और रोमन विचारकों के लेखन में भी पाए जाते हैं, बोंदा ने इसे एक व्यवस्थित और स्पष्ट रूप दिया। उनके बाद के विचारकों जैसे थॉमस हॉब्स ने इस अवधारणा को आगे विकसित किया। बोंदा का योगदान इस अवधारणा को आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत का एक केंद्रीय विषय बनाने में महत्वपूर्ण था, जो आज भी राज्य की शक्ति और उसकी सीमाओं पर चल रही बहस में प्रासंगिक है।


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रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा है? (1) बहुमत की इच्छा (2) सबकी इच्छा (3) व्यक्तिगत इच्छाओं का योग (4) मानव की आदर्श इच्छाओं का योग

हॉब्स के कॉमनवेल्थ की अवधारणा में कौन शामिल नहीं है? (1) समाज (2) राज्य (3) सरकार (4) संसद

सही उत्तर है…

(4) संसद

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

व्याख्या :

हॉब्स के कॉमनवेल्थ की अवधारणा में संसद शामिल नहीं है। थॉमस हॉब्स, 17वीं शताब्दी के अंग्रेज दार्शनिक, ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘लेविएथन’ में कॉमनवेल्थ या राज्य की एक विशिष्ट संकल्पना प्रस्तुत की।

हॉब्स के अनुसार, कॉमनवेल्थ एक ऐसी संस्था है जो मनुष्यों को प्राकृतिक अवस्था की अराजकता से बचाती है और उन्हें सुरक्षा प्रदान करती है। इस संकल्पना में समाज, राज्य, और सरकार अंतर्निहित हैं। समाज वह आधार है जिस पर कॉमनवेल्थ का निर्माण होता है। राज्य कॉमनवेल्थ का मूर्त रूप है, जबकि सरकार इसकी कार्यकारी शाखा है।

हालांकि, हॉब्स ने अपने कॉमनवेल्थ में संसद को एक अलग संस्था के रूप में नहीं देखा। उनका मानना था कि सत्ता एक व्यक्ति (संप्रभु) में निहित होनी चाहिए, जो निरंकुश हो। हॉब्स ने शक्तियों के विभाजन या संसदीय नियंत्रण की अवधारणा का समर्थन नहीं किया। उनके लिए, कॉमनवेल्थ एक एकीकृत और अविभाज्य इकाई थी, जिसमें सत्ता का विकेंद्रीकरण या विभाजन नहीं था। इसलिए, हॉब्स के कॉमनवेल्थ में संसद एक अलग संस्था के रूप में शामिल नहीं है।


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सही उत्तर है…

(3) जीन बोंदा

○○○○○○○○

व्याख्या

उपरोक्त कथन ‘संप्रभुता नागरिकों और प्रजाजनों के ऊपर एक ऐसी सर्वोच्च शक्ति है, जो कानून द्वारा मर्यादित नहीं की जा सकती’ प्रसिद्ध राजनीतिक दार्शनिक जीन बोंदा (Jean Bodin) का है।

जीन बोंदा (Jean Bodin) एक फ्रांसीसी राजनीतिक दार्शनिक और कानूनविद थे, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में संप्रभुता की अवधारणा पर महत्वपूर्ण कार्य किया। उनका यह विचार संप्रभुता की निरंकुश प्रकृति को दर्शाता है, जो राज्य की सर्वोच्च शक्ति का प्रतीक है।

बोंदा का यह कथन संप्रभुता की अविभाज्यता और असीमितता पर जोर देता है। उनका मानना था कि संप्रभु शक्ति किसी भी कानूनी सीमा से परे होती है, क्योंकि वह स्वयं कानून का स्रोत है। यह विचार तत्कालीन युग में राजतंत्र की शक्ति को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण था। हालांकि, आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में इस अवधारणा को चुनौती दी गई है, जहां संविधान और कानून की सर्वोच्चता पर जोर दिया जाता है। फिर भी, बोंदा का यह सिद्धांत राज्य की शक्ति और उसकी सीमाओं पर चल रही बहस में एक महत्वपूर्ण बिंदु बना हुआ है।


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अपने अंतिम चरण में मार्क्सवाद किस सिद्धान्त से मिल जाता है? (1) व्यक्तिवाद (2) समाजवाद (3) अराजकतावाद (4) साम्यवाद

सही उत्तर है…

(4) साम्यवाद

○○○○○○○○○○○

विस्तृत वर्णन

अपने अंतिम चरण में मार्क्सवाद साम्यवाद में मिल जाता है।  मार्क्सवाद के अनुसार, इसका अंतिम चरण साम्यवाद में परिणत होता है।

कार्ल मार्क्स ने समाज के विकास को एक ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में देखा, जिसमें विभिन्न चरण होते हैं। उनका मानना था कि पूंजीवाद, जो एक शोषणकारी व्यवस्था है, का अंत समाजवाद की स्थापना में होगा। समाजवाद के इस चरण में उत्पादन के साधनों पर सामूहिक स्वामित्व होगा और राज्य मजदूर वर्ग के हाथों में होगा। लेकिन यह अंतिम चरण नहीं है।

मार्क्सवाद का चरम लक्ष्य साम्यवाद है, जो इसका अंतिम चरण माना जाता है। इस चरण में वर्ग विभाजन पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा और राज्य की आवश्यकता नहीं रहेगी। साम्यवाद में “प्रत्येक व्यक्ति से उसकी क्षमता के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकता के अनुसार” का सिद्धांत लागू होगा। यह अवस्था व्यक्तिवाद, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर देता है, से भिन्न है। यह समाजवाद से भी आगे की अवस्था है, जो साम्यवाद की ओर ले जाने वाला एक मध्यवर्ती चरण है। साथ ही, यह अराजकतावाद से भी अलग है, क्योंकि अराजकतावाद सभी प्रकार के शासन को खारिज करता है, जबकि साम्यवाद एक विशिष्ट सामाजिक व्यवस्था की कल्पना करता है। इस प्रकार, मार्क्सवाद के अनुसार, समाज का विकास अंततः साम्यवाद में परिणत होता है, जो एक वर्गविहीन और राज्यविहीन समाज की आदर्श अवस्था है।


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रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा है? (1) बहुमत की इच्छा (2) सबकी इच्छा (3) व्यक्तिगत इच्छाओं का योग (4) मानव की आदर्श इच्छाओं का योग

राजनीतिक दायित्व के सिद्धान्त पर व्याखान का लेखक कौन है। (1) ग्रीन (2) हीगाल (3) प्लेटो (4) अरस्तू

रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा है? (1) बहुमत की इच्छा (2) सबकी इच्छा (3) व्यक्तिगत इच्छाओं का योग (4) मानव की आदर्श इच्छाओं का योग

सही उत्तर है…

(4) मानव की आदर्श इच्छाओं का योग

स्पष्टीकरण

रूसो की सामान्य इच्छा (General Will) की अवधारणा राजनीतिक दर्शन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उनके अनुसार, सामान्य इच्छा मानव की आदर्श इच्छाओं का योग है, जो समुदाय के सामूहिक हित को दर्शाती है। यह अवधारणा व्यक्तिगत या विशेष हितों से ऊपर होती है और समाज के लिए क्या सबसे अच्छा है, इस पर केंद्रित रहती है। रूसो का मानना था कि सामान्य इच्छा बहुमत की इच्छा या सबकी इच्छा से भिन्न है। यह न तो लोकप्रियता या जनमत का प्रतिनिधित्व करती है, न ही यह सभी व्यक्तियों की इच्छाओं का सरल योग है।

सामान्य इच्छा की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह नैतिक और तर्कसंगत विचारों पर आधारित है। यह समाज के सदस्यों की सर्वोत्तम और सबसे तर्कसंगत इच्छाओं को प्रतिबिंबित करती है, जो व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर समाज के समग्र हित को देखती है। रूसो का मानना था कि सामान्य इच्छा समाज के लिए क्या सही और न्यायसंगत है, इस पर फोकस करती है। यह एक ऐसी अवधारणा है जो समुदाय के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता देती है, लेकिन साथ ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामूहिक कल्याण के बीच एक संतुलन बनाने का प्रयास करती है।

इस प्रकार, रूसो की सामान्य इच्छा की अवधारणा एक जटिल और गहन विचार है जो व्यक्तिगत स्वार्थों, बहुमत के निर्णयों या सभी इच्छाओं के सरल योग से परे जाती है। यह एक आदर्श स्थिति को दर्शाती है जहां समाज के सदस्य अपने व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर, समुदाय के समग्र कल्याण के लिए सोचते और कार्य करते हैं। यह अवधारणा आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों और सामाजिक अनुबंध के विचारों पर गहरा प्रभाव डालती है, जो समाज और शासन के संगठन में सामूहिक हित की महत्ता पर जोर देती है।


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‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कविता की भाषा कौन सी है? (1) ब्रजभाषा (2) राजस्थानी भाषा (3) खड़ी बोली (4) अवधी भाषा

0

सही उत्तर है…

(3) खड़ी बोली

 

स्पष्टीकरण :

‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कविता की भाषा ‘खड़ी बोली’ है। ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कविता ‘शिवमंगल सिंह सुमन’ द्वारा रचित एक कविता है। यह कविता खड़ी बोली में रची गई है। खड़ी बोली वह बोली होती है, जो सामान्य हिंदी कहलाती है। हिंदी का जो मानक रूप राजभाषा और सामान्य हिंदी के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, वही खड़ी बोली है।

यह कविता भी खड़ी बोली में रचित की गई है। खड़ी बोली का मूल उद्गम दिल्ली और मेरठ के आसपास के क्षेत्र से माना जाता है। धीरे-धीरे यही खड़ी बोली लोकप्रिय होकर हिंदी की मुख्य बोली और मुख्य भाषा बन गई। ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन’ के कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन ने पिंजरे में कैद पंछी के मनोभावों को व्यक्त किया है। उनके अनुसार पिंजरे में बंद होने से पिंजरे में बंद पंछी अपनी दास्तान से खुश नहीं है। वह आजाद होना चाहते हैं, भले ही आजाद होकर उन्हें कितने भी कष्ट क्यों ना सहने पड़े, लेकिन वह आजाद होकर रहना चाहते हैं। सोने के पिंजरे के में बंद रहकर उन्हें ऐशो आराम पसंद नहीं। यहाँ पर कविता के माध्यम से कवि ने स्वतंत्रता के महत्व को बताया है। स्वतंत्रता के आगे सभी तरह के ऐशो-आराम तुच्छ है।

पूरी कविता इस प्रकार है…

हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएँगे।

हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे,
कहों भली है कटुक निबौरी
कनक-कटोरी की मैदा से,

स्वर्ण-श्रंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरु की फुनगी पर के झूले।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक अनार के दाने,

होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।

नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।

— शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ 


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स्वर्ण श्रृंखला का बंधन से क्या अर्थ है?

‘दीवानों की हस्ती’ कविता में निहित संदेश को स्पष्ट कीजिए।

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‘दीवानों की हस्ती’ कविता हिंदी के प्रसिद्ध कवि भगवतीचरण वर्मा द्वारा रचित है। ‘दीवानों की हस्ती’ कविता में भगवतीचरण वर्मा ने एक गहरा और प्रेरणादायक संदेश दिया है। यह कविता उन लोगों की महानता को दर्शाती है जो अपने आदर्शों और सिद्धांतों के लिए जीते हैं। कवि ऐसे व्यक्तियों की प्रशंसा करता है जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर, समाज और देश के लिए त्याग और बलिदान करते हैं। यह कविता साहस, दृढ़ता और आत्मसम्मान के महत्व को रेखांकित करती है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य से नहीं डिगते।

कवि ने मानवता और करुणा के मूल्यों पर भी जोर दिया है। वे उन लोगों की महानता को दर्शाते हैं जो दूसरों के दुख में दुखी होते हैं और समाज की भलाई के लिए कार्य करते हैं। यह कविता स्वतंत्रता सेनानियों और समाज सुधारकों के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त करती है, जो न्याय और समानता के लिए संघर्ष करते हैं। इसके साथ ही, कवि एक आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, यह बताते हुए कि ऐसे ‘दीवाने’ लोग ही समाज और देश को आगे ले जाते हैं।

अंत में, ‘दीवानों की हस्ती’ का मूल संदेश यह है कि जीवन का सच्चा अर्थ स्वार्थ से ऊपर उठकर, उच्च आदर्शों और मूल्यों के लिए जीने में है। यह कविता समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत के रूप में कार्य करती है, जो लोगों को अपने व्यक्तिगत हितों से परे, समाज और मानवता की सेवा के लिए प्रेरित करती है। यह हमें याद दिलाती है कि सच्ची महानता और जीवन का वास्तविक अर्थ दूसरों के लिए जीने और आवश्यकता पड़ने पर बलिदान देने में निहित है।


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आशय स्पष्ट दीजिए- काले बादल जाति द्वेष के काले बादल विश्व क्लेश के काले बादल उठते पथ पर नव स्वतंत्रता के प्रवेश के!

‘डाँडे’ में खून होने पर भी खूनी को सजा क्यों नहीं मिलती थी?

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तिब्बत के डाँडे में खून हो जाने पर भी खूनी को सजा इसलिए नहीं मिलती थी, क्योंकि तिब्बत में डाँडे बेहद निर्जन स्थान होते थे। यह स्थान मुख्य जमीन से 16-17000 फीट की ऊंचाई पर स्थित होते थे। इन जगहों के दोनों तरफ मीलों तक कोई भी आबादी या गाँव आदि नहीं होता था। नदियों के मोड़ों और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा भी नहीं जा सकता था।

इन स्थानों पर चोर-डाकुओं का डेरा लगा रहता था। चोर-डाकुओं के लिए यह सुरक्षित स्थान होता था। यहाँ से गुजरने वाले राहगीरों को ये चोर-डाकू लूट लेते थे। यहाँ पर आम आदमी नहीं होता था, इसलिए चोर-डाकू जब किसी का खून कर देते थे तो ना तो उसके लिए कोई गवाह रहता था और ना ही कोई सबूत। पुलिस भी ऐसे खतरनाक जगहों पर आने से कतराती थी, इसलिए यहां पर पुलिस की व्यवस्था भी नहीं थी। इसी कारण डाँडे में खून हो जाने पर किसी खूनी को कोई सजा नहीं मिलती थी, क्योंकि चोर डाकू यहाँ पर सब कुछ नष्ट कर डालते थे।

‘ल्हासा की ओर’ पाठ में लेखक राहुल सांकृत्यायन ने तिब्बत के इन्हीं डाँडों का जिक्र किया है। लेखक को भी इन डाँडों वाले क्षेत्र से गुजरना पड़ा था। लेखक ने चोर-डाकुओं से बचने के लिए भिखमंगे का वेश धारण कर लिया था। चोर-डाकू भिखमंगों को छोड़ देते क्योंकि वे समझते थे कि भिखमंगों के पास से लूटने लायक कोई कीमती सामान नहीं मिलेगा। लेखक ने इसी बात का फायदा उठाते हुए भिखमंगे का वेश बना लिया और आसानी से डाँडे वाले क्षेत्र को पार किया।

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बंगाल में छापेखाने का विकास किस प्रकार हुआ? समझाएं।

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बंगाल में छापेखाने का विकास धीरे-धीरे एक सतत् प्रक्रिया द्वारा अनेक चरणों में हुआ।

शुरुआत और प्रारंभिक चरण

बंगाल में छापेखाने का विकास 18वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुआ। 1778 में कोलकाता में पहला छापाखाना स्थापित किया गया, जो मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा के प्रकाशनों के लिए था। धीरे-धीरे बंगाली भाषा में भी पुस्तकें छापी जाने लगीं। 1800 में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना ने बंगाली भाषा के प्रकाशनों को और बढ़ावा दिया। इस दौरान, ईसाई मिशनरियों ने भी बंगाली में धार्मिक पुस्तकें छापने के लिए छापेखाने स्थापित किए, जिनमें श्रीरामपुर मिशन प्रेस एक प्रमुख उदाहरण है।

विस्तार और प्रभाव

19वीं शताब्दी की शुरुआत में, बंगाली बुद्धिजीवियों और उद्यमियों ने अपने छापेखाने शुरू किए, जिससे बंगाली साहित्य और संस्कृति का प्रसार हुआ। इस समय बंगाली भाषा के समाचार पत्र और पत्रिकाएँ भी प्रकाशित होने लगीं, जिसने जन जागरूकता और राजनीतिक चेतना को बढ़ाया। पाठ्यपुस्तकों और शैक्षणिक सामग्री का प्रकाशन बढ़ने से शिक्षा का प्रसार हुआ। समय के साथ छापाखानों की तकनीक में सुधार हुआ, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में वृद्धि हुई।

सामाजिक-सांस्कृतिक योगदान

छापेखानों ने बंगाली भाषा और संस्कृति के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह बंगाल नवजागरण का एक प्रमुख कारक बना। छापेखानों के विकास ने न केवल सूचना के प्रसार को सुगम बनाया, बल्कि यह सामाजिक सुधार, शैक्षिक प्रगति और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी बना। इस प्रकार, बंगाल में छापेखानों का विकास एक तकनीकी प्रगति से कहीं अधिक था; यह एक व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन का वाहक बन गया।


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ग्रीन के अनुसार दण्ड में निम्न में से किस तत्व का समावेश होना चाहिए: (1) प्रतिशोध (2) निवारक (3) सुधार (4) इनमें से कोई नहीं

What do you understand by the term ‘nabobs’? Why were some British officials given this title post the Battle of Plassey and Buxar?

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The term ‘nabob’ is derived from the Urdu word ‘nawab’, which itself comes from the Arabic word ‘naib’, meaning deputy or governor. In the context of British India, ‘nabob’ took on a specific meaning:

1. Original meaning: In the Mughal Empire, a nawab was a provincial governor or viceroy.

2. British usage: The British adopted the term ‘nabob’ to refer to Englishmen who had become wealthy through their involvement in the East India Company’s activities in India.

British officials were given this title post the Battles of Plassey (1757) and Buxar (1764) for several reasons:

1. Sudden wealth: After these battles, many British officials amassed enormous fortunes through various means, including:

  • Territorial control and revenue collection
  • Private trade
  • Accepting ‘gifts’ from Indian rulers and merchants

2. Power and influence: These battles significantly increased British control over Bengal and other parts of India, giving Company officials unprecedented power.

3. Lavish lifestyles: Many of these officials returned to Britain with their newfound wealth, living extravagantly and often buying their way into British high society and politics.

4. Cultural impact: The term became associated with ostentatious displays of wealth and a degree of cultural hybridity, as these men often brought back Indian customs and goods.

5. Criticism: The term also carried negative connotations, with ‘nabobs’ often criticized for corruption, exploitation, and bringing ‘oriental’ influences to British society.

6. Political implications: The wealth and influence of returning ‘nabobs’ became a matter of concern in British politics, leading to increased scrutiny of the East India Company’s activities.

The use of this term reflects the complex cultural and economic exchanges that occurred during the early period of British colonialism in India. It highlights how the conquest of India not only changed the subcontinent but also had significant impacts on British society and politics.


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Who was Titu Mir? What was his contribution?

What is runoff a election?

What is a runoff election?

A runoff election is a second round of voting held when no candidate in an initial election manages to secure the required threshold of votes to win outright. Here’s a brief explanation of runoff elections:

  • Purpose: To ensure the winning candidate has a clear majority of support.
  • Trigger: Typically occurs when no candidate receives more than 50% of the votes in the first round.
  • Participants: This usually involves the top two candidates from the first round.
  • Timing: Held after the initial election, often a few weeks later.
  • Outcome: The candidate with the most votes in the runoff wins, regardless of whether they achieve a majority.
  • Common usage: Used in many countries for presidential elections and in some U.S. states for various offices.
  • Advantages: Can prevent a candidate from winning with only a small plurality of votes.
  • Disadvantages: This can lead to lower voter turnout and increased election costs.

Runoff elections aim to provide a clearer mandate for the winning candidate and ensure broader support from the electorate. They’re particularly useful in multi-candidate races where the vote might otherwise be split among several options.


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Why is the living room called a living room? Besides we live in the bedroom, the kitchen, and the study room, we don’t die. We live in every room, so why is it called a Living Room? Then, the Bedroom should also be called the living room, and so do the others.

Describe the role of women before and after the French Revolution.

Who was Titu Mir? What was his contribution?

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Titu Mir, born Syed Mir Nisar Ali, was a prominent Bengali Muslim peasant leader and freedom fighter in early 19th century British India. He led a significant peasant uprising against oppressive landlords and British colonial rule in Bengal from 1830 to 1831.

Titu Mir’s contributions include:

  • Peasant mobilization: He organized and united peasants against the exploitation by zamindars (landlords) and British authorities.
  • Religious reform: He advocated for Islamic revivalism and opposed Hindu landlords’ attempts to impose taxes on Muslim religious practices.
  • Resistance against oppression: Titu Mir led armed resistance against excessive taxation, forceful collection of revenues, and other forms of exploitation.
  • Establishment of alternative governance: He set up a parallel administration in parts of Bengal, challenging British authority.
  • Symbol of anti-colonial struggle: His rebellion, though short-lived, became a symbol of resistance against British colonialism in Bengal.
  • Inspiration for future movements: Titu Mir’s uprising inspired later anti-colonial and peasant movements in the region.
  • Promotion of social justice: He fought against social and economic inequalities, striving to improve the conditions of the peasantry.

Though Titu Mir’s rebellion was eventually suppressed by British forces in 1831, and he was killed in battle, his legacy lived on. His struggle against oppression and injustice continues to be remembered as an important chapter in the history of peasant movements and anti-colonial resistance in India.


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Describe the role of women before and after the French Revolution.

Write in detail about the Gandhara Civilization.

Describe the role of women before and after the French Revolution.

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The role of women before and after the French Revolution underwent significant changes, though these changes were not always immediate or comprehensive.

Before the French Revolution:

  • Limited rights: Women had very few legal rights and were considered subordinate to men.
  • No political voice: Women couldn’t vote or hold political office.
  • Limited education: Most women received little to no formal education.
  • Economic restrictions: Married women couldn’t own property or run businesses without their husband’s permission.
  • Domestic roles: Women were primarily expected to be wives and mothers, managing the household.

After the French Revolution:

  • Increased political awareness: Women became more politically active, participating in protests and debates.
  • Clubs and societies: Women formed political clubs and societies to discuss revolutionary ideas.
  • Demands for rights: Some women began demanding equal rights, including the right to vote and receive education.
  • Limited legal changes: The revolution brought some improvements in divorce laws and inheritance rights for women.
  • Symbolic representation: Women became symbols of liberty and the republic in art and propaganda.
  • Continued restrictions: Despite some progress, women still couldn’t vote or hold office, and many traditional gender roles persisted.
  • Education reforms: Gradually, more educational opportunities became available to women, though progress was slow.

While the French Revolution didn’t immediately grant women equal rights, it did spark important discussions about gender equality and laid the groundwork for future feminist movements.


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Write in detail about the Gandhara Civilization.

Discuss the role of Planning Commission in India

Write in detail about the Gandhara Civilization.

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The Gandhara Civilization was a significant ancient culture that flourished in the northwestern regions of the Indian subcontinent, primarily in what is now modern-day Pakistan and eastern Afghanistan. Existing from around the 6th century BCE to the 5th century CE, Gandhara played a crucial role in the development of art, religion, and cultural exchange between East and West.

Geographically, Gandhara was strategically located at the crossroads of major trade routes, including the Silk Road. This position allowed it to become a melting pot of diverse cultures, incorporating influences from Persia, Greece, Central Asia, and India. The region’s principal cities included Taxila, Peshawar (ancient Purushapura), and Swat.

One of Gandhara’s most significant contributions was its distinctive art style, known as Greco-Buddhist art. This unique fusion emerged after Alexander the Great’s invasion of the region in 326 BCE, blending Hellenistic artistic techniques with Buddhist themes. Gandharan artists were renowned for their stone sculptures, particularly their depictions of the Buddha in human form, which was a departure from earlier aniconic representations. These sculptures often featured the Buddha with wavy hair, a prominent ushnisha (topknot), and wearing Greco-Roman style robes.

Buddhism flourished in Gandhara, and the region became an important center for Buddhist learning and pilgrimage. The famous Buddhist university at Taxila attracted scholars from far and wide. Gandhara also played a crucial role in the spread of Buddhism to Central Asia and China, with many Buddhist texts being translated into Chinese from the Gandhari language.

The Gandhara Civilization saw rule under various dynasties, including the Achaemenids, Greeks, Mauryans, Indo-Greeks, Scythians, Parthians, and Kushans. Each of these ruling powers left their mark on Gandharan culture and contributed to its cosmopolitan nature.

Economically, Gandhara prospered through trade, agriculture, and craftsmanship. The region was known for its fine textiles, precious stones, and metalwork. The use of Kharosthi script for administrative and commercial purposes further facilitated trade and governance.

The decline of the Gandhara Civilization began with the invasion of the White Huns (Hephthalites) in the 5th century CE. Despite its eventual fall, the legacy of Gandhara continued to influence art and culture across Asia for centuries to come, cementing its place as a significant chapter in world history.


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Write a paragraph on Charles Dickens (300 words)

Why is the living room called a living room? Besides we live in the bedroom, the kitchen, and the study room, we don’t die. We live in every room, so why is it called a Living Room? Then, the Bedroom should also be called the living room, and so do the others.

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The term ‘living room’ has an interesting history that explains its specific use.

The living room, historically, was a space in the house intended for social activities, family gatherings, and entertaining guests. The name ‘living room’ gained popularity in the early 20th century. Before this, such spaces were often referred to as ‘parlours’ or ‘drawing rooms.’ The term ‘living room’ emerged to signify a space dedicated to the daily living activities of the household, distinct from areas like the kitchen (used for cooking), the bedroom (used for sleeping), or the study (used for work or study).

In essence, the living room was designed as a communal space where family members could spend time together, relax, and entertain guests. It’s a versatile space for various living activities, hence the name ‘living room.’
Each room in a house has a specific primary function, which is why they have different names:

  • Bedroom: Primarily for sleeping.
  • Kitchen: Primarily for cooking and preparing food.
  • Study: Primarily for working or studying.
  • Living Room: Primarily for social and communal living activities.

The Living Room’s Unique Role
The living room serves as a communal space where various activities happen:

  • Social Hub: It’s the main area where family members and guests come together to socialize.
  • Versatility: It accommodates multiple activities like watching TV, playing games, reading, and having conversations.
  • Central Space: It often acts as the heart of the home, connecting to other areas like the kitchen, dining room, and sometimes the outdoors.

So, while we do live in every room of a house, the living room is specifically named for its role as a central, versatile space for everyday family life and social interactions.


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Is educational institution a primary group or a secondary group? Give reason to justify your answer.

Write a letter to your principal to organize an essay competition in school.

Is educational institution a primary group or a secondary group? Give reason to justify your answer.

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An educational institution, such as a school or university, is generally considered a secondary group. Here’s the reasoning behind this classification:

1. Nature of relationships:
– Primary groups are characterized by intimate, personal, and long-lasting relationships (e.g., family, close friends).
– In educational institutions, relationships are typically more formal, impersonal, and temporary.

2. Purpose:
– Primary groups form naturally and serve emotional needs.
– Educational institutions are deliberately created for specific purposes (education, skill development) and have formal goals.

3. Size:
– Primary groups are usually small.
– Educational institutions are often large, with many members.

4. Duration:
– Primary group memberships tend to be long-lasting or lifelong.
– Membership in educational institutions is usually temporary (limited to the duration of study).

5. Interaction frequency:
– Primary groups involve frequent, face-to-face interactions.
– In educational institutions, interactions are often scheduled and less frequent.

6. Emotional involvement:
– Primary groups involve deep emotional bonds.
– Relationships in educational institutions are generally less emotionally intense.

7. Formality:
– Primary groups have informal structures and rules.
– Educational institutions have formal structures, rules, and hierarchies.

8. Role of individual:
– In primary groups, individuals are valued for who they are.
– In educational institutions, individuals are often valued for their roles (student, teacher) rather than their personal qualities.

However, it’s worth noting that within the larger secondary group of an educational institution, primary group-like relationships can form (e.g., close friendships among classmates). But the institution as a whole remains a secondary group.


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Write a letter to your principal to organize an essay competition in school.

Write an essay on the Importance of AI in Education.

Write a letter to principal of your school to organize an essay competition in school.

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Formal Letter

Letter to principal to organize essay competition in school

 

Date: 15 July 2024

To,
The Principal
Mount View Public School,
Shimla.

Subject: Request to Organize an Essay Competition

Respected Ma’am,

I hope this letter finds you in good health. I am writing to request your permission and support to organize an essay competition for our school students.

The proposed competition would aim to enhance students’ writing skills, encourage creative thinking, and provide a platform for expressing ideas on various topics. I believe such an event would greatly benefit our student community by:

1. Improving written communication skills
2. Fostering critical thinking and research abilities
3. Boosting confidence in self-expression
4. Preparing students for future academic and professional writing tasks

If approved, we suggest the competition be open to all classes, with separate categories for junior and senior students. We could have engaging themes like ‘The Future of Technology,’ ‘Climate Change Solutions,’ or ‘The Importance of Cultural Diversity.’

We would be grateful if you could provide guidance on:
— Selecting judges from our teaching staff
— Arranging prizes for the winners
— Scheduling the event

Your support in this initiative would be invaluable in promoting literary skills among our students.

Thank you for your time and consideration. I look forward to your positive response.

Yours sincerely,
Sangeeta Sharma,
Class – 10th A
Roll no. 26,
Mount View Public School,
Shimla.


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Write a letter to the editor of the newspaper about complaining the government hospital.

Your friend wants to visit Rajasthan for a trip. Write an E-mail to your friend giving the knowledge about Rajasthan.

Write an essay on the Importance of AI in Education.

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Essay

Importance of AI in Education

 

Artificial Intelligence (AI) is revolutionizing the education sector, offering unprecedented opportunities to enhance learning experiences and outcomes. AI-powered tools can personalize education, adapting to each student’s unique learning pace and style, thereby addressing individual needs more effectively than traditional one-size-fits-all approaches. These systems can analyze vast amounts of data to identify learning patterns and difficulties, enabling educators to provide timely interventions and support.

AI also facilitates administrative tasks, freeing up teachers to focus more on student interaction and mentoring. Virtual tutors and chatbots offer 24/7 support to students, answering queries and providing explanations at any time. Furthermore, AI can create immersive learning experiences through virtual and augmented reality, making complex concepts more accessible and engaging.

However, the integration of AI in education also raises concerns about data privacy and the potential loss of human touch in teaching. Striking a balance between technological advancement and maintaining the crucial human elements of education is essential. Despite these challenges, AI’s potential to democratize education, improve accessibility, and prepare students for a tech-driven future makes it an invaluable tool in modern education systems.


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Write an essay about ‘Save Water’

Write a shore essay on the importance of healthy eating habits.

‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर बताइए कि नगर पालिका ने नेताजी की प्रतिमा क्यों लगवाई थी? इससे नेताजी के जीवन का कौन सा पहलू उजागर होता है? उनके जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए​।

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सम्मान में नगर पालिका द्वारा प्रतिमा लगाने का निर्णय कई महत्वपूर्ण कारणों पर आधारित था। यह न केवल एक महान नेता के प्रति श्रद्धांजलि थी, बल्कि शहर के लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करने का एक प्रयास भी था। प्रतिमा नेताजी के असाधारण नेतृत्व, अटूट साहस और देश के लिए उनके बलिदान को प्रतिबिंबित करती है।

इस प्रतिमा से नेताजी के जीवन के अनेक पहलू उजागर होते हैं। यहाँ पर उनका नेतृत्व और देशभक्ति वाला पहलू उजागर होता है।  उनका साहस और दृढ़ संकल्प भी उजाग होता है। इस प्रतिमा से देश के लिए उनका त्याग और बलिदान भी प्रकट होता है।

नेताजी का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके अद्वितीय योगदान, उनके साहस, और देश के लिए उनके बलिदान के लिए याद किया जाता है। उनका आदर्शवाद और देशभक्ति आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश:

नेताजी का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ज्वलंत अध्याय है। 1897 में कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस ने अपनी उच्च शिक्षा कोलकाता और कैम्ब्रिज से प्राप्त की। वे जल्द ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक प्रमुख नेता बन गए। 1943 में उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया और ‘दिल्ली चलो’ का प्रसिद्ध नारा दिया। नेताजी पूर्ण स्वराज और सामाजिक समानता के लिए दृढ़ता से लड़े। हालांकि 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटना में उनकी कथित मृत्यु हो गई, उनका जीवन और कार्य आज भी लाखों भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। नेताजी की प्रतिमा उनके इसी साहस, त्याग और देशभक्ति का स्मारक है, जो आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्र के प्रति समर्पण का संदेश देती रहेगी।


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नेताजी की मूर्ति से क्षमा मांगने के पीछे कैप्टन का क्या भाव छिपा होता था ? (नेताजी का चश्मा)

मूर्ति निर्माण में नगर पालिका को देर क्यों लगी होगी नेताजी का चश्मा पाठ के आधार पर बताइए? (अ) धन के अभाव के कारण (ब) मूर्तिकार ना मिलने के कारण (स) मूर्ति स्थापना के स्थान का निर्णय न कर पाने के कारण (द) संगमरमर ना मिलने के कारण

‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर शासन-प्रशासन के कार्यालयों की कार्यशैली बारे में आपकी क्या धारणा बनती है?

हालदार साहब ने जब मूर्ति के नीचे मूर्तिकार ‘मास्टर मोतीलाल’ पढ़ा, तब उन्होंने क्या-क्या सोचा?

मन लागा उन मन्न सौं, गगन पहुँचा जाइ। देख्या चंद बिहूँणां, चांदिणाँ, तहाँ अलख निरंजन राइ।। भावार्थ बताएं।

मन लागा उन मन्न सौं, गगन पहुँचा जाइ।
देख्या चंद बिहूँणां, चांदिणाँ, तहाँ अलख निरंजन राइ।।

संदर्भ : ये दोहा कबीर की साखियां है। इस दोहे के माध्यम से कबीर ने उस अवस्था का वर्णन किया है, जब मन में ज्ञान का उदय हो जाता है और मनुष्य जिस आनंद का अनुभव करता है कबीर ने उसी अवस्था का वर्णन किया है।

भावार्थ : कबीर कहते हैं कि जब मन में ज्ञान का प्रकाश प्रज्ज्वलित हुआ और मन ज्ञान के प्रकाश से आलोकिक हो गया तो वह संसार रूपी बंधनों से मुक्त हो गयाष संसार रूपी बंघनों से मुक्त होकर मन ज्ञान की उच्चतम अवस्था में पहुंच गया और ब्रह्मांड में लीन हो गया। इस ब्रह्मांड में मन ने परम आनंद का अनुभव कियाष उसके चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश बिखरा हुआ था। उसने प्रकाश के एक पुंज के रूप में साक्षात ब्रह्म के दर्शन किए।

व्याख्या : यहाँ पर कबीर ने मन की उस अवस्था का वर्णन किया है, जब वह ज्ञानोदय की चरम अवस्था में पहुंच जाता है। जब मनुष्य का मन ज्ञान के उच्चतम स्तर पर पहुंचकर पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर लेता है तो उसके मन से सारे अंधकार मिट जाते हैं, तो वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसका मन ब्रह्मांड में परम आनंद में लीन हो जाता है। तब वह उस ब्रह्म के दर्शन करता है जो साक्षात ज्ञान का प्रतीक है।

कठिन शब्दों के अर्थ

उन मन्न : अन्तर्मन
गगन : ब्रहाण्ड
बिहूँणा : प्रकाश
चांदिणा : प्रकाश पुंज
अलख निरंजन : निराकार परमात्मा


Related दोहे…

पिंजर प्रेम प्रकासिया, अंतरि भया उजास। मुख कस्तूरी महमहीं, बाँणी फूटी बास।।​ भावार्थ बताएं।

कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।। अर्थ बताएं।

पिंजर प्रेम प्रकासिया, अंतरि भया उजास। मुख कस्तूरी महमहीं, बाँणी फूटी बास।।​ भावार्थ बताएं।

पिंजर प्रेम प्रकासिया, अंतरि भयाभया उजास।
मुख कस्तूरी महमहीं, बाँणी फूटी बास।।​

संदर्भ : ये दोहे की कबीर की साखियां है। इस दोहे के माध्यम से कबीर ने मन में प्रेम के उत्पन्न होने और ज्ञान के जाग्रत होने की अवस्था और उसके अनुभव का वर्णन किया है। उन्होंने प्रेम और ज्ञान के महत्व को समझाया है।

भावार्थ : कबीर कहते हैं कि जैसे ही इस मन और शरीर में प्रेम उत्पन्न हुआ वैसे ही प्रेम की चमक से पूरा अन्तर्मन उजला हो गया। मन का अंधकार मिट गया और ज्ञान का प्रकाश फैल गया। ज्ञानोदय होने पर मुँह कस्तूरी जैसी सुंगध से महक उठा और वाणी से भी अद्भुत सुगंध फूटने लगी।

व्याख्या : यहाँ पर कबीर ने प्रेम और ज्ञान के महत्व को बताया है। कबीर का कहना है कि जब मनुष्य प्रेम का महत्व समझ लेता है, तो उसके ज्ञान चक्षु खुल जाते है। ज्ञान चक्षु अर्थात ज्ञान रूपी आँखें खुल जाने पर मन ज्ञान के प्रकाश से आलोकित हो उठता है। जब मनुष्य प्रेममय और ज्ञानमय हो जाता है तो न केवल उसके मुख से बल्कि उसकी आवाज से भी सुगंध बिखरने लगती है। प्रेम और ज्ञान के प्रभाव से मनुष्य का पूरा शरीर ही सुगंधमय हो जाता है।

कठिन शब्दों के अर्थ

पिंजर : शरीर
उजास : उजाला, प्रकाश
बाँणी : आवाज, बोली
बास : गंध, सुगंध
अंतरि : ह़दय, मन
प्रकासिया : प्रकाश से आलोकित होना


Related दोहे..

ठगनी क्यूँ नैना झमकावै, तेरे हाथ कबीर न आवै।। “इस पंक्ति में ‘ठगनी’ किसे कहा गया है?

कबीर सुमिरन सार है, और सकल जंजाल। आदि अंत सब सोधिया, दूजा देखौं काल।। अर्थ बताएं?

अंजलि और राधिका अपनी सहेली पूजा के जन्मदिन का उपहार खरीदने के लिए बाजार जा रही हैं। दोनों के बीच होने वाले संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

सहेली के जन्मदिन के उपहार की खरीदारी के विषय में दो सहेलियों के बीच संवाद

 

अंजलि ⦂ अरे राधिका, चलो जल्दी करें। पूजा के जन्मदिन में अब सिर्फ दो दिन बचे हैं।

राधिका ⦂ हाँ, मैं भी सोच रही थी। क्या खरीदें उसके लिए?

अंजलि ⦂ मुझे लगता है कि हमें कोई अच्छी सी किताब लेनी चाहिए। पूजा को पढ़ना बहुत पसंद है।

राधिका ⦂ हम्म, यह तो सही है। लेकिन क्या वो थोड़ा सा निजी नहीं होगा?

अंजलि ⦂ तो फिर क्या सोच रही हो?

राधिका ⦂ क्यों न हम उसके लिए एक सुंदर सा लॉकेट लें? वो हमेशा गले में कुछ पहनती है।

अंजलि ⦂ वाह! यह तो बहुत अच्छा विचार है। और साथ में एक छोटी सी किताब भी ले लेते हैं।

राधिका ⦂ बिलकुल! इस तरह हम दोनों की पसंद का मिश्रण हो जाएगा।

अंजलि ⦂ चलो फिर, पहले ज्वैलरी शॉप में चलते हैं, फिर बुक स्टोर।

राधिका ⦂ ठीक है, और हाँ, एक प्यारा सा कार्ड भी लेना है।

अंजलि ⦂ हाँ, बिल्कुल। चलो, जल्दी करें। मुझे यकीन है पूजा को हमारा उपहार बहुत पसंद आएगा।


Other संवाद

गुड टच और बैड टच के बारे में बात करते हुए दो मित्रों के बीच हुए संवाद को लिखिए।

गर्मियों की छुट्टियों के बाद कक्षा में मिले दो सहेलियों के बीच हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

हीरा-मोती के प्रति गया का व्यवहार आपको कैसा लगता है और क्यों ?

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हीरा-मोती के प्रति गया का व्यवहार हमें बिल्कुल ही अमानवीय लगता है। गया एक बेहद असंवेदनशील व्यक्ति था जिसने हीरा-मोती जैसे मूक प्राणियों के प्रति जरा भी दया नही दिखाई। उसका व्यवहार मानवता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता था।

गया बिल्कुल ही स्वार्थी व्यक्ति था, वह अपने बहनोई झूरी से उसके दोनों बैल हीरा और मोती को इसलिए मांग कर ले गया था क्योंकि उसे अपने खेतों में जुताई की जरूरत थी। वह अपने काम को कराने के लिए दोनों बैलों को ले तो गया लेकिन वह दोनों बैलों की देखभाल करने में बेहद लापरवाह निकला। उसके अंदर दया और संवेदना नहीं थी। उसने दोनों बैलों से भरपूर काम तो लिया लेकिन उन्हें दाना-पानी देने के नाम पर सूखा भूसा दे देता था। यह उसकी असंवेदनशीलता थी। इसी कारण गया का यह व्यवहार हमें बिल्कुल भी अनुचित लगा।

हमारी दृष्टि में उसे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था। यदि वह बैलों के साथ अनुचित व्यवहार नहीं करता और दोनों बैल हीरा और मोती को अच्छी तरह से रखता तो शायद बैलों को उसके घर से भागने की जरूरत नहीं पड़ती। इस तरह दोनों बैलों को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। उन्हें परेशान भी नहीं होना पड़ता और ना ही सारा वह घटनाक्रम घटता जो इस कहानी में घटा है।

हमें सभी पालतू और घरेलू पशुओं के साथ संवेदनशील व्यवहार करना चाहिए। पशुओं के अंदर भी संवेदनाएं होती हैं। उन्हें भी कष्ट होता है। उन्हें भी दुख होता, यह बात हमें समझनी चाहिए। वह भले ही पशु हैं, लेकिन वह हमारी तरह ही प्राणी हुई हैं। उनके अंदर भी प्राण हैं।


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स्पष्ट कीजिये हीरा-मोती के मन में औरत जाति के प्रति सम्मान था​?

जापान को सभ्य देशों में क्यों गिना गया। पाठ ‘दो बैलों की कथा’ के आधार पर बताइए?

‘दो बैलों की कथा’ पाठ के आधार पर हीरा और मोती के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

यासुकी चान जैसे शारीरिक चुनौतियों से जूझने वाले व्यक्तियों के लिए विशेष सुविधा की आवश्यकता होती है। विद्यालयों अथवा सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे कौन-कौन से भौतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है। आपसी चर्चा के पश्चात् एक सूची तैयार कीजिए। ​

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यासुकी चान जैसे शारीरिक चुनौतियों से जूझने वाले व्यक्तियों के लिए विद्यालयों और सार्वजनिक स्थलों पर विशेष सुविधाओं की आवश्यकता होती है। इन व्यक्तियों की सहायता के लिए सभी सार्वजनिक स्थानों पर अनेक विशेष सुविधाएं और संसाधनों को आवश्कता होती है। इन सबकी सूची इस प्रकार हो सकती है…

1. व्हीलचेयर : सभी सार्वजनिक स्थानों पर सभी प्रवेश द्वारों और निकास पर व्हीलचेयर की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि चलने-असमर्थ व्यक्ति को वहाँ पर आने-जाने में कोई असुविधा न हो।

2. लिफ्ट या एलिवेटर : सभी बहुमंजिला इमारतों में आसान आवागमन के लिए लिफ्ट या एलिवेटर अवश्य होनी चाहिए।

3. विशेष शौचालय : सभी सार्वजनिक स्थानों पर विशेष चुनौतियों वाले व्यक्तियों के लिए विशेष शौचालय होना चाहिए। ऐसे शौचालयों में व्हीलचेयर आसानी से आ जा सके। यहाँ सीढ़ियां नहीं बल्कि छलवाँ रैंप होना चाहिए जिससे व्हील चेयर आसानी से चढ़ सके।

4. ब्रेल साइनेज : सभी सार्वजनिक स्थानों पर दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए दिशा-निर्देश हेतु ब्रेल साइनेज की व्यवस्था होनी चाहिए।

5. श्रवण सहायक उपकरण : श्रवण बाधित व्यक्तियों के लिए श्रवण सहायक यंत्रों की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि उस सार्वजनिक स्थान पर मिलने वाले सूचना को वह समझ सकें।

6. समायोज्य डेस्क और कुर्सियां : सार्वजनिक स्थान जैसे विद्यालय आदि में विभिन्न प्रकार की शारीरिक चुनौतियों वाले छात्रों के लिए विशेष समायोज्य डेस्क और कुर्सियों की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि उन्हें बैठने में आसानी हो।

7. विशेष खेल उपकरण : विद्यालयों में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि विशेष चुनौती वाले छात्र खेलों में भाग ले सकें। इसके लिए समावेशी खेल गतिविधियां संबंधी उपकरणों की व्यवस्था होनी चाहिए।

8. टैक्टाइल पथ : सभी सार्वजनिक स्थलों पर दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए मार्गदर्शन संबंधी व्यवस्था होनी चाहिए।

9. अनुकूलित कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर : विभिन्न प्रकार की अक्षमताओं वालो व्यक्तियों के लिए अनुकूलित कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर की व्यवस्था होनी चाहिए।

10. विशेष पार्किंग स्थल : शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण व्यक्ति विशेष वाहनों का प्रयोग करते हैं। अतः सभी सार्वजनिक स्थलों पर उनकी सुविधा के लिए ऐसे विशेष पार्किंग स्थल होने चाहिए जहाँ पर वे अपना वाहन आदि पार्क करके आसानी से मुख्य स्थल तक पहुँच सकें।

11. हैंडरेल : गलियारों और सीढ़ियों पर चढ़ने में आसानी हेतु हैंडरेल लगी होनी चाहिए।

12. दरवाजों पर स्वचालित खोलने की व्यवस्था : सभी सार्वजनिक स्थलों विशेष चुनौती वाले व्यक्ति आसनी से प्रवेश कर सकें इसके लिए वहाँ पर स्वचलित दरवाजे होने चाहिए। उन्हें दरवाजे खोलने के लिए असुविधा न हो।

13. आपातकालीन अलार्म और प्रकाश व्यवस्था : अंधे व्यक्ति अपना रास्ता न भटक जाएं इसके लिए हर जगह आपातकालीन अलार्म होने चाहिए संकट आने पर वह सूचित कर सकें।

14. विशेष पुस्तकालय सामग्री : दृश्यबाधित लोगों के लिए सभी सार्वजनिक स्थलों पर ब्रेल पुस्तकें और ऑडियो बुक्स होनी चाहिए ताकि वह भी आसनी से उस स्थान के बारे में सूचना पा सकें।

15. सांकेतिक भाषा दुभाषिए : मूक-बधिर व्यक्तियों की सहायता के लिए सभी सार्वजनिक स्थलों पर कुछ कर्मचारीर ऐसे होने चाहिए जो सांकेतिक भाषा को समझ सकें। इस तर मूक-बधिर लोग भी अपनी बात को आसानी से कह समझ सकेंगे।

यह सूची विभिन्न प्रकार की शारीरिक चुनौतियों का सामना करने वाले व्यक्तियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है। इन सुविधाओं का उद्देश्य सभी के लिए शिक्षा और सार्वजनिक स्थलों तक समान पहुंच सुनिश्चित की जा सकती है।


Other questions

‘अपूर्व अनुभव’ पाठ में दूसरों की सहायता करने की प्रेरणा है। सिद्ध कीजिए।

पाठ ‘स्मृति’ के आधार पर आपके जीवन में घटित किसी अविस्मरणीय घटना का वर्णन करें।​

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‘स्मृति’ पाठ में लेखक श्रीराम शर्मा ने अपने बचपन की एक घटना का वर्णन किया है, जो स्मृति के रूप में उनके मानस पटल पर अंकित हो गई थी। ऐसी एक अविस्मरीय घटना मेरे जीवन में भी घटित हुई, मेरे मन स्मृति के रूप में अंकित रही।

मैं अपने शहर में अपने माता-पिता के साथ रहता था। हमारे दादा दादी गाँव में रहते थे, हम लोग अक्सर त्योहारों की छुट्टियों में या गर्मियों में छुट्टियां बिताने के लिए जाया करते थे। मेरे स्कूल में जब गर्मी की छुट्टियां पड़ गई तो हम सब गाँव में बिताने के लिए गाँव गए। पहले दिन ही मैं गाँव के लड़कों के साथ घूमने निकल गया। मेरे दादाजी के खेत के पास ही एक बड़ा सा तालाब था। मैं गाँव के लड़कों के साथ राहत तालाब के किनारे खेलने लगा। गाँव के लड़के तालाब में उतरकर नहाने लगे और मौज-मस्ती करने लगे। उन्हें देखकर मेरा मन भी किया कि मैं भी तालाब में जाकर नहाऊं और मौज-मस्ती करू। लेकिन मुझे डरना नहीं आता था इसलिए मैं तालाब में उतरने से डर रहा था। अपने साथियों द्वारा बार-बार बुलाने मैं अपने आप को रोक नहीं सका और तालाब में उतर गया।

क्योंकि मुझे जानना नहीं आता था, इसलिए मैं तलाक में उतरने ही थोड़ी देर बाद पानी में डूबने लगा और अपने बचाव के लिए हाथ पैर मार कर चिल्लाने लगा। ये देखकर मेरे साथी लड़के मुझे बचाने का प्रयास करने लगे लेकिन वो मुझे संभाल नही पा रहे थे। आवाज सुनकर गाँव के कुछ लोग दौड़े-दौड़े आए और मुझे तालाब में से निकाला। मेरे पेट में पानी भर गया था और मैं लगभग बेहोश हो गया था। किसी तरह मेरे पेट से पानी निकाल गया और मुझे होश आया तो मैंने अपने आसपास लोगों को घिरा हुआ पाया। मेरे माता-पिता को भी सूचना दे दी गई थी और वह भी दौड़े-दौड़े आए।

बाद में घर पर माता-पिता ने डांट लगाई और कहा कि तुम अब कभी तालाब के पास नहीं जाओगे। तालाब में डूबने की वह घटना मेरे मन में अंकित हो गई और मुझे हमेशा याद रही। शहर आकर मैंने इस बार तैरना सीखा और उसके बाद में जब कभी भी गाँव गया तो उसे तालाब जाकर जरूर तैरा, लेकिन तालाब में डूबने की वह घटना मुझे हमेशा याद रही। वह घटना मेरे जीवन की अविस्मरणीय घटना बन गई।


‘स्मृति’ पाठ के कुछ questions

‘पिटने का डर और जिम्मेदारी की दुधारी तलवार उनके कलेजे पर फिर रही थी।’ पंक्ति का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि लेखक ने किस का साथ दिया और क्यों? (पाठ-स्मृति)

लेखक ने नग्न व सजीव मौत किसे कहा था? (पाठ – स्मृति)

कौन सा तत्व आधुनिक राजनीतिक चिंतन की विशेषता नहीं है? (1) राष्ट्रवाद (2) लौकिकवाद (3) सार्वभौमवाद (4) प्रभुसत्ताधारी राज्य

सही विकल्प होगा…

3) सार्वभौमवाद

 

विस्तृत विवरण

इन विकल्पों में से, सार्वभौमवाद आधुनिक राजनीतिक चिंतन की विशेषता नहीं है।
आधुनिक राजनीतिक चिंतन की मुख्य विशेषताएँ हैं:

1. राष्ट्रवाद: राष्ट्र की एकता और पहचान पर जोर।
2. लौकिकवाद: धर्म और राज्य के बीच अलगाव।
3. प्रभुसत्ताधारी राज्य: राज्य की सर्वोच्च सत्ता का सिद्धांत।

सार्वभौमवाद एक ऐसा विचार है जो किसी एक विश्वव्यापी सत्ता या शासन व्यवस्था की कल्पना करता है, जो आधुनिक राज्य व्यवस्था के विपरीत है। आधुनिक राजनीतिक चिंतन में स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र-राज्यों पर अधिक जोर दिया जाता है।

आधुनिक राजनीतिक चिंतन मे व्यक्तिगत स्वतंत्रता, कानून के शासन और सरकार की सीमित भूमिका पर जोर दिया जाता है। इसमें नागरिकों की भागीदारी और प्रतिनिधि सरकार के माध्यम से शासन का सिद्धांत को महत्व दिया जाता है।

आधुनिक राजनीतिक चिंतन की अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं…

  • सभी नागरिकों के लिए कानूनी और राजनीतिक समानता का विचार।
  • व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की मान्यता और संरक्षण।
  • सरकार और नागरिकों के बीच एक समझौते के रूप में राज्य का विचार।
  • सरकार के विभिन्न अंगों के बीच शक्तियों का बंटवारा।
  • आर्थिक स्वतंत्रता और निजी संपत्ति के अधिकार पर जोर।
  • तर्क और प्रमाण पर आधारित नीति निर्माण।
  • राष्ट्र-राज्यों के बीच कूटनीति और सहयोग का महत्व।
  • समाज में संसाधनों और अवसरों के न्यायसंगत वितरण का विचार।

ये सिद्धांत आधुनिक राजनीतिक व्यवस्थाओं और विचारधाराओं के आधार हैं। हालांकि, विभिन्न देशों और संस्कृतियों में इनका कार्यान्वयन और व्याख्या अलग-अलग हो सकती है।

सार्वभौमवाद (Universalism) एक दार्शनिक और नैतिक दृष्टिकोण है जो मानता है कि कुछ विचार, मूल्य या नैतिक सिद्धांत सार्वभौमिक रूप से लागू होते हैं। यह विचारधारा विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाती है, जैसे दर्शन, धर्म, राजनीति और नैतिकता। सार्वभौमवाद मानता है कि कुछ मूल्य और नैतिक सिद्धांत सभी मनुष्यों पर लागू होते हैं, चाहे उनकी संस्कृति या पृष्ठभूमि कुछ भी हो। सार्वभौमिक मानवाधिकारों का विचार इसी दर्शन से उपजा है। कुछ सार्वभौमवादी एक विश्व सरकार या वैश्विक संस्थाओं की वकालत करते हैं जो सभी देशों पर लागू हों। कई धर्म अपने सिद्धांतों को सार्वभौमिक सत्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

सार्वभौमवाद  मानता है कि नैतिक सिद्धांत सार्वभौमिक रूप से लागू होते हैं और सांस्कृतिक सापेक्षवाद का विरोध करता है।

आधुनिक राजनीतिक चिंतन में, जबकि कुछ सार्वभौमिक मूल्यों (जैसे मानवाधिकार) को स्वीकार किया जाता है, सार्वभौमवाद की अवधारणा को पूरी तरह से नहीं अपनाया गया है। इसके बजाय, राष्ट्र-राज्य प्रणाली और अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर अधिक जोर दिया जाता है।


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मार्क्स की विचारधारा का अंतिम लक्ष्य है…? (1) जाति विहीन समाज (2) वर्ग विहीन समाज (3) वर्ग विहीन व राज्य विहीन समाज (4) इनमें से कोई नहीं

व्यक्ति के स्व-विषयक कार्यों में राज्य को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए यह विचार किसका है? (1) बेथम (2) ग्रीन (3) जे.एस. मिल (4) लॉक

मार्क्स की विचारधारा का अंतिम लक्ष्य है…? (1) जाति विहीन समाज (2) वर्ग विहीन समाज (3) वर्ग विहीन व राज्य विहीन समाज (4) इनमें से कोई नहीं

सही उत्तर है…

(3) वर्ग विहीन व राज्य विहीन समाज

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

विस्तृत विवरण

मार्क्स की विचारधारा का अंतिम लक्ष्य वर्ग विहीन व राज्य विहीन समाज है। यह मार्क्सवादी दर्शन का केंद्रीय तत्व है और इसे साम्यवाद की अवस्था के रूप में जाना जाता है। मार्क्स का मानना था कि समाज का विकास एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है, जो अंततः एक ऐसी स्थिति में पहुंचेगी जहां वर्ग विभाजन और राज्य की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। इस आदर्श समाज में, उत्पादन के साधनों पर सामूहिक स्वामित्व होगा, और प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार योगदान देगा तथा अपनी आवश्यकता के अनुसार प्राप्त करेगा।

मार्क्स का मानना था कि इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है, जहाँ एक वर्ग दूसरे का शोषण करता है। उनके अनुसार, पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजीपति वर्ग श्रमिक वर्ग का शोषण करता है।

मार्क्स ने भविष्यवाणी की थी कि अंततः सर्वहारा वर्ग क्रांति करेगा और एक ऐसा समाज स्थापित करेगा जहाँ उत्पादन के साधनों पर सामूहिक स्वामित्व होगा। इस वर्गविहीन समाज में आर्थिक असमानता समाप्त हो जाएगी, शोषण का अंत होगा, और सभी लोग समान होंगे। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार काम करेगा और अपनी आवश्यकता के अनुसार प्राप्त करेगा। यह समाज मानव मुक्ति का अंतिम चरण होगा, जहाँ व्यक्ति आर्थिक बंधनों से मुक्त होकर अपने पूर्ण विकास की ओर अग्रसर होगा।

मार्क्स के अनुसार, वर्ग संघर्ष समाज के विकास का प्रमुख चालक है। उनका मानना था कि पूंजीवादी व्यवस्था में मौजूद वर्ग विभाजन और शोषण अंततः एक क्रांति की ओर ले जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप मजदूर वर्ग का शासन स्थापित होगा। यह समाजवाद का चरण होगा। लेकिन मार्क्स ने इसे अंतिम लक्ष्य नहीं माना। उनका विश्वास था कि समाजवाद धीरे-धीरे एक ऐसी अवस्था में विकसित होगा जहां वर्ग भेद और राज्य की आवश्यकता स्वतः समाप्त हो जाएगी। यह वर्ग विहीन और राज्य विहीन समाज की अवस्था होगी, जहां सामाजिक संबंध पूरी तरह से समतामूलक होंगे और व्यक्तियों का पूर्ण विकास संभव होगा। इस प्रकार, मार्क्स की विचारधारा का अंतिम लक्ष्य एक ऐसे समाज की स्थापना है जहां न तो वर्ग विभाजन होगा और न ही राज्य की आवश्यकता रहेगी।

इसलिए मार्क्स की विचारधारा का अंतिम लक्ष्य वर्ग विहीन और राज्यविहीन समाज की स्थापना करना है।


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व्यक्ति के स्व-विषयक कार्यों में राज्य को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए यह विचार किसका है? (1) बेथम (2) ग्रीन (3) जे.एस. मिल (4) लॉक

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व्यक्ति के स्व-विषयक कार्यों में राज्य को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए यह विचार किसका है? (1) बेथम (2) ग्रीन (3) जे.एस. मिल (4) लॉक

सही उत्तर है…

3) जे.एस. मिल

विस्तृत वर्णन

जॉन स्टुअर्ट मिल (1806-1873) ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांत में यह विचार प्रस्तुत किया कि व्यक्ति के स्व-विषयक कार्यों में राज्य को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इस विचार के पीछे निम्नलिखित कारण हैं:

1. व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सिद्धांत: मिल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “On Liberty” में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया।
2. हानि का सिद्धांत: उन्होंने कहा कि राज्य केवल तभी किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है जब उसके कार्य दूसरों को हानि पहुंचाते हों।
3. स्व-विषयक कार्यों की परिभाषा: मिल ने स्पष्ट किया कि जो कार्य केवल व्यक्ति स्वयं को प्रभावित करते हैं, उनमें राज्य का हस्तक्षेप अनुचित है।
4. व्यक्तित्व के विकास का महत्व: उन्होंने माना कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है।
5. विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: मिल ने विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विशेष बल दिया।
6. बहुलवाद का समर्थन: उन्होंने समाज में विचारों और जीवन शैलियों की विविधता को महत्वपूर्ण माना।
7. प्रगति का आधार: मिल का मानना था कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता सामाजिक और वैचारिक प्रगति का आधार है।
8. बहुसंख्यक अत्याचार का विरोध: उन्होंने बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यकों पर अपने विचारों को थोपने का विरोध किया।
मिल के ये विचार उदारवादी दर्शन के आधार बने और आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवधारणा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


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हॉब्स के वर्णित सामाजिक समझौते से किस प्रकार का शासन स्थापित होता है : (1) निरंकुश राजतंत्र (2) लोकतंत्र (3) कुलीनतंत्र (4) इनमें से कोई नहीं

सांस्कृतिक क्रांति किसने चलाई? (1) कार्ल मार्क्स (2) माओत्से तुंग (3) लेनिन (4) इनमें से कोई नहीं

सही उत्तर है…

(2) माओत्से तुंग

विस्तृत विवरण

सांस्कृतिक क्रांति चीन में माओत्से तुंग द्वारा 1966 से 1976 तक चलाई गई एक व्यापक सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन थी। इस क्रांति के प्रमुख पहलू और कारण निम्नलिखित हैं…

1. उद्देश्य: माओ का मुख्य उद्देश्य चीनी समाज से ‘पूंजीवादी’ और ‘पारंपरिक’ तत्वों को हटाना था।
2. विचारधारात्मक शुद्धता: इसका लक्ष्य माओवादी विचारधारा को मजबूत करना और विरोधी विचारों को समाप्त करना था।
3. युवा शक्ति का उपयोग: माओ ने इस आंदोलन में युवाओं, विशेषकर लाल रक्षकों का व्यापक उपयोग किया।
4. शैक्षणिक सुधार: परंपरागत शिक्षा प्रणाली को बदलकर क्रांतिकारी शिक्षा पर जोर दिया गया।
5. सत्ता संघर्ष: यह आंदोलन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में माओ के प्रतिद्वंद्वियों को हटाने का माध्यम भी था।
6. आर्थिक नीतियां: इसके तहत ग्रामीण औद्योगीकरण और सामूहिक कृषि पर जोर दिया गया।
7. कला और संस्कृति: पारंपरिक चीनी कला और संस्कृति के कई पहलुओं को नष्ट किया गया।
8. अंतरराष्ट्रीय संबंध: इसने चीन के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी प्रभावित किया।

सांस्कृतिक क्रांति चीन के इतिहास का एक विवादास्पद अध्याय रहा है, जिसने देश की राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज पर गहरा प्रभाव डाला। यह माओ के विचारों और नेतृत्व शैली का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।


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हॉब्स के वर्णित सामाजिक समझौते से किस प्रकार का शासन स्थापित होता है : (1) निरंकुश राजतंत्र (2) लोकतंत्र (3) कुलीनतंत्र (4) इनमें से कोई नहीं

किसने हॉब्स को वैज्ञानिक राजनीति का पिता कहा है? (1) डानिंग (2) फोस्टर (3) लियो स्ट्रास (4), इनमें से कोई नहीं

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सही उत्तर है…

(1) निरंकुश राजतंत्र

विस्तृत विवरण

थॉमस हॉब्स के वर्णित सामाजिक समझौते से निरंकुश राजतंत्र की स्थापना होती है। इसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं:

1. लेवियाथन की अवधारणा: हॉब्स ने राज्य को ‘लेवियाथन’ के रूप में वर्णित किया, जो एक शक्तिशाली और निरंकुश शासक का प्रतीक है।
2. पूर्ण सत्ता का हस्तांतरण: हॉब्स के अनुसार, लोग अपनी सभी शक्तियाँ एक शासक को सौंप देते हैं।
3. अविभाज्य संप्रभुता: शासक की सत्ता अविभाज्य और असीमित होती है।
4. शासक की निरंकुशता: शासक किसी भी प्रकार के नियंत्रण या सीमाओं से मुक्त होता है।
5. प्राकृतिक अवस्था से बचाव: हॉब्स का मानना था कि केवल एक मजबूत शासक ही ‘प्राकृतिक अवस्था’ की अराजकता से बचा सकता है।
6. शांति और सुरक्षा का महत्व: निरंकुश शासक को शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक माना गया।
7. नागरिक अधिकारों का त्याग: लोग अपने अधिकारों का त्याग करके शासक को पूर्ण अधिकार देते हैं।
8. शासक के प्रति निरपेक्ष आज्ञाकारिता: नागरिकों से शासक के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता की अपेक्षा की जाती है।
हॉब्स का यह सिद्धांत 17वीं शताब्दी के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण था, लेकिन आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है। यह सिद्धांत तत्कालीन यूरोप के राजतंत्रों के औचित्य को सिद्ध करने में सहायक था।


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किसने हॉब्स को वैज्ञानिक राजनीति का पिता कहा है? (1) डानिंग (2) फोस्टर (3) लियो स्ट्रास (4), इनमें से कोई नहीं

राजनीतिक दायित्व के सिद्धान्त पर व्याखान का लेखक कौन है। (1) ग्रीन (2) हीगाल (3) प्लेटो (4) अरस्तू

आशय स्पष्ट कीजिए – देश जातियों का कब होगा, नव मानवता में रे एका, काले बादल में कल की, सोने की रेखा!

