Home Blog Page 3

प्रशासनिक कानून का सम्बन्ध किस देश से है? (1) अमेरिका (2) फ्रांस (3) भारत (4) ब्रिटेन

सही उत्तर है…

(2) फ्रांस

══════════

व्याख्या

प्रशासनिक कानून का सम्बन्ध मुख्य रूप से फ्रांस से है। प्रशासनिक कानून की उत्पत्ति और विकास का श्रेय फ्रांस को जाता है। 18वीं शताब्दी के अंत में फ्रांसीसी क्रांति के बाद, फ्रांस में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था की नींव रखी गई। इस व्यवस्था का उद्देश्य सरकार और नागरिकों के बीच संबंधों को नियंत्रित करना था।

फ्रांस में, प्रशासनिक कानून को ‘द्रोइट एडमिनिस्ट्रेटिफ’ के नाम से जाना जाता है। यहां एक अलग प्रशासनिक न्यायालय प्रणाली विकसित की गई, जिसका शीर्ष न्यायालय ‘कॉन्सेइल द’एटाट’ (राज्य परिषद) है। यह प्रणाली सरकारी कार्यों की न्यायिक समीक्षा और नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करती है।

फ्रांस के इस मॉडल ने दुनिया भर के कई देशों को प्रभावित किया, जिसमें भारत भी शामिल है। हालांकि अन्य देशों ने भी प्रशासनिक कानून के विकास में योगदान दिया है, लेकिन इसकी मूल अवधारणा और संरचना फ्रांस से ही आई है।


Related questions

‘मार्सटीन मार्क्स’ ने नौकरशाही के कितने स्वरूपों का वर्णन किया है? (1) तीन (2) चार (3) पाँच (4) छः

‘गैंगप्लांक विधि’ निम्न में किस सिद्धांत से सम्बन्धित (1) पद सोपान (2) नियन्त्रण क्षेत्र (3) केन्द्रीयकरण (4) विकेन्द्रीयकरण

‘मार्सटीन मार्क्स’ ने नौकरशाही के कितने स्वरूपों का वर्णन किया है? (1) तीन (2) चार (3) पाँच (4) छः

इस प्रश्न का सही उत्तर है, विकल्प…

(2) चार

═════════════

व्याख्या

मार्सटीन मार्क्स ने नौकरशाही के चार स्वरूपों का वर्णन किया है।

फ्रिड्ज मार्सटीन मार्क्स, एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री और राजनीतिक वैज्ञानिक थे, जिन्होंने नौकरशाही के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया और उसे चार मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया। ये चार स्वरूप हैं:

1. अभिभावक नौकरशाही (Guardian Bureaucracy)
2. जातिगत नौकरशाही (Caste Bureaucracy)
3. संरक्षण नौकरशाही (Patronage Bureaucracy)
4. योग्यता आधारित नौकरशाही (Merit Bureaucracy)

प्रत्येक स्वरूप नौकरशाही के एक विशिष्ट पहलू को दर्शाता है और इसकी अपनी विशेषताएं और कार्य प्रणालियां हैं। मार्क्स का यह वर्गीकरण नौकरशाही की जटिलताओं को समझने और विभिन्न प्रशासनिक व्यवस्थाओं का विश्लेषण करने में मदद करता है।

यह वर्गीकरण नौकरशाही के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है और प्रशासनिक सिद्धांतों के क्षेत्र में व्यापक रूप से उद्धृत किया जाता है।


Related questions

‘गैंगप्लांक विधि’ निम्न में किस सिद्धांत से सम्बन्धित (1) पद सोपान (2) नियन्त्रण क्षेत्र (3) केन्द्रीयकरण (4) विकेन्द्रीयकरण

‘अन्त्योदय की राजनीतिक धारणा का क्या अर्थ है? (1) सबका कल्याण (2) सांस्कृतिक राष्ट्रवाद (3) बुनियादी शिक्षा (4) समाज के वंचित वर्गों का

‘गैंगप्लांक विधि’ निम्न में किस सिद्धांत से सम्बन्धित (1) पद सोपान (2) नियन्त्रण क्षेत्र (3) केन्द्रीयकरण (4) विकेन्द्रीयकरण

सही उत्तर होगा…

(2) नियंत्रण क्षेत्र

════════════

व्याख्या :

गैंगप्लांक विधि नियंत्रण क्षेत्र के सिद्धांत से संबंधित है। इस विधि का मुख्य उद्देश्य प्रबंधन में कार्यकुशलता और प्रभावशीलता बढ़ाना है।

नियंत्रण क्षेत्र का सिद्धांत यह बताता है कि एक प्रबंधक कितने अधीनस्थों का प्रभावी ढंग से नियंत्रण और पर्यवेक्षण कर सकता है। गैंगप्लांक विधि इस सिद्धांत को लागू करने का एक तरीका है, जिसमें एक प्रबंधक अपने नियंत्रण क्षेत्र को विस्तारित करता है। इस विधि में, प्रबंधक अपने कुछ अधीनस्थों को अधिक जिम्मेदारियां और अधिकार देता है, जिससे वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें और अन्य कर्मचारियों का मार्गदर्शन कर सकें।

यह विधि संगठन में संचार को बेहतर बनाती है, निर्णय लेने की प्रक्रिया को तेज करती है, और कर्मचारियों के बीच नेतृत्व कौशल विकसित करने में मदद करती है। इस प्रकार, गैंगप्लांक विधि नियंत्रण क्षेत्र के सिद्धांत का एक प्रभावी उपयोग है, जो संगठनात्मक संरचना को अधिक कुशल और लचीला बनाता है।


Related questions

एम. एन. राय ने जिस ‘संगठित-लोकतंत्र’ की परिकल्पना की है, उसके अंग हैं? (1) स्वप्रेरणा से बनी स्थानीय समितियाँ (2) जन-समितियों द्वारा उच्चतर समिति निर्माण (3) उच्च समितियों द्वारा जन-समिति पर नियंत्रण (4) उपरोक्त में कोई नहीं

अन्याय के अहिंसक प्रतिरोध की गांधीवादी तकनीक ‘सत्याग्रह’ में शामिल नहीं है? (1) असहयोग (2) सविनय अवज्ञा (3) निष्क्रिय प्रतिरोध (4), हिजरत-स्थान छोड़ देना

ताजा और हरी साग-सब्जी के फायदों के बारे में बात करते हुए दो मित्रों के बीच के संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

ताजा और हरी साग-सब्जी के फायदों के बारे में संवाद

संदीप ⦂ अरे विनीत, आजकल तुम बड़े फिट और हेल्दी दिख रहे हो। क्या राज है इसका?

विनीत ⦂ धन्यवाद संदीप! दरअसल, मैंने हाल ही में अपनी डाइट में बदलाव किया है। अब मैं रोजाना ताजी और हरी साग-सब्जियां खाता हूं।

संदीप ⦂ अच्छा! यह तो बहुत अच्छी बात है। पर इससे क्या फायदे हुए तुम्हें?

विनीत ⦂ अरे भाई, फायदों की तो लिस्ट ही लंबी है। सबसे पहले तो मेरी पाचन क्रिया बहुत बेहतर हो गई है। कब्ज की समस्या से मुक्ति मिल गई।

संदीप ⦂ वाह! यह तो बहुत अच्छा हुआ। और क्या फायदे हुए?

विनीत ⦂ मेरी त्वचा पहले से ज्यादा चमकदार हो गई है। विटामिन और मिनरल्स की वजह से मेरी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ गई है।

संदीप ⦂ सुनकर बहुत अच्छा लगा। मुझे भी शायद अपनी डाइट में बदलाव करना चाहिए।

विनीत ⦂ बिल्कुल! और सुनो, इन सब्जियों में एंटीऑक्सीडेंट्स भी होते हैं जो कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं।

संदीप ⦂ यह तो बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है। तुम कौन-कौन सी सब्जियां खाते हो?

विनीत ⦂ पालक, मेथी, धनिया, गाजर, टमाटर, खीरा – जो भी मौसमी और ताजा मिलता है।

संदीप ⦂ वाह! मुझे भी अब से यही करना चाहिए। धन्यवाद इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए।

विनीत ⦂ अरे इसमें धन्यवाद कैसा? दोस्त हैं, एक-दूसरे की मदद तो करनी ही चाहिए। चलो, कल से साथ में सब्जी मंडी चलते हैं।

संदीप ⦂ बिल्कुल! यह रहा मेरा हाथ, कल से नई शुरुआत!


Other samvad

कोरोना के कारण 3 साल बाद मिल रहे सहपाठियों के बीच हो रही बातचीत को संवाद लेखन के रूप मे लिखें।

दो सैनिकों के बीच हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

कचरा बीनने वाले से हुए संवाद को लिखिए।

पिकनिक की योजना बनाते हुए भाई-बहन के बीच संवाद लिखिए।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ से प्रथम परिचय कहाँ और कब हुआ था?

0

आचार्य रामचंद्र शुक्ल से प्रेमघन का प्रथम परिचय 1896 ईस्वी में ‘काशी’ (वाराणसी) में हुआ था। उस समय प्रेमघन ‘आनंद कादंबनी’ नामक पत्रिका के मुख्य संपादक थे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल भी अपने निबंध लिखने लगे थे। वह ‘भारत एवं बसंत’ नामक निबंध को आनंद कदंबिनी पत्रिका में प्रकाशित करवाने के संबंध में काशी (वाराणसी) में बद्री नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ से मिले। यहीं पर दोनों का प्रथम परिचय हुआ। बाद में 1896-97 ईस्वी में ही आचार्य रामचंद्र शुक्ल का निबंध ‘भारत और वसंत’ आनंद कदंबिनी पत्रिका में प्रकाशित भी हुआ।

इसके बाद शुक्ल जी और प्रेमघन की दोनों में गहरी मित्रता हो गई। 1903 ईस्वी में प्रेमघन ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल को ‘आनंद कादंबिनी’ पत्रिका के सहायक संपादक के रूप में जोड़ लिया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 1903 से 1908 ई तक आनंद कदंबिनी पत्रिका का सहायक संपादन कार्य किया।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के जाने-माने निबंधकार थे, जिन्होंने अनेक महत्वपूर्ण और कालजयी निबंधों की रचना की है। उनके द्वारा लिखे गए प्रमुख निबंधों में लोभ और प्रीति, क्रोध, अध्ययन, मित्रता जैसे निबंधों का नाम प्रमुख है। उनके द्वारा लिखे गए निबंध चिंतामणि नामक ग्रंथ में संकलित किए गए हैं।


Other questions

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध किस नाम से प्रकाशित हैं। A. मणि B. फुलमणि C. चिंतामणि D. नीलमणि ​

हिंदी गद्य साहित्य के द्वितीय उत्थान का प्रारंभ हुआ (1) संवत् 1918 में (2) संवत् 1930 में (3) संवत् 1936 में (4) संवत् 1950 में

Which sect of Christian believe that the Christ is the head of the church?

Several Christian denominations believe that Christ is the head of the church, but this concept is particularly emphasized in:

1. Protestant churches: Most Protestant denominations, including but not limited to:
◆ Evangelical churches
◆ Baptist churches
◆ Lutheran churches
◆ Presbyterian churches
◆ Methodist churches
◆ Pentecostal churches

2. Eastern Orthodox Church: While they have a hierarchical structure, they maintain that Christ is the true head of the church.

3. Some Anglican communities: Though they have a hierarchical structure with bishops and archbishops, many Anglicans also affirm Christ as the head of the church.

4. Many non-denominational Christian churches: These groups base this belief on biblical passages such as Ephesians 1:22-23 and Colossians 1:18, which describe Christ as the head of the church.

It’s worth noting that while the Roman Catholic Church also recognizes Christ’s supreme authority, they believe that the Pope, as the successor of St. Peter, is Christ’s vicar (representative) on earth and the visible head of the church.


Other questions

Discuss the role of Planning Commission in India

माँ और बेटी की अध्यापिका के बीच बेटी की पढ़ाई को लेकर बातचीत लिखिए।

संवाद

माँ और बेटी की अध्यापिका के बीच संवाद

 

बेटी की माँ ⦂ नमस्ते, अध्यापिका जी।

अध्यापिका ⦂ नमस्ते, मिसेज शर्मा

बेटी की माँ ⦂ अध्यापिका जी, मेरी बेटी गरिमा ने बताया था कि आप मुझसे कुछ बात करना चाहती हैं, इसलिए आपसे मिलने आई हूँ।

अध्यापिका ⦂ हाँ, मिसेज शर्मा, मैं आपकी बेटी गरिमा की पढ़ाई के विषय में आपसे बात करना चाहती हूँ।

बेटी की माँ ⦂ बोलिए मेरी बेटी अच्छी तरह पढ़ाई कर रही है ना?

अध्यापिका ⦂ वही बात तो मैं आपसे कहना चाह रही हूँ। आपकी बेटी आजकल पढ़ाई पर ध्यान नहीं देती है। वह स्कूल में पढ़ाई में बिल्कुल पिछड़ती जा रही है।

बेटी की माँ ⦂ अच्छा।

अध्यापिका ⦂ हाँ और क्लास में पता नहीं किन ख्यालों में खोई रहती है, कुछ भी नहीं पूछती। सब छात्राएं पढ़ाई करते समय अध्यापकों से अपनी समस्याओं के बारे में पूछती रहती हैं, लेकिन आपकी बेटी चुपचाप बैठी रहती है।

बेटी की माँ ⦂ मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है। घर पर भी वो सही से पढ़ाई नहीं करती और गुमसुम रहती है।

अध्यापिका ⦂ इसीलिए मैंने आपको बुलाया था। आप घर पर उससे बात करिए और उसकी पढ़ाई के विषय में पूछिए।

बेटी की माँ ⦂ ठीक है, मैं उससे बात करती हूँ, जरूर उसके मन में कोई चिंता है।

अध्यापिका ⦂ हाँ, वो पहले पढ़ाई में बहुत अच्छी थी, लेकिन अब पिछड़ गई है। मैं कल आपके घर आती हूँ और हम दोनों साथ बैठ कर उससे बात करेंगे।

बेटी की माँ ⦂ अध्यापिका जी, यह सबसे अच्छा रहेगा। आपके सहयोग के लिए धन्यवाद। मैं कल आपका इंतजार करूंगी। आप खाना भी हमारे घर खाकर जाइएगा।

अध्यापिका ⦂ ठीक है, मैं कल रात 8⦂00 बजे आती हूँ। आपके घर पर उससे बात करना ठीक रहेगा।

बेटी की माँ ⦂ ठीक है। अब मै चलती हूँ। मैं कल आपका इंतजार करूंगी। नमस्ते।

अध्यापिका ⦂ नमस्ते।


Related questions

खेलकूद में भाग लेने के कारण आप घर देर से पहुँचे, इस स्थिति में माता जी के साथ हुए अपने वार्तालाप को लिखें।

गेंद और बल्ला आपस में क्या बातचीत कर रहे हैं? सोचकर लिखिए।

कल्पना कीजिए कि आपको एक सप्ताह के लिए विदेश जाने का मौका मिला है। आप किस जगह पर जाना चाहेंगे? उसके बारे में 100-150 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखें।

अनुच्छेद

यदि मुझे एक सप्ताह को विदेश जाने का मौका मिले

 

यदि मुझे एक सप्ताह विदेश जाने का मौका मिलेगा तो मैं दुबई जाना चाहूंगी । दुबई में जाकर में बड़ी-बड़ी इमारतें और बीच और प्राकृतिक नज़ारा देखना चाहती हूँ । दुबई घूमने के लिए बहुत अच्छा शहर है। यहाँ पर दुनिया की सबसे ऊँची इमारत बुर्ज खलीफा है। मैं दुबई की बुर्ज खलीफा देखना चाहती हूँ । यह इमारत बहुत प्रसिद्ध है । मैं दुबई के मॉल में जाकर बहुत सारी शॉपिंग करना चाहती हूँ। दुबई शॉपिंग करने के लिए बहुत अच्छा जगह है। मैं दुबई संग्रहालय देखना चाहूंगी। मैं दुबई और पूरे यूएई की संस्कृति को देखना चाहती हूँ। दुबई से सोना खरीदना चाहूंगी। दुबई जाकर घूमना यह मेरा सपना है । एक दिन मैं जरूर दुबई जाना चाहूंगी।


Related questions

इस विषय पर एक अनुच्छेद लिखिए – ‘जब मैं बीमार हुआ।’

‘प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ’ इस विषय पर एक अनुच्छेद लिखें।

कवि ने सब को एक होकर चलने को क्यों कहा है ?

0

कवि ने सबको एक होकर चलने के लिए इसलिए कहा है, क्योंकि हम सभी मनुष्य एक ही परमपिता परमेश्वर की संतान हैं। यदि हम सब मनुष्य एक होकर चलेंगे तो अपने लक्ष्य को अधिक सरलता से प्राप्त कर सकते हैं। यदि हम धर्म, जाति, भाषा, संस्कृति, देश आदि का भेदभाव बुलाकर एक होकर चलेंगे तो मिल जुल कर एक दूसरे का सहयोग करते हुए अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकेंगे। अपने लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग पर चलते हुए एक दूसरे का सहयोग करते हुए निरंतर आगे बढ़ना ही मनुष्यता कहलाती है। यही मानवता का सबसे बड़ा गुण है। इसीलिए इसी गुण के कारण मनुष्य जाति में शांति एवं सद्भाव उत्पन्न हो सकता है और मनुष्य की उन्नति एवं कल्याण तभी संभव है।

इसी कारण ‘मनुष्यता’ कविता में कवि मैथिली शरण गुप्त ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा दी है। ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य के महत्वपूर्ण गुण मनुष्यता का विवेचन किया है और मनुष्य को मनुष्यता का गुण अपनाने की सलाह दी है।


Related questions

‘हम जब होंगे बड़े’ कविता का भावार्थ लिखें।

कवि का स्वप्न भंग किस जीवन-सत्य की ओर संकेत करता है?

खेलकूद में भाग लेने के कारण आप घर देर से पहुँचे, इस स्थिति में माता जी के साथ हुए अपने वार्तालाप को लिखें।

संवाद

खेलकूद में भाग लेने के कारण देर से पहुंचे पुत्र के साथ माता का संवाद

 

माँ ⦂ अमित घड़ी में देखो रात के नौ बज रहे हैं? यह कोई समय है घर आने का? इतनी देर कैसे हो गई?

पुत्र माँ, मेरे विद्यालय की तरफ से खेलकूद की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। हमें स्टेडियम में अपनी परफॉर्मेंस देनी थी, इसी कारण देर हो गई।

माँ ⦂ माता, तुमने मुझे पहले तो इस बारे में कुछ नहीं बताया।

पुत्र ⦂ माँ, मैंने अचानक ही टेनिस के खेल में भाग लिया था, क्योंकि जो खिलाड़ी खेलना था, वह चोट लगने के कारण मैच से बाहर हो गया और मेरा नाम सेलेक्ट हो गया। मैं आपको बता नहीं पाया। मुझे लगा टेनिस की प्रतियोगिता शाम को जल्दी हो जायेगी और मैं समय पर घर आ जाऊंगा, लेकिन टेनिस की प्रतियोगिता का समय बदल गया और वो सबसे आखिर में हुई, इसी कारण मुझे देर हो गई।

माता ⦂ अच्छा, चलो ठीक है। लेकिन तुम मुझे फोन कर देते कि मैं देर से आऊंगा।

पुत्र ⦂ माँ, हमारी प्रतियोगिता स्थल पर किसी को फोन करने की अनुमति नहीं थी। सबके मोबाइल फोन जमा करा लिए गए थे।

माता ⦂ ठीक है, मैं तुम्हारे देर से आने का चिंता कर रही थी। तुम्हारे पिताजी भी तुम्हारे देर से होने के कारण तुम्हें ढूंढने तुम्हारे विद्यालय की तरफ गए हैं। मैं उन्हें फोन कर देती हूँ, कि तुम घर आ गए।

पुत्र ⦂ हाँ, माँ, फोन कर दो। वे भी परेशान होंगे।

माँ ⦂ ठीक है, मैं फोन करती हूँ। तुम हाथ-मुँह धो लो और खाना खा लो। आइंदा कभी जब भी किसी काम से घर आने में देर हो जाए, तो कोशिश करना कि मुझे एक फोन कर दो।

पुत्र ⦂ हाँ, माँ, ठीक है।


Related questions

गेंद और बल्ला आपस में क्या बातचीत कर रहे हैं? सोचकर लिखिए।

कोरोना के कारण 3 साल बाद मिल रहे सहपाठी के बीच हो रही बातचीत को संवाद लेखन के रूप मे लिखें।

गेंद और बल्ला आपस में क्या बातचीत कर रहे हैं? सोचकर लिखिए।

संवाद

गेंद और बल्ला के बीच संवाद

 

(क्रिकेट की गेंद और बल्ला आपस में बातचीत कर रहे हैं।)

बल्ला ⦂ और सुनाओ गेंद, आजकल क्या चल रहा है?

गेंद ⦂ मेरा तो ठीक चल रहा है, तुम अपना सुनाओ। तुम आजकल बहुत चौड़े हो रहे हो।
बल्ला ⦂ क्यों क्या बात हो गई, बहन?

गेंद ⦂ तुम मुझ पर तीखा प्रहार करते हो और मुझे सीधे बाउंड्री के बाहर फेंकने की कोशिश करते हो। तुम्हें मुझ पर जरा भी दया नहीं आती।

बल्ला ⦂ हा हा हा, अरे वह मैं नहीं करता। मैं जिसके हाथ में होता हूँ, वह करता है। यानि ये सब बल्लेबाज करता है, इसमें मेरा क्या दोष?

गेंद ⦂ यह तुम इतनी जोर से मुझे पर वार करते हो कि मैं सीधे बाउंड्री के बाहर गिरती हूँ, तब मुझे बड़ा दर्द होता है।

बल्ला ⦂ अच्छा। सॉरी मेरी वजह से तुम्हे तकलीफ होती है।

गेंद ⦂ तुम्हारे तो मजे हैं। तुम केवल बल्लेबाज के हाथ में रहते हो। जब कि मुझे मैदान में चारों तरफ भटकना पड़ता है। कोई मुझे इधर फेंकता है, कोई मुझे उधर फेंकता है। मेरे शरीर का अंग-अंग दुखने लगता है। उस पर तुम मुझ अलग प्रहार करते हों। सब मुझे फेंकते या पीटते ही रहते हैं।

बल्ला ⦂ अरे, मैं भले ही बल्लेबाज के हाथ में रहता हूँ, लेकिन बल्लेबाज मुझ पर भी बहुत जोर लगाता है। तुम्हें यह नहीं पता कि तुम कितनी सख्त हो। जब मैं तुम पर प्रहार करता हूँ, तो मुझे भी दर्द होता है।

गेंद ⦂ अच्छा ऐसी बात है। हम दोनों में क्या कर सकते हैं। हम दोनों का ये कर्म है। हम लोग इसीलिए बने हैं।

बल्ला ⦂ हाँ, सही बात कहती हो। क्रिकेट के खेल में हम दोनों अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। हमारा जन्म जिस कार्य के लिए हुआ है, वह कार्य कर रहे हैं। तुम गेंदबाजों की शान हो तो मैं बल्लेबाजों की शान हूँ। यही हमारी पहचान है।

गेंद ⦂ सही कहते हो।


Related questions

कोरोना के कारण 3 साल बाद मिल रहे सहपाठी के बीच हो रही बातचीत को संवाद लेखन के रूप मे लिखें।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में राम और लक्ष्मण के व्यक्तित्व के बीच अंतर को कैसे समझा जा सकता है?

What is Ranching farming?

0

Ranching farming refers to that farming, in which plowing of land, sowing of land or hoeing etc. is not done. Under this type of farming, crops are not produced. Natural vegetation is grown in ranching farming, which naturally grows on its own. The vegetation grown in this farming is fed to different types of domesticated animals like sheep, goat, cow, buffalo etc.

This type of farming is done in areas where animal husbandry is high, and fodder is required for large quantities of animals. The main purpose of this farming is to make pasture for animals, that is, enough vegetation available for vegetarian animals to eat, so ‘ranching farming’ is done. Under this farming, the agriculture land is left to grow natural vegetation, which is used as fodder for animals.

Apart from India, Australia, America, this type of farming is done in the mountainous and plateau regions of Tibet, and in other mountainous and plateau regions of the world.


Other questions

दुर्लभ अर्थव्यवस्था से क्या तात्पर्य है?

यूनानी नगर-राज्य का आधुनिक नाम क्या है? 1. नगर 2. सरकार 3. कस्बा 4. राज्य

निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए 1. आँख 2. वन 3. सिर 4. शेर

सभी शब्दों के समानार्थी शब्द इस प्रकार होंगे…

1. आँख ⦂ नेत्र, नयन, लोचन, नैन, अक्षि,  चक्षु, दृग, अक्षि, अम्बक, विलोचन, दृष्टि, दीदा , चख।
2. वन ⦂ जंगल, अरण्य, कानन. विपन्न, विटप, अरण्य, गहन, अख्य, कान्तार, जंगल, बीहड़।
3. सिर ⦂ माथा, मस्तक, मगज, शीर्ष, सर, मद, खोपड़ी।
4. शेर ⦂  सिंह, वनराज, केसरी, केहरी, पशुराज, मृगराज, पंचराज।

समानार्थी या पर्यायवाची शब्द क्या होते हैं?

वे शब्द वो एक समान अर्थ के संदर्भ में प्रयुक्त किए जाते हैं, उन्हें समानार्थी या पर्यायवाची शब्द कहते हैं। समान अर्थ होने के कारण समानार्थी शब्द और एक-दूसरे का पर्याय होने के कारण पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं।


Related questions

निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए। 1. समाज की सेवा करने वाला 2. जिसमें दया न हो 3. काम करने वाला 4. जिसमें शर्म न हो 5. जिसका दोष न हो 6. जिसे पाना कठिन हो

निम्नलिखित वाक्यों के वचन बदलकर लिखिए : 1. लड़के ने आम खाया। 2. पौधा सूख गया । 3. सभा में कवि पधारा । 4. बंदर वृक्ष पर बैठा है। 5. नौकर मॉल जा रहा है। 6. यह कमरा साफ और सुंदर है।​

कोरोना के कारण 3 साल बाद मिल रहे सहपाठियों के बीच हो रही बातचीत को संवाद लेखन के रूप मे लिखें।

संवाद

कोरोना के 2 साल बाद सहपाठियों के बीच संवाद

 

रमन ⦂ विमल कैसे हो?

विमल ⦂ ठीक हूँ, रमन। तुम सुनाओ आज 3 साल बाद हम लोग मिल रहे हैं।

रमन ⦂ हाँ, सही कह रहे महामारी ने हम लोगों को दूर कर दिया था 3 साल से हम लोग मिल भी नहीं पाए।

विमल ⦂ सही कह रहे हो। इस महामारी ने हम सब की नाक में दम कर दिया था। यह 2 साल कैसे मुश्किल निकले हम लोग ही जानते हैं।

रमन ⦂ हाँ, 2 साल बड़ी मुश्किल से निकले तीसरे साल में थोडी राहत मिलनी शुरु हुई थी।  हम लोग अपने घरों में कैद होकर रह गए थे। हम लोग मिल तक नही पाये और आज दो साल बाद मिल रहे हैं।

विमल ⦂ शुक्र है कि महामारी धीरे-धीरे खत्म गई है। अब पुराने दिन लौट आएंगे। हम लोग पहले की तरह का जीवन जी सकेंगे।

रमन ⦂ ऐसा ही होगा। कोरोना महामारी के दौरान जब तुम घर में थे तब तुमने क्या-क्या किया। तुमने कुछ सीखा ?

विमल ⦂ मैंने कोरोना के दौरान खाली समय का सदुपयोग करने के लिए इंटरनेट के माध्यम से कुछ आनलाइन कोर्स सीखे। इस दौरान मैंने कोडिंग सीख ली। अब मैं किसी भी तरह का एप बना लेता हूँ। मैंने ग्राफिक डिजाइनिंग का भी अभ्यास कर लिया।

रमन ⦂ यह तुमने बहुत अच्छा किया। मैंने भी डिजिटल मार्केटिंग मैं अपने हाथ आजमाए और डिजिटल मार्केटिंग से संबंधित कुछ बारीकियों को सीखा है। कोरोना के कारण वर्क फ्राम होम और ऑनलाइन एजुकेशन का महत्व पड़ा है। हमें भी अब पूरी तरह इंटरनेट फ्रेंडली होना पड़ेगा।

विमल ⦂ सही कह रहे हो। बहुत दिनों बाद मुलाकात हुई चलो कहीं नाश्ता करते है और पुराने दिनों की याद ताजा करते है।

रमन ⦂ हाँ, हाँ चलो।


Related questions

लक्ष्मण जी और राम जी के परशुराम जी से संवाद में क्या अंतर था?

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में राम और लक्ष्मण के व्यक्तित्व के बीच अंतर को कैसे समझा जा सकता है?

