प्रकृति अपना रंग-रूप बदलती रहती है, इसका आशय है…
(ii) परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है।
विस्तार से…
प्रकृति अपना रंग रूप बदलती रहती है, इसका आशय यह है कि परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है अर्थात प्रकृति निरंतर परिवर्तित होती रहती है। प्रकृति कभी भी स्थाई स्वरूप में नहीं रहती, उसमें निरंतर थोड़ा बहुत परिवर्तन होता रहता है, यही प्रकृति का मूल स्वभाव है।
प्रकृति समय के अनुसार स्वयं को बदलती रहती है। प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के अनेक कारण होते हैं। कुछ मानवीय कारण है तो कुछ स्वाभाविक कारण है।
मानवीय चेष्टाओं जैसे मानव द्वारा प्रकृति के साथ निरंतर की जाने वाली छेड़खानी के कारण भी प्रकृति पर असर पड़ता है और प्रकृति को अपने स्वरूप को बचाए रखने के लिए उसमें परिवर्तन करने पड़ते हैं। मनुष्य ने प्रकृति के साथ निरंतर खिलवाड़ किया है। उसने जंगलों को काटा है। मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है। आधुनिकता और विकास के नाम पर अत्यधिक प्रदूषण उत्पन्न किया है। इन सब का के कारण प्रकृति में निरंतर बदलाव परिवर्तन आ रहे हैं, यह मानव जनित प्राकृतिक परिवर्तन हैं।
इसके अलावा कुछ प्राकृतिक परिवर्तन नियमित और स्वाभाविक परिवर्तन हैं जो प्रकृति में सदियों से चले आ रहे हैं। इसलिए प्रकृति अपना रंग-रूप बदलती रहती है इसका आशय है कि परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है।