‘आह्वान’ कविता से ली गई पंक्ति “बैठे हुए हो व्यर्थ क्यों? आगे बढ़ो, ऊँचे चढ़ो” का क्या भाव है?

पंक्ति का भावार्थ

बैठे हुए हो व्यर्थ क्यों? आगे बढ़ो, ऊँचे चढ़ो

भाव : मैथिलीशरण गुप्त की ‘आह्वान’ कविता से ली गई पंक्ति “बैठे हुए हो व्यर्थ क्यों? आगे बढ़ो, ऊँचे चढ़ो” एक प्रेरक संदेश देती है। इसमें कवि लोगों को निष्क्रियता त्यागकर सक्रिय होने का आह्वान कर रहे हैं। वे पूछते हैं कि लोग व्यर्थ में क्यों बैठे हुए हैं। जो सीधे तौर पर लोगों की निष्क्रियता की ओर संकेत है।

‘आगे बढ़ो’ कहकर वे जीवन में प्रगति करने, नए लक्ष्य निर्धारित करने और उन्हें प्राप्त करने के लिए प्रयास करने का संदेश दे रहे हैं। ‘ऊँचे चढ़ो’ उत्कर्ष की ओर संकेत करता है, जो व्यक्ति को अपने जीवन में उच्च लक्ष्य निर्धारित करने और उन्हें प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। कवि लोगों को कर्म करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

यह पंक्ति पाठकों में आत्मविश्वास जगाती है और उन्हें अपनी क्षमताओं पर भरोसा करने के लिए प्रेरित करती है। साथ ही, यह राष्ट्रीय जागरण का भाव भी व्यक्त करती है, जो गुप्त जी की कविताओं की एक प्रमुख विशेषता है। इस प्रकार, यह पंक्ति व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर प्रगति, उत्साह और उन्नति का संदेश देती है, जो ‘आह्वान’ कविता के मूल भाव को सटीक रूप से प्रतिबिंबित करती है।


Related questions

सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ। धरती सब कागद करौं, तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ।। (भावार्थ बताएं)

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।। भावार्थ बताएं।

Related Questions

Comments

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Recent Questions