यशोधर बाबू और उनके बच्चों के सोच-विचार और व्यवहार की तुलना की जाए जो हमें कुछ बिंदुओं पर दोनों का व्यवहार आधा सही और आधा गलत लगा तो कुछ बिंदुओं पर उनके बच्चों का व्यवहार गलत लगा।
पुरानी पीढ़ी अपने पुरानी सोच विचार के हिसाब से चलती है और नई पूरी अपने नए विचारों के हिसाब से जीना चाहती है। इस बिंदु पर अगर गौर किया जाए तो दोनों पीढ़ियां अर्थात यशोधर बाबू और उनके बच्चे अपनी अपनी जगह सही हैं। लेकिन अगर सामाजिक मूल्य और पारिवारिक मूल्यों को ध्यान में रखा जाए और उसकी कसौटी पर कसा जाए तो उनके यशोधर बाबू के बच्चे कुछ बिंदुओं पर गलत सिद्ध होते हैं।
यशोधर बाबू अगर अपनी सोच विचार के हिसाब से जीना चाहते हैं और फिजूलखर्ची उन्हें पसंद नहीं है तो इसमें वह गलत नहीं ।है वहीं उनकी नई पीढ़ी अपने नए विचारों और नए फैशन के हिसाब से जीना चाहती है तो वह भी गलत नहीं है। लेकिन पारिवारिक मूल्य और सामाजिक मूल्य का अपना अलग महत्व होता है। नए विचारों और नई सोच का मतलब यह नहीं होता कि पारिवारिक मूल्य और सामाजिक मूल्य बदल गए हैं।
पाश्चात्य संस्कृति और आधुनिकता का अनुकरण करने का मतलब यह नहीं होता कि हम अपने बुजुर्गों, अपने बड़े की भावनाओं का सम्मान करना छोड़ दें। यहाँ पर यशोधर बाबू के बच्चे गलत सिद्ध होते है। उन्हें अपने सामाजिक स्टेटस और दिखावे की अधिक चिंता है ना कि अपने पिता के भावनाओं की नही। इसी कारण उन्हें अपने पिता का साइकिल पर जाना अथवा बिना गाऊन पहने दूध लाने जाना पसंद नहीं है। यह उनके पारिवारिक मूल्यों के पतन को दर्शाता है।
माता-पिता का अपना महत्व होता है चाहे पीढ़ी का समय कितना भी बदल जाए। यशोधर बाबू को भी समय के अनुसार थोड़ा को बदलना चाहिए था और ये बात को स्वीकार करना चाहिए कि हर बार उनके अनुरूप नहीं हो सकती। कुल मिलाकर सभी बिंदुओं पर गौर किया जाए तो यशोधर बाबू के बच्चे अधिक गलत हैं।
संदर्भ पाठ
सिल्वर वेडिंग, लेखक – मनोहर श्याम जोशी (कक्षा-12 पाठ-1 हिंदी वितान)
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