परशुराम जी के क्रोधपूर्ण शब्दों के उत्तर में लक्ष्मण जी ने उनसे कहा कि उनका पराक्रम तो विश्व विख्यात है। फिर व्यंग्य करते हुए कहा कि आपने माता-पिता का ऋण चुका दिया और अब गुरु का ऋण चुकाने की सोच रहे हैं, जो आपके मन पर भारी बोझ है।
लक्ष्मण ने कटाक्ष किया कि इतने दिनों में ऋण पर ब्याज बहुत बढ़ गया होगा और सुझाव दिया कि किसी हिसाब करने वाले को बुला लें। उन्होंने यह भी कहा कि वे तुरंत थैली खोलकर ऋण चुका देंगे। लक्ष्मण के इन कटु वचनों से क्रुद्ध होकर परशुराम ने अपना फरसा उठाया और लक्ष्मण पर प्रहार करने दौड़ पड़े।
सभा में उपस्थित सभी लोग भयभीत होकर ‘हाय-हाय’ पुकारने लगे। इस पर भी लक्ष्मण ने कहा कि वे परशुराम को ब्राह्मण समझकर बार-बार बचा रहे हैं और उन्हें कभी वीर योद्धा नहीं मिले। लक्ष्मण के इन शब्दों को सुनकर सभा में उपस्थित लोग इसे अनुचित बताने लगे। अंततः, श्री राम ने आँखों के इशारे से लक्ष्मण को चुप रहने का संकेत दिया।
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