संपादक के नाम पत्र लिखकर प्रखंड कार्यालय में व्याप्त अनियमितता का उल्लेख करें।

औपचारिक पत्र

प्रखंड कार्यालय में व्याप्त अनियमितता के बारे में संपादक के नाम पत्र

 

दिनाँक : 26 जुलाई 2024

 

सेवा में,
श्रीमान संपादक महोदय,
समाचार दर्शन,
बरेली (उत्तर प्रदेश)

माननीय संपादक महोदय,

मैं आपके समाचार पत्र ‘समाचार दर्शन’ का नियमित पाठक हूँ। मैं बरेली के रामनगर का निवासी हूँ। मैं आपके समाचार पत्र के माध्यम से हमारे प्रखंड कार्यालय कार्यालय में व्याप्त अनियमितताओं के बारे में संबंधित अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ। हमारे जिले के प्रखंड कार्यालय में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। सारे कर्मचारीगण कोई भी कार्य तत्परता और निष्ठा से नहीं करते हैं। ना ही वह जनता के साथ विनम्रता से पेश आते हैं। कोई भी अर्जी हो, आवेदन हो, किसी भी तरह की समस्या हो। उसके बारे में वे हमेशा रुखा जवाब देते हैं और किसी समस्या को सुलझाने में कई दिनों का समय लगा देते हैं। बहुत आनाकानी करने के बाद ही किसी समस्या का समाधान मिल पाता है।

जब किसी समस्या या अर्जी आवेदन लेकर कार्यालय में जाओ तो वहाँ का स्टाफ अधिकतम समय गप्पे लड़ाता हुआ ही दिखाई देता है। उन्हें जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं ऐसा लगता है कि वह खानापूरी के लिए अपनी ड्यूटी देने आते हैं। इस कारण सभी नागरिकों को असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।

मेरा आपके समाचार पत्र के माध्यम से संबंधित अधिकारियों से निवेदन है कि इस संबंध में तुरंत संज्ञान लेते हुए उचित कार्रवाई करें। जनता का हित सर्वोपरि है। आशा है मेरी शिकायत आपके समाचार पत्र के माध्यम से संबंधित अधिकारियों तक अवश्य पहुंचेगी और कोई सार्थक कार्रवाई अवश्य होगी।
धन्यवाद,

एक पाठक
बृजेश वर्मा,
रामनगर, बरेली (उत्तर प्रदेश)


Related questions

आप वेणु राजगोपाल हैं। ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ दिल्ली के संपादक के नाम एक पत्र लिखकर सामाजिक जीवन में बढ़ रही हिंसा पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

प्लास्टिक की चीजों से हो रही हानि के बारे में किसी समाचार-पत्र के संपादक को पत्र लिखकर अपने सुझाव दीजिए।

‘मानव जीवन में कम्प्यूटर का महत्व’ इस विषय पर एक लघु निबंध लिखें।

0

लघु निबंध

मानव जीवन में कम्प्यूटर का महत्व

 

हम सब जानते हैं कि आज का युग विज्ञान का युग है। आज के युग में कंप्यूटर का महत्व कितना अधिक है, इस बात से कोई भी इनकार नहीं किया जा सकता। जीवन के हर क्षेत्र में आप कम्प्यूटर का प्रयोग हो रहा है। आज का युग डिजिटल युग है। डिजिटल और कम्प्यूटर दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। यदि हमें कोई कार्य डिजिटली करना है तो उसके लिए कम्प्यूटर की आवश्यकता होती है।

आज के समय में कम्प्यूटर के माध्यम से क्या-क्या नहीं किया जा सकता। कम्प्यूटर एक जादू के पिटारे के समान है इसकी सहायता से कठिन से कठिन कार्य, कम से कम समय में संपन्न किए जाने लगे हैं। पहले गणितीय गणना को करने में घंटों समय लगता था, वही कार्य आजकल पल भर में कंप्यूटर के माध्यम से किया जाने लगा है। कम्प्यूटर ने इंसानों के बीच की दूरी घटाई है। कम्प्यूटर और इंटरनेट की सहायता से सैकड़ों मील दूर बैठे लोग भी आपस में एक दूसरे से जुड़कर अपने कार्यों को साझा कर सकते है। कंप्यूटर हमें दस्तावेज लिखने, एडिट करने की सुविधा प्रदान करता है।

हमें ग्राफिक डिजायनिंग की सुविधा प्रदान करता है। हम ग्राफिक डिजायनिंग के माध्यम से अपनी प्रतिभा को निखार सकते हैं। इस क्षेत्र में रोजगार बना सकते हैं। कंप्यूटर के माध्यम से एकाउंटिंग के कार्य आसानी से जाने लगे हैं। आज का बैंकिंग सिस्टम कंप्यूटर पर ही आधारित है। बिना कंप्यूटर के बैंक से कोई कार्य नहीं कर सकते।

अब तो कम्प्यूटर ऑनलाइन शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रहा है। जरा सोचिए यदि थोड़े समय के लिए संसार के सारे कंप्यूटर बंद कर दिया जाए तो संसार के सारे कार्य ठप हो जाएंगे। हमारी कंप्यूटर के ऊपर इतनी अधिक निर्भरता बढ़ गई है कि इसके बिना आज मानव जीवन सुगम रूप से जीया नहीं किया जा सकता।

कम्प्यूटर के माध्यम से हम ऑनलाइन शॉपिंग से लेकर, कार्यालय के कार्य, बही-खाता आदि बनाना, डिजाइनिंग करना, मनोरंजन करना, वीडियो गेम खेलना, फिल्में देखना, गाने सुनना, सोशल मीडिया से जुड़ना जैसे अनेकों कार्य करते हैं। यह सभी दैनिक जीवन के कार्य कम्प्यूटर के कारण ही संभव हो सके हैं। इसलिए अंत में हम ये निष्कर्ष पाते हैं कि मानव जीवन में कम्प्यूटर का महत्व किसी से भी छुपा नहीं है और इसके बिना आज का जीवन सुगमता से संभव नहीं है।


Related questions

‘गुरु पूर्णिमा’ पर निबंध लिखिए।

‘पहाड़ों का दृश्य’ इस विषय पर एक लघु निबंध लिखिए।

What is meant by punch code?

Punch code refers to a special type of code that, when typed through a keyboard, results in a written word or sentence, similar to a predetermined mechanical code. Machines or robots can easily understand this code and it is made for them only. Punch code is a special type of code to be typed with a normal keyboard, which is developed as a mechanical code by a predetermined process. This type of punch code is made to understand any machine etc. Through this punch code, they get a special command. That particular command is in the context of an indication of a particular task. Such a code is called a punch code.


Other questions

What are the poetic devices in the poem ‘The Trees’ by Adrienne Rich​?

निम्नलिखित राजनीतिक अवधारणों को उद्भव के क्रम में व्यवस्थित करें। (1) आध्यात्मिक राष्ट्रवाद (11) सप्तांग राज्य (III) नव-मानववाद (IV) होमरूल की अवधारणा (1) II, I, IV, III (2) II, IV, I, III (3) I, II, III, IV (4) II, III, I, IV

सही उत्तर है, विकल्प…

(2) II, IV, I, III

═══════════════

व्याख्या :

1. सप्तांग राज्य (II) : यह सबसे प्राचीन अवधारणा है। यह कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित है, जो लगभग 300 ईसा पूर्व का है। सप्तांग राज्य की अवधारणा में राज्य के सात अंगों का वर्णन है – स्वामी (राजा), अमात्य (मंत्री), जनपद (राज्य का क्षेत्र), दुर्ग (किला), कोष (खजाना), दंड (सेना), और मित्र (सहयोगी)।

2. होमरूल की अवधारणा (IV) : यह 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में उभरी। भारत में, एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने 1916 में होमरूल लीग की स्थापना की। यह अवधारणा भारतीयों द्वारा भारत के स्वशासन की मांग पर केंद्रित थी।

3. आध्यात्मिक राष्ट्रवाद (I) : यह अवधारणा 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में श्री अरबिंदो घोष द्वारा विकसित की गई। उन्होंने राष्ट्रवाद को एक आध्यात्मिक आंदोलन के रूप में देखा, जिसमें देश की आत्मा की खोज और उसकी अभिव्यक्ति शामिल थी।

4. नव-मानववाद (III) : यह सबसे नवीन अवधारणा है, जिसे एम.एन. रॉय ने 1940 के दशक में विकसित किया। यह मार्क्सवाद और पूंजीवाद दोनों से अलग एक वैकल्पिक राजनीतिक दर्शन प्रस्तुत करता है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवीय मूल्यों पर जोर देता है।

इस प्रकार, इन अवधारणाओं का सही कालक्रम है, सप्तांग राज्य (सबसे पुराना), होमरूल की अवधारणा, आध्यात्मिक राष्ट्रवाद, और अंत में नव-मानववाद (सबसे नया)।


Related questions

‘अन्त्योदय की राजनीतिक धारणा का क्या अर्थ है? (1) सबका कल्याण (2) सांस्कृतिक राष्ट्रवाद (3) बुनियादी शिक्षा (4) समाज के वंचित वर्गों का

एकात्म मानववाद’ नामक पुस्तक लिखी है? (1) एम.एन. राय द्वारा (2) टैगोर ने (3) दीन दयाल उपाध्याय ने (4) विवेकानन्द ने

नेहरू की आर्थिक नीतियों के संदर्भ में निम्न में से क्या अप्रासंगिक है? (1) तीव्र मशीनीकरण (2) कुटीर उद्योगों को प्राथमिकता (3) आर्थिक नियोजन (4) मिश्रित अर्थव्यवस्था

सही उत्तर है, विकल्प …

2) कुटीर उद्योगों को प्राथमिकता

═══════════════════════

व्याख्या :

नेहरू की आर्थिक नीतियों के संदर्भ में कुटीर उद्योगों की प्राथमिकता अप्रासंगिक है।

जवाहरलाल नेहरू की आर्थिक दृष्टि भारत के तीव्र औद्योगिकीकरण और आधुनिकीकरण पर केंद्रित थी। उनकी नीतियां मुख्य रूप से निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित थीं:

1. तीव्र मशीनीकरण : नेहरू का मानना था कि बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण और मशीनीकरण ही भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना सकता है। उन्होंने भारी उद्योगों और बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया।

2. आर्थिक नियोजन : नेहरू ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से केंद्रीय आर्थिक नियोजन को अपनाया। यह नीति देश के संसाधनों के समन्वित और प्राथमिकता-आधारित उपयोग पर केंद्रित थी।

3. मिश्रित अर्थव्यवस्था : नेहरू ने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सह-अस्तित्व पर आधारित मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया। इसमें महत्वपूर्ण और रणनीतिक क्षेत्रों में सरकारी नियंत्रण के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी भी शामिल थी।

इन नीतियों के विपरीत, कुटीर उद्योगों को प्राथमिकता देना नेहरू की मुख्य आर्थिक रणनीति का हिस्सा नहीं था। हालांकि उन्होंने लघु और कुटीर उद्योगों के महत्व को पूरी तरह नकारा नहीं, लेकिन उनका प्राथमिक ध्यान बड़े पैमाने के आधुनिक उद्योगों पर था। कुटीर उद्योगों को प्राथमिकता देना गांधीजी के आर्थिक दर्शन का एक प्रमुख हिस्सा था, न कि नेहरू का।

नेहरू का मानना था कि केवल बड़े पैमाने के उद्योग और आधुनिक तकनीक ही भारत को गरीबी और पिछड़ेपन से बाहर निकाल सकते हैं। इसलिए, उनकी नीतियां मुख्य रूप से तीव्र औद्योगिकीकरण, नियोजित विकास और मिश्रित अर्थव्यवस्था पर केंद्रित थीं, न कि कुटीर उद्योगों पर।


Related questions

नेहरू जी स्मारकों, गुफाओं तथा इमारतों की ओर आकर्षित होते थे। स्मारकों, गुफाओं तथा इमारतों के सहारे अपने देश का इतिहास जानने की कोशिश करते थे। कैसे? अपने विचार लिखिए।

गांधी की सर्वोदय की अवधारणा संबंधित है? (1) देश की अधिकांश जनता का कल्याण (2) राजनीतिक शक्ति का विकेन्द्रीकरण (3) सत्याग्रह (4) समाज के सभी वर्गों का कल्याण।

अन्याय के अहिंसक प्रतिरोध की गांधीवादी तकनीक ‘सत्याग्रह’ में शामिल नहीं है? (1) असहयोग (2) सविनय अवज्ञा (3) निष्क्रिय प्रतिरोध (4), हिजरत-स्थान छोड़ देना

सही उत्तर है…

(3) निष्क्रिय प्रतिरोध

════════════════

गांधीवादी ‘सत्याग्रह’ की अवधारणा में निष्क्रिय प्रतिरोध शामिल नहीं है। सत्याग्रह एक सक्रिय, अहिंसक प्रतिरोध का तरीका है जिसमें असहयोग, सविनय अवज्ञा, और हिजरत (स्थान छोड़ देना) जैसी तकनीकें शामिल हैं। असहयोग में अन्यायपूर्ण व्यवस्थाओं के साथ सहयोग न करना, सविनय अवज्ञा में अन्यायपूर्ण कानूनों का शांतिपूर्ण उल्लंघन, और हिजरत में अन्यायपूर्ण परिस्थितियों से स्वैच्छिक पलायन शामिल है।

सत्याग्रह का मूल सिद्धांत अहिंसा है, जिसमें सत्य पर अडिग रहना, आत्म-पीड़ा स्वीकार करना, और विरोधी के प्रति भी प्रेम और करुणा का भाव रखना शामिल है। गांधीजी ने इसे एक ऐसे सक्रिय प्रतिरोध के रूप में विकसित किया जो न केवल अन्याय का विरोध करता है, बल्कि विरोधी के हृदय परिवर्तन का भी प्रयास करता है। यह दृष्टिकोण निष्क्रिय प्रतिरोध से अलग है, क्योंकि यह अन्याय के खिलाफ सक्रिय रूप से खड़े होने और परिवर्तन लाने का प्रयास करता है।


Related questions

गांधी स्वयं को कहते थे एक…? (1) दार्शनिक अराजकतावादी (2) राष्ट्रवादी (3) समाजवादी (4) उपरोक्त में कोई नहीं

एम. एन. राय ने जिस ‘संगठित-लोकतंत्र’ की परिकल्पना की है, उसके अंग हैं? (1) स्वप्रेरणा से बनी स्थानीय समितियाँ (2) जन-समितियों द्वारा उच्चतर समिति निर्माण (3) उच्च समितियों द्वारा जन-समिति पर नियंत्रण (4) उपरोक्त में कोई नहीं

गांधी स्वयं को कहते थे एक…? (1) दार्शनिक अराजकतावादी (2) राष्ट्रवादी (3) समाजवादी (4) उपरोक्त में कोई नहीं

सही उत्तर है…

(1) दार्शनिक अराजकतावादी

═════════════════════

व्याख्या

महात्मा गांधी ने स्वयं को ‘दार्शनिक अराजकतावादी’ के रूप में वर्णित किया था। यह उनके राजनीतिक और सामाजिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण पहलू था।

गांधी के लिए अराजकतावाद का अर्थ अव्यवस्था या अराजकता नहीं था। उनके लिए यह एक ऐसी व्यवस्था थी जहाँ राज्य की न्यूनतम भूमिका हो और समाज स्वयं अपना संचालन करे।

गांधी का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं का शासक होना चाहिए। उन्होंने व्यक्तिगत नैतिकता और आत्म-अनुशासन पर जोर दिया।

गांधी ने छोटे, स्वायत्त ग्राम समुदायों की कल्पना की जो अपने मामलों का प्रबंधन स्वयं करें। यह विचार केंद्रीकृत सरकार के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया। गांधी का अराजकतावाद अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित था। उन्होंने हिंसा और बल प्रयोग के बजाय नैतिक शक्ति और आत्मबल पर जोर दिया। गांधी ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ राज्य की भूमिका न्यूनतम हो। उनका मानना था कि जैसे-जैसे लोग अधिक नैतिक और जिम्मेदार बनेंगे, राज्य की आवश्यकता कम होती जाएगी।

गांधी ने इस विचार को एक दार्शनिक आदर्श के रूप में देखा, न कि एक तत्काल व्यावहारिक लक्ष्य के रूप में। उन्होंने इसे एक ऐसे आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जिसकी ओर समाज को धीरे-धीरे बढ़ना चाहिए।

गांधी का ‘दार्शनिक अराजकतावाद’ उनके व्यापक दर्शन का एक हिस्सा था, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, नैतिक जिम्मेदारी, और सामुदायिक सहयोग पर आधारित था। यह विचार आज भी विकेंद्रीकरण, स्थानीय स्वशासन, और नागरिक समाज की भूमिका पर चल रही बहसों में प्रासंगिक है।


Related questions

एम. एन. राय ने जिस ‘संगठित-लोकतंत्र’ की परिकल्पना की है, उसके अंग हैं? (1) स्वप्रेरणा से बनी स्थानीय समितियाँ (2) जन-समितियों द्वारा उच्चतर समिति निर्माण (3) उच्च समितियों द्वारा जन-समिति पर नियंत्रण (4) उपरोक्त में कोई नहीं

मानवेन्द्र नाथ राय का ‘उत्कट-मानववाद’ जाना जाता है? (1) नव मार्क्सवाद (2) शास्त्रीय मार्क्सवाद (3) वैज्ञानिक समाजवाद (4) नव मानववाद

एम. एन. राय ने जिस ‘संगठित-लोकतंत्र’ की परिकल्पना की है, उसके अंग हैं? (1) स्वप्रेरणा से बनी स्थानीय समितियाँ (2) जन-समितियों द्वारा उच्चतर समिति निर्माण (3) उच्च समितियों द्वारा जन-समिति पर नियंत्रण (4) उपरोक्त में कोई नहीं

सही उत्तर है…

(1) स्वप्रेरणा से बनी स्थानीय समितियाँ और (2) जन-समितियों द्वारा उच्चतर समिति निर्माण

════════════════════════════════════════════════════════════

व्याख्या

एम.एन. राय द्वारा परिकल्पित ‘संगठित-लोकतंत्र’ की अवधारणा और उसके अंगों की व्याख्या निम्नलिखित है:

1. स्वप्रेरणा से बनी स्थानीय समितियाँ
  • राय का मानना था कि लोकतंत्र की शुरुआत नीचे से होनी चाहिए।
  • उन्होंने स्थानीय स्तर पर लोगों द्वारा स्वेच्छा से गठित समितियों की कल्पना की।
  • ये समितियाँ स्थानीय मुद्दों पर चर्चा करेंगी और निर्णय लेंगी।
2. जन-समितियों द्वारा उच्चतर समिति निर्माण
  • स्थानीय समितियाँ आपस में मिलकर उच्च स्तर की समितियों का निर्माण करेंगी।
  • यह प्रक्रिया नीचे से ऊपर की ओर होगी, जिससे सत्ता का विकेंद्रीकरण सुनिश्चित होगा।
3. राय के ‘संगठित-लोकतंत्र’ के अन्य महत्वपूर्ण पहलू
  • प्रत्यक्ष लोकतंत्र : उन्होंने प्रतिनिधि लोकतंत्र के बजाय प्रत्यक्ष लोकतंत्र पर जोर दिया।
  • राजनीतिक शिक्षा : नागरिकों को राजनीतिक रूप से शिक्षित और जागरूक बनाने पर बल।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता : व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा को सर्वोच्च प्राथमिकता।
  • आर्थिक लोकतंत्र : राजनीतिक लोकतंत्र के साथ-साथ आर्थिक लोकतंत्र की आवश्यकता पर जोर।

यह ध्यान देने योग्य है कि राय का ‘संगठित-लोकतंत्र’ मॉडल उच्च समितियों द्वारा जन-समितियों पर नियंत्रण की अवधारणा को खारिज करता है। इसके बजाय, यह शक्ति के नीचे से ऊपर की ओर प्रवाह पर जोर देता है।

राय का यह मॉडल एक ऐसे लोकतांत्रिक समाज की कल्पना करता है जहाँ नागरिक सक्रिय रूप से शासन में भाग लेते हैं और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सीधे शामिल होते हैं। यह विचार भारतीय राजनीतिक चिंतन में एक महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है, जो लोकतंत्र को और अधिक सहभागी और प्रत्यक्ष बनाने का प्रयास करता है।


Related questions

मानवेन्द्र नाथ राय का ‘उत्कट-मानववाद’ जाना जाता है? (1) नव मार्क्सवाद (2) शास्त्रीय मार्क्सवाद (3) वैज्ञानिक समाजवाद (4) नव मानववाद

‘अन्त्योदय की राजनीतिक धारणा का क्या अर्थ है? (1) सबका कल्याण (2) सांस्कृतिक राष्ट्रवाद (3) बुनियादी शिक्षा (4) समाज के वंचित वर्गों का

मानवेन्द्र नाथ राय का ‘उत्कट-मानववाद’ जाना जाता है? (1) नव मार्क्सवाद (2) शास्त्रीय मार्क्सवाद (3) वैज्ञानिक समाजवाद (4) नव मानववाद

सही उत्तर है….

(4) नव मानववाद

═════════════

व्याख्या

मानवेन्द्र नाथ राय का ‘उत्कट-मानववाद’ नव मानववाद के रूप में जाना जाता है।  एम.एन. राय, जो शुरुआत में एक मार्क्सवादी थे, ने बाद में अपने विचारों को विकसित करके ‘उत्कट-मानववाद’ या ‘नव मानववाद’ का सिद्धांत प्रतिपादित किया। यह एक ऐसा दर्शन है जो मानव की केंद्रीयता और महत्ता पर जोर देता है।

नव मानववाद की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं…

  • मानव केंद्रितता : इस दर्शन में मनुष्य को सभी मूल्यों और विचारों का केंद्र माना गया है। राय का मानना था कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता है।
  • तर्कवाद और वैज्ञानिक दृष्टिकोण : नव मानववाद अंधविश्वास और धार्मिक डॉग्मा को खारिज करता है और तर्क एवं विज्ञान पर आधारित समाज की वकालत करता है।
  • व्यक्तिवाद : यह व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा पर बल देता है, लेकिन साथ ही सामाजिक जिम्मेदारी की भी वकालत करता है।
  • नैतिक मूल्य : राय ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मानवीय मूल्यों पर जोर दिया।
  • राजनीतिक लोकतंत्र : नव मानववाद लोकतांत्रिक व्यवस्था का समर्थन करता है, जहां व्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा हो।
  • आर्थिक न्याय : यह आर्थिक शोषण के विरुद्ध है और समाज में आर्थिक न्याय की स्थापना पर बल देता है।
  • सांस्कृतिक स्वतंत्रता : यह विचारधारा सांस्कृतिक विविधता और स्वतंत्र अभिव्यक्ति का समर्थन करती है।

एम.एन. राय का नव मानववाद मार्क्सवाद और पूंजीवाद दोनों से अलग एक तीसरा मार्ग प्रस्तुत करता है। यह एक ऐसे समाज की कल्पना करता है जहां व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा सर्वोपरि है, लेकिन साथ ही सामाजिक उत्तरदायित्व भी है। यह विचारधारा भारतीय राजनीतिक चिंतन में एक महत्वपूर्ण योगदान मानी जाती है।


Related questions

‘अन्त्योदय की राजनीतिक धारणा का क्या अर्थ है? (1) सबका कल्याण (2) सांस्कृतिक राष्ट्रवाद (3) बुनियादी शिक्षा (4) समाज के वंचित वर्गों का

एकात्म मानववाद’ नामक पुस्तक लिखी है? (1) एम.एन. राय द्वारा (2) टैगोर ने (3) दीन दयाल उपाध्याय ने (4) विवेकानन्द ने

‘अन्त्योदय की राजनीतिक धारणा का क्या अर्थ है? (1) सबका कल्याण (2) सांस्कृतिक राष्ट्रवाद (3) बुनियादी शिक्षा (4) समाज के वंचित वर्गों का

सही उत्तर है….

(4) समाज के वंचित वर्गों का

═════════════════════

व्याख्या

‘अन्त्योदय’ की राजनीतिक धारणा का अर्थ समाज के सबसे वंचित और कमजोर वर्गों के उत्थान और कल्याण से है। इस अवधारणा की विस्तृत व्याख्या निम्नलिखित है:

‘अन्त्योदय’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘अंतिम व्यक्ति का उदय’। यह विचार मुख्य रूप से दीनदयाल उपाध्याय और महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित है। इस धारणा का मूल सिद्धांत यह है कि किसी भी समाज या देश का वास्तविक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति का उत्थान न हो।

अन्त्योदय की राजनीतिक धारणा के प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं…

  • समावेशी विकास : यह नीतियों और कार्यक्रमों का निर्माण इस तरह से करने पर जोर देती है कि वे सबसे पहले समाज के सबसे गरीब और वंचित वर्गों तक पहुंचें।
  • सामाजिक न्याय : इसका उद्देश्य समाज में मौजूद असमानताओं को कम करना और सभी को समान अवसर प्रदान करना है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण : यह गरीबों और वंचितों को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर देती है, ताकि वे अपनी आजीविका स्वयं कमा सकें।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य : इन क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पर बल, क्योंकि ये सामाजिक उत्थान के मूल आधार हैं।
  • बॉटम-अप दृष्टिकोण : यह नीचे से ऊपर की ओर विकास के मॉडल पर जोर देती है, जहां स्थानीय स्तर पर विकास को प्राथमिकता दी जाती है।

अन्त्योदय की यह धारणा भारत की कई सामाजिक-आर्थिक नीतियों और कार्यक्रमों का आधार रही है, जैसे कि गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, ग्रामीण विकास योजनाएं, और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम। यह एक ऐसे समाज के निर्माण का लक्ष्य रखती है जहां कोई भी पीछे न रह जाए।


Related questions

एकात्म मानववाद’ नामक पुस्तक लिखी है? (1) एम.एन. राय द्वारा (2) टैगोर ने (3) दीन दयाल उपाध्याय ने (4) विवेकानन्द ने

गांधी की सर्वोदय की अवधारणा संबंधित है? (1) देश की अधिकांश जनता का कल्याण (2) राजनीतिक शक्ति का विकेन्द्रीकरण (3) सत्याग्रह (4) समाज के सभी वर्गों का कल्याण।

एकात्म मानववाद’ नामक पुस्तक लिखी है? (1) एम.एन. राय द्वारा (2) टैगोर ने (3) दीन दयाल उपाध्याय ने (4) विवेकानन्द ने

सही उत्तर है…

(3) दीन दयाल उपाध्याय ने

════════════════════

व्याख्या

‘एकात्म मानववाद’ नामक पुस्तक दीन दयाल उपाध्याय द्वारा लिखी गई है। इस पुस्तक और उसके महत्व के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है:

दीन दयाल उपाध्याय ने ‘एकात्म मानववाद’ की अवधारणा को विकसित किया और इस नाम से एक पुस्तक लिखी। यह पुस्तक उनके राजनीतिक और सामाजिक दर्शन का मूल आधार है। ‘एकात्म मानववाद’ एक ऐसा दर्शन है जो व्यक्ति, समाज, प्रकृति और परमात्मा की एकता पर जोर देता है।

इस पुस्तक में उपाध्याय जी ने भारतीय संदर्भ में एक स्वदेशी विकास मॉडल प्रस्तुत किया है। उन्होंने तर्क दिया कि भारत के लिए विकास का मार्ग न तो पूंजीवाद है और न ही समाजवाद, बल्कि भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर आधारित एक तीसरा मार्ग होना चाहिए।

‘एकात्म मानववाद’ की मुख्य विशेषताएं हैं:
1. व्यक्ति और समाज के बीच संतुलन
2. आर्थिक विकास के साथ-साथ नैतिक और आध्यात्मिक विकास पर जोर
3. प्रकृति के साथ सामंजस्य
4. स्वदेशी तकनीक और ज्ञान प्रणालियों का महत्व

यह पुस्तक भारतीय राजनीतिक चिंतन में एक महत्वपूर्ण योगदान मानी जाती है और आज भी कई राजनीतिक और सामाजिक विचारधाराओं को प्रभावित करती है, विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रवादी विचारधारा में।


Related questions

गांधी की सर्वोदय की अवधारणा संबंधित है? (1) देश की अधिकांश जनता का कल्याण (2) राजनीतिक शक्ति का विकेन्द्रीकरण (3) सत्याग्रह (4) समाज के सभी वर्गों का कल्याण।

अपने राजनीतिक विचारों में दीन दयाल उपाध्याय किसे ‘राष्ट्र की आत्मा’ कहते हैं? (1) चित्ति (2) संकल्प (3) एकात्म मानववाद (4) उपरोक्त में कोई नहीं

गांधी की सर्वोदय की अवधारणा संबंधित है? (1) देश की अधिकांश जनता का कल्याण (2) राजनीतिक शक्ति का विकेन्द्रीकरण (3) सत्याग्रह (4) समाज के सभी वर्गों का कल्याण।

इस प्रश्न का सही उत्तर है, विकल्प…

(4) समाज के सभी वर्गों का कल्याण है।

═════════════════════════════

व्याख्या :

गांधीजी की सर्वोदय की अवधारणा समाज के सभी वर्गों के कल्याण संबंधित है।

सर्वोदय शब्द का अर्थ है ‘सबका उदय’ या ‘सबका उत्थान’। यह अवधारणा गांधीजी के दर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, जो समाज के सभी वर्गों के समग्र कल्याण पर केंद्रित थी। गांधीजी का मानना था कि एक स्वस्थ और न्यायसंगत समाज तभी बन सकता है जब उसके सभी सदस्यों का विकास हो, न कि केवल कुछ वर्गों या बहुसंख्यक का। यह दृष्टिकोण समाज के सबसे कमजोर और वंचित वर्गों के उत्थान पर विशेष ध्यान देता था, यह मानते हुए कि जब तक समाज का अंतिम व्यक्ति भी समृद्ध और सशक्त नहीं हो जाता, तब तक वास्तविक विकास नहीं हुआ है।

सर्वोदय की यह अवधारणा केवल आर्थिक विकास तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति भी शामिल थी। गांधीजी का मानना था कि समाज के सभी वर्गों का संतुलित और समग्र विकास ही एक स्थायी और शांतिपूर्ण समाज की नींव हो सकता है। यह दृष्टिकोण वर्गहीन और शोषणमुक्त समाज की स्थापना का लक्ष्य रखता था, जहां प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा और अधिकारों का सम्मान हो।


Related questions

महादेव भाई हँसी मजाक में अपने को क्या कहते थे? (क) गाँधी जी का गधा (ग) गाँधी जी का घोड़ा (ख) गाँधी जी का हम्माल (घ) इनमें से कोई नही​।

सर्वश्रेष्ठ शिक्षा वह है जी न सिर्फ सूचना तक सीमित है वरन् सबसे सामंजस्य बनाती है।” उपरोक्त कथन है? (1) गाँधी का (2) टैगोर का (3) अम्बेडकर का (4) तिलक का

अपने राजनीतिक विचारों में दीनदयाल उपाध्याय किसे ‘राष्ट्र की आत्मा’ कहते हैं? (1) चित्ति (2) संकल्प (3) एकात्म मानववाद (4) उपरोक्त में कोई नहीं

