सही उत्तर…
(2) मैत्री
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व्याख्या
‘मैत्री’ कौटिल्य की ‘षाड्गुण्य नीति’ का अंग नहीं है।
कौटिल्य की षाड्गुण्य नीति राजनीतिक रणनीति के छह गुणों या सिद्धांतों को संदर्भित करती है, जो उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में वर्णित हैं। आपके द्वारा प्रदान किए गए श्लोक इस नीति की पुष्टि करते हैं। षाड्गुण्य नीति के छह अंग हैं:
1. संधि (शांति या समझौता)
2. विग्रह (युद्ध)
3. आसन (तटस्थता)
4. यान (आक्रमण की तैयारी)
5. संश्रय (शक्तिशाली राजा की शरण लेना)
6. द्वैधीभाव (दोहरी नीति)
मैत्री (मित्रता) इस सूची में शामिल नहीं है, इसलिए यह षाड्गुण्य नीति का अंग नहीं है। हालांकि मैत्री एक महत्वपूर्ण राजनीतिक अवधारणा है, यह कौटिल्य की इस विशिष्ट नीति का हिस्सा नहीं है।
कौटिल्य की यह नीति प्राचीन भारतीय राजनीतिक और कूटनीतिक चिंतन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह नीति राजाओं को विभिन्न परिस्थितियों में उचित कार्रवाई करने का मार्गदर्शन प्रदान करती है, जिसमें शांति से लेकर युद्ध तक की स्थितियां शामिल हैं।
मैं फिर से अपने पूर्व गलत उत्तर के लिए खेद व्यक्त करता हूं और आपको इस महत्वपूर्ण सुधार के लिए धन्यवाद देता हूं।
कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में षाड्गुण्य का वर्नन इस प्रकार से किया गया है-
- षाड्गुण्यस्य प्रकृति-मण्डलं योनिः ।। ०७.१.०१ ।।
- संधि-विग्रह-आसन-यान-संश्रय-द्वैधीभावाः षाड्गुण्यम्” इत्याचार्याः ।। ०७.१.०२ ।।
- द्वैगुण्यम्” इति वात-व्याधिः ।। ०७.१.०३ ।।
- संधि-विग्रहाभ्यां हि षाड्गुण्यं सम्पद्यते” इति ।। ०७.१.०४ ।।
- षाड्गुण्यं एवएतदवस्था-भेदादिति कौटिल्यः ।। ०७.१.०५ ।।
- तत्र पण-बन्धः संधिः ।। ०७.१.०६ ।।
- अपकारो विग्रहः ।। ०७.१.०७ ।।
- उपेक्षणं आसनं ।। ०७.१.०८ ।।
- अभ्युच्चयो यानं ।। ०७.१.०९ ।।
- पर-अर्पणं संश्रयः ।। ०७.१.१० ।।
- संधि-विग्रह-उपादानं द्वैधीभावः ।। ०७.१.११ ।।
- इति षड्गुणाः ।। ०७.१.१२ ।।
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