इस प्रश्न का सही उत्तर है…
(4) (1) एवं (2) दोनों
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व्याख्या
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में न्याय प्रशासन के दो मुख्य प्रकार के न्यायालयों का वर्णन किया गया है: धर्मस्थीय और कंटकशोधन। ये दोनों ‘व्यवहार न्यायालय’ के अंतर्गत आते हैं।
1. धर्मस्थीय न्यायालय
ये नागरिक मामलों से संबंधित न्यायालय थे।
इनमें व्यक्तिगत विवाद, संपत्ति विवाद, विवाह संबंधी मामले, उत्तराधिकार के मुद्दे आदि को देखा जाता था।
इन न्यायालयों का उद्देश्य समाज में धर्म (नैतिक और कानूनी कर्तव्य) की स्थापना करना था।
2. कंटकशोधन न्यायालय
ये आपराधिक मामलों से संबंधित न्यायालय थे।
इनमें चोरी, हत्या, हिंसा, राजद्रोह जैसे अपराधों की सुनवाई होती थी।
‘कंटक’ का अर्थ है ‘काँटा’, और इन न्यायालयों का उद्देश्य समाज से इन ‘काँटों’ को दूर करना था।
दोनों प्रकार के न्यायालय मिलकर ‘व्यवहार न्यायालय’ का निर्माण करते थे, जो कौटिल्य के अनुसार एक समग्र न्याय प्रणाली थी। यह प्रणाली नागरिक और आपराधिक दोनों प्रकार के मामलों को संभालने के लिए डिज़ाइन की गई थी, जिससे समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में मदद मिलती थी।
माध्यस्थम, जो विकल्प (3) में दिया गया है, एक अलग प्रक्रिया है जिसमें विवाद को सुलझाने के लिए एक तटस्थ तीसरे पक्ष का उपयोग किया जाता है। हालांकि यह एक महत्वपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया है, यह अर्थशास्त्र में वर्णित मुख्य ‘व्यवहार न्यायालय’ के अंतर्गत नहीं आती।