सही उत्तर है…

(1) चित्ति

═════════

व्याख्या

दीनदयाल उपाध्याय के राजनीतिक विचारों में ‘चित्ति’ की अवधारणा महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जिसे वे ‘राष्ट्र की आत्मा’ के रूप में वर्णित करते हैं। इस विचार की व्याख्या निम्नलिखित है:

‘चित्ति’ संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है चेतना या आत्मा। उपाध्याय जी के अनुसार, प्रत्येक राष्ट्र की एक विशिष्ट ‘चित्ति’ होती है, जो उसकी सांस्कृतिक पहचान, मूल्यों और आदर्शों का प्रतिनिधित्व करती है। यह राष्ट्र की वह आंतरिक शक्ति है जो उसके इतिहास, संस्कृति और लोगों के सामूहिक अनुभवों से निर्मित होती है।

उपाध्याय जी का मानना था कि एक राष्ट्र की प्रगति और विकास उसकी ‘चित्ति’ के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने भारत के संदर्भ में इस विचार को विशेष महत्व दिया, यह कहते हुए कि भारत की विकास नीतियाँ और राजनीतिक दर्शन भारतीय ‘चित्ति’ पर आधारित होने चाहिए, न कि पश्चिमी मॉडलों की नकल पर।

‘चित्ति’ की यह अवधारणा उपाध्याय जी के ‘एकात्म मानववाद’ के सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह विचार राष्ट्रीय पहचान, सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण और स्वदेशी विकास मॉडल के महत्व पर जोर देता है।

यह दृष्टिकोण आज भी भारतीय राजनीति और समाज पर प्रभाव डालता है, विशेष रूप से राष्ट्रवादी विचारधारा में, जहाँ भारतीय संस्कृति और मूल्यों के आधार पर विकास और नीति निर्माण पर बल दिया जाता है।


Related questions

टैगोर का विश्वास था कि ‘सकारात्मक स्वतंत्रता निहित है? (1) आत्म निर्धारण में (2) आत्म चैतन्यता में (3) आत्म बोध में (4) स्व चिंतन में

यह किसका कथन है कि ‘सभी राष्ट्र शक्ति के संगठन हैं’? (1) विवेकानन्द (2) टैगोर (3) गांधी (4) दीन दयाल उपाध्याय

टैगोर का विश्वास था कि ‘सकारात्मक स्वतंत्रता निहित है? (1) आत्म निर्धारण में (2) आत्म चैतन्यता में (3) आत्म बोध में (4) स्व चिंतन में

सही उत्तर है…

(2) आत्म चैतन्यता में

व्याख्या
टैगोर का विश्वास था कि सकारात्मक स्वतंत्रता आत्म चैतन्यता में निहित है। इस विचार की व्याख्या इस प्रकार है:

रवींद्रनाथ टैगोर स्वतंत्रता को केवल बाहरी बंधनों से मुक्ति के रूप में नहीं देखते थे। उनके लिए, वास्तविक स्वतंत्रता एक आंतरिक अवस्था थी जो आत्म चैतन्यता से प्राप्त होती है। आत्म चैतन्यता का अर्थ है अपने वास्तविक स्वरूप, अपनी क्षमताओं और अपने उद्देश्य के प्रति जागरूक होना।
टैगोर का मानना था कि जब व्यक्ति अपनी आंतरिक प्रकृति और क्षमताओं को पहचानता और विकसित करता है, तभी वह वास्तव में स्वतंत्र होता है। यह स्वतंत्रता सकारात्मक है क्योंकि यह केवल बंधनों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति और आत्म-विकास की सक्रिय अवस्था है।

उनका यह दृष्टिकोण शिक्षा, कला और समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण में भी परिलक्षित होता है। टैगोर ने शांतिनिकेतन में ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित की जो छात्रों की आत्म चैतन्यता को जागृत करने पर केंद्रित थी, ताकि वे अपनी वास्तविक क्षमताओं को पहचान सकें और उनका विकास कर सकें।

यह विचार आधुनिक समय में भी प्रासंगिक है, जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्म-विकास के विचार समाज और शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

 

Related questions

यह किसका कथन है कि ‘सभी राष्ट्र शक्ति के संगठन हैं’? (1) विवेकानन्द (2) टैगोर (3) गांधी (4) दीन दयाल उपाध्याय

निम्नलिखित विचारों में से कौन से दीनदयाल उपाध्याय से संबंधित है? (I) एकात्म मानववाद (II) संस्कृति निष्ठा (III) सनातन में विश्वास (IV) चित्ति का विचार (1) (1) और (II) (2) (II) और (III) (3) (I), (II) और (III) (4) उपरोक्त सभी

यह किसका कथन है कि ‘सभी राष्ट्र शक्ति के संगठन हैं’? (1) विवेकानन्द (2) टैगोर (3) गांधी (4) दीन दयाल उपाध्याय

सही उत्तर होगा…

(4) दीन दयाल उपाध्याय

═══════════════════

व्याख्या

‘सभी राष्ट्र शक्ति के संगठन हैं’ यह कथन दीनदयाल उपाध्याय का है। दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति में एक प्रमुख विचारक थे और उन्होंने भारतीय जनसंघ (जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी) की विचारधारा को मजबूत किया। उनके विचार में, एक राष्ट्र की वास्तविक शक्ति उसकी सामूहिक एकता, संस्कृति, और आत्मनिर्भरता में निहित होती है। उन्होंने ‘एकात्म मानववाद’ का दर्शन प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे एक राष्ट्र की शक्ति उसके समाज, संस्कृति और परंपराओं के साथ गहराई से जुड़ी होती है।

उपाध्याय ने यह भी माना कि किसी राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि केवल भौतिक संसाधनों पर निर्भर नहीं होती, बल्कि उसके लोगों की आत्मा और संस्कृति की सशक्तिकरण पर भी निर्भर करती है। उनके अनुसार, एक राष्ट्र का संगठन उसकी संस्कृति, सामाजिक संरचना, और आत्मनिर्भरता पर आधारित होना चाहिए। उनका यह कथन राष्ट्र की सामूहिक शक्ति और एकता पर जोर देता है, जो कि किसी भी राष्ट्र की स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक है।

हालाँरि यह कथन राजनीति विज्ञान का एक मूलभूत सिद्धांत ही है और इसे किसी एक व्यक्ति के विशेष रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। यह विचार विभिन्न राजनीतिक दार्शनिकों और विद्वानों द्वारा विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया गया है।

इस कथन का तात्पर्य है कि सभी राष्ट्र अपनी शक्ति को बढ़ाने और सुरक्षित रखने के लिए संगठित होते हैं। यह शक्ति विभिन्न रूपों में हो सकती है जैसे कि सैन्य शक्ति, आर्थिक शक्ति, राजनीतिक शक्ति आदि। राष्ट्र अपनी शक्ति का उपयोग अपने हितों की रक्षा करने, अन्य राष्ट्रों के साथ संबंध बनाने और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए करते हैं।


Related questions

दीन दयाल उपाध्याय के राजनीतिक दर्शन का प्रथम सूत्र है? (1) संस्कृति निष्ठा (2) सामाजिक निष्ठा (3) राष्ट्र निष्ठा (4) कर्तव्य निष्ठा

निम्नलिखित विचारों में से कौन से दीनदयाल उपाध्याय से संबंधित है? (I) एकात्म मानववाद (II) संस्कृति निष्ठा (III) सनातन में विश्वास (IV) चित्ति का विचार (1) (1) और (II) (2) (II) और (III) (3) (I), (II) और (III) (4) उपरोक्त सभी

निम्नलिखित विचारों में से कौन से दीनदयाल उपाध्याय से संबंधित है? (I) एकात्म मानववाद (II) संस्कृति निष्ठा (III) सनातन में विश्वास (IV) चित्ति का विचार (1) (1) और (II) (2) (II) और (III) (3) (I), (II) और (III) (4) उपरोक्त सभी

सही उत्तर है…

(3) (I), (II) और (III)

═════════════════

व्याख्या

उपरोक्त विकल्पों में से एकात्म मानववाद, संस्कृति निष्ठा और सनातन में विश्वास ये तीनों विचार दीनदयाल उपाध्याय से संबंधित विचार हैं।
दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का विश्लेषण करने पर, हम निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचते हैं:

1. एकात्म मानववाद : यह उपाध्याय जी का मूल सिद्धांत है, जो व्यक्ति, समाज, प्रकृति और परमात्मा की एकता पर केंद्रित है। यह उनके दर्शन का आधार है और निश्चित रूप से उनसे संबंधित है।

2. संस्कृति निष्ठा : उपाध्याय जी ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं के महत्व पर बल दिया। उन्होंने भारतीय मूल्यों और संस्कृति के संरक्षण को अपने राजनीतिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना।

3. सनातन में विश्वास: हालांकि उपाध्याय जी ने इस शब्द का सीधे उपयोग नहीं किया, लेकिन उनके विचारों में सनातन धर्म के सिद्धांतों का प्रभाव स्पष्ट है। उनका एकात्म मानववाद और संस्कृति निष्ठा का विचार सनातन परंपरा से प्रेरित है।

4. चित्ति का विचार: यह विचार मुख्य रूप से श्री अरविंद के दर्शन से जुड़ा है, न कि दीनदयाल उपाध्याय से। इसलिए यह उनके विचारों से संबंधित नहीं माना जा सकता।

इस प्रकार, (I) एकात्म मानववाद, (II) संस्कृति निष्ठा, और (III) सनातन में विश्वास, ये तीनों विचार दीनदयाल उपाध्याय से संबंधित हैं। उनके ये विचार भारतीय राजनीतिक और सामाजिक चिंतन, विशेषकर राष्ट्रवादी विचारधारा में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।


Related questions

दीन दयाल उपाध्याय के राजनीतिक दर्शन का प्रथम सूत्र है? (1) संस्कृति निष्ठा (2) सामाजिक निष्ठा (3) राष्ट्र निष्ठा (4) कर्तव्य निष्ठा

सर्वश्रेष्ठ शिक्षा वह है जी न सिर्फ सूचना तक सीमित है वरन् सबसे सामंजस्य बनाती है।” उपरोक्त कथन है? (1) गाँधी का (2) टैगोर का (3) अम्बेडकर का (4) तिलक का

दीनदयाल उपाध्याय के राजनीतिक दर्शन का प्रथम सूत्र है? (1) संस्कृति निष्ठा (2) सामाजिक निष्ठा (3) राष्ट्र निष्ठा (4) कर्तव्य निष्ठा

सही उत्तर है…

(3) राष्ट्र निष्ठा

════════════

व्याख्या

दीनदयाल उपाध्याय के राजनीतिक दर्शन का प्रथम सूत्र ‘राष्ट्र निष्ठा’ है। यह उनके ‘एकात्म मानववाद’ के सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण आधार है। उपाध्याय जी का मानना था कि राष्ट्र एक जीवंत इकाई है, जिसकी अपनी आत्मा होती है। उनके अनुसार, राष्ट्र केवल एक भौगोलिक या राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अवधारणा भी है।

‘राष्ट्र निष्ठा’ का अर्थ है राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण और निष्ठा। उपाध्याय जी का मानना था कि व्यक्ति और समाज दोनों का विकास राष्ट्र के विकास से जुड़ा है। उन्होंने राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण, और स्वदेशी विकास मॉडल पर जोर दिया। यह दृष्टिकोण भारतीय संदर्भ में विकास और प्रगति की एक विशिष्ट अवधारणा प्रस्तुत करता है, जो पश्चिमी मॉडलों से अलग है। ‘राष्ट्र निष्ठा’ का सिद्धांत आज भी भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डालता है, विशेष रूप से राष्ट्रवादी विचारधारा में।


Related questions

सर्वश्रेष्ठ शिक्षा वह है जी न सिर्फ सूचना तक सीमित है वरन् सबसे सामंजस्य बनाती है।” उपरोक्त कथन है? (1) गाँधी का (2) टैगोर का (3) अम्बेडकर का (4) तिलक का

कथन (A) ब्रिटिश सरकार द्वारा बाल विवाह रोकने हेतु प्रस्तुत ‘सहमति आयु विधेयक’ का तिलक ने विरोध किया। कारण (R): सामाजिक सुधार के नाम पर वे भारतीय प्रथाओं में विदेशी हस्तक्षेप के विरोधी थे। (1) (A) सही है किन्तु (R) गलत है (2) (A) गलत है किंतु (R) सही है (3) (A) और (R) दोनों सही है तथा व्याख्या भी है (4) (A) और (R) दोनों सही, किन्तु व्याख्या नहीं है।

सर्वश्रेष्ठ शिक्षा वह है जी न सिर्फ सूचना तक सीमित है वरन् सबसे सामंजस्य बनाती है।” उपरोक्त कथन है? (1) गाँधी का (2) टैगोर का (3) अम्बेडकर का (4) तिलक का

सही उत्तर है…

(2) टैगोर का

══════════════

व्याख्या

रवींद्रनाथ टैगोर का यह कथन उनके शिक्षा दर्शन का सार प्रस्तुत करता है। टैगोर ने शिक्षा को केवल सूचना या ज्ञान के हस्तांतरण तक सीमित नहीं माना, बल्कि उसे व्यक्ति के समग्र विकास का माध्यम माना। उनका मानना था कि सर्वश्रेष्ठ शिक्षा वह है जो छात्रों को न केवल जानकारी देती है, बल्कि उन्हें प्रकृति, समाज और स्वयं के साथ सामंजस्य स्थापित करने में मदद करती है।

शांतिनिकेतन में स्थापित अपने विश्व भारती विश्वविद्यालय के माध्यम से, टैगोर ने इस दर्शन को व्यावहारिक रूप दिया। उन्होंने खुले वातावरण में शिक्षा, कला और संस्कृति के एकीकरण, तथा पूर्व और पश्चिम के ज्ञान के समन्वय पर जोर दिया। टैगोर की यह दृष्टि आज भी प्रासंगिक है, जो शिक्षा को केवल परीक्षा-केंद्रित प्रणाली से परे देखती है और व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर बल देती है।


Related questions

अर्थशास्त्र में स्थानीय, द्रोणमुख, खार्वटिक, संग्रहण आदि विभाजन किया गया है? (1) गुप्तचरों का (2) दंड के प्रकार का (3) अमात्यों का (4) जनपद का

पॉलिटिक्स (Politics) शब्द की उत्पत्ति पोलिस (Polis) से हुई है, जो एक…? 1. फ्रांसीसी शब्द है 2. यूनानी शब्द है 3. लातिनी शब्द है 4. जर्मन शब्द है

कथन (A) ब्रिटिश सरकार द्वारा बाल विवाह रोकने हेतु प्रस्तुत ‘सहमति आयु विधेयक’ का तिलक ने विरोध किया। कारण (R): सामाजिक सुधार के नाम पर वे भारतीय प्रथाओं में विदेशी हस्तक्षेप के विरोधी थे। (1) (A) सही है किन्तु (R) गलत है (2) (A) गलत है किंतु (R) सही है (3) (A) और (R) दोनों सही है तथा व्याख्या भी है (4) (A) और (R) दोनों सही, किन्तु व्याख्या नहीं है।

इस प्रश्न का सही उत्तर है, विकल्प…

3. (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) की व्याख्या भी है।

══════════════════════════════════════════

व्याख्या :

1. कथन (A) सही है : बाल गंगाधर तिलक ने वास्तव में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत ‘सहमति आयु विधेयक’ (Age of Consent Bill) का विरोध किया था। यह विधेयक बाल विवाह को रोकने के लिए लाया गया था।

2. कारण (R) भी सही है : तिलक सामाजिक सुधार के नाम पर भारतीय प्रथाओं में विदेशी हस्तक्षेप के विरोधी थे। उनका मानना था कि भारतीय समाज को अपनी परंपराओं और मूल्यों के अनुसार स्वयं सुधार करना चाहिए, न कि विदेशी शक्ति द्वारा थोपे गए नियमों के अनुसार।

3. कारण (R), कथन (A) की व्याख्या करता है : तिलक द्वारा ‘सहमति आयु विधेयक’ का विरोध उनके इस विचार का प्रत्यक्ष परिणाम था कि वे भारतीय समाज में विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ थे। उनका मानना था कि यह विधेयक भारतीय संस्कृति और परंपराओं पर एक विदेशी शक्ति द्वारा थोपा गया नियम था।

तिलक का यह दृष्टिकोण उनके राष्ट्रवादी विचारों से प्रेरित था। वे मानते थे कि भारतीय समाज में सुधार आवश्यक हैं, लेकिन ये सुधार भारतीयों द्वारा, भारतीय परिप्रेक्ष्य से किए जाने चाहिए, न कि विदेशी शासकों द्वारा। उनका विरोध इस बात का प्रतीक था कि वे भारतीय समाज की स्वायत्तता और आत्मनिर्णय के अधिकार को महत्व देते थे।

इस प्रकार, कथन और कारण दोनों सही हैं, और कारण कथन की सटीक व्याख्या प्रदान करता है।


Related questions

निम्नलिखित दो तथ्य कथन (A) तथा कारण (R) के रूप में अभिकथित हैं: कथन (A): कुछ संदर्भों में तिलक का राष्ट्रवाद पुनरूत्थानवादी था। कारण (R): वे सामाजिक सुधार के नाम पर अपनी संस्थाओं को ब्रिटिश सांचे में नहीं ढालना चाहते थे। (1) (A) सही है किन्तु (R) गलत है (2) (A) गलत है किंतु (R) सही है (3) (A) और (R) दोनों सही है तथा (R), (A) की सही व्याख्या है (4) (A) और (R) दोनों सही हैं, किन्तु (A) की व्याख्या नहीं है।

‘हमारा देश एक वृक्ष की भांति है, जिसका तना स्वराज है और स्वदेशी उसकी शाखाएँ’ तिलक का यह कथन किस आंदोलन को संदर्भित करता है? (1) बंग भंग आंदोलन (2) असहयोग आंदोलन (3) सविनय अवज्ञा आंदोलन (4) भारत छोड़ो आंदोलन

निम्नलिखित दो तथ्य कथन (A) तथा कारण (R) के रूप में अभिकथित हैं: कथन (A): कुछ संदर्भों में तिलक का राष्ट्रवाद पुनरूत्थानवादी था। कारण (R): वे सामाजिक सुधार के नाम पर अपनी संस्थाओं को ब्रिटिश सांचे में नहीं ढालना चाहते थे। (1) (A) सही है किन्तु (R) गलत है (2) (A) गलत है किंतु (R) सही है (3) (A) और (R) दोनों सही है तथा (R), (A) की सही व्याख्या है (4) (A) और (R) दोनों सही हैं, किन्तु (A) की व्याख्या नहीं है।

सही उत्तर है..

(3) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) की सही व्याख्या है।

════════════════════════════════════════════════

व्याख्या

1. कथन (A) सही है : बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रवाद में पुनरुत्थानवादी तत्व थे। वे भारतीय संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों के पुनरुत्थान पर जोर देते थे।

2. कारण (R) भी सही है : तिलक का मानना था कि भारतीय समाज को अपनी संस्थाओं और परंपराओं को बनाए रखना चाहिए, न कि उन्हें पश्चिमी या ब्रिटिश मॉडल के अनुसार बदलना चाहिए।

3. कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या प्रदान करता है : तिलक के राष्ट्रवाद का पुनरुत्थानवादी पहलू उनकी इस इच्छा से स्पष्ट होता है कि वे भारतीय संस्थाओं को ब्रिटिश सांचे में नहीं ढालना चाहते थे। यह दृष्टिकोण उनके राष्ट्रवाद के मूल में था, जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं के पुनरुत्थान पर केंद्रित था।

तिलक का यह दृष्टिकोण उनके ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ के विचार के साथ संरेखित था, जिसमें न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता बल्कि सांस्कृतिक स्वायत्तता भी शामिल थी। वे भारतीय समाज के आधुनिकीकरण के विरोधी नहीं थे, लेकिन चाहते थे कि यह भारतीय मूल्यों और परंपराओं के आधार पर हो, न कि पश्चिमी मॉडल की नकल करके।

इस प्रकार, कथन और कारण दोनों सही हैं, और कारण कथन की सटीक व्याख्या प्रदान करता है।


Other questions

‘हमारा देश एक वृक्ष की भांति है, जिसका तना स्वराज है और स्वदेशी उसकी शाखाएँ’ तिलक का यह कथन किस आंदोलन को संदर्भित करता है? (1) बंग भंग आंदोलन (2) असहयोग आंदोलन (3) सविनय अवज्ञा आंदोलन (4) भारत छोड़ो आंदोलन

1923 में स्वराज पार्टी बनाने के लिए मोतीलाल नेहरू के साथ मिलने वाला कांग्रेस का अन्य नेता कौन था? 1. बी. जी. तिलक 2. चित्तरंजन दास 3. एम. के. गाँधी 4. जी. के. गोखले

ग्रीष्मकालीन ओलंपिक (समर ओलंपिक) और शीतकालीन ओलंपिक (विंटर ओलंपिक) में क्या अंतर है? ग्रीष्मकालीन ओलंपिक अधिक लोकप्रिय क्यों हैं?

0

ग्रीष्मकालीन ओलंपिक और शीतकालीन ओलंपिक दोनों अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएं हैं, लेकिन ओलंपिक की जब बात आती है तो अधिकतर समर ओलंपिक का ही जिक्र होता है। लोकप्रियता के मामले में भी ग्रीष्मकालीन (समर) ओलंपिक ही अधिक लोकप्रिय हैं। इन दोनों ओलंपिक आयोजन का क्या महत्व है? दोनों में क्या अंतर है आइए समझते हैं…

ग्रीष्मकालीन ओलंपिक और शीतकालीन ओलंपिक में अंतर

1. आयोजन समय : ग्रीष्मकालीन ओलंपिक गर्मियों में होता है, जबकि शीतकालीन ओलंपिक सर्दियों में।

2. खेल प्रकार : ग्रीष्मकालीन में एथलेटिक्स, तैराकी, जिमनास्टिक्स जैसे खेल शामिल हैं। शीतकालीन में स्कीइंग, स्केटिंग, बॉबस्लेड जैसे बर्फ और बर्फीले खेल होते हैं।

3. आयोजन स्थल : ग्रीष्मकालीन किसी भी जलवायु वाले शहर में हो सकता है, जबकि शीतकालीन के लिए बर्फीले पहाड़ों वाला स्थान आवश्यक है।

4. प्रतिभागियों की संख्या : ग्रीष्मकालीन में लगभग 11,000 एथलीट भाग लेते हैं। इसमें 200 से अधिक देश भाग लेते हैं, जबकि शीतकालीन में लगभग 3,000 एथलीट ही भाग लेते हैं, और इन ओलंपिक में भाग लेने की अधिकतम संख्या 91 ही होती है।

5. इतिहास : ग्रीष्मकालीन ओलंपिक 1896 से शुरू हुए इनका इतिहास काफी पुराना है, जबकि शीतकालीन 1924 में शुरु हुए।

6. लोकप्रियता : ग्रीष्मकालीन विश्व स्तर पर अधिक लोकप्रिय है, जबकि शीतकालीन का दर्शक आधार सीमित है।

7. खर्च : शीतकालीन ओलंपिक आयोजन अधिक महंगा होता है क्योंकि विशेष सुविधाओं की आवश्यकता होती है।

8. प्रतियोगिताओं की संख्या : ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में लगभग 30 खेलों में 300 से अधिक प्रतियोगिताएं होती हैं, जबकि शीतकालीन ओलंपिक में लगभग 15 खेलों में 100 प्रतियोगिताएं होती हैं।

9. मशाल रिले : दोनों ओलंपिक में मशाल रिले होती है, लेकिन ग्रीष्मकालीन में यह अधिक लंबी और व्यापक होती है।

10. आर्थिक प्रभाव : ग्रीष्मकालीन ओलंपिक का दायारा व्यापक होने के कारण आमतौर पर मेजबान शहर और देश के लिए अधिक आर्थिक लाभ लाता है, जबकि शीतकालीन ओलंपिक की लोकप्रियता दायरा छोटा होने के कारण बहुत अधिक लाभ नहीं प्राप्त होता।

11. मीडिया कवरेज : ग्रीष्मकालीन ओलंपिक को विश्वव्यापी स्तर पर अधिक मीडिया कवरेज मिलता है।

12. प्रतिभागी देश : ग्रीष्मकालीन में लगभग 200 देश भाग लेते हैं, जबकि शीतकालीन में यह संख्या लगभग 90 होती है।

ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की अधिक लोकप्रियता के कारण

ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की अधिक लोकप्रियता के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहले, इसमें शामिल खेल जैसे एथलेटिक्स, तैराकी और फुटबॉल विश्व स्तर पर अधिक प्रचलित हैं और इन्हें खेलने या देखने के लिए विशेष परिस्थितियों की आवश्यकता नहीं होती। इसके विपरीत, शीतकालीन ओलंपिक के खेल अक्सर बर्फीले क्षेत्रों तक सीमित होते हैं। दूसरा, ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में अधिक देश भाग लेते हैं, जिससे इसका वैश्विक आकर्षण बढ़ जाता है। तीसरा, इसका इतिहास लंबा है और यह पारंपरिक ग्रीक ओलंपिक से जुड़ा हुआ है, जो इसे एक समृद्ध विरासत प्रदान करता है। चौथा, ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में अधिक प्रतियोगिताएं और एथलीट होते हैं, जो इसे एक बड़ा और अधिक विविध आयोजन बनाता है। अंत में, मीडिया कवरेज और प्रायोजन के मामले में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक को अधिक निवेश मिलता है, जो इसकी लोकप्रियता को और बढ़ाता है।


Other questions

भारत ने अपना पहला टी-20 क्रिकेट मैच कब और किस टीम के विरुद्ध खेला था?

ओलंपिक खेल में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय और एकमात्र महिला खिलाड़ी कौन है? A. मीराबाई चानू B. एम सी मैरीकॉम C. वंदना कटारिया D. पी वी सिंधु

अर्थशास्त्र में स्थानीय, द्रोणमुख, खार्वटिक, संग्रहण आदि विभाजन किया गया है? (1) गुप्तचरों का (2) दंड के प्रकार का (3) अमात्यों का (4) जनपद का

सही उत्तर है…

(4) जनपद का

══════════════════

व्याख्या

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में स्थानीय, द्रोणमुख, खार्वटिक, संग्रहण आदि का विभाजन जनपद (राज्य के क्षेत्रीय विभाजन) के संदर्भ में किया गया है। यह विभाजन राज्य के प्रशासनिक और आर्थिक संगठन का एक महत्वपूर्ण पहलू था।

जनपद राज्य का एक क्षेत्रीय या प्रशासनिक विभाजन था। यह राज्य प्रशासन की मूल इकाई थी। उस समय विभिन्न प्रकार के जनपद होते थे। जिनका वर्गीकरण इस प्रकार था..

