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निम्नलिखित वाक्यों में काल के भेद और उपभेद का नाम लिखें- (क) आदित्य ने संतरे खाए हैं। (ख) सुमित पढ़कर चला गया। (ग) शायद कल चाचा जी घर आएँ। (घ) यदि वर्षा होती तो खेत लहलहाते। (ङ) दीदी कहानी सुनाती है। (च) माली पौधे लगा रहा था। (छ) पायल विद्यालय जा रही है। (ज) तुम आओगे, तब मैं जाऊँगा। (झ) अभय मैदान में घूमता होगा। (ञ) लता ने गीत गाया होगा।

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दिए गए वाक्यों में काल के भेद और उपभेद के नाम इस प्रकार हैं..

(क) आदित्य ने संतरे खाए हैं।
काल का भेद – वर्तमान काल
उपभेद – पूर्ण वर्तमान काल

(ख) सुमित पढ़कर चला गया।
काल का भेद – भूतकाल
उपभेद – आसन्न भूतकाल

(ग) शायद कल चाचा जी घर आएँ।
काल का भेद – भविष्य काल
उपभेद – संभाव्य भविष्य काल

(घ) यदि वर्षा होती तो खेत लहलहाते।
काल का भेद – भूतकाल
उपभेद – हेतु-हेतुमद् भूतकाल

(ङ) दीदी कहानी सुनाती है।
काल का भेद – वर्तमान काल
उपभेद – सामान्य वर्तमान काल

(च) माली पौधे लगा रहा था।
काल का भेद – भूतकाल
उपभेद – अपूर्ण भूतकाल

(छ) पायल विद्यालय जा रही है।
काल का भेद – वर्तमान काल
उपभेद – अपूर्ण वर्तमान काल

(ज) तुम आओगे, तब मैं जाऊँगा।
काल का भेद – भविष्य काल
उपभेद – हेतु-हेतु मद भविष्य काल

(झ) अभय मैदान में घूमता होगा।
काल का भेद – वर्तमान काल
उपभेद – संदिग्ध वर्तमानन काल

(ञ) लता ने गीत गाया होगा।
काल का भेद – भूतकाल
उपभेद – संदिग्ध भूतकाल


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निम्निलिखित शब्दों का समास-विग्रह कीजिए। 1. ज़ेबखर्च 2, इडली-डोसा 3. देशनिकाला 4. हार-जीत 5. राष्ट्रपिता 6. देश-विदेश

‘सत्याग्रह’ का अर्थ है- (i) आंदोलन (ii) जुलूस (iii) सच का साथ देना (iv) अनशन ​

छात्रवृत्ति ना आने पर समाज कल्याण विभाग को पत्र कैसे लिखें?

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औपचारिक पत्र

छात्रवृत्ति न मिलने की शिकायत का पत्र

दिनाँक: 10.09.2023

 

सेवा में,
श्रीमान अध्यक्ष,
समाज कल्याण विभाग,
शिमला-171001

विषय : छात्रवृत्ति न मिलने के संबंध में।

 

आदरणीय महोदय,
पूरे सम्मान के साथ, इस पत्र के माध्यम से मैं यह कहना चाहता हूँ कि मैं सीनियर सेकेंडरी स्कूल, लालपानी, शिमला में कक्षा 11 पढ़ रहा हूँ। पिछले वर्ष मैंने मैट्रिक में 86 प्रतिशत अंक प्राप्त किये थे और सरकारी नियमों के अनुसार मुझे रु. 2500/- प्रति माह छात्रवृत्ति का एलान किया गया था।

महोदय, मैं बहुत गरीब परिवार से हूँ और मेरे पिता साइकिल की दुकान में काम करते हैं। उनकी आमदनी बहुत कम है। छात्रवृत्ति की इस राशि से, मुझे अपनी स्कूल फीस के साथ-साथ अपनी ट्यूशन फीस का भुगतान करना था, क्योंकि मैं राज्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूँ।

मुझे यह बताते हुए अत्यंत खेद हो रहा है कि आज तक मुझे आपके विभाग से एक रुपया भी प्राप्त नहीं हुआ है और मैंने आपके विभाग के संबंधित अधिकारियों के संज्ञान में भी लाया है, लेकिन अभी तक इस संबंध में कुछ भी नहीं किया गया है।
महोदय, मुझे आशा है कि आप उपरोक्त सभी तथ्यों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और मुझे इस सबसे खराब स्थिति से बाहर निकालने में मदद करेंगे। अगर अगले 15 दिनों में मैं अपनी फीस का भुगतान नहीं करूंगा, तो मेरा नाम मेरे स्कूल से काट दिया जाएगा।

अतः मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया इस मामले को व्यक्तिगत रूप से देखें और कृपया मेरी उक्त छात्रवृत्ति को जल्द से जल्द जारी करने की व्यवस्था करें ताकि मेरी पढ़ाई में बाधा न आए और मैं अपने लक्षित जीवन की ओर बढ़ सकूं। आपकी अति कृपा होगी।

धन्यवाद।

आपका विश्वासी,
अशोक कुमार
कक्षा 11,
अनुक्रमांक – 06
सीनियर सेकेंडरी स्कूल,
लालपानी, शिमला ।


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मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी को कॉलोनी में फैली गंदगी की शिकायत करते हुए पत्र लिखें।

बिजली की और नियमित आपूर्ति न होने की शिकायत करते हुए जयपुर विद्युत बोर्ड के अधिकारी को पत्र लिखें।

वीर कुंवर सिंह के दो गुण लिखिए।

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‘वीर कुंवर सिंह’ पाठ में वीर कुंवर सिंह के दो प्रमुख गुण इस प्रकार थे…

  1. वीर कुंवर सिंह बेहद वीर और स्वाभिमानी व्यक्ति थे, जिन्हें अपनी मातृभूमि की प्रतिष्ठा और गौरव का ख्याल था। वह सदैव अपनी मातृभूमि की प्रतिष्ठा के लिए लड़े।
  2. वीर कुंवर सिंह का दूसरा प्रमुख गुण ये था कि वह बेहद दयालु और विशाल हृदय वाले थे। वह सदैव दूसरों का सम्मान करते थे और उनके दिल में दूसरों के प्रति दया और उदारता की भावना थी। इसी कारण वह सभी के सम्मान के पात्र थे।
विशेष टिप्पणी

‘वीर कुंवर सिंह’ पाठ ठाकुर कुंवर सिंह की महिमा का गुणगान करता हुआ पाठ है। जिसमें वीर कुंवर सिंह की वीरता के बारे में बताया गया है। यही वीर कुंवर सिंह रानी लक्ष्मीबाई के साथ अंग्रेजों से मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़े थे।


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मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी को कॉलोनी में फैली गंदगी की शिकायत करते हुए पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र

दिनाँक : 23 सितंबर 2023

सेवा में.
मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी ,
नगर निगम,
शिमला-171001, हिमाचल प्रदेश,

विषय : कॉलोनी में फैली गंदगी के संबंध में

 

महोदय,

मैं खलिनी, शिमला की ग्रीन पार्क कॉलोनी का स्थायी निवासी हूँ। इस पत्र के माध्यम से मैं आपके संज्ञान में लाना चाहता हूँ कि पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में गंदगी बहुत फैल गयी है और कोई भी निगम का कर्मचारी यहाँ पर सफाई के लिए नहीं आता।

जैसा कि सभी को पता है कि इस बार बरसात बहुत हुई है और बरसात के कारण पेड़ों के पत्ते और डंगे से निकली मिट्टी सारी कॉलोनी में फैली हुई है। कॉलोनी की नालियाँ जाम हो गयी हैं और गंदा पानी नालियों में इकट्ठा हो गया है।  इस वजह से मक्खी और मच्छर की संख्या बहुत अधिक हो गई है। ये मक्खी-मच्छर बहुत सी बीमारियों का कारण बन सकते हैं । काफी समय से निगम का सफाई कर्मचारी भी नहीं आ रहा है इस कारण आस-पास के लोग भी कूड़ा कॉलोनी के बाहर खुले में ही फेंक कर चले जाते हैं।  इस वजह से हम कॉलोनी वासियों को का जीना दूभर हो गया है। कूड़े की बदबू के कारण वहाँ से गुजरना मुश्किल हो गया है।

एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं अपनी ज़िम्मेदारी समझता हूँ कि कॉलोनी इस विचारणीय दशा के बारे में आपको बताऊँ। गंदगी दूर करने के इस बाबत शीघ्र ही अगर कोई कदम नहीं उठाया गया तो हम सब को महामारी का सामना करना पड़ेगा।

इसलिए महोदय, आपसे निवेदन है कि आप हमारी कॉलोनी और इसके आस-पास के क्षेत्र की नियमित सफाई के लिए शीघ्र ही उचित प्रबंध करने की कृपा करें ताकि इस गंदगी से हम सब कॉलोनी वासियों को छुटकारा मिल सके।
सधन्यवाद ।

आपका विश्वासी,
सचिन कंवर
सेट न. 24,
ग्रीन पार्क कॉलोनी
खलिनी, शिमला- 171002
मोबाइल – 7018000000


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हिंदी पत्र लेखन

बिजली की नियमित आपूर्ति न होने के संबंध में शिकायत पत्र

दिनाँक : 9 मार्च 2024

 

सेवा में,
श्रीमान बिजली अधिकारी,
जयपुर बिजली बोर्ड,
जयपुर

विषय : बिजली नियमित आपूर्ति न होने के संंबंध में शिकायत

माननीय बिजली अधिकारी,

मेरा नाम सुभाष गहलोत है। मैं जयपुर के हनुमान नगर का निवासी हूँ। हमारी कॉलोनी में पिछले दिनों से बिजली की नियमित आपूर्ति बाधित है। बिजली अक्सर गायब रहती है। शाम के समय समय भी बिजली गायब हो जाती है। जब हमने कामकाजी लोग अपने दफ्तर से वापस घर लौटते हैं तो घर में अंधेरा पाते हैं, जिस कारण दिनभर के थके हुए हम लोगों को और अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। बिना बिजली के कारण हमारे बच्चों की पढ़ाई भी बाधित हो रही है।

इस संबंध में बिजली विभाग में कई बार शिकायत करने पर भी उचित कार्रवाई नहीं हुई और समस्या जीवन ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। हमारे आसपास की कॉलोनी में बिजली की ऐसी विकट समस्या नहीं है। वहाँ पर नियमित रूप से बिजली आ रही है। फिर हमारी कॉलोनी में ही बिजली की आपूर्ति अनियमित क्यों है?

