दोनों बैल दढ़ियल व्यक्ति की कैद से कैसे मुक्त हुए? (दो बैलों की कथा)​

दोनों बैल दढ़ियल व्यक्ति से तब मुक्त हुए जब दढ़यिल मवेशी खाने से दोनों बैलों को नीलामी के माध्यम से खरीद कर अपने कसाईखाने की ओर ले जा रहा था।

जब दढ़ियल व्यक्ति जबरदस्ती दोनों बैलों को रस्सी से बांधकर कसाईखाने की तरफ ले जा रहा था, तभी दोनों बैलों को वह रास्ता जाना-पहचाना लगा, जिस रास्ते से वे लोग गुजर रहे थे।

रास्ते में एक कुआं पड़ा तो दोनों बैलोंं को याद आया कि यह वही कुआं है, जो उनके मालिक झूरी के घर के पास था।

वे लोग जब कुएं के पास गुजरे तो उन्हें कुआँ भी जाना पहचाना लगा, जहाँ वह पानी पीने आते थे।

उन्हें अपना अपने मालिक झूरी का घर भी दिखाई दिया। यह देखकर दोनों बैलों में हिम्मत जाग गई उन्होंने आपस में मूक भाषा में ही सलाह-मशविरा किया और फिर दोनों ने जोश में आकर जोर से झटक कर अपनी रस्सी दढ़ियल के हाथ से छुड़ा ली और अपने मालिक झूरी के घर की ओर आगे भागे।

झूरी दरवाजे पर धूप में बैठा हुआ था। दोनों बैलों को देखकर वह उनके पास आ गया और उन्हें प्यार से पुचकारने लगा।

वह दढ़ियल व्यक्ति भी दोनों बैलों के पीछे दौड़ता हुआ आया और दावा करने लगा कि उसने यह बैल मवेशीखाने से खरीदे हैं, लेकिन झूरी ने कहा यह मेरे बैल हैं और मेरी इजाजत के बिना तो तुम कहीं से भी नहीं खरीद सकते।

दोनों में कुछ देर बहस होने का बाद दढ़ियल व्यक्ति गुस्से में वहाँ से चला गया। इस तरह दोनों बैल दढ़ियल व्यक्ति की कैद के मुक्त हुए।

‘मुंशी प्रेमचंद’ द्वारा लिखी गई ‘दो बैलों की कथा’ कहानी पशु संवेदना पर आधारित कहानी है, जिसमें हीरा और मोती नामक दो बैल इस कहानी के मुख्य पात्र हैं। यह कहानी दो बैलों की आपसी मित्रता और अपने मालिक के प्रति उनके समर्पण को प्रस्तुत करती है।


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