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देश जातियों का कब होगा,
नव मानवता में रे एका,
काले बादल में कल की,
सोने की रेखा!

संदर्भ : ये पंक्तिया कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ द्वारा रचित कविता काले बादल से ली गई है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने यह उम्मीद ही आशा जताने का भाव प्रकट किया है कि देश कब जातिगत भेदभाव की भावना से मुक्त हो सकेगा।

व्याख्या : कवि सुमित्रानंदन पंत स्वयं से सवाल करते हुए कहते हैं कि इस देश में जातियों के आधार पर उपजी भेदभावना कब मिटेगी? कब लोग जातिगत सोच से ऊपर उठकर मानवता के सुर में एक दूसरे को बाँध पाएंगे। कब देश के लोग एक ही जाति यानी मानव जाति को अपनी जाति बना लेंगे और एकता के सूत्र में बंध पाएंगे। वह समय कब आएगा जब जब देश ऊँच-नीच की भावना से मुक्त हो पाएगा और देश के सभी वासी एक समान भाव से रहेंगे।

कवि कहते हैं जिस तरह काले बादल में सूर्य की किरणों की एक सुनहरी सी रेखा दिखाई देती है, जो मन में आशा का संचार करती है। इसी तरह उन्हें भी भविष्य में एक आशा की किरण दिखाई दे रही है। उन्हें लगता है कि देश भविष्य जातिगद भेद से ऊपर उठकर एक दिन एकजुट होगा और सभी केव मानवता को महत्व देंगे।


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आशय स्पष्ट दीजिए- काले बादल जाति द्वेष के काले बादल विश्व क्लेश के काले बादल उठते पथ पर नव स्वतंत्रता के प्रवेश के!

आशय स्पष्ट दीजिए- काले बादल जाति द्वेष के काले बादल विश्व क्लेश के काले बादल उठते पथ पर नव स्वतंत्रता के प्रवेश के!

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काले बादल जाति द्वेष के,
काले बादल विश्‍व क्‍लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नव स्‍वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा,
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!

संदर्भ : ये काव्य पंक्तियां ‘सुमित्रा नंदन पंत’ द्वारा रचित कविता ‘काले बादल’ नामक कविता से ली गई हैं। इन काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि पंत जी ने प्रकृति के तत्वों को प्रतीक बनाकर देश की तात्कालीन परिस्थितियों का विवेचन किया है।

व्याख्या : कवि सुमित्रानंदन पंत देश की हालत पर और जातिगत भेदभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि देश में जाति पर आधारित भेदभाव की भावना कब तक रहेगी? कब तक इस संसार के लोग एक दूसरे के प्रति राग और द्वेष का भाव मन में पाले रहेंगे। देश अभी-अभी स्वतंत्र हुआ है, इस नई नवेले स्वतंत्र देश की आजादी की राह में जातिगत भेदभाव और आपसी राग-द्वेष की भावनाएं बाधा बनकर खड़ी हैं। इन बाधाओं के पार किए बिना देश आगे नही बढ़ पाएगा।

कवि ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। वह कहते हैं कि जिस तरह काले बादलों के बीच एक चाँदी सी पतली रेखा दिखाई देती है, और मन में आशा का संचार करती है। इस तरह उन्हें भी इन विभिन्न समस्याओं रूपी काले बादल के बीच उम्मीद की एक किरण भी दिखाई दे रही है और उन्हें लगता है कि भारतवासी इन सभी आपसी भेदभाव की भावना को मिटाकर देश को आगे बढ़ाएंगे।


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‘पुष्प पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूं मैं’ पंक्ति में ‘पुष्प पुष्प’ किसका प्रतीक हैं?

परिमल-हीन पराग दाग-सा बना पड़ा है, हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।” आशय स्पष्ट करें

किसने हॉब्स को वैज्ञानिक राजनीति का पिता कहा है? (1) डानिंग (2) फोस्टर (3) लियो स्ट्रास (4), इनमें से कोई नहीं

सही उत्तर:

(1) डानिंग

व्याख्या:
विलियम आर्चिबाल्ड डानिंग ने थॉमस हॉब्स को ‘वैज्ञानिक राजनीति का पिता’ कहा है। यह उल्लेख डानिंग की प्रसिद्ध पुस्तक “A History of Political Theories” में मिलता है। इस विशेषण के पीछे निम्नलिखित कारण हैं:

  • हॉब्स ने राजनीतिक सिद्धांतों के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया।
  • उन्होंने मानव समाज और राज्य को एक यांत्रिक प्रणाली के रूप में देखा।
  • हॉब्स ने राजनीतिक घटनाओं का तर्कसंगत और व्यवस्थित विश्लेषण किया।
  • उन्होंने अपने राजनीतिक सिद्धांतों में प्राकृतिक विज्ञान की अवधारणाओं का उपयोग किया।
  • हॉब्स ने राजनीतिक घटनाओं में कारण-प्रभाव संबंधों की खोज की।
  • उन्होंने मानव स्वभाव का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया।
  • राज्य की उत्पत्ति का सिद्धांत: हॉब्स ने राज्य की उत्पत्ति का एक तार्किक और व्यवस्थित सिद्धांत प्रस्तुत किया।

डानिंग का यह कथन हॉब्स के राजनीतिक दर्शन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के महत्व को रेखांकित करता है और उन्हें आधुनिक राजनीतिक विज्ञान के अग्रदूत के रूप में स्थापित करता है।

 

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राजनीतिक दायित्व के सिद्धान्त पर व्याखान का लेखक कौन है। (1) ग्रीन (2) हीगाल (3) प्लेटो (4) अरस्तू

ग्रीन के अनुसार दण्ड में निम्न में से किस तत्व का समावेश होना चाहिए: (1) प्रतिशोध (2) निवारक (3) सुधार (4) इनमें से कोई नहीं

राजनीतिक दायित्व के सिद्धान्त पर व्याखान का लेखक कौन है। (1) ग्रीन (2) हीगाल (3) प्लेटो (4) अरस्तू

सही उत्तर है…

(1) ग्रीन

विस्तृत विवरण
प्रमुख ब्रिटिश दार्शनिक और राजनीतिक विचारक ग्रीन जिनका पूरा नाम थॉमस ग्रीन था, वे ही ‘राजनीतिक दायित्व के सिद्धांत पर व्याख्यान’ (Lectures on the Principles of Political Obligation) नामक रचना के लेखस थे। हालाँकि उनकी ये रचना उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हुई थी। उनकी कोई भी रचना उनके जीवन काल में प्रकाशित हुई। उनके निधन के बाद उनके शिष्य आर. एल. नेटलशिप ने उनकी रचनाओं को प्रकाशित किया। उन्हीं रचनाओं में ‘राजनीतिक दायित्व के सिद्धांत पर व्याख्यान’ (Lectures on the Principles of Political Obligation) नामक रचना भी थी।

अतः स्पष्ट है कि ‘राजनीतिक दायित्व के सिद्धांत पर व्याख्यान’ का लेखक ‘थॉमस हिल ग्रीन’ है। यह उनके प्रमुख कार्यों में से एक है, जिसमें उन्होंने राजनीतिक दायित्व की अवधारणा को विस्तार से समझाया है। इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं:
1. ग्रीन ने राजनीतिक दायित्व को नागरिकों और राज्य के बीच एक नैतिक संबंध के रूप में परिभाषित किया।
2. उन्होंने राजनीतिक दायित्व को समाज की सामान्य इच्छा से जोड़ा।
3. ग्रीन ने राजनीतिक दायित्व को एक नैतिक बाध्यता के रूप में देखा, न कि केवल कानूनी बाध्यता के रूप में।
4. ग्रीन ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामूहिक हित के बीच संतुलन पर जोर दिया।
5. ग्रीन के अनुसार, राज्य का उद्देश्य नागरिकों के नैतिक विकास को बढ़ावा देना है।
6. ग्रीन ने सक्रिय नागरिक भागीदारी के महत्व पर बल दिया।
7. ग्रीन ने राजनीतिक दायित्व को सामाजिक न्याय के साथ जोड़ा।

ग्रीन का यह कार्य 19वीं सदी के उत्तरार्ध में ब्रिटिश राजनीतिक दर्शन में महत्वपूर्ण योगदान था। उनके विचारों ने आधुनिक लिबरल लोकतंत्र की अवधारणाओं को प्रभावित किया और राजनीतिक दर्शन में नए विचारों को जन्म दिया।

 

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ग्रीन के अनुसार दण्ड में निम्न में से किस तत्व का समावेश होना चाहिए: (1) प्रतिशोध (2) निवारक (3) सुधार (4) इनमें से कोई नहीं

सही उत्तर होगा..

(3) सुधार

विस्तृत विवरण
थॉमस हिल ग्रीन के अनुसार, दंड का मुख्य उद्देश्य अपराधी का सुधार होना चाहिए। ग्रीन का मानना था कि दंड का लक्ष्य केवल सजा देना या प्रतिशोध लेना नहीं होना चाहिए, बल्कि अपराधी को समाज का एक बेहतर सदस्य बनाने में मदद करना होना चाहिए। उनका विचार था कि:

1. सुधारात्मक दृष्टिकोण: दंड अपराधी के व्यवहार और मानसिकता में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास करना चाहिए।
2. पुनर्वास: दंड प्रणाली में अपराधी के पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए।
3. शिक्षा और कौशल विकास: दंड के दौरान अपराधी को शिक्षा और कौशल विकास के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए।
4. सामाजिक एकीकरण: दंड का उद्देश्य अपराधी को समाज में पुनः एकीकृत करना होना चाहिए।
5. नैतिक सुधार: ग्रीन का मानना था कि दंड अपराधी के नैतिक चरित्र में सुधार लाने में मदद करना चाहिए।

थॉमस हिल ग्रीन (1836-1882) एक प्रमुख ब्रिटिश दार्शनिक और राजनीतिक विचारक थे। वे आदर्शवादी दर्शन के प्रमुख प्रतिनिधि थे। ग्रीन ने नैतिकता, राजनीति, और समाज पर महत्वपूर्ण लेखन किया। उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन पर जोर दिया।

 

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राजनीतिक शक्ति बन्दूक की नली से उत्पन होती है किसका कथन है (1) माओत्लो तुंग (2) वी आई. लेनिन (3) कार्ल मार्क्स (4) इनमें से कोई नहीं

लॉक ने किस प्रकार के शासन का समर्थन किया हैः (1) निरंकुश राजतंत्र (2) संवैधानिक राजतंत्र (3) अधिनायकतंत्र (4) इनमें से कोई नहीं

राजनीतिक शक्ति बन्दूक की नली से उत्पन होती है किसका कथन है (1) माओत्लो तुंग (2) वी आई. लेनिन (3) कार्ल मार्क्स (4) इनमें से कोई नहीं

सही उत्तर होगा…

(1) माओत्से तुंग

विस्तृत विवरण
“राजनीतिक शक्ति बंदूक की नली से उत्पन्न होती है” यह प्रसिद्ध कथन चीनी क्रांतिकारी नेता और चीन के संस्थापक माओत्से तुंग द्वारा कहा गया था। चीन के प्रसिद्ध कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग जिन्हें माओ का नाम से भी जाना जाता था, उनका मानना था कि राजनीतिक परिवर्तन के लिए सशस्त्र संघर्ष आवश्यक है।
उन्होंने राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने और बनाए रखने में सैन्य शक्ति के महत्व पर जोर दिया। माओ ने वर्ग संघर्ष को क्रांति का आधार माना, जिसमें हथियारबंद संघर्ष एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने चीनी क्रांति में गुरिल्ला युद्ध तकनीकों का प्रभावी उपयोग किया। माओ ने साम्राज्यवादी शक्तियों के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध का समर्थन किया।

यह कथन माओवादी विचारधारा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और उनके क्रांतिकारी दृष्टिकोण को दर्शाता है। हालांकि, यह दृष्टिकोण विवादास्पद रहा है और इसकी आलोचना भी हुई है।

 

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लॉक ने किस प्रकार के शासन का समर्थन किया हैः (1) निरंकुश राजतंत्र (2) संवैधानिक राजतंत्र (3) अधिनायकतंत्र (4) इनमें से कोई नहीं

हॉब्स की अध्ययन शैली को क्या नाम दिया जा सकता है : (1) आर्थिक नियतिवादी (2) यांत्रिक नियतिवादी 3) ऐतिहासिक नियतिवादी (4) इनमें से कोई नहीं

 

लॉक ने किस प्रकार के शासन का समर्थन किया हैः (1) निरंकुश राजतंत्र (2) संवैधानिक राजतंत्र (3) अधिनायकतंत्र (4) इनमें से कोई नहीं

सही उत्तर है…

संवैधानिक राजतंत्र

 

विस्तृत वर्णन

जॉन लॉक ने संवैधानिक राजतंत्र का समर्थन किया। जॉन लॉक (1632-1704) ने अपने राजनीतिक दर्शन में संवैधानिक राजतंत्र का समर्थन किया। उनका मानना था कि शासन की सत्ता जनता से प्राप्त होती है और शासक को जनता के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए।

लॉक ने निम्नलिखित कारणों से संवैधानिक राजतंत्र का समर्थन किया…

  • सीमित शासन: उन्होंने शासक की शक्तियों पर संवैधानिक सीमाओं का समर्थन किया।
  • प्राकृतिक अधिकार: लॉक ने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा पर जोर दिया।
  • विधायिका की भूमिका: उन्होंने कानून बनाने के लिए एक प्रतिनिधि विधायिका का समर्थन किया।
  • शक्तियों का पृथक्करण: लॉक ने सरकार की शक्तियों के विभाजन का समर्थन किया।
  • जनता की सहमति: उन्होंने शासन के लिए जनता की सहमति के महत्व पर बल दिया।

इस प्रकार, लॉक का संवैधानिक राजतंत्र का समर्थन व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा और शासक की निरंकुशता को रोकने पर केंद्रित था।


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हॉब्स की अध्ययन शैली को क्या नाम दिया जा सकता है : (1) आर्थिक नियतिवादी (2) यांत्रिक नियतिवादी 3) ऐतिहासिक नियतिवादी (4) इनमें से कोई नहीं

भारत के संविधान में प्रदत्त 6 मौलिक अधिकारों का विस्तार से वर्णन करें।

हॉब्स की अध्ययन शैली को क्या नाम दिया जा सकता है : (1) आर्थिक नियतिवादी (2) यांत्रिक नियतिवादी 3) ऐतिहासिक नियतिवादी (4) इनमें से कोई नहीं

सही उत्तर है…

(2) यांत्रिक नियतिवादी

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

व्याख्या

हॉब्स की अध्ययन शैली को ‘यांत्रिक नियतिवादी’ कहा जा सकता है।

थॉमस हॉब्स ((Thomas Hobbes ) (1588-1679) 17वीं सदी के अंग्रेज दार्शनिक थे, जिन्होंने राजनीतिक दर्शन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी अध्ययन शैली को यांत्रिक नियतिवादी इसलिए कहा जाता है क्योंकि हॉब्स ने मानव व्यवहार और समाज को भौतिक नियमों के आधार पर समझने का प्रयास किया। उन्होंने मानव को एक जटिल मशीन के रूप में देखा जो प्राकृतिक नियमों से संचालित होती है। उन्होंने मानव व्यवहार और सामाजिक घटनाओं को कारण-प्रभाव के सिद्धांत पर आधारित माना, जो यांत्रिक प्रक्रियाओं की तरह काम करते हैं।

हॉब्स का मानना था कि मानव व्यवहार पूर्व निर्धारित नियमों द्वारा नियंत्रित होता है, जिसे समझकर भविष्य की घटनाओं का अनुमान लगाया जा सकता है। उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषण में गणितीय तर्क का उपयोग किया, जो यांत्रिक सोच को दर्शाता है। हॉब्स न्यूटन और गैलीलियो जैसे वैज्ञानिकों से प्रभावित थे, जिन्होंने प्रकृति को यांत्रिक नियमों से संचालित माना।

इस प्रकार, हॉब्स की अध्ययन शैली मानव समाज और व्यवहार को यांत्रिक नियमों और सिद्धांतों के आधार पर समझने का प्रयास करती है, इसलिए इसे यांत्रिक नियतिवादी कहा जाता है।


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भ्रष्टाचार मुक्त भारत विकसित भारत (निबंध)

भारत के संविधान में प्रदत्त 6 मौलिक अधिकारों का विस्तार से वर्णन करें।

भारत के संविधान में नागरिकों को छह मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। ये अधिकार भारतीय लोकतंत्र के आधार स्तंभ हैं। भारतीय संविधान में प्रदत्त छह मौलिक अधिकार नागरिकों के जीवन को सुरक्षित और समृद्ध बनाते हैं। संवैधानिक उपचारों का अधिकार इन सभी अधिकारों की रक्षा का माध्यम प्रदान करता है। ये अधिकार मिलकर एक स्वस्थ लोकतांत्रिक समाज की नींव रखते हैं।

स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार इस प्रकार हैं…

1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 1418)

मुख्य बिंदु
  • कानून के समक्ष समानता
  • धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध
  • सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता

समानता का अधिकार भारतीय संविधान का मूल आधार है। यह सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समान मानता है, चाहे उनकी जाति, धर्म, लिंग या जन्मस्थान कुछ भी हो। इस अधिकार के तहत सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश, रोजगार में अवसर की समानता, और अस्पृश्यता का उन्मूलन शामिल है। यह सामाजिक समानता और न्याय सुनिश्चित करता है, जिससे समाज में सभी व्यक्तियों को समान अवसर और सम्मान मिलता है।

2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 1922):

मुख्य बिंदु
  • वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  • शांतिपूर्ण सम्मेलन की स्वतंत्रता
  • संघ या संगम बनाने की स्वतंत्रता
  • भारत के किसी भी भाग में स्वतंत्र संचरण की स्वतंत्रता
  • किसी भी भाग में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता
  • कोई भी पेशा अपनाने या व्यवसाय करने की स्वतंत्रता

स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विकास का आधार है। इसमें वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सम्मेलन, संघ बनाने, देश में कहीं भी आनेजाने, निवास करने और व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता शामिल है। यह अधिकार लोकतंत्र के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने, संगठित होने और अपनी पसंद के अनुसार जीवन जीने की अनुमति देता है।

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 2324):

मुख्य बिंदु
  • मानव के दुर्व्यापार और बलात् श्रम का प्रतिषेध
  • कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध

शोषण के विरुद्ध अधिकार मानवीय गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा करता है। यह मानव तस्करी, बलात् श्रम और बाल श्रम पर रोक लगाता है। इस अधिकार का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा करना है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति दूसरों द्वारा शोषित न हो और प्रत्येक व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिले।

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 2528):

मुख्य बिंदु
  • अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता
  • धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
  • किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भारत की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को दर्शाता है। यह प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म मानने, उसका आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। इसमें धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन की स्वतंत्रता भी शामिल है। यह अधिकार सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान सुनिश्चित करता है और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देता है।

5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 2930):

मुख्य बिंदु
  • अल्पसंख्यकवर्गों के हितों का संरक्षण
  • शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार भारत की सांस्कृतिक विविधता और शैक्षिक विकास को संरक्षित करता है। यह अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार देता है। साथ ही, यह उन्हें अपनी शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित करने और प्रबंधित करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। इस अधिकार का उद्देश्य देश की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना और शिक्षा के क्षेत्र में विविधता को प्रोत्साहित करना है।

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32):

मुख्य बिंदु
  • इस अधिकार के तहत नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं
  • ये अधिकार भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करते हैं और उन्हें स्वतंत्र, समान और सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार अन्य सभी मौलिक अधिकारों की रक्षा का साधन है। यह नागरिकों को अपने अधिकारों के हनन की स्थिति में सीधे सर्वोच्च न्यायालय जाने का अधिकार देता है। इसमें रिट जारी करने की शक्ति शामिल है, जैसे बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा। यह अधिकार संविधान को जीवंत दस्तावेज बनाता है और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है।


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‘कर्तव्य एवं अधिकार’ विषय पर 250 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।​

Discuss the role of Planning Commission in India

The Planning Commission of India was established in 1950 as a non-constitutional body to promote a rapid rise in the standard of living of the people through efficient exploitation of resources. It played a crucial role in India’s economic development until its dissolution in 2014.

Key functions of the Planning Commission included:

1. Formulating Five-Year Plans: It designed comprehensive plans for economic growth and social justice, setting targets for various sectors.
2. Resource allocation: It determines the allocation of resources among different sectors and states.
3. Policy formulation: It advised the government on economic and social policies.
4. Progress evaluation: It monitored and evaluated the implementation of plans and suggested necessary adjustments.
5. Coordination: Coordination between various ministries and state governments for efficient plan implementation.

The Commission’s approach evolved over time, shifting from a Soviet-style centralized planning model to a more market-oriented approach. It played a significant role in India’s industrialization, agricultural development, and poverty alleviation efforts.’

However, the Planning Commission faced criticism for being too bureaucratic and out of touch with ground realities. It was also accused of hampering the federal structure by interfering with state-level planning.

In 2014, the Planning Commission was replaced by NITI Aayog (National Institution for Transforming India), which aims to be a more collaborative and adaptive think tank for guiding India’s development strategy.

While the Planning Commission’s legacy is mixed, it undeniably played a crucial role in shaping India’s economic policies and development trajectory for over six decades.


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The economic policies pursued by the colonial government in India were concerned more with the protection and promotion of the economic interests of their home country than with the development of the Indian economy. Critically evaluate the shortcomings of the agricultural and industrial policies pursued by the colonial administration.

In which country was a democratically elected government controlled by an absolute power?

निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए। 1. समाज की सेवा करने वाला 2. जिसमें दया न हो 3. काम करने वाला 4. जिसमें शर्म न हो 5. जिसका दोष न हो 6. जिसे पाना कठिन हो

दिए गए सभी वाक्यांशों के लिए एक शब्द इस प्रकार होंगे…

1. समाज की सेवा करने वाला व्यक्ति : समाजसेवी
2. जिसमें दया का भाव न हो, कठोर हृदय वाला : निर्दयी
3. जो लगन से काम करता हो, मेहनती :  कर्मठ
4. जिसमें शर्म या लज्जा न हो, बेशर्म : निर्लज्ज
5. जिसमें कोई दोष न हो, शुद्ध या पवित्र : निर्दोष
6. जिसे पाना कठिन हो, अत्यंत मुश्किल से मिलने वाला : दुर्लभ

शब्दों के बारे में विस्तार से…

1. समाजसेवी: समाज के हित के लिए काम करने वाला व्यक्ति। ये लोग निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करते हैं।
2. निर्दयी: दया-रहित व्यक्ति। ऐसे लोग दूसरों के दुख या कष्ट से प्रभावित नहीं होते और कठोर व्यवहार करते हैं।
3. कर्मठ: परिश्रमी और लगनशील व्यक्ति। ये लोग अपने काम को पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ करते हैं।
4. निर्लज्ज: शर्म या लज्जा से रहित व्यक्ति। ऐसे लोग समाज के नियमों या मर्यादाओं की परवाह नहीं करते। इनको सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता।
5. निर्दोष: दोष-रहित या शुद्ध। यह शब्द किसी व्यक्ति, वस्तु या कार्य की पवित्रता या निष्कलंकता को दर्शाता है।
6. दुर्लभ: जो आसानी से न मिले। यह शब्द किसी वस्तु, व्यक्ति या अवसर की कमी या मुश्किल से उपलब्धता को बताता है।


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‘देवों की वाणी’ अनेक शब्दों के लिए एक शब्द क्या होगा?

इन शब्दों के लिए अनेक शब्दों के लिए एक शब्द बताइए। ‘जो विश्वास न करता हो’ ‘जो सब पर विश्वास करता हो’ जिसके पास बहुत साधन हो’

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। क. विनोबा जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था? ख. विनोबा जी की प्रारंभिक शिक्षा कहाँ हुई? ग. विनोबा जी देश में किस प्रकार के समाज की स्थापना करना चाहते थे? घ. विनोबा जी का एकमात्र मार्ग क्या था?

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क. विनोबा जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर : विनोबा जी का जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले (अब रायगढ़ जिला) के गागोदा गांव में हुआ था।

ख. विनोबा जी की प्रारंभिक शिक्षा कहाँ हुई?

उत्तर : विनोबा जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके पैतृक गाँव में हुई। बाद में, वे वडोदरा और मुंबई में अपनी शिक्षा के लिए गए। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा मुंबई के वेलिंग्टन कॉलेज में पूरी की।

ग. विनोबा जी देश में किस प्रकार के समाज की स्थापना करना चाहते थे?

उत्तर : विनोबा जी देश में एक समानतावादी समाज की स्थापना करना चाहते थे, जहाँ सामाजिक और आर्थिक समानता हो। उन्होंने भूदान आंदोलन के माध्यम से भूमि का समान वितरण करने का प्रयास किया ताकि हर व्यक्ति को जीने का अधिकार मिल सके। उनका आदर्श समाज “सर्वोदय समाज” था, जिसका उद्देश्य था सबका कल्याण।

घ. विनोबा जी का एकमात्र मार्ग क्या था?

उत्तर : विनोबा जी का एकमात्र मार्ग अहिंसा था। वे महात्मा गांधी के अनुयायी थे और गांधीजी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाया। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने के लिए अहिंसा को अपने मुख्य हथियार के रूप में प्रयोग किया।


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दी गई कविता के आधार पर पूछ गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कविता चिडि़या को लाख समझाओ कि पिंजड़े के बाहर धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है, वहाँ हवा में उन्हें अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी। यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है, पर पानी के लिए भटकना है, यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है। बाहर दाने का टोटा है, यहाँ चुग्गा मोटा है। बाहर बहेलिए का डर है, यहाँ निर्द्वंद्व कंठ-स्वर है। फिर भी चिडि़या मुक्ति का गाना गाएगी, मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी, पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी, हरसूँ ज़ोर लगाएगी और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी। 1. धरती को बहुत बड़ी और निर्मम क्यों कहा गया है? 2. पिंजरे के अंदर दाने-पानी की क्या व्यवस्था है? 3. कौन-सी मुश्किलों के बाद भी चिड़िया मुक्त होना चाहेगी? 4. चिड़िया मुक्ति के लिए किस तरह प्रयास करेगी? 5. पिंजरे में बंद चिड़िया कैसे उड़ पाएगी ?

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए – महात्मा निराले भगत की किस बात से खुश हुए? भगत को पारस देते समय महात्मा ने उससे क्या कहा? बनिए और भगत के बीच हुई बातचीत से भगत के स्वभाव के विषय में क्या पता चलता है? गाड़ियों के समय पर न पहुँचने पर बनिए ने भगत को क्या समझाया? इस कहानी से कैसे पता चलता है कि समय अनमोल है?

नैतिक शिक्षा से क्या अभिप्राय है?

