जैसलमेर जिले के एक गाँव ‘खड़ेरो की ढाणी’ को ‘छह बीसी’ के नाम से भी जाना जाता है।
‘खड़ेरो की ढाणी’ नामक गाँव को छह बीसी के नाम से जाना जाने का मुख्य कारण यहाँ पर पाई जाने वाली 120 कुइयों का पाया जाना है।
जैसलमेर जिले के खड़ेरो की ढाणी गाँव में 120 कुइयां पाई जाती हैं। इसी कारण इस क्षेत्र के लोग गाँव को छह-बीसी (छ गुणा बीसी) के नाम से भी जानते हैं। इन कुइयों को राजस्थान में कहीं-कहीं पर ‘पार’ भी कहा जाता है।
जैसलमेर और बाड़मेर के गाँव में इन कुइयों यानी पार का बड़ा ही महत्व है और इन कुइयों के कारण ही वहां पर आबादी है क्योंकि इससे उनकी पानी की जरूरते पूरी होती हैं।
इन कुइयों का महत्व इतना है कि राजस्थान जैसलमेर-बाड़मेर के अधिकतर गाँव का नाम भी पार पर ही है, जैसे जानरे आलो पार सिगरु आलो पार आदि।
‘राजस्थान की रजत बूँदे’ पाठ जिसके लेखक अनुपम मिश्र हैं, उस पाठ में लेखक ने राजस्थान में मरू प्रदेश में पानी के महत्व को बताया है। कुइयां राजस्थान की वह छोटे-छोटे कुएं होते हैं, जो राजस्थान में जगह-जगह पाए जाते हैं। राजस्थान जैसे मरुस्थल प्रदेश में इन कुइयों का बड़ा ही महत्व है। इन कुइयों में मीठा जल पाया जाता है। इन कुइयों का व्यास बहुत ही संकरा होता है। बेहद पतली और संकरी होने के कारण ही इन्हें कुइयां कहा जाता है।
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