जब लक्ष्मण बार-बार समझाने पर भी नहीं मानते, तो परशुराम विश्वामित्र से निम्नलिखित बातें कहते हैं…
- वे लक्ष्मण को ‘कुबुद्धि’ और ‘कुटिल’ बताते हैं, जो उनकी निराशा को दर्शाता है।
- परशुराम कहते हैं कि लक्ष्मण ‘काल के वश में होकर’ अपने ही कुल का घातक बन रहा है, जो उनकी चिंता को प्रकट करता है।
- वे लक्ष्मण को ‘सूर्यवंशी बालक’ कहते हुए उसे ‘चंद्रमा पर लगे कलंक’ के समान बताते हैं, जो उनकी निराशा और क्रोध को दर्शाता है।
- परशुराम लक्ष्मण को ‘मूर्ख’, ‘उदंड’ और ‘निडर’ कहते हैं, जो उनकी दृष्टि में लक्ष्मण के व्यवहार की आलोचना है।
- वे विश्वामित्र को चेतावनी देते हैं कि अगर वे लक्ष्मण को नहीं रोकेंगे, तो वह ‘क्षणभर में काल का ग्रास’ हो जाएगा।
- अंत में, वे विश्वामित्र से कहते हैं कि अगर वे लक्ष्मण को बचाना चाहते हैं, तो उसे परशुराम के ‘प्रताप, बल और क्रोध’ के बारे में बताकर चुप करा दें।
यह संवाद परशुराम के क्रोध, निराशा और चिंता को प्रदर्शित करता है, साथ ही विश्वामित्र की मध्यस्थता की अपेक्षा भी करता है।