विश्वामित्र जी मन ही मन परशुराम का अज्ञानियों की तरह व्यवहार देखकर हँसने लगे क्योंकि..
वे समझ गए थे कि परशुराम राम और लक्ष्मण की वास्तविक शक्ति और महत्व से अनजान हैं। परशुराम अपनी पूर्व विजयों के कारण राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय समझ रहे थे। विश्वामित्र जानते थे कि ये दोनों बालक साधारण नहीं, बल्कि ‘लोहे की तलवार’ के समान मजबूत और शक्तिशाली हैं।
विश्वामित्र को लगा कि परशुराम राम-लक्ष्मण को ‘गन्ने के रस’ की तरह कमजोर समझ रहे हैं, जो गलत था। वे शायद यह भी समझ गए थे कि परशुराम को जल्द ही अपनी गलती का एहसास होगा। विश्वामित्र को इस स्थिति में एक प्रकार की विडंबना दिखी, जहां एक महान योद्धा दो युवा बालकों की शक्ति को समझने में असमर्थ था। विश्वामित्र का यह मौन हास्य उनकी गहरी अंतर्दृष्टि और स्थिति की समझ को दर्शाता है।
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