स्थानीय : यह एक प्रमुख नगर या शहर के आसपास का क्षेत्र था। इसमें आमतौर पर 800 गाँव होते थे।

द्रोणमुख : यह एक बड़ा व्यापारिक केंद्र था, जो आमतौर पर नदियों के संगम पर स्थित होता था। इसमें लगभग 400 गाँव शामिल होते थे।

खार्वटिक : यह एक छोटा व्यापारिक केंद्र था। इसमें लगभग 200 गाँव होते थे।

संग्रहण : यह एक ऐसा क्षेत्र था जहाँ राजस्व एकत्र किया जाता था। इसमें आमतौर पर 10 गाँव शामिल होते थे।

इस विभाजन का उद्देश्य राज्य प्रशासन को अधिक कुशल और प्रभावी बनाना था। यह कर संग्रह, न्याय प्रशासन और सामान्य प्रशासन में मदद करता था।

विभिन्न प्रकार के जनपद विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के केंद्र थे। यह व्यापार और वाणिज्य के विकास में सहायक था। यह विभाजन सामाजिक संगठन और समुदाय निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। इस प्रकार का विभाजन राज्य की रक्षा और सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने में भी मदद करता था।

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि यह विभाजन गुप्तचरों, दंड के प्रकार या अमात्यों से संबंधित नहीं है। यह विशेष रूप से राज्य के भौगोलिक और प्रशासनिक संगठन से संबंधित है। कौटिल्य ने इस विभाजन को राज्य के कुशल प्रबंधन और विकास के लिए आवश्यक माना था।

इस प्रकार का विभाजन कौटिल्य की दूरदर्शिता को दर्शाता है, जो एक बड़े राज्य के प्रभावी प्रशासन के लिए सुव्यवस्थित संरचना की आवश्यकता को समझते थे।


Related questions

अर्थशास्त्र में वर्णित चार प्रमुख विद्याओं में से ‘वार्ता सम्बन्धित है? (1) अमात्य से परिचर्चा (2) कृषि एवं व्यापार (3) लोकनीति पर चर्चा (4) गुप्तचरों से मंत्रणा

मंडल सिद्धांत’ के अन्तर्गत ‘मध्यम’ राज्य सीमावर्ती है? (1) विजिगीषु का (2) अरि का (3) विजिगीषु एवं अरि दोनों का (4) उपरोक्त में से कोई नहीं

अर्थशास्त्र में वर्णित चार प्रमुख विद्याओं में से ‘वार्ता’ सम्बन्धित है? (1) अमात्य से परिचर्चा (2) कृषि एवं व्यापार (3) लोकनीति पर चर्चा (4) गुप्तचरों से मंत्रणा

सही उत्तर है…

(2) कृषि एवं व्यापार

══════════════════

व्याख्या

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में चार प्रमुख विद्याओं (विद्याओं या ज्ञान के क्षेत्रों) का उल्लेख किया गया है। ये चार विद्याएँ हैं, आन्वीक्षिकी (दर्शनशास्त्र), त्रयी (वेद), दण्डनीति (शासन और कानून का विज्ञान), और वार्ता। इनमें से, वार्ता का संबंध कृषि और व्यापार से है।

वार्ता का अर्थ है आर्थिक गतिविधियों का विज्ञान या व्यावहारिक जीवन की कला। इसमें मुख्य रूप से कृषि, पशुपालन, व्यापार और वाणिज्य शामिल हैं। कौटिल्य ने वार्ता को राज्य की आर्थिक नींव के रूप में देखा। यह राजस्व उत्पादन और आर्थिक समृद्धि के लिए आवश्यक थी। वार्ता में कृषि तकनीकों, फसल प्रबंधन, सिंचाई आदि का ज्ञान शामिल था। इसमें व्यापार के नियम, बाजार व्यवस्था, मूल्य निर्धारण आदि शामिल थे। वार्ता राज्य की अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान करती थी। खनन, शिल्प, उद्योग आदि भी वार्ता के अंतर्गत आते थे। वार्ता राजा को अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका समझने में मदद करती थी।

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि वार्ता अमात्यों (मंत्रियों) से परिचर्चा, लोकनीति पर चर्चा, या गुप्तचरों से मंत्रणा से संबंधित नहीं है। ये अन्य विषय राज्य प्रशासन और राजनीति के अन्य पहलुओं से संबंधित हैं, जबकि वार्ता विशेष रूप से आर्थिक गतिविधियों और उनके प्रबंधन पर केंद्रित है।

कौटिल्य के अनुसार, एक सफल राजा के लिए इन सभी विद्याओं का ज्ञान आवश्यक था, लेकिन वार्ता विशेष रूप से राज्य की आर्थिक समृद्धि और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण थी।


Related questions

मंडल सिद्धांत’ के अन्तर्गत ‘मध्यम’ राज्य सीमावर्ती है? (1) विजिगीषु का (2) अरि का (3) विजिगीषु एवं अरि दोनों का (4) उपरोक्त में से कोई नहीं

कौटिल्य ने राज्य उत्पत्ति का कौन सा सिद्धान्त दिया था? (1) दैवीय उत्पत्ति (2) सामाजिक संविदा (3) पितृसत्तात्मक (4) आर्थिक

मंडल सिद्धांत’ के अन्तर्गत ‘मध्यम’ राज्य सीमावर्ती है? (1) विजिगीषु का (2) अरि का (3) विजिगीषु एवं अरि दोनों का (4) उपरोक्त में से कोई नहीं

इस प्रश्न का सही उत्तर है…

(3) विजिगीषु एवं अरि दोनों का

════════════════════════════

व्याख्या

‘मंडल सिद्धांत’ प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका विस्तृत वर्णन कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है। इस सिद्धांत के अनुसार, ‘मध्यम’ राज्य की स्थिति विजिगीषु (विजय की इच्छा रखने वाला राजा) और अरि (शत्रु राजा) दोनों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।

मंडल सिद्धांत प्राचीन भारतीय राजनीतिक सिद्धांत है जो राज्यों के आपसी संबंधों और उनके शक्ति संतुलन को समझाने के लिए उपयोग किया जाता था। इस सिद्धांत में विभिन्न प्रकार के राज्यों का वर्णन किया गया है, जिनमें से ‘मध्यम’ राज्य भी एक है।

विजिगीषु : यह राज्य उस राजा का होता है जो अन्य राज्यों को जीतने और अपने राज्य का विस्तार करने की इच्छा रखता है।

अरि : यह विजिगीषु का दुश्मन या प्रतिद्वंद्वी राज्य होता है।

मध्यम राज्य वह राज्य होता है जो विजिगीषु और अरि, दोनों के बीच स्थित होता है। इसका महत्व इस सिद्धांत में इसलिए है क्योंकि यह राज्य अक्सर दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है और उसकी स्थिति के कारण उसे रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।

इसलिए, ‘मंडल सिद्धांत’ के अंतर्गत ‘मध्यम’ राज्य सीमावर्ती होता है विजिगीषु और अरि दोनों का।

मध्यम राज्य की भूमिका के संदर्भ में ये विजिगीषु और अरि दोनों के लिए महत्वपूर्ण रणनीतिक स्थिति में होता है। इसके पास दोनों राज्यों को प्रभावित करने की क्षमता होती है।

विजिगीषु के लिए, मध्यम राज्य एक संभावित मित्र या तटस्थ शक्ति हो सकता है जो अरि के खिलाफ सहायक हो सकता है। अरि के लिए, मध्यम राज्य एक बफर जोन या संभावित सहयोगी के रूप में काम कर सकता है।

मध्यम राज्य अपनी स्थिति का लाभ उठाकर दोनों पक्षों से वार्ता कर सकता है। यह विजिगीषु और अरि के बीच संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

मंडल सिद्धांत में, मध्यम राज्य राजनीतिक चक्र के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में कार्य करता है। यह विजिगीषु की विस्तारवादी नीतियों और अरि की प्रतिरक्षात्मक रणनीतियों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है।

इस प्रकार, मध्यम राज्य की परिभाषा और महत्व इस तथ्य पर आधारित है कि यह विजिगीषु और अरि दोनों का सीमावर्ती है। यह स्थिति इसे मंडल सिद्धांत में एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है, जहाँ यह दोनों प्रमुख शक्तियों के बीच एक महत्वपूर्ण रणनीतिक भूमिका निभाता है।


Related questions

कौटिल्य ने राज्य उत्पत्ति का कौन सा सिद्धान्त दिया था? (1) दैवीय उत्पत्ति (2) सामाजिक संविदा (3) पितृसत्तात्मक (4) आर्थिक

मनुस्मृति में वर्णित बलि. शुल्क, दण्ड एवं भाग हैं? (1) राजमंडल की प्रकृतियाँ (2) करों के प्रकार (3) सप्तांग राज्य के अंग (4) षाड्‌गुण्य नीति

कौटिल्य ने राज्य उत्पत्ति का कौन सा सिद्धान्त दिया था? (1) दैवीय उत्पत्ति (2) सामाजिक संविदा (3) पितृसत्तात्मक (4) आर्थिक

इस प्रश्न का सही उत्तर है…

(2) सामाजिक संविदा

════════════════════

व्याख्या

कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में राज्य की उत्पत्ति के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए। उनका सिद्धांत सामाजिक संविदा के विचार पर आधारित था।

इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु इस प्रकार थे…

1. प्राकृतिक अवस्था : कौटिल्य के अनुसार, राज्य की स्थापना से पहले समाज एक अराजक स्थिति में था, जिसे उन्होंने ‘मत्स्य न्याय’ कहा। इस अवस्था में बलवान लोग कमजोरों का शोषण करते थे, ठीक वैसे ही जैसे बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा जाती हैं।

2. सामाजिक समझौता : इस अराजकता और अन्याय से मुक्ति पाने के लिए, लोगों ने एक साथ आकर एक समझौता किया। उन्होंने अपने अधिकारों का एक हिस्सा एक शासक को सौंपने का फैसला किया, जो उनकी रक्षा करेगा और न्याय सुनिश्चित करेगा।

3. राजा का चुनाव : इस समझौते के तहत, लोगों ने मनु (प्रथम मानव) को अपना राजा चुना और उसे अपने ऊपर शासन करने का अधिकार दिया।

4. कर का भुगतान : बदले में, लोग राजा को कर देने के लिए सहमत हुए, जो राज्य के संचालन और सुरक्षा के लिए आवश्यक था।

5. राजा के कर्तव्य : राजा का प्राथमिक कर्तव्य अपनी प्रजा की रक्षा करना, न्याय प्रदान करना और समाज में व्यवस्था बनाए रखना था।

कौटिल्य का यह सिद्धांत न तो पूरी तरह से दैवीय है (जो राज्य को ईश्वर द्वारा स्थापित मानता है), न ही पितृसत्तात्मक (जो राज्य को परिवार के विस्तार के रूप में देखता है), और न ही केवल आर्थिक। यह एक समझौते पर आधारित है जो लोगों और शासक के बीच किया गया, जिसमें दोनों पक्षों के अधिकार और कर्तव्य निर्धारित किए गए।

यह सिद्धांत पश्चिमी राजनीतिक दर्शन में बाद में विकसित हुए सामाजिक संविदा सिद्धांतों (जैसे हॉब्स, लॉक और रूसो द्वारा) के समान है, जो इस बात को दर्शाता है कि कौटिल्य के विचार कितने प्रगतिशील और दूरदर्शी थे।


Related questions

मनुस्मृति में वर्णित बलि. शुल्क, दण्ड एवं भाग हैं? (1) राजमंडल की प्रकृतियाँ (2) करों के प्रकार (3) सप्तांग राज्य के अंग (4) षाड्‌गुण्य नीति

मनुस्मृति उत्पत्ति की दृष्टि से राज्य को दैवीय तथा प्रकृति से राज्य को मानता है? (1) सावयवी (2) यंत्रवादी (3) राजनीतिक (4) आर्थिक

मनुस्मृति में वर्णित बलि. शुल्क, दण्ड एवं भाग हैं? (1) राजमंडल की प्रकृतियाँ (2) करों के प्रकार (3) सप्तांग राज्य के अंग (4) षाड्‌गुण्य नीति

इस प्रश्न का सही उत्तर है…

(2) करों के प्रकार

══════════════════

व्याख्या

मनुस्मृति में वर्णित बलि, शुल्क, दण्ड और भाग राजा द्वारा एकत्र किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के करों को संदर्भित करते हैं। मनुस्मृति में विभिन्न प्रकार के करों का वर्णन किया गया है, जो राजा या शासक के लिए राजस्व संग्रह के साधन होते थे। ये कर राज्य की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

इन करों का विवरण इस प्रकार है:

1. बलि : यह एक प्रकार का धार्मिक कर था। आमतौर पर यह कृषि उत्पादन का एक छोटा हिस्सा होता था, जो राजा को दिया जाता था।इसे देवताओं या ब्राह्मणों के लिए भेंट के रूप में भी समझा जाता था।

2. शुल्क : यह व्यापार और वाणिज्य पर लगाया जाने वाला कर था। इसमें सीमा शुल्क और व्यापारिक गतिविधियों पर अन्य कर शामिल थे।

3. दण्ड : यह जुर्माने या दंड के रूप में लिया जाने वाला धन था। अपराधों या नियमों के उल्लंघन के लिए यह राजा द्वारा लगाया जाता था।

4. भाग : यह कृषि उत्पादन पर लगाया जाने वाला कर था। आमतौर पर यह फसल का एक निश्चित अनुपात (जैसे 1/6) होता था, जो किसानों द्वारा राजा को दिया जाता था।

ये कर राज्य के राजस्व का महत्वपूर्ण स्रोत थे और राज्य के संचालन, सेना के रखरखाव, और अन्य राजकीय खर्चों को पूरा करने के लिए उपयोग किए जाते थे।

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि ये…

राजमंडल की प्रकृतियाँ नहीं हैं, जो राज्य के मूल तत्वों को संदर्भित करती हैं।

सप्तांग राज्य के अंग नहीं हैं, जो राज्य के सात आवश्यक घटकों को दर्शाते हैं।

षाड्‌गुण्य नीति का हिस्सा नहीं हैं, जो विदेश नीति के छह गुणों को संदर्भित करती है।

इस प्रकार, मनुस्मृति में वर्णित बलि, शुल्क, दण्ड और भाग स्पष्ट रूप से करों के प्रकार हैं, जो प्राचीन भारतीय राज्य व्यवस्था में राजस्व संग्रह का आधार थे।


Related questions

मनुस्मृति उत्पत्ति की दृष्टि से राज्य को दैवीय तथा प्रकृति से राज्य को मानता है? (1) सावयवी (2) यंत्रवादी (3) राजनीतिक (4) आर्थिक

अर्थशास्त्र के न्याय प्रशासन में ‘व्यवहार न्यायालय’ वर्णित है? (1) धर्मस्थीय (2) कंटकशोधन (3) माध्यस्थम (4) (1) एवं (2) दोनों

मनुस्मृति उत्पत्ति की दृष्टि से राज्य को दैवीय तथा प्रकृति से राज्य को मानता है? (1) सावयवी (2) यंत्रवादी (3) राजनीतिक (4) आर्थिक

इस प्रश्न का सही उत्तर है:

(1) सावयवी

══════════════

व्याख्या

मनुस्मृति, जो प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, राज्य की अवधारणा को दो दृष्टिकोणों से देखती है:

1. उत्पत्ति की दृष्टि से दैवीय

मनुस्मृति के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति दैवीय है। यह माना जाता है कि राज्य का निर्माण ईश्वरीय इच्छा या दैवीय आदेश से हुआ है। यह विचार राजा को दैवीय अधिकार प्रदान करता है, जिससे उसके शासन को वैधता मिलती है।

2. प्रकृति की दृष्टि से सावयवी

हालांकि राज्य की उत्पत्ति दैवीय मानी जाती है, मनुस्मृति राज्य की प्रकृति को सावयवी मानती है।

सावयवी दृष्टिकोण का अर्थ है कि राज्य को एक जीवित जैविक इकाई के रूप में देखा जाता है, जिसके विभिन्न अंग हैं जो एक साथ मिलकर कार्य करते हैं।

इस दृष्टिकोण के अनुसार, राज्य के विभिन्न घटक (जैसे राजा, मंत्री, न्यायालय, सेना, नागरिक) एक जीवित शरीर के अंगों की तरह एक-दूसरे पर निर्भर हैं और एक साथ कार्य करते हैं।

यह दृष्टिकोण न तो पूरी तरह से यंत्रवादी है (जो राज्य को केवल एक मशीन के रूप में देखता है), न ही केवल राजनीतिक या आर्थिक। यह राज्य को एक जीवंत, विकासशील और परस्पर संबंधित इकाई के रूप में देखता है, जिसमें सभी भाग एक-दूसरे पर निर्भर हैं और समग्र रूप से कार्य करते हैं।

इस प्रकार, मनुस्मृति में राज्य की अवधारणा दैवीय उत्पत्ति और सावयवी प्रकृति का एक संयोजन है, जो राज्य को एक जटिल, जीवंत और आध्यात्मिक रूप से प्रेरित संस्था के रूप में प्रस्तुत करती है।


Related questions

अर्थशास्त्र के न्याय प्रशासन में ‘व्यवहार न्यायालय’ वर्णित है? (1) धर्मस्थीय (2) कंटकशोधन (3) माध्यस्थम (4) (1) एवं (2) दोनों

अर्थशास्त्र में कापटिक, उदास्थित, गृहपाटक, तापस, वैदेहक, तीक्ष्ण एवं अन्य श्रेणियाँ बताई गई हैं? (1) गुप्तचरों की (2) राजमंडल की द्रव्य प्रकृतियों की (3) राजमंडल की मूल प्रकृतियों की (4) चतुरंगिणी सेना के आयुध

अर्थशास्त्र के न्याय प्रशासन में ‘व्यवहार न्यायालय’ वर्णित है? (1) धर्मस्थीय (2) कंटकशोधन (3) माध्यस्थम (4) (1) एवं (2) दोनों

इस प्रश्न का सही उत्तर है…

(4) (1) एवं (2) दोनों

═════════════════

व्याख्या

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में न्याय प्रशासन के दो मुख्य प्रकार के न्यायालयों का वर्णन किया गया है: धर्मस्थीय और कंटकशोधन। ये दोनों ‘व्यवहार न्यायालय’ के अंतर्गत आते हैं।

1. धर्मस्थीय न्यायालय

ये नागरिक मामलों से संबंधित न्यायालय थे।
इनमें व्यक्तिगत विवाद, संपत्ति विवाद, विवाह संबंधी मामले, उत्तराधिकार के मुद्दे आदि को देखा जाता था।
इन न्यायालयों का उद्देश्य समाज में धर्म (नैतिक और कानूनी कर्तव्य) की स्थापना करना था।

2. कंटकशोधन न्यायालय

ये आपराधिक मामलों से संबंधित न्यायालय थे।
इनमें चोरी, हत्या, हिंसा, राजद्रोह जैसे अपराधों की सुनवाई होती थी।
‘कंटक’ का अर्थ है ‘काँटा’, और इन न्यायालयों का उद्देश्य समाज से इन ‘काँटों’ को दूर करना था।

दोनों प्रकार के न्यायालय मिलकर ‘व्यवहार न्यायालय’ का निर्माण करते थे, जो कौटिल्य के अनुसार एक समग्र न्याय प्रणाली थी। यह प्रणाली नागरिक और आपराधिक दोनों प्रकार के मामलों को संभालने के लिए डिज़ाइन की गई थी, जिससे समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में मदद मिलती थी।

माध्यस्थम, जो विकल्प (3) में दिया गया है, एक अलग प्रक्रिया है जिसमें विवाद को सुलझाने के लिए एक तटस्थ तीसरे पक्ष का उपयोग किया जाता है। हालांकि यह एक महत्वपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया है, यह अर्थशास्त्र में वर्णित मुख्य ‘व्यवहार न्यायालय’ के अंतर्गत नहीं आती।


Related questions

अर्थशास्त्र में कापटिक, उदास्थित, गृहपाटक, तापस, वैदेहक, तीक्ष्ण एवं अन्य श्रेणियाँ बताई गई हैं? (1) गुप्तचरों की (2) राजमंडल की द्रव्य प्रकृतियों की (3) राजमंडल की मूल प्रकृतियों की (4) चतुरंगिणी सेना के आयुध

निम्नलिखित में से कौन सा राजनीति शास्त्री राजनीतिक विकास की अवधारणा से संबंधित है? 1. एल्वमैन 2. रुडोल्फ 3. लॉसवेल 4. गोल्ड हैमर

अर्थशास्त्र में कापटिक, उदास्थित, गृहपाटक, तापस, वैदेहक, तीक्ष्ण एवं अन्य श्रेणियाँ बताई गई हैं? (1) गुप्तचरों की (2) राजमंडल की द्रव्य प्रकृतियों की (3) राजमंडल की मूल प्रकृतियों की (4) चतुरंगिणी सेना के आयुध

इस प्रश्न का सही उत्तर होगा…

(1) गुप्तचरों की

═════════════

व्याख्या

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में गुप्तचरों या गुप्तचरों (जासूसों) के विभिन्न प्रकार का वर्णन किया गया है। अर्थशास्त्र में कापटिक, उदास्थित, गृहपाटक, तापस, वैदेहक, तीक्ष्ण आदि – विशेष रूप से गुप्तचरों के लिए उल्लिखित हैं।

कौटिल्य ने इन विभिन्न प्रकार के गुप्तचरों का उपयोग राज्य की सुरक्षा, शत्रुओं की गतिविधियों पर नज़र रखने और आंतरिक मामलों की जानकारी एकत्र करने के लिए सुझाया था। प्रत्येक श्रेणी का एक विशिष्ट कार्य और पहचान होती थी…

  1. कापटिक (Kapatic): ये गुप्तचर धोखे और छल के माध्यम से जानकारी प्राप्त करते हैं।
  2. उदास्थित (Udastith): ये गुप्तचर ऐसे होते हैं जो उदासीन या तटस्थ दिखाई देते हैं लेकिन गुप्त रूप से जानकारी इकट्ठा करते हैं।
  3. गृहपाटक (Grihapaatak): ये गुप्तचर घरों के अंदर रहकर जानकारी एकत्रित करते हैं।
  4. तापस (Tapasa): ये तपस्वी या साधु के रूप में रहते हुए गुप्तचरी करते हैं।
  5. वैदेहक (Vaidehaka): ये गुप्तचर व्यापारी या वणिक के रूप में रहते हैं और जानकारी प्राप्त करते हैं।
  6. तीक्ष्ण (Teekshna): ये गुप्तचर उग्र या तीव्र स्वभाव के होते हैं और जानकारी प्राप्त करने के लिए कठोर तरीके अपनाते हैं।
  7. अन्य श्रेणियाँ: इसके अलावा भी कई अन्य प्रकार के गुप्तचर होते हैं जो विभिन्न तरीकों से राज्य के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं।

इन गुप्तचरों का मुख्य उद्देश्य राज्य को बाहरी और आंतरिक खतरों से सुरक्षित रखना और शासक को सही समय पर सही जानकारी उपलब्ध कराना होता है। अर्थशास्त्र में इन गुप्तचरों की भूमिकाएँ और कार्य स्पष्ट रूप से वर्णित हैं, जो राज्य संचालन में अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

ये श्रेणियाँ न तो राजमंडल की द्रव्य या मूल प्रकृतियों से संबंधित हैं, न ही चतुरंगिणी सेना के आयुधों से। वे विशेष रूप से गुप्तचर व्यवस्था के लिए निर्धारित की गई थीं, जो कौटिल्य के अनुसार एक कुशल राज्य प्रशासन का महत्वपूर्ण अंग थी।


Related questions

अर्थशास्त्र में निसृष्टार्थ, परिमितार्थ और शासनाहार गुण हैं? (1) अमात्यों के (2) राजदूतों के (3) गुप्तचरों के (4) स्वामी के

मनुस्मृति के ‘मंडल सिद्धांत’ में पाणिग्राह का अर्थ- पीछे का शत्रु है। वहीं ‘आक्रान्दासार’ का अर्थ है? (1) आगे का शत्रु (2) आगे से आक्रमण करने वाला (3) (1) एवं (2) दोनों (4) उपरोक्त में से कोई नहीं

लक्ष्मण जी और राम जी के परशुराम जी से संवाद में क्या अंतर था?

0

लक्ष्मण जी और राम जी के परशुराम जी से संवाद में निम्नलिखित महत्वपूर्ण अंतर थे:

  1. दृष्टिकोण : लक्ष्मण का दृष्टिकोण आक्रामक और चुनौतीपूर्ण था, जबकि राम का दृष्टिकोण शांत और सम्मानजनक था।
  2. वाणी : लक्ष्मण की वाणी में व्यंग्य और कटाक्ष था, जबकि राम की वाणी मधुर और विनम्र थी।
  3. रणनीति : लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोध को और भड़काने वाली रणनीति अपनाई, जबकि राम ने स्थिति को शांत करने की कोशिश की।
  4. परिपक्वता : राम ने परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए परिपक्वता दिखाई, जबकि लक्ष्मण ने युवा जोश में बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया दी।
  5. प्रभाव : लक्ष्मण के शब्दों ने परशुराम के क्रोध को बढ़ाया, जबकि राम के शब्दों ने उनके क्रोध को शांत करने का प्रयास किया।
  6. समझ : राम ने परशुराम की भावनाओं और स्थिति की जटिलता को समझा, जबकि लक्ष्मण इससे अनजान प्रतीत हुए।
  7. परिणाम : राम के संवाद ने स्थिति को नियंत्रित करने में मदद की, जबकि लक्ष्मण के संवाद ने तनाव को बढ़ाया।
यह अंतर दोनों भाइयों के व्यक्तित्व और परिपक्वता के स्तर को दर्शाता है, साथ ही यह भी बताता है कि कैसे एक ही परिस्थिति में दो अलग-अलग दृष्टिकोण विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं।

‘हमारा देश एक वृक्ष की भांति है, जिसका तना स्वराज है और स्वदेशी उसकी शाखाएँ’ तिलक का यह कथन किस आंदोलन को संदर्भित करता है? (1) बंग भंग आंदोलन (2) असहयोग आंदोलन (3) सविनय अवज्ञा आंदोलन (4) भारत छोड़ो आंदोलन

इस प्रश्न का सही उत्तर है…

(1) बंग भंग आंदोलन

═══════════════════

व्याख्या

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का यह प्रसिद्ध कथन “हमारा देश एक वृक्ष की भांति है, जिसका तना स्वराज है और स्वदेशी उसकी शाखाएँ” मुख्य रूप से बंग भंग आंदोलन के संदर्भ में कहा गया था। यह आंदोलन 1905 में शुरू हुआ था जब ब्रिटिश सरकार ने बंगाल प्रांत को धार्मिक आधार पर विभाजित करने का निर्णय लिया।

बंगाल विभाजन के कारण भारतीय की जनता में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के प्रति आक्रोश उत्पन्न हो गया। ब्रिटिश के सरकार के विरुद्ध विरोध के स्वर उठने लगे थे। इसी कारण विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया गया। यहीं स्वदेशी आंदोलन का जन्म हुआ और इसी संदर्भ ने लोकमान्य बालगंगाधर तिलक उक्त कथन कहा था।

तिलक ने इस कथन के माध्यम से स्वराज (स्व-शासन) और स्वदेशी (स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग) के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने देश को एक वृक्ष के रूप में चित्रित किया, जहां स्वराज इसका मजबूत तना है जो पूरे देश को एकजुट रखता है, जबकि स्वदेशी इसकी शाखाओं के रूप में देश के विकास और समृद्धि का प्रतीक है।

बंग भंग आंदोलन के दौरान, स्वदेशी और बहिष्कार की नीतियां प्रमुख रूप से सामने आईं। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ लाया और राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा दी। तिलक के इस कथन ने लोगों में राष्ट्रीय भावना जगाने और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


Other questions

‘प्रेमाश्रम’ किस प्रकार असहयोग आंदोलन का अंग बन गया?

‘सत्याग्रह’ का अर्थ है- (i) आंदोलन (ii) जुलूस (iii) सच का साथ देना (iv) अनशन ​

लक्ष्मण जी की किन बातों को सुन कर परशुराम जी उन्हें मारने के लिए दौड़ पड़े और इसका क्या परिणाम हुआ?

0

परशुराम जी के क्रोधपूर्ण शब्दों के उत्तर में लक्ष्मण जी ने उनसे कहा कि उनका पराक्रम तो विश्व विख्यात है। फिर व्यंग्य करते हुए कहा कि आपने माता-पिता का ऋण चुका दिया और अब गुरु का ऋण चुकाने की सोच रहे हैं, जो आपके मन पर भारी बोझ है।

लक्ष्मण ने कटाक्ष किया कि इतने दिनों में ऋण पर ब्याज बहुत बढ़ गया होगा और सुझाव दिया कि किसी हिसाब करने वाले को बुला लें। उन्होंने यह भी कहा कि वे तुरंत थैली खोलकर ऋण चुका देंगे। लक्ष्मण के इन कटु वचनों से क्रुद्ध होकर परशुराम ने अपना फरसा उठाया और लक्ष्मण पर प्रहार करने दौड़ पड़े।

सभा में उपस्थित सभी लोग भयभीत होकर ‘हाय-हाय’ पुकारने लगे। इस पर भी लक्ष्मण ने कहा कि वे परशुराम को ब्राह्मण समझकर बार-बार बचा रहे हैं और उन्हें कभी वीर योद्धा नहीं मिले। लक्ष्मण के इन शब्दों को सुनकर सभा में उपस्थित लोग इसे अनुचित बताने लगे। अंततः, श्री राम ने आँखों के इशारे से लक्ष्मण को चुप रहने का संकेत दिया।


Related questions

परशुराम जी के वचन सुनकर विश्वामित्र जी मन ही मन परशुराम जी का अज्ञानियों की तरह व्यवहार देख कर हँसने लगे। क्यों?

परशुराम जी विश्वामित्र जी को क्यों कहते हैं कि वे लक्ष्मण जी को समझा दें?

परशुराम जी के वचन सुनकर विश्वामित्र जी मन ही मन परशुराम जी का अज्ञानियों की तरह व्यवहार देख कर हँसने लगे। क्यों?

0

विश्वामित्र जी मन ही मन परशुराम का अज्ञानियों की तरह व्यवहार देखकर हँसने लगे क्योंकि..

वे समझ गए थे कि परशुराम राम और लक्ष्मण की वास्तविक शक्ति और महत्व से अनजान हैं। परशुराम अपनी पूर्व विजयों के कारण राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय समझ रहे थे। विश्वामित्र जानते थे कि ये दोनों बालक साधारण नहीं, बल्कि ‘लोहे की तलवार’ के समान मजबूत और शक्तिशाली हैं।

विश्वामित्र को लगा कि परशुराम राम-लक्ष्मण को ‘गन्ने के रस’ की तरह कमजोर समझ रहे हैं, जो गलत था। वे शायद यह भी समझ गए थे कि परशुराम को जल्द ही अपनी गलती का एहसास होगा। विश्वामित्र को इस स्थिति में एक प्रकार की विडंबना दिखी, जहां एक महान योद्धा दो युवा बालकों की शक्ति को समझने में असमर्थ था। विश्वामित्र का यह मौन हास्य उनकी गहरी अंतर्दृष्टि और स्थिति की समझ को दर्शाता है।


Related questions

परशुराम जी विश्वामित्र जी को क्यों कहते हैं कि वे लक्ष्मण जी को समझा दें?

बार–बार लक्ष्मण जी को समझाने पर भी जब वे नहीं मानते तो परशुराम जी विश्वामित्र जी से क्या कहते हैं?

परशुराम जी विश्वामित्र जी को क्यों कहते हैं कि वे लक्ष्मण जी को समझा दें?

0
परशुराम जी विश्वामित्र जी से लक्ष्मण को समझाने के लिए कहते हैं क्योंकि…
  1. मध्यस्थता की आवश्यकता : वे समझते हैं कि स्थिति तनावपूर्ण हो रही है और एक सम्मानित व्यक्ति की मध्यस्थता आवश्यक है।
  2. विश्वामित्र का प्रभाव : वे जानते हैं कि विश्वामित्र राम-लक्ष्मण के गुरु हैं और उनका प्रभाव लक्ष्मण पर होगा।
  3. अनर्थ से बचना : परशुराम नहीं चाहते कि उनका क्रोध किसी अनुचित घटना का कारण बने।
  4. लक्ष्मण की सुरक्षा : वे लक्ष्मण को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते, लेकिन उनका व्यवहार उन्हें इस दिशा में धकेल रहा है।
  5. अपने क्रोध पर नियंत्रण : वे अपने क्रोध को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं और विश्वामित्र की मदद चाहते हैं।
  6. स्थिति का शांतिपूर्ण समाधान : वे चाहते हैं कि स्थिति शांतिपूर्वक सुलझ जाए, बिना किसी हिंसक कार्रवाई के।
यह परशुराम की विवेकशीलता और स्थिति के प्रति उनकी समझ को दर्शाता है, जहां वे एक वरिष्ठ और सम्मानित व्यक्ति की मदद लेना चाहते हैं।

बार–बार लक्ष्मण जी को समझाने पर भी जब वे नहीं मानते तो परशुराम जी विश्वामित्र जी से क्या कहते हैं?