मेरा आपसे अनुरोध है कि इस संबंध में जांच करके शीघ्र ही कार्रवाई करें और हमारे कानूनी की बिजली आपूर्ति को नियमित करने की कृपा करें ताकि हम सभी निवासियों का दैनिक जीवन सुविधाजनक हो।

आशा है आप इस संबंध में त्वरित कार्रवाई करेंगे

धन्यवाद

सुभाष गहलोत
A15 हनुमान नगर
जयपुर

 


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बैंक द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं और सेवाओं की पूछताछ करने के लिए बैंक अधिकारी को एक ईमेल लिखिए।

निम्निलिखित शब्दों का समास-विग्रह कीजिए। 1. ज़ेबखर्च 2, इडली-डोसा 3. देशनिकाला 4. हार-जीत 5. राष्ट्रपिता 6. देश-विदेश

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समास-विग्रह इस प्रकार होंगे…

1. ज़ेबखर्च : जेब के लिए खर्च
समास भेद : तत्पुरुष समास (सम्प्रदान तत्पुरुष)

2, इडली-डोसा : इडली और डोसा
समास भेद : द्वंद्व समास

3. देशनिकाला : देश से निकाला
समास भेद : तत्पुरुष समास (अपादान तत्पुरुष)

4. हार-जीत : हार और जीत
समास भेद : द्वंद्व समास

5. राष्ट्रपिता : राष्ट्र के पिता
समास भेद : तत्पुरुष समास (संबंध तत्पुरुष)

6. देश-विदेश : देश और विदेश
समास भेद : द्वंद्व समास

 

अतिरिक्त जानकारी
  1. पहले पद में तत्पुरुष समास होगा। यहाँ पर तत्पुरुष समास का संप्रदान तत्पुरुष उपभेद लागू होगा। तत्पुरुष समास में द्वितीय पद प्रधान होता है। इसके उपभेद संप्रदान तत्पुरुष में ‘के लिए’ योजक चिन्ह का लोप हो जाता है।
  2. दूसरे पद में द्वंद्व समास होगा। द्वंद समास में दोनों पद प्रधान होते हैं। यहाँ पर इडली और डोसा दोनों पद प्रधान हैं। इनका समासीकरण करते समय उनके बीच का योजक चिन्ह का लोप हो जाता है।
  3. तीसरे पद में तत्पुरुष समास होगा। यहाँ पर तत्पुरुष समास का अपादान तत्पुरुष समास उपभेद लागू होगा, क्योंकि अपादान तत्पुरुष समास में अलग होने का बोध होता है, जिसे ‘से’ योजक चिन्ह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यहाँ पर ‘देश से निकाला’ में ‘देश से अलग’ होने का बोध हो रहा है, इसलिए यहाँ पर अपादान तत्पुरुष समास होगा।
  4. चौथे पद में द्वंद्व समास होगा। द्वंद्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं। हार और जीत में दोनों पद प्रधान हैं।
  5. पाँचवें पद में तत्पुरुष तत्पुरुष समास होगा। यहाँ पर तत्पुरुष समास का ‘संबंध तत्पुरुष’ उपभेद लागू होगा। संबंध तत्पुरुष में संबंध दर्शाया जाता है, जिन्हें ‘के’ योजक चिन्ह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यहाँ पर राष्ट्र का संबंध पिता के साथ प्रदर्शित किया गया है।
  6. देश और विदेश में द्वंद समास होगा। द्वंद समास में दोनों पद प्रधान होते हैं और देश और विदेश में भी दोनों पद प्रधान हैं।

 


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‘मन’ से बने कुछ सामासिक शब्द और उनका भेद बताएं।

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मन से बने कुछ सामासिक शब्द

मनोबल : मन का बल
समास भेद : तत्पुरुष समास

तन-मन : तन और मन
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मन-मस्तिष्क : मन और मस्तिष्क
समास भेद : द्वंद्व समास

मनभावन : जो मन को भावन (अच्छा) लगे
समास भेद : कर्मधारण्य समास

मनमाना : मन की मानना
समास भेद : तत्पुरुष समास

 

अतिरिक्त जानकारी..

समास के छः भेद होते हैं।

  • अव्ययीभाव समास
  • तत्पुरुष समास
  • कर्मधारण्य समास
  • बहुव्रीहि समास
  • द्वंद्व समास
  • द्विगु समास

 


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‘स्थितोस्ति’ शब्द का संधि-विच्छेद

स्थितोस्ति : स्थितः + अस्ति

संधि भेद : विसर्ग संधि

 

संधि का नियम :

‘स्थितोस्ति’ में विसर्ग संधि है। ‘विसर्ग संधि’ के नियम के अनुसार जब  विसर्ग हो विसर्ग से ‘त’ वर्ण पहले और बाद में ‘अ’ स्वर हो तो वह विसर्ग ‘ओ’ बन जाता है। यहाँ पर भी यही नियम लागू हो रहा है। पहले शब्द में विसर्ग (:) से पहले ‘त’ वर्ण है, और दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण एक स्वर ‘अ’ है। इसलिए विसर्ग का लोप होकर वह ‘ओ’ बन गया है।

अन्य उदाहरण..

मनः + अनुकूल : मनोनुकूल

 

 


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चक्षुर्दानम् संधि विच्छेद क्या होगा?

यदि हम पशु-पक्षी होते तो? (हिंदी में निबंध) (Essay on Hindi​)

हिंदी निबंध

यदि हम पशु-पक्षी होते तो?

यदि हम पशु-पक्षी होते तो हमारा जीवन वैसा नहीं होता जैसा जीवन मनुष्यों का होता है। पशु-पक्षी और मनुष्यों में मुख्य अंतर बुद्धि और बोली का है। भगवान ने सोचने समझने की विचार शक्ति और बोलने के लिए वाणी केवल मनुष्य को ही दी है। यदि हम पशु पक्षी होते तो हम अपने मन के भाव और विचार को शब्दों और भाषा के माध्यम से नहीं कर पाते। यदि हम पशु पक्षी होते तो फिर चारों तरफ जंगल ही होता। मनुष्यों की तरह सभ्य समाज विकसित नहीं होता।

यदि हम पशु-पक्षी होते तो पेड़ों पर उछलते-कूदते, नदी में गोते लगाते, नीले आसमान में उड़ते। हम पशु-पक्षियों वाले वह सारे कार्य करते जो पशु और पक्षी करते हैं।

यदि हम पशु होते तो जंगलों में मुक्त भाव से विचरण करते। जिधर हमारी मर्जी होती उधर चले जाते। जब मर्जी होती तब खाना खाते। नदी में स्नान करते। पहाड़ों पर चढ़ते मैदाने में दौड़ लगाते।

यदि हम पक्षी होते तो स्वच्छंद भाव से आकाश में उड़ते, अपने पंखों से विशाल आकाश को नापने की कोशिश करते। पशु-पक्षी होने के कारण हमें यह सब करने को तो मिलता लेकिन हम वह कार्य नहीं कर पाते जो मनुष्य करते हैं। ना तो हम किताबें पढ़ पाते, ना तो हम टीवी देख पाते, ना हम मोबाइल चला पाते। ना ही हम त्यौहार आदि मना पाते, ना ही हम रंग-बिरंगे कपड़े पहन पाते। भोजन को पकाने की कला भी मनुष्यों को ही आती है। जो सारे कार्य हम मनुष्य के रूप में करते हैं, वह पशु पक्षी बनकर नहीं कर पाते।

यदि हम पशु-पक्षी होते तो हमारा जीवन भी पशु पक्षियों जैसा ही होता। तब हमारे अंदर इतनी विचार शक्ति नहीं होती जो कि मनुष्य में होती है।

हालांकि मनुष्य ने पर्यावरण के साथ खिलवाड़ बहुत अधिक किया है। हम पशु पक्षी होते तो शायद पर्यावरण के साथ इतना खिलवाड़ नहीं करते। पशु-पक्षी होने पर हम प्रकृति और पर्यावरण के साथ सामंजस्य बिठाकर अपने जीवन व्यतीत करते। पशु-पक्षी प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान को नहीं पहुँचाते। जबकि मनुष्यों को पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचाया है।

इसलिए पशु पक्षी होने में हमारा लाभ भी होता और बहुत से कार्य करने से वंचित भी रह जाते जो आजकल के मनुष्य करते हैं।

 


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पेड़ों की चीत्कारने से आप क्या समझते हैं?

नूतन किसलय सीताजी को कैसे दिखाई देते है?

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‘नूतन किसलय सीता जी को अग्नि के समान दिखाई देते हैं, क्योंकि सीता जी विरह की अग्नि में जल रही हैं।

जब रावण सीता जी का हरण करके ले गया और उन्हें लंका में अशोक वाटिका में कैद कर लिया तो प्रभु श्रीराम से विरह की अग्नि से सीता जी पीड़ित हो गईं। श्रीराम से विरह (बिछड़ना) को वह सहन नही कर पा रही थीं। विरह से बड़ा कोई रोग होता इसी कारण  उन्हें नूतन किसलय यानी वाटिका के पौधों के नए-नए कोमल पत्ते भी अग्नि के समान दिखाई दे रहे थे।

रामचरितमानस के लंका कांड की इस चौपाई में तुलसीदास कहते हैं…

नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता॥6॥

अर्थात सीता जी वाटिका के पौधों के नए-नए कोमल पत्तों को देखकर कह रही हैं कि तेरे यह नए-नए कोमल पत्ते भी मुझे अग्नि के समान दिखाई दे रहे हैं। इस विरह का रोग का अंत मत कर अर्थात इस विरह के रोग को और अधिक ना बढ़ा। उधर हनुमान जी सीता जी को इस तरफ विरह से परम व्याकुल देखकर द्रवित हो जाते हैं और वह क्षण हनुमान जी को एक युग के समान बीतता हुआ लग रहा है।


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काट अन्ध-उर के बन्धन-स्तर वहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर, कलुष-भेद तम-हर, प्रकाश भर जगमग जग कर दे! इन पंक्तियों का भावार्थ बताएं।

जैसलमेर जिले के एक गाँव ‘खड़ेरो की ढाणी’ को लोग किस नाम से जानते थे ?

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जैसलमेर जिले के एक गाँव ‘खड़ेरो की ढाणी’ को ‘छह बीसी’ के नाम से भी जाना जाता है।

‘खड़ेरो की ढाणी’ नामक गाँव को छह बीसी के नाम से जाना जाने का मुख्य कारण यहाँ पर पाई जाने वाली 120 कुइयों का पाया जाना है।

जैसलमेर जिले के खड़ेरो की ढाणी गाँव में 120 कुइयां पाई जाती हैं। इसी कारण इस क्षेत्र के लोग गाँव को छह-बीसी (छ गुणा बीसी) के नाम से भी जानते हैं। इन कुइयों को राजस्थान में कहीं-कहीं पर ‘पार’ भी कहा जाता है।

जैसलमेर और बाड़मेर के गाँव में इन कुइयों यानी पार का बड़ा ही महत्व है और इन कुइयों के कारण ही वहां पर आबादी है क्योंकि इससे उनकी पानी की जरूरते पूरी होती हैं।

इन कुइयों का महत्व इतना है कि राजस्थान जैसलमेर-बाड़मेर के अधिकतर गाँव का नाम भी पार पर ही है, जैसे जानरे आलो पार सिगरु आलो पार आदि।

‘राजस्थान की रजत बूँदे’ पाठ जिसके लेखक अनुपम मिश्र हैं, उस पाठ में लेखक ने राजस्थान में मरू प्रदेश में पानी के महत्व को बताया है। कुइयां राजस्थान की वह छोटे-छोटे कुएं होते हैं, जो राजस्थान में जगह-जगह पाए जाते हैं। राजस्थान जैसे मरुस्थल प्रदेश में इन कुइयों का बड़ा ही महत्व है। इन कुइयों में मीठा जल पाया जाता है। इन कुइयों का व्यास बहुत ही संकरा होता है। बेहद पतली और संकरी होने के कारण ही इन्हें कुइयां कहा जाता है।


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‘अनोखी हड्डी’ पाठ के आधार पर राजा उदयगिरि की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए।

सूरदास ने कृष्ण की किस रूप में भक्ति की है?

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सूरदास ने कृष्ण की बाल रूप की भक्ति अधिक की है।

सूरदास ने अपने अधिकतर पदों के माध्यम से कृष्ण के बाल रूप का चित्रण किया है। सूरदास ने जितने भी पद रचे हैं, उनमें अधिकतर पद कृष्ण के बालरूप का चित्रण करते हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का अद्भुत चित्रण किया है। श्री कृष्ण वृंदावन गोकुल में अपना जो बचपन बिताया, उनके बचपन के सभी प्रसंगों का वर्णन सूरदास ने अपने पदों के माध्यम से किया है।

सूरदास के पदों में वात्सल्य रस, श्रृंगार रस और शांत रस का अद्भुत संयोजन मिलता है। उनके पदों में माता यशोदा और श्री कृष्ण के बीच के प्रसंगों से वात्सल्य रस की अद्भुत अभिव्यक्ति प्रकट होती हैं। वहीं श्रीकृष्ण की गोपियो के साथ लीलाओं के माध्यम से उन्होंने श्रंगार रस को दर्शाया है। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों की भक्ति तथा स्वयं श्रीकृष्ण के प्रति सुदामा तथा अन्य लोगों के भक्तिभाव से शांत रस का दर्शाया है। सूरदास ने अपने अधिकतर पदों के माध्यम से श्री कृष्ण के बाल रूप का सुंदर चित्रण किया है।


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‘दाह जग-जीवन को हरने वाली भावना’ क्या होती है ? ​

कोरोना काल के बाद स्कूल खुलने पर माँ और बेटे के बीच हुए संवाद को लिखिए।

संवाद

कोरोना के बाद स्कूल खुलने को लेकर माँ और बेटे के बीच संवाद

 

माँ : बेटा, तुम्हें तो पता है कि अब तुम्हारे स्कूल खुल गए हैं ।

बेटा : हाँ माँ, मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि अब मैं अपने दोस्तों के साथ खेल सकूँगा ।

माँ : बेटा, खु़शी की बात है कि तुम स्कूल जा रहे हो पर तुम्हें अभी भी करोना से बचाव के नियमों का पालन करना होगा ।

बेटा : माँ, कौन से नियमों का पालन करना होगा ? अब तो करोना खत्म हो गया है ।

माँ : बेटा, नहीं अभी करोना पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है । जब तक दवाई नहीं तब तक कोई ढिलाई नहीं ।

बेटा : माँ, कौन से नियमों का पालन करना होगा ?

