टैगोर का विश्वास था कि ‘सकारात्मक स्वतंत्रता निहित है? (1) आत्म निर्धारण में (2) आत्म चैतन्यता में (3) आत्म बोध में (4) स्व चिंतन में

सही उत्तर है…

(2) आत्म चैतन्यता में

व्याख्या
टैगोर का विश्वास था कि सकारात्मक स्वतंत्रता आत्म चैतन्यता में निहित है। इस विचार की व्याख्या इस प्रकार है:

रवींद्रनाथ टैगोर स्वतंत्रता को केवल बाहरी बंधनों से मुक्ति के रूप में नहीं देखते थे। उनके लिए, वास्तविक स्वतंत्रता एक आंतरिक अवस्था थी जो आत्म चैतन्यता से प्राप्त होती है। आत्म चैतन्यता का अर्थ है अपने वास्तविक स्वरूप, अपनी क्षमताओं और अपने उद्देश्य के प्रति जागरूक होना।
टैगोर का मानना था कि जब व्यक्ति अपनी आंतरिक प्रकृति और क्षमताओं को पहचानता और विकसित करता है, तभी वह वास्तव में स्वतंत्र होता है। यह स्वतंत्रता सकारात्मक है क्योंकि यह केवल बंधनों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति और आत्म-विकास की सक्रिय अवस्था है।

उनका यह दृष्टिकोण शिक्षा, कला और समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण में भी परिलक्षित होता है। टैगोर ने शांतिनिकेतन में ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित की जो छात्रों की आत्म चैतन्यता को जागृत करने पर केंद्रित थी, ताकि वे अपनी वास्तविक क्षमताओं को पहचान सकें और उनका विकास कर सकें।

यह विचार आधुनिक समय में भी प्रासंगिक है, जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्म-विकास के विचार समाज और शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

 

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