सही उत्तर होगा…
(4) दीन दयाल उपाध्याय
═══════════════════
व्याख्या
‘सभी राष्ट्र शक्ति के संगठन हैं’ यह कथन दीनदयाल उपाध्याय का है। दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति में एक प्रमुख विचारक थे और उन्होंने भारतीय जनसंघ (जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी) की विचारधारा को मजबूत किया। उनके विचार में, एक राष्ट्र की वास्तविक शक्ति उसकी सामूहिक एकता, संस्कृति, और आत्मनिर्भरता में निहित होती है। उन्होंने ‘एकात्म मानववाद’ का दर्शन प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे एक राष्ट्र की शक्ति उसके समाज, संस्कृति और परंपराओं के साथ गहराई से जुड़ी होती है।
उपाध्याय ने यह भी माना कि किसी राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि केवल भौतिक संसाधनों पर निर्भर नहीं होती, बल्कि उसके लोगों की आत्मा और संस्कृति की सशक्तिकरण पर भी निर्भर करती है। उनके अनुसार, एक राष्ट्र का संगठन उसकी संस्कृति, सामाजिक संरचना, और आत्मनिर्भरता पर आधारित होना चाहिए। उनका यह कथन राष्ट्र की सामूहिक शक्ति और एकता पर जोर देता है, जो कि किसी भी राष्ट्र की स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक है।
हालाँरि यह कथन राजनीति विज्ञान का एक मूलभूत सिद्धांत ही है और इसे किसी एक व्यक्ति के विशेष रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। यह विचार विभिन्न राजनीतिक दार्शनिकों और विद्वानों द्वारा विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया गया है।
इस कथन का तात्पर्य है कि सभी राष्ट्र अपनी शक्ति को बढ़ाने और सुरक्षित रखने के लिए संगठित होते हैं। यह शक्ति विभिन्न रूपों में हो सकती है जैसे कि सैन्य शक्ति, आर्थिक शक्ति, राजनीतिक शक्ति आदि। राष्ट्र अपनी शक्ति का उपयोग अपने हितों की रक्षा करने, अन्य राष्ट्रों के साथ संबंध बनाने और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए करते हैं।