माँ : तुम्हें सभी से उचित दूरी बनाकर रखनी होगी, हर समय मास्क लगाकर रखना होगा, तुम्हें घर से बाहर होने पर सैनिटाइज़र का प्रयोग करना होगा ।

बेटा : माँ, मैं सभी नियमों का पालन करूंगा ।

माँ : जब हम सब लोग इन नियमों का कड़ाई से पालन करेंगे तभी इस बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकेगा ।

 


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नवरात्रि के उपलक्ष में गरबा खेलने जाने वाले मित्रों के बीच संवाद लिखिए ?

नवरात्रि के उपलक्ष में गरबा खेलने जाने वाले मित्रों के बीच संवाद लिखिए ?

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नवरात्रि के उपलक्ष्य में गरबा खेलने जाने वाले मित्रों के बीच संवाद

 

गणेश :‌ – कैसे हो गोपाल ? तुम्हें नवरात्रि मुबारक हो ।

गोपाल :- मैं ठीक हूँ, तुम्हे भी नवरात्रि मुबारक हो ।

गणेश :– गोपाल, आज तुम इतना बन-ठन कर कहाँ जा रहे हो? क्या तुम भी आज राधा के घर गरबा खेलने जा रहे हो ?

गोपाल :- बिल्कुल सही कहा तुमने, मुझे गरबा खेलना बहुत पसन्द है।

गणेश :– तो फिर चलो साथ में चलते हैं , क्योंकि मुझे भी गरबा खेलना पसन्द है ।

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गोपाल :- हाँ, नवरात्रि धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है ।

गणेश :- हाँ गोपाल तुमने बिल्कुल सही कहा। मेरी दादी माँ ने कहती है कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन नौ दिनों में माँ दुर्गा धरती पर आती है । उनके आने की खुशी में इन दिनों को देशभर में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है ।

 


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दुनिया में भुखमरी और कुपोषण के विषय में दो डॉक्टरों के मध्य संवाद लिखें।

हिंदी संवाद लेखन

दुनिया में भुखमरी और कुपोषण के विषय में दो डॉक्टरों के मध्य संवाद

 

डॉक्टर श्याम :- कैसे हैं आप डॉक्टर राम ?

डॉक्टर राम :- बस ठीक हूँ ।

डॉक्टर श्याम :- डॉक्टर राम, आप कुछ परेशान लग रहे हैं क्या बात है ?

डॉक्टर राम :- आपने ठीक कहा । मेरी परेशानी का कारण है, हमारे देश में कुपोषण और भुखमरी की समस्या ।

डॉक्टर श्याम :- आपने सही कहा । विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में कुपोषण की समस्या विकराल है । इसका प्रमुख कारण है गरीबी । धन के अभाव में गरीब लोग पौष्टिक भोजन, दूध, घी, फल इत्यादि नहीं खरीद पाते हैं ।

डॉक्टर राम :- बिल्कुल ठीक, भुखमरी का मतलब है खाने की बिल्कुल कमी, भुखमरी क़े कारण ही कुपोषण होता है। इसका एक प्रमुख कारण है देश में मौजूद अशिक्षा और ग़रीबी। जल्दी ही भुखमरी की समस्या से सारे विश्व को राहत मिले यही कामना है।

डॉक्टर श्याम :- हाँ, दुनिया के हर नागरिक को भरपेट भोजन मिलने का पूरा अधिकार है। मेरे विचार में विकसित देशों के इस मामले मे पहल करनी चाहिए। जो सक्षम देश हैं, वह आगे आकर गरीब देशों में व्याप्त भुखमरी की समस्या को खत्म करने में काफी योगदान दे सकते हैं।

डॉक्टर राम :- हाँ ऐसा होना चाहिए।

 


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आपके किसी पसंदीदा खिलाड़ी से आपके बीच हुई बातचीत को संवाद के रुप में लिखिए।​

‘पेड़ों के चीत्कारने’ से आप क्या समझते हैं?

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पेड़ों के चीत्कारने से आशय पेड़ों की दुख भरी आवाज से है। चीत्कार का अर्थ है, चीख-पुकार यानि दुख भरी आवाज। वह आवाज जिसमें दुख हो, कष्ट हो, उसे चीत्कार कहते हैं। जब किसी को कोई कष्ट होता है, कोई दुख होता है, तो उसके मुँह से जो चीख निकलती है, जो आवाज निकलती है, वह चीत्कार कहलाती है।

यहाँ पर पेड़ों के चीत्कारने से आशय पेड़ों की उस दुख भरी आवाज से है, जो उन कुल्हाड़ी और लकड़ी काटने वाली मशीनों को देखकर उत्पन्न हुई है, जो उन पेड़ों का अस्तित्व नष्ट कर देना चाहती हैं।

मानव अपने लोभ के कारण अथवा विकास के नाम पर पेड़ों को अंधाधुंध काट रहा है, पेड़ों को नष्ट कर रहा है। वह कुल्हाड़ी से या मशीन से पेड़ों को काटता है और उनके अस्तित्व को नष्ट कर देता है। इस कारण पेड़ चीत्कार उठते हैं। जब वह कुल्हाड़ी देखते हैं तो उनके अंदर से एक चीत्कार उत्पन्न होती है।

आमतौर पर चीत्कार में आवाज होती है, वह लोगों को सुनाई देती है, लेकिन पेड़ों की चीत्कार मौन है, क्योंकि पेड़ आवाज के माध्यम से अपनी व्यथा को व्यक्त नहीं कर सकते, इसलिए जो उनकी चीत्कार है, वह आवाज के रूप में भले ही सुनाई नहीं देती हो, लेकिन उसे अनुभव किया जा सकता है।

पेड़ों की इस चीत्कार को सुनने के लिए संवेदनाए होनी आवश्यक है। पर्यावरण के प्रति प्रेम होना आवश्यक है, तभी हम पेड़ों की इस चीत्कार को सुन सकते हैं। ‘बूढ़ी पृथ्वी का दुख’ पाठ में पेड़ों की इसी चीत्कार का वर्णन किया गया है।

‘बूढ़ी पृथ्वी का दुख’ निर्मला पुतुल द्वारा रची गई एक कविता है, जिसमें उन्होंने बूढ़ी पृथ्वी के अनेक दुखों को प्रकट किया है। कवयित्री के अनुसार पृथ्वी पर बसने वाला मानव पृथ्वी के साथ निरंतर खिलवाड़ कर रहा है और उसके संसाधनों को नष्ट कर रहा है। पेड़ भी इसी बूढ़ी पृथ्वी के ही अनमोल संसाधन है। बूढ़ी पृथ्वी निरंतर अपने नष्ट होते संसाधनों को देखकर दुखी है।


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‘प्रकृति अपना रंग-रूप बदलती रहती है।’ इसका आशय है- (i) मौसम बदलते रहते हैं (iii) पृथ्वी परिक्रमा कर रही है। (ii) परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है। (iv) जलवायु सुहानी हो रही है।​

काट अन्ध-उर के बन्धन-स्तर वहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर, कलुष-भेद तम-हर, प्रकाश भर जगमग जग कर दे! इन पंक्तियों का भावार्थ बताएं।

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काट अन्ध-उर के बन्धन-स्तर
वहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर,
कलुष-भेद तम-हर, प्रकाश भर
जगमग जग कर दे!

संदर्भ : ये पंक्तिया महाकवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित ‘वर दे वीणा-वादिनी वर दे’ नामक कविता की पंक्तियां हैं। इन पंक्तियों और पूरी कविता में कवि निराला जी ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की वंदना की है और उनसे सभी की अज्ञानता के अंधकार को दूर करने की प्रार्थना की है।

भावार्थ : महाकवि निराला कहते हैं कि हे माँ सरस्वती! हे वीणा वादिनी! आप हम सभी अज्ञानियों को अज्ञानता के बंधन से मुक्त कर दो और हमारी अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर हमारे अंदर ज्ञान के प्रकाश को भर दो। हमारे अंदर जितने भी दोष, पाप, अहंकार, अज्ञानता आदि है, तुम उन्हें अपने प्रकाश के तेज से नष्ट कर दो और अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से पूरे संसार को आलोकित कर दो।

पूरी कविता इस प्रकार है…

वर दे, वीणावादिनि वर दे!
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे!

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
        जगमग जग कर दे!

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
        नव पर, नव स्वर दे!

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

पूरी कविता का भावार्थ

भावार्थ : कवि निराला कहते हैं कि है वीणादायिनी माँ सरस्वती! आप हमें अज्ञानता के बंधनों से मुक्त कर दो और हमारे अंदर  व्याप्ता अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश आलोकित कर दो। आप हमें ऐसा वर प्रदान करो जिससे हमारे भारत देश के सभी नागरिकों में स्वतंत्रता की भावना उत्पन्न हो, वह परतंत्रता के बंधनों से मुक्त हों।

हे वीणावादिनी माँ सरस्वती! आप हम सभी भारतवासियों के अंधकार को दूर करो और हमारे हृदय में ज्ञान का प्रकाश भर दोय़ हमारे अंदर जितने भी क्लेश रूपी दोष और अज्ञानता है। उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दो। हमारे केवल हमारे हृदय को ही नहीं बल्कि इस पूरे संसार को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित कर दो।

कवि निराला कहते हैं कि हे माँ सरस्वती! हम सभी भारतवासियों की निरंतर उन्नति हो, हम नए उत्साह से भरें। हमारे जीवन में नए गीतों का आगमन हो। हम मुक्त कंठ होकर अपने जीवन के राग को गाएं। हम अपने जीवन को नई गति प्रदान करें। हम अपने जीवन  नवीन स्वर और बादलों के समान गंभीर स्वरूप पाएं। हम नए नवेले आकाश में स्वतंत्र और स्वच्छंद भाव से चहचहाते हुए पक्षियों की भांति उड़ें हमें ऐसे नए पंख प्रदान करो।

टिप्पणी : यहाँ पर कवि का आकाश में उड़ने से तात्पर्य जीवन रूपी आकाश में अपने जीवन को जीने की कला से है।


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‘अनोखी हड्डी’ पाठ के आधार पर राजा उदयगिरि की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए।

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‘अनोखी हड्डी’ पाठ में राजा उदयगिरि एक प्रतापी और पराक्रमी राजा बताएं गए हैं। उनके राज्य में चारों तरफ वैभव ही वैभव था। उनकी चारित्रिक विशेषताएं इस प्रकार हैं…

  • राजा उदयगिरि एक पराक्रमी और प्रतापी राजा थे।
  • अनेक राज्यों को जीतने के कारण वह महाराजधिराज बन चुके थे।
  • राजा को अपने राज्य के विस्तार करने का बड़ा ही शौक था। राज्य को निरंतर बढ़ाते रहने का उनका लोभ बढ़ता ही जा रहा था।
  • उन्हें शिकार का भी शौक था और वह प्राकृतिक सौंदर्य के बेहद प्रशंसक थे। इसी कारण उन्हें एक सुंदर प्रदेश पसंद आ गया और वह उसे अपने अधिकार में लेना चाहते थे।
  • राजा उदयगिरि जिस बात का निश्चय कर लेते थे उसे हासिल कर लेते थे।
  • उदयगिरि एक दानी राजा भी थे इसीलिए में वृद्ध व्यक्ति उसकी मांग के अनुसार दान देने के लिए राजी हो गए।
  • इसके अलावा राजा उदयगिरि में विवेकशीलता का भी गुण था। इसी कारण वृद्ध व्यक्ति के द्वारा द्वारा इशारों-इशारों में समझाई गई बात को वह समझ गए और उन्होंने सच्चाई को स्वीकार कर युद्ध को बंद कर दिया।