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नैतिक शिक्षा का अभिप्राय व्यक्ति को सही और गलत के बीच अंतर करने की समझ विकसित करना और समाज में सदाचारपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देना है। यह शिक्षा केवल शैक्षणिक ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय मूल्यों, नैतिकता, और सामाजिक जिम्मेदारियों का समावेश होता है। नैतिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों और युवाओं में ईमानदारी, सहानुभूति, करुणा, और अनुशासन जैसे गुणों को विकसित करना है।

नैतिक शिक्षा से व्यक्ति में अपने और दूसरों के प्रति जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न होती है। यह उन्हें समाज में एक सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती है। इसके माध्यम से लोग अपने कार्यों के परिणामों के बारे में जागरूक होते हैं और समाज के लिए हानिकारक गतिविधियों से बचते हैं। नैतिक शिक्षा के द्वारा समाज में आपसी सहयोग, प्रेम, और सद्भावना का वातावरण बनता है।

आज के समय में नैतिक शिक्षा की आवश्यकता और भी बढ़ गई है, जब समाज में नैतिक मूल्यों का पतन होता दिख रहा है। तकनीकी विकास और भौतिकवाद की बढ़ती प्रवृत्ति के बीच, नैतिक शिक्षा व्यक्ति को सच्ची खुशी और संतोष का मार्ग दिखाती है। विद्यालयों और परिवारों में नैतिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना आवश्यक है ताकि भविष्य में हम एक अच्छे और जिम्मेदार नागरिक का निर्माण कर सकें।

इस प्रकार, नैतिक शिक्षा व्यक्ति और समाज दोनों के विकास के लिए आवश्यक है। यह न केवल व्यक्तियों को बेहतर इंसान बनाती है बल्कि समाज को भी एक सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।


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महिलाओं को परेशान करने वाले असामाजिक तत्वों के खिलाफ शिकायत करते हुए थानाध्यक्ष को पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

असामाजिक तत्वों के खिलाफ थानाध्यक्ष को पत्र

 

दिनांक : 12 जुलाई 2024

सेवा में,
श्रीमान थानाध्यक्ष महोदय,
जनविहार थाना क्षेत्र,
राजनगर (हिम प्रदेश)।

विषय: महिलाओं को परेशान करने वाले असामाजिक तत्वों के विरुद्ध शिकायत

माननीय थानाध्यक्ष महोदय,

सविनय निवेदन है कि मैं रूपनगर थाना क्षेत्र की निवासी हूँ। मैं आपका ध्यान हमारे क्षेत्र में बढ़ती हुई एक गंभीर समस्या की ओर आकर्षित करना चाहती हूँ।

पिछले कुछ महीनों से, हमारे इलाके में कुछ असामाजिक तत्व महिलाओं को लगातार परेशान कर रहे हैं। यह परेशानी विशेषकर शाम के समय और सुनसान इलाकों में ज्यादा होती है। ये लोग अश्लील टिप्पणियाँ करते हैं, महिलाओं का पीछा करते हैं, और कभी-कभी शारीरिक छेड़छाड़ की कोशिश भी करते हैं।

इस स्थिति के कारण महिलाएँ और युवतियाँ असुरक्षित महसूस कर रही हैं और उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध लग रहा है। कई माता-पिता अपनी बेटियों को शाम के बाद बाहर जाने से मना कर रहे हैं, जो कि उनकी शैक्षिक और व्यावसायिक गतिविधियों को प्रभावित कर रहा है।

मैं आपसे अनुरोध करती हूँ कि इस मामले को गंभीरता से लें और निम्नलिखित कदम उठाएँ:
1. इस क्षेत्र में पुलिस गश्त बढ़ाई जाए, विशेषकर शाम और रात के समय।
2. सीसीटीवी कैमरों की संख्या बढ़ाई जाए और उनकी नियमित निगरानी की जाए।
3. महिला सुरक्षा के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया जाए।
4. स्थानीय युवाओं और समुदाय के सदस्यों को जागरूक किया जाए और उन्हें इस समस्या से निपटने में शामिल किया जाए।

आशा है आप इस संबंध में त्वरित कार्रवाई करते हुए हम निवासियों को राहत प्रदान करेंगे।

धन्यवाद।

भवदीया,
रजनी शर्मा,
जनविहार कॉलोनी,
राजनगर (हिम प्रदेश) ।


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अपने मोहल्ले से आवागमन की सुविधा नहीं है इसके लिए हरियाणा रोडवेज को पत्र लिखो।

अपने विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस मनाने हेतु विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखें।

‘प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ’ इस विषय पर एक अनुच्छेद लिखें।

अनुच्छेद

प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

 

प्राकृतिक संकट और आपदाएं मानव जीवन के लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं। ये अचानक आती हैं और अपने पीछे विनाश का एक लंबा सिलसिला छोड़ जाती हैं। बाढ़, सूखा, भूकंप, चक्रवात, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं न केवल जान-माल का नुकसान करती हैं बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डालती हैं।

इन आपदाओं से निपटने के लिए हमें पूर्व तैयारी और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन नागरिकों की भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। हमें प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना चाहिए और पर्यावरण संतुलन बनाए रखना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन के इस दौर में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है। ऐसे में वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पूर्व चेतावनी प्रणालियों का विकास, मजबूत बुनियादी ढांचे का निर्माण और आपदा प्रतिरोधी भवन निर्माण जैसे उपाय आवश्यक हैं।

समुदाय स्तर पर जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए ताकि लोग आपदा के समय सही कदम उठा सकें। अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कई आपदाएं सीमाओं को पार कर जाती हैं।

अंत में, हमें यह समझना होगा कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर ही हम इन चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना होगा ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्थिर ग्रह छोड़ सकें।


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200 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए ‘मनुष्यता क्या है?’

‘नए घर में प्रवेश’ इस विषय पर एक अनुच्छेद लिखें।

किस बात से पता चलता है कि सुंदर पिचाई की स्मरण शक्ति तेज थी?

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सुंदर पिचाई सुंदर पिचाई की स्मरण शक्ति बचपन से ही बहुत ही बेहद तेज थी। इस बात का पता उनके जीवन में घटित उस घटना से चलता है कि जब सुंदर पिचाई स्कूल में पढ़ रहे थे। एक बार सुंदर पिचाई के घर उनके एक पारिवारिक मित्र मिलने आए थे। सुंदर पिचाई के भाई को उनके पारिवारिक मित्र ने अपना फोन नंबर दिया। उनके भाई श्रीनिवासन ने अपनी पत्नी को वह नंबर लिख लेने के लिए कहा, लेकिन उनकी पत्नी वह नंबर लिखना भूल गई। उस समय सुंदर पिचाई भी वहाँ पर थे।

कुछ महीनों के बाद जब सुंदर पिचाई के भाई को उस परिचित के फोन नंबर की जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपनी पत्नी से फोन नंबर को मांगा तो पत्नी ने बताया कि वह नंबर लिखना भूल गई थी, लेकिन सुंदर पिचाई को वह नंबर याद था और भाई के पूछने पर सुंदर पिचाई ने तुरंत वह फोन नंबर बता दिया। इस तरह उन्हें अपने हर बात याद रहती थी और उनकी स्मरण शक्ति बचपन से ही बहुत तेज थी। यह घटना उनकी तीव्र स्मरण शक्ति के बारे में बताती है।


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डॉ. रमणी अटकुरी की चरित्रगत विशेषताओं पर टिप्पणी लिखें।

The economic policies pursued by the colonial government in India were concerned more with the protection and promotion of the economic interests of their home country than with the development of the Indian economy. Critically evaluate the shortcomings of the agricultural and industrial policies pursued by the colonial administration.

To critically evaluate the shortcomings of the agricultural and industrial policies pursued by the colonial government in India, we need to examine various aspects of these policies and their impacts. Let’s break this down into agricultural and industrial policies:

Agricultural Policies:

1. Land Revenue System:
• Introduction of Zamindari, Ryotwari, and Mahalwari systems
• High tax rates, often up to 50% of the produce
• Shortcoming: Led to impoverishment of peasants and frequent famines

2. Commercialization of Agriculture:
• Shift from food crops to cash crops (cotton, indigo, opium)
• Shortcoming: Reduced food security, increased vulnerability to market fluctuations

3. Lack of Investment:
• Minimal investment in irrigation and agricultural technology
• Shortcoming: Stagnation in agricultural productivity

4. Destruction of Traditional Systems:
• Dismantling of community•based land ownership
• Shortcoming: Increased indebtedness and landlessness among peasants

Industrial Policies:

1. De-industrialization:
• Destruction of traditional handicrafts and textile industries
• Shortcoming: Unemployment and loss of skilled artisans

2. One-way Free Trade:
• Allowed British goods to enter India freely while imposing high tariffs on Indian exports
• Shortcomings: Unfair competition, stunted growth of Indian industries

3. Discriminatory Railway Policy:
• Railways primarily built to transport raw materials to ports and British goods inland
• Shortcoming: Did not promote balanced regional development

4. Lack of Technological Transfer:
• Limited transfer of industrial technology to India
• Shortcoming: Hindered the growth of modern industries in India

5. Neglect of Capital Goods Industries:
• Focus on consumer goods industries rather than heavy industries
• Shortcoming: Lack of industrial self•sufficiency

6. Racial Discrimination in Employment:
• Higher positions reserved for British nationals
• Shortcoming: Limited skill development and managerial experience for Indians

Critical Evaluation:

1. Drain of Wealth: These policies resulted in a significant transfer of wealth from India to Britain, hampering India’s economic growth.

2. Structural Changes: The colonial policies fundamentally altered India’s economic structure, making it dependent on Britain for manufactured goods while reducing it to a supplier of raw materials.

3. Underdevelopment: The lack of investment in both agriculture and industry led to overall economic stagnation and underdevelopment.

4. Social Impact: These policies widened economic disparities and created a new class of landlords and moneylenders, altering the social fabric of India.

5. Long-term Consequences: The effects of these policies continued to impact India’s economy even after independence, necessitating significant efforts for industrialization and agricultural reform.

6. Some Positive Aspects: Despite the overall negative impact, some developments like the introduction of railways, modern banking, and the English education system had some positive long-term effects.

In conclusion, while the colonial administration’s policies modernized certain aspects of the Indian economy, they were primarily designed to benefit the British economy at the expense of India’s development. This approach left India with a weak industrial base, an impoverished agricultural sector, and a legacy of economic challenges that persisted well into the post-independence era.


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नव गति, नव लय, ताल-छंद नव नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव; नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे! कौन सा अलंकार है? 1. अनुप्रास अलंकार 2. यमक अलंकार 3. श्लेष अलंकार 4. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार

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नव गति, नव लय, ताल-छंद नव नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव; नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे! इस पंक्ति में अनुप्रास और यमक दोनों अलंकार हैं।

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव; नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे!

अलंकार : अनुप्राल अलंकार और यमक अलंकार

स्पष्टीकरण :

इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार और यमक अलंकार दोनो हैं।

अनुप्रास अलंकार होने के कारण

इस पंक्ति में ‘न’ वर्ण की 10 बार आवृत्ति हुई है। इसलिए यहाँ पर अनुप्रास अलंकार है।
इस पंक्ति में ‘नव’ शब्द की समान अर्थो अलग-अलग एक से अधिक आवृत्ति हुई है इसलिए इस पंक्ति में अलंकार है।

यमक अलंकार होने कारण

‘नव नभ के नव विहग-वृंद’ में
1. ‘नव’ शब्द दो बार आया है।
2. पहला ‘नव’ का अर्थ है ‘नया’, जो ‘नभ’ (आकाश) के लिए विशेषण है।
3. दूसरा ‘नव’ का अर्थ है ‘नौ’, जो ‘विहग-वृंद’ (पक्षियों के समूह) की संख्या बताता है।

इस प्रकार, ‘नव’ शब्द की पुनरावृत्ति हुई है, लेकिन दोनों स्थानों पर इसका अर्थ अलग है। यह यमक अलंकार की पहचान है।

विकल्पों में दिए अन्य दो अलंकार न होने का कारण

पुनरुक्ति प्रकाश एक समान शब्द की लगातार दो बार आवृत्ति होती है, जैसे अलग-अलग, धीरे-धीरे, झम-झम आदि। इस काव्य पंक्ति में ऐसा नही है। यहाँ कोई भी शब्द लगातार दो बार नहीं आया है, इसलिए यहाँ पर पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार नहीं है।

श्लेष अलंकार में एक शब्द के अलग-अलग अर्थ प्रकट होते हैं। यहाँ पर इस पंक्ति में ऐसा नहीं है। इसलिए इस पंक्ति मे पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार भी नही है।


Other question

‘उगलेंगे आग कारखाने, हर ओर अंधेरा छाएगा’ – पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

“कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये। हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गये पंकज नये।।”- इस पंक्ति में अलंकार है?

निम्नलिखित वाक्यों के वचन बदलकर लिखिए : 1. लड़के ने आम खाया। 2. पौधा सूख गया । 3. सभा में कवि पधारा । 4. बंदर वृक्ष पर बैठा है। 5. नौकर मॉल जा रहा है। 6. यह कमरा साफ और सुंदर है।​

वाक्यों के वचन बदलकर नए वाक्य इस प्रकार होंगे…

1. लड़के ने आम खाया।
परिवर्तित वाक्य : लड़के ने आम खाए। अथवा लड़कों ने आम खाए।

2. पौधा सूख गया ।
परिवर्तित वाक्य : पौधे सूख गए।

3. सभा में कवि पधारा ।
परिवर्तित वाक्य : सभा में कवि पधारे।

4. बंदर वृक्ष पर बैठा है।
परिवर्तित वाक्य : बंदर वृक्ष पर बैठे हैं।

5. नौकर मॉल जा रहा है।
परिवर्तित वाक्य : नौकर मॉल जा रहे हैं।

6. यह कमरा साफ और सुंदर है।​
परिवर्तित वाक्य : ये कमरे साफ और सुंदर हैं।

टिप्पणी :

जब किसी वाक्य में वचन परिवर्तन को कहा जाता है, तो उसमें वाक्यों की सरंचना के आधार पर ये देखा जाता है कि वाक्य में कर्ता या क्रिया किसका वचन परिवर्तन करना है।

सामान्यतः किसी वाक्य मे कर्ता और क्रिया दोनों का वचन परिवर्तन करना होता है, तभी वाक्य एकवचन से बहुवचन या बहुवचन से एकवचन में बदलता है।

जिस वाक्य में कोई क्रिया न हो वहाँ पर कर्ता का वचन परिवर्तित किया जाता है, जैसा अंतिम वाक्य में किया गया है।


Other questions

निम्नलिखित वाक्यों को एकवचन रूप में परिवर्तित कर दोबारा लिखिए (क) कल मेरी सहेलियाँ आई थीं। (ख) नेतागण पधार रहे हैं। (ग) तुम मुझे दोहे सुनाओ। (घ) रास्ते में गहरे गड्ढे हैं। (ङ) ये वस्तुएँ ले आइए। (च) बच्चों ने प्रश्नों के उत्तर लिखे। (छ) बिल्लियाँ, कुत्तों से डर कर भाग गईं। (ज) थालियाँ यहाँ पर मत रखो। (झ) बच्चे खेल रहे हैं। (ञ) घोड़े तेज़ी से दौड़ रहे हैं।

दिए गए शब्दों के बहुवचन लिखिए। 1. घोंसला 2. टहनी 3. तैयारी 4. नदी 5. नारी 6. लड़का 7. आँख 8. चिडिया. 9. अंडा 10. प्याली 11. घोसला 12. कपड़ा 13. ताला 14. कविता 15. चिड़िया 16. कुटिया

बच्चे ऊँच-नीच का बंधन क्यों तोड़ना चाहते हैं?

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कवि द्वारकाप्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित कविता ‘इतना ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है’ में बच्चे ऊँच-नीच के बंधन को इसलिए तोड़ना चाहते हैं क्योंकि बच्चे ऊँच-नीच का बंधन इसलिए तोड़ना चाहते हैं क्योंकि वे समानता, समरसता, और स्वतंत्रता के मूल्य को समझते हैं और उसे जीना चाहते हैं।
कविता में कहा गया है कि दुनिया को एक समान दृष्टि से देखा जाए और धरा को समता की भाव वृष्टि से सिंचित किया जाए। बच्चे स्वाभाविक रूप से निष्कपट होते हैं और सभी को समान दृष्टि से देखना चाहते हैं। वे भेदभाव और असमानता को नहीं समझते और उन्हें मिटाना चाहते हैं।
कविता में जाति-भेद, धर्म-वेश और रंग-द्वेष की ज्वालाओं से जलते जग का वर्णन है। बच्चे इन भेदभावों को समाप्त करना चाहते हैं क्योंकि वे सभी को समान मानते हैं और किसी भी प्रकार के भेदभाव को स्वीकार नहीं करते।

पूरी कविता इस प्रकार है…

इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।

देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से
जाति भेद की, धर्म-वेश की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥

नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो
नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो
नये राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
युग की नयी मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥

लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है
तोड़ो बन्धन, रुके न चिन्तन
गति, जीवन का सत्य चिरन्तन
धारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।

चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना
अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हैं प्रतिपल साथ हमारे
दो कुरूप को रूप सलोना
इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है॥


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क्या माँ के बिना बच्चे का उचित विकास हो सकता है ? क्यों? सोचकर लिखिए

धरती माता ऊँच-नीच का भेद क्यों नहीं करती ?

In which country was a democratically elected government controlled by an absolute power?

One prominent example of a country where a democratically elected government was controlled by an absolute power is Nazi Germany under Adolf Hitler.

Nazi Germany

Adolf Hitler was appointed Chancellor of Germany in January 1933.

Democratic Process: The Nazi Party gained significant power through democratic elections and political manoeuvres. In the March 1933 elections, they secured a substantial number of seats in the Reichstag (German Parliament).

Consolidation of Power: After the Reichstag Fire in February 1933, the Reichstag Fire Decree was issued, which suspended civil liberties and allowed the arrest of political opponents.

Enabling Act: In March 1933, the Reichstag passed the Enabling Act, which gave Hitler’s government the power to enact laws without the Reichstag’s consent, effectively giving him dictatorial powers.

Total Control: Over the next few years, Hitler and the Nazi Party eliminated political opposition, established a totalitarian regime, and controlled all aspects of German life, including the media, education, and the economy.

Outcome: Though initially coming to power through democratic means, Hitler’s regime quickly dismantled democratic institutions and established an absolute dictatorship.

Germany during the Nazi era (1933-1945)

  1. Adolf Hitler was initially appointed as Chancellor through democratic processes in 1933.
  2. The Nazi Party had won a significant number of seats in the Reichstag (German parliament) through elections.
  3. Hitler then used legal and extralegal means to consolidate power, eventually becoming a dictator.
  4. The Enabling Act of 1933 allowed Hitler’s cabinet to enact laws without the consent of parliament.
  5. While maintaining a facade of democratic institutions, Hitler established totalitarian control.

Other Examples

While Nazi Germany is a classic example, other instances can be found in history where democratically elected governments moved towards authoritarian control:

  • Venezuela under Hugo Chávez and Nicolás Maduro
  • Russia’s transition under Vladimir Putin
  • Turkey’s shift under Recep Tayyip Erdogan
1. Venezuela under Hugo Chávez and Nicolás Maduro:

Chávez was elected democratically in 1998, but over time, his administration and that of his successor, Maduro, concentrated power, undermined democratic institutions and suppressed political opposition.

2. Turkey under Recep Tayyip Erdoğan:

Erdoğan was democratically elected, but his administration has been criticized for eroding democratic norms, controlling the media, and consolidating power, particularly after the 2016 coup attempt.

3. Russia’s transition under Vladimir Putin

Under Vladimir Putin, Russia transitioned from a fledgling democracy to an increasingly authoritarian state. Since his rise to power in 1999, Putin has centralized control, curtailed political freedoms, and extended his influence, solidifying his rule through constitutional changes and suppression of dissent.

These examples illustrate how a democratically elected government can be subverted by an individual or party seeking absolute power. However, it’s important to note that once Hitler consolidated his power, Germany could no longer be considered a functioning democracy.


Other questions

 

What do you mean by Constitution? Why was making of the Indian Constitution not an easy affair?​

A constitution is a system of fundamental principles and established precedents according to which a state or other organization is governed. It lays down the structure, powers, and functions of the government and delineates the rights and duties of the citizens. Essentially, a constitution serves as the supreme law of the land, guiding the legal and political framework of a country.

Why Was Making the Indian Constitution Not an Easy Affair?

The making of the Indian Constitution was a complex and challenging task due to several reasons:

1. Diverse Population:

India is a country with immense diversity in terms of language, religion, culture, and ethnicity. The framers of the Constitution had to ensure that the document was inclusive and representative of all these diverse groups.

2. Colonial Legacy:

India had been under British colonial rule for almost 200 years. The transition from a colonial state to an independent democratic republic required a complete overhaul of the existing legal and administrative systems.

3. Partition of India:

The partition of India in 1947, which led to the creation of Pakistan, resulted in significant turmoil and displacement. The framers had to deal with the aftermath of partition, including refugee rehabilitation and communal tensions.

4. Socio-Economic Disparities:

India faced significant socio-economic challenges, including poverty, illiteracy, and a deeply entrenched caste system. The Constitution had to address these issues to promote social justice and equality.

5. Federal Structure:

India is a vast country with distinct regional identities. The Constitution needed to strike a balance between the powers of the central government and the states, ensuring a functional federal system.

6. Legal Traditions:

The framers had to synthesize various legal traditions, including British colonial laws, ancient Indian legal systems, and modern democratic principles.

7. Political Ideologies:

The Constituent Assembly comprised members with different political ideologies, ranging from conservative to socialist. Reaching a consensus on various provisions required extensive debate and compromise.

8. Influence of Global Ideas:

The framers were influenced by global constitutional practices and ideas. They had to adapt these to the Indian context, ensuring that the Constitution was modern yet rooted in Indian traditions.

9. Ensuring Fundamental Rights:

Guaranteeing fundamental rights to all citizens was a crucial and contentious issue. The Constitution needed to balance individual freedoms with the need for social order and progress.

10. Drafting Process:

The drafting process itself was meticulous and time-consuming. Dr. B.R. Ambedkar, the chairman of the drafting committee, and other members worked tirelessly to draft a comprehensive and coherent document.

Conclusion

The making of the Indian Constitution was a monumental task that required addressing the country’s complex social, economic, and political realities. Despite these challenges, the Constituent Assembly succeeded in creating a constitution that has withstood the test of time and continues to guide the world’s largest democracy. The Indian Constitution is celebrated for its inclusiveness, flexibility, and commitment to justice, liberty, equality, and fraternity.


Other questions

Why should we accept the constitution made by the more than 75 years ago​?

What is the difference between imperialism and nationalism?​

Why should we accept the constitution made by the more than 75 years ago​?

Our Constitution, even if made more than 75 years ago, remains relevant and significant for several reasons:

1. Foundational Framework: The Constitution provides the foundational legal and structural framework for the country. It establishes the rule of law, fundamental rights, and the separation of powers, which are essential for the functioning of a democratic society.

2. Timeless Principles: Many principles enshrined in the Constitution, such as justice, liberty, equality, and fraternity, are timeless. These values are fundamental to any society that aspires to be just and equitable.

3. Flexibility and Adaptability: Constitutions are designed to be adaptable to changing circumstances. Most constitutions include provisions for amendments, allowing the document to evolve with the times. The Indian Constitution, for example, has been amended multiple times to address contemporary issues and needs.

4. Continuity and Stability: A constitution provides continuity and stability to the governance of a country. Frequent changes or the rejection of a constitution can lead to political instability and uncertainty. Adhering to a well-established constitution ensures a stable legal and political environment.

5. Collective Wisdom: The original constitution is often a product of extensive deliberation and consensus-building. It reflects the collective wisdom of its framers, who typically include experts, leaders, and representatives from diverse backgrounds. This process ensures that the constitution considers a wide range of perspectives and interests.

6. Protection of Rights: Constitutions protect the fundamental rights and freedoms of individuals. They act as a safeguard against the arbitrary use of power by the state. Rejecting the Constitution could jeopardize these protections.

7. National Identity: The constitution often embodies the historical and cultural ethos of a nation. It serves as a symbol of national identity and unity. Accepting and adhering to the Constitution reinforces a shared sense of belonging and national pride.

8. Judicial Interpretation: Over the years, the judiciary interprets and elaborates on constitutional provisions, creating a rich body of jurisprudence. This body of judicial decisions helps in understanding and applying the Constitution in various contexts.

In summary, accepting and upholding a constitution made more than 75 years ago is essential because it provides a stable, adaptable, and enduring framework for governance. It ensures the protection of fundamental rights, maintains continuity and stability, and reflects the collective wisdom and values of the society.


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What is the difference between imperialism and nationalism?​

दुर्लभ अर्थव्यवस्था से क्या तात्पर्य है?

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दुर्लभ अर्थव्यवस्था (Scarcity Economy) से तात्पर्य उन परिस्थितियों से है जहां संसाधनों की सीमितता के कारण सभी इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करना संभव नहीं होता। इसमें सीमित संसाधनों का प्रभावी और कुशल उपयोग करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है ताकि अधिकतम संतोष प्राप्त किया जा सके।

दुर्लभ अर्थव्यवस्था (Scarcity Economy) एक ऐसी आर्थिक स्थिति को संदर्भित करती है जहाँ संसाधनों की कमी होती है। इस अवधारणा के मुख्य बिंदु हैं:

दुर्लभ अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ

1. सीमित संसाधन: प्राकृतिक संसाधन जैसे भूमि, पानी, खनिज, और ऊर्जा के स्रोत सीमित होते हैं।
2. असीमित आवश्यकताएँ: मानव की इच्छाएँ और आवश्यकताएँ असीमित होती हैं, जिन्हें सीमित संसाधनों से पूरा करना मुश्किल होता है।
3. विकल्प का चयन: दुर्लभता के कारण संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए विभिन्न विकल्पों में से एक को चुनना पड़ता है।
4. मूल्य और लागत: संसाधनों की कमी के कारण उनकी लागत बढ़ जाती है और उनका मूल्य निर्धारण महत्वपूर्ण हो जाता है।
5. अवसर लागत: किसी एक विकल्प को चुनने पर दूसरे विकल्प को छोड़ना पड़ता है, जिसे अवसर लागत कहते हैं।

उदाहरण

पानी: कई क्षेत्रों में पेयजल की सीमित उपलब्धता के कारण पानी की वितरण और उपयोग में सावधानी बरतनी पड़ती है।
तेल और गैस: जीवाश्म ईंधनों की सीमितता के कारण वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की खोज और उपयोग को प्रोत्साहित किया जाता है।

दुर्लभ अर्थव्यवस्था का मुख्य उद्देश्य होता है संसाधनों का ऐसा प्रबंधन करना जिससे सभी की आवश्यकताएँ पूरी हो सकें और भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी संसाधन संरक्षित रहें।


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अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्र के नाम बताएं और उनके बारे में विस्तार से वर्णन करें।

सौर ऊर्जा क्या है? सौर ऊर्जा के क्या-क्या उपयोग है? बिजली की तुलना में सौर ऊर्जा का उपयोग किया जाए तो उसके क्या लाभ हैं?

What do you mean by physical capital and human capital.​

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Meaning of physical capital and human capital

Physical Capital:

Physical capital refers to the man-made, tangible assets used in production. These assets are created through investment and can be used over extended periods. Examples include:

1. Factories and office buildings
2. Machinery and equipment
3. Infrastructure like roads, bridges, and ports
4. Computers and technology

Physical capital is crucial for economic growth because it increases the productive capacity of an economy. When businesses invest in better equipment or more efficient facilities, they can produce more goods and services with the same amount of labour, leading to higher productivity and economic output.

Human Capital:

Human capital encompasses the intangible assets embodied in individuals. It includes:

1. Knowledge and skills
2. Education and training
3. Health and well-being
4. Creativity and innovation capabilities

Human capital is developed through formal education, on-the-job training, work experience, and personal development. It’s considered a form of capital because, like physical capital, it requires investment (of time and resources) and can generate returns over time.

Relationship to Economic Growth:

Both physical and human capital are essential drivers of economic growth:

1. Complementary nature: Physical and human capital often work together. For example, advanced machinery (physical capital) requires skilled workers (human capital) to operate efficiently.

2. Productivity gains: Both forms of capital increase labour productivity, allowing an economy to produce more with the same amount of labour.

3. Innovation: Human capital, in particular, drives innovation and technological progress, which can lead to the development of new products, services, and more efficient production methods.

4. Long-term growth: Investments in both forms of capital can have long-lasting effects on an economy’s growth potential.

5. Quality of life: Improvements in both physical infrastructure and human capabilities can enhance the overall quality of life, which can indirectly contribute to economic growth.

Understanding the interplay between physical and human capital is crucial for policymakers and businesses when making decisions about investment and economic development strategies.


Other questions

What is the difference between imperialism and nationalism?​

अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले : निदा फ़ाज़ली (कक्षा-10 पाठ-12 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

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NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले : निदा फ़ाज़ली (कक्षा-10 पाठ-12 हिंदी स्पर्श 2)

AB KAHAN DUSRON KE DUKH SE DUKHI HONE WALE : Nida Fazali (Class-10 Chapter-12 Hindi Sparsh 2)


अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले : निदा फ़ाज़ली

पाठ के बारे में…

‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ निदा फ़ाज़ली द्वारा लिखा गया एक विचारोत्तेजक निबंध है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति पर कटाक्ष किए हैं। लेखक के अनुसार इस धरती पर प्रकृति ने सभी प्राणियों के लिए जीने का अधिकार और सुविधा दी है, लेकिन मनुष्य नाम के स्वार्थी प्राणी ने पूरी धरती को केवल अपनी ही जागीर समझ लिया है। उसने अन्य प्राणियों जैसे पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े, जीव-जंतु आदि को दर-दर भटकने के लिए विवश कर दिया है और उनके जीवन जीने के अधिकार छीन लिए। इसी कारण जीवों की नस्ल खत्म हो चुकी है, यह बहुत तेजी खत्म होने के कगार पर है। मनुष्य को दूसरों के दुख की कोई चिंता नहीं है। वह केवल अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति में ही मग्न रहता है।

लेखक के बारे में…

निदा फ़ाज़ली उर्दू के प्रसिद्ध साहित्यकार कवि रहे हैं। जिन्होंने आम बोलचाल की भाषा में शेरो शायरी लिखकर और उर्दू कविता लिखकर पाठकों के मन को छुआ है उनसे उनका जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था।  उनकी पहली पुस्तक ‘लफ्जों का पुल’ थी। उन्हें ‘खोया हुआ था कुछ’ नामक रचना के लिए  1999 का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला। अपनी गद्य रचनाओं में शेरो शायरी को पिरोकर वे थोड़े में नहीं बहुत बहुत कुछ कह जाते हैं। निदा फ़ाज़ली ने फिल्मों के लिए अनेक गीत-ग़ज़ल और शेरो-शायरी लिखी हैं। वह हिंदी फिल्मों से गहराई जुड़े रहे हैं। निदा फ़ाज़ली का निधन 8 फरवरी 2016 को हुआ।



हल प्रश्नोत्तर

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1 : बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?

उत्तर : बड़े बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे इसलिए धकेल रहे थे ताकि वह अधिक से अधिक जमीन पर कब्जा कर सकें और उस पर बड़ी-बड़ी ऊँची-ऊँची इमारतें खड़ी करके लोगों को से बेच कर ढेर सारा पैसा कमा सकें।

बड़े-बड़े बिल्डरों के लिए इमारतें बनाने के लिए जगह की कमी पड़ गई थी। जगह की कमी होने के कारण अब उन्हें समुद्र के किनारे इमारतें बनाने के लिए समुद्र को पाटने की सूझी। इसीलिए वह समुद्र को पीछे धकेल रहे थे ताकि उस जमीन को पाट कर उस पर ऊँची ऊँची इमारतें खड़ी कर सकें।


प्रश्न 2 : लेखक का घर किस शहर में था?

