इस प्रश्न का सही उत्तर है…
(2) सामाजिक संविदा
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व्याख्या
कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में राज्य की उत्पत्ति के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए। उनका सिद्धांत सामाजिक संविदा के विचार पर आधारित था।
इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु इस प्रकार थे…
1. प्राकृतिक अवस्था : कौटिल्य के अनुसार, राज्य की स्थापना से पहले समाज एक अराजक स्थिति में था, जिसे उन्होंने ‘मत्स्य न्याय’ कहा। इस अवस्था में बलवान लोग कमजोरों का शोषण करते थे, ठीक वैसे ही जैसे बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा जाती हैं।
2. सामाजिक समझौता : इस अराजकता और अन्याय से मुक्ति पाने के लिए, लोगों ने एक साथ आकर एक समझौता किया। उन्होंने अपने अधिकारों का एक हिस्सा एक शासक को सौंपने का फैसला किया, जो उनकी रक्षा करेगा और न्याय सुनिश्चित करेगा।
3. राजा का चुनाव : इस समझौते के तहत, लोगों ने मनु (प्रथम मानव) को अपना राजा चुना और उसे अपने ऊपर शासन करने का अधिकार दिया।
4. कर का भुगतान : बदले में, लोग राजा को कर देने के लिए सहमत हुए, जो राज्य के संचालन और सुरक्षा के लिए आवश्यक था।
5. राजा के कर्तव्य : राजा का प्राथमिक कर्तव्य अपनी प्रजा की रक्षा करना, न्याय प्रदान करना और समाज में व्यवस्था बनाए रखना था।
कौटिल्य का यह सिद्धांत न तो पूरी तरह से दैवीय है (जो राज्य को ईश्वर द्वारा स्थापित मानता है), न ही पितृसत्तात्मक (जो राज्य को परिवार के विस्तार के रूप में देखता है), और न ही केवल आर्थिक। यह एक समझौते पर आधारित है जो लोगों और शासक के बीच किया गया, जिसमें दोनों पक्षों के अधिकार और कर्तव्य निर्धारित किए गए।
यह सिद्धांत पश्चिमी राजनीतिक दर्शन में बाद में विकसित हुए सामाजिक संविदा सिद्धांतों (जैसे हॉब्स, लॉक और रूसो द्वारा) के समान है, जो इस बात को दर्शाता है कि कौटिल्य के विचार कितने प्रगतिशील और दूरदर्शी थे।