0
जब लक्ष्मण बार-बार समझाने पर भी नहीं मानते, तो परशुराम विश्वामित्र से निम्नलिखित बातें कहते हैं…
  1. वे लक्ष्मण को ‘कुबुद्धि’ और ‘कुटिल’ बताते हैं, जो उनकी निराशा को दर्शाता है।
  2. परशुराम कहते हैं कि लक्ष्मण ‘काल के वश में होकर’ अपने ही कुल का घातक बन रहा है, जो उनकी चिंता को प्रकट करता है।
  3. वे लक्ष्मण को ‘सूर्यवंशी बालक’ कहते हुए उसे ‘चंद्रमा पर लगे कलंक’ के समान बताते हैं, जो उनकी निराशा और क्रोध को दर्शाता है।
  4. परशुराम लक्ष्मण को ‘मूर्ख’, ‘उदंड’ और ‘निडर’ कहते हैं, जो उनकी दृष्टि में लक्ष्मण के व्यवहार की आलोचना है।
  5. वे विश्वामित्र को चेतावनी देते हैं कि अगर वे लक्ष्मण को नहीं रोकेंगे, तो वह ‘क्षणभर में काल का ग्रास’ हो जाएगा।
  6. अंत में, वे विश्वामित्र से कहते हैं कि अगर वे लक्ष्मण को बचाना चाहते हैं, तो उसे परशुराम के ‘प्रताप, बल और क्रोध’ के बारे में बताकर चुप करा दें।
यह संवाद परशुराम के क्रोध, निराशा और चिंता को प्रदर्शित करता है, साथ ही विश्वामित्र की मध्यस्थता की अपेक्षा भी करता है।

लक्ष्मण जी ने ऐसा क्यों कहा की यहाँ कोई परशुराम जी की तर्जनी ऊँगली से मरने वाला नहीं है?

0

लक्ष्मण जी ने यह कथन निम्नलिखित कारणों से कहा..

वे परशुराम के अहंकार को चुनौती देना चाहते। वे परशुराम की शक्ति और प्रभाव को कम करके आंकना चाहते थे।
इस कथन से वे यह संकेत दे रहे थे कि वे और राम साधारण व्यक्ति नहीं हैं।
परशुराम ने जो धमकी दी थी कि वे सभी राजाओं का वध कर देंगे, उसका व्यंग्यात्मक उत्तर देने के लिए उन्होंने ऐसा कहा।लक्ष्मण यह दर्शाना चाहते थे कि वे परशुराम के क्रोध से भयभीत नहीं हैं, वह खुद को निडर दिखाना चाहते थे।
वे इस तनावपूर्ण वातावरण को हल्का करने का प्रयास कर रहे थे।

यह कथन लक्ष्मण के साहसी और आवेशपूर्ण स्वभाव को प्रदर्शित करता है, जो कभी-कभी उन्हें विवादास्पद स्थितियों में डाल देता है।

 

Related questions

परशुराम जी के क्रोधित वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी उनको किस प्रकार प्रत्युत्तर देते हुए और अधिक व्यंग्य कसते हैं?

परशुराम जी लक्ष्मण जी को अपने क्रोध परिचय कैसे देते हैं और वे लक्ष्मण जी को नुक्सान क्यों नहीं पहुंचाते?

परशुराम जी के क्रोधित वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी उनको किस प्रकार प्रत्युत्तर देते हुए और अधिक व्यंग्य कसते हैं?

0
लक्ष्मण जी परशुराम के क्रोधित वचनों का प्रत्युत्तर देते हुए अत्यंत चतुराई और व्यंग्य का प्रयोग करते हैं…
  1. वे परशुराम की वीरता का मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि वे ‘फूँक से पहाड़ उड़ाना’ चाहते हैं।
  2. लक्ष्मण यह भी कहते हैं कि वे कोई ‘सीता फल’ (कुम्हड़े का छोटा फल) नहीं हैं जो परशुराम की तर्जनी उँगली देखकर ही मर जाएँगे।
  3. वे परशुराम के हथियारों (फरसा और धनुष-बाण) का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि इन्हें देखकर ही उन्होंने कुछ कहा था, जो उनकी निडरता दर्शाता है।
  4. लक्ष्मण यह भी कहते हैं कि वे एक क्षत्रिय होने के नाते ही परशुराम से इस तरह बात कर रहे हैं।
  5. अंत में, वे परशुराम के ब्राह्मण होने का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि वे अपने क्रोध को नियंत्रित कर रहे हैं।
इस प्रकार, लक्ष्मण अपने व्यंग्य के माध्यम से न केवल परशुराम की वीरता का मजाक उड़ाते हैं, बल्कि अपनी निडरता और क्षत्रिय धर्म का भी प्रदर्शन करते हैं।

परशुराम जी लक्ष्मण जी को अपने क्रोध का परिचय कैसे देते हैं और वे लक्ष्मण जी को नुकसान क्यों नहीं पहुंचाते?

0

परशुराम जी लक्ष्मण को अपने क्रोध का परिचय देते हुए अपने फरसे की भयानकता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि उनका फरसा इतना शक्तिशाली है कि उसकी गर्जना मात्र से गर्भवती स्त्रियों का गर्भपात हो जाता है। यह वर्णन परशुराम के क्रोध की तीव्रता और उनकी शक्ति को दर्शाता है। हालाँकि, वे लक्ष्मण को नुकसान नहीं पहुँचाते क्योंकि…

  1. वे लक्ष्मण को बालक समझते हैं और उनकी अपरिपक्वता को ध्यान में रखते हैं।
  2. उनका मुख्य उद्देश्य शिव धनुष तोड़ने वाले व्यक्ति को दंडित करना है, न कि किसी और को।
  3. वे एक ब्राह्मण हैं और अपने धर्म का पालन करते हुए अकारण हिंसा से बचना चाहते हैं।
  4. संभवतः वे लक्ष्मण में छिपी शक्ति को भांप रहे हैं और सावधानी बरत रहे हैं।
इस प्रकार, परशुराम अपने क्रोध का प्रदर्शन तो करते हैं, लेकिन वास्तविक कार्रवाई से बचते हैं।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में राम और लक्ष्मण के व्यक्तित्व के बीच अंतर को कैसे समझा जा सकता है?

0
राम और लक्ष्मण के व्यक्तित्व में निम्नलिखित अंतर दिखाई देते हैं…
  1. संयम बनाम आवेग : राम शांत और संयमित रहते हैं, जबकि लक्ष्मण आवेगशील और तेज़ स्वभाव के हैं।
  2. कूटनीति बनाम सीधापन : राम कूटनीतिक ढंग से बात करते हैं, जबकि लक्ष्मण अपने विचारों को सीधे व्यक्त करते हैं।
  3. सम्मान बनाम व्यंग्य : राम परशुराम को सम्मान देते हैं, जबकि लक्ष्मण उन पर व्यंग्य करते हैं।
  4. दूरदर्शिता बनाम तात्कालिकता : राम परिणामों के बारे में सोचते हैं, जबकि लक्ष्मण वर्तमान क्षण में जीते हैं।
  5. परिपक्वता बनाम युवा जोश : राम अधिक परिपक्व व्यवहार करते हैं, जबकि लक्ष्मण में युवा जोश दिखता है।
यह अंतर दोनों भाइयों के बीच एक संतुलन स्थापित करता है, जहाँ राम की शांति और लक्ष्मण का जोश एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम करते हैं।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में विश्वामित्र की भूमिका का क्या महत्व था?

0

‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ कविता में विश्वामित्र की भूमिका एक मध्यस्थ और संतुलनकारी शक्ति के रूप में महत्वपूर्ण थी…

  1. ज्ञान का स्रोत : विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के गुरु थे, जो परिस्थिति की गंभीरता को समझते थे।
  2. शांतिदूत : परशुराम ने विश्वामित्र से लक्ष्मण को समझाने को कहा, जो उनकी मध्यस्थता की भूमिका को दर्शाता है।
  3. अंतर्दृष्टि : विश्वामित्र मन ही मन परशुराम के अज्ञान पर हँसे, जो उनकी गहरी समझ को प्रदर्शित करता है।
  4. निष्पक्षता : वे किसी पक्ष का खुलकर समर्थन नहीं करते, बल्कि स्थिति को संतुलित रखने का प्रयास करते हैं।
  5. रणनीतिक मौन : उनका मौन रहना भी एक रणनीति थी, जो राम और लक्ष्मण को स्थिति से निपटने का अवसर देता था।
विश्वामित्र की यह भूमिका संवाद को एक नया आयाम देती है, जहाँ वे एक बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्ति के रूप में स्थिति को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

लक्ष्मण द्वारा परशुराम के क्रोध का मजाक उड़ाने के पीछे क्या मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं?

0

लक्ष्मण द्वारा परशुराम के क्रोध का मजाक उड़ाने के पीछे कई मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं…

  1. युवा होने के कारण आवेग : लक्ष्मण अपेक्षाकृत युवा थे और उनमें परिपक्वता की कमी थी, जिससे वे बिना सोचे-समझे बोल गए।
  2. भाई का बचाव : वे अपने भाई राम का बचाव करना चाहते थे, जिन्होंने धनुष तोड़ा था।
  3. अज्ञानता : उन्हें परशुराम के महत्व और शक्ति का पूरा ज्ञान नहीं था।
  4. आत्मविश्वास : अपनी शक्ति में अत्यधिक विश्वास के कारण वे परशुराम के क्रोध को हल्के में ले रहे थे।
  5. प्रतिद्वंद्विता : क्षत्रिय होने के नाते, वे परशुराम के क्षत्रिय-विरोधी रवैये से चिढ़े हुए हो सकते थे।

यह व्यवहार लक्ष्मण के चरित्र की जटिलता को दर्शाता है, जो बहादुर और निडर तो है, लेकिन कभी-कभी अपने आवेग पर नियंत्रण नहीं रख पाता।


Related questions

परशुराम के क्रोध और राम के शांत व्यवहार के बीच विरोधाभास को कैसे समझा जा सकता है?

शिव धनुष टूटने पर परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए राम ने किस रणनीति का उपयोग किया?

परशुराम के क्रोध और राम के शांत व्यवहार के बीच विरोधाभास को कैसे समझा जा सकता है?

0

‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ कविता में परशुराम के क्रोध और राम के शांत व्यवहार का विरोधाभास दो अलग-अलग दृष्टिकोणों को प्रदर्शित करता है। परशुराम का क्रोध उनके अहंकार और पूर्वाग्रहों से प्रेरित था, जहां वे शिव धनुष के टूटने को अपने सम्मान पर चोट के रूप में देख रहे थे। दूसरी ओर, राम का शांत व्यवहार उनकी परिपक्वता और विवेक को दर्शाता है।

राम ने स्थिति की नाजुकता को समझा और उसे कूटनीतिक ढंग से संभाला। उन्होंने परशुराम को ‘मुनिवर’ कहकर सम्मान दिया और अपने आप को उनका दास बताकर उनके क्रोध को शांत करने का प्रयास किया। यह विरोधाभास दिखाता है कि कैसे एक ही परिस्थिति में दो व्यक्ति अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दे सकते हैं।


Related questions

शिव धनुष टूटने पर परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए राम ने किस रणनीति का उपयोग किया?

क्रोध से बात और अधिक बिगड़ जाती है। ‘राम-लक्ष्मण,परशुराम संवाद कविता के आलोक में इस कथन की पुष्टि कीजिए।

शिव धनुष टूटने पर परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए राम ने किस रणनीति का उपयोग किया?

0

राम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए एक चतुर रणनीति अपनाई। उन्होंने स्वयं को परशुराम का दास बताकर उनके अहंकार को तुष्ट किया। राम ने कहा कि शिव धनुष तोड़ने वाला व्यक्ति परशुराम का ही कोई सेवक होगा। इस तरह राम ने अपनी विनम्रता दिखाते हुए परशुराम को शांत करने का प्रयास किया। यह रणनीति राम की कूटनीतिक समझ को दर्शाती है, जहां वे एक तनावपूर्ण स्थिति को बिना किसी टकराव के सुलझाने का प्रयास कर रहे थे।


Related questions

लक्ष्मण ने कुम्हड़बतिया दृष्टांत क्यों दिया ? क्या संदेश देना चाहते?

क्रोध से बात और अधिक बिगड़ जाती है। ‘राम-लक्ष्मण,परशुराम संवाद कविता के आलोक में इस कथन की पुष्टि कीजिए।

क्रोध से बात और अधिक बिगड़ जाती है। ‘राम-लक्ष्मण,परशुराम संवाद कविता के आलोक में इस कथन की पुष्टि कीजिए।

0

‘राम-लक्ष्मण, परशुराम संवाद’ कविता में क्रोध के नकारात्मक प्रभाव का स्पष्ट चित्रण किया गया है, जो यह दर्शाता है कि क्रोध से बात और अधिक बिगड़ जाती है। इस कविता में, परशुराम और लक्ष्मण के बीच का संवाद क्रोध के कारण तनावपूर्ण और विवादास्पद हो जाता है।

परशुराम जी अपने क्रोध में लक्ष्मण को बार-बार अपमानित करते हैं और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। इसके प्रतिक्रिया में, लक्ष्मण भी क्रोधित हो जाते हैं और परशुराम जी के पद और स्थिति की परवाह किए बिना उन्हें कटु और कठोर शब्द कहते हैं। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि क्रोध में दोनों पक्ष अपना विवेक खो बैठते हैं और एक-दूसरे को अपमानित करने लगते हैं।

इस स्थिति में, यदि विश्वामित्र जी और श्री राम जी अपने शांत और विनम्र स्वभाव का प्रदर्शन न करते, तो परिस्थिति और भी गंभीर हो सकती थी। उनके हस्तक्षेप ने तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और संभावित विनाशकारी परिणामों को टाला। यह दर्शाता है कि शांत और समझदार व्यवहार किस प्रकार क्रोध से उत्पन्न तनाव को कम कर सकता है।

इस प्रकार, यह कविता हमें सिखाती है कि क्रोध न केवल व्यक्तिगत संबंधों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि समाज में भी अशांति और विवाद पैदा कर सकता है। इसलिए, हमें हमेशा अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए और परिस्थितियों को शांति और विवेक से संभालना चाहिए।


Related questions

लक्ष्मण ने कुम्हड़बतिया दृष्टांत क्यों दिया ? क्या संदेश देना चाहते?

शिव धनुष टूटने पर परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए राम ने किस रणनीति का उपयोग किया?

लक्ष्मण ने कुम्हड़बतिया का दृष्टांत क्यों दिया ? क्या संदेश देना चाहते?

0

लक्ष्मण ने ‘कुम्हड़बतिया’ का दृष्टांत एक बहुत ही महत्वपूर्ण और तनावपूर्ण क्षण में दिया था। यह घटना तब घटी जब परशुराम, जो एक महान योद्धा और ऋषि थे, लक्ष्मण को लगातार अपमानित कर रहे थे और उन्हें अपने क्रोध, शक्ति और प्रतिष्ठा का बोध करा रहे थे। परशुराम बार-बार अपने प्रसिद्ध फरसे की धार और अपने पराक्रम का बखान कर रहे थे, जिससे लक्ष्मण का धैर्य टूट गया।

इस परिस्थिति में, लक्ष्मण ने ‘कुम्हड़बतिया’ का उदाहरण देकर परशुराम को एक कठोर संदेश दिया। उन्होंने कहा कि परशुराम की धमकियाँ उन पर वैसे ही प्रभावहीन हैं, जैसे कोई फूँक मारकर पहाड़ को हिलाने का प्रयास करे। लक्ष्मण ने स्पष्ट किया कि वे कोई कमजोर व्यक्ति नहीं हैं जो परशुराम की उंगली दिखाने मात्र से डर जाएंगे। इस दृष्टांत के माध्यम से लक्ष्मण ने न केवल अपनी निडरता का प्रदर्शन किया, बल्कि परशुराम के अहंकार को भी चुनौती दी।

लक्ष्मण का यह कथन उनके आत्मविश्वास और साहस को दर्शाता है। वे परशुराम को याद दिलाना चाहते थे कि उनकी धमकियों से वे भयभीत नहीं हैं और अपनी शक्ति पर पूर्ण विश्वास रखते हैं। हालाँकि, लक्ष्मण ने यह भी स्पष्ट किया कि वे परशुराम को एक ऋषि और महात्मा के रूप में सम्मान देते हैं, और रघुकुल की परंपरा के अनुसार, वे ब्राह्मणों या ऋषियों से युद्ध नहीं करते। इस प्रकार, लक्ष्मण ने अपनी वीरता और मर्यादा दोनों का प्रदर्शन किया।


Related questions

क्रोध से बात और अधिक बिगड़ जाती है। ‘राम-लक्ष्मण,परशुराम संवाद कविता के आलोक में इस कथन की पुष्टि कीजिए।

शिव धनुष टूटने पर परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए राम ने किस रणनीति का उपयोग किया?

पूर्वी तटीय मैदान और पश्चिमी तटीय मैदान में अंतर बताइए।

0

पूर्वी तटीय मैदान और पश्चिमी तटीय मैदान भारत के भारत के विशाल भू-भाग को घेरते हैं। पूर्वी तटीय मैदान भारत के पूर्वी क्षेत्र बंगाल से तमिलनाडु तक फैला हुआ है तो पश्चिमी तटीय मैदान भारत के पश्चिमी क्षेत्र में गुजरात से केरल तक फैले हुए हैं। पूर्वी तटीय मैदान और पश्चिमी तटीय मैदान में मुख्य अंतर इस प्रकार हैं…

बिंदुपूर्वी तटीय मैदानपश्चिमी तटीय मैदान
विस्तारपूर्वी तटीय मैदान पश्चिम बंगाल से शुरू होकर दक्षिण में तमिलनाडु तक फैला हुआ है।पश्चिमी तटीय मैदान गुजरात के कच्छ से लेकर दक्षिण में केरल तक फैला है।
भागये मैदान दो भागों में बंटा हुआ है – उत्तरी और दक्षिणी।
उत्तरी भाग को उत्कल तटीय मैदान कहा जाता है।
दक्षिणी भाग कोरोमंडल तट के नाम से जाना जाता है। ये भाग तमिलनाडु से उड़ीसा और आंध्र प्रदेश होता हुआ पश्चिमी बंगाल तक फैला हुआ है।
पश्चिमी तटीय मैदान तीन भागों में बंटा हुआ है। उत्तरी भाग कोंकण तट (महाराष्ट्र), केंद्रीय भाग अरावली तट (कर्नाटक) और दक्षिणी भाग मलाबार तट (केरल)
दोनों भागों के बीच कृष्णा और गोदावरी नदियों का डेल्टा है।
दक्षिण में कन्याकुमारी से चेन्नई तक का भाग कोरोमंडल तट कहलाता है।
चौड़ाईऔसतन 100-120 किमी चौड़ा है।औसतन 50 किमी चौड़ा है।
डेल्टाबड़ी नदियों द्वारा विशाल डेल्टा का निर्माण होता है।छोटी नदियों द्वारा छोटे डेल्टा का निर्माण होता है।
मिट्टी की उर्वरताअत्यधिक उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है।अपेक्षाकृत कम उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है।
आकारचौड़ा है।बहुत संकीर्ण है।
भूमि स्वरूपएक समान, समतल मैदान है।कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटा हुआ है।
राज्य/क्षेत्रपश्चिम बंगाल और तमिलनाडु।गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और केरल।
नदियाँबड़ी पूर्ववाहिनी नदियाँ बहती हैं।
प्रमुख नदियाँ हैं: महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी।
ये नदियाँ पूर्वी घाट से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।
ये नदियां विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं।
छोटी पश्चिमवाहिनी नदियाँ बहती हैं।
मुख्य नदियाँ हैं: नर्मदा, ताप्ती, जूआरी और मंडोवी।
ये नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर अरब सागर में गिरती हैं।

 


Related questions

पूर्वी तटीय मैदान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

सदाबहार वर्षावन ‘जीवोम’ की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। ​

पूर्वी तटीय मैदान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

0

पूर्वी तटीय मैदान की सभी प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं…

1. विस्तार

पूर्वी तटीय मैदान बंगाल की खाड़ी के साथ-साथ फैला हुआ है। यह उत्तर में गंगा के डेल्टा से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक लगभग 2,000 किलोमीटर की दूरी तक फैला है। इसमें पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पुडुचेरी के तटीय क्षेत्र शामिल हैं।

2. चौड़ाई

मैदान की चौड़ाई उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हुए बदलती है। उत्तर में, विशेष रूप से गंगा के डेल्टा क्षेत्र में, यह 100 किलोमीटर से अधिक चौड़ा है। मध्य भाग में, जैसे ओडिशा और आंध्र प्रदेश में, इसकी चौड़ाई लगभग 100-130 किलोमीटर है। दक्षिण में, तमिलनाडु के पास, यह संकरा हो जाता है और कहीं-कहीं केवल 20-30 किलोमीटर चौड़ा रह जाता है।

3. नदियाँ

कई बड़ी नदियाँ इस मैदान से होकर बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं। प्रमुख नदियाँ हैं: महानदी, गोदावरी, कृष्णा, और कावेरी। अन्य महत्वपूर्ण नदियाँ हैं: सुबरनरेखा, ब्राह्मणी, पेन्नार, पालार, और वैगई। ये नदियाँ पूर्वी घाट से निकलकर मैदान को पार करती हैं।

4. डेल्टा

बड़ी नदियों द्वारा विशाल डेल्टाओं का निर्माण किया गया है। प्रमुख डेल्टा हैं: महानदी डेल्टा, गोदावरी डेल्टा, कृष्णा डेल्टा, और कावेरी डेल्टा। ये डेल्टा अत्यंत उपजाऊ हैं और गहन कृषि के लिए उपयुक्त हैं। धान, गन्ना, और नारियल जैसी फसलें यहाँ प्रचुर मात्रा में उगाई जाती हैं।

5. लैगून

तट के साथ कई लैगून झीलें पाई जाती हैं। सबसे प्रसिद्ध हैं चिल्का झील (ओडिशा) और पुलिकट झील (आंध्र प्रदेश-तमिलनाडु सीमा पर)। ये लैगून मछली पालन, पर्यटन और स्थानीय पारिस्थितिकी के लिए महत्वपूर्ण हैं। कई प्रवासी पक्षियों के लिए ये महत्वपूर्ण आवास हैं।

6. जलवायु

पूर्वी तटीय मैदान में उष्ण और आर्द्र जलवायु पाई जाती है। यह क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्व दोनों मानसून से प्रभावित होता है। औसत वार्षिक वर्षा 1000-1500 मिमी के बीच होती है। गर्मियों में तापमान 35-40°C तक पहुंच सकता है, जबकि सर्दियों में यह 20-25°C के आसपास रहता है।

7. वनस्पति

यहाँ मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय सदाबहार और पर्णपाती वन पाए जाते हैं। तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव वन भी पाए जाते हैं, विशेष रूप से सुंदरबन में। प्रमुख वृक्ष प्रजातियों में शामिल हैं: साल, टीक, महुआ, और बांस। तटीय क्षेत्रों में नारियल के बाग भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

8. आर्थिक महत्व

कृषि : उपजाऊ मिट्टी और पर्याप्त जल संसाधनों के कारण यह क्षेत्र गहन कृषि के लिए उपयुक्त है।
मत्स्य पालन : लंबी तटरेखा और नदी डेल्टा मछली पकड़ने के लिए आदर्श हैं।
बंदरगाह : कोलकाता, विशाखापत्तनम, चेन्नई जैसे प्रमुख बंदरगाह यहाँ स्थित हैं जो व्यापार और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देते हैं।
खनिज संसाधन : इस क्षेत्र में कोयला, लौह अयस्क, और अन्य खनिजों के भंडार हैं।
पर्यटन : सुंदर समुद्र तट, ऐतिहासिक मंदिर, और प्राकृतिक स्थल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।


Other questions

सदाबहार वर्षावन ‘जीवोम’ की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। ​

प्राकृतिक संसाधन क्या हैं? प्राकृतिक संसाधनों की विशेषताएँ लिखिए।

निम्नलिखित में से कौन सा राजनीति शास्त्री राजनीतिक विकास की अवधारणा से संबंधित है? 1. एल्वमैन 2. रुडोल्फ 3. लॉसवेल 4. गोल्ड हैमर

इस प्रश्न का सही उत्तर है…

(1) एल्वमैन

══════════

व्याख्या

राजनीतिक विकास की अवधारणा से राजनीति शास्त्री ‘एल्वमैन’ संबंधित हैं। उन्होंने राजनीतिक विकास के सिद्धांतों और प्रक्रियाओं पर महत्वपूर्ण कार्य किया है एल्वमैन ने विकासशील देशों में राजनीतिक परिवर्तन और आधुनिकीकरण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।

रुडोल्फ प्रशासनिक चिंतन से संबंधित हैं। उन्होंने सार्वजनिक प्रशासन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
लॉसवेल राजनीतिक शक्ति की संकल्पना से जुड़े हैं। उनका काम राजनीतिक शक्ति के वितरण और उपयोग पर केंद्रित है।
गोल्ड हैमर  मुख्यतः अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध हैं, न कि राजनीतिक विकास के सिद्धांतकार के रूप में।

यह सुधार राजनीति विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विद्वानों के योगदान को सही ढंग से पहचानने में मदद करता है। यह हमें याद दिलाता है कि राजनीति विज्ञान एक व्यापक क्षेत्र है जिसमें विभिन्न विशेषज्ञ अलग-अलग पहलुओं पर काम करते हैं।


Related questions

पॉलिटिक्स शब्द की उत्पत्ति पोलिस (Polis) से हुई है, जो एक…? 1. फ्रांसीसी शब्द है 2. यूनानी शब्द है 3. लातिनी शब्द है 4. जर्मन शब्द है

यूनानी नगर राज्य का आधुनिक नाम क्या है? 1. नगर 2. सरकार 3. कस्बा 4. राज्य

पॉलिटिक्स (Politics) शब्द की उत्पत्ति पोलिस (Polis) से हुई है, जो एक…? 1. फ्रांसीसी शब्द है 2. यूनानी शब्द है 3. लातिनी शब्द है 4. जर्मन शब्द है

इस प्रश्न का सही उत्तर होगा…

2. यूनानी शब्द है

════════════════

व्याख्या

अंग्रेजी के ‘पॉलिटिक्स’ (Politics) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के ‘पोलिस’ (Polis) शब्द से हुई है। पोलिस (Polis) शब्द एक ग्रीक भाषा का शब्द है, जो प्राचीन यूनानी सभ्यता में नगर-राज्य के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता था।

प्राचीन यूनानी नगर-राज्य को ‘पोलिस’ (Polis) कहा जाता था। इसी से ‘पॉलिटिक्स’ शब्द की उत्पत्ति हुई। ‘पॉलिटिक्स’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अरस्तू ने किया था।  यह एक महत्वपूर्ण भाषाई और ऐतिहासिक संबंध है जो राजनीति विज्ञान की जड़ों को प्राचीन यूनान से जोड़ता है।
निम्नलिखित बिंदुओं से समझते हैं…

  • पोलिस का अर्थ : प्राचीन यूनान में ‘पोलिस’ का अर्थ नगर-राज्य था। यह एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई थी जो अपने नागरिकों के जीवन के सभी पहलुओं को नियंत्रित करती थी।
  • राजनीतिक जीवन का केंद्र : पोलिस राजनीतिक गतिविधियों, नागरिक भागीदारी और सार्वजनिक जीवन का केंद्र था।
  • भाषाई विकास : ‘पोलिस’ से ‘पॉलिटिकोस’ (Politikos) शब्द बना, जिसका अर्थ है ‘नागरिकों या राज्य से संबंधित’। यह आगे चलकर लैटिन में ‘पॉलिटिकस’ (Politicus) और अंग्रेजी में ‘पॉलिटिक्स’ (politics) बन गया।
  • अवधारणात्मक संबंध : यह शब्द न केवल भाषाई रूप से बल्कि अवधारणात्मक रूप से भी राजनीति को नगर-राज्य और नागरिक जीवन से जोड़ता है।
  • यूनानी दर्शन का प्रभाव : प्लेटो और अरस्तू जैसे यूनानी दार्शनिकों ने पोलिस के संदर्भ में राजनीति पर विस्तार से लिखा, जो आधुनिक राजनीति विज्ञान की नींव बना।
  • सांस्कृतिक महत्व : यह शब्द यूनानी सभ्यता के राजनीतिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है, जो पश्चिमी राजनीतिक चिंतन का आधार है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि ‘पोलिस’ से ‘पॉलिटिक्स’ तक की यात्रा न केवल एक शब्द के विकास की कहानी है, बल्कि यह राजनीतिक विचारों और संस्थाओं के विकास की भी कहानी है। यह हमें याद दिलाता है कि आधुनिक राजनीतिक अवधारणाएँ गहरे ऐतिहासिक जड़ों से जुड़ी हुई हैं।


Related questions

यूनानी नगर राज्य का आधुनिक नाम क्या है? 1. नगर 2. सरकार 3. कस्बा 4. राज्य

निम्नलिखित में किसको ग्रीक नगर-राज्यों का नागरिक माना जाता है? 1. मजिस्ट्रेट 2. गुलाम 3. स्वतंत्र व्यक्तियों के स्वामी 4. राजनैतिक विचारक

यूनानी नगर-राज्य का आधुनिक नाम क्या है? 1. नगर 2. सरकार 3. कस्बा 4. राज्य

इस प्रश्न का सही उत्तर होगा…

4. राज्य

══════════════

व्याख्या
‘यूनानी नगर-राज्य’ का आधुनिक नाम ‘राज्य’ (The State) है। प्राचीन समय में यूनानी विचारकों ने नगर राज्य के लिए ‘राज्य’ (The State) शब्द का प्रयोग किया था। यूनानी भाषा में नगर-राज्य यानी राज्य को पोलिस (Polis) कहा जाता है। आज के संदर्भ में राज्य का प्रयोग सबसे पहले इटली के राजनीतिक विचारक ‘मैकियावली’ ने 16वीं शताब्दी में किया था। उन्होंने इस शब्द का प्रयोग अपनी पुस्तक ‘द प्रिंस’ में किया था। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद The State के नाम से छपा था। इसीलिए यूनानी नगर-राज्य का आधुनिक नाम राज्य माना गया।

यूनानी नगर राज्य या ‘पोलिस’ का आधुनिक समकक्ष वास्तव में राज्य है।

यह निम्नलिखित कारणों से उचित है..