उत्तर : लेखक का घर मुंबई में था, उससे पहले लेखक मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रहते थे।

लेखक निदा फ़ाज़ली का घर मुंबई के अंधेरी उपनगर के वर्सोवा इलाके में था, जो कि समुद्र के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध इलाका है। लेखक मूलतः मध्यप्रदेश के ग्वालियर के रहने वाले थे, वहीं पर उनका पैतृक घर था।


प्रश्न 3 : जीवन कैसे घरों में सिमटने लगा है?

उत्तर : जीवन अब डब्बे जैसे घरों में सिमटने लगा है और लोग छोटे घरों में रहने को विवश हो गये हैं।

लेखक के अनुसार लोगों का जीवन अब डब्बे जैसे घरों में सिमट कर रह गया है। इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना और जगह का कम होना है। पहले जनसंख्या कम थी और जगह ज्यादा, इसलिए लोग बड़े-बड़े घरों में रहते थे, जिसमें दालान-आंगन आदि होते थे। बड़ा परिवार मिलजुल कर रहता था। अब एकल परिवार के दौर में और जगह की कमी के कारण लोग छोटे छोटे डिब्बे जैसे घरों में रहने के लिए विवश हो गए हैं।


प्रश्न 4 : कबूतर परेशानी में इधर-उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?

उत्तर : कबूतर परेशानी में इधर उधर इसलिए फड़ाफड़ा रहे थे, क्योंकि कबूतर के जोड़े के जो दो अंडे थे, वह दोनों अंडे फूट गए थे।

लेखक के घर के रोशनदान में एक कबूतर का जोड़ा रहता था। कबूतरी ने दो अंडे दिये तो एक अंडे को बिल्ली ने खा लिया था, तो दूसरा अंडा लेखक की माँ के गलती से गिरकर फूट गया। अपने दोनों अंडों के फूट जाने के कारण कबूतरों का जोड़ा बेचैनी में इधर-उधर फड़फड़ा रहा था।



लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए

प्रश्न 1 : अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?

उत्तर : अरब में लशकर को नूह के नाम से इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि नूह को ईश्वर का पैगंबर या दूत माना जाता है।  अरब में लश्कर नाम के एक पैगंबर हैं, जिन्हें नूह कहा जाता है। उनका वर्णन बाइबिल जैसों ग्रंथों में भी मिलता है।

नूह के दिल में अपार करुणा और दया थी। वह हमेशा दूसरों के दुख से दुखी होते थे। लेकिन उनसे भी जीवन में एक गलती हो गई। एक बार एक घायल कुत्ता उनके पास आकर खड़ा हो गया तो उन्होंने कुत्ते को दुत्कारते काटते हुए कहा, दूर हो जा गंदे कुत्ते। तब कुत्ते ने उनकी दुत्कार को सुनकर जवाब दिया कि ना तो मैं अपनी मर्जी से कुत्ता हू, ना ही तुम अपनी मर्जी से इंसान। कुत्ते की यह बात नूह के दिल को गहरे गहराई तक चोट कर गई और आगे जिंदगी अपनी इसी गलती के दुख में दुखी होकर रोते रहे।


प्रश्न 2 : लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों?

उत्तर : लेखक की माँ शाम को सूरज डूबते समय पेड़ों से पत्ते तोड़ने को मना करती थीं। लेखक की माँ कहती थीं कि शाम के समय पेड़ों से पत्ते तोड़ने से उन्हें कष्ट होता है और पेड़ रोते हैं। इसीलिए वह शाम के समय पेड़ों से पत्ते तोड़ने को मना करती थीं।लेखक की माँ दिया-बत्ती के समय भी पेड़ों से फूलों को तोड़ने को मना करती थी उनका कहना था कि ऐसा करने से फूल बद्दुआ देते हैं। लेखक की माँ लेखक को समझाती थी कि हमेशा दरिया यानी समुद्र को सलाम करो, तो समुद्र खुश होता है। पशु, पक्षियों, कबूतरों को मत सताया करो।


प्रश्न 3 : प्रकृति में आए असंतुलन को क्या परिणाम हुआ?

उत्तर : प्रकृति में आए असंतुलन का यह परिणाम हुआ है कि प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप बढ़ने लगा है। प्रकृति के असंतुलन के कारण अब गर्मी बहुत अधिक पड़ने लगी है तथा सर्दी भी अधिक पड़ने लगी है। बरसात का समय भी अनिश्चित हो गया है और समय-बेसमय बरसात होने लगी है, जिससे जनधन और फसलों को नुकसान पहुंचता है।

प्रकृति में असंतुलन के कारण समुद्री तूफानों की तीव्रता बढ़ने लगी है और जब-तब आँधी तूफान आने लगे हैंं। प्रकृति में आए असंतुलन के कारण सूखा एवं बाढ़ जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है और इसके साथ ही तरह-तरह के नए लोग भी पैदा हो रहे हैं, जो मानव के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं।


प्रश्न 4 : लेखक की माँ ने पूरे दिन का रोज़ा क्यों रखा?

उत्तर : लेखक के ग्वालियर स्थित मकान के दालान में दो रोशनदान थे, इनमें से एक रोशनदान में कबूतर का एक जोड़ा घोंसला बनाकर रहता था। कबूतर के जोड़े ने अपने घोंसले में दो अंडे दिए थे।

उन दोनों अंडों में से एक अंडा बिल्ली ने गिरा कर तोड़ दिया तो लेखक की माँ ने जब यह देखा तो उन्होंने दूसरे अंडे को बिल्ली से बचाने के लिए उसे उठाने की कोशिश की। अंडा बचाने के चक्कर में उनके हाथ से गलती से अंडा गिरकर टूट गया। यह देखकर कबूतर बेचैन होकर फड़फड़ाने लगे। उनके आँखों में दुख देखकर लेखक की माँ की आँखों में भी आंसू आ गए।

लेखक की माँ एक संवेदनशील महिला थी और पशु पक्षियों के प्रति संवेदना का भाव रखती थी, इसीलिए उन्होंने अपने कृत्य को गुनाह माना और खुदा से माफी मांगने के लिए पूरा दिन रोज़ा रखा।


प्रश्न 5 : लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक अनेक बदलावों को महसूस किया है। लेखक के अनुसार ग्वालियर से बंबई की दूरी में संसार में काफी कुछ बदल गया है। ग्वालियर का लेखक का घर बेहद बड़ा था, जहाँ पर बड़ा आंगन था। पहले के घर बड़े-बड़े होते थे और परिवार भी बड़े बड़े होते थे और परिवार के सभी सदस्य मिलजुल कर रहते थे। अब बंबई जैसे महानगरों में लोग एकल परिवार में सिमट कर रह गए हैं और डब्बेनुमा घरों में रहते हैं।

लेखक वर्सोवा स्थित जिस जगह पर रहता था, वहाँ पर पहले दूर-दूर तक घना जंगल था। वहां पर पेड़-पौधे, परिंदे और दूसरे जानवर रहते थे। अब वहाँ पर समुंदर के किनारे लंबी-चौड़ी बस्ती बन गई है और इस बस्ती के बसाए जाने के कारण कितनी ही परिंदे और जानवरों का घर छिन गया है। कुछ तो छोड़ शहर कर चले गए और जो रह गए उन्हें अपने घर के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है।


प्रश्न 6 : डेरा डालने से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : डेरा डालने का अर्थ है अस्थाई रूप से कहीं पर अपना निवास स्थान बनाना। डेरा अस्थाई घर को कहते हैं। पाठ के आधार पर अगर कहें तो मनुष्य द्वारा की जाने वाली गतिविधियों के कारण पशु पक्षियों को अपनी रहने की जगह को छोड़कर इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। यानि उन्हें अपने रहने के लिए डेरा डालना पड़ता है। पशु पक्षियों को भी रहने के लिए कोई ना कोई जगह चाहिए होती है।

मनुष्य ने हर जगह पर कब्जा बनाना शुरू कर दिया है और उसने पशु पक्षियों की जगह को भी नहीं छोड़ा है। मनुष्य ने जंगल, पेड़-पौधे आदि पर भी कब्जे करने शुरू कर दिए हैं। पहले पेड़ों पक्षी घोंसला बना लेते थे लेकिन मनुष्य में पेड़ों को भी नहीं छोड़ा तो पक्षियों को अपने घोंसले आदि के लिए इमारतों की मचाना आदि पर डेरा डालना पड़ता है, यानी उन्हें अपना अस्थाई घर बनाना पड़ता है।


प्रश्न 7 : शेख अयाज़ के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़कर क्यों उठ खड़े हुए?

उत्तर : शेख अयाज़ के पिता अपनी बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख कर भोजन छोड़कर इसलिए उठ खड़े हुए क्योंकि वह पशु-पक्षियों के प्रति बेहद संवेदनशील व्यक्ति थे। उनके हृदय में सभी प्राणियों के लिए दया एवं करुणा थी।

एक दिन जब वे स्नान करने के बाद आकर भोजन करने बैठे तो उन्होंने देखा कि एक काला च्योंटा उनके बाजू पर रेंग रहा है। यह देखकर तुरंत भोजन छोड़ कर उठ खड़े हुए। वह समझ गए यह काला च्योंटा स्नान के समय ही कुएँ से उनके साथ आ गया था। वह किसी भी यही प्राणी को उसके घर से बेघर नहीं कर सकते थे। इसीलिए वह तुरंत भोजन छोड़कर कुछ च्योंटे को उसके घर यानि कुएँ पास पहुंचाने चल पड़े, ताकि वह अपने घर से बेघर ना हो पाए।



(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए

प्रश्न 1 : बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर : बढ़ती आबादी का पर्यावरण पर बेहद बड़ा गहरा दुष्प्रभाव पड़ा है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जा रही है, पर्यावरण संकट में पड़ता जा रहा है। बढ़ती आबादी के कारण मानव की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं, संसाधन कम होते जा रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक दबाव पड़ने लगा है।

बढ़ती आबादी के कारण अधिक लोगों को बसाने के लिए अधिक जगह की आवश्यकता पड़ रही है, जिससे मानव ने जंगल पेड़-पौधे काटने शुरू कर दिए हैं और वहाँ पर ऊँची इमारतें खड़ी करनी शुरू कर दी हैं। जंगल, नदी, पर्वत, समुद्र आदि पर मानव के अतिक्रमण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।

जंगलों की कमी से स्वच्छ वायु की कमी हो रही है, बारिश में कमी आ रही है, पेड़ पौधों की कमी होने से गर्मी भी बढ़ती जा रही है। अत्यधिक वर्षा, समय-बेसमय वर्षा, आँधी, तूफान, भूकंप, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं पर्यावरण में हो रहे, इस असंतुलन का ही परिणाम है और यह पर्यावरण असंतुलन बढ़ती आबादी के कारण मानव के द्वारा प्राकृतिक जगहों पर किए जाने वाले अतिक्रमण के कारण उत्पन्न हुआ है। इसी कारण बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण दुष्प्रभाव ही पड़ा है।


प्रश्न 2 : लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली क्यों लगवानी पड़ी?

उत्तर : लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली इसलिए लगवानी पड़ी, क्योंकि लेखक के फ्लैट के मचान पर कबूतरों के एक जोड़े ने मैंने अपना डेरा जमा रखा था, यानि अपना घोंसला बना रखा था। कबूतरों ने उस घोसले में अंडे दिए और उन अंडों से बच्चे भी निकल आए थे। इसलिए कबूतर उन्हें दाना-पानी देने के लिए बार-बार आते-जाते रहते थे।

कबूतर कभी-कभी  फ्लैट के अंदर भी चले आते थे। कबूतरों की आवाजाही से लेखक और उसकी पत्नी को असुविधा होने लगी थी। कबूतर अंदर फ्लैट में लेखक की पुस्तकों को भी गंदा कर देते थे। इन सभी असुविधाओं से बचने के लिए लेखक की पत्नी ने घोंसले को थोड़ा आगे खिसका कर बीच में जाली लगा दी ताकि कबूतर अंदर ना आने पायें।


प्रश्न 3 : समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?

उत्तर : समुद्र के गुस्से की यह वजह थी कि बिल्डर लगातार उसकी जमीन को हथियाते जा रहे थे। पहले तो बिल्डरों ने लालच में उसकी जमीन को हथियाना शुरू कर दिया और समुद्र को पीछे धकेलना शुरू कर दिया। इस कारण समुद्र को पहले ऊँकड़ू को कर बैठना पड़ा, फिर भी बिल्डर आगे बढ़ते गए और समुद्र को पीछे धकेलते गए। इससे समुद्र को फिर खड़ा होना पड़ा। फिर भी बिल्डर अपनी हरकतों से बाज नहीं आए और उसकी जमीन को और हथियाते जा रहे थे।

समुद्र का आकार घटता जा रहा था, वैसे सिमटता जा रहा था। अंत में समुद्र के सब्र का बांध टूट गया और वह उसे गुस्सा आया। उसने गुस्से में आकर अपने सीने पर दौड़ते तीन जजों को अलग-अलग दिशाओं में गेंद की तरह उठाकर फेंक दिया। एक जहाज वर्ली के समुद्र के किनारे गिरा। दूसरा बांद्रा में कार्टर रोड के सामने समुद्र के किनारे गिरा तथा तीसरा जहाज गेटवे ऑफ इंडिया के सामने आकर गिरा। इस तरह समुद्र ने तीनों जहाजों को फेंककर अपना गुस्सा निकाला।


प्रश्न 4 : ‘मट्टी से मट्टी मिले,
खो के सभी निशान,
किसमें कितना कौन है,
कैसे हो पहचान’
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक के कहने का अभिप्राय यह है कि इस संसार में मनुष्य का निर्माण मिट्टी से ही हुआ है और अलग-अलग तरह के मनुष्य अलग-अलग तरह की मिट्टी से बने हैं। लेकिन यह मिट्टी आपस में मिल चुकी हैं। यानी सभी मनुष्य आपस में मिल चुके हैं, और कौन सा मनुष्य कैसा है? वह कहाँ का है? ये सब पहचान करने की कोशिश करना ही व्यर्थ है।

इसलिए मनुष्य में अब भेदभाव करना उचित नहीं और सबको मिलजुलकर ही रहना चाहिए। हर मनुष्य में गुण एवं दोषों का मेल ही होता है। किसी में गुण अधिक होते हैं जो किसी में दुर्गुण अधिक होते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों, देशों, शहरों, गाँव से आए हुए मनुष्य किसी अन्य जगह में इतना भी मिल जाते हैं, अपने मूल पहचान से ही अलग हो जाते हैं और उनमें उनकी पहचान बाकी रह गई है यह निश्चित पाना मुश्किल कार्य है और उसकी जरूरत भी नही है।



(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1 : नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था।

आशय : इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक के कहने का आशय यह है कि प्रकृति सहनशील होती है, लेकिन उसके सहन करने की भी एक सीमा है। विराम चिन्ह मानव निरंतर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहा है और वह प्रकृति के तत्वों पर अतिक्रमण करता जा रहा है प्रकृति की सहनसीमा अब टूटने लगी है और वह अपना रौद्र रूप दिखाने लगी है। प्रकृति गुस्सा होकर प्राकृतिक आपदाओं के रूप में अपने क्रोध को प्रकट करने लगी है।

ऐसे ही मानव के द्वारा किए जा रहे अतिक्रमण तथा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ से परिणाम का एक उदाहरण बंबई में तब देखने को मिला जब समुद्र ने गुस्से में आकर समुद्र के किनारे खड़े तीन जहाजों को अपनी लहरों से उछाल कर फेंक दिया और तीनों जहाज अलग-अलग जगह पर गिरे। एक वर्ली के समुद्र तट पर, दूसरा बांद्रा में कार्टर रोड के सामने के समुद्र तट पर तथा तीसरा गेटवे ऑफ इंडिया के सामने जा गिरा।

लेखक द्वारा यहाँ पर यह कहने का आशय यह था कि समुद्र द्वारा प्रकट किए क्रोध के कारण समुद्र के किनारे खड़े ये यह दुर्घटना का शिकार हुए। इसलिए मनुष्य को प्रकृति से बहुत अधिक छेड़छाड़ करने से बचना चाहिए नही तो प्रकृति इसकी इसकी सजा अवश्य देगी।


प्रश्न 2 : जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।

आशय : इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक के कहने का आशय यह है कि महान लोगों में हमेशा क्षमा करने तथा क्रोध ना आने का गुण होता है। जो व्यक्ति जितना अधिक बड़ा जितना अधिक महान होता है, उसके अंदर सहनशीलता का भी उतना ही अधिक गुण होता है। पहले तो वह क्रोध करते ही नही और किसी के द्वारा गलती करने पर उसे क्षमा कर देते हैं। क्षमाशीलता का यही गुण ही उन्हें बड़ा और महान बनाता है। ऐसे महान व्यक्ति अपितु क्रोध करते ही नहीं और यदि करते भी हैं,  तो उनका क्रोध बेहद विकराल होता है। फिर उसके सामने कोई नहीं टिक पाता।

समुद्र भी महान होता है। वह मनुष्य द्वारा की जानी वाली छेड़छाड़ को चुपचाप सहन करता रहता है और हमेशा माफ कर देता है. लेकिन जब समुद्र के सब्र का बांध टूट जाता है तो वह अपना क्रोध को विकराल रूप में प्रकट करता है। लेखक ने महान व्यक्तियों और समुद्र के इन्हीं गुणों की तुलना की है।


प्रश्न 3 : इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल लिया है।

आशय : इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने जंगलों पर मानव द्वारा किए जाने वाले अतिक्रमण तथा बढ़ते शहरीकरण पर चिंता प्रकट की है। मानव ने नई-नई बस्तियों बसाने के लिए जंगलों को नष्ट करना शुरू कर दिया है। इन जंगलों में पशु-पक्षी आदि रहते थे, जो उनके मूल घर थे।

अब यहां पर बस्तियां बस चुकी हैं, इसलिए यहां के मूलनिवासी पशु-पक्षी आदि को इस जगह को छोड़कर इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। कुछ तो यह शहर छोड़कर ही चले गये हैं और जो कुछ बचे रह गए हैं, उन्हें भी शहर में अपने आश्रय स्थल को ढूंढना पड़ रहा है और इसकी कारण यहाँ-वहाँ इमारतों आदि में अपना डेरा जमा लेते हैं।


प्रश्न 4 : शेख अयाज़ के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’ इन पंक्तियों में छिपी हुई उनकी भावना को स्पष्ट कीजिए।

आशय : शेख अयाज़ के पिता बोले, नहीं यह बात नहीं है कि मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है। उसके घर को वहाँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ। इन पंक्तियों के पीछे शेख अयाज़ के पिता की मानवीयता, प्राणियों के प्रति संवेदनशीलता, करुणा और दयालुता की भावना प्रकट होती है।

शेख अयाज़ के पिता प्राणीमात्र के प्रति दया एवं करुणा का भाव रखते थे। करुणा का मतलब केवल मनुष्य के प्रति दया-करुणा प्रकट करने से नहीं होता बल्कि संसार के हर प्राणी चाहे वह छोटा सा कीड़ा क्यों ना हो, उसके प्रति भी दया एवं करुणा का भाव अपनाना ही सच्ची दया एवं करुणा है।

हमारी दया एवं करुणा चयनित नहीं हो सकती यानी हम किसी के प्रति अपार दया एवं करुणा का भाव अपनाएं और किसी दूसरे प्राणी के प्रति निर्दयी हो जाए तो वह सच्ची दया-करुणा नहीं है।। हर प्राणी के प्रति दया एवं करुणा का भाव होना चाहिए। शेख अयाज़ के पिता एक छोटे से कीड़े के प्रति दया करुणा का भाव रखते थे। गलती से एक कीड़ा कुएँ से उनके कपड़ों के साथ चिपक उनके घर तक आ गया। अब उसे उसके घर से बेघर नहीं कर सकते थे, इसीलिए जब उन्हें वह अपने कपड़ों पर दिखा वे उसे उसके घर यानि कुएँ तक छोड़ने चले गए।



भाषा अध्ययन

प्रश्न 1 : उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों में कारक चिह्नों को पहचानकर रेखांकित कीजिए और उनके नाम रिक्त स्थानों में लिखिए; जैसे-
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 15 अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले Q1
उत्तर : कारक चिन्हों के नाम इस प्रकार होेगे..

(क) माँ ने भोजन परोसा — कर्ता कारक
(ख) मैं किसी के लिए मुसीबत नही हूँ। अधिकरण कारक
(ग) मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया कर्ता कारक, कर्म कारक
(घ) कबूतर परेशान में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे। — अधिकरण कारक
(ङ) दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो। — अधिकरण कारक, कर्म कारक


प्रश्न 2 : नीचे दिए गए शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए-
चींटी, घोड़ा, आवाज, बिल, फ़ौज, रोटी, बिंदु, दीवार, टुकड़ा।

उत्तर : बहुवचन रूप इस प्रकार होंगे…

चींटीं चीटियां 
घोड़ा — घोड़े
आवाज — आवाजें
बिल — बिलें
फ़ौज — फ़ौजें
रोटी — रोटियां
बिंदु — बिंदुएं
दीवार — दीवारें
टुकड़ा — टुकड़े


प्रश्न 3 : ध्यान दीजिए नुक्ता लगाने से शब्द के अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। पाठ में दफा’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ होता है-बार (गणना संबंधी), कानून संबंधी। यदि इस शब्द में नुक्ता लगा दिया जाए तो शब्द बनेगा ‘दफ़ा’ जिसका अर्थ होता है-दूर करना, हटाना। यहाँ नीचे कुछ नुक्तायुक्त और नुक्तारहित शब्द दिए जा रहे हैं उन्हें ध्यान से देखिए और अर्थगत अंतर को समझिए।
सजा – सज़ा
नाज – नाज़
जरा – ज़रा
तेज – तेज
निम्नलिखित वाक्यों में उचित शब्द भरकर वाक्य पूरे कीजिए-
  1. आजकल ……….. बहुत खराब है। (जमाना/जमाना)
  2. पूरे कमरे को ………… दो। (सजा/सजा)
  3. ………… चीनी तो देना। (जरा/जरा)
  4. माँ दही ………. भूल गई। (जमाना/जमाना)
  5. दोषी को ……….. दी गई। (सजा/सज़ा)
  6. महात्मा के चेहरे पर …………. था। (तेज/तेज़)

उत्तर : रिक्तस्थान की पूर्ति इस प्रकार होगी…

  1. आजकल ज़माना बहुत खराब है। (जमाना/ज़माना)
  2. पूरे कमरे को सजा दो। (सजा/सज़ा)
  3. जरा चीनी तो देना। (जरा/ज़रा)
  4. माँ दही जमाना भूल गई। (जमाना/ज़माना)
  5. दोषी को सज़ा दी गई। (सजा/सज़ा)
  6. महात्मा के चेहरे पर तेज था। (तेज/तेज़)


योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 : पशु-पक्षी एवं वन्य संरक्षण केंद्रों में जाकर पशु-पक्षियों की सेवा-सुश्रूषा के संबंध में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी अपने निकट के वन्य संरक्षण केंद्र में जाएं और वहाँ पर केंद्र के कर्ता-धर्ता कैसे कार्य करते हैं, वे पशु-पक्षियों की कैसे सेवा-सुश्रूषा करते हैंं उनसे जानकारी प्राप्त करें और उनकी कार्यविधि को देखकर समझने का प्रयास करें।



परियोजना कार्य

प्रश्न 1 : अपने आसपास प्रतिवर्ष एक पौधा लगाइए और उसकी समुचित देखभाल कर पर्यावरण में आए असंतुलन को रोकने में अपना योगदान दीजिए।

उत्तर : ये भी एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी नियमित वृक्षारोपण का संकल्प लें।


प्रश्न 2 : किसी ऐसी घटना का वर्णन कीजिए जब अपने मनोरंजन के लिए मानव द्वारा पशु-पक्षियों का उपयोग किया गया हो।

उत्तर : हमारे गाँव में हर साल एक मेला आयोजित होता था, जहाँ पशु-पक्षियों का मनोरंजन के लिए उपयोग किया जाता था। मेले में एक खास आकर्षण था – बंदरों का नाच। कुछ लोग बंदरों को पकड़कर, उन्हें कठोर प्रशिक्षण देते थे और फिर उन्हें रंग-बिरंगे कपड़े पहनाकर नचाते थे। लोग तालियां बजाते और हंसते, लेकिन वे बंदरों की पीड़ा को अनदेखा करते थे।

इसी तरह गाँव में एक और खेल में मुर्गों की लड़ाई करवाई जाती थी, जिसमें दो मुर्गों को आपस में लड़वाया जाता था। यह खेल देखने के लिए बड़ी भीड़ जुटती थी। इन गतिविधियों से पशु-पक्षियों को कष्ट होता था, लेकिन मनोरंजन के नाम पर इनकी तकलीफों की परवाह नहीं की जाती थी।


अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले : निदा फ़ाज़ली (कक्षा-10 पाठ-12 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions)


कक्षा-10 हिंदी स्पर्श 2 पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ

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पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

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‘उगलेंगे आग कारखाने, हर ओर अंधेरा छाएगा’ – पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

‘उगलेंगे आग कारखाने, हर ओर अंधेरा छाएगा’ – इस पंक्ति में अलंकार

‘उगलेंगे आग कारखाने, हर ओर अंधेरा छाएगा’

अलंकार : अतिश्योक्ति अलंकार

स्पष्टीकरण :

इस पंक्ति में ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ है। इस पंक्ति में अतिशयोक्ति अलंकार इसलिए है, क्योंकि अतिशयोक्ति अलंकार इस काव्य पंक्ति में किसी घटना का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतिश्योक्ति अलंकार किसी काव्य में तब प्रकट होता है, जब किसी काव्य में कवि द्वारा किसी घटना, प्रसंग आदि का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए।
अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा के अनुसार जब किसी घटना अथवा दृश्य आदि के भवन का वर्णन कवि द्वारा इतना बढ़ा-चढ़ाकर किया जाए कि सामान्य लोक सीमा का उल्लंघन हो जाए और बात अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत हो तो वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। इस पंक्ति में भी ‘आग उगलेंगे कारखाने, चारों ओर अंधेरा छाएगा’ के माध्यम से घटना का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन किया जा रहा है, इसलिए यहाँ पर ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ होगा।

अलंकार क्या हैं?

अलंकार वे शब्द होते हैं, जो किसी भी काव्य में सौंदर्य को बढ़ा देते हैं। अलंकार किसी काव्य के लिए आभूषण का कार्य करते हैं। जिस तरह किसी मानव के लिए आभूषण उसके सौंदर्य में वृद्धि करते हैं उसी तरह अलंकार किसी काव्य सौंदर्य में वृद्धि करते हैं।


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How human beings are different from other living things.

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Human beings are distinct from other living things in several significant ways, encompassing physical, cognitive, social, and cultural aspects.

Human beings are distinct from other living things in several significant ways. Firstly, humans possess advanced cognitive abilities, including complex reasoning, abstract thinking, and problem-solving skills that far surpass those of other species. This intellectual capacity has enabled us to develop sophisticated languages, create and use advanced tools, and build complex societies and cultures.

Humans have highly developed brains, capable of complex thought processes, problem-solving, and abstract thinking. This intelligence allows for scientific discovery, technological innovation, and sophisticated planning.

Humans have developed complex languages, both spoken and written, enabling detailed communication, expression of ideas, and preservation of knowledge across generations.

Humans possess a high degree of self-awareness and the ability to reflect on their own thoughts, emotions, and actions, leading to personal growth and ethical considerations.

Humans differ from other living beings through advanced cognitive abilities, including complex thought processes, language, self-awareness, and reflection. These abilities enable scientific discovery, technological innovation, and detailed communication. Additionally, humans have developed intricate social structures and cultures, with diverse traditions, customs, and ethical systems. This social complexity is reflected in their creation of art, music, literature, and moral debates.

Technologically, humans are distinguished by their tool-making capabilities and continuous innovation, transforming their environments through machinery, technology, and infrastructure. They experience a wide range of complex emotions and form deep relationships, extending beyond immediate kinship to include various social networks. Humans also significantly impact their environment, engaging in both conservation efforts and activities that can lead to environmental changes. Their adaptability, resilience, and formal education systems further set them apart, enabling them to thrive in diverse environments and continuously advance as a species.

Humans create intricate social structures and cultures, with diverse traditions, customs, laws, and institutions. These cultural elements shape human behaviour and societal organization.

Humans develop and follow moral and ethical systems, debating concepts of right and wrong, justice, and fairness.

Humans express themselves through art, music, literature, and various forms of creative expression, reflecting and shaping cultural identities.Humans continuously innovate, developing new technologies and methods to solve problems, improve living standards, and explore beyond their immediate environment, such as space exploration.


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When I experienced a violation of my dignity

As a student, I once experienced a violation of my dignity during a class presentation. I had worked hard on my project, but when I stood up to present, my teacher interrupted me repeatedly, making dismissive comments about my work in front of the entire class. She criticized not just my ideas, but also my speaking style and even my appearance.

This experience left me feeling humiliated and devalued. My cheeks burned with embarrassment as I struggled to continue, aware of my classmates’ uncomfortable glances. I felt as if my effort and worth as a student were being completely disregarded.

In the days that followed, I struggled with self-doubt and anxiety about participating in class. The incident made me realize how crucial it is for authority figures to treat others, especially those under their care, with respect and kindness. It also taught me the importance of standing up for myself and others when faced with unfair treatment, as preserving dignity is essential for everyone’s well-being and self-esteem.

 

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अपने मित्र को पत्र लिखें जिसमें हिन्दी भाषा का महत्व और लाभ बताए गए हों।

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हिंदी भाषा का महत्व बताते हुए मित्र को पत्र

 

दिनाँक – 10/7/2024

यशोधा निवास, नन्द विहार,
वृंदावन, उत्तम प्रदेश – 123456,

प्रिय मित्र शिवम,

सप्रेम ! आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि तुम स्वस्थ और आनंद से होंगें । कई दिनों से तुम्हें पत्र लिखने की सोच रहा था, लेकिन थोड़ी व्यस्तता के कारण समय नहीं निकल पा रहा था । आज अपने कार्य को थोड़ा विराम देकर मैंने तुम्हें यह पत्र लिखने का मन बना ही लिया है । मेरा आज यह पत्र लिखने का एक विशेष कारण है। मैं जनता हूँ कि तुम विलायत से पढ़ कर आए हो और तुम्हें हिन्दी भाषा का अधिक ज्ञान नहीं है पर तुम एक भारतीय हो और तुम्हें हिन्दी भाषा का ज्ञान होना चाहिए। आज में तुम्हें हिन्दी भाषा के बारे में कुछ विशेष जानकारी दे रहा हूँ ।

हिंदी एक भाषा नहीं भारत की पहचान है | यह हमारे नैतिक मूल्यों, संस्कारो और संस्कृति का प्रतीक है। यह सरल सहज और समझने की दृष्टि से बहुत ही सुगम भाषा है। यह विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओ में तीसरे स्थान पर आती है । इस आधार पर ही हम इसके महत्व को समझ सकते है।

भारत की मूल भाषा तथा हमारी संस्कृति की आन बान शान दुनिया की प्राचीनतम भाषाओ में से एक भाषा हिंदी है। हिंदी हम भारतीयों की पहचान है। हिन्दी भाषा को 14 सितम्बर 1949 को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। भारत में राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा का दर्जा दोनों हिंदी को ही प्राप्त है । भारतीय संस्कृति तथा भारतीयता का दुनियाभर में परचम लहराने में हिंदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिंदी के आधार पर हम भारतीयों को एक अलग पहचान का दर्जा मिलता है । पर आज हमारी इस मातृभाषा के महत्व को हम भुलाकर विदेशी भाषओं को अपना रहे है । हमारे देश की मातृभाषा के ज्ञाता को हम गंवार और विदेशी भाषाओं के ज्ञाता को हम ज्ञानी मानते है ।

यह हमारे लिए बड़ी विडबंना की बात है कि हम अपनी मातृभाषा से दूर होते जा रहे हैं। हमे जीवन में हिंदी को अपनाकर इसका विकास करना चाहिए । सरकार द्वारा हिंदी के विकास के लिए उठाए जा रहे कदम कारगर साबित हो रहे है । लगातार प्रयासों से कंप्यूटर में हिंदी भाषा को जोड़ने से कार्य आसानी से किया जा रहा है । जो हम भारतीय लोगो के लिए तथा हिंदी भाषी लोगो के लिए उपयोगी साबित हुआ है |

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पोती ⦂ दादा जी आपने कितनी कक्षा तक पढ़ाई की है?

