‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ कविता में विश्वामित्र की भूमिका एक मध्यस्थ और संतुलनकारी शक्ति के रूप में महत्वपूर्ण थी…
- ज्ञान का स्रोत : विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के गुरु थे, जो परिस्थिति की गंभीरता को समझते थे।
- शांतिदूत : परशुराम ने विश्वामित्र से लक्ष्मण को समझाने को कहा, जो उनकी मध्यस्थता की भूमिका को दर्शाता है।
- अंतर्दृष्टि : विश्वामित्र मन ही मन परशुराम के अज्ञान पर हँसे, जो उनकी गहरी समझ को प्रदर्शित करता है।
- निष्पक्षता : वे किसी पक्ष का खुलकर समर्थन नहीं करते, बल्कि स्थिति को संतुलित रखने का प्रयास करते हैं।
- रणनीतिक मौन : उनका मौन रहना भी एक रणनीति थी, जो राम और लक्ष्मण को स्थिति से निपटने का अवसर देता था।
विश्वामित्र की यह भूमिका संवाद को एक नया आयाम देती है, जहाँ वे एक बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्ति के रूप में स्थिति को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।