  • संप्रभु इकाई : प्राचीन यूनानी पोलिस एक स्वतंत्र और संप्रभु इकाई थी, जैसे आज के राज्य होते हैं।
  • क्षेत्रीय नियंत्रण : पोलिस एक निश्चित भू-भाग पर नियंत्रण रखता था, जो आधुनिक राज्य की एक प्रमुख विशेषता है।
  • शासन प्रणाली : पोलिस में अपनी शासन प्रणाली थी, जो आधुनिक राज्यों की तरह कानून बनाने और लागू करने का अधिकार रखती थी।
  • नागरिकता की अवधारणा: पोलिस में नागरिकता की एक स्पष्ट अवधारणा थी, जो आधुनिक राज्यों में भी मौजूद है।
  • सार्वजनिक और निजी जीवन का केंद्र: पोलिस नागरिकों के सार्वजनिक और निजी जीवन का केंद्र था, जैसे आज राज्य अपने नागरिकों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • आर्थिक इकाई : पोलिस एक आर्थिक इकाई के रूप में कार्य करता था, जैसे आधुनिक राज्य करते हैं।

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि हालांकि पोलिस आकार में आधुनिक राज्यों से छोटे थे, लेकिन उनके कार्य और महत्व आधुनिक राज्यों के समान थे। वे अपने समय के लिए पूर्ण राजनीतिक इकाइयां थीं, जैसे आज के राज्य हैं।


Related questions

किसे उन्नीसवीं सदी का संक्रमणकालीन विचारक माना जाता है? (1) बॅथम (2) मिल (3) ग्रीन (4) स्पेन्सर

अपने अंतिम चरण में मार्क्सवाद किस सिद्धान्त से मिल जाता है? (1) व्यक्तिवाद (2) समाजवाद (3) अराजकतावाद (4) साम्यवाद

निम्नलिखित में किसको ग्रीक नगर-राज्यों का नागरिक माना जाता है? 1. मजिस्ट्रेट 2. गुलाम 3. स्वतंत्र व्यक्तियों के स्वामी 4. राजनैतिक विचारक

इस प्रश्न का सही उत्तर होगा…

(3) स्वतंत्र व्यक्तियों के स्वामी

══════════════════════════

व्याख्या

स्वतंत्र व्यक्तियों के स्वामी को ग्रीक नगर राज्यों का नागरिक माना जाता है।
प्राचीन ग्रीक नगर-राज्यों में नागरिकता की अवधारणा आधुनिक समय से काफी भिन्न थी। ग्रीक नगर-राज्यों में नागरिक वे लोग माने जाते थे जो स्वतंत्र व्यक्तियों के स्वामी थे। इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं,

  • स्वतंत्र पुरुष : नागरिकता केवल स्वतंत्र पुरुषों तक ही सीमित थी। महिलाओं, बच्चों और गुलामों को नागरिक नहीं माना जाता था।
  • जन्म से प्राप्त अधिकार : आमतौर पर नागरिकता जन्म से प्राप्त होती थी। नागरिक माता-पिता से जन्मे पुरुष बच्चे ही नागरिक बनते थे।
  • संपत्ति का स्वामित्व : नागरिकों के पास अपनी संपत्ति होती थी और वे दूसरों (गुलामों) के स्वामी होते थे।
  • राजनीतिक अधिकार : नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेने का अधिकार था, जैसे मतदान करना और सार्वजनिक कार्यालयों में सेवा करना।
  • सैन्य सेवा : नागरिकों से अपेक्षा की जाती थी कि वे नगर-राज्य की रक्षा के लिए सैन्य सेवा प्रदान करें।
  • धार्मिक कर्तव्य : नागरिकों का नगर-राज्य के धार्मिक उत्सवों और समारोहों में भाग लेना अनिवार्य था।

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि:

  • मजिस्ट्रेट नागरिकों द्वारा चुने जाते थे, लेकिन सभी नागरिक मजिस्ट्रेट नहीं होते थे।
  • गुलाम नागरिक नहीं माने जाते थे।
  • राजनैतिक विचारक नागरिक हो सकते थे, लेकिन सभी नागरिक राजनैतिक विचारक नहीं होते थे।
  • इस प्रकार, स्वतंत्र व्यक्तियों के स्वामी होना ग्रीक नगर-राज्यों में नागरिकता का सबसे व्यापक और सटीक वर्णन है।

Related questions

‘विधि संहिता’ के रूप में मनुस्मृति का अंग्रेजी अनुवाद किया है? (1) विलियम जोन्स (2) मैक्समूलर (3) यू.एन. घोषाल (4) ए. अप्पादोराई

मनुस्मृति के ‘मंडल सिद्धांत’ में पाणिग्राह का अर्थ- पीछे का शत्रु है। वहीं ‘आक्रान्दासार’ का अर्थ है? (1) आगे का शत्रु (2) आगे से आक्रमण करने वाला (3) (1) एवं (2) दोनों (4) उपरोक्त में से कोई नहीं

‘विधि संहिता’ के रूप में मनुस्मृति का अंग्रेजी अनुवाद किया है? (1) विलियम जोन्स (2) मैक्समूलर (3) यू.एन. घोषाल (4) ए. अप्पादोराई

सही उत्तर है…

(1) विलियम जोन्स

══════════════════

व्याख्या

सर विलियम जोन्स (1746-1794) एक प्रसिद्ध ब्रिटिश ओरिएंटलिस्ट, भाषाविद् और न्यायाधीश थे। उन्होंने मनुस्मृति का अंग्रेजी में अनुवाद किया था, जिसे उन्होंने “Institutes of Hindu Law” या “The Ordinances of Manu” शीर्षक से प्रकाशित किया। यह अनुवाद 1794 में प्रकाशित हुआ था।

विलियम जोन्स का यह कार्य बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि यह पहली बार था जब मनुस्मृति जैसे महत्वपूर्ण हिंदू धर्मग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था। इससे पश्चिमी विद्वानों को हिंदू कानून और समाज व्यवस्था को समझने में मदद मिली।

यह ध्यान देने योग्य है कि जबकि अन्य विद्वानों ने भी मनुस्मृति पर काम किया है, जैसे मैक्समूलर ने संस्कृत साहित्य पर व्यापक काम किया, लेकिन मनुस्मृति का ‘विधि संहिता’ के रूप में अंग्रेजी अनुवाद का श्रेय विलियम जोन्स को जाता है।


Related questions

मनुस्मृति के ‘मंडल सिद्धांत’ में पाणिग्राह का अर्थ- पीछे का शत्रु है। वहीं ‘आक्रान्दासार’ का अर्थ है? (1) आगे का शत्रु (2) आगे से आक्रमण करने वाला (3) (1) एवं (2) दोनों (4) उपरोक्त में से कोई नहीं

अर्थशास्त्र में निसृष्टार्थ, परिमितार्थ और शासनाहार गुण हैं? (1) अमात्यों के (2) राजदूतों के (3) गुप्तचरों के (4) स्वामी के

मनुस्मृति के ‘मंडल सिद्धांत’ में पाणिग्राह का अर्थ- पीछे का शत्रु है। वहीं ‘आक्रान्दासार’ का अर्थ है? (1) आगे का शत्रु (2) आगे से आक्रमण करने वाला (3) (1) एवं (2) दोनों (4) उपरोक्त में से कोई नहीं

इस प्रश्न का सही उत्तर है…

(3) (1) एवं (2) दोनों

══════════════════

व्याख्या

मनुस्मृति में वर्णित ‘मंडल सिद्धांत’ प्राचीन भारतीय राजनीतिक और कूटनीतिक चिंतन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सिद्धांत राज्यों के बीच संबंधों और रणनीतिक स्थितियों को समझने का एक तरीका प्रदान करता है। इस सिद्धांत में विभिन्न प्रकार के राज्यों और उनके संभावित व्यवहारों का वर्णन किया गया है।

‘आक्रान्दासार’ शब्द इस सिद्धांत में एक विशिष्ट प्रकार के शत्रु को संदर्भित करता है। इसका अर्थ है:

1. आगे का शत्रु : यह एक ऐसा राज्य है जो भौगोलिक रूप से सीधे सामने स्थित है और संभावित खतरा पेश करता है।

2. आगे से आक्रमण करने वाला : यह शब्द उस शत्रु की प्रकृति को भी दर्शाता है जो सीधे सामने से आक्रमण करने की क्षमता रखता है।

इस प्रकार, ‘आक्रान्दासार’ दोनों अर्थों को समाहित करता है – यह न केवल आगे स्थित शत्रु है, बल्कि वह शत्रु जो सीधे आक्रमण कर सकता है।

यह अवधारणा राजनीतिक रणनीति के संदर्भ में महत्वपूर्ण है क्योंकि:
○ यह राज्य को अपने सामने के खतरों के प्रति सतर्क रहने की याद दिलाती है।
○ यह रक्षात्मक और आक्रामक रणनीतियों की योजना बनाने में मदद करती है।
○ यह कूटनीतिक संबंधों और गठबंधनों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

‘मंडल सिद्धांत’ का यह पहलू दर्शाता है कि प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में राज्यों के बीच संबंधों और संभावित खतरों का गहन विश्लेषण किया जाता था, जो आधुनिक अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों के समान है।


Other questions

निम्नलिखित में से कौन सा एक कौटिल्य की ‘षाड्गुण्य नीति’ का अंग नहीं है? (1) विग्रह (2) मैत्री (3) संश्रय (4) द्वैधीभाव

अर्थशास्त्र में निसृष्टार्थ, परिमितार्थ और शासनाहार गुण हैं? (1) अमात्यों के (2) राजदूतों के (3) गुप्तचरों के (4) स्वामी के

‘राजनीति विज्ञान सामाजिक विज्ञान का वह अंग है, जो राज्य के आधारभूत तत्वों तथा शासन के सिद्धांतों का विवेचन करता है।’ यह परिभाषा किसने दी? 1. गॉर्नर 2. लॉस्की 3. गिलक्रिस्ट 4. पॉल जैनेट

इस प्रश्न का सही उत्तर है…

(4) पॉल जैनेट

═══════════════════

व्याख्या

फ्रांसीसी लेखक पॉल जेनेट के मुताबिक अनुसार राजनीति विज्ञान सामाजिक विज्ञान कब है अंग है जो राज्य के आधारभूत तत्व तथा शासन के सिद्धांतों का विवेचन करता है।

पॉल जैनेट (Paul Janet), एक फ्रांसीसी दार्शनिक और राजनीतिक विचारक, ने राजनीति विज्ञान की यह महत्वपूर्ण परिभाषा दी थी कि “राजनीति विज्ञान सामाजिक विज्ञान का वह अंग है, जो राज्य के आधारभूत तत्वों तथा शासन के सिद्धांतों का विवेचन करता है।”

इस परिभाषा के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं…

  • सामाजिक विज्ञान का अंग : जैनेट राजनीति विज्ञान को सामाजिक विज्ञानों का एक अभिन्न हिस्सा मानते हैं।
  • राज्य के आधारभूत तत्व : यह परिभाषा राज्य के मूलभूत घटकों के अध्ययन पर जोर देती है।
  • शासन के सिद्धांत : इसमें शासन प्रणालियों और उनके सिद्धांतों के अध्ययन को शामिल किया गया है।
  • विवेचनात्मक दृष्टिकोण : जैनेट का मानना है कि राजनीति विज्ञान केवल वर्णनात्मक नहीं, बल्कि विश्लेषणात्मक भी है।

यह परिभाषा राजनीति विज्ञान के क्लासिकल दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती है, जो राज्य और शासन के अध्ययन पर केंद्रित है।


Related questions

किसे सभी सामाजिक संस्थाओं में सबसे शक्तिशाली माना जाता है? 1. राज्य 2. राष्ट्र 3. समाज 4. न्यायतंत्र

नागरिकता की अवधारणा में किसने गुलाम को बाहर रखा? 1. प्लेटो 2. अरस्तु 3. हॉब्स 4. ऑस्टिन

किसे सभी सामाजिक संस्थाओं में सबसे शक्तिशाली माना जाता है? 1. राज्य 2. राष्ट्र 3. समाज 4. न्यायतंत्र

इस प्रश्न का सही उत्तर होगा..

1. राज्य

═══════════════

व्याख्या

राज्य को सभी सामाजिक संस्थाओं में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। राज्य, राष्ट्र, समाज और न्यायतंत्र जैसी अन्य सामाजिक संस्थाओं से अधिक शक्तिशाली होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि राज्य, राष्ट्र, समाज और न्यायतंत्र जैसी सामाजिक संस्थाओं का गठन स्वेच्छा अथवा राजा के नियमों पर आधारित होता है, किंतु राज्य एक ऐसी संस्था है जिसकी सदस्यता अनिवार्य होती है और राज्य के नियमों का पालन करना बाध्यकारी भी होता है।
राज्य को सभी सामाजिक संस्थाओं में सबसे शक्तिशाली माना जाता है।

इसके पीछे कई कारण हैं

  • वैध बल का एकाधिकार : राज्य के पास अपने क्षेत्र में वैध बल का उपयोग करने का एकमात्र अधिकार होता है। यह कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस और सेना जैसे संगठनों का उपयोग कर सकता है।
  • कानून बनाने की शक्ति : राज्य कानून बनाने, लागू करने और उनकी व्याख्या करने का अधिकार रखता है। यह शक्ति समाज के सभी पहलुओं को नियंत्रित और निर्देशित करने की क्षमता प्रदान करती है।
  • संसाधनों पर नियंत्रण : राज्य के पास कर लगाने और संसाधनों के वितरण का अधिकार होता है, जो इसे आर्थिक शक्ति प्रदान करता है।
  • नीति निर्माण: राज्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीतियां बनाता है, जो समाज के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं।
  • सार्वभौमिकता: राज्य की सत्ता उसके क्षेत्र में रहने वाले सभी व्यक्तियों और संस्थाओं पर लागू होती है।
  • अंतरराष्ट्रीय मान्यता : अंतरराष्ट्रीय कानून में, राज्य को एक संप्रभु इकाई के रूप में मान्यता दी जाती है।
  • सामाजिक नियंत्रण : राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में नियंत्रण रखता है, जो समाज के विकास और कल्याण को प्रभावित करते हैं।

हालांकि राष्ट्र, समाज और न्यायतंत्र भी महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएँ हैं, लेकिन राज्य की व्यापक शक्तियाँ और प्रभाव इसे सबसे शक्तिशाली बनाते हैं। राज्य की यह शक्ति अन्य संस्थाओं के साथ संतुलन में रहती है, जो एक स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए आवश्यक है।


Related questions

नागरिकता की अवधारणा में किसने गुलाम को बाहर रखा? 1. प्लेटो 2. अरस्तु 3. हॉब्स 4. ऑस्टिन

न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था नहीं है? (a) यूएसए में (b) भारत में (c) इंग्लैंड में (d) फ्रांस में

नागरिकता की अवधारणा में किसने गुलाम को बाहर रखा? 1. प्लेटो 2. अरस्तु 3. हॉब्स 4. ऑस्टिन

इस प्रश्न का सही उत्तर है….

(2) अरस्तु

═════════════

व्याख्या

नागरिकता की अवधारणा में अरस्तु ने गुलाम को बाहर रखा था अरस्तु के अनुसार नागरिकता संबंधी अवधारणा में गुलामी का कोई स्थान नहीं है अरस्तु गुलाम को राज्य का नागरिक नहीं मानता था

अरस्तु (384-322 ईसा पूर्व), प्राचीन यूनानी दार्शनिक और राजनीतिक चिंतक, ने नागरिकता की अवधारणा में गुलामों को बाहर रखा। यह उनके राजनीतिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण पहलू था, जो उस समय के यूनानी समाज की संरचना को प्रतिबिंबित करता था।

अरस्तु के विचार में…
  • नागरिकता का अर्थ : उन्होंने नागरिक को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जो राज्य के शासन में भाग लेने का अधिकार रखता है।
  • गुलामों की स्थिति : अरस्तु ने गुलामों को ‘जीवित उपकरण’ माना और उन्हें नागरिकता के अधिकार से वंचित रखा।
  • समाज का वर्गीकरण : अरस्तू ने समाज को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा – स्वतंत्र नागरिक और गुलाम।
  • प्राकृतिक दासता का सिद्धांत : अरस्तु ने तर्क दिया कि कुछ लोग स्वभाव से ही गुलाम होते हैं और उनका शासित होना उचित है।
  • राजनीतिक भागीदारी : अरस्तू के अनुसार, केवल स्वतंत्र पुरुष ही राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के योग्य थे।

यह दृष्टिकोण आज के मानवाधिकारों और समानता के सिद्धांतों के विपरीत है, लेकिन यह प्राचीन यूनानी समाज की वास्तविकता को दर्शाता था। अरस्तु के इस विचार ने पश्चिमी राजनीतिक चिंतन को लंबे समय तक प्रभावित किया, हालांकि आधुनिक समय में इसे व्यापक रूप से अस्वीकार कर दिया गया है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि अरस्तु के विचार उनके समय के सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में थे, और आज के नैतिक मानकों से इनका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।


Related questions

न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था नहीं है? (a) यूएसए में (b) भारत में (c) इंग्लैंड में (d) फ्रांस में

अर्थशास्त्र में निसृष्टार्थ, परिमितार्थ और शासनाहार गुण हैं? (1) अमात्यों के (2) राजदूतों के (3) गुप्तचरों के (4) स्वामी के

न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था नहीं है? (a) यूएसए में (b) भारत में (c) इंग्लैंड में (d) फ्रांस में

इस प्रश्न का सही उत्तर है…

(c) इंग्लैंड में

══════════════

व्याख्या

न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था ‘इंग्लैंड’ में नही है। न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ होता है कि विधायिका जो भी कानून पारित करती है अथवा विधायिका द्वारा जो भी निर्णय ले जाते हैं, उन सभी कानून और निर्णयों की समीक्षा करने की शक्ति न्यायपालिका को प्राप्त है। इंग्लैंड में न्यायिक पुनरावलोकन की यह व्यवस्था नहीं है।

इंग्लैंड में न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था अन्य देशों की तुलना में अलग है। यहाँ परंपरागत रूप से न्यायिक पुनरावलोकन का अभाव रहा है, जो इसके संवैधानिक इतिहास और संसदीय संप्रभुता के सिद्धांत से जुड़ा हुआ है।

इंग्लैंड में:
  • संसदीय संप्रभुता : इंग्लैंड में संसद को सर्वोच्च माना जाता है। यह सिद्धांत कहता है कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को न्यायालय द्वारा अवैध घोषित नहीं किया जा सकता।
  • अलिखित संविधान : इंग्लैंड का कोई लिखित संविधान नहीं है, जिसके आधार पर न्यायालय कानूनों की वैधता की जांच कर सके।
  • न्यायिक समीक्षा का सीमित दायरा : हालांकि न्यायालय प्रशासनिक कार्यों की समीक्षा कर सकते हैं, लेकिन वे संसद द्वारा पारित कानूनों को चुनौती नहीं दे सकते।
  • मानवाधिकार अधिनियम 1998 : इस अधिनियम ने कुछ हद तक न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्रदान की है, लेकिन यह अमेरिका या भारत जैसे देशों की तुलना में बहुत सीमित है।

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि हाल के वर्षों में इंग्लैंड में भी न्यायिक पुनरावलोकन की दिशा में कुछ बदलाव आए हैं, लेकिन यह अभी भी अन्य देशों की तुलना में बहुत सीमित है। इसके विपरीत, अमेरिका, भारत और फ्रांस में न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था मौजूद है, जहाँ न्यायालय कानूनों और सरकारी कार्यों की संवैधानिकता की जांच कर सकते हैं।


Other questions

अर्थशास्त्र में निसृष्टार्थ, परिमितार्थ और शासनाहार गुण हैं? (1) अमात्यों के (2) राजदूतों के (3) गुप्तचरों के (4) स्वामी के

‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम हित’ की धारणा किसने प्रतिपादित किया? (1) आदर्शवादियों ने (2) साम्यवादियों ने (3) उपयोगितावादियों ने (4) व्यक्तिवादियों ने

अर्थशास्त्र में निसृष्टार्थ, परिमितार्थ और शासनाहार गुण हैं? (1) अमात्यों के (2) राजदूतों के (3) गुप्तचरों के (4) स्वामी के

सही उत्तर है…

(2) राजदूतों के

══════════════

व्याख्या

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में निसृष्टार्थ, परिमितार्थ और शासनाहार ये तीन गुण राजदूतों के लिए वर्णित किए गए हैं। ये गुण राजनयिक कार्यों को सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए आवश्यक माने जाते हैं। आइए इन तीनों गुणों को समझें…

1. निसृष्टार्थ :  राजदूतों के इस गुण वाली श्रेणी में राजदूत को सर्वोच्च अधिकार प्राप्त थे। वह राजा का प्रतिनिधि बनकर जाता था और वार्ता के आधार पर वहीं पर किसी निर्णय की घोषणा भी कर सकता था। यह गुण राजदूत की वह क्षमता होती थी, जिसके द्वारा वह अपने राजा के संदेश को दूसरे राजा के समक्ष सटीक और प्रभावी ढंग से प्रेषित करता था और किसी भी वाद-विवाद की स्थिति में वहीं पर निर्णय भी ले सकता था। राजा की तरफ से उसे पूर्णाधिकार प्राप्त थे।

2. परिमितार्थ : इस गुण वाले राजदूतों को निसृष्टार्थ राजदूतों की तुलना में कम और सीमित अधिकार प्राप्त थे। वह अपने शब्दों और कार्यों में संयम रखकर अपने राजा का संदेश दूसरे राजा तक पहुँचाता था। वह केवल उतना ही बोलता था, जितना आवश्यक होता और अपने राजा के हितों की रक्षा करते हुए भी दूसरे राज्य के साथ संबंधों की मर्यादा का भी ध्यान रखता था।

3. शासनाहार : इस गुण वाले राजदूत केवल संदेशवाहक का कार्य करते थे। उनका कार्य अपने राजा के संदेश को दूसरे राजा तक पहुँचाना ही होता था। वह अपनी सीमा से बाहर किसी निर्णन को लेने का अधिकारी नहीं था।

कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र ग्रंथ में इन गुणों को राजदूतों के लिए विशेष रूप से उल्लिखित किया है क्योंकि राजदूत राज्यों के बीच संबंधों के मुख्य माध्यम होते थे और उनकी भूमिका राज्य की सुरक्षा और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती थी।


Related questions

निम्नलिखित में से कौन सा एक कौटिल्य की ‘षाड्गुण्य नीति’ का अंग नहीं है? (1) विग्रह (2) मैत्री (3) संश्रय (4) द्वैधीभाव

किसे उन्नीसवीं सदी का संक्रमणकालीन विचारक माना जाता है? (1) बॅथम (2) मिल (3) ग्रीन (4) स्पेन्सर

निम्नलिखित में से कौन सा एक कौटिल्य की ‘षाड्गुण्य नीति’ का अंग नहीं है? (1) विग्रह (2) मैत्री (3) संश्रय (4) द्वैधीभाव

सही उत्तर…

(2) मैत्री

═══════════════

व्याख्या

‘मैत्री’ कौटिल्य की ‘षाड्गुण्य नीति’ का अंग नहीं है।

कौटिल्य की षाड्गुण्य नीति राजनीतिक रणनीति के छह गुणों या सिद्धांतों को संदर्भित करती है, जो उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में वर्णित हैं। आपके द्वारा प्रदान किए गए श्लोक इस नीति की पुष्टि करते हैं। षाड्गुण्य नीति के छह अंग हैं:

1. संधि (शांति या समझौता)
2. विग्रह (युद्ध)
3. आसन (तटस्थता)
4. यान (आक्रमण की तैयारी)
5. संश्रय (शक्तिशाली राजा की शरण लेना)
6. द्वैधीभाव (दोहरी नीति)

मैत्री (मित्रता) इस सूची में शामिल नहीं है, इसलिए यह षाड्गुण्य नीति का अंग नहीं है। हालांकि मैत्री एक महत्वपूर्ण राजनीतिक अवधारणा है, यह कौटिल्य की इस विशिष्ट नीति का हिस्सा नहीं है।

कौटिल्य की यह नीति प्राचीन भारतीय राजनीतिक और कूटनीतिक चिंतन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह नीति राजाओं को विभिन्न परिस्थितियों में उचित कार्रवाई करने का मार्गदर्शन प्रदान करती है, जिसमें शांति से लेकर युद्ध तक की स्थितियां शामिल हैं।

मैं फिर से अपने पूर्व गलत उत्तर के लिए खेद व्यक्त करता हूं और आपको इस महत्वपूर्ण सुधार के लिए धन्यवाद देता हूं।

कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में षाड्गुण्य का वर्नन इस प्रकार से किया गया है-

षाड्गुण्यस्य प्रकृति-मण्डलं योनिः ।। ०७.१.०१ ।।
संधि-विग्रह-आसन-यान-संश्रय-द्वैधीभावाः षाड्गुण्यम्” इत्याचार्याः ।। ०७.१.०२ ।।
द्वैगुण्यम्” इति वात-व्याधिः ।। ०७.१.०३ ।।
संधि-विग्रहाभ्यां हि षाड्गुण्यं सम्पद्यते” इति ।। ०७.१.०४ ।।
षाड्गुण्यं एवएतदवस्था-भेदादिति कौटिल्यः ।। ०७.१.०५ ।।
तत्र पण-बन्धः संधिः ।। ०७.१.०६ ।।
अपकारो विग्रहः ।। ०७.१.०७ ।।
उपेक्षणं आसनं ।। ०७.१.०८ ।।
अभ्युच्चयो यानं ।। ०७.१.०९ ।।
पर-अर्पणं संश्रयः ।। ०७.१.१० ।।
संधि-विग्रह-उपादानं द्वैधीभावः ।। ०७.१.११ ।।
इति षड्गुणाः ।। ०७.१.१२ ।।

Other questions

किसे उन्नीसवीं सदी का संक्रमणकालीन विचारक माना जाता है? (1) बॅथम (2) मिल (3) ग्रीन (4) स्पेन्सर

इतिहास की आर्थिक व्याख्या से तात्पर्य यह है कि अन्ततः इतिहास और ऐतिहासिक घटनाचक्र निर्धारित होता है- (1) महान पुरुषों के व्यक्तित्व से (2) माँग और पूर्ति के नियमों से (3) वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय विकास से (4) उत्पादन की पद्धति और उत्पादन के संबंधों से

किसे उन्नीसवीं सदी का संक्रमणकालीन विचारक माना जाता है? (1) बॅथम (2) मिल (3) ग्रीन (4) स्पेन्सर

सही उत्तर है…

(4) स्पेन्सर

═════════════

व्याख्या

हर्बर्ट स्पेन्सर (1820-1903) को उन्नीसवीं सदी का एक प्रमुख संक्रमणकालीन विचारक माना जाता है। वे एक अंग्रेज दार्शनिक, समाजशास्त्री और राजनीतिक विचारक थे जिन्होंने अपने समय के बौद्धिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाला।

स्पेन्सर को संक्रमणकालीन विचारक इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनके विचार पारंपरिक और आधुनिक दृष्टिकोणों के बीच एक पुल का काम करते थे। उन्होंने विकासवाद के सिद्धांत को समाज और मानव व्यवहार पर लागू किया, जिसे ‘सामाजिक डार्विनवाद’ के नाम से जाना जाता है। यह दृष्टिकोण उस समय की वैज्ञानिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करता था।

स्पेन्सर ने व्यक्तिवाद और सरकारी हस्तक्षेप के सीमित रूप का समर्थन किया, जो उन्नीसवीं सदी के उदारवादी विचारों का प्रतिनिधित्व करता था। साथ ही, उनके विचारों ने बीसवीं सदी के कुछ सामाजिक और राजनीतिक सिद्धांतों की नींव रखी।

इस प्रकार, स्पेन्सर के विचार उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करते हैं, जो उन्हें एक प्रमुख संक्रमणकालीन विचारक बनाता है।


Related questions

‘दुन-दुन टॉक-टॉक’ नीति किसकी थी? (1) माओ जेदोंग (2) लेनिन (3) कार्ल मार्क्स (4) काटस्की

रूसो के राजनीतिक विचारों का किस महत्वपूर्ण घटना पर प्रभाव देखा जा सकता है? (1) 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति (2) 1789 की फ्रांस की क्रांति (3) 1776 की अमरीकी क्रांति (4) 1917 की रूसी क्रांति

क्या आप जानते हैं कि एक पक्षी ऐसा भी है जो कभी भी जमीन पर पैर नही रखता।

0

हम सभी जानते हैं कि पक्षी हवा में उड़ते हैं, वह जमीन पर नहीं रहते बल्कि पेड़ों पर अपना घोंसला बनाते हैं, अथवा किसी ऊंची जगह पर अपना घोंसला बनाते हैं। वह जमीन पर ज्यादा नहीं चलते हैं। लेकिन उन्हें जमीन पर थोड़े समय के लिए उतरना अवश्य पड़ता है। वह दाना चुगने के लिए जमीन पर उतरते हैं।

हम सभी लोगों ने कभी न कभी कबूतर आदि पक्षियों को दाना डाला होगा और हमने देखा होगा कि दाना जमीन पर दाना बनने पर बहुत सारे कबूतर या अन्य पक्षी आकर दाना चुगने लगते हैं। शहरों में हमने ऐसी कई जगह देखी है जो कबूतरखाने के नाम से प्रसिद्ध होती है और वहां पर कबूतर पक्षियों के लिए दाना बिखरा रहता है। इस तरह पक्षियों को कभी ना कभी जमीन पर उतना ही पड़ता है। भले ही पक्षी कितनी देर हवा में उड़े, पेड़ों की डाल पर रहें, लेकिन उन्हें जमीन पर आना ही पड़ता है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस संसार में एक पक्षी ऐसा भी है, जो कभी भी जमीन पर पैर नहीं रखता।

जी हाँ, यह बात बिल्कुल सच है। वह पक्षी कभी भी जमीन पर नहीं उतरता। हमेशा पेड़ों की डाल पर ही बैठा रहता है अथवा हवा में उड़ता रहता है। वह जमीन पर अपने पांव नही रखता है। चलिए उस पक्षी का नाम बता देतें हैं। उस पक्षी का नाम है…

