‘मैं जानता हूँ कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महीनता में नहीं।’
भाव : ‘अपराजेय’ पाठ में के मुख्य पात्र अमरनाथ की सकारात्मक सोच के बारे में पता चलता है। अपने साथ इतनी भयंकर दुर्घटना घट जाने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनकी टांग काटनी पड़ी तो उन्होंने चित्रकारी और बागवानी को अपने जीवन जीने जरिया बना लिया। फिर उनकी बाजू काटनी पड़ी तो उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखना शुरु कर दिया। फिर उनकी आवाज भी चली गई लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपने जीवन को सामान्य रूप से जीने की कोशिश करते रहे। अपने शरीर में इतनी शारीरिक कमियाँ हो जाने के बावजूद उन्होंने अपनी जीवन में हार नही मानी। अपने इस कथन में उनका यही भाव है कि जीवन में कितनी भी कठिन परिस्थितियां क्यों न आएं अपने जीवन में हार नहीं माननी चाहिए। जीवन को जीने का तरीका निडर और साहसी होकर लड़ने में है न कि कमजोर पड़कर और डरकर जीवन से हार मान लेने में।
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‘अपराजेय’ इस पाठ मे अमरनाथ की जगह आप होते तो समस्याओं का कैसे सामना करते?