‘प्रविशेषण’ से तात्पर्य उन शब्दों से होता है, जो किसी विशेषण की विशेषता बताते हैं।
हम सभी जानते हैं कि हिंदी व्याकरण में ‘विशेषण’ उन शब्दों को कहा जाता है, जो संज्ञा शब्दों की विशेषता को प्रकट करते हैं, लेकिन कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जो इन विशेषणों की भी विशेषता प्रकट करते हैं। ये शब्द विशेषण से ठीक पहले लगते हैं और वह उसे विशेषण की विशेषता को बढ़ाकर पूरे संज्ञा शब्द की विशेषता को और अधिक विशिष्ट कर देते हैं।
प्रविशेषण प्रायः ‘बड़े’, ‘बहुत’, ‘अत्यंत’ जैसे शब्दों के रूप में बने होते हैं। ये प्रविशेषण ऐसे होते हैं कि ये विशेषण शब्द की मात्रा, परिमाण, संख्या अधिक रूप में उस विशेषण को का वजन बढ़ा देते हैं, और इससे पूरे संज्ञा शब्द की विशिष्टता भी बढ़ जाती है।
प्रविशेषण के उदाहरण
शिवाजी महाराज बहुत वीर योद्धा थे।
यहाँ पर -योद्धा- एक संज्ञा शब्द है, तो -वीर- विशेषण शब्द है। -वीर-, -योद्धा- शब्द की विशेषता को बता रहा है। अब -बहुत- शब्द यहाँ पर एक प्रविशेषण के रूप में कार्य कर रहा है, जो विशेषण द्वारा प्रकट की जाने वाले संज्ञा शब्द की विशेषता को और अधिक बढ़ा रहा है, यानि विशेषण की विशेषता को प्रकट कर रहा है।
प्रविशेषण के कोई भेद नही होते। कुछ शब्द प्रविशेषण का कार्य करते हैं।
प्रविशेषण के रूप में प्रयुक्त होने वाले शब्द
बहुत, बड़ा, अत्यन्त, निरा आदि।
इन प्रविशेषण का प्रयोग करके बने वाक्य
- वह बहुत सुंदर लड़की है।
- औरंगजेब बड़ा क्रूर शासक था।
- रामलाल जी अत्यन्त दयालु व्यक्ति हैं।
- राहुल निरा मूर्ख लड़का है।
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