‘आहवान’ कविता के अनुसार (A) मूर्ति के बिना साँचा नहीं बन सकता (B) साँचे के बिना मूर्ति नहीं बन सकती (C) साँचे के बिना लोग संघर्षशील नहीं हो सकते (D) साँचे के बिना सफलता नहीं मिल सकती

सही उत्तर होगा…

(B) साँचे के बिना मूर्ति नहीं बन सकती

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व्याख्या

‘आहवान’ कविता के अनुसार साँचे के बिना मूर्ति नहीं बन सकती।

मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘आहवान’ कविता में एक महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक संदेश छिपा है। कवि ने साँचे और मूर्ति के बीच के संबंध को मानव जीवन और उसके लक्ष्यों के साथ जोड़ा है। यहाँ साँचा एक आदर्श या लक्ष्य का प्रतीक है, जबकि मूर्ति उस लक्ष्य की प्राप्ति या सफलता का। कवि का कहना है कि जैसे साँचे के बिना मूर्ति नहीं बन सकती, वैसे ही जीवन में बिना किसी आदर्श या लक्ष्य के सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। बिना कर्म और परिश्रम के सफलता नहीं मिल सकती है। इस तरह इस कविता में कवि ने मनुष्य को अपने जीवन में एक स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करने और उसे प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहने को प्रेरित किया है। इस प्रकार, कविता में साँचे का अर्थ केवल एक भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि जीवन के कर्म और परिश्रम से है, जो व्यक्ति के विकास और सफलता के लिए आवश्यक है।


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