सही उत्तर है…
(2) हीगल
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व्याख्या
हीगल ने कहा था कि ‘राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का पदक्षेप यानि अवतरण है।’ हीगल ने अपनी पुस्तक ‘द फिलोसोफी ऑफ राइट्स’ में राज्य को मानवीय चेतना का विराट रूप कहा है। हीगल ने कहा कि राज्य चेतना की साकार प्रतिमा है। इसलिए राज्य का कानून वस्तुपरक चेतना का मूर्त रूप होता है। जो कोई कानून का पालन करता है, वही स्वतंत्र है। इस प्रकार हीगल ने निरंकुश राज्य का समर्थन करते हुए व्यक्ति को विरोध का अधिकार तक नहीं दिया। मुसोलिनी हीगल इसी विचार से प्रभावित था इसलिए हीगल को फासीवाद का आध्यात्मिक गुरु कहा जाता है।
जॉर्ज विल्हेल्म फ्रेडरिक हीगल (1770-1831) एक प्रमुख जर्मन दार्शनिक थे, जिन्होंने राज्य के सिद्धांत पर गहरा प्रभाव डाला। हीगल ने अपने प्रसिद्ध कथन ‘राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का पदक्षेप है’ के माध्यम से राज्य की महत्ता और उसकी दैवीय प्रकृति पर जोर दिया।
हीगल ने राज्य को ईश्वरीय इच्छा का प्रतिनिधि माना, जो मानव समाज में नैतिकता और व्यवस्था लाता है। उन्होंने राज्य को व्यक्तिगत इच्छाओं से ऊपर, सामूहिक चेतना का प्रतीक माना। हीगल के अनुसार, राज्य के कानूनों का पालन करना ही वास्तविक स्वतंत्रता है। उन्होंने राज्य को एक ऐसे आदर्श समाज के रूप में देखा जहाँ व्यक्तिगत और सामूहिक हित संतुलित होते हैं। हीगल ने राज्य को मानव इतिहास की प्रगति का चरम बिंदु माना।
हालांकि, हीगल के इस विचार की आलोचना भी हुई, क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित करता प्रतीत होता है और निरंकुश शासन को बढ़ावा दे सकता है। फिर भी, उनके विचारों का राजनीतिक दर्शन और आधुनिक राज्य की अवधारणा पर गहरा प्रभाव पड़ा।
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