इस तरह ‘अनोखी हड्डी’ पाठ में राजा उदयगिरि का चरित्र एक पराक्रमी राजा होने के साथ-साथ सत्ता विस्तार के प्रति आकर्षण रखने वाले राजा का था। उनके अंदर दानशीलता और विवेकशीलता जैसे गुण भी थे।


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‘अनोखी हड्डी’ पाठ का सारांश लिखिए।

‘अनोखी हड्डी’ पाठ का सारांश लिखिए।

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‘अनोखी हड्डी’ कहानी भीष्म साहनी द्वारा लिखित एक प्रेरणादायक कहानी है, जो हमें यह सिखलाती है कि कामनाओं का कोई अंत नहीं है। जितनी हम अपनी कामना को पूरा करने की चेष्टा करेंगे। हमारी कामनाएं उतनी ही अधिक बढ़ती जाएंगी।

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार है। अपने शक्ति के अहंकार में आकर मनुष्य अपने विवेक को खो बैठता है और अहंकार में मद में चूर होकर अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगता है। अंत में जब उसे ठोकर लगती है, तब उसे अकल आती है। यदि वह समय रहते नहीं समझेगा तो उसका यही अहंकार उसे लेट डूबेगा।

‘अनोखी हड्डी’ पाठ का सारांश

सारांश

अनोखी हड्डी पाठ में उदयगिरि नमक के एक प्रतापी राजा की कहानी है। जिसने युद्ध में अनेक राज्यों को जीता था फिर भी सत्ता के प्रति उसका लालच बढ़ता ही गया। एक दिन एक सुंदर प्रदेश को देखकर राजा ने उसे प्रदेश पर अपना अधिकार जमाने के लिए आक्रमण कर दिया। उसे सुंदर प्रदेश के निर्दोष निवासी मारे जाने लगे और उनके खून से प्रदेश की भूमि रंग गई।

एक दिन राजा के युद्ध के बीच में राजा से मिलने एक बूढ़ा व्यक्ति आया। उस बूढ़े व्यक्ति ने राजा उदयगिरि से कुछ दान मांगने की इच्छा प्रकट की। राजा द्वारा दान की स्वीकृति देने पर बूढ़े व्यक्ति ने एक हड्डी देते हुए कहा कि इस हड्डी के वजन के बराबर सोना उसे दान दे दें। राजा ने जब हड्डी को तोलकर स्वर्ण मुद्राएं देनी चाही। तो हड्डी का वजन स्वर्ण मुद्राओं से ज्यादा निकला। राजा तराजू में जितनी भी स्वर्ण मुद्राएं डालता। हड्डी का वजन हमेशा ज्यादा निकलता। ढेर सारी स्वर्ण मुद्राएं डालने के बावजूद तराजू के पलड़े में हड्डी भारी रही।

राजा आश्चर्यचकित रह गया। बूढ़े व्यक्ति से कारण पूछने पर बूढ़े व्यक्ति ने बताया कि यह कामनाओं की हड्डी है। कामनाओं की हड्डी की भूख कभी शांत नहीं होती। जितनी कामनाओं की पूर्ति होगी उतनी ही अधिक कामनाएं बढ़ती जाएंगी। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह आपकी अधिक से अधिक राज्यों को जीतने की कामना बढ़ती ही जा रही है।

राजा को बात समझ में आ गई थी। बूढ़े व्यक्ति की बात के पीछे छिपे अर्थ को समझ कर राजा को अपने लालच पर पछतावा हुआ। उसने उसे छोटे से प्रदेश पर अधिकार जमाने का इरादा त्याग दिया और अपनी सेना को वापस लेकर अपने राज्य को लौट गया।

कहानी का विस्तृत वर्णन

बहुत समय पहले स्वर्ण देश नामक राज्य में महाराज उदयगिरि का शासन था। वह बहुत प्रतापी राजा थे और उन्होंने अपने विजय की पताका फहराकर बहुत से राज्यों को युद्ध में हराकर उन्हें जीतआ। इस तरह 50 वर्ष की आयु तक पहुंचने-पहुँचते वे महाराजाधिराज हो गए थे। उन्हें उन्होंने बड़े-बड़े विशाल राज्यों को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था।

एक बार जब है जंगल में शिकार करने गए तो रास्ता भटक गए और अपने साथियों से बिछड़ गए। रास्ता भटकते भटकते वह एक विशालकाय पर्वत के सामने जा पहुंचे। उस सुंदर से पर्वत की तलहटी में एक सुंदर शांत झील थी। चारों तरफ सुंदर प्राकृतिक वातावरण था। इतने अद्भुत सौंदर्य को देखकर महाराजा उदयगिरि मंत्र मुग्ध हो गए। तभी उनके साथी ढूंढते हुए उनके पास आ पहुंचे। महाराज उदयगिरि ने कहा कि मेरे राज्य में इतना सुंदर प्रदेश भी है, यह मुझे आज तक नहीं मालूम था। तब महाराज के मंत्री ने बताया कि महाराज यह प्रदेश आपकी सीमा में नहीं आता बल्कि जहाँ से यह प्रदेश शुरू होता है, वहाँ आपके राज्य की सीमा समाप्त हो जाती है। तब उदयगिरि ने कहा कि ऐसा सुंदर प्रदेश मेरे राज्य में नहीं है, यह अचंभे वाली बात है। मैं कल से ही इस प्रदेश पर जीतने के लिए चढ़ाई करता हूँ। इस तरह की घोषणा करके अगले दिन ही महाराज ने उसे सुंदर प्रदेश पर चढ़ाई कर दी और वहां के निवासियों पर आक्रमण कर दिया।

धीरे-धीरे उदयगिरि के सैनिक कुछ छोटे से प्रदेश पर अपना कब्जा जमाने लगे। उसे प्रदेश के निर्दोष निवासी निरंतर मारे जा रहे थे। उनके खून से वही सुंदर झील लाल हो रही थी, जिस झील में उसे प्रदेश के निवासी कभी मछुआरे बनाकर मछलियां पकड़ते थे, जो उनके लिए जीवनदायिनी थी।

एक दिन महाराज अपने युद्ध के शिविर में बैठे थे। तभी एक बूढ़ा आदमी उनसे मिलने आया और उनसे दान लेने की इच्छा प्रकट की। बूढ़े आदमी ने कहा कि मेरे पास एक छोटी सी हड्डी है, आप इस हड्डी के वजन के बराबर सोना मुझे दान दे देते हो तो आपकी बड़ी कृपा होगी। महाराज उदयगिरि राजी हो गए और उन्होंने तराजू में हड्डी को तोलकर उसके वजन के बराबर स्वर्ण मुद्रा देने का आदेश दिया। लेकिन जैसे ही तराजू में हड्डी रखकर स्वर्ण मुद्राएं तोली जाती, हड्डी हमेशा भारी निकलती। राजा ने अपने सैनिकों को आदेश देकर अधिक से अधिक स्वर्ण मुद्राएं तराजू में डाली, लेकिन वह हमेशा हड्डी के वजन से हल्की निकली।

अब राजा आश्चर्यचकित हो गए कि यह छोटी सी हड्डी इतनी सारी स्वर्ण मुद्राओं से भारी कैसे हैं। अब उन्हें बेहद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। उन्होंने बूढ़े आदमी की मांग के अनुसार दान नही दे पा रहे। हड्डी इतने बजनी होने का कारण पूछने पर बूढ़े आदमी ने बताया कि यह हड्डी कामनाओं की हड्डी है। इसमें कामनाओं का वजन है, जो हमेशा बढ़ता ही जाता है। इस कामना की हड्डी की भूख को जितना शांत करोगे, उसकी भूख उतनी ही बढ़ती जाएगी। इसीलिए आपकी स्वर्ण मुद्राएं भी इस कामना की हड्डी के वजन को पूरा नहीं कर सकती।

अब राजा को सारी बात समझ में आ गई थी। उन्हें समझ में आ गया था कि बूढ़े व्यक्ति ने उनकी सत्ता लोलुपता पर कटाक्ष करने के लिए ही हड्डी का सहारा लिया था। उन्हें अपने किए पर शर्मिंदगी हो रही होने लगी। उन्होंने अगले दिन ही उस छोटे से प्रदेश से अपनी सेनाएं वापस लौटने का हुक्म दिया और अगले दिन ही राजा सहित उस प्रदेश से वापस लौट गए।

निष्कर्ष

इस कहानी में हमें बहुत अधिक लालच ना करने की सीख मिलती है। बहुत अधिक लालच हमें सदैव पतन की ओर ले जाता है।


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‘अनोखी हड्डी’ पाठ के आधार पर राजा उदयगिरि के चारित्रिक विशेषताएं लिखिए।

कोयला खान से निकलता है, कारक बतायें।

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कोयला खान से निकलता है, इसमें कारक भेद इस प्रकार होगा।

वाक्य : कोयला खान से निकलता है।

कारक भेद : अपादान कारक

स्पष्टीकरण :

‘कोयला खान से निकलता है।’ इस वाक्य में ‘अपादान कारक’ इसलिए होगा, क्योंकि वाक्य के माध्यम से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से अलग होने का बोध हो रहा है। उपरोक्त वाक्य में  ‘कोयला’ ‘खान’ से अलग हो रहा है, इसलिए यहां पर ‘अपादान कारक’ होगा।

अपादान कारक

‘अपादान कारक’ की परिभाषा के अनुसार किसी संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु के दूसरी वस्तु से अलग होने का बोध होता हो, वहाँ पर ‘अपादान कारक’ होता है।

जैसे…

  • गंगा गंगोत्री से निकलती है।
  • बच्चा पेड़ से गिर पड़ा।
  • राजू घर से बाहर निकला।
  • वृक्ष से पत्ते झड़ने लगे।
कारक की परिभाषा

हिंदी व्याकरण में कारक परसर्ग चिन्हों को कहते हैं, जिनके माध्यम से संज्ञा या सर्वनाम का वाक्य के अनुसार शब्दों के साथ संबंध का बोध होता है।

हिंदी व्याकरण में कारक आठ प्रकार के होते हैं।

  • कर्ता कारक
  • कर्म कारक
  • करण कारक
  • अधिकरण कारक
  • अपादान कारक
  • संप्रदान कारक
  • संबंध कारक
  • संबोधन कारक

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गौरव स्कूटी से गिर पड़ा कारक के भेद बताइए।

कबीर ने गुरू और गोविंद मे किसे श्रेष्ठ कहा है और क्यों?

