लक्ष्मण जी परशुराम के क्रोधित वचनों का प्रत्युत्तर देते हुए अत्यंत चतुराई और व्यंग्य का प्रयोग करते हैं…
- वे परशुराम की वीरता का मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि वे ‘फूँक से पहाड़ उड़ाना’ चाहते हैं।
- लक्ष्मण यह भी कहते हैं कि वे कोई ‘सीता फल’ (कुम्हड़े का छोटा फल) नहीं हैं जो परशुराम की तर्जनी उँगली देखकर ही मर जाएँगे।
- वे परशुराम के हथियारों (फरसा और धनुष-बाण) का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि इन्हें देखकर ही उन्होंने कुछ कहा था, जो उनकी निडरता दर्शाता है।
- लक्ष्मण यह भी कहते हैं कि वे एक क्षत्रिय होने के नाते ही परशुराम से इस तरह बात कर रहे हैं।
- अंत में, वे परशुराम के ब्राह्मण होने का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि वे अपने क्रोध को नियंत्रित कर रहे हैं।
इस प्रकार, लक्ष्मण अपने व्यंग्य के माध्यम से न केवल परशुराम की वीरता का मजाक उड़ाते हैं, बल्कि अपनी निडरता और क्षत्रिय धर्म का भी प्रदर्शन करते हैं।