किशन दा और यशोधर बाबू में गाढ़ी दोस्ती थी। दोनों अपनी जवानी की दिनों से ही गहरे दोस्त थे। यशोधर बाबू जब दिल्ली में नए-नए संघर्ष करने आए तो किशन दा ने हीं उन्हें शरण दी थी। वह किशन दा के साथ लंबे समय तक रहे। किशन दा अकेले रहते थे, उन्होंने विवाह नहीं किया इसलिए दोनों में बेहद गहरी दोस्ती हो गई थी। किशन द हमेशा यशोधर बाबू की किसी भी तरह की मदद करने के लिए तैयार रहते थे। उन्होंने यशोधर बाबू का बहुत साथ दिया। जब यशोधर बाबू किशन द के पास रहते थे तो वह सुबह देर से उठते थे, लेकिन किशनदा उन्हें सुबह-सुबह जल्दी उठा देते थे और कहते थे कि जल्दी सोना और जल्दी उठना अच्छी आदत है, यह हेल्थ के लिए अच्छा है।
जब यशोधर की शादी हो गई तो यशोधर बाबू अपने पत्नी आदि के साथ अलग क्वार्टर में रहने लगे थे, लेकिन किशन दा उनका साथ नहीं छोड़ा। वह सुबह-सुबह उनके क्वार्टर में आकर उन्हें जगा देते थे और उन्हें सैर के लिए ले जाया करते थे। अलग क्वार्टर में रहने के बावजूद किशन दा ने यशोधर बाबू को जल्दी जगाने की आदत नहीं छोड़ी और सुबह-सुबह उनके क्वार्टर पर आकर उन्हें उठाकर सैर कराने के लिए ले जाते थे। किशन दा यशोधर बाबू को भाऊ कहते थे और दोनों में बेहद आत्मयी संबंध थे, इसलिए किशन दा दिल्ली छोड़कर अपने गांव चले गए तो यशोधर बाबू सदैव उनको याद करते रहे। उन्होंने किशन दा के आदर्शों को पूरी तरह अपना किया था। उनके जीवन पर किशन द के आदर्शों की गहरी छाप पड़ी थी। किशन दा की मृत्यु के बाद भी यशोधर सदैव उनको याद करते रहे। इस तरह दोनों में गाढ़ी मित्रता थी।
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