‘नूतन किसलय सीता जी को अग्नि के समान दिखाई देते हैं, क्योंकि सीता जी विरह की अग्नि में जल रही हैं।
जब रावण सीता जी का हरण करके ले गया और उन्हें लंका में अशोक वाटिका में कैद कर लिया तो प्रभु श्रीराम से विरह की अग्नि से सीता जी पीड़ित हो गईं। श्रीराम से विरह (बिछड़ना) को वह सहन नही कर पा रही थीं। विरह से बड़ा कोई रोग होता इसी कारण उन्हें नूतन किसलय यानी वाटिका के पौधों के नए-नए कोमल पत्ते भी अग्नि के समान दिखाई दे रहे थे।
रामचरितमानस के लंका कांड की इस चौपाई में तुलसीदास कहते हैं…
नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता॥6॥
अर्थात सीता जी वाटिका के पौधों के नए-नए कोमल पत्तों को देखकर कह रही हैं कि तेरे यह नए-नए कोमल पत्ते भी मुझे अग्नि के समान दिखाई दे रहे हैं। इस विरह का रोग का अंत मत कर अर्थात इस विरह के रोग को और अधिक ना बढ़ा। उधर हनुमान जी सीता जी को इस तरफ विरह से परम व्याकुल देखकर द्रवित हो जाते हैं और वह क्षण हनुमान जी को एक युग के समान बीतता हुआ लग रहा है।