‘अपराजेय’ पाठ में अमरनाथ की जगह अगर हम होते तो हम भी बिल्कुल वैसा ही करने की कोशिश करते, जैसा अमरनाथ में किया।
अमरनाथ ने परिस्थितियों के आगे हार न मानते हुए परिस्थितियों का दृढ़ता से सामना किया। उनके साथ भयंकर दुर्घटना हुई और उनकी टांग को काटना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नही मानी और अपने जीवन को चित्रकारी आदि के माध्यम से सामान्य करने की कोशिश की।
परिस्थितियों ने उन पर और अधिक कुठारघात किया। इस बार उनकी बाजू को भी काटना पड़ा। इतना सब कुछ होने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और वह निरंतर अपनी जीवन की कठिनाइयों से जूझते रहे। यहाँ तक कि बीमारी के कारण उनकी आवाज तक चली गई लेकिन उसके बावजूद भी अपने जीवन की विषम परिस्थितियों से लड़ते रहे। उनकी इसी जीवटता को सलाम है।
यह कहना बेहद आसान है कि हम भी अमरनाथ के जैसा लड़ेंगे लेकिन यह करना बेहद कठिन है। किसी भी व्यक्ति की टांग काट दी जाए तो उसे व्यक्ति के ऊपर पर गुजरती है, यह वही जानता है। उसके बाद उसकी बाँह चली जाए और उसके बाद उसकी आवाज भी चली जाए तो उसके दिल पर क्या गुजरी होगी इसकी कल्पना से ही दिमाग सिहर उठता है लेकिन अमरनाथ ने ये सब सहा। ऐसी परिस्थिति में कमजोर मनोबल वाला कोई भी व्यक्ति टूट जाएगा, लेकिन अमरनाथ ने दृढ़ता से उसे स्थिति का मुकाबला किया।
उन्होंने सभी के लिए उदाहरण पेश किया कि लोग छोटी सी कठिनाइयों से घबराकर हार मान लेते हैं और या तो अपने जीवन को समाप्त कर लेते हैं अथवा अपने जीवन भगवान भरोसे छोड़ देते हैं।
अमरनाथ का जीवन संघर्ष हमारे लिए प्रेरणादायी है। अगर हमारे साथ दुर्भाग्यवश कोई घटना घटेगी तो हम भी ऐसा ही करने का प्रयास करेंगे। यही जीवन की सच्चाई है कि जीवन की कठिनाइयों के आगे हार ना मानें। जीवन के संघर्षों से लड़कर ही जीवन पर विजय पाई जा सकती है।
विशेष
‘अपराजेय’ पाठ की कहानी अमरनाथ के जीवन पर आधारित है, जिनके साथ एक दुर्घटना घट गई। उस कारण उनकी टांग को काटना पड़ा। कुछ समय बाद उनकी दाहिनी बाजू भी काट दी गई। फिर उनकी आवाज भी जाती रही, लेकिन अपनी इस शारीरिक कमी के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपने जीवन को जीवटता से जिया। उन्होंने अपने जीवन को सच्चे पुरुषार्थ का प्रतीक बना दिया।