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दादी ⦂ बेटी मैं केवल आठवीं तक पढ़ी हूँ, लेकिन हमारे जमाने में 8वीं तक पढ़ाई कर पाना भी बहुत बड़ी बात होती थी।

पोती ⦂ दादा जी आप के समय में लोग ज्यादा क्यों नहीं पढ़ते थे।

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दादा ⦂ हाँ बेटी, मैं दसवीं पास करने के बाद अपने गाँव में पटवारी बना था और लंबे समय तक पटवारी का काम किया। उसके बाद मैं नौकरी छोड़कर खेती के काम में लग गया।

पोती ⦂ दादी, आप अपने घर से स्कूल कैसे जाती थी?

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दादा ⦂ बेटी, ऐसा नहीं हो सकता। परिवर्तन समय का नियम है। बीता समय वापस नहीं आता।


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स्कूल पिकनिक पर जाने हेतु माँ और पुत्री के बीच हुए संवाद को लिखें।

पाठशाला के चपरासी का साक्षात्कार वाला संवाद लिखें।

200 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए ‘मनुष्यता क्या है?’

अनुच्छेद लेखन

मनुष्यता क्या है?

 

मनुष्यता से तात्पर्य उस आचरण और व्यवहार से है, जो मानव में ही पाया जाता है, पशुओं में नहीं। कुछ संवेदनात्मक व्यवहार प्रकृति ने केवल मनुष्य के लिए ही प्रदान किए हैं। यह संवेदनात्मक व्यवहार एवं आचरण जो कि मनुष्य के अंदर ही पाए जाते हैं, वही मनुष्यता कहलाती है। यह संवेदनात्मक आचरण और व्यवहार हैं, दया, प्रेम, करुणा, विचारशीलता, बुद्धिमत्ता, संस्कार और सभ्यता आदि। यह सभी मानवीय संवेदनाएं और मानवीय आचरण कहलाते है, जो मनुष्य में पाई जाती है। इन्हीं सभी गुणों और व्यवहारों का समूह ही मनुष्यता है। जो व्यक्ति इन सभी गुणों से रहित होता है, वह मनुष्य होकर भी पशु के समान है।

संसार के सभी प्राणियों में केवल मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है, जो अपने भोजन-पानी इतर भी बहुत कुछ कार्य  करता है। संसार के अन्य संभी प्राणी केवल अपने भोजन की तलाश करने और अपने भोजन को करने में ही अपना जीवन व्यतीत कर देते है। भोजन के अतिरिक्त उनका अन्य कोई कार्य नहीं होता। जबकि मनुष्य के अंदर संवेदनाएं, बुद्धि और विचारशीलता भी होती है, जिनके आधार पर अपने भोजन के प्रबंध करने के अतिरिक्त भी अनेक कार्य करता है। इसीलिये मनुष्य इस संसार के सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, जिसमें अनेक विशिष्ट गुण पाए जातें है। यही गुण उसे मनुष्यता की पहचान देते हैं।

इसीलिए जिस व्यक्ति के अंदर ऐसे गुणों का अभाव पाया जाता है उसे अक्सर कह देते हैं, कि उसके अंदर मनुष्यता नहीं बची।


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‘नए घर में प्रवेश’ इस विषय पर एक अनुच्छेद लिखें।

जब मैं बारिश में भीगा… (अनुच्छेद)

Soumen was never late. (Affirmative)

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The affirmative form of ‘Soumen was never late’ is:

Affirmative: Soumen was always on time.

Explanation:

To convert this sentence from negative to affirmative, we need to replace the negative word ‘never’ with its positive equivalent. In this case, ‘never late’ becomes ‘always on time.’

This transformation maintains the original meaning of the sentence while expressing it in a positive way. Both versions convey that Soumen consistently arrived at the expected or designated time, without fail.

The change from negative to affirmative often involves:
1. Identifying the negative element (in this case, ‘never’)
2. Finding an appropriate positive equivalent (‘always’)
3. Adjusting the rest of the sentence to fit the new structure

This process preserves the core meaning while shifting the sentence’s construction from a negative statement to a positive one.


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What do we understand by the words ‘took the teacher apart’?

Write a paragraph on Charles Dickens (300 words)

What do we understand by the words ‘took the teacher apart’?

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The phrase ‘took the teacher apart’ is an idiomatic expression that doesn’t mean literally dismantling the teacher. Instead, it has a figurative meaning:

1. Primary meaning: To criticize or reprimand severely
In this context, it likely means that someone (probably a student, parent, or administrator) strongly criticized or scolded the teacher. They may have pointed out flaws, mistakes, or issues with the teacher’s performance or behaviour in a harsh or detailed manner.

2. Secondary meaning: To question intensely or thoroughly
It could also mean that someone interrogated the teacher extensively, asking many probing questions about a particular issue or situation.

3. Informal usage: To defeat thoroughly (in a debate or argument)
In some cases, it might mean that someone comprehensively won an argument against the teacher, countering all their points effectively.

The exact interpretation would depend on the broader context in which this phrase is used. It’s generally understood to be a negative experience for the teacher, implying they were on the receiving end of severe criticism or intense scrutiny.


Other questions

Write a paragraph on Charles Dickens (300 words)

Write an essay about ‘Save Water’

Write a paragraph on Charles Dickens (300 words)

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Paragraph

Charles Dickens

 

Charles Dickens, born on February 7, 1812, in Portsmouth, England, is widely regarded as one of the greatest novelists of the Victorian era. His works, characterized by vivid characters, social criticism, and compelling narratives, have left an indelible mark on English literature and popular culture. Dickens’ writing career began as a journalist, but he quickly rose to fame with the serialized publication of ‘The Pickwick Papers’ in 1836. This success paved the way for a prolific career that produced numerous classics, including ‘Oliver Twist,’ ‘A Christmas Carol,’ ‘David Copperfield,’ and ‘Great Expectations.’

Dickens’ novels often reflected the harsh realities of 19th-century England, particularly the struggles of the working class and the poor. His own experiences of poverty and child labour, when he was forced to work in a factory at the age of 12 due to his father’s imprisonment for debt, deeply influenced his writing. This personal connection to hardship imbued his works with a sense of authenticity and compassion that resonated with readers across social classes.

As a social reformer, Dickens used his platform to criticize the injustices of his time, including child labour, the failings of the legal system, and the squalid conditions in urban slums. His detailed descriptions and memorable characters brought these issues to life for his readers, often spurring public debate and contributing to social change.

Dickens’ writing style was notable for its humour, pathos, and intricate plots. He excelled at creating unforgettable characters, from the miserly Ebenezer Scrooge to the tragic Sydney Carton, that have become iconic figures in literature. His ability to blend comedy and tragedy, often within the same work, showcased his deep understanding of the human condition.

Beyond his novels, Dickens was also a popular public speaker and performer, often giving dramatic readings of his works to enthusiastic audiences. His influence extended far beyond literature, impacting social reform, journalism, and even the celebration of Christmas, which was revitalized in part due to the popularity of ‘A Christmas Carol.

‘Charles Dickens passed away on June 9, 1870, leaving behind a legacy that continues to inspire and entertain readers worldwide. His works remain relevant today, adapted countless times for stage and screen, and studied in schools and universities across the globe.


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Write an essay about ‘Save Water’

When Rabindra’s Mother passed away he was inconsolable. (Change to negative)

Write an essay about ‘Save Water’

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Essay

Save Water

 

Water is an essential resource for all life on Earth, yet it’s often taken for granted. The importance of conserving water cannot be overstated, as freshwater scarcity is becoming an increasingly critical issue worldwide. Saving water is not just an environmental concern; it’s a matter of survival for future generations.

There are numerous ways individuals can contribute to water conservation. Simple habits like turning off taps while brushing teeth or shaving, fixing leaky faucets, and using water-efficient appliances can significantly reduce household water consumption. In our gardens, choosing drought-resistant plants and collecting rainwater for irrigation can make a substantial difference.

On a larger scale, industries and agriculture need to adopt water-saving technologies and practices. Governments should implement policies that encourage water conservation and invest in infrastructure to prevent water loss through leakage and inefficient distribution systems.

Education plays a crucial role in promoting water conservation. Raising awareness about the importance of water and teaching sustainable water use practices in schools and communities can lead to long-term behavioural changes.

By saving water, we not only preserve a vital resource but also reduce energy consumption associated with water treatment and distribution. This, in turn, helps combat climate change. Every drop saved contributes to a more sustainable future, ensuring that clean water remains available for generations to come.

Ultimately, saving water is a collective responsibility. By making conscious efforts to use water wisely, we can make a significant impact on preserving this precious resource for our planet and its inhabitants.


Other questions

Write an essay on the topic – ‘Disadvantages of social media in student’s life.​’

Essay on Rabindranath Tagore in 200 words.

When Rabindra’s Mother passed away he was inconsolable. (Change to negative)

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The negative form of the sentence is:

Original sentence: When Rabindra’s Mother passed away he was inconsolable.
Negative sentence: When Rabindra’s Mother passed away he was not consolable.

Explanation:

To change this sentence to negative, we focus on the adjective ‘inconsolable.’ The prefix ‘in-‘ in ‘inconsolable’ already makes it negative, meaning ‘not able to be consoled or comforted.’ To negate this, we remove the prefix ‘in-‘ and add ‘not’ before the adjective.

how does you feel when you came to know that your old class teacher is now not your class teacher write in diary entry​.

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Diary Entry

When my class teacher was no longer my class teacher.

 

10 July 2024 (9.30 PM)

Dear Diary,

Today, I received some unexpected news that has left me with mixed emotions. Ms. Malti, who has been our class teacher at City Girls School, Shimla, for so long, will no longer be teaching our class. I’m not sure how to feel about this change.

On one hand, I’m sad because Ms. Malti has been such an important part of our school lives. Her kind smile, patient explanations, and encouraging words have guided us through so many challenges. I’ll miss her unique way of making even the most difficult subjects interesting.

Yet, I’m also curious about who our new class teacher will be. Will they be as understanding as Ms. Malti? Will they have new teaching methods that might be exciting?

I’m grateful for all Ms. Malti has taught us, both in academics and life lessons. While change can be uncomfortable, I hope this transition brings new opportunities for growth. I’ll always cherish the memories of Ms. Malti’s classes.

Karuna,
Shimla


Other questions

Did you help any animal ? and how?

Your friend wants to visit Rajasthan for a trip. Write an E-mail to your friend giving the knowledge about Rajasthan.

Did you help any animal ? and how?

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Memoirs

Once I helped a Cow

 

Yes, I once helped a cow in distress. While walking home one evening, I noticed a cow that had wandered onto a busy road. The animal seemed confused and frightened by the honking vehicles, putting both itself and drivers at risk. Recognizing the danger, I cautiously approached the cow, speaking softly to calm it. Using gentle gestures and a soothing voice, I managed to guide the cow towards the side of the road. It took some patience, but eventually, I led it to a nearby field where it could graze safely.

Once the cow was secure, I contacted the local animal welfare organization to inform them about the situation. They arrived shortly after to check on the animal’s well-being and locate its owner. The experience left me feeling grateful for the opportunity to help a creature in need and reinforced the importance of being aware of and compassionate towards the animals we share our environment with. It was a small act, but one that potentially prevented harm to both the cow and passing motorists.


Other questions

Your friend wants to visit Rajasthan for a trip. Write an E-mail to your friend giving the knowledge about Rajasthan.

Which of the following is a synonym for ‘eager’? a) hesitant b) enthusiastic c) lazy d) indifferent

‘निराला की साहित्य साधना’ के लेखक हैं : (i) सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (ii) महादेवी वर्मा (iii) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ (iv) डॉ. राम विलास शर्मा

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सही विकल्प होगा :

(iv) डॉ. राम विलास शर्मा

विस्तृत विवरण

‘निराला की साहित्य-साधना’ एक जीवनी है, जिसकी रचना हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार ‘रामविलास शर्मा’ ने की है।

‘निराला की साहित्य-साधना’ नामक इस रचना के लिए रामविलास शर्मा को 1970 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है।

रामविलास शर्मा द्वारा रचित ‘निराला की साहित्य-साधना’ नामक जीवनी का प्रकाशन तीन खंडों में हुआ। पहले खंड का प्रकाशन 1969 में, द्वितीय खंड का प्रकाशन 1972 में तथा तीसरे खंड का प्रकाशन 1976 में हुआ था। इस जीवनी के तीनों खंडों में सबसे प्रसिद्ध खंड प्रथम खंड ही रहा है, जिसमें रामविलास शर्मा निराला के जीवन के अंतरंग पलों के बारे में विस्तृत विवेचन किया है। द्वितीय खंड में उन्होंने निराला के कृतित्व की बात की है और उनकी रचनाओं का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है। तृतीय खंड में उन्होंने निराला द्वारा लिखे गए पत्रों का संग्रह प्रस्तुत किया है।

रामविलास शर्मा हिंदी पर जाने-माने साहित्यकार कवि रहे हैं। उनका जन्म 10 अक्टूबर 1912 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के ऊँचगाँव नामक गाँव में हुआ था उन्होंने अनेक आलोचनात्मक ग्रंथ, भाषा समाज और भाषा विज्ञान पर आधारित पुस्तकें, इतिहास समाज और संस्कृति तथा दर्शन पर आधारित पुस्तकें, कविता, नाटक, उपन्यास, आत्मकथा, साक्षात्कार, पत्र संवाद, संपादकीय जैसी कृतियों की रचना की। उनका निधन 30 मई 2000 को हुआ।


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‘कलम का सिपाही’ किस विधा की रचना है?

‘बाबू गुलाब राय’ की रचना ‘मेरी असफलताएं’ किस विधा की रचना है?

Your friend wants to visit Rajasthan for a trip. Write an E-mail to your friend giving the knowledge about Rajasthan.

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Informal Letter (E-mail writing)

E-mail to the friend giving information about Rajasthan

To: sunita.singh226@gmail.com
From: mitali.sharma83@gmail.com

Subject: Exploring the Royal State of Rajasthan

Dear Sunita,

I hope this email finds you in great spirits! I heard you are planning a trip to Rajasthan, and I couldn’t be more excited for you. Rajasthan, the Land of Kings, is a vibrant state full of rich history, stunning architecture, and diverse culture.

I have visited Rajasthan twice, so I know a lot about Rajasthan. I want to share this knowledge with you. I have a brief guide to help you make the most of your trip.

Major Attractions

1. Jaipur (The Pink City)
Amber Fort: A majestic fort with a blend of Hindu and Mughal architecture.
City Palace: A beautiful palace complex with museums showcasing royal artifacts.
Hawa Mahal: The iconic “Palace of Winds” with its unique honeycomb design.

2. Udaipur (The City of Lakes)
City Palace: Overlooking Lake Pichola, it offers a fascinating insight into the Mewar dynasty.
Lake Pichola: Take a boat ride to enjoy the scenic beauty.
Jag Mandir: An exquisite palace on an island in Lake Pichola.

3. Jaisalmer (The Golden City)
Jaisalmer Fort: One of the largest forts in the world, still inhabited by locals.
Sam Sand Dunes: Experience the Thar Desert with a camel safari and cultural performances.
Patwon Ki Haveli: A cluster of five havelis with intricate carvings and architecture.

4. Jodhpur (The Blue City)
Mehrangarh Fort: A massive fort with a museum, offering a panoramic view of the city.
Umaid Bhawan Palace: A part palace, part museum, and part luxury hotel.
Clock Tower and Sardar Market: A bustling market to experience local life and shop for souvenirs.

5. Ranthambore National Park
Ideal for wildlife enthusiasts, it’s one of the best places to spot tigers in their natural habitat.

Cultural Experiences

Local Cuisine: Don’t miss out on Dal Baati Churma, Ghevar, and Pyaaz Kachori. Each city has its own specialty, so be sure to try local dishes.

Folk Music and Dance: Enjoy performances of Ghoomar, Kalbeliya, and traditional Rajasthani music.
Shopping: Rajasthan is famous for its handicrafts, textiles, jewelry, and pottery. Johari Bazaar in Jaipur and Clock Tower Market in Jodhpur are mustvisits.

Best Time to Visit

The best time to visit Rajasthan is during the cooler months from October to March. The weather is pleasant, making it ideal for sightseeing and exploring.

Travel Tips

Rajasthan can be quite hot, especially in summer. Carry water and stay hydrated. Light, cotton clothes are best. However, some religious sites require modest clothing.

Rajasthan is a popular tourist destination, so it’s wise to book accommodations and major attractions in advance.

I hope this information helps you plan an amazing trip to Rajasthan. If you need any more details or have specific questions, feel free to ask.

Have a fantastic journey and make sure to share your experiences when you get back!

Warm regards,

Mitali


Other questions

Write a letter to the editor of the newspaper about complaining the government hospital.

What makes you happy when you’re sad?​ Write your thoughts on this topic

Underline the simple adverb in each sentence. Tell its kind too 1. I gladly accept her offer. 2. I had fever yesterday. 3. She seldom comes to see us. 4. She is too tired to complete the project. 5. Send the peon here. 6. Do things slowly, but surely. 7. I can speak English well. 8. This is somewhat true. 9. Do it now. 10. We pray to God daily.

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These are the sentences with the simple adverbs identified and their types:

1. I gladly accept her offer.
Answer: I gladly accept her offer. – Adverb of Manner

2. I had fever yesterday.
Answer: I had fever yesterday. – Adverb of Time

3. She seldom comes to see us.
Answer: She seldom comes to see us. – Adverb of Frequency

4. She is too tired to complete the project.
Answer: She is too tired to complete the project. – No simple adverb
(‘too’ is an adverb of degree, but it’s not considered a simple adverb in this context as it’s part of the construction “too…to”.)

5. Send the peon here.
Answer: Send the peon here. – Adverb of Place

6. Do things slowly, but surely.
Answer: Do things slowly, but (surely). – Adverbs of Manner

7. I can speak English well.
Answer: I can speak English well. – Adverb of Manner

8. This is somewhat true.
Answer: This is somewhat true. – Adverb of Degree

9. Do it now.
Answer: Do it now. – Adverb of Time

10. We pray to God daily.
Answer: We pray to God daily. – Adverb of Frequency


Other questions

He said to me, “We are players.” Change into indirect speech.

Which of the following is a synonym for ‘eager’? a) hesitant b) enthusiastic c) lazy d) indifferent

He said to me, “We are players.” Change into indirect speech.

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The sentence in indirect speech would be:

Direct speech: We are players.
Indirect speech: He told me that they were players.

Explanation:

When converting direct speech to indirect speech, several changes occur:

1. Quotation marks are removed.
2. The reporting verb ‘said’ changes to ‘told’ when there’s an indirect object (me).
3. The pronoun ‘we’ changes to ‘they’ to maintain the perspective of the original speaker.
4. The verb ‘are’ changes to ‘were’ due to backshifting, which occurs when the reporting verb is in the past tense.

Backshifting is a key concept in indirect speech. When the reporting verb is in the past tense (as ‘said’ is here), the tense in the reported speech typically shifts back to one tense. In this case, present simple ‘are’ becomes past simple ‘were’.

This transformation preserves the original meaning while adapting it to the structure of reported speech.


Other questions:

Which of the following is a synonym for ‘eager’? a) hesitant b) enthusiastic c) lazy d) indifferent

Which of the following is a synonym for ‘eager’? a) hesitant b) enthusiastic c) lazy d) indifferent

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The correct answer is:

b) enthusiastic

 

Explanation:

‘Enthusiastic’ is a synonym for ‘eager’ because both words convey a sense of keen interest, excitement, and readiness to engage in something.

These terms describe a positive and energetic attitude towards an activity, idea, or opportunity. When someone is eager or enthusiastic, they show a willingness and desire to participate or get involved. Both words imply a proactive and passionate approach.

The other options are not synonyms:

‘Hesitant’ implies reluctance or uncertainty, opposite to eagerness.
‘Lazy’ suggests a lack of energy or motivation, contrary to the active nature of eagerness.
‘Indifferent’ means lacking interest or concern, which is the antithesis of being eager.

‘Enthusiastic’ best captures the zeal and fervour associated with eagerness, making it the most suitable synonym among the given options.


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When we got to Terminal 2, the flight from London a) had already landed b) had already been landing c) already landed d) was already landing

Write a letter to the editor of the newspaper about complaining the government hospital.

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Formal Letter

Letter to the editor complaining about a government hospital:

 

Date: 9/7/2024

 

To,
The Editor,
The Himachal Times,
Shimla.

Dear Editor,
I am writing to express my deep concern about the deplorable conditions at City General Hospital, our primary government healthcare facility. As a citizen and frequent visitor to the hospital, I feel compelled to bring these issues to public attention.

The hospital is severely understaffed, leading to long wait times and overworked medical personnel. Patients often wait hours, sometimes days, for essential treatments. The shortage of doctors and nurses compromises the quality of care provided.

Additionally, the hospital’s infrastructure is crumbling. Many wards lack basic amenities like clean bedding and functioning bathrooms. The hygiene standards are alarmingly low, posing a risk of secondary infections to already vulnerable patients.

The pharmacy frequently runs out of essential medicines, forcing patients to purchase them at higher prices from private pharmacies. This defeats the purpose of a government hospital meant to serve the economically disadvantaged.

I urge the health department to take immediate action to address these issues. Increased funding, better management, and stricter oversight are desperately needed to improve the hospital’s conditions.

I hope that through this letter the concerned authorities will definitely pay attention to this problem and the condition of the district hospital of our city will improve.

Sincerely,
Abhay Raizada,
Shimla (HP)


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Write a shore essay on the importance of healthy eating habits.

What is the difference between imperialism and nationalism?​

Imperialism and nationalism are two distinct political and social concepts with different objectives, ideologies, and historical impacts. Here are the key differences between the two:

Imperialism

Imperialism is a policy or ideology where a nation extends its power and influence over other countries through colonization, military force, or other means.

Objective

Its main objectives are to expand territorial control and establish economic dominance. Imperialism exploits resources and labour from the colonized territories. Its spread the imperial nation’s culture, religion, and political systems.

Characteristics

It often involves the establishment of colonies or protectorates. It imposes the imperial power’s political, economic, and social structures on the colonized region. It frequently leads to the suppression and exploitation of indigenous populations. It can involve direct control or influence through puppet governments.

Historical Examples

The British Empire, which controlled vast territories across Africa, Asia, and the Americas is the main example of imperialism. The Spanish and Portuguese empires in Latin America are another example of imperialism. The French Empire in Africa and Southeast Asia is also an example of imperialism.

Nationalism

Nationalism is a political and social ideology that emphasizes the interests, culture, and values of a particular nation or group of people, often in opposition to foreign influence or control.

Objectives

Its main objectives are to promote national unity and independence. Its objectives are also to preserve and celebrate the nation’s culture, language, and heritage. It achieves self-determination and political sovereignty for the nation.

Characteristics

It Advocates for the right of people to self-govern and determine their own political status. It Can be a unifying force, bringing people together based on shared identity and common goals. It May manifest as movements for independence, cultural revival, or political reform.
It can sometimes lead to exclusionary or xenophobic attitudes towards other nations or groups.

Historical Examples

The American Revolution, was when the American colonies sought independence from British rule. The Indian independence movement led by figures like Mahatma Gandhi, aimed to end British colonial rule in India. The unification of Germany and Italy in the 19th century was driven by nationalist sentiments.

Key Differences

1. Motivation:

Imperialism: Driven by the desire for expansion, control, and economic gain.
Nationalism: Driven by the desire for self-determination, cultural preservation, and political sovereignty.

2. Impact on Other Nations:

Imperialism: Often imposes control over other nations, leading to exploitation and cultural suppression.
Nationalism: Focuses on the interests of the nation itself, which can lead to movements for independence from imperial powers.

3. Historical Context:

Imperialism: Associated with the colonization and expansion policies of European powers from the 16th to the 20th centuries.
Nationalism: Often arises as a response to imperialism and foreign domination, promoting self-rule and national identity.

4. Outcome:

Imperialism: Results in the creation of empires and colonies.
Nationalism: This can result in the formation of nation-states and independence movements.

In summary, while imperialism involves the domination and exploitation of one nation by another, nationalism focuses on the unity, independence, and self-determination of a nation or group of people.


Other questions

Differentiate between the following: Latitude and Longitude

सरदारी और बादशाहत में अंतर बताइए​।

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सरदारी और बादशाहत  में महत्वपूर्ण अंतर इस प्रकार हैं:

शासन प्रणाली

सरदारी : यह एक प्रकार की नेतृत्व व्यवस्था होती थी, जो अक्सर कबीलाई या स्थानीय स्तर पर होती थी। सरदारों का चुनाव समुदाय के लोगों चुनकर किया जाता था। संबंधित कबीले में कोई भी व्यक्ति सरदार हो सकता था। यहाँ पर न तो वंश व्यवस्था होती थी और न ही जाति व्यवस्था होती थी।

बादशाहत : यह एक राजतंत्रीय शासन प्रणाली होती थी, जहाँ एक राजा या बादशाह पूरे राज्य पर शासन करता था। बादशाहत प्रायः वंशानुगत होती थी। इस शासन व्यवस्था में राजा या बादशाह का पुत्र ही राजा या बादशाह बनता था। जनता या प्रजा में से कोई भी सामान्य व्यक्ति बादशाहत पाने का हकदार नहीं होता था।

शासन का क्षेत्र

सरदारी : आमतौर पर छोटे क्षेत्र या समुदाय तक सीमित होती थी। इनका शासन क्षेत्र एक विशेष कबीले या समुदाय तक ही सीमित रहता था जो किसी गाँव आदि तक ही सीमित रहता था। अथवा उस कबीले के भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित रहता था।
बादशाहत : बड़े राज्य या साम्राज्य पर शासन करती थी। बादशाहत का दायरा बेहद बड़ा होता था। राजा या बादशाह किसी बड़े राज्य का होता था। इस राज्य में अनेक नगर और गाँव शामिल होते थे।

निर्णय और अधिकार

सरदारी : सरदार का अधिकार अक्सर समुदाय के सदस्यों की सहमति या परंपरा से आता था। वह अपने समुदाय के लोगों पर किसी तरह का कर आदि नहीं लगाता था। जो भी कार्य होते थे, वह समुदाय के लोगों की आपसी सहमति से होते थे। वह अपने कार्य संचालन के लिये समुदाय के लोगों द्वारा मिलने वाले उपहारों पर निर्भर रहता था।
बादशाहत : बादशाह के पास निर्णय लेने की अंतिम शक्ति होती थी। उसका अधिकार वंशानुगत होता था। उसके निर्णण को दैवीय निर्णय माना जाता था। उसका ही निर्णय अंतिम निर्णय होता था। वह अपने निर्णय के लिए अपने मंत्रियो से परामर्श ले भी सकता था लेकिन उस पर इसकी कोई बाध्यता नहीं थी। वह अपने राज्य के संचालन के लिए अपनी प्रजा पर तरह-तरह के कर लगाता था। जो समय-समय पर राज्य के प्रत्येक नागरिक को देने होते थे।

शक्ति का अधिकार

सरदारी : सरदारी व्यवस्था मे कोई सेना नही होती थी। सरदार लोग किसी भी विवाद, युद्ध या संघर्ष से निपटने के लिए अपने समुदाय के लोगों पर ही निर्भर रहता था। ऐसी किसी भी स्थिति में समुदाय के सामान्य जन ही ये कार्य करते थे। वह इसके लिए कोई वेतन आदि भी नहीं देता था।
बादशाहत : बादशाहत में बादशाह एक स्थायी सेना रखता था। इस सेना का उपयोग वह अपने राज्य की प्रजा को नियंत्रित करने और दूसरे राज्यो से होने वाले संघर्षो में करता था। वह सेना को बाकयदा वेतन देता था। सैनिकों की नियमित भर्ती की जाती थी। वह राज्य की रक्षा के कार्य के लिए ही निश्चित होते थे।


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रैयतवाड़ी व्यवस्था को किसके द्वारा लागू किया गया था?

शिवाजी अपने साथ आए घुड़सवारों को आगरा से बाहर क्यों भेजना चाहते थे?

Write a shore essay on the importance of healthy eating habits.

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Short Essay

Importance of healthy eating habits

 

Healthy eating habits affect our overall health. By adopting healthy eating habits, we can give a new direction to our health. Healthy eating refers to a diet that is rich in nutrients. A diet that is not junk food.

A balanced diet rich in a variety of fruits, vegetables, whole grains, lean proteins and healthy fats provides essential nutrients, which strengthen physical health as well as increase the body’s immunity. Proper nutrition reduces the risk of obesity-related diseases like diabetes, heart disease and some cancers.

Good eating habits contribute to improved mental health, cognitive function, mood and energy levels. For children and adolescents, nutritious diets are important for proper growth and development. Adopting healthy eating patterns early in life can have lifelong benefits, including better food choices and a lower risk of chronic diseases in adulthood. Additionally, mindful eating habits such as portion control and avoiding processed foods can improve digestion and promote a healthy relationship with food.

Ultimately, adopting healthy eating habits can give a new dimension to our long-term health and quality of life.


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Write an essay on the Disadvantages of social media in student’s life.​

Differentiate between the following: Latitude and Longitude

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These are concise differences between latitude and longitude:

Latitude:

➤ Measures distance north or south of the equator
➤ Ranges from 0° at the equator to 90° at the poles
➤ Parallel lines that run east-west around the globe
➤ Expressed in degrees north or south

Longitude:

➤ Measures distance east or west of the Prime Meridian
➤ Ranges from 0° to 180° east or west
➤ Vertical lines that run from pole to pole
➤ Expressed in degrees east or west

Key differences:

1. Direction: Latitude is horizontal, longitude is vertical
2. Reference point: Latitude uses the equator, longitude uses the Prime Meridian
3. Range: Latitude spans 0° to 90°, longitude spans 0° to 180°
4. Purpose: Latitude indicates north-south position, longitude indicates east-west position

Together, latitude and longitude form a coordinate system for precisely locating any point on Earth’s surface.