हरियल पक्षी

जी हाँ, हरियल पक्षी कभी अपने पांव जमीन पर नही रखता है। यह पक्षी हमारे भारत में ही पाया जाता है और कभी भी जमीन पर नहीं यह कभी जमीन पर नहीं बैठता। यह भारत में बहुत अधिक पाया जाता है और महाराष्ट्र का राजपक्षी है। यदि किसी भी स्थिति में इस पक्षी को जमीन पर उतरना पड़ता भी है, तो यह लकड़ी का टुकड़ा लेकर जमीन पर उतरता है और उस लकड़ी के टुकड़े पर अपने पांव रखता है। यानि ये यह पक्षी किसी भी स्थिति में अपने पांव जमीन पर भी नहीं रखता।

हरियल पक्षी के बारे में जानें

  • पक्षी का वैज्ञानिक नाम ट्रेरन फीनिकोप्टेरस (Treron phoenicopterus) है।
  • ये पक्षी कबूतर की प्रजाति का पक्षी है, जो एक विशिष्ट प्रकार का कबूतर है।
  • यह पक्षी अधिकतर भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है।
  • यह पक्षी कबूतर की प्रजाति का है और हरे-पीले रंग की कबूतर होता है।
  • यह पक्षी अपने पांव जमीन पर कभी भी नहीं रखता।
  • इस पक्षी का आकार 29 सेंटीमीटर से 35 सेंटीमीटर तक होता है।
  • इस पक्षी का वजन 225 ग्राम से 260 ग्राम तक होता है।
  • यह पक्षी झुंड में ही रहना पसंद करता है, और अक्सर 10-15 पक्षियों के झुंड में रहता है।
  • जब भी यह पक्षी अपने पंखों को फैलाता है, तो उसके पंखों का फैलाव 19 से 17 से 19 सेंटीमीटर तक हो जाता है।
  • इस पक्षी का रंग हरा और पीला मिश्रित होता है।
  • इस पक्षी के पैर चमकीले पीले रंग के होते हैं।
  • इस पक्षी को जंगल में ऊंचे ऊंचे पेड़ों पर रहना पसंद है।
  • यह पक्षी अधिकतर सदाबहार जंगलों में पाया जाता है।
  • इस पक्षी को पीपल और बरगद के पेड़ पर रहना अधिक पसंद है।
  • यह पक्षी पूर्णता शाकाहारी होता है और फल ही खाता है तथा अनाज और दाने चुगता है।
  • सुबह-सुबह इन पक्षियों को पेड़ों की ऊंची डाल पर बैठे हुए देखा जा सकता है।
  • इस पक्षी का अंडा चमकीले सफेद रंग का होता है।

तो जान गए ना आपकी एक पक्षी ऐसा भी है, जो कभी भी अपना जमीन पर पैर नहीं रखता। यह प्रकार का कबूतर ही है।


Other questions

क्या आप जानते हैं? एक गाँव ऐसा भी है, जहाँ के लोग 1 हफ्ते से लेकर 1 महीने तक सोते रहते हैं।

आशय स्पष्ट कीजिए – डॉक्टर का दरवाज़ा कभी बंद नहीं रहना चाहिए और पादरी का फ़ाटक हमेशा खुला होना चाहिए।

0

इस कथन का आशय इस प्रकार होगा…

1. डॉक्टर का दरवाज़ा कभी बंद नहीं रहना चाहिए

आशय : इस वाक्यांश का तात्पर्य है कि एक चिकित्सक को हमेशा लोगों की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए। यहाँ ‘दरवाज़ा’ शब्द प्रतीकात्मक रूप में उपयोग किया गया है। इसका आशय है कि चिकित्सक यानि डॉक्टर को हर समय, दिन-रात, किसी भी आपातकालीन स्थिति में उपलब्ध होना चाहिए। डॉक्टर को बिना किसी भेदभाव के सभी मरीजों का इलाज करना चाहिए, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म, या आर्थिक पृष्ठभूमि से क्यों न हों। एक डॉक्टर को अपनी सेवाओं को सुलभ बनाना चाहिए और लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

यदि देर रात में या किसी भी अनापेक्षित समय में डॉक्टर के पास कोई मरीज अपने उपचार के लिए आता है, तो डॉक्टर के बिना देर और संकोच किए पूरी तत्परता से उस मरीज का उपचार करना चाहिए।

2. पादरी का फ़ाटक हमेशा खुला होना चाहिए

आशय : पादरी शब्द भले ही किसी विशेष धर्म से संबंधित हो लेकिन सभी धर्मों के धार्मिक नेता या आध्यात्मिक गुरु के प्रतीक के रूप में लिया गया है। ‘फ़ाटक’ शब्द यहाँ भी प्रतीकात्मक है। यहाँ पर इस वाक्यांश का भी यही आशय है कि धार्मिक नेता या आध्यात्मिक गुरु को हमेशा लोगों के लिए सुलभ होना चाहिए। उन्हें किसी भी व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्गदर्शन और सहायता देने के लिए तैयार रहना चाहिए। धार्मिक स्थल या संस्थान को सभी के लिए खुला और स्वागतयोग्य होना चाहिए। धार्मिक स्थल में ऊँच-नीच के आधार पर किसी के साथ कोई भेद नहीं होना चाहिए।

ये दोनों कथन समाज के दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों को उनके समाज के प्रति आवश्यक कर्तव्य को स्पष्ट करते हैं।


Other questions

‘काई सा फटे नहीं’ पंक्तियों का आशय स्पष्ट करो।

आशय स्पष्ट कीजिये- भाई-भाई मिल रहें सदा ही टूटे कभी न नाता, जय-जय भारत माता।

विष भरे कनक घटों की संसार में कमी नहीं है। आशय स्पष्ट कीजिए।

आशय कीजिए- “यह वह समय है जब बच्चा मनाता होगा कि काश! उसके पिता अनपढ़ होते।”

‘गुरु पूर्णिमा’ पर निबंध लिखिए।

0

निबंध

गुरु पूर्णिमा

 

गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो शिक्षा और आध्यात्मिकता के बीच सेतु का काम करता है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो सामान्यतः जून या जुलाई के महीने में आता है।

‘गुरु’ शब्द संस्कृत से आया है, जिसका अर्थ है ‘अंधकार को दूर करने वाला’। गुरु वह व्यक्ति होता है जो हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाता है। भारतीय परंपरा में गुरु को ईश्वर के समान माना जाता है, क्योंकि वह हमें जीवन का सही मार्ग दिखाता है।

गुरु पूर्णिमा के पीछे कई पौराणिक कथाएँ हैं। एक मान्यता के अनुसार, इसी दिन गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। दूसरी मान्यता महर्षि वेदव्यास के जन्म से जुड़ी है, जिन्होंने वेदों का संकलन किया।

इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। वे गुरु की पूजा करते हैं, उनके आशीर्वाद लेते हैं और दान-दक्षिणा देते हैं। यदि गुरु उपस्थित नहीं हैं, तो उनके चित्र या प्रतीक की पूजा की जाती है।

छात्रों के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है। वे अपने शिक्षकों के प्रति आभार प्रकट कर सकते हैं, जो उन्हें ज्ञान और जीवन कौशल सिखाते हैं। यह दिन शिक्षक-छात्र संबंध को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।

गुरु पूर्णिमा हमें याद दिलाती है कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है। यह जीवन के हर पहलू को समझने और उसमें सुधार लाने का माध्यम है। यह त्योहार हमें अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञ रहने और जीवन भर सीखते रहने की प्रेरणा देता है।

अंत में, गुरु पूर्णिमा हमें स्मरण कराती है कि ज्ञान और विनम्रता साथ-साथ चलते हैं। जैसे-जैसे हम अधिक सीखते हैं, हमें यह एहसास होता है कि अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है। यह हमें जीवन भर विद्यार्थी बने रहने की प्रेरणा देती है।


और कुछ निबंध

‘गणेश चतुर्थी’ पर एक निबंध लिखिए।

शिक्षक दिवस (निबंध)

“दहेज हत्या एक कानूनी अपराध” इस विषय पर लघु निबंध लिखिए।

‘हमारे राष्ट्रीय पर्व’ पर निबंध लिखो।

सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ। धरती सब कागद करौं, तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ।। (भावार्थ बताएं)

सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं, तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ।।

भावार्थ : कबीरदास कहते हैं कबीर दास गुरु की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि यदि मैं इस संसार के सातों महासागरों के समस्त जल की स्याही बना लूं। यदि मैं इस संसार के सभी वन (जंगल) के पेड़ों से लेखनी बना लूं।

यदि मैं इस पूरी पृथ्वी को एक कागज के सामान मान लूं और सात समुद्रों के जल से बानी स्याही से संसार के सारे जंगलों के पेड़ों से बनी हुई लेखनी से, पृथ्वी रूपी कागज पर प्रभु (गुरु) के गुण लिखना शुरू करूं तो भी वह पूरी स्याही खत्म हो जाएगी, सारी लेखनियां घिस जाएंगी और पृथ्वी रूपी कागज कम पड़ जाएगा, फिर भी प्रभु (गुरु) के गुण को लिखा नहीं जा सकेगा।

व्याख्या :  इस दोहे के माध्यम से कबीर ने गुरु की अपार महिमा का बखान किया है। उन्होंने गुरु की महिमा का गुणगान करने में अतिश्योक्ति कर दी है। ये उनका अपने गुरु तथा संसार के सभी गुरुओं के प्रति उनके शिष्यों के भाव को दर्शाता है। कबीर के मन में अपने गुरु के प्रति कितना सम्मान था और वह अपने गुरु को कितना महान मानते थे यह इस दोहे से प्रकट होता है। उन्होंने पृथ्वी, वन, समुद्र जैसे प्राकृतिक प्रतीकों का उल्लेख करके अपने गुरु की महिमा गुणगान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सनातन संंस्कृति में गुरु को अत्यन्त उच्च स्थान दिया गया है।


Related questions

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।। भावार्थ बताएं।

गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत। वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।। (भावार्थ बताएं)

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।। भावार्थ बताएं।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।

भावार्थ :  कबीरदास कहते हैं की यह शरीर तो बुराइयों से भरा है। इस शरीर के अंदर विष रूपी बुराइयां ही बुराइयां भरी हुई हैं। एक गुरु ही है जो अमृत की खान है। जब ये विष रूपी रूपी शरीर गुरु की शरण में जाता है तो गुरु उन सभी विष रूपी बुराइयों का नाश कर देता है।

गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक है अपना शीश गुरु के चरणों में अर्पण कर दिया जाए, तब ही सच्चा ज्ञान प्राप्त हो सकता है। अपना शीश (सिर) गुरु के चरणों में अर्पण कर यदि गुरु से ज्ञान प्राप्त होता है, वो बहुत ही सस्ता सौदा है क्योंकि शिष्य ने कुछ भी नही खोया जबकि बहुत कुछ पा लिया।

यहाँ पर शीश से तात्पर्य अपने अंदर के अज्ञानता के अहंकार से है। अपने अंदर के अहंकार का त्याग करके ही गुरु से सच्चा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। अपने अहंकार को त्याग करके गुरु से जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह बड़ा ही सस्ता सौदा है, क्योंकि हमने जो खोया वह हमारे लिए नुकसानदायक था और हमने जो पाया वह हमारे लिए बहुत मूल्यवान है।


Related questions

गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत। वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।। (भावार्थ बताएं)

गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष। गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष।। (भावार्थ बताएं)

गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत। वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।। (भावार्थ बताएं)

गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।

भावार्थ : कबीरदास कहते हैं कि गुरु पारस पत्थर के समान होता है। गुरु और पारस पत्थर के बीच अंतर तो केवल ज्ञानी पुरुष ही समझ सकते हैं। पारस पत्थर वह पत्थर होता है जो लोहे को भी सोना बना देता है। जिसके स्पर्श से कोई भी लोहा सोना बन जाता है। गुरु भी लोहे रूपी शिष्य को सोना रूपी शिष्य बना देता है।

शिष्य जब गुरु के पास आता है तो वह लोहे के समान होता है और गुरु पारस पत्थर है। गुरु के स्पर्श से वह शिष्य सोना बन जाता है अर्थात यहाँ पर गुरु के स्पर्श से तात्पर्य गुरु के द्वारा प्राप्त ज्ञान से है। जब अज्ञानी शिष्य गुरु के पास आता है तो गुरु से ज्ञान ग्रहण करके उसके अंदर का अज्ञान मिट जाता है और ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित हो उठता है। तब वह शिष्य सोने के समान बन जाता है। इसीलिए गुरु महान है क्योंकि वह शिष्य को अपने जैसा बना देते हैं।


Other questions

गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष। गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष।। (भावार्थ बताएं)

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।। कबीर के इस दोहे का भावार्थ बताएं। (गुरु पूर्णिमा पर विशेष)

गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष। गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष।। (भावार्थ बताएं)

गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष।।

भावार्थ : कबीरदास कहते हैं कि गुरु के बिना किसी भी प्रकार का ज्ञान प्राप्त होना बिल्कुल ही असंभव है। गुरु के बिना ना तो ज्ञान प्राप्त हो सकता है और ना ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है। बिना गुरु के मनुष्य इस माया रुपी संसार के बंधनों में फंसा रहता है और संसार की मोह माया में उलझा रहता है।

जब तक गुरु की कृपा नहीं होती। गुरु की कृपा के कारण गुरु से ज्ञान प्राप्त नहीं होता, तब तक मनुष्य का उद्धार नहीं होता। गुरु ही है जो मनुष्य को सत्य का मार्ग दिखाते हैं। वह ही सत्य और असत्य का भेद करना सिखाते हैं। वह अच्छे और बुरे के बीच के अंतर को समझना सिखाते हैं। जब व्यक्ति गुरु से ज्ञान प्राप्त कर लेता है तो उसकी मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुल जाता है। उसके भीतर के सारे दोष मिट जाते हैं। उसके अंदर अज्ञानता का अंधकार मिटकर ज्ञान का प्रकाश जल उठता है। इसलिए हमें सदैव अपने गुरु की शरण में ही जाना चाहिए, वह ही हमें सत्य की राह दिखा सकते हैं।


Other questions

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।। कबीर के इस दोहे का भावार्थ बताएं। (गुरु पूर्णिमा पर विशेष)

सतगुरु साँचा सूरिवाँ, सवद जु बाह्य एक। लागत ही मैं मिल गया,पड़ता कलेजे छेक।। संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।। कबीर के इस दोहे का भावार्थ बताएं। (गुरु पूर्णिमा पर विशेष)

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

भावार्थ : कबीर दास गुरु की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि मेरे सामने मेरे गुरु और साक्षात ईश्वर दोनों खड़े हैं। अब मैं संशय की स्थिति में हूँ। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं पहले किसे प्रणाम करूं?

संशय की स्थिति इस स्थिति में मैं मन ही मन विचार करता हूँ। फिर मैं निर्णय लेता हूँ कि मुझे सबसे पहले अपने गुरु को प्रणाम करना चाहिए। मेरे मन में विचार आता है कि ईश्वर को तो मैंने पहले कभी देखा नहीं था। ईश्वर के स्वरूप को मैं समझता नहीं था। ईश्वर को जानने और समझने का ज्ञान मुझ में नहीं था। ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता मुझे पता नही था यह सब मुझे मेरे गुरु ने सिखाया।

गुरु ने ही मुझे ईश्वर को जानने और समझने की सामर्थ दी। गुरु ने ही मुझे वह ज्ञान दिया, इससे में ईश्वर के स्वरूप को जान एवं समझ पाया। मैंने ईश्वर को पहले कभी नहीं देखा। लेकिन मैंने अपने गुरु को सदैव देखा। इसलिए मैं अपने गुरु को ही पहले प्रणाम करूंगा क्योंकि उन्होंने मुझे ईश्वर को जानने-समझने और उन तक पहुंचने का मार्ग सुझाया।

विशेष व्याख्या

कबीरदास का यहाँ ईश्वर से तात्पर्य ज्ञान से है। हमारे अंदर ज्ञान की जो ज्योति आलोकित होती है वह ही ईश्वर है। ईश्वर किसी शाखा सत्ता का नहीं बल्कि निराकार सत्ता का स्वरूप है। कबीर ज्ञान की उस ज्योति को ही ईश्वर की संज्ञा दे रहे हैं। लेकिन ज्ञान कि वह ज्योति जलाने में सबसे मुख्य योगदान गुरु ने दिया। कबीर के अंदर ज्ञान की ज्योति को उनके गुरु ने ही जलाया। यानि गुरु ने ही उन्हें ज्ञान रूपी ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग सुझाया। इसीलिए कबीर गुरु को सर्वोपरि रखते हैं।


Other questions

गुरु ज्ञान की बारिश अज्ञान रूपी गंदगी को कैसे साफ़ कर देती है?​​

सतगुरु साँचा सूरिवाँ, सवद जु बाह्य एक। लागत ही मैं मिल गया,पड़ता कलेजे छेक।। संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।

What are the poetic devices in the poem ‘The Trees’ by Adrienne Rich​?

0

The poem ‘The Trees’ by Adrienne Rich employs several poetic devices to convey its themes and imagery. Here are some of the key poetic devices used in the poem:

1. Personification: The trees are given human-like qualities throughout the poem. For example, they are described as ‘walking,’ having ‘heads,’ and being able to ‘whisper.’

2. Metaphor: The trees are metaphorically compared to various human actions and characteristics, such as ‘walking,’ suggesting movement and life.

3. Imagery: Rich uses vivid sensory details to create strong visual and auditory images, like ‘bare branches’ and ‘rustling.’

4. Alliteration: There are instances of alliteration, such as ‘wind walks’ and ‘whisper without words.’

5. Assonance: The repetition of vowel sounds can be found in phrases like ‘trees are trees’ and ‘wind walks.’

6. Repetition: The phrase ‘The trees’ is repeated at the beginning of several lines, creating emphasis and rhythm.

7. Free verse: The poem doesn’t follow a strict rhyme scheme or meter, allowing for a more natural, conversational flow.

8. Enjambment: Lines often run into each other without punctuation, creating a sense of continuity and flow.

9. Symbolism: The trees likely symbolize aspects of human nature or society, possibly representing resilience, communication, or interconnectedness.

10. Paradox: The idea of trees walking and whispering without words presents a paradoxical image, challenging the reader’s perceptions.

These devices work together to create a rich, evocative poem that invites multiple interpretations and encourages readers to reconsider their relationship with nature and the world around them.


Other questions

What happens if you live in a place where day and night are equal. How you will be affected?

‘दुन-दुन टॉक-टॉक’ नीति किसकी थी? (1) माओ जेदोंग (2) लेनिन (3) कार्ल मार्क्स (4) काटस्की

सही उत्तर है…

(1) माओ जेदोंग

══════════════════

व्याख्या

‘दुन-दुन टॉक-टॉक’ नीति माओ जेदोंग की थी।

माओ जेदोंग, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के पहले अध्यक्ष, ने ‘दुन दुन टॉक टॉक’ नीति को प्रस्तुत किया। यह नीति चीनी क्रांति के दौरान और उसके बाद के वर्षों में अपनाई गई थी। ‘दुन दुन’ का अर्थ है ‘हिलना’ या ‘डगमगाना’, जबकि ‘टॉक टॉक’ का अर्थ है ‘उठना’ या ‘खड़ा होना’। यह नीति चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की रणनीति का प्रतीक थी, जिसमें वे कभी पीछे हटते (दुन दुन) और कभी आगे बढ़ते (टॉक टॉक) थे। इसका उद्देश्य था शत्रु को भ्रमित करना, अपनी शक्ति को संरक्षित करना, और सही समय आने पर आक्रमण करना। यह नीति गुरिल्ला युद्ध की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, जिसने चीनी कम्युनिस्टों को अपने शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ लड़ने में मदद की। माओ ने इस नीति को न केवल सैन्य रणनीति के रूप में, बल्कि राजनीतिक और आर्थिक नीतियों में भी लागू किया, जहाँ वे परिस्थितियों के अनुसार अपने दृष्टिकोण को लचीला रखते थे।


Other questions

सांस्कृतिक क्रांति किसने चलाई? (1) कार्ल मार्क्स (2) माओत्से तुंग (3) लेनिन (4) इनमें से कोई नहीं

राजनीतिक शक्ति बन्दूक की नली से उत्पन होती है किसका कथन है (1) माओत्लो तुंग (2) वी आई. लेनिन (3) कार्ल मार्क्स (4) इनमें से कोई नहीं

इतिहास की आर्थिक व्याख्या से तात्पर्य यह है कि अन्ततः इतिहास और ऐतिहासिक घटनाचक्र निर्धारित होता है- (1) महान पुरुषों के व्यक्तित्व से (2) माँग और पूर्ति के नियमों से (3) वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय विकास से (4) उत्पादन की पद्धति और उत्पादन के संबंधों से

सही उत्तर है…

(4) उत्पादन की पद्धति और उत्पादन के संबंधों से

═════════════════════════════════════

व्याख्या

इतिहास की आर्थिक व्याख्या से तात्पर्य उत्पादन की पद्धति और उत्पादन के संबंधों से निर्धारित होता है।

इतिहास की आर्थिक व्याख्या के अनुसार, इतिहास और ऐतिहासिक घटनाचक्र अंततः उत्पादन की पद्धति और उत्पादन के संबंधों से निर्धारित होता है। यह मार्क्सवादी दृष्टिकोण का एक मूल सिद्धांत है।

इस विचार के अनुसार, समाज की आर्थिक संरचना ही उसके राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक स्वरूप को निर्धारित करती है। उत्पादन की पद्धति में तकनीकी, औजार, और कार्य प्रणालियाँ शामिल होती हैं, जबकि उत्पादन के संबंधों में वे सामाजिक संबंध आते हैं जो उत्पादन प्रक्रिया में लोगों के बीच स्थापित होते हैं, जैसे मालिक-मजदूर संबंध।

यह दृष्टिकोण मानता है कि जैसे-जैसे उत्पादन की पद्धतियाँ बदलती हैं, समाज के अन्य पहलू भी बदलते हैं। उदाहरण के लिए, औद्योगिक क्रांति ने न केवल उत्पादन की पद्धति को बदला, बल्कि समाज के वर्ग संरचना, शहरीकरण, राजनीतिक व्यवस्था, और यहाँ तक कि विचारधाराओं को भी प्रभावित किया।

इस सिद्धांत के अनुसार, ऐतिहासिक परिवर्तन मुख्य रूप से आर्थिक कारकों के परिणामस्वरूप होते हैं, न कि व्यक्तियों के कार्यों या विचारों के कारण। यह व्याख्या इतिहास को एक व्यवस्थित प्रक्रिया के रूप में देखती है, जहाँ आर्थिक आधार समाज के अन्य पहलुओं को प्रभावित करता है।

हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह दृष्टिकोण विवादास्पद रहा है और कई इतिहासकारों ने इसकी आलोचना की है, यह कहते हुए कि यह इतिहास के अन्य महत्वपूर्ण कारकों की उपेक्षा करता है। फिर भी, यह इतिहास की व्याख्या का एक प्रभावशाली मॉडल बना हुआ है।


Related questions

आधुनिक राष्ट्र-राज्य का विशिष्ट लक्षण क्या है? (1) जनसंख्या (2) भू-भाग (3) सरकार (4) प्रभुसत्ता

किसने हॉब्स को सर्वसत्तावादी विचारक माना है? (1) माइकल ओकशाट (2) सी.वी. मैकफर्सन (3) विलियम मैकगवर्न (4) सी.एल. वेबर

What happens if you live in a place where day and night are equal. How you will be affected?

0

If I were to live in a place where day and night are equal, it would have several interesting effects on my daily life and overall well-being. Here’s how I might be affected:

1. Circadian rhythm: My body’s internal clock would likely adjust to the consistent 12-hour light-dark cycle. This could lead to more stable sleep patterns and potentially improved sleep quality.

2. Routine consistency: With equal days and nights, I might find it easier to maintain a consistent daily routine, as the timing of sunrise and sunset would remain constant throughout the year.

3. Seasonal affective disorder: I may be less prone to seasonal affective disorder (SAD), which is often associated with changes in daylight hours. The consistent light exposure could help maintain more stable mood and energy levels year-round.

4. Agriculture and gardening: If I were involved in growing plants, I’d need to adapt to the lack of seasonal changes in daylight. Some plants that require specific day lengths to flower or fruit might be challenging to cultivate.

5. Energy usage: My energy consumption patterns might become more predictable and balanced throughout the year, as the need for artificial lighting would remain constant.

6. Cultural adaptations: Traditional concepts of seasons and time-based cultural events might need to be redefined, as they often rely on changing day lengths.

7. Wildlife interactions: If living in a natural environment, I might notice different patterns in wildlife behavior, as many animals rely on changing day lengths for migration or hibernation cues.

8. Photography and outdoor activities: I’d have consistent lighting conditions for outdoor activities and photography, without the extended “golden hours” found in higher latitudes.

9. Work-life balance: The consistent day-night cycle might make it easier to maintain a regular work schedule and allocate time for personal activities.

10. Psychological perception of time: Without the changing day lengths as a marker of passing seasons, my perception of the passage of time throughout the year might be altered.

Living in such a location would require some adaptation, but it could also offer unique benefits in terms of lifestyle consistency and potentially improved well-being due to stable light exposure patterns.


Other questions

What do you understand by the term ‘nabobs’? Why were some British officials given this title post the Battle of Plassey and Buxar?

What is a runoff election?

गौरव का चरित्र-चित्रण कीजिए। (पाठ – कपड़े के झोले)

0

‘कपड़े के झोले’ पाठ के मुख्य पात्र गौरव का चरित्र-चित्रण

‘कपड़े के झोले’ पाठ में गौरव का चरित्र एक संवेदनशील, जागरूक और परिवर्तनकारी युवा के रूप में चित्रित किया गया है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

पर्यावरण के प्रति जागरूकता: गौरव पर्यावरण संरक्षण के प्रति बेहद सचेत है। वह प्लास्टिक के थैलों के हानिकारक प्रभावों को समझता है और उनके विकल्प के रूप में कपड़े के झोले का उपयोग करने का प्रचार करता है।

नवाचार की भावना: वह केवल समस्या की पहचान नहीं करता, बल्कि उसका समाधान भी खोजता है। कपड़े के झोले बनाने और उन्हें लोगों तक पहुंचाने का उसका विचार इस नवाचार की भावना को दर्शाता है।

सामाजिक उत्तरदायित्व: गौरव समाज के प्रति अपने दायित्व को समझता है। वह न केवल स्वयं पर्यावरण हितैषी व्यवहार अपनाता है, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करता है।

दृढ़ संकल्प: अपने मिशन को पूरा करने के लिए वह कड़ी मेहनत करता है। स्कूल के बाद और छुट्टियों में भी वह अपने काम में लगा रहता है, जो उसके दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।

सहयोग की भावना: गौरव अकेले काम नहीं करता। वह अपने दोस्तों और परिवार को भी इस कार्य में शामिल करता है, जो उसकी टीम भावना और सहयोग की क्षमता को दर्शाता है।

व्यावहारिक दृष्टिकोण: वह समझता है कि लोगों को प्लास्टिक छोड़ने के लिए एक व्यावहारिक विकल्प की आवश्यकता है। इसलिए वह कपड़े के झोले को एक सुविधाजनक और आकर्षक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करता है।

रचनात्मकता: झोलों को आकर्षक बनाने के लिए वह उन पर स्लोगन लिखता है और चित्र बनाता है, जो उसकी रचनात्मकता को दर्शाता है।

प्रभावशाली व्यक्तित्व: गौरव अपने विचारों और कार्यों से न केवल अपने साथियों को, बल्कि वयस्कों को भी प्रभावित करता है, जो उसके प्रभावशाली व्यक्तित्व का प्रमाण है।

दूरदर्शिता: वह भविष्य की चिंता करता है और वर्तमान में ऐसे कदम उठाता है जो दीर्घकालिक लाभ पहुंचा सकते हैं।

आत्मविश्वास: अपने मिशन के प्रति गौरव का दृढ़ विश्वास उसके आत्मविश्वास को दर्शाता है।

इस प्रकार, गौरव एक आदर्श युवा के रूप में चित्रित किया गया है जो अपने समाज और पर्यावरण के प्रति जागरूक है और सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रयासरत है।


Related questions

पतझर में टूटी पत्तियाँ (I) गिन्नी का सोना (II) झेन की देन : रवींद्र केलेकर (कक्षा-10 पाठ-13 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पाठ ‘स्मृति’ के आधार पर आपके जीवन में घटित किसी अविस्मरणीय घटना का वर्णन करें।​

‘मन की एकाग्रता’ इस विषय पर अपने विचार लिखो।

विचार लेखन

मन की एकाग्रता

 

मन की एकाग्रता एक ऐसी क्षमता है जो व्यक्ति के समग्र विकास और सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह मन को एक विशेष कार्य या विचार पर केंद्रित करने की कला है।

एकाग्रता के लाभ अनेक होते है। जब मन एकाग्र होता है, तो कार्य अधिक कुशलता और तेजी से पूरा होता है। एकाग्रता से किए गए कार्य में त्रुटियाँ कम होती हैं और गुणवत्ता बेहतर होती है। एकाग्रता से सीखी गई जानकारी दीर्घकाल तक याद रहती है। एकाग्रता से मानसिक शांति मिलती है, जो तनाव को कम करती है। गहन एकाग्रता से नए विचारों और समाधानों का जन्म होता है और व्यक्ति की रचनात्मकता में वृद्धि होती है।

नियमित ध्यान अभ्यास और योग और प्राणायाम से एकाग्रता को बढ़ाया जा सकता है। हालाँकि, आधुनिक जीवन में एकाग्रता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल उपकरण लगातार हमारा ध्यान भटकाते हैं। इसलिए, एकाग्रता को एक कौशल के रूप में विकसित करना आवश्यक है।

निष्कर्षतः, मन की एकाग्रता व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में उन्नति का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह एक ऐसी क्षमता है जिसे नियमित अभ्यास से विकसित किया जा सकता है, और जो जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक प्रभाव डालती है।


Related questions

कसरत उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है इस विषय पर अपने विचार लिखो।

‘किसी भी कार्य को करने के लिए दृढ़ता की आवश्यकता होती है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखो।

इस विषय पर एक अनुच्छेद लिखिए – ‘जब मैं बीमार हुआ।’

अनुच्छेद

जब मैं बीमार हुआ

 

जब मैं बीमार हुआ, वह एक अनुभव था जिससे मुझे स्वास्थ्य का महत्व समझा आया। यह पिछली सर्दियों की बात है, जब अचानक मुझे तेज बुखार आ गया। शरीर में दर्द, सिर में भारीपन और लगातार खांसी ने मुझे बिस्तर पर ला दिया।

परिवार के सदस्यों ने मेरी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी। माँ ने गर्म सूप और काढ़े बनाए, पिताजी दवाइयाँ लेकर आए। बहन ने मेरी हर जरूरत की पूरा करने की कोशिश की।

बीमारी ने मुझे अपने दैनिक जीवन के महत्व का एहसास कराया। स्कूल जाना, दोस्तों के साथ खेलना, बाहर घूमना – ये सब साधारण लगने वाली गतिविधियाँ अब मूल्यवान लगने लगी।

धीरे-धीरे, दवाओं और आराम के साथ, मेरी तबीयत सुधरने लगी। जब मैं ठीक हुआ, तो मैंने प्रण लिया कि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखूँगा। यह अनुभव मेरे लिए एक सबक बन गया कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है।


Related questions

‘प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ’ इस विषय पर एक अनुच्छेद लिखें।

200 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए ‘मनुष्यता क्या है?’

