‘कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए। (पाठ – अपराजेय)

विचार लेखन

कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है

 

कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है, क्योंकि कला का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व होता है। कोई भी कला के मन भावों से संबंधित होती है। यह मनुष्य के भीतर की रचनात्मकता को बाहर निकालती है। जब मनुष्य किसी कला से जुड़ता है तो वह अपनी इस कला में डूब जाता है। उसके अंदर जो भी प्रतिभा होती है, वह कला के माध्यम से बाहर प्रकट होनी लगती हैं। जब उसकी रचनात्मकता और उसके मन के भाव बाहर आते हैं तो उसे एक सुखद अनुभूति होती है, जो उसे जीवन में आनंद का भाव प्रदान करती है। यदि मनुष्य के जीवन में कोई दुःख है तो वह अपनी कला में डूब कर उस दुःख को भूल जाता है।

कला अनेक रूपों होती है, जिसमें चित्रकला, नृत्यकला, गायन, वादन, अभिनय, मूर्तिकला, शिल्पकाल, लेखनकला, कविता, कहानी, गीत, गजल आदि शामिल हैं। इन सभी कलाओं के माध्यम से मनुष्य के मन की अभिव्यक्ति प्रकट होती है।

कोई भी व्यक्ति जब किसी कला से जुड़ता है तो वह उस कला का साधक बन जाता है और कला की साधना करने लगता है। ऐसी स्थिति में उसके जीवन में व्याप्त दुखों से उसका ध्यान हटता है। इसलिए अपने जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देने के लिए कला एक अच्छा माध्यम बनती है। अपनी रुचि के अनुसार किसी भी तरह की कला से जुड़कर मनुष्य न केवल अपने जीवन को सार्थक कर सकता है बल्कि अपने जीवन के दुखमय क्षणों को भी बुला सकता है।

विशेष

‘अपराजेय’ पाठ जो अमरनाथ नाम के एक व्यक्ति की कथा है, इस पाठ में कला के माध्यम से ही अमरनाथ में अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का मुकाबला किया। दुर्घटना के कारण अमरनाथ की एक टांग काट दी गई तो अमरनाथ ने चित्रकारी और बागवानी को अपने जीवन जीने का माध्यम बना लिया।

इस तरह अमरनाथ अपने जीवन के दुखों को कम करने का प्रयत्न किया। बाद में अमरनाथ की एक बाजू को भी काटना पड़ा तो अमरनाथ ने शास्त्रीय संगीत को सीखकर अपने जीवन के दुखों को कला से माध्यम से कम करने की कोशिश की। बीमारी के कारण अपनी आवाज चली जाने पर भी अमरनाथ ने हिम्मत नहीं हारी और अपने जीवन के दुखों को कम करने के लिए स्वयं कला से जोड़े रखा।

इस तरह अमरनाथ ने सिद्ध किया कि अपने जीवन के दुखों को अपनी रूचि के अनुसार किसी कला से जुड़कर कम किया जा सकता है।


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