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Write an essay on Disadvantages of social media in students life.​

Write an essay on the topic – ‘Disadvantages of social media in student’s life.​’

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Essay

Disadvantages of social media in student’s life.​

 

Social media has become an integral part of students’ lives, but its pervasive influence comes with significant drawbacks. One major concern is the time sink it creates, distracting students from academic pursuits and reducing productivity. The constant stream of notifications and the fear of missing out (FOMO) can lead to decreased focus and interrupted study sessions.

Additionally, social media platforms often foster unrealistic comparisons, potentially harming students’ self-esteem and mental health. The curated nature of online profiles can create feelings of inadequacy and anxiety among young users.

Cyberbullying is another serious issue, with the anonymity of the internet sometimes emboldening cruel behaviour. This can lead to severe emotional distress and even impact academic performance.

Furthermore, the addictive nature of social media can interfere with real-world social skills development, as students may prefer online interactions over face-to-face conversations. This can hinder the growth of crucial interpersonal abilities needed for future success.

Lastly, the spread of misinformation on these platforms can negatively influence students’ understanding of important issues, potentially impacting their decision-making abilities.


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Essay on Rabindranath Tagore in 200 words.

What makes you happy when you’re sad?​ Write your thoughts on this topic

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What makes me happy when I feel sad

 

When feeling sad, I often find solace in various activities and connections. I try to reach out to loved ones for support that can provide me comfort and perspective. Engaging in my favourite hobbies or pastimes can offer a welcome distraction and spark joy for me.

Spending time in nature, exercising, or simply taking a walk can boost mood through physical activity and fresh air. Music has the power to lift spirits, while mindfulness and meditation practices can help centre thoughts and emotions.

Acts of kindness, such as volunteering or helping others, can shift focus outward and create a sense of purpose. Taking care of physical health through proper sleep and nutrition is crucial for emotional well-being.

Creative outlets like art or writing allow for emotional expression and processing. Lastly, if sadness persists, seeking professional help can provide valuable tools and support for managing emotions and improving overall mental health.


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When we got to Terminal 2, the flight from London a) had already landed b) had already been landing c) already landed d) was already landing

When we got to Terminal 2, the flight from London a) had already landed b) had already been landing c) already landed d) was already landing

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The correct answer is:

a) had already landed

 

Explanation:

This is the most appropriate choice because it uses the past perfect tense (‘had already landed’), which is used to describe an action that was completed before another past action or time. In this context, it indicates that the flight’s arrival occurred prior to the speaker’s arrival at Terminal 2.

The past perfect is ideal here because:

1. It clearly establishes the sequence of events (flight landing, then arrival at terminal).
2. It emphasizes the completed nature of the landing.
3. It’s commonly used in English to express ‘earlier past’ actions.

Options b) and d) use continuous tenses, which imply an ongoing action and are incorrect for a completed event like landing. Option c) uses simple past, which doesn’t effectively convey the idea that the landing preceded the arrival at the terminal.


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तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र : प्रहलाद अग्रवाल (कक्षा-10 पाठ-11 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र : प्रहलाद अग्रवाल (कक्षा-10 पाठ-11 हिंदी स्पर्श 2)

TEESREE KASAM KE SHILPKAR SHAILENDRA : Prahlad Aggrawal (Class-10 Chapter-11 Hindi Sparsh 2)


तीसरी कसम की शिल्पकार शैलेंद्र – प्रहलाद अग्रवाल

पाठ के बारे में…

यह पाठ ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ प्रहलाद अग्रवाल द्वारा लिखा गया एक पाठ है, जिसमें उन्होंने गीतकार शैलेंद्र के बारे में वर्णन किया है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि हिंदी फिल्म जगत में सार्थक और उद्देश्य पर फिल्म बनाना बेहद कठिन और जोखिम भरा काम है।

‘तीसरी कसम’ फिल्म का निर्माण गीतकार शैलेंद्र ने किया था। वे लंबे समय से कवि और हिंदी फिल्मों के गीतकार के रूप में हिंदी फिल्म जगत में अपना नाम बनाए हुए थे। उन्होंने फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ को तीसरी कसम के नाम से सिनेमा के पर्दे पर उतारा था। यह फिल्म हिंदी फिल्म जगत के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई और हिंदी फिल्म की अमर कलाकृतियों में से एक मानी जाती है।  इस पाठ के माध्यम से लेखक ने तीसरी कसम के निर्माण के दौरान आने वाली कठिनाइयों और संघर्षों का वर्णन किया है।

लेखक के बारे में…

प्रहलाद अग्रवाल, जिनका जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में सन 1947 में हुआ था, वह हिंदी फिल्मों के इतिहास और फिल्मकारों के जीवन के बारे में लिखने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने हिंदी फिल्मों पर काफी कुछ लिखा है।

उनकी प्रमुख कृतियों में सातवां दशक, तानाशाह, मैं खुशबू, सुपरस्टार, राज कपूर आधी : हकीकत आधा फसाना, कवि शैलेंद्र : जिंदगी की जीत में यकीन, प्यासा : चिर अतृप्त गुरुदत्त, उत्ताल उमंग : सुभाष गई,  ओ रे मांझी : विमल गाय का सिनेमा, महा बाजार के नायक : 21वीं सदी का सिनेमा आदि के नाम प्रमुख हैं।



हल प्रश्नोत्तर

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1 : ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?

उत्तर :  ‘तीसरी कसम’ फिल्म को निम्नलिखित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

  • तीसरी कसम फिल्म को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा ‘राष्ट्रपति स्वर्ण पदक’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • ‘तीसरी कसम’ फिल्म को बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फिल्म के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
  • ‘तीसरी कसम’ इनको मास्को फिल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। इसके अलावा तीसरी कसम फिल्म को अन्य कई महत्वपूर्ण पुरस्कार भी मिल चुके हैं।

तीसरी कसम फिल्म कवि-गीतकार शैलेंद्र द्वारा निर्मित एक हिंदी फिल्म थी, जिसमें मुख्य भूमिका राज कपूर और वहीदा रहमान ने निभाई थी। ये फिल्म प्रसिद्ध हिंदी लेखक नाथ रेणु के उपन्यास ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित थी।


प्रश्न 2 : शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाई?

उत्तर :  शैलेंद्र ने अपने जीवन काल में सिर्फ एक ही फिल्म बनाई थी। इस फिल्म का नाम ‘तीसरी कसम’ था।शैलेंद्र हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि और गीतकार थे, जिन्होंने हिंदी फिल्मों के अनेक अनमोल गीत लिखे।

‘तीसरी कसम’ फिल्म के मुख्य कलाकारों में प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता राज कपूर और अभिनेत्री वहीदा रहमान थी। यह फिल्म हिंदी के प्रसिद्ध लेखक फणीश्वर नाथ रेणु के द्वारा लिखे गए उपन्यास ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित थी। यह फिल्म हिंदी फिल्म जगत की अमर कलाकृति में से एक मानी जाती है।


प्रश्न 3 : राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।

उत्तर : राजकपूर द्वारा निर्देशित फिल्मों के नाम इस प्रकार हैं…

मेरा नाम जोकर, सत्यम शिवम सुंदरम, संगम, जागते रहो, अजंता, मैं और मेरा दोस्त, प्रेम रोग, राम तेरी गंगा मैली, कल आज और कल, बॉबी।

राज कपूर हिंदी फिल्म जगत के एक जाने-माने निर्माता-निर्देशक थे। जिन्हें हिंदी फिल्म जगत में ‘शोमैन’ के नाम से भी जाना जाता है। उनकी फिल्में बेहद भव्य एवं विशाल कैनवास पर बनाई गई हुई होती थीं, और उनकी फिल्में अपार लोकप्रियता प्राप्त करती थी।

राज कपूर के साथ गीतकार शैलेंद्र, गायक मुकेश और संगीतकार शंकर-जयकिशन इन पाँचों की जुगलबंदी उस समय हिंदी फिल्म जगत में बेहद प्रसिद्ध थी।


प्रश्न 4 : ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?

उत्तर : कसम फिल्म के नायक और नायिकाओं के नाम इस प्रकार हैं…
नायक : राजकपूर नायिका : वहीदा रहमान

प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता राज कपूर ने इस फिल्म में ‘हीरामन’ नामक एक गाड़ीवान की भूमिका निभाई थी। प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री वहीदा रहमान ने इस फिल्म में नौटंकी कलाकार ‘हीराबाई’ की भूमिका निभाई थी। इन फिल्म इन दोनों के बीच घटे प्रसंगों पर आधारित थी, जोकि फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘मारे गये गुलफाम’ के कथानक पर हुई है।


प्रश्न 5 : फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किसने किया था?

उत्तर : ‘तीसरी कसम’ फिल्म का निर्माण गीतकार शैलेंद्र ने किया था। शैलेंद्र हिंदी के प्रसिद्ध कवि और गीतकार थे। उन्होंने अनेक हिंदी फिल्मों के लिए अनेक अनमोल गीतों की रचना की है। राज कपूर के साथ उनकी जुगलबंदी प्रसिद्ध थी और उन्होंने राज कपूर की लगभग सभी फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं।

‘तीसरी कसम’ फिल्म का निर्माण करते समय उन्होंने राज कपूर को ही मुख्य अभिनेता चुना था और फिल्म की अभिनेत्री वहीदा रहमान थी। तीसरी कसम फिल्म का निर्माण 1966 में हुआ था और इस फिल्म का निर्देशन बासु भट्टाचार्य ने किया था।


प्रश्न 6 : राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?

उत्तर : राज कपूर ने मेरा नाम जोकर के निर्माण के समय इस बात की जरा भी कल्पना नहीं की थी कि उन्हें इस फिल्म के निर्माण में इसका एक भाग बनाने में ही 6 साल का लंबा समय लग जाएगा।

राज कपूर को मेरा नाम फिल्म के निर्माण के समय अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था और उन्होंने अनेक तरह की मुश्किल परिस्थितियों से निभाते हुए एक लंबे समय में मेरा नाम जोकर फिल्म का निर्माण किया था। इस फिल्म के निर्माण ने आर्थिक रूप से काफी कमजोर कर दिया था और उन पर काफी कर्जा चढ़ गया था।


प्रश्न 7: राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया?

उत्तर : राजकपूर की इस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया कि जब राजकपूर ने ‘तीसरी कसम’ फिल्म में अपने अभिनय के लिए उनसे मेहनताना मांगा तो गीतकार शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया।

शैलेंद्र और राज कपूर आपस में घनिष्ठ मित्र थे। राजकपूर की लगभग सभी फिल्मों के लिए शैलेंद्र ने गीत लिखे थे। जब शैलेंद्र ने तीसरी कसम फिल्म का निर्माण आरंभ किया तो उन्हें उम्मीद थी कि राज कपूर दोस्ती के नाते बिना किसी मेहनताने में काम करना स्वीकार कर लेंगे क्योंकि इस फिल्म के निर्माण के लिए उन्हें आर्थिक रूप से काफी परेशानी उठानी पड़ी थी।

लेकिन जब एक दिन राजकपूर ने फिल्म में अपने काम के लिए मेहनताना मांगा तो शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया, क्योंकि उन्हें ऐसी आशा ना थी। लेकिन जब राज कपूर ने तुरंत ही उनसे मुस्कुराते हुए मेहनताने के रूप में केवल 1 रुपये की मांग की, शैलेंद्र को सारी बात समझ में आई और राज कपूर ने वास्तव में उनसे दोस्ती निभाई थी।


प्रश्न 8 : फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?

उत्तर : फिल्म समीक्षक राजकपूर को कला मर्मज्ञ और आँखों से बात करने वाला कलाकार मानते थे।विस्तार से कला मर्मज्ञ से तात्पर्य कला का पारखी, जिसे कला के विषय में पूर्ण ज्ञान हो और जो एक नजर में ही सही आकलन कर लेता हो।

राजकपूर आँखों से बात करने की कला भी जानते थे और वह आँखों में ही आँखों मैं अपनी बात कह जाते थे और समझ जाते थे। वह फिल्मों में अपनी आँखों के भाव प्रदर्शन से ही बिना संवाद बोले ही अपनी बात कह जाते थे। इसलिए फिल्म समीक्षक  राजकपूर को कला मर्मज्ञ और आँखों से बात करने वाला कलाकार मानते थे।


लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1 : ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा गया है?

उत्तर : तीसरी कसम’ फिल्म को सेल्यूलाइड पर उतरी कविता इसलिए कहा गया था क्योंकि यह फिल्म सेल्यूलाइड पर कविता जैसी अनुभूति प्रदान करती थी। सेल्यूलाइड से तात्पर्य कैमरे की रील पर फिल्म को उतारने से होता है।तीसरी कसम फिल्म ग्रामीण जीवन के मार्मिक प्रसंगों को समेटती हुई एक ऐसी भाव प्रणव कहानी थी, जो बिल्कुल काव्यात्मकता का अनुभूति कराती थी।

फिल्म को देखकर ऐसा लगता था कि जैसे सेटेलाइट पर कोई कविता चल रही हो। इस फिल्म में नायक और नायिका का सहज एवं भावपूर्ण अभिनय फिल्म में एक अलग ही अनुभूति उत्पन्न करता है। इसी कारण इस फिल्म को सेल्यूलाइड लिखी गई कविता कहा गया है।


प्रश्न 2 : ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?

उत्तर : तीसरी कसम’ फिल्म को खरीदार इसलिए नहीं मिल रहे थे, क्योंकि यह फिल्म एक साहित्यिक कृति पर आधारित भाव प्रधान फिल्म थी,  जिसमें साहित्यिकता और कलात्मकता का संगम था। फिल्मकार ने फिल्म की विषय वस्तु और कथानक से किसी भी तरह का समझौता नहीं किया था। यह एक कलात्मक कृति थी, जिसमें व्यवसायिकता का पुट जरा भी नहीं था।

फिल्म के खरीदार फिल्म को मुनाफे का सौदा मान कर ही खरीदते हैं और उन्हें  ये फिल्म में व्यवसायिक दृष्टि से फायदेमंद नहीं दिख रही थी। इसीलिए इस फिल्म को खरीदा नहीं मिले । लेकिन बाद में इसी फिल्म ने इतिहास रचा और यह फिल्म हिंदी फिल्म जगत की सर्वश्रेष्ठ कलाकृतियों में से एक मानी जाती है।


प्रश्न 3 : शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?

उत्तर : शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का मुख्य कर्तव्य यह है कि वह दर्शकों की रुचि के अनुसार अपनी कला को प्रदर्शित करें। कलाकार अपने वह दर्शकों/श्रोताओं की रुचि को परिष्कृत करते हुए अपनी कला का प्रदर्शन करें ना कि उनको सस्ता एवं भौंडा मनोरंजन उन पर थोपने का प्रयत्न करें। कलाकार का मुख्य कर्तव्य कला के शुद्ध एवं सात्विक रूप को समाज के सामने प्रस्तुत कर सुंदर एवं स्वस्थ समाज का निर्माण करना होता है।

कलाकार को अपनी कला को विकृत नहीं करना चाहिए और लाभ कमाने के उद्देश्य से कला को सस्ते रूप में नहीं प्रदर्शित करना चाहिए।


प्रश्न 4 : फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई क्यों कर दिया जाता है?

उत्तर : फिल्म में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई इसलिए कर दिया जाता है ताकि फिल्म निर्माता अपने व्यवसाय उद्देश्यों को साथ कर अधिक से अधिक लाभ कमा सके। फिल्म में त्रासद स्थितियों का ग्लोरिफाई करके दर्शकों की भावनाओं को उत्तेजित किया जाता है, जिससे अधिक से अधिक दर्शक फिल्म देखने को आएं और निर्माताओं को अधिक से अधिक कमाई हो ।

त्रासद स्थितियों का ग्लोरिफाई करके दर्शकों की भावनाओं से खेला जाता है। ये दर्शकों को फिल्म की ओर खींचने की एक व्यवसायिक रणनीति होती है। वास्तविक जीवन में ऐसी त्रासद स्थितियां नही होती जैसी फिल्म में दिखाईं जाती हैं, फिल्म में उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है।


प्रश्न 5 : ‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’- इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : शैलेंद्र ने राज कपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं दिए हैं। इस कथन का आशय यह है कि तीसरी कसम फिल्म में राज कपूर में बेहद तन्मयता से अभिनय किया था। राज कपूर अपनी आँखों से ही अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए जाने जाते थे। वे आँखों ही आँखों में अपनी भावना व्यक्त कर इतना भावपूर्ण अभिनय करते थे कि देखने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता था।

शैलेंद्र राज कपूर के गीतकार रहे हैं उन्होंने अपने गीतों के शब्दों के माध्यम से राज कपूर की भावनाओं को व्यक्त करने का प्रयत्न किया था। इस फिल्म के गीत भी एक से एक अधिक जानदार थे जो कि शैलेंद्र द्वारा लिखे गए थे। इस फिल्म गीतों के बोलों को राज कपूर ने अपने भावपूर्ण अभिनय से जीवंत कर दिया था। इसीलिए यह कथन बिल्कुल कहना ठीक है कि शैलेंद्र ने ही राज कपूर की भावनाओं को शब्द दिए।


प्रश्न 6 : लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर : लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शौमैन से तात्पर्य उस व्यक्ति से होता है जिसमें अपने कला के प्रदर्शन द्वारा एक बड़े विशाल जनसमुदाय को आकर्षित करने की क्षमता हो। जिसकी कला का कायल एक विशाल जन वर्ग हो।

राजकपूर एक ऐसे ही आकर्षक व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपनी कलाकारी गुण से हिंदी सिनेमा जगत को अनेक अनोखी फिल्में प्रदान कीं। उनकी फिल्में बेहद लोकप्रिय होती थी और लोगों के दिल में एक अलग जगह बना लेती थी। उनकी फिल्में ना केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब लोकप्रिय होती थी।

लोग उनके नाम से ही फिल्में देखने जाया करते थे। वह केवल एक अभिनेता ही नहीं बल्कि एक निर्माता सफल निर्माता और सफल निर्देशक भी थे। अभिनेता के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्होंने निर्देशन के रूप में एक से एक शानदार फिल्में दें और बेहद लोकप्रियता अर्जित की जिनमें राम तेरी गंगा मैली, प्रेम रोग, बॉबी जैसी फिल्मों के नाम प्रसिद्ध है।

राज कपूर की फिल्में भारत में ही नहीं रूस में बेहद लोकप्रिय होती थीं। वे रूस में बेहद लोकप्रिय थे। पूरे एशिया में जितने विशाल स्तर पर किसी प्रकार की फिल्में नहीं लोकप्रिय होती थीं, जितनी की राजकपूर की फिल्में होती थीं। इसीलिए उन्हें एशिया का सबसे बड़ा शोमैन में कहा गया है।


प्रश्न 7 : फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?

उत्तर : फिल्म ‘श्री 420’ के गीत रातों दसों दिशाओं से कहेगी अपनी कहानियां पर संगीता जयकिशन ने आपत्ति इसलिए की, क्योंकि संगीतकार जयकिशन के अनुसार सामान्यजन इतनी गूढ़ बातों को नहीं समझ सकता। सामान्यजन केवल चार दिशाओं के बारे में जानता है।

गहन विस्तार में जाएं तो दसों दिशाएं भी होती हैं, लेकिन सामान्यजन इस बारे में नहीं जानता इसलिए सामान्य जन केवल चार दिशाओं को समझेगा जो उसकी जनसामान्य सोच के अंतर्गत आता है। वह दसों दिशाओं वाली साहित्यिक सोच के संदर्भ को समझ नहीं पाएगा। इसलिए शंकर जयकिशन को श्री 420 के गीत ‘रातों दसों दिशाओं से कहेगी अपनी कहानियां’ पर आपत्ति थी।

शैलेंद्र इस बात के लिए तैयार नही हुए, अपने अपने गीत को सस्ता नही बनाना चाहते थे इसलिए गीत के शब्द ज्यों के त्यों रहे।



(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1 : राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?

उत्तर : राजकपूर द्वारा फिल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फिल्म इसलिए बनाई क्योंकि वह इस फिल्म के माध्यम से अपने कलाकार मन को आत्म संतुष्टि देना चाहते थे। शैलेंद्र एक भागवत कवि हृदय कलाकार थे।

फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखे गए ‘मारे गए गुलफाम’ उपन्यास का कथानक उनके मन को छू गया था। इसी कारण वह इस पर एक फिल्म बनाकर अपने कलाकार मन को संतुष्टि देना चाहते थे। यूं तो वह काफी समय से फिल्म जगत में थे लेकिन उनका फिल्म बनाने का उद्देश्य व्यवसायिक नही था बल्कि वह अपने कलाकार मन की भावनाओं को फिल्मी पर्दे पर उकेरना चाहते थे।

चूँकि फिल्म बनाने का उनका उद्देश्य व्यवसायिक नही था, इसीलिए राज कपूर द्वारा फिल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी उन्होंने तीसरी कसम फिल्म बनाई।


प्रश्न 2 : ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : राजकपूर एक बेहद मंजे हुए कलाकार थे। वह जिस किसी भी किरदार को निभाते थे तो उस पर अपने व्यक्तित्व को हावी नहीं होने देते थे, बल्कि वे उस पर किरदार अपने अंदर आत्मसात कर लेते थे। पर्दे पर उनके द्वारा निभाया गया किरदार वो किरदार ही लगता था, उसमें राज कपूर कहीं भी नजर नहीं आता था। हीरामन के किरदार के साथ भी उन्होंने ऐसा ही किया।

हीरामन एक देहाती व्यक्तित्व वाला किरदार था, जिसको निभाने के लिए राज कपूर ने पूरा देहाती अंदाज अपना लिया था। हीरामन उकड़ूं बैठता है और बातें देहाती अंदाज में करता है तथा ग्रामीण व्यक्तित्व का प्रतीक है। यह सारे गुण उन्होंने हीरामन के किरदार में भर दिए थे।

फिल्म देखते समय उनके किरदार को देखते हुए राज कपूर कहीं भी नहीं दिखाई देते बल्कि उसमें हीरामन ही नजर आता था। इस तरह उनके द्वारा किया गया जीवंत अभिनय हीरामन की आत्मा में उतर गया था।


प्रश्न 3 : लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?

उत्तर : लेखक ने ऐसा इसलिए लिखा है कि तीसरी कसम में साहित्य रचना के साथ शत-प्रतिश न्याय किया गया है, क्योंकि शैलेंद्र ने फिल्म का निर्माण करते समय फिल्म की मूल कथा से जरा भी छेड़छाड़ नहीं की थी। उन्होंने इस फिल्म का निर्माण साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित उपन्यास ‘मारे गए गुलफाम’ के कथानक के आधार पर किया था।

उन्होंने मूल कहानी के स्वरूप में जरा भी बदलाव नहीं किया है। शैलेंद्र ने कहानी के सभी पात्रों को यथावत उसी रूप में प्रस्तुत किया है, जिस रूप में उपन्यास में उनका वर्णन किया गया है। उन्होंने ग्रामीण जीवन और उनके पात्रों तथा उनकी बोली को ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया है और पूरी फिल्म एक साहित्य कृति बन गई है। उन्होंने इस फिल्म में ग्रामीण जीवन का सटीक चित्रण किया है।

कहने को इस फिल्म में उस समय के बड़े-बड़े कलाकार जैसे राजकपूर और वहीदा रहमान ने काम किया था लेकिन किसी भी कलाकार का व्यक्तित्व किरदार पर हावी नहीं हुआ है। फिल्म के गीत संगीत भी ग्रामीण जीवन की लोकगीतों पर ही आधारित है। इसीलिए लेखक ने लिखा है कि तीसरी कसम ने साहित्य के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है।


प्रश्न 4 : शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषता है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : शैलेद्र के गीतों की मुख्य विशेषता यह होती थी कि उनके गीत सरल और सहज भाषा में रचित होते थे। शैलेंद्र अपने गीतों में बेहद कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं करते थे बल्कि जनसाधारण की समझ में आ जाने वाले सरल शब्दों का प्रयोग करते थे। शैलेंद्र के गीत भावपूर्ण होते थे और  उनके गीतों में करुणा, संवेदना जैसे भाव भरे होते थे।

वे आम जनमानस के जीवन से जुड़े होते थे। शैलेंद्र के गीतों में अभिजात्य वर्ग का झूठा पाखंड नहीं होता था। उनके गीत आम जनमानस के अधिक निकट होते थे, जो दिल की गहराइयों को छू लेते थे।


प्रश्न 5 : फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : फिल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र ने अपने जीवन में ‘तीसरी कसम’ नाम की केवल एक ही फिल्म बनाई थी। लेकिन इस फिल्म के साथ उन्होंने निर्माता के रूप में पूरा न्याय किया था। उन्होंने फिल्म की गुणवत्ता के साथ कोई भी समझौता नहीं किया था। ये फिल्म एक साहित्यिक कृति पर आधारित थी और शैलेंद्र स्वयं साहित्य से संबंध रखते थे।

शैलेंद्र एक कवि-गीतकार थे और उनका कवि हृदय व कलाकार मन किसी भी साहित्यिक कृति के साथ छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं देता था। शैलेंद्र ने ये फिल्म धन कमाने की लालसा स नही नहीं बनाई थी, इसलिए व्यवसाय की दृष्टि से भले ही अच्छे निर्माता नहीं हो पाए लेकिन कलात्मकता और गुणवत्ता की दृष्टि से उन्होंने एक उत्कृष्ट फिल्म का निर्माण किया था। उन्होंने जिस साहित्यिक कृति पर इस फिल्म का निर्माण किया था उसे यथावत पर्दे पर पेश किया।

उन्होंने कहानी के दो मुख्य पात्रों हीरामन और हीराबाई के पवित्र प्रेम को बेहद संवेदनशीलता से पर्दे पर उतारा था। उन्होंने अपने सिद्धांतों के साथ कोई भी समझौता नहीं किया और । इसी कारण उन्होंने एक अनमोल और अमर कलाकृति वाली फिल्म बनाई।


प्रश्न 6 : शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है-कैसे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : शैलेंद्र एक सीधे सच्चे सरल व्यक्ति थे। वे एक कवि और गीतकार होने के कारण एक कोमल हृदय वाले कलाकार थे। उनका जीवन सादा एवं सरल होता था और अपने निजी जीवन को वह अपने गीतों के माध्यम से भी प्रकट करते थे। अपने गीतों में उन्होंने कभी भी झूठे अभिजात्य को नहीं अपनाया बल्कि आम जनमानस की भावनाओं को अधिक उभारा है।

शैलेंद्र के गीतों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती थी कि उनके गीतों में झूठा प्रदर्शन नहीं होता था बल्कि वह आम जनजीवन की विसंगतियों को बताते थे। उनके गीत की भाषा सरल एवं सहज होती थी इसका मुख्य कारण यह था वह भी स्वयं सच्चे सरल व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई उनके निजी जीवन की विशेषता थी और अपनी इसी विशेषता को उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से फिल्में भी प्रकट किया है। जिस तरह तीसरी कसम फिल्म में उन्होंने फिल्म के मुख्य नायक हीरामन को दुनिया की चकाचौंध से दूर रहने वाले एक साधारण ग्रामीण व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया है, वैसे ही शैलेंद्र भी स्वयं फिल्म जगत में रहते हुए भी फिल्म जगत की चकाचौंध से दूर सीधे एवं सरल रूप से रहते थे।

फिल्म का निर्माण में भी उन्हें अनेक संघर्षों और कठिनाइयों पड़े थे, लेकिन उन्होंने हार नही मानी और फिल्म का निर्माण करके ही दम लिया। यही बात उन्होंने अपनी फिल्म के नायक और गीतों से भी प्रकट की है। इस तरह उनके निजी जीवन की छाप उनके फिल्म में झलकती है।


प्रश्न 7 : लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम फिल्म कोई सच्चा कवि हृदय ही बना सकता था।’ पूरी तरह सहमत हुआ जा सकता है। शैलेंद्र ने इस फिल्म का निर्माण करते समय जिस तरह की संवेदनशीलता और भावप्रणवता दिखाई है, वह कोई कवि हृदय ही दिखा सकता था।

फिल्म के सभी पात्रों में संवेदनशीलता, करुणा आदि का भाव प्रकट होता है। उन्होंने फिल्म के नायक और नायिका के मनोभावों को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया है जो कि एक कवि हृदय वाला व्यक्ति ही कर सकता था। उन्होंने पूरी फिल्म में संवेदनशीलता तथा भावनात्मकता का ध्यान रखा है। कोई आम फिल्म निर्माता फिल्म के व्यवसायिक पक्षों को भी ध्यान में रखता और फिल्म में कल्पना और अतिशयोक्ति वाले दृश्यों का समावेश कर सकता था, लेकिन शैलेंद्र ने ऐसा नहीं किया उन्होंने मूल साहित्य कृति के यथावत बरकरार रखा और फिल्म को वास्तविकता के अधिक निकट दिखाया है।

ये सारे कार्य के कवि हृदय वाला व्यक्ति ही कर सकता है, इसलिए लेखक के इस कथन से पूरी तरह सहमत हुआ जा सकता है कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।



(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1 : …. वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्मसंतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।

आशय : वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।आशय : इन पंक्तियों का आशय यह है कि शैलेंद्र एक ऐसे भावुक कवि थे, जिन्हें धन और यश की कामना नहीं थी। वह अपनी आत्म संतुष्टि के लिए ही कार्य करते थे। इसी कारण उन्होंने जब तीसरी कसम फिल्म का निर्माण किया तो उस फिल्म का निर्माण उन्होंने धन की लालसा से नहीं किया था बल्कि अपनी आत्म संतुष्टि के लिए किया था।

तीसरी कसम फिल्म जिस साहित्य कृति पर आधारित करके उन्होंने बनाई थी वह साहित्य कृति उनके मन को बेहद भा गई थी और वह इसे फिल्मी पर्दे पर उतारना चाहते थे। उन्हें फिल्म की असफलता के खतरे से आगाह भी किया गया था लेकिन उन्हें तो धन-संपत्ति और यश की कामना ही नहीं थी उन्हें तो अपने कलाकार मन को संतुष्ट करना था।

इसीलिए सारी बातों को परे रखकर इतनी सुंदर और अनुपम फिल्म का निर्माण किया, ऐसा तो एक भावुक कवि हृदय वाला व्यक्ति ही कर सकता था।


प्रश्न 2 : उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।

आशय : इस पंक्ति का यह आशय है कि कवि शैलेंद्र का मानना था कि एक कलाकार को दर्शकों की अभिरूचि की आड़ के बहाने अपनी कला को विकृत नहीं करना चाहिए और ना ही उन पर जबरदस्ती कुछ ऐसा थोपना चाहिए। जब श्री 420 फिल्म एक गाना बनाया जा रहा था तो शैलेंद्र ने उस गीत में दसों दिशाओं शब्द का प्रयोग किया था।