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कबीर ने गुरु और गोविंद में से गुरु को श्रेष्ठ कहा है, क्योंकि कबीर के अनुसार गुरु ही वह व्यक्ति होते हैं, जो उन्हें गोविंद यानी भगवान तक पहुंचने का रास्ता बताते हैं। इसी कारण कबीर ने गुरु और गोविंद दोनों में से गुरु को श्रेष्ठ कहा है।

कबीर अपने दोहे के माध्यम से कहते हैं,

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पायं।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताये

अर्थात मेरे सामने गुरु और भगवान दोनों खड़े हैं। अब मैं उलझन की स्थिति में हूंँ कि मैं किस को पहले प्रणाम करूं। फिर मैं अपने गुरु को प्रणाम करता हूं क्योंकि मेरी दृष्टि में गुरु भगवान से भी बड़े हैं, क्योंकि मैंने तो भगवान को कभी नहीं देखा नहीं। मैं भगवान को नही जानता था। भगवान को जानने और समझने की क्षमता और मार्ग मुझे गुरु ने ही दिखाया। गुरु की कृपा के कारण मैं भगवान के दर्शन कर सका और उन्हें समझ सका। इसलिए मैं पहले गुरु को प्रणाम करूंगा। इस तरह कबीर गुरु और गोविंद दोनों में गुरु को श्रेष्ठ मानते हैं।

कबीर

कबीर मध्यकालीन भारत के एक श्रेष्ठ कवि थे। जिन्होंने अपने नीतिपरक दोहों के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों और बुराइयों पर कड़ा प्रहार किया है और लोगों को अनेक नैतिक शिक्षा प्रदान की है। वे भक्ति धारा की भक्ति काल की निर्गुण विचारधारा के कवि थे।


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कबीर, गुरु नानक और मीराबाई तीनों इक्कीसवीं शताब्दी में भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि कबीर, गुरु नानक देव पर मीराबाई ने अपने भजन, पदों, दोहों आदि के माध्यम से जो ज्ञान की बातों का प्रचार-प्रसार किया, वह सभी बातें समय के दायरे के बंधन से परे हैं। इन सभी संत-विद्वानों द्वारा कही गईं नैतिक बातें हर काल-समय में प्रासंगिक होती हैं। इन संतों-कवियों के वचन, उपदेश, काव्य रचनाएं आदि मानव जाति के कल्याण के लिए होती थीं। मानव जाति का कल्याण हर युग में आवश्यक है।

इन संत कवियों की रचनाओं में नैतिकता की बातें होती थी, जो कि हर युग में प्रासंगिक होती हैं। आज की इक्सीसवीं सदी में कबीर, गुरु नानकदेव, और मीराबाई के वचन, उपदेश और काव्य और अधिक प्रासंगिक हैं, क्योंकि आज नैतिक मूल्यों का निरंतर पतन होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में इन संत कवियों के वचन, उपदेश, दोहे आदि मानव जाति को अनैतिकता की राह पर चलने से रोक सकते हैं और उनका सही मार्गदर्शन कर सकते हैं। इसीलिए कबीर, गुरु नानकदेव और मीराबाई तीनों आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने अपने युग में थे, बल्कि आज के समय ये सभी संत कवि और भी अधिक प्रासंगिक है।

 


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गौरव स्कूटी से गिर पड़ा कारक के भेद बताइए।

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गौरव स्कूटी से गिर पड़ा। इसमें कारक भेद इस प्रकार होगा :

वाक्य : गौरव स्कूटी से गिर पड़ा।

कारक भेद : अपादान कारक

स्पष्टीकरण :

गौरव स्कूटी से गिर पड़ा।’ इस वाक्य में ‘अपादान कारक’ इसलिए होगा, क्योंकि वाक्य के माध्यम से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से अलग होने का बोध हो रहा है। उपरोक्त वाक्य में  ‘गौरव’ ‘स्कूटर’ से गिर कर अलग हो रहा है, इसलिए यहां पर ‘अपादान कारक’ होगा।

अपादान कारक :

अपादान कारक’ की परिभाषा के अनुसार किसी संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु के दूसरी वस्तु से अलग होने का बोध होता हो, वहाँ पर अपादान कारक’ होता है।

  • कोयला खान से निकलता है।
  • साँप अपने बिल से बाहर निकला।
  • नल से पानी गिरने लगा।
  • गेंद लगते ही खिड़की का शीशा टूट कर गिर पड़ा।
कारक की परिभाषा :

हिंदी व्याकरण में कारक उन परसर्ग चिन्हों को कहते हैं, जिनके माध्यम से मुख्य संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का वाक्य के शब्दों के साथ संबंध का बोध होता है।

हिंदी व्याकरण में कारक आठ प्रकार के होते हैं।

  • कर्ता कारक
  • कर्म कारक
  • करण कारक
  • अधिकरण कारक
  • अपादान कारक
  • संप्रदान कारक
  • संबंध कारक
  • संबोधन कारक

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खाद्य पदार्थों में होने वाली मिलावट के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं पर संवाद लेखन दो मित्रों के बीच।

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संवाद लेखन

खाद्य पदार्थों में होने वाली मिलावट का संवाद

 

मित्र 1 : रोहन , क्या हुए बहुत दिनों से खेलने नहीं आ रहे हो ?

मित्र 2 : मोहित , मैं बीमार हो गया था।

मित्र 1 : क्या हुआ था ?

मित्र 2 : मैंने राखी वाले दिन मिठाइयाँ खाई थीं, उनके कारण मैं बीमार हो गया। मुझे ऐसा लगता है कि आज के समय में दुकानदार खाद्य पदार्थों में मिलावट कर रहे हैं।  इससे सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

मित्र 1 : सही कह रहे हो , आज कल हर खाद्य पदार्थ में मिलावट आ रही है।

मित्र 2 : देखा जाए तो दालें पॉलिश की हुई होती है। सब्जियां इंजेक्शन, दवाइयों से तैयार की जाती है। मिठाइयों में मिलावट करके बनाते है।

मित्र 1 : अब पहले की तरह शुद्ध कुछ भी नहीं रहा है, सब कुछ मिलावटी बन गया है।

मित्र 2 : अब हर चीज़ में फ्लेवर डाल देते है।

मित्र 1 : व्यापार को बढ़ाने के लिए, हम सब के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है।

मित्र 2 : हमें मिलावटी पदार्थो से सावधान रहते हुए जागरूक बनना होगा और अपना ध्यान खुद रखना पड़ेगा, तभी हम इन मिलावटी पदार्थों के नुकसान से बच सकते है।

मित्र 1 : हाँ, सही कह रहे हो।

 


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आपके किसी पसंदीदा खिलाड़ी से आपके बीच हुई बातचीत को संवाद के रुप में लिखिए।​

कवि रसखान पत्थर के रूप में किस का अंश बनना चाहते हैं?

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कवि रसखान पत्थर के रूप में गोकुल में गोवर्धन पर्वत का अंश बनना चाहते हैं।

 

विस्तृत वर्णन

कवि रसखान श्री कृष्ण की भक्ति से ओतप्रोत हैं। वह श्री कृष्ण के प्रति अपने अनन्य भक्ति भाव की धारा में बहकर कहते हैं कि यदि मुझे अगला जन्म मिले तो मैं अगला जन्म गोवर्धन पर्वत का अंश बन कर जन्म लूं ताकि मैं उस पवित्र गोवर्धन पर्वत को स्पर्श कर सकूं, जिसे भगवान श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठाया था।

कवि रसखान श्रीकृष्ण की भक्ति की धारा में बहकर कई रूपों में जन्म लेना चाहते हैं। वह कहते हैं कि यदि मुझे मनुष्य का जन्म मिले तो मैं ग्वाल गोकुल के ग्वाले के रूप में जन्म लूं ताकि मैं उसी क्षेत्र की गायों को चराते हुए कृष्ण की उस पवित्र भूमि का अनुभव कर सकूं। यदि पशु के रूप में मिले तो वह गाय के रूप में अपना जीवन गोकुल में बिताना चाहते हैं। पक्षी के रूप में वह कदम्ब के पेड़ पर निवास करना चाहते हैं, जिस कदम्ब के नीचे भगवान श्रीकृष्ण अपनी लीलाएं रचते थे। इस तरह रसखान कृष्ण भक्ति की धारा में बेहतर अलग-अलग रूपों में गोकुल में जन्म लेना चाहते हैं ताकि वे श्री कृष्ण को निकट से अनुभव कर सकें।


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भारतीय इतिहास में दूसरा परशुराम कौन थे?

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भारतीय इतिहास में ‘महापद्मनंद’ को ‘दूसरा परशुराम’ के नाम से जाना जाता है।

विस्तार से वर्णन

‘महापद्मनंद’ एक शौर्यवान और यशस्वी राजा थे। उन्होंने नंद वंश की स्थापना की थी। अपने क्रोध और साहस एवं शौर्य के कारण उन्हें ‘दूसरा परशुराम’ कहा जाता था। उनके उग्र स्वभाव के कारण उन्हें ‘उग्रसेन’ भी कहा जाता था। इसके अलावा उन्हें ‘महापद्म एकरात’ तथा ‘सर्व क्षत्रान्तक’ आदि की उपाधि भी मिली थी, क्योंकि उन्होंने कई बार क्षत्रियों को परास्त किया और उनका नाश किया। इसी कारण उन्हें दूसरा परशुराम कहा जाने लगा।

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चक्षुर्दानम् संधि विच्छेद क्या होगा?

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विसर्ग संधि :

दिए गए शब्द में विसर्ग संधि है। विसर्ग संधि वहां पर लागू होती है। जब विसर्ग के साथ स्वर्ण या व्यंजन आता हो, तो ऐसी स्थिति में विसर्ग संधि का नियम लागू होता है। दिए गए शब्दों में जब संधि विच्छेद करते हैं तो प्रथम शब्द में विसर्ग है और उसके तुरंत बाद द्वितीय शब्द का प्रथम अक्षर एक व्यंजन है। इस तरह विसर्ग और व्यंजन का मेल बनाकर विसर्ग संधि लागू हो रही है।

विसर्ग संधि के 10 नियम होते हैं, यहाँ पर विसर्ग संधि का वह नियम लागू हो रहा है, जिसमें विसर्ग के बाद आने वाले व्यंजन ‘द’ है तो विसर्ग ‘र’ या ‘र्’ बन जाता है।

संधि क्या है?

संधि से तात्पर्य दो शब्दों के मेल से बने नए शब्द से है। संधि की प्रक्रिया में प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण और द्वितीय शब्द का प्रथम वर्ण का मेल होकर उनमें परिवर्तन होता है और नया शब्द बनता है।

संधि के तीन भेद होते हैं..

  • स्वर संधि
  • व्यंजन संधि
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बैंक द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं और सेवाओं की पूछताछ करने के लिए बैंक अधिकारी को एक ईमेल लिखिए।

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हिंदी ईमेल लेखन

 

To: themanager@gomatinagarbranch.sbi.com

from: mahesh.prajapti13@gmail.com

Subject: बैंक द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं और सेवाओं के संबंध में पूछताछ

 

माननीय प्रबंधक महोदय,

मेरा नाम महेश प्रजापति है। मैं स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की लखनऊ की गोमती नगर ब्रांच में बचत खाता खोलने का इच्छुक हूँ। इसी संबंध में मैं खाता संबंधी कुछ जानकारी चाहता हूँ। मुझे बैंक में बजट खाता खोलने के लिए न्यूनतम कितनी राशि जमा करनी होगी? मुझे अपने बचत खाते पर कितनी कितना प्रतिशत ब्याज मिलेगा? मैं अपने बचत खाते में अधिकतम कितनी राशि रख सकता हूँ। मुझे बचत खाते के साथ एटीएम की सुविधा मिलेगी? क्या मैं संयुक्त रूप से बचत खाता खोलना चाहूं तो खोल सकता हूँ। मुझे बचत खाता खोलने के लिए कौन से दस्तावेज देने होंगे? कृपया इन सभी शंकाओं का निवारण करें ताकि मैं आवश्यक प्रबंध करके आपके बैंक में बचत खाता खोल सकूं।
धन्यवाद

निवेदक,

महेश प्रजापति,
Email – mahesh.prajapati13@gmail.com

 


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‘सत्याग्रह’ का अर्थ है…

(iii) सच का साथ देना

 

विस्तार से…

‘सत्याग्रह’ का सही अर्थ होता है, ‘सच का साथ देना’।

सत्याग्रह शब्द का संधि-विच्छेद किया जाए तो यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, सत्य का आग्रह है।

सत्याग्रह अर्थात सत्य का आग्रह करना। अर्थात सच का साथ देना, जो सत्य है उसी के प्रति निष्ठा रखना और उसके साथ खड़ा रहना। इसीलिए सत्याग्रह का अर्थ है सच का साथ देना है।

विशेष टिप्पणी

सत्याग्रह शब्द प्रचलन में लाने का श्रेय महात्मा गाँधी को जाता है, जिन्होंने अपने अहिंसात्मक आंदोलनों, अनशन आदि के लिए सत्याग्रह शब्द का प्रयोग किया था। गाँधी जी अंग्रेजों के खिलाफ जब भी अनशन करते थे, वह इसे सत्याग्रह का नाम देते थे। वह हमेशा सच के साथ खड़े होते थे। उसके बाद से सत्याग्रह शब्द बेहद प्रचलन में आया। भारतीय स्वाधीनता के समय गाँधी जी ने सत्याग्रह का खूब उपयोग किया।

