सही उत्तर है…
(1) दार्शनिक अराजकतावादी
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व्याख्या
महात्मा गांधी ने स्वयं को ‘दार्शनिक अराजकतावादी’ के रूप में वर्णित किया था। यह उनके राजनीतिक और सामाजिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण पहलू था।
गांधी के लिए अराजकतावाद का अर्थ अव्यवस्था या अराजकता नहीं था। उनके लिए यह एक ऐसी व्यवस्था थी जहाँ राज्य की न्यूनतम भूमिका हो और समाज स्वयं अपना संचालन करे।
गांधी का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं का शासक होना चाहिए। उन्होंने व्यक्तिगत नैतिकता और आत्म-अनुशासन पर जोर दिया।
गांधी ने छोटे, स्वायत्त ग्राम समुदायों की कल्पना की जो अपने मामलों का प्रबंधन स्वयं करें। यह विचार केंद्रीकृत सरकार के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया। गांधी का अराजकतावाद अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित था। उन्होंने हिंसा और बल प्रयोग के बजाय नैतिक शक्ति और आत्मबल पर जोर दिया। गांधी ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ राज्य की भूमिका न्यूनतम हो। उनका मानना था कि जैसे-जैसे लोग अधिक नैतिक और जिम्मेदार बनेंगे, राज्य की आवश्यकता कम होती जाएगी।
गांधी ने इस विचार को एक दार्शनिक आदर्श के रूप में देखा, न कि एक तत्काल व्यावहारिक लक्ष्य के रूप में। उन्होंने इसे एक ऐसे आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जिसकी ओर समाज को धीरे-धीरे बढ़ना चाहिए।
गांधी का ‘दार्शनिक अराजकतावाद’ उनके व्यापक दर्शन का एक हिस्सा था, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, नैतिक जिम्मेदारी, और सामुदायिक सहयोग पर आधारित था। यह विचार आज भी विकेंद्रीकरण, स्थानीय स्वशासन, और नागरिक समाज की भूमिका पर चल रही बहसों में प्रासंगिक है।