तब संगीतकार जयकिशन ने इस शब्द पर आपत्ति करते हुए कहा कि दसों दिशाओं शब्द आम शब्द नहीं है और इसे आम जनमानस नहीं समझता। लोग केवल चार दिशाएं जानते हैं, दस दिशाएं नहीं। इसलिए इस तरह के शब्दों का प्रयोग करना ठीक नहीं। परंतु शैलेंद्र ने इसका विरोध करते हुए कहा कि हमेशा दर्शकों की रूचि के बहाने हमें अपनी कला को विकृत नहीं करना चाहिए। भले ही लोग दशों दिशा नहीं जानते लेकिन गीत में आने पर उसे जानने लगेंगे।

यदि हम अपने गीतों के माध्यम से सही बात रखेंगे तो दर्शक अवश्य समझेंगे। कलाकार दर्शकों के प्रभाव में आकर गलत बातों को प्रोत्साहित करने लगते हैं, जिससे फिर कला में विकृतता आज आ जाती है। एक कलाकार का मुख्य कर्तव्य होता है कि वह दर्शक, श्रोता की रूचियों का परिष्कार करें यानी उनकी रूचियों को सुधारें और सही बात को सही ढंग से प्रस्तुत करें।


प्रश्न 3 : व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।

आशय : इन पंक्तियों का आशय यह है कि जीवन में सुख और दुख आते जाते रहते हैं। हमारे जीवन में अनेक तरह की कठिनाइयां और विपत्तियां आती हैं, जिनका सामना करना चाहिए। जब भी कोई कठिनाई विपत्ति आदि आती है तो वह उससे छुटकारा पाने का उपाय सोचने लगता है और कुछ ना कुछ ऐसा प्रयत्न करता है कि उसे उस संकट से मुक्ति मिले। इसलिए जिंदगी में आने वाली कठिनाइयों से जुड़कर ही जिंदगी में आगे बढ़ा जा सकता है।

जिंदगी में आने वाली कठिनाइयां हमें संघर्ष करने की क्षमता प्रदान करती हैं और हमारे मनोबल को बढ़ाती है।  मनोबल मजबूत होने पर और संघर्ष करने की क्षमता से ही जिंदगी में सफलता पाई जा सकती है, इसलिए कठिनाई आने पर उनसे न घबराकर उनका सामना करना चाहिए।


प्रश्न 4 : दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।

आशय : इस पंक्ति का आशय यह है कि शैलेंद्र ने तीसरी कसम नाम की जो फिल्म बनाई थी, वह व्यवसायिक फिल्म नहीं थी। इसलिए वे निर्माता लोग जो फिल्म बनाकर मुनाफा कमाना चाहते हैं, उनके लिए यह फिल्म उनकी समझ से परे थी। शैलेंद्र ने यह फिल्म अपने संवेदनशील कवि मन की आत्म संतुष्टि कथा एक साहित्यिक कृति का सही संदेश देने के लिए फिल्म बनाई थी।

इस फिल्में व्यवसायिकता समावेश नहीं था बल्कि कलात्मकता और साहित्यिकता का समावेश था। इसलिए फिल्म के नाम पर व्यापार करने वालों के लिए यह फिल्म किसी काम की नहीं थी । यही कारण था कि जब इस फिल्म को आसानी से खरीदार नही मिले थे। बाद में इसी फिल्म में हिंदी फिल्म जगह में एक अनमोल कृति के रूप में अपना नाम दर्ज कराया है।


प्रश्न 5 : उनके गीत भाव-प्रवण थे- दुरूह नहीं।

आशय : इस पंक्ति का आशय यह है कि कभी शैलेंद्र जो भी बेचते थे वह भावनाओं से भरे हुए होते थे। उनके गीतों में आम जनमानस की भावना एवं संवेदना प्रकट होती थी। उनके गीतों की भाषा सरल एवं सहज होती थी, जो किसी भी आम व्यक्ति को आसानी से समझ में आ जाती थी। इसीलिए उनके गीतों को समझना कोई कठिन बात नहीं थी। यही कारण था उनके गीत हर किसी के मन की को गहराई तक छू जाते थे और बेहद लोकप्रिय होते थे।



भाषा अध्ययन

प्रश्न 1 : पाठ में आए ‘से’ के विभिन्न प्रयोगों से वाक्य की संरचना को समझिए।
  1. राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी किया।
  2. रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ।
  3. फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ़ थे।
  4. दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने के गणित जानने वाले की समझ से परे थी।
  5. शैलेंद्र राजकपूर की इस याराना दोस्ती से परिचित तो थे।

उत्तर : वाक्यों में ‘से’ के विभिन्न प्रयोगों से वाक्य की संरचना को इस प्रकार समझा जा सकता है।

1. राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी किया।
➲ यहाँ ‘से’ का प्रयोग हैसियत के संदर्भ में किया गया है। यह बताता है कि राजकपूर ने एक मित्र के रूप में शैलेंद्र को चेताया।

2. रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ।
➲ यहाँ ‘से’ का प्रयोग स्थान के स्रोत के रूप में किया गया है। यह दर्शाता है कि रातें सभी दिशाओं से कहानियाँ सुनाएंगी।

3. फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ़ थे।
➲ यहाँ ‘से’ का प्रयोग तौर-तरीकों के संदर्भ में किया गया है। यह बताता है कि वह फिल्म इंडस्ट्री के तौर-तरीकों से अनजान थे।

4. दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने के गणित जानने वाले की समझ से परे थी।
➲ यहाँ ‘से’ का प्रयोग तुलना और सीमा के संदर्भ में किया गया है। यह दर्शाता है कि इस फिल्म की संवेदना उस व्यक्ति की समझ से परे थी जो केवल लाभ की गणना जानता है।

5. शैलेंद्र राजकपूर की इस याराना दोस्ती से परिचित तो थे।
➲ यहाँ ‘से’ का प्रयोग संबंध और कारण के रूप में किया गया है। यह बताता है कि शैलेंद्र राजकपूर की दोस्ती से परिचित थे।

इस प्रकार, ‘से’ का प्रयोग अलग-अलग संदर्भों में किया गया है जैसे हैसियत, स्रोत, तौर-तरीकों, तुलना, और संबंध, जो वाक्य की संरचना और अर्थ को स्पष्ट करने में सहायता करते हैं।


प्रश्न 2 : इस पाठ में आए निम्नलिखित वाक्यों की संरचना पर ध्यान दीजिए-
  1. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।
  2. उन्होंने ऐसी फ़िल्म बनाई थी जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।
  3. फ़िल्म कब आई, कब चली गई, मालूम ही नहीं पड़ा।
  4. खालिस देहाती भुच्चे गाड़ीवान जो सिर्फ दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं।

उत्तर : आइए की इन वाक्यों की संरचना को समझते हैं…

1. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।
संरचना : यह एक वर्णनात्मक वाक्य है जिसमें ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की तुलना सैल्यूलाइड पर लिखी कविता से की गई है। इसमें ‘नहीं’ का प्रयोग नकारात्मकता को इंगित करता है और ‘थी’ का प्रयोग वाक्य को पूर्ण करता है।
• विषय : ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म
• क्रिया : नहीं थी
• वस्तु : सैल्यूलाइड पर लिखी कविता

2. उन्होंने ऐसी फ़िल्म बनाई थी जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।
संरचना : यह एक संयोजक वाक्य है जिसमें दो विचारों को जोड़ने के लिए ‘जिसे’ और ‘ही’ का प्रयोग किया गया है। इसमें ‘उन्होंने’ कर्ता (doer) है, और ‘ऐसी फ़िल्म’ कर्म है।
• विषय : उन्होंने
• क्रिया : बनाई थी
• वस्तु : ऐसी फ़िल्म
• पूरक : जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था

3. फ़िल्म कब आई, कब चली गई, मालूम ही नहीं पड़ा।
संरचना : यह एक समन्वय वाक्य है जिसमें दो घटनाओं (फ़िल्म का आना और जाना) को जोड़कर निष्कर्ष (मालूम नहीं पड़ा) पर पहुँचाया गया है।
• विषय : फ़िल्म
• क्रिया : आई, चली गई
• पूरक : कब, मालूम ही नहीं पड़ा

4. खालिस देहाती भुच्चे गाड़ीवान जो सिर्फ दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं।
संरचना : यह एक विशेषणीय वाक्य है जिसमें ‘खालिस देहाती भुच्चे गाड़ीवान’ के गुणों का वर्णन किया गया है। वाक्य में ‘जो’ का प्रयोग संबंधबोधक है और ‘दिल की जुबान’ और ‘दिमाग की नहीं’ का प्रयोग तुलना के रूप में किया गया है।
• विषय : खालिस देहाती भुच्चे गाड़ीवान
• विशेषण : जो सिर्फ दिल की जुबान समझता है
• विपर्यय : दिमाग की नहीं

इस प्रकार, इन वाक्यों की संरचना को समझकर यह ज्ञात होता है कि वाक्य कैसे बनाए गए हैं और उनके तत्व कैसे जुड़े हैं, जो पाठ की संपूर्णता और स्पष्टता में सहायक होते हैं।


प्रश्न 3 : पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए-
चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना

उत्तर : मुहावरों पर वाक्य
चेहरा मुरझाना : जैसे राजू को पता चला कि वह परीक्षा में फेल हो गया है तो सुनते ही उसका चेहरा मुरझा गया
चक्कर खा जाना : बाहर बहुत तेज धूप होने कारण राजू थोड़ी देर में चक्कर खाकर गिर पड़ा।
दो से चार बनाना : आजकल लालच और अंधी होड़ का युग है जिसमें लोग दो से चार बनाने में लगे रहते हैं।
आँखों से बोलना : उनका अभिनय इतना भाव प्रणव था कि वह आँखों से बोल काफी कुछ कह देते थे।


प्रश्न 4 : निम्नलिखित शब्दों के हिंदी पर्याय दीजिए।
  1. शिद्दत – …….
  2. याराना – ……….
  3. बमुश्किल – ………
  4. खालिस – ………..
  5. नावाकिफ़ – ……..
  6. यकीन – …………
  7. हावी – …………
  8. रेशा – ……….

उत्तर : दिए गए शब्दों के पर्याय इस प्रकार होंगे..

निम्नलिखित शब्दों के हिंदी पर्याय

1. शिद्दत – तीव्रता, गंभीरता
2. याराना – दोस्ती, मैत्री
3. बमुश्किल – कठिनाई से, मुश्किल से
4. खालिस – शुद्ध, निर्मल
5. नावाकिफ़ – अनजान, अपरिचित
6. यकीन – विश्वास, भरोसा
7. हावी – प्रभावशाली, नियंत्रित करने वाला
8. रेशा – तंतु, तागा


प्रश्न 5 : निम्नलिखित संधि विच्छेद कीजिए-
  1. चित्रांकन – ……… + ………
  2. सर्वोत्कृष्ट – ………. + ………..
  3. चर्मोत्कर्ष – ………… + ………….
  4. रूपांतरण – ……….. + ………….
  5. घनानंद – ………… + …………..

उत्तर : दिए शब्दों के संधि विच्छेद इस प्रकार होंगे…

  1. चित्रांकन : चित्र + अंकन
  2. सर्वोत्कृष्ट : सर्व + उत्कृष्ट
  3. चर्मोत्कर्ष : चरम + उत्कर्ष
  4. रूपांतरण : रूप + अंतरण
  5. घनानंद : घन + आनंद

प्रश्न 6 : निम्नलिखित का समास विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए-
(क) कला-मर्मज्ञ
(ख) लोकप्रिय
(ग) राष्ट्रपति

उत्तर : समास विग्रह इस प्रकार होगा…

(क) कला-मर्मज्ञ : कला का मर्मज्ञ (संबंध तत्पुरुष समास)
(ख) लोकप्रिय : लोक में प्रिय (करण तत्पुरुष समास)
(ग) राष्ट्रपति : राष्ट्र का पति (संबंध तत्पुरुष समास)



योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 : फणीश्वरनाथ रेणु की किस कहानी पर ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म आधारित है, जानकारी प्राप्त कीजिए और मूल रचना पढ़िए।

उत्तर : फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित है फिल्म ‘तीसरी कसम’। यह कहानी एक ईमानदार और मासूम गाड़ीवान, हीरामन, और एक नाचने वाली, हीराबाई, की सरल और भावनात्मक प्रेम कहानी को प्रस्तुत करती है।

‘मारे गए गुलफाम’ कहानी का सारांश

मुख्य पात्र
1. हीरामन : एक सरल और ईमानदार गाड़ीवान, जिसकी दुनिया उसकी बैलगाड़ी और उसके बैल हैं।
2. हीराबाई : एक सुंदर और हृदयस्पर्शी नाचने वाली, जो मेलों और कार्यक्रमों में नृत्य करती है।

कहानी का सारांश
हीरामन की बैलगाड़ी में एक दिन हीराबाई सफर करती है। हीरामन, अपनी निर्दोष और सरल प्रकृति के कारण, हीराबाई के प्रति आकर्षित हो जाता है। हीराबाई की सुंदरता और उसके कोमल व्यवहार से प्रभावित होकर हीरामन उसे अपना दोस्त मान लेता है। कहानी के दौरान, हीरामन और हीराबाई के बीच एक मासूम और भावनात्मक रिश्ता विकसित होता है।

ये कहानी समाज की कठोर वास्तविकताओं और नैतिकताओं को उजागर करती है, जो हीराबाई जैसी नर्तकियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखता है। अंततः, हीरामन को यह समझ में आता है कि वह हीराबाई को अपने साथ नहीं रख सकता क्योंकि समाज इसे स्वीकार नहीं करेगा।

कहानी का अंत भावनात्मक और मार्मिक है, जब हीरामन हीराबाई से अलग हो जाता है, अपनी बैलगाड़ी में वापस लौटते हुए। इस अंत में एक गहरा संदेश छुपा है, जो प्रेम और समाज की वास्तविकताओं के बीच संघर्ष को दर्शाता है।

विद्यार्थी किसी भी नजदीकी पुस्तकालय में जाकर फणीश्वरनाथ रेणु का साहित्य खोजें। उनकी पुस्तकों में ये कहानी मिल जाएगी। वे फणीश्वरनाथ रेणु की किताबों में इस कहानी को पढ़ सकते हैं। इस कहानी को भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और इसे कई भाषाओं में अनूदित भी किया गया है।

विद्यार्थी चाहें तो इसे साहित्यिक पुस्तकालयों, बुकस्टोर्स या ऑनलाइन प्लेटफार्म पर भी खोज सकते हैं। फणीश्वरनाथ रेणु के साहित्यिक कार्यों का आनंद उठाने के लिए उनकी अन्य कहानियाँ और उपन्यास भी पढ़ सकते हैं।


प्रश्न 2 : समाचार पत्रों में फ़िल्मों की समीक्षा दी जाती है। किन्हीं तीन फ़िल्मों की समीक्षा पढ़िए और तीसरी कसम’ फ़िल्म को देखकर इस फ़िल्म की समीक्षा स्वयं लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर : ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की समीक्षा इस प्रकार होगी..

फ़िल्म का नाम : तीसरी कसम
निर्देशक : बासु भट्टाचार्य
मुख्य कलाकार : राज कपूर, वहीदा रहमान
निर्माता : शैलेन्द्र
कहानी : फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित

कहानी का सारांश
‘तीसरी कसम’ एक गहरी भावनात्मक और सामाजिक कथा है जो एक सरल और मासूम गाड़ीवान, हीरामन (राज कपूर), और एक सुंदर नाचने वाली, हीराबाई (वहीदा रहमान), के बीच के अनोखे रिश्ते को प्रस्तुत करती है। फिल्म बिहार के ग्रामीण जीवन की पृष्ठभूमि में सेट है और भारतीय समाज की कठोर सच्चाइयों और नैतिकताओं को उजागर करती है।

राज कपूर ने हीरामन के किरदार में अपनी सरलता और मासूमियत को बेहतरीन तरीके से प्रदर्शित किया है। वहीदा रहमान ने हीराबाई के रूप में अपनी भूमिका को बखूबी निभाया है, उनकी आंखों की गहराई और भावनाओं ने दर्शकों के दिलों को छू लिया। दोनों अभिनेताओं के बीच की केमिस्ट्री अद्वितीय है और उनकी परफॉर्मेंस ने कहानी को जीवंत बना दिया।

बासु भट्टाचार्य का निर्देशन सहज और संवेदनशील है। उन्होंने कहानी के हर पहलू को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है। ग्रामीण जीवन की बारीकियों को जिस सजीवता से फिल्म में दर्शाया गया है, वह दर्शकों को बिहार की मिट्टी की खुशबू महसूस कराता है।

फ़िल्म का संगीत शंकर-जयकिशन द्वारा रचित है और गीत शैलेन्द्र द्वारा लिखे गए हैं। ‘सजन रे झूठ मत बोलो’ और ‘चलत मुसाफिर मोह लियो रे’ जैसे गीतों ने फिल्म को एक खास पहचान दी है। ये गीत कहानी के साथ पूरी तरह से मेल खाते हैं और फिल्म की भावना को और गहराई देते हैं।

फ़िल्म का छायांकन सुब्रत मित्रा द्वारा किया गया है, जो फिल्म के दृश्यों को बेहद खूबसूरत और वास्तविक बनाता है। ग्रामीण परिवेश, खेत-खलिहान, और मेलों की जीवंतता को बहुत ही प्रभावी तरीके से कैप्चर किया गया है।

संपादन में बासु भट्टाचार्य ने बहुत ही सटीकता से काम किया है। फिल्म का प्रवाह धीमा नहीं होता और दर्शक हर पल कहानी से जुड़े रहते हैं।

‘तीसरी कसम’ एक क्लासिक फिल्म है जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई है। यह फिल्म न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि समाज की गहराइयों में जाकर सोचने पर मजबूर करती है। फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी और बासु भट्टाचार्य का निर्देशन इसे एक अविस्मरणीय अनुभव बनाते हैं।

यह समीक्षा ‘तीसरी कसम’ की गहराई और सुंदरता को दर्शाने का एक प्रयास है। यह फिल्म भारतीय सिनेमा में अपनी अद्वितीयता और संवेदनशीलता के लिए हमेशा याद रखी जाएगी।



परियोजना कार्य

प्रश्न 1 : फ़िल्मों के संदर्भ में आपने अकसर यह सुना होगा-‘जो बात पहले की फ़िल्मों में थी, वह अब कहाँ’। वर्तमान दौर की फ़िल्मों और पहले की फ़िल्मों में क्या समानता और अंतर है? कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर : फिल्में समाज का दर्पण होती हैं और समय के साथ-साथ उनमें भी बदलाव आते रहते हैं। पहले की फिल्मों और वर्तमान दौर की फिल्मों में कई समानताएं और अंतर होते हैं। यहां उन पर एक नजर डालते हैं:

समानताएं

1. कहानी की महत्ता : पहले की फिल्मों में भी कहानी का महत्व था और आज भी है। एक अच्छी कहानी दर्शकों को हमेशा आकर्षित करती है।

2. भावनात्मक तत्व : दोनों दौर की फिल्मों में भावनात्मक तत्व प्रमुखता से दिखते हैं। प्यार, दोस्ती, परिवार और समाज जैसे मूल भावनात्मक विषय हमेशा फिल्म का हिस्सा रहे हैं।

3. गीत-संगीत : संगीत और गीत फिल्मों का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। पहले की फिल्मों में भी संगीत को महत्वपूर्ण माना जाता था और आज भी गीत-संगीत का महत्वपूर्ण स्थान है।

अंतर

1. तकनीकी विकास : पहले की फिल्मों में तकनीकी संसाधनों की कमी थी, जिससे विशेष प्रभाव (VFX) और ध्वनि गुणवत्ता में अंतर होता था। आज की फिल्मों में अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाता है, जिससे दृश्य और ध्वनि में बहुत सुधार हुआ है।

2. कहानी की जटिलता : पहले की फिल्मों में सरल और सीधी कहानियाँ होती थीं, जबकि आज की फिल्मों में जटिल कथानक और विविधता देखी जाती है। आज की कहानियाँ अधिक वास्तविक और जमीनी होती हैं।

3. सामाजिक मुद्दे : पहले की फिल्मों में पारिवारिक और सामाजिक मुद्दों पर जोर दिया जाता था, जबकि आज की फिल्मों में आधुनिक समाज के मुद्दों, जैसे महिला सशक्तिकरण, LGBTQ+ अधिकार, मानसिक स्वास्थ्य आदि पर ध्यान दिया जाता है। आज की फिल्मे जैसे टायलेट एक प्रेम कथा, पैडमैन, थप्पड़, पिंक, क्वीन, छपाक जैसे फिल्मों ने विभिन्न सामाजिक मुद्दों को उठाया है।

4. अभिनय में अंतर : पहले की फिल्मों में अभिनय का तरीका बहुत नाटकीय होता था। दृश्यों और कहानी में भी नाटकीयता होती थी लेकिन कलाकार हर तरह की भूमिका करने में संकोच नही करते थे। पहले की फिल्मों स्टारडम नहीं होता था।  आजकल की फिल्मों में अधिक स्वाभाविक और वास्तविक अभिनय की प्रवृत्ति तो है, लेकिन बहुत से कलाकार केवल खास रोल ही करना पसंद करते हैं। वह अपने स्टारडम से बाहर नहीं निकलना चाहते थे।

5. गीत-संगीत के स्तर में गिरावट : पहले की फिल्मों के गीत संगीत बेहद मधुर होते थे और गीतों का स्तर उत्कृष्ट कोटि का होता था। गीतों की भाषा शालीन और सभ्य होती थी तथा संगीत में बेहद मधुरता होती थी। पुरानी फिल्मों का गीत संगीत आज भी गुनगुनाया जाता है जबकि आज की फिल्मों के गीत संगीत में गिरावट आई है। गीतों में द्वि-अर्थी शब्दों और अश्लील शब्दों की भरमार होती है। संगीत भी बेहद भौंडा और शोर-शराबे वाला होता है। आज की फिल्मों के गीत-संगीत में से मधुरता गायब हो चली है।

6. सेंसरशिप और स्वातंत्रता : पहले की फिल्मों में सेंसरशिप का कड़ा नियंत्रण था और फिल्मों में कई विषयों पर बात करना कठिन था। आज की फिल्मों में विषयवस्तु पर अधिक स्वतंत्रता है और निर्माता विभिन्न मुद्दों पर खुलकर बात कर सकते हैं।

7. व्यापारिक दृष्टिकोण : पहले की फिल्मों में कला और कहानी पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था, जबकि आज की फिल्मों में व्यापारिक दृष्टिकोण और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन महत्वपूर्ण हो गए हैं। बड़ी बजट की फिल्में और मार्केटिंग पर ज्यादा जोर दिया जाता है।

निष्कर्ष

पहले की फिल्मों में भावनात्मक गहराई और सरलता थी, जबकि आज की फिल्मों में तकनीकी उत्कृष्टता और विविधता है। दोनों ही दौर की फिल्मों का अपना महत्व और खूबसूरती है। पहले की फिल्में एक प्रकार की पारंपरिकता और सादगी लिए हुए होती थीं, जबकि आज की फिल्में आधुनिकता और जटिलता को दर्शाती हैं। दोनों ही अपने-अपने समय का प्रतिनिधित्व करती हैं और दर्शकों को मनोरंजन और विचार दोनों प्रदान करती हैं।

कक्षा में इस विषय पर चर्चा करते समय, दो या दो से अधिक विद्यार्थी दोनों दौर की फिल्मों के उदाहरण दे सकते हैं और उनसे उनके विचार पूछ सकते हैं कि वे किस प्रकार की फिल्मों को अधिक पसंद करते हैं और क्यों। इससे वे फिल्मों की विकास यात्रा और समाज पर उनके प्रभाव को बेहतर ढंग से समझ सकेंगे।


प्रश्न 2 : ‘तीसरी कसम’ जैसी और भी फ़िल्में हैं, जो किसी न किसी भाषा की साहित्यिक रचना पर बनी हैं। ऐसी फ़िल्मों की सूची निम्नांकित प्रपत्र के आधार पर तैयार करें।
क्र. संफिल्म का नामसाहित्यिक रचनाभाषारचनाकार
1.देवदासदेवदासबंगलाशरत्चंद्र

उत्तर : कई साहित्यिक रचनाओं पर फिल्में बनी है। ऐसी ही कुछ फिल्मों के नाम इस प्रकार है…

क्र. संफिल्म का नामसाहित्यिक रचनाभाषारचनाकार
1.देवदासदेवदासबंगलाशरत्चंद्र
2.शतरंज के खिलाड़ीशतरंज के खिलाड़ीहिंदीप्रेमचंद
3.नजरानालक्ष्मण रेखाहिंदीगुलशन नंदा
4.झील के उस पारझील के उस पारहिंदीगुलशन नंदा

प्रश्न 3 : लोकगीत हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं। तीसरी कसम’ फ़िल्म में लोकगीतों का प्रयोग किया गया है। आप भी अपने क्षेत्र के प्रचलित दो-तीन लोकगीतों को एकत्र कर परियोजना कॉपी पर लिखिए।

उत्तर :  लोकगीत हमारे सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं और यह हमारे रीति-रिवाजों, परंपराओं और जीवनशैली को दर्शाते हैं। ‘तीसरी कसम’ फिल्म में भी लोकगीतों का प्रयोग करके कहानी को और अधिक सजीव और प्रभावी बनाया गया है।

यहां आपके लिए कुछ प्रचलित लोकगीत प्रस्तुत किए जा रहें जो भारत के अलग-अलग राज्यों की लोक विरासत को प्रकट करते हैं…

1. बिहार का लोकगीत: ‘बिदेसिया’

बिदेसिया बिहार का एक प्रमुख लोकगीत है, जिसे विशेष रूप से छठ पूजा और विवाह जैसे अवसरों पर गाया जाता है। यह गीत प्रायः प्रवासी मजदूरों के दर्द और उनके परिवारों की भावनाओं को दर्शाता है।

पिया जी सजनवा ए बिदेसिया
बिदेसी पिया जी सजनवा ए बिदेसिया
काहे सजनवा बिदेस गइले ओ बिदेसिया
ए बिदेसिया, बिदेसिया ए बिदेसिया
पिया जी सजनवा ए बिदेसिया

2. राजस्थान का लोकगीत: ‘केसरिया बालम’

केसरिया बालम राजस्थान का एक प्रसिद्ध लोकगीत है जो अपने प्रियजन की वापसी का स्वागत करने के लिए गाया जाता है। यह गीत राजस्थान की संस्कृति और रंगीनता को दर्शाता है।

केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देस
केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देस
चाकी री चन्दन री गंध पधारो म्हारे देस
केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देस

3. महाराष्ट्र का लोकगीत: ‘लावणी’

लावणी महाराष्ट्र का एक लोकप्रिय लोकगीत है जो अपने तेज़ और जीवंत ताल के लिए प्रसिद्ध है। यह गीत विशेष रूप से तमाशा और अन्य लोक नृत्यों में गाया जाता है।

पिंगळ्या पिंजऱ्यात सोन्याचा पिंजरा
उधळला मोगरा
चाफा बोलेना, चाफा चालेना
चाफा चालेना, चाफा बोलेना

परियोजना के लिए सुझाव

विद्यार्थी अपनी परियोजना कॉपी पर इन लोकगीतों को अच्छे तरीके से लिख सकते हैं। इसके साथ ही, आप इन गीतों के बारे में संक्षिप्त परिचय, उनके महत्व और संबंधित सांस्कृतिक जानकारी भी जोड़ सकते हैं। आप चाहें तो कुछ चित्र भी जोड़ सकते हैं जो इन गीतों को और आकर्षक बना देंगे।

परियोजना का स्वरूप इस प्रकार होगा..

1. शीर्षक: अपने क्षेत्र के प्रचलित लोकगीत
2. परिचय: लोकगीतों का महत्व और उनकी विशेषताएं
3. लोकगीत
– गीत का शीर्षक
– गीत के बोल
– गीत का महत्व और प्रसंग

इस प्रकार, विद्यार्थी अपनी परियोजना को पूर्ण कर सकते हैं और अपनी संस्कृति के लोकगीतों को संरक्षित करने में योगदान दे सकते हैं।


तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र : प्रहलाद अग्रवाल (कक्षा-10 पाठ-11 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions)


कक्षा-10 हिंदी स्पर्श 2 पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ

साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

कर चले हम फिदा : कैफ़ी आज़मी (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श भाग-2) (हल प्रश्नोत्तर)

आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

बड़े भाई साहब : प्रेमचंद (कक्षा-10 पाठ-8 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

डायरी का एक पन्ना : सीताराम सेकसरिया (कक्षा-10 पाठ-9 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तताँरा-वामीरो की कथा : लीलाधर मंडलोई (कक्षा-10 पाठ-10 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

महर्षि का संधि विग्रह कीजिए​। संधि का नाम लिखें।

महर्षि का संधि विग्रह :

महर्षि : महा + ऋषि
संधि भेद : गुण स्वर संधि

 

स्पष्टीकरण

‘महर्षि’ में गुण स्वर संधि है। गुण स्वर संधि का जो नियम यहाँ पर लाग होता है, वह नियम इस प्रकार है…
जब ‘आ’ और ‘ऋ’ का मेल होता है तो ‘अर्’ बनता है। महा का ‘आ’ और ऋषि के ‘ऋ’ के मेल से ‘अर्’ बना है। इसी कारण महर्षि में गुण स्वर संधि है।
गुण स्वर संधि जिसे संक्षेप में गुण संधि भी कहते है, ये संधि स्वर संधि के पाँच उपभेदों में एक भेद है।

स्वर संधि के पाँच उपभेद इस प्रकार हैं…

  • दीर्घ स्वर संधि
  • गुण स्वर संधि
  • यण स्वर संधि
  • वृद्धि स्वर संधि
  • अयादि स्वर संधि

संधि से तात्पर्य दो शब्दों के संयोजन से होता है। जब दो शब्दों में से प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण और द्वितीय शब्द के प्रथम वर्ण के संयोजन से जो नया शब्द बनता है, वह ‘संधि’ कहलाता है। इस संधि को पुनः उसके मूल शब्दों में अलग कर देना ‘संधि-विच्छेद’ कहलाता है। संधि के तीन भेद होते हैं

  • स्वर संधि
  • व्यंजन संधि
  • विसर्ग संधि

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स्पष्टीकरण

‘हिमालय’ में दीर्घ स्वर संधि है, जिसे दीर्घ संधि भी कहते हैं। ये संधि स्वर संधि के पाँच उपभेदों मे से एक उपभेद है।
हिमालय में दीर्घ संधि का जो नियम लागू होता है, वह इस प्रकार है…

जब ‘अ’ और ‘आ’ का मेल होता है तो ‘आ’ बनता है। यहाँ पर हिम के अंतिम वर्ण ‘अ’ और आलय के अंतिम वर्म ‘आ’ का मेल होकर ‘आ’ बन रहा है।

इसलिए इस नियम के अनुसार हिमालय में दीर्घ स्वर संधि है।

स्वर संधि, संधि के तीन भेदों में एक है। संधि के तीन भेद हैं..

  • स्वर संधि
  • व्यंजन संधि
  • विसर्ग संधि

स्वर संधि के पाँच उपभेद..

  • दीर्घ संधि
  • गुण संधि
  • यण संधि
  • वृद्धि संधि
  • अयादि संधि

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‘भवनम’ का संधि विच्छेद करो।