‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ कविता में परशुराम के क्रोध और राम के शांत व्यवहार का विरोधाभास दो अलग-अलग दृष्टिकोणों को प्रदर्शित करता है। परशुराम का क्रोध उनके अहंकार और पूर्वाग्रहों से प्रेरित था, जहां वे शिव धनुष के टूटने को अपने सम्मान पर चोट के रूप में देख रहे थे। दूसरी ओर, राम का शांत व्यवहार उनकी परिपक्वता और विवेक को दर्शाता है।
राम ने स्थिति की नाजुकता को समझा और उसे कूटनीतिक ढंग से संभाला। उन्होंने परशुराम को ‘मुनिवर’ कहकर सम्मान दिया और अपने आप को उनका दास बताकर उनके क्रोध को शांत करने का प्रयास किया। यह विरोधाभास दिखाता है कि कैसे एक ही परिस्थिति में दो व्यक्ति अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दे सकते हैं।
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शिव धनुष टूटने पर परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए राम ने किस रणनीति का उपयोग किया?