‘अनोखी हड्डी’ पाठ में राजा उदयगिरि एक प्रतापी और पराक्रमी राजा बताएं गए हैं। उनके राज्य में चारों तरफ वैभव ही वैभव था। उनकी चारित्रिक विशेषताएं इस प्रकार हैं…
- राजा उदयगिरि एक पराक्रमी और प्रतापी राजा थे।
- अनेक राज्यों को जीतने के कारण वह महाराजधिराज बन चुके थे।
- राजा को अपने राज्य के विस्तार करने का बड़ा ही शौक था। राज्य को निरंतर बढ़ाते रहने का उनका लोभ बढ़ता ही जा रहा था।
- उन्हें शिकार का भी शौक था और वह प्राकृतिक सौंदर्य के बेहद प्रशंसक थे। इसी कारण उन्हें एक सुंदर प्रदेश पसंद आ गया और वह उसे अपने अधिकार में लेना चाहते थे।
- राजा उदयगिरि जिस बात का निश्चय कर लेते थे उसे हासिल कर लेते थे।
- उदयगिरि एक दानी राजा भी थे इसीलिए में वृद्ध व्यक्ति उसकी मांग के अनुसार दान देने के लिए राजी हो गए।
- इसके अलावा राजा उदयगिरि में विवेकशीलता का भी गुण था। इसी कारण वृद्ध व्यक्ति के द्वारा द्वारा इशारों-इशारों में समझाई गई बात को वह समझ गए और उन्होंने सच्चाई को स्वीकार कर युद्ध को बंद कर दिया।
इस तरह ‘अनोखी हड्डी’ पाठ में राजा उदयगिरि का चरित्र एक पराक्रमी राजा होने के साथ-साथ सत्ता विस्तार के प्रति आकर्षण रखने वाले राजा का था। उनके अंदर दानशीलता और विवेकशीलता जैसे गुण भी थे।