अर्थशास्त्र में निसृष्टार्थ, परिमितार्थ और शासनाहार गुण हैं? (1) अमात्यों के (2) राजदूतों के (3) गुप्तचरों के (4) स्वामी के

सही उत्तर है…

(2) राजदूतों के

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व्याख्या

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में निसृष्टार्थ, परिमितार्थ और शासनाहार ये तीन गुण राजदूतों के लिए वर्णित किए गए हैं। ये गुण राजनयिक कार्यों को सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए आवश्यक माने जाते हैं। आइए इन तीनों गुणों को समझें…

1. निसृष्टार्थ :  राजदूतों के इस गुण वाली श्रेणी में राजदूत को सर्वोच्च अधिकार प्राप्त थे। वह राजा का प्रतिनिधि बनकर जाता था और वार्ता के आधार पर वहीं पर किसी निर्णय की घोषणा भी कर सकता था। यह गुण राजदूत की वह क्षमता होती थी, जिसके द्वारा वह अपने राजा के संदेश को दूसरे राजा के समक्ष सटीक और प्रभावी ढंग से प्रेषित करता था और किसी भी वाद-विवाद की स्थिति में वहीं पर निर्णय भी ले सकता था। राजा की तरफ से उसे पूर्णाधिकार प्राप्त थे।

2. परिमितार्थ : इस गुण वाले राजदूतों को निसृष्टार्थ राजदूतों की तुलना में कम और सीमित अधिकार प्राप्त थे। वह अपने शब्दों और कार्यों में संयम रखकर अपने राजा का संदेश दूसरे राजा तक पहुँचाता था। वह केवल उतना ही बोलता था, जितना आवश्यक होता और अपने राजा के हितों की रक्षा करते हुए भी दूसरे राज्य के साथ संबंधों की मर्यादा का भी ध्यान रखता था।

3. शासनाहार : इस गुण वाले राजदूत केवल संदेशवाहक का कार्य करते थे। उनका कार्य अपने राजा के संदेश को दूसरे राजा तक पहुँचाना ही होता था। वह अपनी सीमा से बाहर किसी निर्णन को लेने का अधिकारी नहीं था।

कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र ग्रंथ में इन गुणों को राजदूतों के लिए विशेष रूप से उल्लिखित किया है क्योंकि राजदूत राज्यों के बीच संबंधों के मुख्य माध्यम होते थे और उनकी भूमिका राज्य की सुरक्षा और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती थी।


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