आंदोलन, जुलूस और अनशन इन शब्दों का सत्याग्रह से सीधा संबंध तो नहीं है, लेकिन सत्याग्रह जिस संदर्भ में किया जाता है। इस संदर्भ से संबंधित यह तीनों शब्द हैं। सत्याग्रह एक तरह का अहिंसात्मक और सत्य के समर्थन में किया जाने वाला अनशन है। यह अनशन रूप में भी हो सकता है अथवा आंदोलन के रूप में भी हो सकता है और जुलूस के रूप में भी हो सकता है।

इसीलिए आंदोलन जुलूस और अनशन, सत्याग्रह शब्द के ही एक सत्याग्रह शब्द से जुड़ सकते हैं और उसी का एक भाग है, लेकिन सत्याग्रह का वास्तविक और सबसे उपयुक्त अर्थ सच का साथ देना ही है।

 


संबंधित प्रश्न

‘प्रकृति अपना रंग-रूप बदलती रहती है।’ इसका आशय है- (i) मौसम बदलते रहते हैं (iii) पृथ्वी परिक्रमा कर रही है। (ii) परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है। (iv) जलवायु सुहानी हो रही है।​

‘प्रकृति अपना रंग-रूप बदलती रहती है।’ इसका आशय है- (i) मौसम बदलते रहते हैं (iii) पृथ्वी परिक्रमा कर रही है। (ii) परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है। (iv) जलवायु सुहानी हो रही है।​

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प्रकृति अपना रंग-रूप बदलती रहती है, इसका आशय है…

(ii) परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है।

 

विस्तार से…

प्रकृति अपना रंग रूप बदलती रहती है, इसका आशय यह है कि परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है अर्थात प्रकृति निरंतर परिवर्तित होती रहती है। प्रकृति कभी भी स्थाई स्वरूप में नहीं रहती, उसमें निरंतर थोड़ा बहुत परिवर्तन होता रहता है, यही प्रकृति का मूल स्वभाव है।

प्रकृति समय के अनुसार स्वयं को बदलती रहती है। प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के अनेक कारण होते हैं। कुछ मानवीय कारण है तो कुछ स्वाभाविक कारण है।

मानवीय चेष्टाओं जैसे मानव द्वारा प्रकृति के साथ निरंतर की जाने वाली छेड़खानी के कारण भी प्रकृति पर असर पड़ता है और प्रकृति को अपने स्वरूप को बचाए रखने के लिए उसमें परिवर्तन करने पड़ते हैं। मनुष्य ने प्रकृति के साथ निरंतर खिलवाड़ किया है। उसने जंगलों को काटा है। मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है। आधुनिकता और विकास के नाम पर अत्यधिक प्रदूषण उत्पन्न किया है। इन सब का के कारण प्रकृति में निरंतर बदलाव परिवर्तन आ रहे हैं, यह मानव जनित प्राकृतिक परिवर्तन हैं।

इसके अलावा कुछ प्राकृतिक परिवर्तन नियमित और स्वाभाविक परिवर्तन हैं जो प्रकृति में सदियों से चले आ रहे हैं। इसलिए प्रकृति अपना रंग-रूप बदलती रहती है इसका आशय है कि परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है।

 


संबंधित प्रश्न…

‘दाह जग-जीवन को हरने वाली भावना’ क्या होती है ? ​

न्यायालय से बाहर निकलते समय वंशीधर को कौन-सा खेदजनक विचित्र अनुभव हुआ?

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न्यायालय से बाहर निकलते समय वंशीधर को यह खेदजनक विचित्र अनुभव हुआ कि इस दुनिया में न्याय और विद्वता की बात करने वाले, लंबी-चौड़ी उपाधियां धारण करने वाले, बड़ी-बड़ी दाढ़ियां रखने वाले और ढीले-ढीले चोग पहनने वाले यह सारे न्यायविद सच्चे आदर के पात्र नहीं है।

इसका मुख्य कारण यह था क्योंकि वंशीधर ने अपने कर्तव्य का निर्वहन किया था। उन्होंने पूरी तरह ईमानदारी पर चलते हुए एक भ्रष्ट व्यापारी पंडित अलोपदीन को पकड़ा और उन्हें न्यायालय में प्रस्तुत किया। पंडित अलाउद्दीन ने उन्हें रिश्वत देने की कोशिश की लेकिन उन्होंने रिश्वत नहीं स्वीकारी। उन्होंने सच्चाई और ईमानदारी का मार्ग अपनाया।

उन्हें आशा थी कि न्यायालय में उनके कर्तव्यनिष्ठा सराहना होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ न्यायालय के न्यायविद भी पंडित अलोपदीन की रिश्वत के प्रलोभन और प्रभाव के आगे झुक गए और उन्होंने पंडित अलोपदीन को सजा देने की जगह वशीधर को ही सजा दे दी। अर्थात एक ईमानदार अधिकारी को उसकी ईमानदारी की सजा दी गई।

यदि वंशीधर इस मुकदमे में सफल होते और पंडित अलोपदीन को सजा मिलती तो अब वह अपना सीना अकड़कर करते हुए चलते लेकिन ऐसा ना हो सका। अब उल्टे उन्हे ही अपमानित होना पड़ा इसलिए न्याययलय से बाहर निकलते समय वंशीधर को ये विचित्र खेदजनक अनुभव हो रहा था। उनके मन में न्यायविदों के लिए अब आदर-सम्मान नही रह गया था।

टिप्पणी

‘नमक का दरोगा’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानी है, जिसमें उन्होंने एक कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार दरोगा वंशीधर की कर्तव्य निष्ठा का वर्णन किया है।

दरोगा वंशीधर पुलिस महकमे में दरोगा था। उसने एक बार एक धनी व्यापारी पंडित अलोपदीन के अवैध नमक को पकड़ लिया। पंडित अलोपदीन ने रिश्वत देने की कोशिश की। लेकिन वंशीधर ने कर्तव्य और ईमानदारी का पालन किया औरअलोपदीन को गिरफ्तार न्यायालय में प्रस्तुत किया।  न्यायालय के न्यायाधीश पंडित अलोपदीन के धन और बाहुबल के प्रभाव तथा रिश्वत के प्रलोभन में आ गए और उन्होंनेदरोगा बंशीधर की सराहना करने की जगह वंशीधर को ही खरीखोटी सुनाई और अलोपदीन को दोषमुक्त कर दिया।


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‘दाह जग-जीवन को हरने वाली भावना’ क्या होती है ? ​

प्रधानाचार्य को शुल्क मुक्ति हेतु प्रार्थना पत्र​ लिखें।

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हिंदी पत्र लेखन

प्रधानाचार्य को शुल्क मुक्ति का प्रार्थना पत्र

दिनाँक : 03 मार्च 2024

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य,
महात्मा गाँधी जनता विद्यालय,
सरिता विहार, दिल्ली

 

विषय : शुल्क मुक्ति हेतु अनुरोथ

 

आदरणीय प्रधानाचार्य सर,

प्रार्थी का नाम विनोद कुमार श्रीवास्तव है। प्रार्थी कक्षा 9-ब का छात्र है। सविनय निवेदन इस प्रकार है कि प्रार्थी के पिता एक सामान्य फेरी का व्यवसाय करते हैं। इस कारण प्रार्थी की आर्थिक स्थिति अच्छी नही है। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण प्रार्थी अपने विद्यालय का शुल्क भर सकने में असमर्थ है। प्रार्थी का अनुरोध है कि प्रार्थी की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रार्थी का विद्यालय शुल्क माफ किया जाए ताकि प्रार्थी निश्चिंत होकर अपनी पढ़ाई को जारी रख सके। आपकी बड़ी कृपा होगी।

धन्यवाद,

प्रार्थी,

विनोद कुमार श्रीवास्तव
कक्षा – 9ब,
अनुक्रमांक – 47
महात्मा गाँधी जनता विद्यालय

 

 


ये भी जानें…

दिल्ली से हरियाणा के बीच यात्रा के दौरान बस कंडक्टर ने दुर्व्यवहार किया। इसकी शिकायत करने हेतु दिल्ली परिवहन निगम के मुख्य प्रबंधक को पत्र लिखें।

‘दाह जग-जीवन को हरने वाली भावना’ क्या होती है ? ​

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‘दाह जग-जीवन को हरने वाली भावना’ का अर्थ है कि भारत एक ऐसा देश है, जहाँ संसार के मानचित्र पर भारत का भले ही एक भौगोलिक स्वरूप है, लेकिन भारत केवल भूमि पर बस बने हुए एक टुकड़े भर का नाम नहीं है, बल्कि यह मन में स्थापित होने वाली एक भावना है। भारतवासियों की भावना ऐसी है जो इस संसार और जीवन के सभी दुखों को आत्मसात करने वाली भावना है। यह समस्त जग की विषमताओं को हर लेने वाली भावना है। यहां पर भारत भूमि में जीवन के आदर्श मिलते हैं, यहाँ पर किसी तरह का भ्रम नहीं है, बल्कि यहां पर त्याग और निष्काम सेवा की भावना मिलती है।

भारत भूमि समस्त संसार के समस्त कष्टों और दुखों को भरने वाली भावना से ओतप्रोत भूमि है। इसी कारण यहाँ पर संसार के कल्याणार्थ अनेक महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने परमार्थ के हेतु त्याग और बलिदान का जीवन जिया।

‘भारत का संदेश’ नामक कविता रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखी गई कविता है। इस कविता के माध्यम से दिनकर जी ने भारत देश की खूबसूरती का वर्णन किया है। उन्होंने भारत को केवल भूमि पर बसा हुआ एक भौगोलिक स्वरूप ही नहीं माना बल्कि यह संस्कृति और परंपरा से भरी हुई एक देव भूमि के समान है। यहाँ पर केवल उपजाऊ मैदान, हरी घटियां, नदियां, पर्वत, पहाड़ ही नहीं बल्कि चरित्र, संस्कृति और परंपराओं की विरासत भी मौजूद है।

छुट्टियां में पढ़ाई करना जरूरी है तो छुट्टियां दी ही क्यों जाती है? इस विषय में आप क्या सोचते हैं​?

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विचार/अभिमत

 

हमारे विचार से छुट्टियों में की जाने वाली पढ़ाई और स्कूल खुले होने के समय की जाने वाली पढ़ाई में अंतर है। जब विद्यालय में गर्मी या सर्दी की लंबी छुट्टियां पड़ती हैं तो इन छुट्टियों में भी स्कूल की तरफ से कुछ होमवर्क दिया जाता है। इस होम वर्क को किए जाने का उद्देश्य यह होता है कि छात्र पढ़ाई से पूरी तरह विमुख नहीं हो जाए।

यदि आप सोचते हैं कि जब छुट्टियों में भी पढ़ाई ही करनी है तो छुट्टियां दी ही क्यों जाती हैं तो आपको छुट्टियों में मिलने वाले होमवर्क और स्कूल खुले होने के समय की जाने वाली पढ़ाई के बीच अंतर को समझना होगा।

छुट्टियों में स्कूल की तरफ से जो भी होमवर्क दिया जाता है, वह बहुत अधिक नहीं होता। दिन में आधा या एक घंटा पढ़ाई करके भी वह होमवर्क निपटाया जा सकता है और बाकी समय अपनी छुट्टियों का आनंद लिया जा सकता है। लेकिन जब स्कूल में पढ़ाई चल रही होती है, तब जो भी होमवर्क मिलता है, उसमें काफी समय लगता है क्योंकि वह अगले दिन स्कूल में पेश करना होता है। उसके अलावा स्कूल आने-जाने में समय लगता है। स्कूल में पढ़ाई करने में समय लगता है।

छुट्टियों में यह सब कार्यों से मुक्ति मिल जाती है। छुट्टियों में विद्यालय जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, इसीलिए छात्र के पास काफी समय होता है। उसे जो भी होमवर्क मिलता है, वह उसे अगले दिन ही स्कूल में देना है, ऐसी भी कोई बंदिश नहीं होती। छुट्टियां समाप्त होने पर जब विद्यालय खुलेंगे तब उसे अपना होमवर्क देना होता है।

यदि 7 दिन की छुट्टी पड़ी है तो विद्या छात्र चाहे तो 6 दिन छुट्टियों का आनंद लेकर एक दिन पूरी तरह पढ़ाई के लिए दे सकता है और अपना होमवर्क निपटा सकता है, या सातों दिन थोड़ा-थोड़ा कार्य करके अपना होमवर्क निपट सकता है। 7 दिन से अधिक की छुट्टियों पर भी ऐसा किया जा सकता है।

छुट्टियों में दिए जाने वाला पढ़ाई का काम विद्यार्थी को पढ़ाई से पूरी तरह विमुख करने से रोकना होता है। यदि छुट्टियों में कुछ भी होमवर्क नहीं दिया जाएगा तो विद्यार्थी अपना ध्यान पूरी तरह से पढ़ाई से हटा लेगा। ऐसी हालत में वह अपने याद किए हुए पाठ भूल सकता है।

निष्कर्ष

इस तरह हमारे विचार में ये निष्कर्ष निकलता है कि छुट्टियों में स्कूल द्वारा जो होमवर्क दिया जाता है वह बिल्कुल उचित है। इससे विद्यार्थी अपने पढ़ाई से जुड़ा रहता है। उसकी पढ़ाई का फ्लो नही टूटता है और स्कूल खुलने पर वह बिना किसी परेशानी के अपनी पढ़ाई जारी रख सकता है। इसके विपरीत वह होमवर्क न मिलने पर अपनी सारी छुट्टियां यूँ ही खेलते-कूदते और घूमते-फिरते बिता देगा और जब स्कूल खुलेगे तो उसे पढ़ाई के साथ सामंजस्य बिठाने में शुरुआत में दिक्कत आ सकती हैं।


ये भी जानें…

आपके किसी पसंदीदा खिलाड़ी से आपके बीच हुई बातचीत को संवाद के रुप में लिखिए।​

दिल्ली से हरियाणा के बीच यात्रा के दौरान बस कंडक्टर ने दुर्व्यवहार किया। इसकी शिकायत करने हेतु दिल्ली परिवहन निगम के मुख्य प्रबंधक को पत्र लिखें।

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औपचारिक पत्र

दिल्ली परिवहन निगम के मुख्य प्रबंधक को पत्र

  • दिनांक : 24.2.2024

सेवा में,
श्रीमान मुख्य प्रबन्धक,
दिल्ली परिवहन निगम, जंतर मंतर,
नई दिल्ली -110 001

विषय – कंडक्टर के द्वारा किए गए दुर्व्यवहार हेतु।

महोदय,

पूरे सम्मान के साथ, मैं आपके संज्ञान में लाना चाहता हूँ कि मैं, दिनाँक 23.2.2024 को दिल्ली परिवहन निगम की बस नंबर DL-4L-4454 द्वारा कश्मीरी गेट, न्यू दिल्ली से हरियाणा (अंबाला) जा रहा था और मैंने कंडक्टर को निगम द्वारा तय भाड़ा रुपये 113 दिये लेकिन कंडक्टर, जिसका नाम रजिन्दर सिंह था, ने कहा कि अंबाला का भाड़ा रुपये 170 है और मुझसे और पैसे की मांग करने लगा।

मैंने जब उसे दिल्ली परिवहन निगम की भाड़ा सूची इंटरनेट से निकाल कर दिखाई तो वो भड़क गया और मुझसे बदतमीजी करने लगा। उसने मुझसे कहा कि ज्यादा नियम हमें न पढ़ाएँ और भाड़ा तो वो ही देना पड़ेगा, जो मैं मांग रहा हूँ ,अन्यथा बस से उतर जाओ। बस में मौजूद बाकी सवारियों ने भी उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं माना और उसने मुझसे हाथापाई करनी भी शुरू कर दी। अन्य सवारियों ने बीच-बचाव करने किया  वरना वो मुझे मार भी सकता था।

श्रीमान जी, नगर निगम की बसें लोगो की सुविधा के चलाई जाती हैं, ना कि लोगों का उत्पीड़न करने के लिए। मैं एक जिम्मेदार नागरिक हूँ और सदा सरकार द्वारा बनाए नियमों का आदर करता हूँ। लेकिन अगर जनता के साथ ऐसा दुर्व्यवहार एक सरकारी कर्मचारी करने लगेगा तो समाज में सरकारी नियमों और सरकारी संगठनों की क्या अहमियत रह जाएगी।

इस बावत आपसे आपसे निवेदन है कि आप कंडक्टर रजिन्दर सिंह के खिलाफ तुरंत जरूरी कार्यवाही करने की कृपा करें ताकि ऐसे कर्मचारी किसी और के साथ ऐसी धांधली न कर पाएँ।

धन्यवाद,

प्रार्थी,
राकेश कुमार,
A-14, अमन विहार,
दिल्ली


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स्वयं को सरदार शहर निवासी ‘दिनकर’ मानते हुए शैक्षिक भ्रमण का वर्णन करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।

स्वयं को सरदार शहर निवासी ‘दिनकर’ मानते हुए शैक्षिक भ्रमण का वर्णन करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।

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हिंदी पत्र लेखन

मित्र को औपचारिक पत्र

 

दिनाँक : 2 मार्च 2024

 

प्रिय मित्र मानक,

तुम कैसे हो? आशा है कि तुम कुशलपूर्वक होंगे। मित्र, आज मैं तुम्हें हमारे विद्यालय द्वारा आयोजित हुई शैक्षिक भ्रमण के बारे में बताना चाहता हूँ।

मित्र, दो दिन पहले हमारे विद्यालय की तरफ से एक शैक्षिक भ्रमण आयोजित किया गया था। शैक्षिक भ्रमण के लिए हमें हमारे शहर में स्थित एक दवा कंपनी में ले जाया गया। वहाँ पर हमने दवा कंपनी बनने की पूरी प्रक्रिया देखी और समझी। किस तरह दवाओं का फार्मूला तैयार किया जाता है, किस तरह उन सभी दवाओं को तैयार करके उन्हें गोलियों में बदल जाता है? किस तरह उनकी पैकिंग की जाती है? इस सारी प्रक्रिया को हमने समझा।

हमने दवा कंपनी की रिसर्च यूनिट भी देखा। जहाँ पर निरंतर दवा संबंधी रिसर्च होती रहती हैं। यह शैक्षिक भ्रमण हमारे लिए विज्ञान की दृष्टि से उपयोगी शैक्षिक भ्रमण हुआ। इससे हमने दवा बनने की पूरी प्रक्रिया समझी। मैंने उस स्थल के कुछ फोटो भी अपने मोबाइल निकाले थे, जो मैं तुम्हें तुमसे मिलने पर दिखाऊंगा। जब तुम मुझे मिलोगे तो मैं तुम्हें विस्तार से सारी बातें समझाऊंगा ताकि तुम्हें भी कुछ उपयोगी जानकारी मिले। तुम्हारे विद्यालय में भी क्या ऐसे ही शैक्षिक भ्रमण हाल-फिलहाल में आयोजित किया गया था, या भविष्य में किया जाने वाला है, तो मुझे बताना। शेष बातें तुम्हे मिलने पर होगी।

तुम्हारा मित्र
दिनकर,
सरदार शहर


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‘जो किसी से न डरे’ अनेक शब्दों के लिए एक शब्द।

‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?

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‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जो प्रसिद्ध और ईमानदार व्यक्ति होते हैं, वह सादा जीवन और उच्च विचारों को प्राथमिकता देते हैं। उनके अंदर व्यर्थ का आडंबर नहीं होता। महान व्यक्तियों ने सदैव सादा जीवन शैली अपना कर लोगों को उच्च विचारों को अपनाने की प्रेरणा दी है। जो दिखावटी जीवन जीते हैं। वह वास्तव में उच्च चरित्र के लोग नहीं होते।

प्रेमचंद कितने बड़े महान साहित्यकार थे, यह सब को पता है। हिंदी साहित्य के अग्रणी पंक्ति के साहित्यकार होने के बावजूद भी उनका जीवन बिल्कुल सादगी से भरा पूरा था। यहां तक कि जब वह फोटो खिचंवाते हैं तो जैसी वेशभूषा में थे, उसी वेशभूषा में फोटो खिंचवा लेते हैं। उनके अंदर व्यर्थ का आडंबर और दिखावा नहीं था।

इसलिए यह पाठ हमें सादा जीवन जीने की प्रेरणा देता है, लेकिन इसके साथ ही साथ यह पाठ इस बात को भी इशारा करता है कि महान लोगों के द्वारा किए गए कार्यों के नाम पर लोग हजारों-लाखों रुपए कमाते हैं, वह महान व्यक्ति अपने जीवन काल में अभाव से ग्रस्त रहे या बिल्कुल सादा जीवन व्यतीत किया। उन्हें की द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर लोग अपनी जेब भर रहे हैं। इस तरह यह हमारे समाज के दो पहलुओं को उजागर भी करता है।

टिप्पणी

प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित पाठ प्रेमचंद के फटे जूते  प्रेमचंद के अंतिम दिनों की परिस्थितियों पर आधारित एक व्यंग्यचित्र है। इस पाठ में उन्होंने प्रेमचंद के उस फोटो को आधार बनाकर व्यंग्य और कटाक्ष किया है, जिस फोटो में प्रेमचंद फटे जूते के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं। लेखक ने कहा है कि इतने महान साहित्यकार जिनकी साहित्यिक कृतियों के नाम पर लोग लाखों रुपए कमा रहे हैं, वह महान साहित्यकार अपने जीवन में कितने अभावों से ग्रस्त था कि उसके पास खरीदने के लिए फोटो खिंचवाते समय पहनने के लिए एक जोड़ी ढंग के जूते भी नहीं थे।

इस तरह यह पाठ एक व्यंग्यात्मक और कटाक्ष से परिपूर्ण पाठ है, जो समाज के दोहरे मापदंडों और कड़वी सच्चाई को उजागर करने के साथ-साथ सादा जीवन के महत्व को भी प्रकट करता है।


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‘बाबू गुलाब राय’ की रचना ‘मेरी असफलताएं’ किस विधा की रचना है?

‘बाबू गुलाब राय’ की रचना ‘मेरी असफलताएं’ किस विधा की रचना है?

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‘मेरी असफलताएं’ ‘बाबू गुलाब राय’ द्वारा रचित निबंध विधा की रचना है।

‘मेरी असफलताएं’ बाबू गुलाब राय द्वारा रचित एक निबंध संग्रह है। इस निबंध संग्रह का प्रकाशन 1946 में हुआ था। इस निबंध संग्रह  का प्रकाशन पुस्तक रूप में 1946 में हुआ था। इस पुस्तक के माध्यम से बाबू गुलाब राय ने अपने जीवन में आने वाली असफलताओं का विवेचन प्रस्तुत किया है।

बाबू गुलाब राय हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध साहित्यकार थे। जो अपने निबंधों की रचना के लिए जाने जाते हैं। वह हिंदी के प्रमुख आलोचक और निबंधकार थे। उनका जन्म 17 जनवरी 1888 को उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में हुआ था। 13 अप्रैल 1963 को उनका निधन हुआ।

उन्होंने 1913 से लेकर 1953 तक अनेक साहित्यिक कृतियों की रचना की। जिनमे में अधिकतर निबंध थे। उसके अलावा उन्होंने बाल साहित्य तथा दर्शन संबंधी रचनाएं भी कीं। उन्होंने कई ग्रंथों का संपादन भी किया है।

मेरी असफलताएं के अलावा उनके द्वारा रचित कई निबंधों में प्रकार प्रभाकर, जीवन पशु, ठलुआ क्लब, मेरे मानसिक उपादान आदि के नाम प्रमुख हैं।

विज्ञान वार्ता और बाल प्रमोद उनकी प्रमुख बाल साहित्य की रचनाएं हैं।

उन्होंने सत्य हरिश्चंद्र, भाषा भूषण, कादंबरी कथासार आदि ग्रंथों का संपादन भी किया है। इसके अलावा उनके द्वारा रचित आलोचनात्मक रचनाओं में नवरस, हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास, हिंदी नाट्य विमर्श, आलोचना, कुसुमांजलि, काव्य के रूप सिद्धांत और अध्ययन आदि के नाम प्रमुख हैं।


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‘जो किसी से न डरे’ अनेक शब्दों के लिए एक शब्द।

‘जो किसी से न डरे’ अनेक शब्दों के लिए एक शब्द।

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‘ जो किसी से डर न सके’ अनेक शब्दों के लिए एक शब्द इस प्रकार हैं…

जो किसी से न डरे : निडर

‘जो किसी से ना डरे’ इस शब्द समूह के लिए एक शब्द ‘निडर’ होगा।

‘निडर’ अर्थात जिस किसी का भी डर ना हो जो बिना किसी डर के निश्चिंत भाव से रहे।

इसी से संबंधित एक शब्द समूह इस प्रकार है, जिसे किसी का भय ना हो।

‘जिस किसी का भय ना हो’ इस शब्द समूह के लिए एक शब्द होगा ‘निर्भय’

निर्भय और निडर दोनों का अर्थ एक ही है। निर्भय और निडर दोनों शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची भी हैं।

इस प्रकार हम पाते हैं कि…

जो किसी से ना डरे : निडर

जिसे किसी का भय ना हो : निर्भय

और कुछ…

अनेक शब्दों के लिए एक शब्द हिंदी में एक शब्द समूह को किसी एक शब्द में समेटने की एक बेहद सुंदर विधि है। इसके माध्यम से एक पूरे शब्द समूह के अर्थ को किसी एक शब्द में ही समेट लिया जाता है, इसे लिखने और बोलने में लगने वाला  समय और लिखने में लगने वाले स्थान की भी बचत होती है और शब्द का प्रभाव भी अधिक हो जाता है।


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‘अपूर्व अनुभव’ पाठ में दूसरों की सहायता करने की प्रेरणा है। सिद्ध कीजिए।

‘असाध्य वीणा’ की दर्शनिक महत्ता स्पष्ट कीजिए​।

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असाध्य वीणा’ कविता ‘सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन’ अज्ञेय द्वारा लिखी गई एक बेहद लंबी कविता है, जो अपने अंदर गहन दार्शनिकता का भाव समेटे हुए हैं। इस कविता की रचना उन्होंने 1961 में की थी, जब वह 1957-58 के अपने जापान प्रवास के बाद भारत वापस लौटे थे।  उन्होंने इस कविता का आधार भी एक जापानी लोक कथा को बनाया था। कविता के मूल में एक जापानी लोककथा छुपी हुई थी।

‘असाध्य वीणा’ कविता की मूल कहानी के अनुसार एक राजा के पास वज्रकीर्ति द्वारा ‘किरीट तरु’ नामक वृक्ष से निर्मित एक ऐसी असाध्य वीणा थी, जिसे कोई भी नहीं बजा पता था। अनेक संगीत साधक उस वीणा को बजाने का प्रयास करके हार गए, लेकिन कोई भी उसे सफलतापूर्वक साधने में सफल नहीं हो पाया।

अंततः में एक संगीत साधक प्रियंवद केशकंबली राजा की सभा में उपस्थित हुआ और उसने वीणा को साधने में सफलता प्राप्त कर ली। वह वीणा को साधने में वह इसलिए सफलता क्योंकि उसने स्वयं को वीणा पर नहीं थोपा। उसने अपने संगीत ज्ञान को वीणा पर थोपा बल्कि वीणा के तारों के साथ खुद की तारतम्यता स्थापित कर ली। उसने अपने स्वयं के अस्तित्व को भुला दिया और वीणा के प्रति समर्पित भाव से होकर वीणा को बजाने लगा। उसने वीणा को समझा और फिर स्वयं को वीणा में एकाकार कर दिया।

इस कविता के पीछे दार्शनिक भाव यही है कि जीवन को समझने के लिए स्वयं को जीवन पर नहीं थोपना है, बल्कि जीवन के मूल तत्वों को समझ कर जीवन की गहनता को समझकर उस जीवन रस के साथ एकाकार होना है। हमारा जीवन हमारी शर्तों के अनुसार नहीं चलता बल्कि हमें समर्पित भाव अपनाना पड़ता है। जब हम अपने अंदर के अहंकार को त्याग देते हैं, तब ही हम किसी कार्य अथवा साधना में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

जीवन में किसी भी साधना या कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए स्वयं को उसके प्रति समर्पित होना आवश्यक है। अपने अंदर के अहंकार को त्याग कर समर्पण भाव अपनाने से ही हम अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं। अपने लक्ष्य पर विजय पा सकते हैं।  किसी भी तरह का अहंकार हमारी सफलता में बाधक है। यही इस कविता के पीछे निहित दार्शनिक भाव है।


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भक्तिकालीन काव्य की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं? सोदाहरण समझाइये ।

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आपके किसी पसंदीदा खिलाड़ी से आपके बीच हुई बातचीत को संवाद के रुप में लिखिए।​

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नीरज चोपड़ा भारत के उभरते हुए एथलीट हैं, जिन्होंने जैवलिन थ्रो में भारत का नाम रोशन किया है। उन्होंने टोक्यो ओलंपिक खेलों में भारत के लिए दूसरा व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीता था। उसके अलावा उन्होंने जेवलिन थ्रो की कई विश्वस्तरीय स्पर्धाओं में अनेक पदक जीते हैं। उनसे एक बार हमारी बातचीत हुई। उनसे हुई बातचीत इस प्रकार है…

संवाद लेखन

एक पसंदीदा खिलाड़ी से बातचीत का संवाद लेखन

 

हम : नमस्ते नीरज जी।

नीरज चोपड़ा : नमस्ते जी, नमस्ते।

हम : नीरज जी हम सभी आपके बड़े फैन हैं। आपने हमारे लिए गौरव के क्षण प्रदान किए हैं। सारे देशवासियों को आप पर गर्व है।

नीरज चोपड़ा : धन्यवाद, मुझे आप जैसे फैंस से ही प्रेरणा मिलती है। आप जैसे फैंस द्वारा किए जाने वाला यह उत्साहवर्धन मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

हम : नीरज जी यह बताइए कि आपको जैवलिन थ्रो के प्रति रुझान कैसे पैदा हुआ?

नीरज चोपड़ा : मुझे बचपन से ही खेलों में बहुत रुचि थी। मैं कोई अच्छा एथलीट बनना चाहता था। मैं हरियाणा के गाँव में पला-बड़ा हूँ। एक दिन मैंने खेल-खेल में एक भाला दूर तक फेंका तो वह बहुत दूर जाकर गिरा। मेरी सभी लोगों ने प्रशंसा की धीरे-धीरे मेरा भाला फेंकने के प्रति रुचि बढ़ती गई और मैं इसी में अपना करियर बनाने का निर्णय लिया।

हम : आपकी सफलता में आप किसका योगदान मानते हैं?

नीरज चोपड़ा : मैं आज जो कुछ भी हूँ। उसमें सबसे बड़ा योगदान मैं अपने माता-पिता को मानता हूँ। इसके अलावा मैं अपने कोच का भी आभारी हूँ, जिनके कारण मैं जैवलिन थ्रो मैं उच्च स्तर का खिलाड़ी बन पाया।

हम : नीरज जी, 2024 में होने वाले पेरिस ओलंपिक खेलों के लिए आपकी क्या तैयारी है। क्या आप हमें फिर से ओलंपिक खेलों में एक और गोल्ड मेडल दिलाएंगे?

नीरज चोपड़ा : मैं पेरिस ओलंपिक की तैयारी के प्रति बेहद उत्साहित हूँ और मैं जी-जान से तैयारी में लगा हूँ। मेरा पूरा प्रयास रहेगा कि मैं पेरिस ओलंपिक में भी गोल्ड मेडल जीत कर अपने देश का नाम रोशन करूं।

हम : नीरज जी, हम सभी देशवासियों की तरफ से आपको आगे की सफलताओं के लिए शुभकामनाएं। नमस्ते।

नीरज चोपड़ा : धन्यवाद, नमस्ते।


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‘अपूर्व अनुभव’ पाठ में दूसरों की सहायता करने की प्रेरणा है। सिद्ध कीजिए।

‘अपूर्व अनुभव’ पाठ में दूसरों की सहायता करने की प्रेरणा है। सिद्ध कीजिए।

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‘अपूर्व अनुभव’ पाठ में दूसरों की सहायता करने की प्रेरणा मिलती है। यह बात पाठ के माध्यम से पूरी तरह सिद्ध होती है।

अपूर्व अनुभव पाठ बच्चों की आपसी मित्रता पर आधारित पाठ है, जिसमें यासुकी चान और तोत्तो चान दो बालक-बालिका मित्र हैं। यासुकी पोलियो से ग्रस्त एक बालक है और तोत्तो चान उसकी मित्र थी। इस पाठ में पेड़ों के प्रति लगाव को भी दर्शाया गया है। जापान के एक कस्बे तोमोए की परंपरा के अनुसार एक बच्चा बाग के किसी एक पेड़ को अपना पेड़ बना लेता है और उसे पेड़ पर खुद के चढ़ने को अपना कौशल समझता है। हर एक बच्चा अपने लिए एक पेड़ निश्चित कर लेता है और वह उसे पर खुद ही चढ़ने का प्रयास करता है।

यासुकी चान पोलियो से ग्रस्त होने के कारण पेड़ पर चढ़ने में असमर्थ था, लेकिन उसकी मित्र तोत्तो अपने पेड़ पर तो चढ़ती ही थी, इसके साथ ही पोलियो से ग्रस्त अपने दोस्त यासुकी चान को भी पेड़ की शाखा तक चढ़ने में मदद करती थी। उसे स्वयं के पेड़ पर चढ़ने में जितना आनंद नहीं आता था, उससे अधिक अपने दोस्त यासुकी चान को पेड़ पर चढ़ने में सहायता करने अपूर्व आनंद और संतुष्टि मिलती थी।

वह अपने दोस्त की मदद करके बेहद खुश होती थी, यहाँ तक कि उसने रोज अपने दोस्त को पेड़ को चढ़ाने में सहायता करने की बात को अपने घर के बड़ों से भी छुपा लिया था क्योंकि पेड़ पर चढ़ना एक जोखिम भरा कार्य होता था और इसमें गिरकर चोट भी लग सकती थी। उसके मन में अपने दोस्त यासुकी चान को पेड़ पर चढ़ने की अपूर्व भावना और दृढ़ इच्छा शक्ति थी।

इस कार्य में उसे अपूर्व आनंद आता था। इस तरह इस पाठ के माध्यम से यह बात स्पष्ट होती है कि दूसरों की सहायता करने में जो आनंद आता है, उस आनंद की कोई तुलना नहीं की जा सकती।

यह पाठ हमें ऐसे कमजोर असहाय व्यक्तियों की मदद करने की सहायता करने की प्रेरणा देता है, जो किसी शारीरिक दुर्बलता के कारण अपना कार्य करने में कठिनाई अनुभव करते हैं। यह पाठ हमें यह भी प्रेरणा देता है कि हमें हर किसी की सहायता करने के लिए तुरंत तत्पर  रहना चाहिए और दूसरों की सहायता करने में अपूर्व आनंद का अनुभव करना चाहिए।

निष्कर्ष

इसलिए अपूर्व अनुभव पाठ दूसरों की सहायता करने की प्रेरणा है। यह बात इस पाठ के माध्यम से स्पष्ट रूप से सिद्ध होती है।

‘अपूर्व अनुभव’ पाठ एक जापानी कहानी है, जिसके लेखक ‘तेत्सुको कुरियानागी’ भी हैं। ”तेत्सुको कुरियानागी’ द्वारा लिखा गया जापानी साहित्यिक कृति ‘तोत्तो चान’ विश्व साहित्य की एक अनमोल निधि है। तोत्तो चान उनकी प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों में से एक कृति है। इसका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में हो चुका है। ‘अपूर्व अनुभव’ पाठ ‘तोत्तो चान’ नामक उनकी उसकी कृति का एक अंश है।


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