‘कसरत उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखो।

विचार लेखन

कसरत उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है

 

कसरत उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। यह एक ऐसा सत्य है, जिसे चिकित्सा विज्ञान और दैनिक अनुभव दोनों समान रूप से प्रमाणित करते हैं।

नियमित व्यायाम शरीर को कई तरह से लाभान्वित करता है। यह हृदय को मजबूत बनाता है, रक्त संचार को बेहतर करता है, और फेफड़ों की क्षमता बढ़ाता है। इससे मांसपेशियाँ सुदृढ़ होती हैं और हड्डियाँ मजबूत बनती हैं। कसरत वजन नियंत्रण में सहायक होती है, जो मोटापे से संबंधित कई बीमारियों को रोकने में मदद करती है।

मानसिक स्वास्थ्य पर भी कसरत का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह तनाव को कम करती है, मूड को बेहतर बनाती है, और आत्मविश्वास बढ़ाती है। नियमित व्यायाम से नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है और यह मस्तिष्क के कार्य को भी बेहतर बनाता है।

कसरत के कई रूप हो सकते हैं – चलना, दौड़ना, तैराकी, योग, या खेल। महत्वपूर्ण यह है कि यह नियमित और व्यक्ति की क्षमता के अनुरूप हो।

अंत में, कसरत एक ऐसी आदत है जो जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है और दीर्घायु प्रदान करती है। यह स्वस्थ जीवनशैली का एक अनिवार्य अंग है।


Related questions

‘किसी भी कार्य को करने के लिए दृढ़ता की आवश्यकता होती है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखो।

“शिक्षा में राजनीति का बढ़ता दवाब ” विषय के पक्ष और विपक्ष पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

‘किसी भी कार्य को करने के लिए दृढ़ता की आवश्यकता होती है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखो।

विचार लेखन

किसी भी कार्य को करने दृढ़ता की आवश्यकता होती है

 

किसी भी कार्य को करने के लिए दृढ़ता की आवश्यकता होती है, इस बात में जरा भी संदेह नहीं है। दृढ़ इच्छा शक्ति से किया गया कोई भी कार्य सफल होने की गारंटी देता है। जब हम अपने किसी कार्य के प्रति दृढ़ता का भाव अपनाते हैं तो हमारा हमारा मनोबल मजबूत होता है। दृढ़ मनोबल से किया गये कार्य में व्यक्ति अपनी पूरी लगन लगा देता है। जब पूर्ण दृढ़ता से कोई कार्य को किया जाता है तो उसमें गलती की गुंजाइश कम होती है। गलती की गुंजाइश कम होने पर कार्य की सफलता की संभावनाएं अधिक बढ़ जाती है।

दृढ़ता हमें आत्मविश्वास प्रदान करती है। यह आत्मविश्वास कार्य की सफलता के लिए आवश्यक है। आत्मविश्वास कार्य को सफल बनाने का सबसे अचूक गुण है। एक आत्मविश्वासी व्यक्ति अपने कार्य को कुशलता और तत्परता से करता है और सफलता पाता है।

किसी भी कार्य को करने में अनेक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। उन चुनौतियों से मुकाबला करने के लिए भी दृढ़ता बेहद आवश्यक है। यदि पूर्ण दृढ़ता से कार्य को संपन्न किया जाता है तो हर चुनौती से निपटने की क्षमता भी स्वतः ही विकसित हो जाती है।

किसी भी कार्य को करने के लिए दृढ़ता का भाव अपनाने से हमारे अंदर समर्पण और कठोर परिश्रम पैदा करने का गुण उत्पन्न होता है जो हमें कार्य की सफलता के अधिक नजदीक ले जाता है। इसलिए किसी भी कार्यों को करने के लिए दृढ़ता की आवश्यकता है, इस विषय में कोई संदेह नहीं है।


Related questions

बेहतर भविष्य के लिए सिर्फ व्यवहारिक विषयों (गणित, विज्ञान, अर्थशास्त्र) की पढ़ाई होनी चाहिए। इस पर विचार लिखें।

यूनेस्को द्वारा दुर्गा पूजा को वैश्विक विरासत (World heritage) बनाने पर अपने विचार अनुच्छेद के रुप में लिखें ।

किसने हॉब्स को सर्वसत्तावादी विचारक माना है? (1) माइकल ओकशाट (2) सी.वी. मैकफर्सन (3) विलियम मैकगवर्न (4) सी.एल. वेबर

सही उत्तर है…

सी.बी. मैकफर्सन

═══════════════

व्याख्या

सी. बी. मैकफर्सन (C. B. Macpherson) ने थॉमस हॉब्स को सर्वसत्तावादी विचारक के रूप में माना है। यह दृष्टिकोण मैकफर्सन की प्रसिद्ध पुस्तक “द पॉलिटिकल थ्योरी ऑफ पॉसेसिव इंडिविजुअलिज्म” में विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।

मैकफर्सन ने हॉब्स के राजनीतिक दर्शन का विश्लेषण करते हुए उनके ‘लेविएथन’ में प्रस्तुत राज्य के सिद्धांत को सर्वसत्तावादी प्रवृत्ति का माना। उन्होंने तर्क दिया कि हॉब्स का सम्प्रभु, जिसे सभी नागरिक अपने अधिकार सौंपते हैं, वास्तव में एक निरंकुश शासक का प्रतिनिधित्व करता है।

मैकफर्सन के अनुसार, हॉब्स का विचार कि मनुष्य स्वार्थी और संघर्षशील प्रकृति का है, उन्हें इस निष्कर्ष पर पहुंचाता है कि केवल एक शक्तिशाली केंद्रीय सत्ता ही समाज में शांति और व्यवस्था स्थापित कर सकती है। यह केंद्रीय सत्ता, जिसे हॉब्स ‘लेविएथन’ कहते हैं, असीमित अधिकार रखती है और नागरिकों के अधिकारों को सीमित करती है।

हालांकि, यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि मैकफर्सन की यह व्याख्या विवादास्पद रही है और कई अन्य विद्वानों ने इसका खंडन किया है। कुछ का मानना है कि हॉब्स के विचारों को इस तरह से सरलीकृत नहीं किया जा सकता और उनके दर्शन में लोकतांत्रिक तत्व भी मौजूद हैं।

फिर भी, मैकफर्सन का विश्लेषण हॉब्स के राजनीतिक दर्शन की एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली व्याख्या बना हुआ है, जो राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन में अभी भी चर्चा का विषय है।


Other questions

रूसो के राजनीतिक विचारों का किस महत्वपूर्ण घटना पर प्रभाव देखा जा सकता है? (1) 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति (2) 1789 की फ्रांस की क्रांति (3) 1776 की अमरीकी क्रांति (4) 1917 की रूसी क्रांति

आधुनिक राष्ट्र-राज्य का विशिष्ट लक्षण क्या है? (1) जनसंख्या (2) भू-भाग (3) सरकार (4) प्रभुसत्ता

रूसो के राजनीतिक विचारों का किस महत्वपूर्ण घटना पर प्रभाव देखा जा सकता है? (1) 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति (2) 1789 की फ्रांस की क्रांति (3) 1776 की अमरीकी क्रांति (4) 1917 की रूसी क्रांति

सही उत्तर है…

(2) 1789 की फ्रांस की क्रांति

════════════════════════

व्याख्या

रूसो के राजनीतिक विचारों का सबसे महत्वपूर्ण और प्रत्यक्ष प्रभाव 1789 की फ्रांसीसी क्रांति पर देखा जा सकता है। यह क्रांति रूसो के विचारों से गहराई से प्रभावित थी और उसके सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप देने का एक प्रयास थी।

रूसो के ‘सामाजिक अनुबंध’ और ‘सामान्य इच्छा’ के सिद्धांतों ने क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। उनका विचार कि सरकार जनता की इच्छा पर आधारित होनी चाहिए, फ्रांसीसी क्रांति का मूल आधार बना। रूसो का यह कथन कि ‘मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है, लेकिन हर जगह वह जंजीरों में जकड़ा हुआ है’ क्रांति का नारा बन गया।

फ्रांसीसी क्रांति के दौरान ‘स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा’ के आदर्श, जो क्रांति के मूल सिद्धांत बने, रूसो के विचारों से प्रेरित थे। उनके लोकतांत्रिक विचारों ने राजतंत्र के विरुद्ध जनमत तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हालांकि रूसो की मृत्यु क्रांति से पहले हो गई थी, उनके लेखन और विचार क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहे। उनके विचारों ने न केवल क्रांति को प्रेरित किया, बल्कि उसके बाद के फ्रांसीसी समाज और राजनीति के पुनर्गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस प्रकार, 1789 की फ्रांसीसी क्रांति रूसो के राजनीतिक विचारों के प्रभाव का सबसे स्पष्ट और महत्वपूर्ण उदाहरण है।


Other questions

‘उपयोगितावाद’ का प्रतिपादक कौन है? (1) जेरमी बेन्थम (2) रूसो (3) प्लेटो (4) जीन बोंदा

सनकी व्यक्तियों को भी विचार की स्वतंत्रता देने के पक्ष में कौन था? (1) बेथम (2) जेम्स मिल (3) जे. एस. मिल (4) हीगल

‘पहाड़ों का दृश्य’ इस विषय पर एक लघु निबंध लिखिए।

0

लघु निबंध

पहाड़ों का दृश्य

पहाड़ों का दृश्य प्रकृति का एक अद्भुत और मनमोहक नज़ारा है। ऊँचे-ऊँचे शिखर, जो आकाश को छूते प्रतीत होते हैं, मानव मन को विस्मय से भर देते हैं। बर्फ़ से ढके चोटियाँ सूर्य की किरणों में चमकती हुई, एक अलौकिक सौंदर्य प्रस्तुत करती हैं।

पहाड़ों की ढलानों पर फैले हरे-भरे जंगल, जीवन की विविधता का प्रतीक हैं। झरने और नदियाँ, जो पहाड़ों से निकलकर बहती हैं, प्राकृतिक संगीत की धुन बिखेरती हैं। घाटियों में बसे छोटे-छोटे गाँव, मानव और प्रकृति के सामंजस्य को दर्शाते हैं।

सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पहाड़ों पर बिखरते रंग, एक कलाकार के कैनवास से कम नहीं होते। बादलों के साथ खेलते शिखर, कभी छिपते, कभी दिखते, एक रहस्यमय आभा उत्पन्न करते हैं।

पहाड़ों का दृश्य न केवल आँखों को तृप्त करता है, बल्कि आत्मा को भी शांति और स्फूर्ति प्रदान करता है। यह हमें प्रकृति की विशालता और अपनी क्षुद्रता का अहसास कराता है, साथ ही जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण देता है।


Related questions

‘गणेश चतुर्थी’ पर एक निबंध लिखिए।

वैदिक शिक्षा और विज्ञान (निबंध)

‘गणेश चतुर्थी’ पर एक निबंध लिखिए।

0

निबंध

गणेश चतुर्थी

 

गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म के सबसे लोकप्रिय और उत्साहपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में पड़ता है। इस दिन भगवान गणेश के जन्म का उत्सव मनाया जाता है, जिन्हें बुद्धि, समृद्धि और शुभ शुरुआत का देवता माना जाता है।

त्योहार की शुरुआत घरों और सार्वजनिक स्थानों पर गणेश जी की मूर्तियों की स्थापना के साथ होती है। ये मूर्तियाँ विभिन्न आकारों और सामग्रियों से बनाई जाती हैं, जिनमें मिट्टी, प्लास्टर ऑफ पेरिस, और कभी-कभी पर्यावरण के अनुकूल सामग्री भी शामिल होती हैं। भक्त बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मूर्तियों की पूजा करते हैं, उन्हें फूल, फल, और मिठाइयाँ अर्पित करते हैं।

उत्सव के दौरान, लोग विशेष भोजन तैयार करते हैं, जिसमें मोदक (गणेश जी का प्रिय व्यंजन) प्रमुख है। परिवार और मित्र एक साथ इकट्ठा होकर पूजा करते हैं, भजन गाते हैं, और प्रसाद बाँटते हैं। कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाती हैं।

गणेश चतुर्थी का उत्सव आमतौर पर 1 से 11 दिनों तक चलता है। अंतिम दिन, जिसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है, भक्त गणेश जी की मूर्तियों को जलाशयों में विसर्जित करते हैं। यह विसर्जन एक भव्य जुलूस के रूप में किया जाता है, जिसमें लोग नाचते-गाते हुए “गणपति बप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या” (हे गणपति बप्पा, अगले साल जल्दी आना) का उद्घोष करते हैं।

गणेश चतुर्थी केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। यह त्योहार लोगों को एक साथ लाता है, परंपराओं को जीवंत रखता है, और नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़े रखता है। हालाँकि, हाल के वर्षों में पर्यावरण संरक्षण की चिंताओं के कारण, कई लोग पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से यह त्योहार मनाने की ओर रुख कर रहे हैं।

इस प्रकार, गणेश चतुर्थी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो आध्यात्मिकता, परंपरा, और आधुनिकता का सुंदर संगम प्रस्तुत करता है।


Related questions

वैदिक शिक्षा और विज्ञान (निबंध)

“दहेज हत्या एक कानूनी अपराध” इस विषय पर लघु निबंध लिखिए।

सदाबहार वर्षावन ‘जीवोम’ की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। ​

0

सदाबहार वर्षावन जीवोम बहुत विशिष्ट और जैव विविधता से भरपूर पारिस्थितिक तंत्र हैं। इनकी कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं…

1. जैव विविधता

सदाबहार वर्षावन जीवोम दुनिया के सबसे अधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक हैं। यहाँ पेड़ों, पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों की असंख्य प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह विविधता न केवल प्रजातियों की संख्या में, बल्कि उनके बीच के जटिल संबंधों में भी दिखाई देती है, जो इस पारिस्थितिक तंत्र को अद्वितीय बनाती है।

2. सदाबहार वनस्पति

इन वनों की एक प्रमुख विशेषता उनकी सदाबहार प्रकृति है। यहाँ के पेड़ पूरे साल हरे-भरे रहते हैं। पत्तियों का झड़ना और नए पत्तों का आना एक निरंतर प्रक्रिया है, जो वन को हमेशा जीवंत और हरा-भरा बनाए रखती है। यह विशेषता इन वनों को अन्य प्रकार के वनों से अलग करती है।

3. स्तरित संरचना

सदाबहार वर्षावनों की एक और महत्वपूर्ण विशेषता उनकी स्तरित संरचना है। इन वनों में कई स्तर होते हैं – ऊपरी छत्र, मध्य स्तर, निचला स्तर और जमीनी स्तर। हर स्तर पर विशिष्ट पौधे और जानवर पाए जाते हैं, जो अपने विशेष आवास के अनुकूल विकसित हुए हैं। यह स्तरीकरण वन के संसाधनों के अधिकतम उपयोग को सुनिश्चित करता है।

4. जटिल खाद्य श्रृंखला

इन वनों में जटिल खाद्य श्रृंखला पाई जाती है। विभिन्न प्रजातियों के बीच जटिल खाद्य संबंध होते हैं, जो पारिस्थितिक तंत्र को स्थिर रखने में मदद करते हैं। यह जटिलता वन के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और किसी एक प्रजाति के विलुप्त होने से होने वाले नुकसान को कम करती है।

5. अनुकूलन

सदाबहार वर्षावनों के जीव गर्म और आर्द्र जलवायु के अनुकूल विकसित हुए हैं। उदाहरण के लिए, पेड़ों की पत्तियाँ अक्सर चमकीली और मोमी होती हैं जो अतिरिक्त पानी को बहाने में मदद करती हैं। यह अनुकूलन जीवों को इस चुनौतीपूर्ण वातावरण में जीवित रहने और फलने-फूलने में सहायता करता है।

6. तेज पोषक चक्र

इन वनों में पोषक तत्वों का चक्र तेजी से चलता है। गर्म और आर्द्र जलवायु के कारण मृत पदार्थ जल्दी से विघटित हो जाते हैं। यह तेज पोषक चक्र वन की उत्पादकता को बनाए रखने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि पोषक तत्व तेजी से पुनः उपयोग में आ जाएँ।

7. लियाना और एपिफाइट्स

सदाबहार वर्षावनों में बड़ी संख्या में लियाना (लताएँ) और एपिफाइट्स (जैसे ऑर्किड) पाए जाते हैं। ये पौधे प्रकाश और पोषण के लिए बड़े पेड़ों का उपयोग करते हैं। यह विशेषता वन की संरचना को और अधिक जटिल बनाती है और जैव विविधता को बढ़ाती है।

8. विशिष्ट प्रजनन रणनीतियाँ

इन वनों के जीवों में विशिष्ट प्रजनन रणनीतियाँ देखी जाती हैं। कई पौधे और जानवर अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए नवीन तरीके अपनाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ पौधे चमकीले फूल या फल पैदा करते हैं जो जानवरों को आकर्षित करते हैं, जिससे परागण और बीज फैलाव में मदद मिलती है। ये रणनीतियाँ वन की जटिलता और विविधता को और बढ़ाती हैं।

ये विशेषताएँ सदाबहार वर्षावनों को एक अद्वितीय और जटिल पारिस्थितिक तंत्र बनाती हैं, जो पृथ्वी की जैव विविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


Other questions

सौर ऊर्जा क्या है? सौर ऊर्जा के क्या-क्या उपयोग है? बिजली की तुलना में सौर ऊर्जा का उपयोग किया जाए तो उसके क्या लाभ हैं?

जैवविविधता के तप्त स्थलों के बारे में समझाइये।

वैज्ञानिक चेतना के वाहक डॉ. वेंकट रमन पाठ के द्वारा लेखक किस चेतना की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं? क्या आम जन वैज्ञानिक चेतना को अनुभूत करते हैं? अपने शब्दों में लिखें।

0

‘वैज्ञानिक चेतना के वाहक – डॉ. वेंकट रमन’ पाठ के द्वारा लेखक उस वैज्ञानिक चेतना की ओर ध्यान आकर्षित कराना चाह रहा है, जो प्रकृति में मौजूद है। लेखक के अनुसार डॉ. रमन ने इसी वैज्ञानिक चेतना को खोजा।

डॉ, रमन का कहना था कि किसी भी बात को जानने के लिए, किसी भी जिज्ञासा के समाधान के लिए उसे प्राकृतिक दृष्टिकोण से जानना समझना चाहिए । किसी जिज्ञासा के मूल में जाने के लिए प्राकृतिक दृष्टिकोण से यदि समझेंगे तो उस समस्या का सही समाधान मिलेगा। प्रकृति के अंदर ही एक वैज्ञानिक चेतना छुपी है।

जितना हम प्रकृति को निकट से जानेंगे उतना ही हम प्रकृति के अनसुलझे रहस्य को समझने की दिशा में कदम बढ़ाएंगे। आम जन भी इस चेतना का अनुभूत कर सकता है, बशर्ते वह प्रकृति को बारीकी से समझे। प्रकृति को अधिक से अधिक जानना ही वैज्ञानिक चेतना को विकसित करता है, क्योंकि यह प्रकृति वैज्ञानिकता से भरी पड़ी है। प्रकृति के वैज्ञानिक रहस्यों का भेदन करने को ओर ही लेखक ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं।

संदर्भ पाठ : वैज्ञानिक चेतना के वाहक – चन्द्रशेखर वेंकट रामन, (कक्षा – 9, पाठ – 4, हिंदी स्पर्श)


Other questions

वैज्ञानिक प्रगति में भारत का योगदान (निबंध)

वैदिक शिक्षा और विज्ञान (निबंध)

जीवों के प्रति राहुल कैसा भाव प्रकट करता है? (माँ कह एक कहानी- मैथिलीशरण गुप्त) ​

0

मैथिलीशरण गुप्त की कविता ‘माँ कह एक कहानी’ को पूरा पढ़ने के बाद, राहुल के जीवों के प्रति भाव को इस प्रकार समझा जा सकता है…

राहुल जीवों के प्रति अत्यंत संवेदनशील और दयालु दृष्टिकोण रखता है। कविता में वर्णित कहानी में, जब एक हंस को तीर से घायल कर दिया जाता है, तो राहुल की प्रतिक्रिया इसे ‘करुणा भरी कहानी’ कहकर व्यक्त होती है। यह उसकी जीवों के प्रति सहानुभूति को दर्शाता है।

राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?
कह दे निर्भय जय हो जिसका, सुन लूँ तेरी बानी”
“माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।

राहुल न्याय और दया के बीच एक संतुलन चाहता है। जब उसकी माँ उससे पूछती है कि वह किसका पक्ष लेता है – शिकारी का या पक्षी के रक्षक का, तो राहुल का उत्तर स्पष्ट रूप से जीव-रक्षा के पक्ष में होता है। वह कहता है, ‘कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?’ यह वाक्य उसकी निर्दोष जीवों की रक्षा करने की इच्छा को दर्शाता है।

कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।”
“न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी।”

राहुल न्याय को दया से जोड़ता है। वह कहता है, ‘रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।’ यहाँ वह स्पष्ट करता है कि उसके लिए सच्चा न्याय वह है जो दया पर आधारित हो। वह मानता है कि निर्दोष जीवों की रक्षा करना और उन्हें बचाना न्यायसंगत है।

इस प्रकार, कविता से स्पष्ट होता है कि राहुल जीवों के प्रति गहरी करुणा, संरक्षण की भावना, और न्यायपूर्ण व्यवहार का समर्थन करता है। वह जीवों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा को महत्व देता है, जो उसके उदात्त और संवेदनशील चरित्र को प्रकट करता है।

‘माँ कह एक कहानी’ कविता राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त ‘द्वारा रचित एक मर्मस्पर्शी कविता है। ये कविता गौतम बुद्ध, उनकी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को आधार बनाकर लिखी गई है। इस कविता के माध्यम से कवि ने जीवों के प्रति दया और करुणा का भाव अपनाने को महत्व दिया है।


Other questions

पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “लक्ष्य सिद्धि का मानी कोमल कठिन कहानी।”

पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “वर्ण-वर्ण के फूल खिले थे, झलमलकर हिम बिन्दु झिले थे, हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।” “लहराता था पानी। ‘हाँ, हाँ यही कहानी।”

पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से, गिरा बिद्ध होकर खर-शर से, हुई पक्ष की हानी।” “हुई पक्ष की हानी। करुणा भरी कहानी।”

हामिद का परिचय दीजिये। (ईदगाह कहानी – मुंशी प्रेमचंद)

0

मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी ‘ईदगाह’ में हामिद कहानी का एक मुख्य पात्र है। उसका परिचय इस प्रकार होगा…

  • हामिद की आयु 4 से 5 वर्ष के बीच है।
  • 4 से 5 वर्ष की आयु होने के बावजूद वह अपने आयु से अधिक समझदार दिखता है।
  • हामिद माता-पिता विहीन बालक है। उसके माता और पिता दोनों का निधन हो चुका है और वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना के साथ रहता है।
  • हामिद और उसकी दादी बेहद गरीब हैं। हामिद की दादी अमीना दूसरों के घरों में काम करके हामिद का पालन-पोषण करती है।
  • हामिद पैसे का महत्व समझता है। वह अपनी आयु के बच्चों की तरह पैसे की फिजूलखर्ची नही करता। वह पैसों को मौज-मस्ती में खर्च नहीं करता बल्कि उपयोगी वस्तु ही खरीदता है।
  • अपनी गरीबी और अभाव के कारण समय से पहले परिपक्व हो गया है और अपनी आयु से अधिक आयु के बच्चों जैसा व्यवहार करता है।
  • हामिद के अंदर चतुराई का गुण भी है। मेले में वह उसे मालूम है कि उसके पास कम पैसे हैं तो खुद को शर्मिंदा होने से बचाने लिए अपने दोस्तों सामने वह खिलौनों और मिठाई की बुराइयां बताकर दोस्तों के सामने अपनी निर्धनता कर छुपा लेता है।
  • हामिद के मन में अपनी दादी अमीना के प्रति प्रेम और संवेदना है, इसी कारण मेले में से अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदता है क्योंकि उसे मालूम है उसकी दादी रोटी बनाती है, तो बिना चिमटे के कारण उसकी उंगलियां जल जाती है।
  • इस तरह हामिद एक चतुर, एक समझदार लड़का है।

Related questions

प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी ‘ईदगाह’ के प्रमुख पात्र हामिद और मेले के दुकानदार के बीच हुआ संवाद लिखें।

पाठ ईदगाह के आधार पर बताइए मेलों का हमारे जीवन में क्या महत्व है​?

वैदिक शिक्षा और विज्ञान (निबंध)

0

निबंध

वैदिक शिक्षा और विज्ञान

══════════════════════════

प्रस्तावना

वैदिक युग में शिक्षा व्यक्ति के चहुँमुखी विकास के लिए थी। जब विश्व के शेष भाग बर्बर एवं प्रारम्भिक अवस्था में थे, भारत में ज्ञान, विज्ञान तथा चिन्तन अपने चरमोत्कर्ष पर था। उस समय अपने ज्ञान के कारण भारत विश्वगुरु कहलाता था। भारत में वैदिक शिक्षा का युग ज्ञान और चिंतन का युग था।

वैदिक युग में शिक्षा की विशेषताएँ

शिक्षा ज्ञान है और वह मनुष्य का तीसरा नेत्र है। शिक्षा के द्वारा समस्त मानव जीवन का विकास सम्भव है। ईश्वर-भक्ति तथा धार्मिकता की भावना, चरित्र- निर्माण, व्यक्तित्व का विकास, नागरिक तथा सामाजिक कर्तव्यों का पालन, सामाजिक कुशलता की उन्नति तथा राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण और प्रसार वैदिक काल में गुरुकुल प्रणाली थी। छात्र माता-पिता से अलग, गुरु के घर पर ही शिक्षा प्राप्त करता था, यह पद्धति गुरुकुल पद्धति कहलाती थी। अन्य सहपाठियों के साथ वह गुरुकुल मे ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ शिक्षा प्राप्त करता था। आचरण की शुद्धता व सात्विकता को प्रमुखता दी जाती थी। अविवाहित छात्रों को ही गुरुकुल में प्रवेश मिलता था।

वैदिक युग में शिक्षा

गुरु प्रत्येक छात्र का विकास करने के लिए प्रयत्नशील रहता था तथा उनका शारीरिक तथा मानसिक विकास करता था। वैदिक युग में शिक्षा मौखिक रूप से शिक्षण किया जाता था। इसका प्रमुख कारण था-लेखन कला तथा मुद्रण कला का अभाव। उस समय मौखिक रूप से अध्यापक आवश्यक निर्देश देते थे। छात्र उन निर्देशों का पालन करते थे। शिक्षण विधि में प्रयोग एवं अनुभव, कर्म तथा विवेक को महत्व दिया जाता था।

विज्ञान

वर्तमान युग में विज्ञान का प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में देखने को मिलता है। आज विज्ञान के बिना समाज की कल्पना करना असंभव है। हमारी संस्कृति में विज्ञान घुल-मिल गया है। विज्ञान की शिक्षा के प्रचार व प्रसार से मानव की विचारधारा में बहुत परिवर्तन आया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है।

प्राचीन समय में इसे भौतिक विज्ञान के नाम से जाना जाता था एवं उच्च शैक्षिक संस्थानों में छात्र इसे अत्यंत उत्साह से पढ़ते थे। भारतीय पुनर्जागरण के समय (बीसवीं सदी के प्रारंभ) में भारतीय वैज्ञानिकों ने उल्लेखनीय प्रगति की थी। 1947 में देश के आजाद होने के पश्चात संस्थाओं की स्थापना की गई ताकि विज्ञान के क्षेत्र में हुई इस सहज एवं रचनात्मक प्रगति को और बढ़ावा मिल सके। इस कार्य में विभिन्न राज्यों ने भी अपना भरपूर सहयोग दिया।

इसके बाद से भारत सरकार ने देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की आधुनिक अवसंरचना के निर्माण में कोई कसर नहीं छोड़ी है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उपसंहार

इस प्रकार हम देखते हैं कि वैदिक शिक्षा का जहाँ प्राचीन काल में बेहद महत्व था, वहीं विज्ञान का आधुनिक काल में अपना महत्व है। हमें वैदिक शिक्षा के रूप में अपनी प्राचीन धरोहर को संजोते हुए विज्ञान के महत्व को स्वीकार करना चाहिए।


Other निबंध

भ्रष्टाचार मुक्त भारत विकसित भारत (निबंध)

वैज्ञानिक प्रगति में भारत का योगदान (निबंध)

मेरी अंतरिक्ष यात्रा (निबंध)

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध