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तताँरा और वामीरो की मृत्यु को त्यागमयी क्यों कहा गया है? उनकी मृत्यु के बाद समाज में कौन सा परिवर्तन आया?

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तताँरा और वामीरो की मृत्यु को त्यागमयी मृत्यु इसलिए कहा गया है, क्योंकि उन दोनों की मृत्यु के बाद ही अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के सभी गाँवों में उस कुप्रथा का अंत हो गया, जिस कुप्रथा के अंतर्गत एक गाँव का युवक या युवती  दूसरे गाँव के युवक या युवती से विवाह नहीं कर सकते थे।

तताँरा और वामीरो दोनों की त्यागमयी मृत्यु ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के सभी गाँवों के लोगों की विचारधारा में परिवर्तन ला दिया था और वह अपनी रूढ़िवादी परंपरा से मुक्त हो गए थे। उनकी मृत्यु के कारण हुए सामाजिक बदलाव के कारण ही द्वीपसमूह के सभी गाँव उस रुढ़िवादी कुप्रथा से मुक्त हो सके।

संदर्भ पाठ :

‘तांतारा वामीरो की कथा’ एक लोक कथा है, जो ‘लीलाधर मंडलोई’ द्वारा लिखी गई है। यह कथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह की लोककथा है, जहां पर छोटे-छोटे गाँव होते थे। इसमें बताया गया है कि लिटिल अंडमान और कार-निकोबार दोनों कभी एक-दूसरे से जुड़े थे। जो बाद में अलग हो गए।

तताँरा और वामीरो इस द्वीप समूह के ‘पासा’ और ‘लपाती’ नामक गाँव के निवासी थे। दोनों युवक युवती एक दूसरे से प्रेम करते थे, लेकिन उस समय अंडमान निकोबार द्वीप समूह के गाँवों में यह प्रथा की थी कि किसी गाँव के युवक-युवती दूसरे गाँव के युवक-युवती से विवाह नहीं कर सकते थे। इसी कारण दोनों विवाह नहीं कर पाए और दोनों को अपनी मृत्यु को चुनना पड़ा।

तताँरा वामीरो की कथा, हिंदी (कक्षा 10, पाठ 12)


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‘तताँरा-वामीरो की कथा’ ने किस पुरानी प्रथा का अंत किया?

सौदलगेकर मास्टर क्या विषय पढ़ाते थे​?

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सौदलगेकर मास्टर मराठी विषय को पढ़ाते थे। वह मराठी विषय पूरी तन्मयता से पढ़ाते थे और मराठी पढ़ाते-पढ़ाते विषय में ही पूरी तरह रम जाते थे। जिससे उनका पढ़ाने का तरीका बेहद अलग और रोचक लगता था।

विस्तार से जानें

‘जूझ’ पाठ जो लेखक आनंद रतन यादव द्वारा लिखा गया है, उसमें लेखक ने अपने बचपन के संस्मरण का वर्णन किया है। जब लेखक छोटा था तो लेखक को के पिता ने उसे पाठशाला जाने से मना कर दिया और खेती के कार्य में लगा दिया था। लेकिन लेखक का मन पढ़ाई के प्रति था इसलिए किसी तरह अपने विद्यालय जाने का लिए अपने पिता को मना लिया था।

लेखक बताता है कि उनके सौदलगेकर मास्टर मराठी विषय को पढ़ाते थे। उनका मराठी विषय पढ़ाने का तरीका बेहद ही रोचक होता था। उन्हें मराठी और अंग्रेजी की बहुत सी कविताएं याद थीं। इसके अलावा वह स्वयं भी कवितायों की रचना किया करते थे।

आनंद रतन यादव

आनंद रतन यादव का जन्म 1935 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में हुआ था। उन्होंने मराठी और संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की थी। वे पुणे विश्वविद्यालय में मराठी विभाग में लंबे समय तक कार्यरत रहे है।


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‘सफलता’ का जीवन में कितना महत्व है? सफलता पर 10 वाक्य लिखें।

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‘सफलता’ शब्द हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है। सफलता जो हर मनुष्य को जीवन में चाहिए होती है। सफलता से मनुष्य अपने जीवन में सारी खुशियाँ प्राप्त कर सकता है।
सफलता पर वाक्य इस प्रकार है :
  1. सफलता हमारे सपनों और लक्ष्यों का पूरा होना का प्रतीक होती है।
  2. जब हम अपने जीवन में सफलता प्राप्त करते है, तब हम अपने सभी सपनों को आसानी से पूरा कर सकते है।
  3. किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करके मनुष्य, अपने लक्ष्य को पूरा करता है।
  4. जीवन में मेहनत करने से हमें सफलता अवश्य प्राप्त होती है।
  5. यदि जीवन में हमें सफलता प्राप्त करनी है, तो हमें बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
  6. एक सफल व्यक्ति अपना जीवन गर्व से व्यतीत कर सकता है।
  7. सफलता पाने के लिए समय के साथ चलना बहुत जरूरी है।
  8. मन की एकाग्रता ही सफलता की कुंजी है।
  9. पूरी लग्न, दृढ़ संकल्प और परिश्रम से अपने लक्ष्य को पूरा करने में जुट जाएँ तो , निश्चय ही सफलता आपके पास स्वयं चलकर आएगी।
  10. “परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ।” ये सूत्र वाक्य परिश्रम और सफलता की जुगलबंदी को स्पष्ट करता है।

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संवाद लेखन

वृक्षारोपण के संबंध में पिता पुत्र के बीच संवाद

 

पुत्र: पिता जी, कल हमारी पाठशाला में वृक्षारोपण का कार्यक्रम रखा गया है।

पिता: बहुत बढ़िया।

पुत्र: पिता जी, वृक्षारोपण करके हमें क्या फायदा होगा।

पिता: बेटा, पेड़ हमें आक्सीजन, भोजन स्वच्छ हवा और गर्मी से भी राहत देते हैं और मतलब पेड़ो का हमारे जीवन बहुत महत्व है।

पुत्र: पिता जी, क्या पेड़ हमें सबसे स्वच्छ हवा देते हैं।

पिता: हाँ, पेड़ हमें स्वच्छ और निर्मल हवा देते हैं।

पुत्र: पिता जी, पेड़ तो निर्जीव होते हैं तो यह क्यों कहा जाता है कि पेड़ धरती पर हरियाली लाते हैं और गंदी हवा खुद खींच लेते हैं।

पिता: बेटा, यह गलत है, पेड़ भी सजीव होते हैं और जितने ज्यादा पेड़ पौधे होंगे उतनी ही धरती पर हरियाली और खुशहाली बनी रहती है।

पुत्र: पिता जी, पेड़ हमें और क्या-क्या देते हैं

पिता: पेड़ से हमें फल ,फूल , लकड़ी ,कागज ,रबर प्राप्त होती है।

पुत्र: क्या पेड़ों से दवाइयाँ भी बनती हैं।

पिता: हाँ बेटा, पेड़ो से कई तरह की जड़ी बूटियां तैयार की जाती हैं।

पुत्र: पिता जी, हमारे शिक्षक हमें बता रहे थे कि पेड़ हमारी आजीविका का भी एक बड़ा साधन हैं।

पिता: सही कहा, पेड़ हमारी जीविका का एक बहुत महत्वपूर्ण साधन है, पेड़ों की लकड़ी बेच कर कई लोग अपनी जीविका कमाते हैं और मकान बनाने के लिए भी हमें लकड़ी पेड़ों से ही मिलती है। पेड़ों से हमारे घरों का फर्नीचर बनता है।

पुत्र: पिता जी, क्या पेड़ हमें बाढ़ के प्रकोप से भी बचते हैं।
पिता: हाँ, पेड़ मिट्टी में अपनी पकड़ मजबूत रखते हैं और मिट्टी को बहने नहीं देते और पानी के बहाव को भी कम करते हैं।

पुत्र: मतलब पेड़ नहीं होंगे, तो हमारा अस्तित्व भी नहीं होगा।

पिता: हाँ बेटा, पेड़ नहीं होंगे तो इंसान का अस्तित्व बिलकुल खत्म हो जाएगा।

पुत्र: ठीक है पिताजी, तब तो मैं बड़े जोश से इस वृक्षारोपण कार्यक्रम में भाग लूँगा और खूब सारे पेड़ लगाऊँगा।


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वर्षा जल संग्रहण का अर्थ है, बारिश के पानी को अलग -अलग तरीकों से संचित करना। तालाब व झील के अलावा ज़मीन के नीचे टैंक बनाकर भी बारिश (वर्षा) के पानी को संचित कर सकते हैं।

वर्षा जल संग्रहण के तीन लाभ निम्नलिखित है :
  1. वर्षा जल संग्रहण से प्राप्त जल शुद्ध और रयायन मुक्त जल होता है। ये जल उच्च गुणवत्ता युक्त होता है। वर्षा का जल पीने योग्य जल होता है। इसे पेयजल के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
  2. वर्षा जल संग्रहण उन क्षेत्रों में बेहद लाभकारी होता है, जहाँ पर पानी का अन्य कोई प्राकृतिक स्रोत नहीं होता। वर्षा जल का संग्रहण करके उसे लंबे समय तक पीने तथा खेती में सिंचाई कार्य हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है।
  3. वर्षा जल संग्रहण बाढ़ के प्रभाव को काम करता है। नदी आदि में अत्याधिक बाढ़ आने से रोकने के लिए अलग-अलग स्थानों पर वर्षा का जल संग्रहित कर लिय जाता है। जिससे वर्षा का जल नदी में अत्याधिक मात्रा में नहीं पहुँच पाता और बाढ़ आने की आशंका कम होती है।

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‘यथार्थता’ शब्द में कौन सा प्रत्यय होगा, बताइए।

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यथार्थता में प्रत्यय इस प्रकार है :

यथार्थता = यथार्थ + ता

 

स्पष्टीकरण :

इस तरह यथार्थता में ‘ ता ‘ प्रत्यय होगा । इसमें ‘ता’ प्रत्यय है जो यथार्थ शब्द के साथ जुड़कर एक नए शब्द का निर्माण कर रहा है ।

‘ता’ प्रत्यय वाले कुछ और शब्दों के उदाहरण :

मानवता : मानव + ता
कोमलता : कोमल + ता
वास्तविकता : वास्तविक + ता
समानता : समान + ता
लोकप्रियता : लोकप्रिय + ता
सफलता : सफल + ता
मनुष्यता : मनुष्य + ता

प्रत्यय की परिभाषा

वे शब्दांश जो शब्द के अंत में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं , उन्हें प्रत्यय कहते हैं।

जैसे :

महान + ता = महानता

घुमक्कड़ता = घूम + अक्कड़ + ता

घुमक्कड़ता में ‘ता’ और ‘अक्कड़’ प्रत्यय हैं जो घूम के साथ जुड़कर नए शब्द का निर्माण कर रहे है।

प्रत्यय मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –

1) कृत प्रत्यय

2) तद्धित प्रत्यय


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‘प्रत्युत्तर’ शब्द में से मूल शब्द व उपसर्ग अलग-अलग करें।

मृदुला गर्ग 15 अगस्त 1947 का स्वतंत्रता समारोह देखने क्यों नहीं जा सकी?

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‘मृदुला गर्ग’ 15 अगस्त 1947 का स्वतंत्रता समारोह देखने इसलिए नहीं जा सकी, क्योंकि वह बीमार थी।

जब 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिली और देश की स्वतंत्रता का समारोह मनाया जा रहा था तो लेखिका मृदुला गर्ग को टाइफाइड का रोग हो गया था। इसी कारण लेखिका स्वतंत्रता समारोह में नही जा सकी।

लेखिका ने ‘मेरे संग की औरतें’ पाठ में वर्णन किया है कि 15 अगस्त 1947 को जब देश को स्वतंत्रता मिली तो वह अपने पिताजी के साथ देश की स्वतंत्रता के समारोह में शामिल होने के लिए नहीं जा सकी, क्योंकि उस समय उन्हें टाइफाइड का रोग हो गया था।

टाइफाइड बीमारी उस समय जानलेवा बीमारी मानी जाती थी। लेखिका के डॉक्टर ने इंडिया गेट जाकर में जश्न में शिरकत होने की इजाजत नहीं दी। डॉक्टर लेखिका के नाना के परम मित्र थे। इसीलिए लेखिका के पिता और नाना ने उनकी बात मानी। लेखिका मृदुला गर्ग समारोह में जाने के लिए रोती रही, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी, तब लेखिका की आयु 9 वर्ष की थी।

संदर्भ पाठ :

‘मेरे संग की औरतें’ पाठ में लेखिका मृदुला गर्ग ने अपने जीवन के संस्मरणओं का वर्णन किया है। यह पाठ उन्होंने अपने परिवार की महिलाओं को केंद्रित करके लिखा है। (कक्षा-9, पाठ-11 हिंदी कृतिका)


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शादी के बाद मृदुला गर्ग बिहार के कौन से कस्बे में रहने लगी? A. राजेंद्र नगर B. डालमियानगर C. कंकरबाग D. पाटलिपुत्र (पाठ : मेरे संग की औरतें)

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‘आज्ञा’, ‘अवज्ञा’, ‘ज्ञानी’, ‘विद्वान’ इन शब्दों का वर्ण-विच्छेद करें।

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उपरोक्त शब्दों के वर्ण विच्छेद इस प्रकार होंगे :

आज्ञा : आ + ज् + ञ् + आ

अवज्ञा : अ + व् + अ + ज् + ञ् + आ

ज्ञानी : ज् + ञ + आ + न् + ई

विद्वान : व् + इ + द् + व् + आ + न् + अ

हम जानते हैं कि शब्दों की रचना वर्णों को मिलाकर होती है। वर्णों के समूह को शब्द कहा जाता है। वर्ण दो रूप में होते हैं, स्वर एवम् व्यंजन। स्वर एवम् व्यंजन के रूप में दोनों वर्णों को मिलाकर अनेक तरह के शब्द रचे जाते हैं।

वर्ण विच्छेद से तात्पर्य शब्दों को वर्णो के रूप में अलग-अलग करने से होता है। वर्ण-विच्छेद की प्रक्रिया में शब्द में प्रयुक्त सभी वर्णों अर्थात स्वर के रूप में मात्राएं तथा व्यंजन के रूप में पूर्ण वर्णों के पृथक कर लिया जाता हैं।

संक्षेप में कहें तो शब्दों को हिज्जों (स्पेलिंग) अर्थात उसके मूल वर्णों के रूप में प्रयुक्त कर देने की प्रक्रिया को ही वर्ण-विच्छेद कहते हैं।


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मुहावरों का अर्थ और वाक्यों में प्रयोग कीजिए 1. आँचल में छिपा लेना 2. आँसुओं का समुद्र उमड़ना

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दिए गए दोनों मुहावरों का अर्थ एवं उनका वाक्य प्रयोग इस प्रकार होगा :

 

मुहावरा : आँचल में छुपा लेना

अर्थ : गले से लगा लेना, प्रेम से अपने से छोटे को गले लगा लेना।

वाक्य प्रयोग-1 : राजू को मैदान में खेलते हुए चोट लगने जब वह अपने घर रोते हुए आया तो उसकी माँ ने उसको रोते हुए देख कर अपने आँचल में छुपा लिया।

वाक्य प्रयोग-2 : मोहन ने जैसे ही अपनी माँ को अपनी कक्षा में प्रथम आने की सूचना दी तो उसकी माँ ने खुशी के कारण मोहन को अपने आंचल में छुपा लिया।

 

मुहावरा : आँसुओं का समंदर उमड़ना।

अर्थ : करुणा से भर उठना, दुख के कारण आँखों में आँसू जाना।

वाक्य प्रयोग-1 : ससुराल से प्रताड़ित बेटी जैसे ही अपने मायके आई उसने अपने पिता को अपनी जब अपनी आपबीती बताई तो उसकी आँखों में आँसुओं का समंदर उमड़ रहा था।

वाक्य प्रयोग-2 : रामलाल के बेटे का अपहरण हो गया था, जब वे पुलिस के पास रिपोर्ट लिखाने गए तो उनकी आँखों में आँसुओं का समंदर उमड़ रहा था।

मुहावरे क्या हैं?

मुहावरों से तात्पर्य उन छोटे-छोटे वाक्यांशों से होता है जो किसी विशिष्ट अर्थ को प्रकट करते हैं। मुहावरे अपने-अपने पूर्ण वाक्य नहीं होते बल्कि वह वाक्यांश होते हैं, जो किसी बाकी के बीच में प्रयुक्त किए जाते हैं, जिससे उस वाक्य का वजन बढ़ जाता है और मुहावरों के माध्यम से कोई बड़ी बात छोटे शब्दों में कह दी जाती है।


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मधुरस मे कौन सा समास है?

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माताजी ने पत्र लिखा कौन सा काल है?

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‘माताजी ने पत्र लिखा।’ इस वाक्य में काल का भेद इस प्रकार होगा :

वाक्य : माताजी ने पत्र लिखा।
काल का भेद : भूतकाल
भूतकाल का उपभेद : सामान्य भूतकाल

 

स्पष्टीकरण

इस वाक्य में भूतकाल इसलिए होगा क्योंकि इस वाक्य में जो क्रिया सम्पन्न हुई है, उस क्रिया का भूतकाल में सम्पन्न होने का बोध हो रहा है।

यहाँ पर भूतकाल का उपभेद ‘सामान्य भूतकाल’ लागू होगा।

सामान्य भूतकाल उपभेद में किसी कार्य के बीते समय में सामान्य रूप से सम्पन्न होने का बोध होता है। इस वाक्य में यही बोध हो रहा है इसलिए इसमें सामान्य भूतकाल होगा।

काल के बारे में और जाने :

काल का अर्थ – समय होता है । काल की परिभाषा क्रिया के जिस रूप से कार्य के होने के समय का पता चले उसे काल कहते हैं ।
काल को हिन्दी व्याकरण में काल को तीन भेद में बाँटा गया है जो निम्नलिखित है ।

1. वर्तमानकाल – आज के समय का बोध कराने वाला ।
2. भूतकाल – बीते समय का बोध कराने वाला ।
3. भविष्यत काल – आने वाले समय का बोध कराने वाला ।

वर्तमान काल क्रिया के जिस रूप से यह पता चले की काम अभी हो रहा है, उसे वर्तमान काल कहते हैं।

जैसे :

राम अभी-अभी आया है ।
मोहन पढ़ रहा है ।

भूतकाल भूतकाल दो शब्दों के मेल से बना है – भूत + काल । भूत का अर्थ होता है जो बीत गया और काल का अर्थ होता है समय अर्थात जो समय बीत गया है । क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है की काम समाप्त हो गया है , उसे भूतकाल कहते हैं ।

जैसे :

रमेश पटना गया था ।
कल बारिश हो रही थी ।

भविष्यत काल क्रिया के जिस रूप से क्रिया के आने वाले समय में पूरा होने का पता चले उसे भविष्यत काल कहते हैं ।

जैसे :

मैं कल शिमला जाऊँगा ।
कल पिता जी आएंगे ।


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‘मधुरस’ मे कौन सा समास है?

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‘मधुरस’ मे समास इस प्रकार होगा :

मधुरस : मधुर है रस जो

समास का नाम : कर्मधारण्य समास

 

स्पष्टीकरण :

‘मधुरस’ में ‘कर्मधारण्य समास’ होगा। क्योंकि इसके समास विग्रह में पहला पद एक विशेषण कार्य कर रहा है, और दूसरा पद एक विशेष्य है।

‘कर्मधारय समास’ में दोनों पदों में पहला पद एक विशेषण का कार्य करता है और दूसरा पद विशेष्य से होता है अर्थात पूर्व पद उपमान का कार्य करता है और उत्तर पद उपमेय का कार्य करता है।

कर्मधारण्य समास

‘कर्मधारण्य समास’ की परिभाषा के अनुसार समास का वह रूप जिसमें दोनों पद में पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य से होता है और दोनों पदों में उपमान एवं उपमेय का संबंध होता है, वहाँ कर्मधारण्य समास होता है।

कर्मधारय समास के कुछ अन्य उदाहरण :

नीलकमल : नीला है जो कमल अथवा नीला कमल
पीतांबर : पीला है जो अंबर (पीला वस्त्र।
महात्मा : महान है जो आत्मा (महान आत्मा)
देहलता : देह रूपी लता

समास
समास से तात्पर्य दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से बने विशेष शब्द से होता है।

समास के 6 भेद होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं :

  • अव्ययीभाव समास
  • तत्पुरुष समास
  • कर्मधारय समास
  • बहुव्रीहि समास
  • द्वंद्व समास
  • द्विगु समास

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बिजली अधिकारी व उपभोक्ता के बीच हुए संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

बिजली अधिकारी व उपभोक्ता के बीच संवाद

 

उपभोक्ता : जनाब मेरा बिजली का बिल इस महीने 2500 रुपये आया है, जबकि मैं और मेरा परिवार पिछले पूरे महीने घर पर मात्र 2 दिन ही रहा है। हमारा घर पूरा दिन बंद रहा है। हमने बिजली का उपयोग ही नही किया तो इतना बिजली का बिल कैसे आ गया?

बिजली अधिकारी : देखिये, यह संभव नहीं है, हमारे यहाँ से गलत बिल नहीं भेजा जाता।

उपभोक्ता : श्रीमान जी, मैं जब घर पर ही नहीं था और मेरा परिवार भी शहर से बाहर था , तो ऐसा कैसे हो सकता है।

बिजली अधिकारी : यह भी तो हो सकता है आप सारे घर की लाइट्स जला कर चले गए हों।

उपभोक्ता : नहीं जनाब, घर की सब लाइट्स बंद करके ही मैं गया था और इसका प्रमाण मेरे पड़ोसी हैं।

बिजली अधिकारी : तो फिर हो सकता है आप के घर से कोई बिजली चोरी कर रहा है।

उपभोक्ता : नहीं जनाब, यह हो नहीं सकता क्योंकि मेरा घर एक कॉलोनी के बीच है और सब के घरों में अलग-अलग बिजली के मीटर लगे हैं और सबकी बिजली की तारें भी अलग- अलग जगह से आती हैं, इसलिए चोरी का कोई सवाल ही नहीं उठता। और सुरक्षा गार्ड भी 24 घंटे कॉलोनी में रहता है।

बिजली अधिकारी : अगर ऐसा है तो आप अपनी शिकायत लिखित रूप में करें ताकि विभाग उचित जांच करवा सके।

उपभोक्ता : ठीक है, शिकायत पत्र मैं कल ही आपके कार्यालय में जमा कर दूँगा और आप से अनुरोध है कृपया इसका समाधान शीघ्र करवाने की कृपा करें ताकि असल बिजली का बिल मैं समय से भर सकूँ, अन्यथा मेरा बिजली का कनेक्शन कट जाएगा।

बिजली अधिकारी : आप चिंता न करें, आप की शिकायत पर तुरंत कार्यवाही होगी और अगर बिल में कोई त्रुटि पायी जाती है तो उसे शीघ्र ठीक कर दिया जाएगा।

उपभोक्ता : धन्यवाद।


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नवभारत समाचार पत्र के संपादक को पत्र लिखकर बताये की दूरदर्शन का कार्यक्रम आपको क्यों पसंद नहीं आया?

औपचारिक पत्र

संपादक को पत्र

दिनांक 14.3.2024

 

सेवा में,
मुख्य संपादक,
नवभारत,
जंतर मंतर,
न्यू दिल्ली -110001

 

विषय- दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम हेतु।

 

संपादक महोदय,

मैं दिल्ली के जहाँगीर पुरी का एक स्थायी निवासी हूँ और पिछले 20 साल से यहाँ रह रहा हूँ। महोदय, पिछले सप्ताह दूरदर्शन पर एक दहेज पर कार्यक्रम का प्रसारण किया गया था आर इस पत्र के माध्यम से मैं इस कार्यक्रम के बारे में ही कुछ बातें आप से साझा करना चाहता हूँ।

इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के बारे में जनता को बताना था लेकिन इस कार्यक्रम में यह भी दर्शाया गया कि दहेज देकर माता-पिता अपनी संतान के सुख-समृधि सुनिश्चित कर लेते हैं और इसका तो यह मतलब हुआ कि अगर कोई माँ-बाप मर्जी से दहेज देते हैं तो इसमें  कोई गलत बात नहीं है।

श्रीमान, अगर ऐसा ही संदेश हम अपने कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को देंगे तो यह दहेज प्रथा जैसा दानव कभी खत्म नहीं होगा। जब यह कहा जाता है की जुर्म करने वाला और जुर्म सहने वाला दोनों दोषी होते हैं तो यह कैसे मान लिया जाये कि दहेज अगर खुशी से दिया जा रहा है तो यह सही है। उस कार्यक्रम में भी यह दिखाया गया कि लड़के वाले दहेज नहीं मांग रहे थे, लेकिन जब लड़की वालों ने दहेज देने की बात कही तो वो एकदम से राजी हो गए। यह तो वही बात हुई कि कान एक हाथ से नहीं दूसरे हाथ से पकड़ लो।

अगर इस दहेज रूपी अजगर को इस समाज से हटाना है तो हमें यह जनता के सामने लाना होगा कि दहेज मांगने वाले तो गलत हैं लेकिन दहेज जबर्दस्ती देने वाले इस प्रथा को जीवित रखने में ज्यादा ज़िम्मेवार हैं और इसलिए दूरदर्शन जिसके कार्यक्रम पूरे देश में प्रसारित होते हैं, को ऐसे कार्यक्रम दिखाने चाहिए जो समाज में एक सही संदेश दे सके और ऐसे कार्यक्रमों में तुरंत प्रभाव से अंकुश लगना चाहिए जो इन सामाजिक कुरीतियों को और बढ़ावा देने के तरीके सुझाते हैं।

कृपया आप अपने समाचार पत्र में इस मुद्दे को जरूर जगह दें ताकि दूरदर्शन और अन्य चैनल ऐसे कार्यक्रम भविष्य में ना प्रसारित करें।

धन्यवाद ।

एक पाठक,
राजेंद्र कुमार,
संकटमोचन कॉटेज,
A-ब्लॉक,
जहांगीरपुरी,
नई दिल्ली-110013


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बेटी : (दौड़ कर अंदर आते हुए) माँ, आज मैं बहुत खुश हूँ।

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माँ : ठीक है बेटा, मैं तुम्हारे पिताजी को पैसे देने को बोल दूंगी।

बेटी : हाँ, माँ, अभी आपको मैं अपनी नई ईबुक टैबलेट दिखाती हूँ।

माँ : मुझे बड़ी खुशी हो रही है, अब तुम जल्दी से हाथ-मुँह धो लो और खाना खा लो। खाना खाने के बाद आराम से तुम्हारी ई-बुक टैबलेट देखेंगे।

बेटी : ठीक है माँ।


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औपचारिक पत्र

भारत सरकार द्वारा राज्य सरकार को पत्र

दिनांक : 12/02/2024

 

प्रमुख निजी सचिव,
शिक्षा मंत्री,
भारत सरकार,
नई दिल्ली-110018,

सेवा में,
माननीय शिक्षा मंत्री,
हिमाचल सरकार,
राज्य सचिवालय, शिमला-171002

 

विषय : रैंगिग को रोकने हेतु आवश्यक दिशा-निर्देश व सुझाव ।

 

माननीय मंत्री जी,
जैसा कि आप जानते ही है  कि कॉलेज में रैगिंग एक विकट समस्या है और इसे रोकने के लिए भारत सरकार निरंतर कठोर कदम उठाती आ रही है। लेकिन अभी भी इस रैगिंग रूपी राक्षस पर पूरी तरह से लगाम नहीं लगाई जा सकी है।
पिछले ही महीने आपके ही राज्य में एक 21 वर्षीय छात्र ने इस रैगिंग से तंग आकर ख़ुदकुशी कर ली थी। केंद्र सरकार ने ऐसी घटनाओं पर कड़ा रुख अपनाने को कहा है और जिस राज्य में भविष्य में कोई ऐसी घटना संज्ञान में आएगी, उस राज्य सरकार पर कानून के माध्यम से कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

जहाँ तक छात्रों का परिचय लेने तक की बात है, सब ठीक है लेकिन अगर यह शारीरिक यातना तक पहुँच जाए तो यह मुद्दा अत्यंत निंदनीय और सोचनीय है। एक स्वच्छ समाज में ऐसी हरकतें सारे देश की छवि को धूमिल करती हैं। इस तरह की अवांछित घटनाओं  लगाम लगाना बहुत अनिवार्य हो गया है।

केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए नए आदेशों के मुताबिक, अगर कोई भी विद्यार्थी किसी नये छात्र को रैगिंग के नाम पर तंग करता पाया जाए तो उसके खिलाफ कठोर कदम उठाए जाएँ और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि ऐसे विद्यार्थी को किसी अन्य महाविद्याल्य में प्रवेश भी न मिल सके। केंद्र सरकार ने ऐसे असामाजिक तत्वों के लिए जेल भेजने के भी नए नियमों को अपनी मंजूरी दे दी है।

केंद्र सरकार सारे राज्यों की सरकाओं से यह आग्रह करती है कि महाविद्यालयों में इस संदर्भ में जागरूकता सत्रों का आयोजन करे और ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों को इस बावत सूचित करे कि अगर वो रैगिंग जैसी किसी भी गतिविधि में शामिल होंगे तो उनके भविष्य पर पूर्ण विराम लगना निश्चित है।

इस पत्र के माध्यम से आप से अनुरोध है कि इस अमानवीय प्रथा को रोकने के लिए संबंधित अधिकारियों को सख्त कदम उठाने के निर्देश दें और इस बावत तिमाही रिपोर्ट अधोरेखित को भेजने की कृपा करें।

धन्यवाद

भवदीय,
राकेश सिन्हा
(निजी सचिव) शिक्षा मंत्री (भारत सरकार)


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अपने मित्र को नए विद्यालय और सहपाठियों के साथ व्यवस्थित होने के बारे में पत्र लिखें।

फ़ीस माफ़ी के लिए प्रधानाचार्य को पत्र लिखो।

‘प्रत्युत्तर’ शब्द में से मूल शब्द व उपसर्ग अलग-अलग करें।

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प्रत्युत्तर में उपसर्ग और मूल शब्द इस प्रकार है…

प्रत्युत्तर : प्रति + उत्तर
उपसर्ग : प्रति
मूल शब्द : उत्तर

 

प्रत्युत्तर का अर्थ है, किसी भी क्रिया के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करना। जब कोई क्रिया होती है, कोई कर्म होता है, और आरोप या आक्षेप लगता है तो उसकी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप जो क्रिया की जाती है, उसे प्रत्युत्तर कहते हैं।


प्रकृति और मनुष्य के बीच हुए एक संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

प्रकृति और मनुष्य के बीच संवाद

 

मनुष्य  : (चलते-चलते) शुक्र है, एक पेड़ तो मिला अब बैठ कर आराम करता हूँ।

प्रकृति : (पेड़ के अंदर से आवाज़ आई) तुम कौन हो ? यहाँ क्या कर रहे हो।

मनुष्य  : (हैरानी से इधर:उधर देखते हुए) तुम कौन हो और कहाँ हो ?

प्रकृति : (गुस्से से) मैं प्रकृति हूँ। जिस पेड़ की छाया मैं तुम बैठे हो वो मैं ही हूँ।

मनुष्य  : (प्रणाम करते हुए) हे देवी! आप इतना नाराज़ क्यूँ हैं ?

प्रकृति : (और अधिक गुस्से से) नाराज़ कैसे ना होऊं। तुम मनुष्यों ने अपने स्वार्थ मुझे बहुत नुकसान पहुँचाया है। प्रकृति को पूरी तरह नष्ट करके रख दिया है। अब यहाँ क्या लेने आए हो ?

मनुष्य : (शर्मिंदा होते हुए) हे देवी! आप हमें माफ़ कर दीजिए। हम अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हैं।

प्रकृति : हे मनुष्य ! आज तुम्हें इतने वर्षों के बाद माफ़ी माँगने का ख्याल कैसे आया ?

मनुष्य: (आँखों में आँसू) हे देवी! आज हम बहुत मुश्किल में है। आपका गुस्सा हम मनुष्यों को झेलना पड़ रहा है। चारों ओर महामारी फैल रही है। साँस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। बाढ़ और भू:स्खलन होता आ रहा है। दुनिया पर संकट के बाद छाते जा रहे हैं।

प्रकृति : सुनो मनुष्यो ! यह सब तुम्हारे ही कर्मों का फल है। अब इसे भुगतना ही पड़ेगा। तुमने मुझे जो नुकसान पहुँचाया है, मुझे जो तकलीफ दी है तो अब मेरा गुस्सा झेलो।

मनुष्य : (घुटनों के बल बैठ कर) हे देवी ! हमें माफ़ करो। कुछ तो करो हमारे लिए। हम सब संकट में हैं।

प्रकृति : मैं कुछ नहीं कर सकती जो भी करना है वो तुम्हें ही करना होगा।

मनुष्य : (उत्सुकता से) बताइए देवी हमें क्या करना होगा जैसा आप कहोगी हम वैसा ही करेंगे।

प्रकृति : ठीक है, जाओ अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाओ। अवैध निर्माण बंद करो। कंक्रीट के जंगल बिछाना बंद करो। वनों और वन की संपदा से छेड़छाड़ मत करो। प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करो। वनों का अवैध कटाव रोको।

मनुष्य  : हे देवी प्रकृति! धन्यवाद। आपने हमें समय रहते जगा दिया। हम मनुष्य आपसे वादा करते हैं कि आपके द्वारा बताए गए सुझावों पर अमल करेंगे।


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किसान व जवान के बीच हुए संवाद को लिखें।

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डॉ. चंद्रा ने अपनी माँ का चित्र कहाँ लगा रखा था?

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डॉ. चंद्रा ने अपनी माँ का चित्र अपनी एल्बम के अंतिम पृष्ठ पर लगा रखा था।

डॉ. चंद्रा ने अपनी माँ श्रीमती ‘टी सुब्रह्मण्यम’ का चित्र अपनी एल्बम के अंतिम पृष्ठ पर लगाया था, जिसमें वह बेंगलुरु में भी एक समारोह में ‘वीर जननी’ का पुरस्कार ग्रहण करते हुए दिखाई गई थी। डॉ. चंद्रा द्वारा लगाए गए एल्बम में लगाए गए उसकी माँ की बड़ी बड़ी उदास एवं व्यथा को प्रकट करने वाली आँखें थी। डॉक्टर चंद्रा की माँ ने अपनी बेटी डॉ. चंद्रा की सफलता के लिए अपने सारे सुखों को त्याग कर कठिन साधना की और अपनी बेटी को सफल बनाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया।

‘अपराजिता’ पाठा की कहानी लेखिका शिवानी द्वारा लिखा गई एक प्रेरणादायकी कहानी है। इस पाठ में डॉक्टर चंद्रा के अदम्य साथ का वर्णन किया गया है। डॉक्टर चंद्रा एक अपाहिज लड़की थी, जिसके कमर से नीचे का हिस्सा काम नहीं करता था और वह व्हीलचेयर के सहारे चलती थी। अपनी शारीरिक कमी होने के बावजूद डॉक्टर चंद्रा ने हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई पूरी की। डॉ. चंद्रा ने बीएससी, एमएससी, पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी। चंद्रा के द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में उसकी माँ टी सुब्रह्मण्यम ने सबसे अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अपने व्यक्तिगत सुखों को त्याग कर अपनी बेटी को आगे बढ़ाने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी और अपनी बेटी को उनके उसके लक्ष्य तक पहुंचाने पहुंचाकर ही दम लिया।

(पाठ ‘अपराजिता’ लेखिका – शिवानी, पाठ – 13, कक्षा – 8)


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अपराजिता शब्द का निम्नांकित में से कौन सा अर्थ है? (क) जो विकलांग हो (ख) जिसने हार ना मानी हो (ग) जो आपस का ना होगा (घ) जो दूसरों से भिन्न हो

‘कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए। (पाठ – अपराजेय)

द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना क्यों की​?

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द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना इसलिए की थी क्योंकि कौरव चक्रव्यूह के माध्यम से युधिष्ठिर व अन्य पांडवों को फंसाकर उनका वध करना चाहते थे।

महाभारत में युद्ध के समय कौरवों ने चक्रव्यूह में युधिष्ठिर आदि को फंसा कर उनका वध करने की योजना बनाई थी। उस समय अर्जुन युद्धभूमि में उपस्थित नहीं थे। वह किसी कार्य से बाहर गए थे।  कौरवों को पता था कि चक्रव्यूह तोड़ने की विधि केवल अर्जुन को ही पता है। युधिष्ठिर व अन्य पांडव चक्रव्यूह को नहीं तोड़ सकते। इसलिए उन्होंने चक्रव्यूह रच कर पांडवों को फंसाकर उनका वध करने की योजना बनाई।

कौरवों ने द्रोणाचार्य को चक्रव्यूह की रचना करने के लिए कहा क्योंकि चक्रव्यूह केवल द्रोणाचार्य ही रच सकते थे।

यही कारण था कि युधिष्ठिर सहित अन्य पांडवों को चक्रव्यूह में फंसाकर उनका वध करने हेतु कौरवों के कहने पर द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की थी।

हालाँकि कौरव पूरी तरह अपनी योजना में सफल नही हो पाये क्योकि वो युधिष्ठिर व अन्य पांडवों को चक्रव्यूह में नही फंसा सके बल्कि अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश कर गया लेकिन वो चक्रव्यूह से बाहर नही निकल पाया और कौरवों द्वारा चक्रव्यूह में फंसाकर उसका वध कर दिया गया।


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कवि रसखान पत्थर के रूप में किस का अंश बनना चाहते हैं?

किसान व जवान के बीच हुए संवाद को लिखें।

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किसान और जवान के बीच संवाद

 

किसान : (जवान को देखते ही) जय हिन्द।

जवान : (छाती चौड़ी करके) जय हिन्द।

किसान : (हाथ जोड़कर) भारतीय सेना हमारा अभिमान है जिस पर हर हिंदुस्तानी को गर्व है।

जवान : (बड़े फख्र से) जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

किसान : अगर आज हम अपने घरों अपने परिवार के साथ सुरक्षित हैं। चैन की नींद सो रहे हैं तो वह इसलिए क्योंकि आप देश के जवान रात-दिन देश की सीमा पर तैनात है, अपनी जान दांव पर लगाकर। धन्यवाद

जवान : अरे! नहीं-नहीं यह तो हमारा फर्ज़ है।

किसान : जो आप हम लोगों के लिए करते है, उसके मुक़ाबले हम किसान तो कुछ भी नहीं कर सकते है।

जवान : (बड़ी ही विनम्रता से) किसान तो हम सबका अन्नदाता होता है।

किसान : (हैरानी से) अन्नदाता होता है, वो कैसे ?

जवान : किसान दिन भर कड़ी धूप में खेती करता है अनाज, फल और सब्जियाँ उगाता है। पूरे देश का भरण-पोषण करता है। आप जो अनाज उगाते हो उसे ही हम खाते हैं और देश की सेवा करते हैं।हर देश में किसान भूमिका बहुत महत्वपूर्ण  है।

किसान : अच्छा।

जवान : देश की अर्थव्यवस्था में किसान की भूमिका अहम होती है।

किसान : सबका अपना-अपना योगदान है। हमसे जो बन पड़ता है, वो करते हैं।

जवान : अच्छा, भाई जी, मैं चलता हूँ। जय हिंद

किसान : जय हिंद भाई। भारत माता की जय।


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किसान और शहर के युवक के बीच हुए संवाद को लिखिए।

चुनाव के मौसम में नेता और मतदाता के बीच हुए संवाद को लिखें।

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संवाद लेखन

एक किसान और युवक के बीच संवाद

 

युवक : (गाड़ी से उतर कर) राम-राम  रामू काका, कैसे हो ?

किसान : बस राम जी की कृपा है, तुम कैसे हो बेटा, शहर से कब आए

युवक : कल ही आया था। काका आप इतनी सुबह-सुबह यहाँ क्या कर रहे हो ?

किसान : (आसमान की और देखते हुए ) बहुत दिनों से बारिश नहीं हुई है। इसलिए खेतों की सिंचाई करने आया हूँ ताकि कहीं फसलें बर्बाद ना हो जाए।

युवक : (इधर-उधर देखते हुए) लेकिन काका यहाँ पर तो दूर-दूर तक कोई झील या तालाब भी नहीं है। आप सिंचाई कैसे करोगे ?

किसान : जल संचयन के द्वारा।

युवक : (बड़ी ही हैरानी के साथ ) काका,यह जल संचयन क्या होता है ?

किसान : (मुस्कुराते हुए) जल संचयन का मत्ब्लब होता हे बारिश के पानी को अलग-अलग तरीकों से संचित करना या बचना। तालाब या झील के अलावा भी ज़मीन के नीचे बनाए गए टैंक के ज़रीए भी जल का संचयन किया जा सकता है। जल संचयन को इंग्लिश में water harvesting कहते है।

किसान : (प्यार से समझाते हुए) बेटा आप चाहे कहीं भी पढ़ते हो, कहीं भी रहते हो, पर याद रखो कि हमारी मातृभाषा हिन्दी है और वह हमें ज़रूर आनी चाहिए।

युवक : जी काका, मैं आपकी बात हमेशा याद रखूँगा।


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चुनाव के मौसम में नेता और मतदाता के बीच हुए संवाद को लिखें।

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कौए को डूबता देख हंस का उसे बचाना कहाँ तक उचित था?

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कौए को डूबता देखकर हंस का उसे बचाना बिल्कुल उचित था, क्योंकि हंस कौए को केवल सबक सिखाना चाहता था। कौवा जब पानी में गिरकर डूबने लगा तो उसकी जान जा सकती थी। हंस स्वभाव के सज्जन होते हैं। वह कौए की तरह धूर्त नहीं होते इसलिए जहाँ एक ओर कौए ने स्वभाव के अनुसार वही किया जो उसका मूल स्वभाव था, वहीं हंस को भी अपना स्वभाविक आचरण करना था। इसीलिए जब कौआ पानी में गिर गया और डूबने वाला था तो हंस को दया आ गई और उसने फुर्ती से कौए के पास पहुंचकर उसको पानी से निकालकर उसे अपनी पीठ लिया बैठा लिया और उसकी जान बचा ली। यहां पर हंस ने अपने प्राकृतिक स्वभाव के अनुसार आचरण किया था, इसलिए कौए को डूबता देख हंस द्वारा उसे बचाना बिल्कुल उचित था।


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हमें वीरों से क्या सीखना चाहिए? (कविता – वीरों को प्रणाम)

चुनाव के मौसम में नेता और मतदाता के बीच हुए संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

नेता और मतदाता के बीच संवाद

 

नेता जी : (हाथ जोड़कर) नमस्कार भाई साहब। कैसे हैं आप?  अगले हफ्ते हमारे क्षेत्र में मतदान है। हमें वोट देना न भूलना। आपकी कृपा के कारण ही हम चुनाव जीतकर आपकी सेवा करने के लायक बन पाते हैं। हमने इस क्षेत्र के विकास के लिए अपनी पूरी जान लगा दी है।

मतदाता : (गुस्से में) हाँ, आप हमारे कारण चुनाव जीते थे, लेकिन आपने हमारे लिए कुछ नहीं किया। ना तो सड़कें बनवाई , ना स्कूल की नई इमारत का निर्माण करवाया। जिसका की आपने वादा किया था। आपनी बिजली का इंतजाम भी नहीं किया। पानी के नल भी नहीं लगवाए।

नेता जी : (आश्वासन देते हुए) पिछली बार फंड कम था लेकिन अबकी बार जीतने पर यही काम सबसे पहले करवाऊँगा।

मतदाता : (व्यंग्य कसते हुए) लेकिन आपने अपने मोहल्ले के तो सारे काम करवाए हैं। हमारे यहाँ पानी पीने को भी नहीं मिलता। हमें पानी लाने के लिए एक मील दूर जाना पड़ता है और आपने अपने घर के आँगन में पानी का फवारा लगवा रखा है।

नेता जी : अरे! आप लोग नाराज़ ना हो। अब ऐसा नहीं होगा। मैं इस बार सबसे पहले आप सब का ही काम करवाऊँगा।

मतदाता : नेता जी, आपने अपने विकास के लिए हम पर कर लगाए। महँगाई बढ़ाई और अपने गोदाम में जमाखोरी करवाई। आपने हमारे साथ विश्वासघात किया है।

नेता जी : (सर को हिलाते हुए) नहीं-नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यह विरोधी पक्ष की चाल हमें बदनाम करनें की। आप नाराज मत हो। आप तो हमारी जनता जनार्दन हो। हम आपके साथ कभी भी विश्वासघात नहीं कर सकते।

मतदाता : हम अब अपने वोट की कीमत जान चुके हैं। हम केवल शिक्षित और कर्मठ नेता को ही अपना वोट देंगे।

नेता जी : (शर्मिंदा होते हुए, हाथ जोड़ कर) आप हमें एक मौका और देकर देखें, हम आपको निराश नहीं करेंगे। हम वादा करते हैं।

मतदाता : (दरवाज़ा बंद करते हुए ) ठीक है हम देखेंगे।


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एक नेता और एक पत्रकार के बीच हुए संवाद को लिखिए।

रक्षाबंधन के अवसर पर भाई-बहन के बीच हुए संवाद को लिखें।

एक नेता और एक पत्रकार के बीच हुए संवाद को लिखिए।

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संवाद लेखन

नेता और पत्रकार के बीच संवाद

 

पत्रकार : (हाथ में सवालों की लिस्ट पकड़े हुए) नमस्कार! नेता जी, आइए आपका स्वागत है, हमारे स्टूडियो (प्रसारण कक्ष) में।

नेता : धन्यवाद! हमें आमंत्रित करने के लिए।

पत्रकार : हर बार चुनाव में खड़े होने वाले प्रतिनिधि हमारी समस्याओं का समाधान करेंगे, यह सोच कर जनता अपना मत (वोट) देती है, लेकिन हर बार उसे निराशा हाथ लगती है। उसके साथ धोखा होता है। आपके राज में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है।

नेता : (चश्मा उतारते हुए) लगता है कि आपको हमारे बारे मेंपूरी जानकारी नहीं है कि हमने क्या-क्या काम किए हैं। हमारे क्षेत्र में हर व्यक्ति के घर में टी.वी है इंटरनेट है गाड़ी है। हर व्यक्ति आज मैकडॉनल्ड्स में खाना खाता है। हमारे कार्यकाल में लोगों का जीवन जीने का तरीका ही बदल गया है।

पत्रकार : (मुस्कुराते हुए) नेता जी, आज का किसान मैकडॉनल्ड्स का बर्गर तो क्या उसे दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। हमारे मजदूर के पास गाड़ी तो क्या पाँव में पहनने के लिए चप्पल भी नहीं है। आज गरीब और ज्यादा गरीब और अमीर और ज्यादा अमीर होता जा रहा है।

नेता  : (बड़ी अकड़ के साथ) अरे ! लोगों का क्या है, वो तो कुछ भी कहते हैं। मैं जब से मंत्री बना हूँ, तब से अभी तक साक्षरता दर बढ़ कर 55% हो गई है। हमने अपने क्षेत्र में विकास के बहुत से कार्य किए है।

पत्रकार : (फटाक से जवाब देते हुए) केरल ओर मिजोरम में साक्षरता दर 90% है। जनता का कहना है कि आपने अपने क्षेत्र का विकास तो नहीं पर अपना विकास ज़रूर किया है।

नेता  : (नेता जी  गुस्से में स्टूडियो से बाहर जाते हुए) यह सब विपक्षी दल की चाल है, हमें बदनाम करने की और आप भी हमें यहाँ बुलाकर जनता के सामने बदनाम कर रहे हैं। हम पर झुठे आरोप लगा रहे हैं। आपसे हमें बात नहीं करनी।

पत्रकार : अरे, अरे नेताजी कहाँ जा रहे हैं? सवालों का जवाब तो देते जाइए।(नेताजी रुके नहीं और स्टूडियो से बाहर चले गए।)


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लॉकडाउन को तोड़कर घर से बाहर जाने वाले व्यक्ति और पुलिसकर्मी के बीच संवाद लिखें।

बुजुर्ग दंपति और लिफ्टमैन के बीच हुए संवाद का लेखन कीजिए।

‘दमा’ का विशेषण क्या होगा ?

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दमा का विशेषण इस प्रकार है :

शब्द : दमा
विशेषण : दमित
विशेषण का भेद : गुणवाचक विशेषण

‘दमा’ का विशेषण ‘दमित’ होगा और यह ‘गुणवाचक विशेषण’ है।

 

गुणवाचक विशेषण की परिभाषा

किसी भी व्यक्ति, वस्तु, स्थान के गुण, दोष, रंग, स्वाद, रूप, आकार, स्पर्श, स्थान, काल आदि का बोध कराने शब्द ‘गुणवाचक विशेषण’ कहलाते हैं।

नोट – दमा एक बीमारी है। इस कारण यह एक दोष है और इस कारण यह गुणवाचक विशेषण है।

विशेषण की परिभाषा :

जो शब्द संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता बताते हैं उन शब्दों को ‘विशेषण’ कहते हैं।

उदाहरण के तौर पर…

काली गाय हरी घास चर रही है ।

मोटा लड़का धीरे–धीरे चल रहा है।

सफेद घोडा तेज़ दौड़ता है।

उपरोक्त बोल्ड शब्द (काली, हरी, मोटा, सफेद) यह विशेषण शब्द है क्यूंकि ये शब्द संज्ञा शब्दों (गाय, मोटा, सफेद) की विशेषता बता रहे हैं।

विशेषण के चार भेद होते हैं :

1. गुणवाचक विशेषण
2. संख्यावाचक विशेषण
3. परिमाणवाचक विशेषण
4. संकेतवाचक विशेषण
5. सार्वनामिक विशेषण


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‘शिमला’ में कौन सा समास है? बताएं।

रामू नारियल के पेड़ पर चढ़ा कौन सा कारक चिन्ह है​?

‘उन्मुक्त’ शब्द का विपरीतार्थक शब्द है?

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उन्मुक्त शब्द का विपरीतार्थक शब्द इस प्रकार होगा..

उन्मुक्तअविमुक्त

लोम : उन्मुक्त

विलोम : अविमुक्त

उन्मुक्त’ शब्द का विपरीतार्थक या विलोम शब्द ‘अविमुक्त’ होगा।

स्पष्टीकरण 

उन्मुक्त का अर्थ है – आज़ाद , आबद्ध , बंधनमुक्त, खुला, मुक्त। उन्मुक्त स्वतंत्रता, आजादी, स्वच्छंदता, असीमितता का प्रतीक है।

अविमुक्त का अर्थ है – पाबंद , बँधा , निबद्ध।  अविमुक्त बंधन, गुलामी, सीमितता का प्रतीक है।

 

विपरीतार्थक शब्द की परिभाषा

किसी भाषा के वे शब्द जो एक – दूसरे के विपरीत या उलटा अर्थ देते हैं , वे विपरीतार्थक शब्द कहलाते है। विपरीतार्थक शब्दों को ही विलोम शब्द कहा जाता हैं । जिस शब्द का विपरीत अर्थ निकाला जाता है, उसे ‘लोम’ कहते हैं और जो विपरीत अर्थ वाला शब्द होता है, उसे ‘विलोम’ कहते हैं।

जैसे

  • रात का विलोम दिन
  • काला का विलोम गोरा
  • अच्छा का विलोम बुरा
  • सच्चा का विलोम झूठा
  • सत्य का विलोम असत्य
  • गरम का विलोम ठंडा

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कोयला खान से निकलता है, कारक बतायें।

”अब मैं नाच्यौ बहुत गोपाला” में कौन सा रस है?

मैं एक पिता हूँ। मुझे अपने बच्चे का नाम स्कूल से हटाना है। वह लेटर मैं कैसे लिखूंं?

औपचारिक पत्र लेखन

बच्चे का नाम स्कूल से हटाने के लिए प्रार्थना पत्र

दिनाँक : 1 अप्रेल 2024

सेवा में,
श्रीमान प्रधानचार्य,
राजकीय विद्यालय,
मेरठ (उ. प्र.)

विषय : विद्यालय से अपने बच्चे का नाम हटाने हेतु प्रार्थना पत्र

माननीय प्रधानाचार्य महोदय,

मेरा नाम ओमकार सिंह है। मेरा पुत्र अमित सिंह, आपके विद्यालय में कक्षा 9-ब का छात्र है। उसका रोल नंबर – 4 है। वह पिछले 5 वर्षों से आपके विद्यालय का छात्र है। मेरे पुत्र ने इसी वर्ष 9वीं की परीक्षा पास की है।

महोदय, अपने व्यवसायिक कारणों से मुझे परिवार सहित दिल्ली शहर में स्थानांतरित होना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में मुझे अपने पुत्र को दिल्ली के किसी स्कूल में एडमिशन कराने के लिए विद्यालय का स्थानांतरण प्रमाण पत्र (लिविंग सर्टिफिकेट) की आवश्कता पड़ेगी। आगामी 10 अप्रेल 2024 तक हम इस शहर से चले जाएंगे। आपसे अनुरोध है कि मेरे पुत्र अमित सिंह, का  नाम इस विद्यालय से काटकर उसका विद्यालय स्थानांतरण प्रमाणपत्र जारी करने की कृपा करें ताकि मैं दिल्ली शहर में अपने पुत्र का कक्षा – 10 में एडमिशन करा सकूं। मैंने अपने पुत्र की सारी फीस आदि भर दी हैं और मेरे पुत्र पर विद्याल का कोई शुल्क बकाया नही है। अतः आप शीघ्र से शीघ्र मेरे पुत्र का लिविंग सर्टिफिकेट जारी करने की कृपा करें। आपकी महान कृपा होगी।

धन्यवाद

भवदीय,
ओमकार सिंह,
नया नगर, मेरठ


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क्रिकेट अकादमी से छुट्टी लेने के संबंध में क्रिकेट अकादमी के चेयरमैन को आवेदन पत्र कैसे लिखें?

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उन तीन स्टेट्स का नाम बताइए जिसमें क्रांति से पहले फ्रांस का समाज विभाजित था।

फ्रांस की क्रांति से पहले फ्रांस का समाज तीन स्टेट्स में विभाजित था। इन तीन स्टेट्स के नाम इस प्रकार हैं :

  • प्रथम स्टेट
  • द्वितीय स्टेट्स
  • तृतीय स्टेट्स

विस्तार से….

फ्रांस की आजादी से पहले 17वीं और 18वीं शताब्दी में फ्रांस का समाज 3 स्टेट में विभाजित था।  यह तीनों फ्रांस के प्रथम स्टेट, द्वितीय स्टेट और तृतीय स्टेट कहलाते थे। प्रथम स्टेट के लोगों में पादरी वर्ग के सदस्य होते थे, जो कैथोलिक चर्च से संबंध रखते थे। इसके अलावा इसमें राजशाही वर्ग के लोग भी होते थे।

द्वितीय स्टेट्स में कुलीन वर्ग के लोग होते थे। इनमें ड्यूक, विस्काउंट, शूरवीर तथा अन्य उल्लेखनीय उपाधियों से सम्मानित लोग इसमें शामिल होते थे। इसके अलावा शाही परिवार के सदस्य भी इसमें शामिल होते थे लेकिन राजा प्रथम स्टेट में शामिल होता था।

तृतीय स्टेट में फ्रांस की शेष आम जनता आती थी। जिसमें किसान, वकील, मजदूर, दुकानदार, व्यापारी तथा अन्य संबंधित लोग थे। यह फ्रांसीसी का आबादी का 96% हिस्सा होता था। तृतीय स्टेट के लोगों को हर तरह का कर देना अनिवार्य था। फ्रांसीसी समाज में जितने भी कर लागू थे, वे सभी तृतीय स्टेट्स को देना अनिवार्य था, जबकि प्रथम और द्वितीय स्टेट के लोगों को बहुत से करों में छूट थी और उन्हें हर तरह का कर देना अनिवार्य नहीं था। फ्रांसीसी क्रांति का मुख्य कारण यह असमानता और भेदभाव भी बना था।


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17-18 वीं शताब्दी में फ्रांस का दशमांश क्या था?

फ्रांस को छींक आती है तो शेष यूरोप को ठंड लग जाती है यह किसने कहा ?

‘जब सिनेमा ने बोलना सीखा’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

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जब सिनेमा ने बोलना सीखा पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं। नई नई तकनीक और नई नई विधाएं आती रहती हैं और हमें उन्हें सहर्ष स्वीकार करके उन्हें अपना हाथ आजमाना चाहिए।

हमें अपना प्रयास करना चाहिए। किसी भी नए परिवर्तन के अनुसार स्वयं को ढाल कर उसमें कोशिश करने से सफलता अवश्य मिलती है और एक नई परंपरा की नींव भी पड़ती है। ‘जब सिनेमा ने बोलना सीखा’ पाठ में निर्देशक के यही बताया गया है। उस समय भारत में मूक फिल्मों का ही दौर था और सवाक फिल्में नहीं बनती थीं।

पहली सवाक फिल्म के निर्देशक आर्देशिर ईरानी ने विदेश में एक सवाक फिल्म देखी तो उन्हें भी भारत में सवाक फिल्में बनाने की प्रेरणा मिलीं। उन्होंने कई तरह की परेशानियों से निपट कर और संघर्ष करते हुए भारत की पहली सवाक फिल्म ‘आलम आरा’ बना ली। यह फिल्म संघर्षों से लड़ने और एक नई परंपरा डालने की सीख देती है, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह निर्देशक आर्देशिर ईरानी ने सवाक फिल्मों का दौर शुरू किया।

संदर्भ पाठ

‘जब सिनेमा ने बोलना सीखा’ – प्रदीप तिवारी (कक्षा 8, पाठ 11)


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पहली सवाक ‘आलम आरा’ फिल्म बनाते समय कोई संवाद लेखक और गीतकार क्यों नहीं था?

अपराजिता शब्द का निम्नांकित में से कौन सा अर्थ है? (क) जो विकलांग हो (ख) जिसने हार ना मानी हो (ग) जो आपस का ना होगा (घ) जो दूसरों से भिन्न हो

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अपराजिता शब्द का निम्नांकित में से अर्थ होगा :

() जिसने हार  मानी हो

स्पष्टीकरण

अपराजिता शब्द का शाब्दिक अर्थ है, जिसने हार ना मानी हो। अपराजिता अर्थात जो कभी पराजित ना हुई हो।जिसकी कभी हार ना हुई हो, जिसने कभी हार ना मानी हो। इसलिए विकल्प () सही विकल्प होगा।

अपराजिता  शिवानी द्वारा लिखा गया यह ऐसा ही पाठ है, जिसमें उन्होंने डॉक्टर चंद्रा नाम की एक विकलांग युवती की कहानी का वर्णन किया है। जिसने शरीर से विकलांग होते हुए भी अपने जीवन को एक चुनौती की तरह लिया और अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त किया। उसने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करके उन लोगों को प्रेरणा दी है, जो थोड़ी सी कमी होने पर ही हार मान लेते हैं।

‘अपराजिता’ पाठ में डॉक्टर चंद्रा एक ऐसी ही विकलांग युवती थी। जिसका कमर के नीचे का हिस्सा पोलियो ग्रस्त होने के कारण निष्क्रिय था और वह दिन चेयर के सहारे चलती थी। डॉ. चंद्रा ने अपनी शारीरिक विकलांगता तो एक चुनौती की तरह लिया और तमाम विषमाताओं और परेशानयियों के बावजूद अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।


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‘अपराजेय’ इस पाठ मे अमरनाथ की जगह आप होते तो समस्याओं का कैसे सामना करते?​

‘परिस्थिति के सामने हार न मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करने में ही जीवन की सार्थकता है।’ स्पष्ट कीजिए। (पाठ – अपराजेय)

अपने मित्र को नए विद्यालय और सहपाठियों के साथ व्यवस्थित होने के बारे में पत्र लिखें।

अनौपचारिक पत्र

अपने मित्र को नए विद्यालय और सहपाठियों के साथ व्यवस्थित होने के बारे में पत्र

 

दिनाँक : 3 सितंबर 2023

 

गौरव शर्मा,
123, शर्मा निवास,
जनता कॉलोनी,
फरीदाबाद

निरंजन मिश्रा,
2A, रमन निवास,
सिंह विहार,
गुड़गाँव

प्रिय मित्र निरंजन,

खुश रहो,

तुम्हारे हाल-चाल कैसे हैं? मैं तो यहाँ पर ठीक-ठाक हूँ, तुम अपनी बताओ। मित्र, तुम्हारे विद्यालय छोड़कर जाने के बाद तुम्हारी बहुत याद आती है। तुम्हारे पिताजी के ट्रांसफर के कारण तुम्हे ये शहर छोड़कर नये शहर जाना पड़ा। तुम अब नए विद्यालय जाने लगे हो।

तुमने अपने नए विद्यालय के बारे में लिखा कि अभी तुम वहां पर सहज नहीं हो पाए हो और विद्यालय में एकदम अलग-थलग बैठे रहते हो। तुम्हारी अभी किसी से दोस्ती नहीं हुई है।

मित्र निरंजन, परिवर्तन संसार का नियम है। हमें जीवन में अनेक बार अनेक तरह के परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है। इसलिए हमें सदैव किसी भी परिवर्तन के लिए तैयार रहना चाहिए। हाँ, मैं मानता हूं कि पुराना विद्यालय और उनके साथियों की याद तुम्हारे मन में बसी हुई है और नए विद्यालय के नए परिवेश में तुम अभी ढल नही पाए हो, लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ सही हो जाएगा।

तुम नियमित रूप से विद्यालय जाओ, और नए-नए सहपाठियों के साथ दोस्ती बनाने की कोशिशें आरंभ करो। तुम अपने सभी सहपाठियों में यह देखो कि कौन सा ऐसा सहपाठी है जिसके विचार तुम्हारे विचारों से मिलते हैं, जो तुम्हारे जैसा ही सोचता है। उससे अधिक दोस्ती बढ़ाओ।

तुम अपने सभी सहपाठियों से साथ मित्र जैसा व्यवहार रखो। और दो तीन सहपाठियों को अपना खास मित्र बनाओ जो तुम्हारे जैसे हों। हम लोगों की मित्रता भी तो इसी प्रकार हुई थी। जैसे-जैसे तुम्हारी दोस्ती बढ़ती जाएगी, तुम भी विद्यालय के वातावरण के ढलते जाओगे। आशा है तुम मेरे सुझाव पर गौर करोगे। मैं तुमसे मिलने जल्दी आऊंगा।

तुम्हारा मित्र,

गौरव


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आपका मित्र सीढ़ियों से गिर गया और उसके पैर में फैक्चर हो गया। इस कारण वह वार्षिक परीक्षा में नहीं बैठ पाया। अपने मित्र के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए उसे एक पत्र लिखिए।

आपके चाचा जी लोकसभा चुनाव जीत गये हैं। मतदाताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कामना करते हुए उन्हें बधाई पत्र लिखिये।

17-18 वीं शताब्दी में फ्रांस का दशमांश क्या था?

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‘दशमांश’ फ्रांस के मध्य कालीन युग में चर्च द्वारा किसानों पर लगाया जाने वाला ‘कर’ होता था।

दशमांश वह कर होता था,  जो धार्मिक योगदान के नाम पर किसानों से वसूल किया जाता था। इसे ‘तिथे’ (Tithe) कर कहते थे। यह किसानों की कुल उपज का दसवां हिस्सा था। किसान वर्ग फ्रांस में तृतीय एस्टेट से संबंध रखता था। इस कारण उसे यह कर देना अनिवार्य था।

तृतीय एस्टेट से संबंधित लोगों को फ्रांसीसी समाज में हर प्रकार का कर देना अनिवार्य होता था। दशमांश यानि तिथे कर के अलावा टाइल और वेंग्टिन जैसे ऐसे अनेक कर थे जो फ्रांसीसी समाज में तृतीय स्टेट पर लगाए जाते थे। मध्यकालीन युग में फ्रांसीसी समाज तीन भागों में विभाजित था।

  • प्रथम स्टेट
  • द्वितीय स्टेट
  • तृतीय स्टेट

प्रथम स्टेट में पादरी वर्ग एवं कुलीन वर्ग के लोग आते थे।

द्वितीय स्टेट में प्रबुद्ध वर्ग और संपन्न वर्ग के लोग शामिल थे।

जबकि तृतीय स्टेट में आम जनता शामिल थी, जिसमें किसान, बढ़ई, मजदूर, व्यापारी, वकील, डॉक्टर आदि सभी शामिल होते थे।


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फ्रांस को छींक आती है तो शेष यूरोप को ठंड लग जाती है यह किसने कहा ?

उन तीन स्टेट्स का नाम बताइए जिसमें क्रांति से पहले फ्रांस का समाज विभाजित था।

फ़ीस माफ़ी के लिए प्रधानाचार्य को पत्र लिखो।

औपचारिक पत्र

फ़ीस माफ़ी के लिए प्रधानाचार्य को पत्र

दिनाँक : 1 जुलाई 2023

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य
हिल व्यू विद्यालय,
आदर्श नगर,
न्यू शिमला

विषय : फ़ीस माफ़ी के लिए पत्र

महोदय,

सविनय निवेदन है मेरा नाम सुनीता शर्मा है। मैं आपके विद्यालय में कक्षा दसवीं ‘ब’ की छात्रा हूँ। मुझे नवीं कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। विद्यालय में होने वाली अन्य सभी प्रतियोगिताओं में भी मैंने पुरस्कार प्राप्त किया है।

मेरे पिताजी एक स्कूल में चपरासी हैं। हम कुल चार भाई–बहन हैं। हम सबकी पढ़ाई के जिम्मेदारी पिताजी की ऊपर है। लेकिन उनका वेतन हमारी पढ़ाई आदि के लिए पर्याप्त नही हो पाता है। हमारे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। इस कारण मेरे पिताजी को मेरे विद्यालय की फीस भरने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में मुझे अपनी पढ़ाई छूटने की आशंका होती रहती है। मैं अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहती हूँ।

सर, मेरा आपसे अनुरोध है कि मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए मेरी ‘फ़ीस माफ़’ करवाने की कृपा करें, ताकि मेरी पढ़ाई जारी रहे। मैं सदा आपका आपकी आभारी रहूँगी।

धन्यवाद,

आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या ,
सुनीता शर्मा,
अनुक्रमांक– 14,
कक्षा – 10


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‘सिल्वर वेडिंग’ के माध्यम से टूटते पारिवारिक मूल्यों के बारे में क्या बताया गया है?

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‘सिल्वर वेडिंग’ कहानी के माध्यम से उन टूटते हुए पारिवारिक मूल्यों के बारे में बताया गया है, जो दो पीढ़ियों के बीच टकराव के कारण उत्पन्न होते हैं। यह कहानी पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच विचारों एवं जीवन शैली के टकराव की कहानी है।

इस कहानी के कहानी के सबसे मुख्य पात्र यशोधर बाबू पंत पारंपरिक विचारधारा और पुरातन पंथी सोच वाले व्यक्ति हैं।  वह एक सरकारी दफ्तर में बाबू हैं। उनका जीवन सादगी वाले तरीके से बीता है, जबकि उनके बच्चे आधुनिक पीढ़ी के हैं, और आत्मनिर्भर भी बन चुके हैं। इसलिए अपने अनुसार जिंदगी जीना चाहते हैं। वे अपनी जीवन शैली अपनी विचारों के अनुसार ढालते हैं, अपने अनुसार मनचाहा खर्च करते हैं। जबकि यशोधर बाबू सोच-समझकर खर्च करने में यकीन रखते हैं।

बच्चे फैशनपरस्त हैं, जो पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में है, जबकि यशोधर सादगी पसंद है, और पारंपरिक भारतीय मूल्यों में विश्वास रखते हैं। इस कहानी में संयुक्त परिवारों में दो पीढ़ियों के बीच हो रहे टकराव की कहानी को वर्णित किया गया है, जहां पर परिवार का मुख्य कर्ता-धर्ता जो पुरानी पीढ़ी का है, वह अपनी संतान के लिए सब कुछ करता है और परिवार के सभी मुख्य निर्णयों में भागीदार रहा है। लेकिन उसकी वही संतान जब बड़ी हो जाती है तो वह ना तो परिवार के मुखिया को अपना सर्वे-सर्वा मानती है और ना ही उनकी बात मानती है। वह अपने अनुसार जिंदगी जीना चाहती है। परिवार का वह मुखिया खुद को उपेक्षित महसूस करता है। यशोधर बाब उसी मनोस्थिति से गुजर रहे हैं।

संदर्भ पाठ :

‘सिल्वर वेडिंग’ पाठ की कहानी मनोहर श्याम जोशी द्वारा लिखी गई एक सामाजिक कहानी है, जिसमें संयुक्त परिवारों में टूट रहे मूल्यों और पीढ़ियों के बीच टकराव को मुख्य आधार बनाया गया है।  यशोधर इसी कहानी के मुख्य पात्र हैं। जिनका अपनी संतानों के साथ विचारों का टकराव होता है।


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‘हिंसा परमो धर्मः’ कहानी के मूल भाव को अपने शब्दों में लिखो। (हिंसा परमो धर्मः – मुंशी प्रेमचंद)

मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं? इस पंक्ति में लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?

सरकारी कार्यालयों में राजभाषा हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग हो, इस अनुरोध के साथ हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक को पत्र लिखें कि वे इस विषय पर संपादकीय लेख प्रकाशित करें।

औपचारिक पत्र

सरकारी कार्यलयों में राजभाषा हिंदी के अधिक से अधिक प्रयोग के संबंध में संपादक को पत्र

दिनाँक : 31 मार्च 2024

सेवा में,
संपादक,
हिंदुस्तान टाइम्स,
कस्तूरबा गांधी मार्ग,
नई दिल्ली

विषय : सरकारी कार्यालयों में राजभाषा हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करने हेतु।

माननीय संपादक महोदय,
मैं आपके लोकप्रिय समाचार पत्र द्वारा सरकारी विभागों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ कि वह (विभाग) अपने कार्यालयों में राजभाषा हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करें। हिन्दी हमारी राजभाषा है और भारत के अधिकतर लोगों द्वारा बोली, पढ़ी, लिखी तथा समझी जाती है। हिन्दी के गौरव के साथ हमारा व हमारे राष्ट्र का गौरव जुड़ा है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप अपने समाचार पत्र में इस विषय पर एक संपादकीय लेख प्रकाशित करें, जिससे सरकारी विभागों के साथ–साथ आम लोगों में भी हिन्दी के प्रति रूचि जागृत हो।
धन्यवाद सहित,

निवेदक,
अभिनव,
मुख्य सचिव,
(हिन्दी विकास संस्था),


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अपने गाँव या मोहल्ले में नियमित विद्युत व्यवस्था ठीक करने के लिए सहायक विद्युत अभियंता को एक अनुरोध पत्र लिखें।

मिनी मेट्रो से लगने वाले जाम की शिकायत करते हुए जिलाधिकारी को पत्र लिखिये।

सोभित कर नवनीत लिए। घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥ चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए। लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥ कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए। धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥ सूरदास के इस पद का भावार्थ लिखिए।

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सोभित कर नवनीत लिए।
घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥
चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।
लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥
कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।
धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥

संदर्भ :  इस पद की रचना सूरदास ने की है। सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के भक्ति पदों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने अधिकतर पदों में श्रीकृष्ण के बाल रूप का लीलाओं का वर्णन किया है। इस पद में सूरदास जी ने बाल कृष्ण के अनुपम सौंदर्य अद्भुत मनोहारी चित्रण किया है।

भावार्थ : सूरदास जी कहते हैं कि बाल कृष्ण अपने हाथों में मक्खन लिए अद्भुत रूप से मनोहारी दिखाई देते हैं। अपने बाल रूप में जब वह घुटनों के बल चलते हैं और तो अद्भुत दृश्य उत्पन्न होता है। उनके मुँह पर दही लगा हुआ है तो उनके शरीर पर मिट्टी के छोटे-छोटे कण चिपके हुए हैं। उनके सुंदर कोमल गाल बेहद बेहद प्यारे दिखाई दे रहे हैं। बालकृष्ण की आँखों में चपलता और चंचलता है और उनके माथे पर गोरोचन का तिलक लगा हुआ है।

उनके लहराते बालों की आदि पर लटकती हुई और झूलती हुई लटें इस तरह प्रतीत हो रही है, जैसे कि भंवरा मीठे शहर को पीकर मतवाला उठता है। बालकृष्ण का यह असीम सौंदर्य को उनके गले में पड़ा हुआ कंठहार और उनके सिंह के समान नाखून और अधिक मनोहारी बना देते हैं।

सूरदास कहते हैं कि कृष्ण के इस अद्भुत बात रूप का वर्णन करते हुए कहते हैं कि कृष्ण के इस बाल रूप के दर्शन के लिए एक पल के लिए भी किसी को हो जाए तो उसका पूरा जीवन धन्य हो जाता है। जो लोग कृष्ण के इस अद्भुत रूप का दर्शन नही कर पाते उनका सौ कल्पों तक जीना भी निरर्थक है।

काव्य सौंदर्य :

सूरदास को वात्सल्य रस का सम्राट माना जाता है। उन्होंने इस पद को वात्सल्य रस से पूर्ण किया है। इस पद में कृष्ण के मनोहारी रूप का वर्णन होने का कारण इसमें श्रंगार रस भी प्रकट हो रहा है।

इस पद में सूरदास ने अलग-अलग अलंकारों की छटा भी बिखेरी।  इस पद में  अनुप्रास अलंकार, रूपक अलंकार और उत्प्रेक्षा अलंकार की छटा देखने को मिलती है


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सूरदास ने किन जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठा प्रदान की है?

कवि सूरदासजी के अनुसार कैसा व्यक्ति मूर्ख कहलाएगा?

‘हिंसा परमो धर्म:’ कहानी में कहानीकार कौन सा संदेश देते हैं? (हिंसा परमो धर्मः – मुंशी प्रेमचंद)

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‘हिंसा परमो धर्मः’ कहानी के माध्यम से लेखक मुंशी प्रेमचंद ने यह संदेश देने का प्रयत्न किया है कि अहिंसा की बात करने वाले सभी धर्मों में छोटी सी बात पर हिंसा करना बेहद सामान्य बातें है। धार्मिक लोग जरा-जरा सी बात पर हिंसक हो उठते हैं। सभी धर्मों में अहिंसा की बातों को बड़े जोर-जोर से उठाया जाता है, लेकिन धर्म का पालन करने लोग और धर्माधीश छोटी-छोटी बातों पर हिंसक हो जाते हैं।

लेखक ने कहानी के माध्यम से यही संदेश दिया है कि सभी धर्म की मूल प्रवृत्ति हिंसा से भरी होती है। लेखक के अनुसार सभी धर्मं में सूत्र वाक्य ‘अहिंसा परमो धर्मः’ नही बल्कि ‘हिंसा परमो धर्मः’ होना चाहिए। इस कहानी के माध्यम से उन्होंने धर्म में पहले पाखंड और दुराचार को भी उजागर करके धर्म की वास्तविकता को समझने का प्रतीक संदेश दिया है।

विशेष 

‘हिंसा परमो धर्मः’ कहानी को मुंशी प्रेमचंद ने लिखा है। इस कहानी का मुख्य जामिद नाम का एक सीधा-सादा ग्रामीण व्यक्ति है। जो गाँव के अपने सीधे-सरल जीवन को छोड़कर शहर चला आता है। शहर में आकर वह हिंदू और इस्लाम दोनों धर्मों में धर्म के नाम पर हो रही हिंसा, पाखंड और दुराचार को देखता है। वह देखत है कि धर्म के नाम पर हिंदू और मुसलमान दोनों आपस में लड़ते हैं तो उसे अपने गाँव का सीधा-सरल जीवन याद आ जाता है, जहाँ पर पर धर्म के नाम पर ये सब नही होता था। वह वापस अपने गाँव लौट जाता है।


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‘हिंसा परमो धर्मः’ कहानी के मूल भाव को अपने शब्दों में लिखो। (हिंसा परमो धर्म: – मुंशी प्रेमचंद)

‘संस्कृति है क्या’ निबंध में ‘दिनकर’ क्या संदेश देते हैं?

‘हिंसा परमो धर्मः’ कहानी के मूल भाव को अपने शब्दों में लिखो। (हिंसा परमो धर्मः – मुंशी प्रेमचंद)

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‘हिंसा परमो धर्मः’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक कहानी है। इस कहानी के माध्यम से लेखक मुंशी प्रेमचंद जी ने सभी धर्मों में फैले पाखंड और हिंसा की बात उठाई है।

कहानी का मूल भाव यह है कि धर्म हमेशा लड़ाने का कार्य करता है। उनके अनुसार सभी धर्मों के धर्माधीश बहुत अधिक असहिष्णु होते हैं। इस कहानी में ये बात स्पष्ट होती है, धार्मिक लोग चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले हों वह अपने-अपने धर्म में भले ही अहिंसा की बाते करते हैं, लेकिन मूल रूप से उनके स्वभाव में हिंसा ही भरी होती है। वह धर्म के नाम पर हिंसक होने से जरा भी नही चूकते।

लेखक के अनुसार अधिकतर धार्मिक लोगों का आचरण अधार्मिक होता है। वह धर्म में भले ही सदाचार की बातें करते हों, वास्तव में वह उतने ही दुराचारी होते हैं। लेखक के अनुसार अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग बाहर से सद्गुणी और सदाचारी होने का दिखावा करते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर उनमें अवगुण और दुराचार ही भरा होता हैं।

कहानी का मुख्य पात्र जामिद नाम का एक मुसलमान व्यक्ति है, जो एक छोटे से गाँव में रहता था। गाँव में हर किसी की मदद के तत्पर रहता था। वह किसी का छोटा-मोटा काम कर दिया करता था, बदले में कोई उसे कुछ खाना आदि दे दिया करता था। एक दिन लोगों ने उसे समझाया कि इस तरह तब तक दूसरों का काम करोगे, खुद अपने बारे में सोचो। बीमारी और बुढ़ापे में कोई तुम्हारे काम नही आने वाला। ये सुनकर जामिद वह अपने गाँव से शहर निकल पड़ा।

गाँव से शहर में आकर उसने धर्म के नाम पर हो रहे कारोबार को देखा। उसके गाँव में यह सब नहीं था। पहले उसे एक मंदिर में शरण मिली और उसकी खूब आवभगत हुई। कुछ दिनों बाद में मंदिर के वही धार्मिक लोग किसी बात हिंसक हो गए और उसकी पिटाई की। किसी तरह उसकी जान बची। फिर उसे एक मस्जिद में शरण मिली तो वहाँ पर शुरु में उसकी खातिरदारी हुई लेकिन वहाँ पर भी मौलवी द्वारा किसी महिला के प्रति गलत आचरण करते देख जामिद को सहन नही हुआ। उसने महिला को उस मौलवी से बचाया।

इस तरह उसने हिंदू और इस्लाम दोनों धर्मों में धर्म के नाम पर फैले हिंसक और दुराचार से भले कृत्यों को देखा तो उसे अक्ल आई कि इससे अच्छा उसका छोटा सा गाँव है, जहाँ पर न तो कोई मंदिर-मस्जिद है और न ही धर्म के नाम पर लोग इतना लड़ते हैं।

निष्कर्ष

मुंशी प्रेमचंद की इस कहानी ‘हिंसा परमो धर्मः‘ का मूल भाव यही है कि सभी धर्म हिंसा से भरे हुए हैं। सभी धर्म भले ही अहिंसा की बातें करते हैं। लेकिन उनका मूल धर्म हिंसा करना ही होता है। धर्म के नाम पर लोग जरा-जरा सी बात पर हिंसा करने के लिए उतारु हो जाते हैं। सदाचार की बात करने वाले सभी धर्माधीश दुराचार करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। यह कहानी धर्म के पाखंड को उजागर करती है।


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‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?

अलगू चौधरी पंच ‘परमेश्वर की जय’ क्यों बोल पड़ा​?

‘संस्कृति है क्या’ निबंध में ‘दिनकर’ क्या संदेश देते हैं?

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‘संस्कृति क्या है’ निबंध ‘रामधारी सिंह दिनकर’ द्वारा लिखा गया एक विवेचनात्मक निबंध है। इस निबंध के माध्यम से दिनकर जी ये संस्कृति के महत्व को स्पष्ट करते हुए संस्कृति की और सभ्यता में अंतर को समझने का संदेश देते हैं।

लेखक के अनुसार संस्कृति और सभ्यता में बेहद अंतर होता है। संस्कृत के निर्माण में कलात्मक अभिरुचि का गहन योगदान होता है। संस्कृति को किसी भी परिभाषा में बंधा नहीं जा सकता। यह व्यक्ति के व्यवहार और आचरण से संबंधित होती है। लोग अक्सर संस्कृति और सभ्यता को एक समझ बैठे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।

संस्कृति सूक्ष्मता का मूल भाव लिए होती है। इसके विपरीत सभ्यता स्थूल होती है। संस्कृति किसी भी व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व निर्माण करने में सहायक होती है, जबकि सभ्यता भौतिक साधनों से संबधित होती है।

लेखक के अनुसार संस्कृति मनुष्य के जीवन के अंदर व्याप्त होती है। यह उसी तरह मनुष्य के अंदर व्याप्त है, जिस तरह फूलों के अंदर सुगंध होती है। संस्कृति मनुष्य के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। किसी भी समाज के निर्माण में संस्कृति का बेहद योगदान होता है।समाज के निर्माण की मूल अवधारणा संस्कृति ही होती है। कोई भी सभ्य समाज संस्कृति के बिना नहीं निर्मित किया जा सकता है। एक सभ्य समाज के लिए सुसंस्कृत होना आवश्यक होता है।

निष्कर्ष

इस तरह दिनकर जी ने ‘संस्कृति क्या है? निबंध के माध्यम से संस्कृति की मूल अवधारणा को स्पष्ट किया है। उन्होंने संस्कृति और सभ्यता में भी अंतर को समझाने की चेष्टा की है।


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‘दाह जग-जीवन को हरने वाली भावना’ क्या होती है ? ​

हमें वीरों से क्या सीखना चाहिए? (कविता – वीरों को प्रणाम)

मुंबई मेल के एक डिब्बे में चढ़ना क्यों कठिन था​? (पाठ – धूपबत्ती जली-बुझी)

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मुंबई मेल के एक डिब्बे में चढ़ना कठिन इसलिए था, क्योंकि मुंबई मेल का हर डिब्बा एयरटाइट था यानी कि उसमें सब डिब्बे में मुसाफिर भरे हुए थे। केवल वो एक डिब्बा थोड़ा खाली नजर तो आ रहा था लेकिन उसमें एक पठान अंदर से दरवाजा बंद करके बैठा था और वह किसी को अंदर घुसने नही दे रहा धा।

लेखक के अनुसार लेकिन थर्ड क्लास कंपार्टमेंट के उस डिब्बे में चढ़ना शेर की दाढ़ से गोश्त निकालने के जैसा था क्योंकि उस डिब्बे के दरवाजे को अंदर के मुसाफिरों ने बंद कर रखा था। लेखक सहित सात मुसाफिर उस डिब्बे में घुसने की जुगाड़ में वहीं पर खड़े थे। तभी रौबीले पेशावरी पोशाक पठान का चेहरा बाहर निकल कर इधर देखने लगा।

लेखक के साथ 6 अन्य मुसाफिर उस डिब्बे में घुसने के जुगाड़ में वहीं पर खड़े थे, लेकिन उस पेशावरी पठान ने सबको देखकर कहा कि ‘डब्बा नहीं खुलेगा’। यह सुनकर बाकी पाँच मुसाफिर तो तुरंत दूसरे डिब्बे में घुसने के लिए चले गए। लेखक और एक मुसाफिर वहीं पर खड़े रहे। उस मुसाफिर ने वहाँ पर पास में खड़े टिकट चैकर को शिकायत करते हुए कहा कि ‘ये पठान साहब पूरे डब्बे को घेर कर बैठे हैं और चढ़ने नहीं दे रहे।’ तब चैकर में पठान को डब्बा खोलने का आदेश दिया, कि आप दूसरे मुसाफिरों को यूँ चढ़ने से नही रोक सकते।दरवाजा खोलिए। तब पठान ने धमकी देते हुए दरवाजा खोलते हुए कहा कि ट्रेन के चलने पर दोनों मुसाफिरों को उठाकर बाहर फेंक देगा।

संदर्भ पाठ 

धूपबत्ती – जली-बुझी


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मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं? इस पंक्ति में लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?

पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठी को कौन पढ़ पाते हैं? सोचकर लिखिए।

सरकारी चिकित्सालय में सुविधाएं के अभाव तथा कर्मचारियों के असंवेदनशील व्यवहार की शिकायत करते मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

सरकारी चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पत्र

दिनाँक : 4 मार्च 2024

 

सेवा में,
मुख्य चिकित्सा अधिकारी,
सरकारी क्षेत्रीय अस्पताल,
शिमला-171001 (हिमाचल प्रदेश)

विषय: अस्पताल में उचित सुविधाओं के अभाव बाबत

महोदय,

पूरे सम्मान के साथ मैं आपके संज्ञान में लाना चाहता हूँ कि दिनांक 3 मार्च 2024 को मेरी माता जी को उनकी स्वास्थ्य जांच हेतु सरकारी क्षेत्रीय अस्पताल, शिमला में लाया गया था और जांच के बाद चिकित्सक ने मेरी माता जी को अस्पताल में भर्ती करने के लिए कहा और उसी अस्पताल के कनिष्ठ चिकित्सक डॉ. नीलांबर को मेरी माता जी को भर्ती करने के लिए और उनका ईलाज करने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी।

डॉ. नीलांबर ने मुझे शाम 4.00 बजे महिला चिकित्सा वार्ड में माता जी भर्ती करने के लिए बुलाया और हम 4.00 बजे वहाँ पहुँच गए थे लेकिन वहाँ पहुँचने पर डॉ. नीलांबर ने हमें कहा कि अभी कोई भी बेड खाली नहीं है और आप 8.00 बजे तक इंतज़ार करें।

8.00 बजे जब हमने फिर भर्ती के लिए कहा तो डॉ. नीलांबर गुस्सा हो गए और हमें कहा कि मैं केवल आपकी सेवा के लिए नहीं बैठा हूँ और बेड जब खाली होगा तभी मिलेगा और फिर हमें यह कहकर बाहर भेज दिया कि रात 12.00 बजे तक रुकिए तब बेड मिलेगा।

महोदय, मेरी माता जी एक वृद्ध महिला हैं और हड्डियों की गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन उन्हें इस कारण 8 घंटे बाहर फर्श पर ही बैठना पड़ा। अंततः सुबह 3.00 बजे मेरी माता जी को अस्पताल में भर्ती किया गया और फिर डॉ. नीलांबर ने हमें एक टेस्ट लिख कर दिया और कहा कि आप इस टेस्ट को बाहर से करवा के लाएँ जबकि वो टेस्ट अस्पताल में हो सकता था | लेकिन जब मैंने इस बारे में डॉ. नीलांबर से कहा तो वो भड़क गए और कहा कि टेस्ट तो बाहर से ही करवाना पड़ेगा. अन्यथा आप अपनी माता जी ईलाज यहाँ नहीं करवा पाओगे।

श्रीमान जी, अपनी वृद्ध माता जी को लेकर में 12 किलोमीटर किसी निजी संस्था से टेस्ट करवा के लाया और उसके बाद डॉक्टर साहब ने 6 टेस्ट और करवा कर लाने के लिए कहा और कहा कि अस्पताल में यह टेस्ट करने की मशीन खराब है, इसलिए यह टेस्ट भी आपको बाहर से ही करवाने होंगे।

मैं एक निम्न वर्ग के परिवार से संबंध रखता हूँ और मेरी तो इतनी आय भी नहीं कि मैं अपनी माता जी इलाज कहीं निजी अस्पताल से करवा सकूँ। आप समझ सकते हैं कि सरकारी अस्पताल में सुविधाओं के अभाव और अस्पताल कर्मचारियों के ऐसे असंवेदनशील व्यवहार से जाने रोज कितने मेरे जैसे लोग का शोषण होता होगा।

महोदय, आपसे मेरा अनुरोध है कि सरकारी अस्पतालों की बर्बर प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए शीघ्र से शीघ्र कोई ठोस कदम उठाने की कृपा करें ताकि मेरे जैसे और लोग इस दयनीय हालत से बच सकें।

सधन्यवाद।

प्रार्थी,
राकेश कुमार
गाँव – अंबोया, तहसील अर्की,
जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश |


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पेयजल की समस्या हेतु स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।

मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी को कॉलोनी में फैली गंदगी की शिकायत करते हुए पत्र लिखें।

लॉकडाउन को तोड़कर घर से बाहर जाने वाले व्यक्ति और पुलिसकर्मी के बीच संवाद लिखें।

संवाद लेखन

लॉकडाउन को तोड़कर घर से बाहर जाने वाले व्यक्ति और पुलिसकर्मी के बीच संवाद

 

पुलिसकर्मी : रुको, कहाँ जा रहे हो ?

व्यक्ति : मैं बहुत जरूरी सामान लेने जा रहा हूँ।

पुलिसकर्मी : बताओ, क्या जरूरी सामान लेने जा रहे हो ?

व्यक्ति : मेरे घर में मेरे पिता जी बीमार है, दवाई लाने जा रहा हूँ।

पुलिसकर्मी : अच्छा, पहले आप मुझे दवाइयों की पर्ची दिखाएँ।

व्यक्ति : सर जाने दीजिए, मैं जल्दी में हूँ।

पुलिसकर्मी : आपको पता होना चाहिए, एक तो महामारी के कारण लॉकडाउन लगा है, और आप इस नियम उल्लंघन कर रहे हो।

व्यक्ति : सर मैं दवाई लाने जा रहा हूँ।

पुलिसकर्मी : मुझे पर्ची दिखाओ, हमें आर्डर है, ऐसे किसी भी व्यक्ति को बाहर निकलने न दें। आप सब को समझना होगा। घर के अंदर ही रहना हम सब की भलाई है।

व्यक्ति : सर, मैं आपसे से कह रहा हूँ मुझे जाने दें, मैं सच कह रहा हूँ।

पुलिसकर्मी : जाओ, अगली बार निकलो पर्ची साथ लेकर आना।

व्यक्ति : जी सर , धन्यवाद सर।


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बुजुर्ग दंपति और लिफ्टमैन के बीच हुए संवाद का लेखन कीजिए।

दुनिया में भुखमरी और कुपोषण के विषय में दो डॉक्टरों के मध्य संवाद लिखें।

‘कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए। (पाठ – अपराजेय)

विचार लेखन

कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है

 

कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है, क्योंकि कला का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व होता है। कोई भी कला के मन भावों से संबंधित होती है। यह मनुष्य के भीतर की रचनात्मकता को बाहर निकालती है। जब मनुष्य किसी कला से जुड़ता है तो वह अपनी इस कला में डूब जाता है। उसके अंदर जो भी प्रतिभा होती है, वह कला के माध्यम से बाहर प्रकट होनी लगती हैं। जब उसकी रचनात्मकता और उसके मन के भाव बाहर आते हैं तो उसे एक सुखद अनुभूति होती है, जो उसे जीवन में आनंद का भाव प्रदान करती है। यदि मनुष्य के जीवन में कोई दुःख है तो वह अपनी कला में डूब कर उस दुःख को भूल जाता है।

कला अनेक रूपों होती है, जिसमें चित्रकला, नृत्यकला, गायन, वादन, अभिनय, मूर्तिकला, शिल्पकाल, लेखनकला, कविता, कहानी, गीत, गजल आदि शामिल हैं। इन सभी कलाओं के माध्यम से मनुष्य के मन की अभिव्यक्ति प्रकट होती है।

कोई भी व्यक्ति जब किसी कला से जुड़ता है तो वह उस कला का साधक बन जाता है और कला की साधना करने लगता है। ऐसी स्थिति में उसके जीवन में व्याप्त दुखों से उसका ध्यान हटता है। इसलिए अपने जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देने के लिए कला एक अच्छा माध्यम बनती है। अपनी रुचि के अनुसार किसी भी तरह की कला से जुड़कर मनुष्य न केवल अपने जीवन को सार्थक कर सकता है बल्कि अपने जीवन के दुखमय क्षणों को भी बुला सकता है।

विशेष

‘अपराजेय’ पाठ जो अमरनाथ नाम के एक व्यक्ति की कथा है, इस पाठ में कला के माध्यम से ही अमरनाथ में अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का मुकाबला किया। दुर्घटना के कारण अमरनाथ की एक टांग काट दी गई तो अमरनाथ ने चित्रकारी और बागवानी को अपने जीवन जीने का माध्यम बना लिया।

इस तरह अमरनाथ अपने जीवन के दुखों को कम करने का प्रयत्न किया। बाद में अमरनाथ की एक बाजू को भी काटना पड़ा तो अमरनाथ ने शास्त्रीय संगीत को सीखकर अपने जीवन के दुखों को कला से माध्यम से कम करने की कोशिश की। बीमारी के कारण अपनी आवाज चली जाने पर भी अमरनाथ ने हिम्मत नहीं हारी और अपने जीवन के दुखों को कम करने के लिए स्वयं कला से जोड़े रखा।

इस तरह अमरनाथ ने सिद्ध किया कि अपने जीवन के दुखों को अपनी रूचि के अनुसार किसी कला से जुड़कर कम किया जा सकता है।


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‘परिस्थिति के सामने हार न मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करने में ही जीवन की सार्थकता है।’ स्पष्ट कीजिए। (पाठ – अपराजेय)

‘मैं जानता हूँ कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महीनता में नहीं।’ पाठ में प्रयुक्त वाक्य पढ़कर व्यक्ति में निहित भाव को लिखिए। (पाठ – अपराजेय)

‘परिस्थिति के सामने हार न मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करने में ही जीवन की सार्थकता है।’ स्पष्ट कीजिए। (पाठ – अपराजेय)

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‘परिस्थिति के आगे हार ना मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करने में ही जीवन की सार्थकता है।’ इस पंक्ति के माध्यम से जीवन जीने की कला के विषय में प्रेरणा मिलती है। जीवन में सुख और दुख का चक्र जीवन का आवश्यक पहलू हैष जीवन में सुख और दुखों का आना-जाना लगा रहता है। मनुष्य को सुख और दुःख दोनों को समान भाव से स्वीकार करना चाहिए।

जिस तरह कोई भी व्यक्ति सुख के समय को आनंदित होकर जीता है, उसी प्रकार उसे दुख के समय को भी सच्चाई से स्वीकार करना चाहिए उसे यह समझा लेना चाहिए कि यदि सुख है तो वह स्थायी नहीं है, कभी ना कभी तो दुःख भी आ सकता है और दुख है, तो वह भी स्थायी नहीं है। दुःख के बाद सुख आना ही है।

मनुष्य को अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य न खोने की कला सीखनी चाहिए। उसे बेहद सूझबूझ से अपनी जीवन की परेशानियों को सुलझाने का प्रयत्न करना चाहिए।

कभी-कभी जीवन में ऐसी विकट परिस्थितियों आ जाती है कि व्यक्ति जीवन के प्रति अपनी आशा को छोड़ देता है लेकिन उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। उसे कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अपने जीवन की आशा को छोड़ना नहीं चाहिए और परिस्थितियों से लड़कर संघर्ष करते हुए  स्वयं को सक्षम बनाना चाहिए। जीवन के संघर्षों से लड़कर जीवन जीने में ही जीवन की सार्थकता है, यही इस पंक्ति के माध्यम से स्पष्ट हुआ है।

विशेष

‘अपराजेय’ पाठ जो अमरनाथ नाम के जीवटशील व्यक्ति की जीवनगाथा है। इस पाठ में अमरनाथ के जीवन की जीवटता का परिचय दिया गया है। उन्होंने अपने जीवन में आने वाले अनेक कठिनाइयों से लड़ते हुए अपने जीवन को पूरी सार्थकता से दिया। उन्हें अपने शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पैर और हाथ करवाने पड़े, अपनी आवाज खोनी पड़ी, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने जीवन में हार नहीं मानी और अपने जीवन को सामान्य रूप से जीने की कोशिश लगातार जारी रखी।


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‘मैं जानता हूँ कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में आत्महीनता में नहीं।’ पाठ में प्रयुक्त वाक्य पढ़कर व्यक्ति में निहित भाव को लिखिए। (पाठ – अपराजेय)

‘टांग ही काटनी है तो काट दो।’ पाठ में प्रयुक्त वाक्य पढ़कर व्यक्ति में निहित भाव को लिखिए। (पाठ – अपराजेय)

‘अपराजेय’ इस पाठ मे अमरनाथ की जगह आप होते तो समस्याओं का कैसे सामना करते?​

‘मैं जानता हूँ कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महीनता में नहीं।’ पाठ में प्रयुक्त वाक्य पढ़कर व्यक्ति में निहित भाव को लिखिए। (पाठ – अपराजेय)

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‘मैं जानता हूँ कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महीनता में नहीं।’

भाव : ‘अपराजेय’ पाठ में के मुख्य पात्र अमरनाथ की सकारात्मक सोच के बारे में पता चलता है। अपने साथ इतनी भयंकर दुर्घटना घट जाने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनकी टांग काटनी पड़ी तो उन्होंने चित्रकारी और बागवानी को अपने जीवन जीने जरिया बना लिया।  फिर उनकी बाजू काटनी पड़ी तो उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखना शुरु कर दिया। फिर उनकी आवाज भी चली गई लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपने जीवन को सामान्य रूप से जीने की कोशिश करते रहे। अपने शरीर में इतनी शारीरिक कमियाँ हो जाने के बावजूद उन्होंने अपनी जीवन में हार नही मानी। अपने इस कथन में उनका यही भाव है कि जीवन में कितनी भी कठिन परिस्थितियां क्यों न आएं अपने जीवन में हार नहीं माननी चाहिए। जीवन को जीने का तरीका निडर और साहसी होकर लड़ने में है न कि कमजोर पड़कर और डरकर जीवन से हार मान लेने में।


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‘टांग ही काटनी है तो काट दो।’ पाठ में प्रयुक्त वाक्य पढ़कर व्यक्ति में निहित भाव को लिखिए। (पाठ – अपराजेय)

‘अपराजेय’ इस पाठ मे अमरनाथ की जगह आप होते तो समस्याओं का कैसे सामना करते?​

‘टांग ही काटनी है तो काट दो।’ पाठ में प्रयुक्त वाक्य पढ़कर व्यक्ति में निहित भाव को लिखिए। (पाठ – अपराजेय)

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‘टांग ही काटनी है तो काट दो।’

भाव : ‘अपराजेय’ पाठ के मुख्य पात्र अमरनाथ के द्वारा कहे गए इस वाक्य में ये भाव निहित है कि अमरनाथ के साथ दुर्घटना घटित होने पर डॉक्टर ने उनकी टांग काटने की बात कही। अमरनाथ अपने स्वास्थ्य के कारण अपने परिवारजनों को किसी तरह की परेशानी में नहीं देख सकते थे। उन्हें जब पता चला कि उनकी टांग काटना जरूरी तब ही उनकी जान बच सकती है तो वह इसके लिए तैयार हो गए। यदि उनकी जान संकट में आती तो उनके घरवालों को भी तकलीफ होगी, इसलिए अपने घरवालों को किसी भी तक तरह की तकलीफ से बचाने के लिए उन्होंने कहा, कि टांग ही काटनी है तो काट दो।’ इस बात से उनकी सकारात्मक सोच के बारे में पता चलता है वह अपने जीवन में आने वाली किसी भी तरह की कठिन परिस्थिति का साहस और निडरता से सामना करने के लिए तैयार थे।

संदर्भ पाठ

‘अपराजेय’ पाठ अमरनाथ नाम के एक व्यक्ति के बारे आधारित पाठ है, जिसमें उनकी जीवन संघर्ष यात्रा के बारे में बताया गया है। दुर्घटना के कारण पहले उनकी टांग काटनी पड़ी फिर उनकी दाहिनी बाजू भी काटनी पड़ी। बाद में बीमारी के कारण उनकी आवाज तक चली गई लेकिन उन्होंने अपने जीवन से हार नही मानी और अपने जीवन को पूरी जीवटता और साहस से जिया।


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‘अपराजेय’ इस पाठ मे अमरनाथ की जगह आप होते तो समस्याओं का कैसे सामना करते?​

‘अपराजेय’ इस पाठ मे अमरनाथ की जगह आप होते तो समस्याओं का कैसे सामना करते?​

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‘अपराजेय’ पाठ में अमरनाथ की जगह अगर हम होते तो हम भी बिल्कुल वैसा ही करने की कोशिश करते, जैसा अमरनाथ में किया।

अमरनाथ ने परिस्थितियों के आगे हार न मानते हुए परिस्थितियों का दृढ़ता से सामना किया। उनके साथ भयंकर दुर्घटना हुई और उनकी टांग को काटना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नही मानी और अपने जीवन को चित्रकारी आदि के माध्यम से सामान्य करने की कोशिश की।

परिस्थितियों ने उन पर और अधिक कुठारघात किया। इस बार उनकी बाजू को भी काटना पड़ा। इतना सब कुछ होने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और वह निरंतर अपनी जीवन की कठिनाइयों से जूझते रहे। यहाँ तक कि बीमारी के कारण उनकी आवाज तक चली गई लेकिन उसके बावजूद भी अपने जीवन की विषम परिस्थितियों से लड़ते रहे। उनकी इसी जीवटता को सलाम है।

यह कहना बेहद आसान है कि हम भी अमरनाथ के जैसा लड़ेंगे लेकिन यह करना बेहद कठिन है।  किसी भी व्यक्ति की टांग काट दी जाए तो उसे व्यक्ति के ऊपर पर गुजरती है, यह वही जानता है। उसके बाद उसकी बाँह चली जाए और उसके बाद उसकी आवाज भी चली जाए तो उसके दिल पर क्या गुजरी होगी इसकी कल्पना से ही दिमाग सिहर उठता है लेकिन अमरनाथ ने ये सब सहा। ऐसी परिस्थिति में कमजोर मनोबल वाला कोई भी व्यक्ति टूट जाएगा, लेकिन अमरनाथ ने दृढ़ता से उसे स्थिति का मुकाबला किया।

उन्होंने सभी के लिए उदाहरण पेश किया कि लोग छोटी सी कठिनाइयों से घबराकर हार मान लेते हैं और या तो अपने जीवन को समाप्त कर लेते हैं अथवा अपने जीवन भगवान भरोसे छोड़ देते हैं।

अमरनाथ का जीवन संघर्ष हमारे लिए प्रेरणादायी है। अगर हमारे साथ दुर्भाग्यवश कोई घटना घटेगी तो हम भी ऐसा ही करने का प्रयास करेंगे। यही जीवन की सच्चाई है कि जीवन की कठिनाइयों के आगे हार ना मानें। जीवन के संघर्षों से लड़कर ही जीवन पर विजय पाई जा सकती है।

विशेष

‘अपराजेय’ पाठ की कहानी अमरनाथ के जीवन पर आधारित है, जिनके साथ एक दुर्घटना घट गई। उस कारण उनकी टांग को काटना पड़ा। कुछ समय बाद उनकी दाहिनी बाजू भी काट दी गई। फिर उनकी आवाज भी जाती रही, लेकिन अपनी इस शारीरिक कमी के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपने जीवन को जीवटता से जिया। उन्होंने अपने जीवन को सच्चे पुरुषार्थ का प्रतीक बना दिया।


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समूह और समाहार में क्या अंतर है?

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आइए समूह और समाहार में अंतर को हम समझते हैं

समाहार का अर्थ होता है, संग्रह करना, जबकि समूह का अर्थ होता है, बहुत से तत्वों की संख्या।

दो या दो से अधिक वस्तुओं आदि का संग्रह करना या उन्हें मिलाकार एक करना ‘समाहार’ कहलाता है। इसके विपरीत दो या दो से अधिक व्यक्ति वस्तुओं अथवा किसी भी तत्व की संख्या को ‘समूह’ कहते हैं।

समाहार और समूह ये दोनों शब्द  दो या दो से अधिक व्यक्ति, वस्तु आदि संदर्भ में प्रयुक्त किए जाते हैं, लेकिन दोनों में मुख्य अंतर यह है कि समाहार सीधे तौर पर संग्रह शब्द से जुड़ा हुआ है, जबकि समूह संग्रह शब्द से नहीं जुड़ा हुआ है।

जब दो या दो से अधिक व्यक्ति, वस्तु अथवा किसी भी तत्व का संग्रह किया जाता है, उन्हें मिलाकर एकाकार किया जाता है तो वह समाहार कहलाता है, जबकि समूह में संग्रह नहीं किया जाता।

समूह दो या दो से अधिक व्यक्ति, वस्तु अथवा अन्य किसी तत्व के आपस में स्वत ही जुड़ने की प्रक्रिया है। समाहार मे जिन तत्वों का समाहार किया जाता है तो उसमें उनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जाता है। समाहार अनेक तत्वों को एकाकार करने की प्रक्रिया है।

समूह के साथ ऐसा नही है। समूह की प्रक्रिया स्वत संपन्न हो जाती है। जब दो या दो से अधिक व्यक्ति, वस्तु या अन्य कोई तत्व आपस में जुड़ जाते हैं, तो वह समूह बन जाते है। उसके बावजूद उन सभी तत्वों का स्वतंत्र अस्तितत्व तो रहता ही है।

समाहार का प्रयोग, बहुत बड़ी संख्या या व्यापक अर्थ में नही किया जाता है। जबकि समूह का अर्थ संख्या की दृष्टि से व्यापक है। ये पाँच से लेकर पाँच लाख तक हो सकता है। इसके विपरीत समाहार में संख्या की दृष्टि से अधिक व्यापकता नहीं है।

संक्षेप में कहें तो समाहार की प्रक्रिया की जाती है जबकि समूह की प्रक्रिया अपने आप होती है। जब किसी व्यक्ति, वस्तु आदि की संख्या दो या दो से अधिक हो जाती है, तो वह समूह बन जाता है जबकि समाहार की प्रक्रिया में वह संख्या बनानी पड़ती है।

समाहार स्थायी और दीर्घकालीन होता है, जबकि समूह अस्थायी और अल्पकालीन होता है।

जैसे,

7 दिनों का समाहार यानि सप्ताह।

सप्ताह होने की प्रक्रिया स्थायी है। ये एक दीर्घकालीन अवधि अथवा हमेशा के लिए होता है। सप्ताह की प्रक्रिया सभी समाप्त नहीं होने वाली है। इसलिए ये स्थायी है।

7 लोगों का समूह

समूह एक अस्थायी प्रक्रिया है क्योंकि 7 लोगों का समूह बहुत दिनो तक समूह के रूप मे नही रहने वाला बल्कि जिस कार्य के लिए वह जमा हुए वो सम्पन्न होते ही वह समूह टूट जाएगा। इस कारण ये अस्थायी है।

इस तरह हमने जाना कि समाहार और समूह मे क्या अंतर है? समाहार की प्रक्रिया करवाई जाती है जबकि समूह की प्रक्रिया स्वतः ही हो जाती है।


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‘समाहार’ में कौन सा प्रत्यय होगा?

‘रामायण’ शब्द में क्या ‘अयादि संधि’ हो सकती हैं?

भारत का राष्ट्रीय शिक्षक दिवस सबसे पहले किस वर्ष मनाया गया था?

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भारत का ‘राष्ट्रीय शिक्षक दिवस’ सर्वप्रथम सन 1962 में मनाया गया था।

5 सितंबर 1962 को भारत का पहला ‘राष्ट्रीय शिक्षक दिवस अर्थात ‘टीचर्स डे मनाया गया था।

टीचर्स डे भारत का राष्ट्रीय शिक्षक दिवस है, जो कि हर वर्ष 5 सितंबर को मनाया जाता है। इसी दिन भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध शिक्षाविद थे। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने शिक्षक के रूप में अनेक कॉलेजों और शिक्षण संस्थानों में कार्य किया था। शिक्षा के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के कारण ही उनके जन्मदिन को भारत के ‘राष्ट्रीय शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। उनके सुझाव पर ही 5 सितंबर 1962 से हर वर्ष राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है।


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क्या आज की तारीख में केक काटकर शिक्षक दिवस मनाया जाना कितना उचित है?

‘समाहार’ में कौन सा प्रत्यय होगा?

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समाहार में प्रत्यय इस प्रकार होगा :

समाहार : सम + आहार

मूल शब्द : सम

प्रत्यय : आहार


स्पष्टीकरण :

‘समाहार’ में आहार प्रत्यय होगा।

‘समाहार’ का अर्थ है दो या दो से अधिक तत्वों का संग्रह। ‘समाहार’ में ‘आहार’ प्रत्यय होगा।

आहार प्रत्यय वाले कुछ और शब्द

निराहार : निर् + आहार

उपाहार : उप + आहार

प्रत्यय क्या हैं?

प्रत्यय से तात्पर्य किसी शब्द के अंत में लगने वाले उन शब्दांशों से होता है, जो किसी शब्द के अर्थ को या तो विस्तार देते हैं, अथवा प्रत्यय लगाने से उस शब्द का अर्थ ही बदल जाता है। प्रत्यय का  अर्थ है, साथ चलने वाला अर्थात वह शब्दांश जो किसी शब्द के साथ चले।


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वामीरो की आँखों के सामने तताँरा के चेहरे का कौन सा रूप सामने आता था? (तताँरा वामीरो की कथा)

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‘तताँरा वामीरो की कथा’ में वामीरो की आँखों के सामने तताँरा का याचना भरा चेहरा सामने आ जाता था।

जब वामीरो और तताँरा दोनों की प्रथम मुलाकात हुई, तो तताँरा द्वारा वामीरो से नाम पूछने पर वामीरो उसे झिड़कती हुई चली आई थी, लेकिन घर पर आने के बाद भी उसके सामने तताँरा का याचना भरा चेहरा सामने आ जाता था।

वामीरो ने तताँरा के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। तताँरा के बारे में बातें सुन-सुन कर उसने अपनी कल्पना में एक अद्भुत साहसी युवक की छवि गढ़ रखी थी, लेकिन जब वामीरो ने तताँरा को उसके वास्तविक रूप में अपने सामने देखा तो उसने तताँरा में एक सुंदर बलिष्ठ और बेहद शांत तथा सभ्य युवक का रूप पाया। वामीरो ने अपनी कल्पना में अपने भावी जीवन साथी के विषय में जो सोच रखा था, तताँरा उसकी कल्पना से काफी मेल खाता था।

संदर्भ पाठ :

‘तताँरा-वामीरो की कथा’ कहानी ‘लीलाधर मंडलोई’ द्वारा लिखी गई एक कहानी है, जिसमें उन्होंने तताँरा और वामीरो नामक दो युवक-युवती की प्रेम कथा का वर्णन किया है। यह दोनों युवक-युवती निकोबार द्वीप समूह के दो अलग-अलग गाँवों ‘पासा’ और ‘लपाती’ के निवासी थे।


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तताँरा-वामीरो कथा ने किस पुरानी प्रथा का अंत किया?

किस सामाजिक बुराई के कारण तताँरा तथा वामीरो का संबंध सफल नहीं हो सका था? (तताँरा-वामीरो की कथा)

लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है, फिर भी वह निराश नहीं है आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है? (पाठ – ‘क्या निराश हुआ जाए’)

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‘क्या निराश हुआ जाए’ पाठ में लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें धोखा दिया है, फिर भी वह निराश नहीं है। इस बात का मुख्य कारण यह है कि लेखक को जहाँ कई बार जीवन में कई लोगों से धोखा मिला है, वहीं लेखक के जीवन में अनेक अवसर ऐसे भी आए हैं, जब लेखक की लोगों ने सहायता भी की थी या लेखक लोगों को एक-दूसरे की सहायता करते हुए देखा है।

अपनी बातों को सिद्ध करने के लिए लेखक ने दो घटनाओं का उदाहरण भी दिया है। जब एक बार वह जल्दबाजी में लेखक टिकट बाबू से टिकट लेते समय अपने पैसे भूल गया और ट्रेन में बैठ गया। तब टिकट बाबू से लेखक को ढूंढते हुए आए और लेखक के बचे हुए पैसे लौटा दिए। तब लेखक यह विश्वास हो गया कि दुनिया में आज भी ईमानदारी जीवित है।

दूसरी घटना में जब लेखक जिस से बस से यात्रा कर रहा था, वो रास्ते में खराब हो गई और बस में कई सवारियों के पास छोटे बच्चे थे, जो भूख से तड़प रहे थे। तब कंडक्टर किसी तरह दूसरी बस लेकर आया और साथ में बच्चों के लिए दूध भी लेकर आया। इससे लेखक को विश्वास हो गया कि मानवता भी जिंदा है।

यही कारण है लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें धोखा दिया है, लेकिन फिर भी वह निराश नहीं हैं, क्योंकि कुछ अच्छे लोग अभी भी हैं, जिसने कारण मानवता अभी भी जीवित है।

संदर्भ पाठ 

पाठ ‘क्या निराश हुआ जाये’ – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, (कक्षा – 8, पाठ – 8)


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मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं? इस पंक्ति में लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?

‘रामायण’ शब्द में क्या ‘अयादि संधि’ हो सकती हैं?

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नहीं, रामायण में ‘अयादि संधि’ नहीं होगी। रामायण में ‘दीर्घ संधि’ होगी।

रामायण का संधि विच्छेद इस प्रकार होगा :

रामायण : राम + आयण

संधि भेद : दीर्घ स्वर संधि

 

दीर्घ स्वर संधि का नियम :

दीर्घ संधि के नियम के अनुसार जब ‘अ’ और ‘आ’ का मेल होता है,  तो ‘आ’ बनता है। ‘रामायण’ में यही नियम लागू होता है।

अयादि संधि के अनेक नियम हैं जो ‘रामायण’ में लागू नही होते इसलिए ‘रामायण’ में अयादि संधि होगी।

दीर्घ संधि और अयादि संधि दोनों ‘स्वर संधि’ के उपभेद हैं।

स्वर संधि के पाँच उपभेद होते हैं।

  • दीर्घ स्वर संधि
  • गुण स्वर संधि
  • यण स्वर संधि
  • वृद्धि स्वर संधि
  • अयादि स्वर संधि

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‘नवोत्पल’ संधि विच्छेद और संधि का नाम बताएं।

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‘या तो बच्चा राज कायम कर लो या मुझे ही रख लो’ अम्मा ने कब कहा और इसका परिणाम क्या हुआ?

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जब पिताजी ने बच्चों को घर के कामकाज में हाथ बंटाने के लिए उन्हें अलग-अलग काम सौंपे तो बच्चों ने उधम और धमाचौकड़ी द्वारा पूरे घर को अस्त-व्यस्त कर दिया। उन्होंने सारे काम उल्टे-सीधे कर डालें। इससे पूरा घर तहस-नहस हो गया। घर की ऐसी हालत देखकर अम्मा जी बेहद परेशान हो गई और उन्होंने पिताजी को चेतावनी देते हुए कहा कि ‘या तो बच्चाराज कायम कर लो, या मुझे ही रख लो’।

अम्मा की यह चेतावनी सुनकर ये परिणाम यह हुआ कि पिताजी ने घर की किसी भी चीज को बच्चों को हाथ ना लगाने के लिए सख्त हिदायत दे दी और बच्चों से कहा कि यदि किसी ने घर की किसी चीज को हाथ लगाया या घर का कोई काम किया तो उसे रात का खाना नहीं मिलेगा।

विशेष :

‘कामचोर’ कहानी ‘इस्मत चुगताई’ द्वारा लिखी गई कहानी है, उसमें एक समृद्ध परिवार के आलसी बच्चों के बारे में बताया गया है, जो आलस के कारण कोई काम नहीं करना चाहते। उनसे काम कराने के लिए उनके माता-पिता को उपाय आजमाने पड़े।


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मूर्ति निर्माण में नगर पालिका को देर क्यों लगी होगी नेताजी का चश्मा पाठ के आधार पर बताइए? (अ) धन के अभाव के कारण (ब) मूर्तिकार ना मिलने के कारण (स) मूर्ति स्थापना के स्थान का निर्णय न कर पाने के कारण (द) संगमरमर ना मिलने के कारण

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मूर्ति निर्माण में देर लगने का मुख्य कारण धन का अभाव था, इसलिए सही विकल्प होगा :

(अ) धन अभाव के कारण

 

स्पष्टीकरण :

‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में जिस कस्बे का वर्णन किया गया है। उस कस्बे की नगर पालिका ने चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक मूर्ति में लगवाने का निर्णय लिया था। नगर पालिका अक्सर कस्बे के विकास के लिए कुछ ना कुछ कार्य करती रहती थी। कभी सड़क बनवा दी तो कभी मूत्रालय बनवा दिए। कभी कबूतर की छतरी बनवा दी तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिए। इसी क्रम में उसने शहर के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगवाने का निर्णय लिया।

संगमरमर की प्रतिमा के बनाने का पूरी लागत अनुमानित लागत और उपलब्ध बजट से अधिक निकली, इसी कारण काफी समय तक वहां की स्थिति ऊहापोह रहेगी और औपचारिक कार्यवाही में भी काफी समय लगा। अंत में कस्बे के हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मोती लाल को मूर्ति बनाने का जिम्मा सौंपा गया क्योंकि मूर्ति बनाने के लिए अधिक बजट नहीं था।


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मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं? इस पंक्ति में लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?

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मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं, इस पंक्ति में लेखक ने उस व्यथा की ओर संकेत किया है, जिसमें मशीनी युग के कारण गाँव के कुटीर उद्योग चौपट हो गये हैं। मशीनों से हर वस्तु का निर्माण होने लगा है, जिससे उन वस्तुओं का निर्माण करने वाले कारीगर जो हाथ से कलात्मक ढंग से उन वस्तुओं का निर्माण करते थे, वह बेरोजगार हो गए हैं और उनके जीवन पर आर्थिक संकट आ पड़ा है।

मशीनी युग के कारण बेरोजगार हुए लोगों की व्यथा को ही लेखक ने ‘मशीनी युग ने सबके हाथ काट दिए हैं।’ इस पंक्ति के माध्यम से स्पष्ट किया है। ‘लाख की चूड़ियाँ’ पाठ में भी बदलू अपने हाथ की कारीगरी से लाख की चूड़ियां बनाता था। उसकी चूड़ियों की गाँव-गाँव में मांग थी और उसका धंधा खूब चलता था। लेकिन जैसे-जैसे मशीनें आ गई और मशीनों से कांच की चूड़ियां बनने लगी तो बदलू की लाख की चूड़ियों की मांग कम हो गई और फिर उसका धंधा भी बिल्कुल बंद हो गया, यही उसकी व्यथा थी।

संदर्भ पाठ

‘लाख की चूडियाँ’ पाठ कामतानाथ द्वारा लिखा गया एक ऐसा पाठ है, जिसमें लाख की चूड़ियां बनाने वाले बदलू नामक व्यक्ति के बारे में बताया गया है, जो लाख की चूड़ियां बनाता था लेकिन धीरे-धीरे कांच की चूड़ियां होने के कारण उसकी लाख की चूड़ियां की बिक्री कम होने लगी और उसका धंधा बंद हो गया।

(‘लाख की चूड़िया’, पाठ 2, कक्षा 11)


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मजदूरों ने ईंट नहीं उठाई। वाक्य में कौन सा वाच्य है ?

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मजदूरों ने ईंट नहीं उठाई में कौन सा वाच्य का भेद इस प्रकार होगा :

मजदूरों ने ईंट नहीं उठाई।

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स्पष्टीकरण :

इस वाक्य में ‘कर्तृवाच्य’ है, क्योंकि इस वाक्य के वाच्य से कर्ता की प्रधानता का आभास हो रहा है, इसलिए यह वाक्य ‘कर्तृवाच्य’ है। वाच्य के माध्यम से किसी वाक्य में क्रिया में कर्ता की प्रधानता अथवा कर्म की प्रधानता अथवा भाव की प्रधानता का बोध होता है।

थोड़ा और जानें :

हिंदी व्याकरण में वाच्य क्रिया का वह रूप होता है, जो वाक्य में कर्ता की प्रधानता अथवा कर्म की प्रधानता अथवा भाव प्रधानता का बोध कराता है। वाच्य के तीन भेद होते हैं।

  • कर्तृवाच्य
  • कर्मवाच्य
  • भाववाचक

जिस वाक्य में कर्ता की प्रधानता होती है, वह कर्तृवाच्य कहलाता है। जैसे राम ने रावण को मारा।

जिस वाक्य में कर्म की प्रधानता होती है, वह कर्मवाच्य कहलाता है। जैसे राम द्वारा रावण को मारा गया।

जिस वाक्य में भाव की प्रधानता होती है, वह भाववाच्य कहलाता है। जैसे राम से रावण को मारा गया।


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‘दीपावली अक्टूबर-नवंबर महीने में मनाई जाती है।’ वाच्य भेद बताइए।

‘आर्यभट अपने विचार बेहिचक प्रस्तुत करते थे।’ इस वाक्य की क्रिया को कर्मवाच्य में बदलकर फिर से लिखिए​।

बुजुर्ग दंपति और लिफ्टमैन के बीच हुए संवाद का लेखन कीजिए।

संवाद लेखन

बुजुर्ग दंपति और लिफ्टमैन के बीच संवाद

 

बुजुर्ग दंपति : लिफ्ट के बाहर इतनी भीड़ क्यों है?

लिफ्टमैन : लिफ्ट खराब हो गई है, इसलिए बहुत से लोग ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं।

बुजुर्ग दंपति : कैसे खराब हो गई, भाई।

लिफ्टमैन : आपको कौन से फ़्लैट नंबर में जाना है।

बुजुर्ग दंपति : हमें 404 नंबर के फ़्लैट में जाना है।

लिफ्टमैन : आपको लिफ्ट ठीक होने तक का इंतजार करना पड़ेगा।

बुजुर्ग दंपति : हाँ भाई सही कह रहे हो, हम दोनों बुज़ुर्ग है, हम इतनी सीढियाँ नहीं चढ़ सकते।

लिफ्टमैन : एक घंटे से लिफ्ट बंद पड़ी है, कुछ देर पहले बिजली गई थी, तब से लिफ्ट बंद पड़ी है।

बुजुर्ग दंपति : भाई , इतनी देर से बंद है, कोई ठीक करने नहीं आया?

लिफ्टमैन : अंकल जी, अभी तक कोई नहीं आया है। मैकेनिक को फोन किया है वो आधा घंटे में आने को बोला है।

बुजुर्ग दंपति : पता नहीं कब लिफ्ट ठीक होगी।

लिफ्टमैन : आप चिन्ता न करें, मैकेनिक के आते ही वह आधा या एक घंटे में लिफ्ट ठीक कर देगा।

बुजुर्ग दंपति : तब तक हम दोनो बिल्डिंग के कंपाउंड में बने गार्डन में इंतजार करते हैं।

लिफ्टमैन : ठीक है, जैसे ही लिफ्ट ठीक होगी। मैं आपको सूचित कर दूंगा।


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आजकल बिजली की कटौती की समस्या से होने वाली परेशानी के संदर्भ में दो गृहिणियों के मध्य हुए वार्तालाप को संवाद के रूप में लिखें।

बिहार में गुंडागर्दी समाप्त करने के लिए आईजी (IG) को एक पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

गुंडागर्दी रोकने के लिए आईजी (IG) को पत्र

 

12 दिसंबर 2023,

 

सेवा में,
श्रीमान पुलिस महानिरीक्षक महोदय,
पटना (बिहार)

विषय : दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही गुंडागर्दी की रोकथाम के लिए शिकायत

महोदय,
निवेदन इस प्रकार है कि बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति बेहद खराब हो गई है। हमारे पटना शहर में दिन-ब-दिन अराजक तत्वों द्वारा की जाने वाली गुंडागर्दी बढ़ती ही जा रही है। शहर में बाहर निकलने पर सुकून से चलना दूभर हो गया है। जगह-जगह असामाजिक तत्व खड़े मिलते हैं जो बात-बात पर लड़ने-झगड़ने लगते हैं। लड़कियों, महिलाओं पर फब्तियां करते हैं। उन से छेड़खानी करने का प्रयत्न करते हैं।

कोई आपत्ति करने पर मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। इन सभी गुंडों के पीछे बड़े-बड़े स्थानीय नेताओं का हाथ है। इस कारण यह और बेखौफ अधिक हो गए हैं। अतः महोदय से निवेदन है कि इस संबंध में तुरंत ही सख्त कार्यवाही करें और शहर के निवासियों को इन गुंडों की गुंडागर्दी से सुरक्षित करें। पुलिस द्वारा किया जाने वाला ढीला ढाला बंदोबस्त भी इनकी बढ़ती गुंडागर्दी के लिए प्रति उत्तरदायी है।

अतः आपसे निवेदन है कि आप पुलिस शक्ति से इन गुंडों से निपटने का निर्देश दें ताकि हम सभी नागरिकों को राहत मिले।

धन्यवाद,

भवदीय,
सुभाष चंद्र,
केशरी नगर, पटना, बिहार


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पेयजल की समस्या हेतु स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।

अपने विषय के पाठ्यक्रम को पूरा करवाने हेतु प्रार्थना पत्र लिखिए।

बदलू के मन में ऐसी कौन सी व्यथा थी, जो लेखक से छिपी ना रह सकी?

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जब लेखक अपने मामा के गाँव आया और बदलू से मिलने बदलू के पास गया तो बदलू का चेहरा बुझा-बुझा सा था। बदलू से बातचीत में पता चला कि बदलू का लाख की चूड़ियों का धंधा कई सालों से बंद है। उसकी लाख की बनी चूड़ियों की अब कोई मांग नहीं थी। अब गाँव-गाँव में कांच की चूड़ियों का प्रचार हो गया है। यह कहते-कहते बदलू का चेहरा उतर गया था। लेखक चुप रहा।

लेखक को लगने लगा कि बदलू के अंदर कोई बहुत बड़ी व्यथा छुपी हुई है। लेखक ने अनुमान लगा लिया कि मशीनी युग के कारण कांच की चूड़ियां बनने से उसका लाख की चूड़ियों का जो धंधा चौपट हुआ है, वही व्यथा उसके मन की व्यथा है। दरअसल बदलू लाख की चूड़ियां अपने हाथों से अपने हुनर द्वारा बनाता था जबकि काँच की चूड़ियां मशीनों से फटाफट बनती थी।

मशीन द्वारा बनने वाली रंग-बिरंगी काँच की चूड़ियां का मुकाबला बदलू अपनी लाख की चूड़ियां द्वारा नहीं कर पाया और कांच की चूड़ियों के प्रचार ने उसकी लाख की चूड़ियों की मांग कर दी। यही व्यथा थी जो लेखक से छिपी न रह सकी।

संदर्भ पाठ :
‘लाख की चूडियाँ’ पाठ कामतानाथ द्वारा लिखा गया एक ऐसा पाठ है, जिसमें लाख की चूड़ियां बनाने वाले बदलू नामक व्यक्ति के बारे में बताया गया है, जो लाख की चूड़ियां बनाता था लेकिन धीरे-धीरे कांच की चूड़ियां होने के कारण उसकी लाख की चूड़ियां की बिक्री कम होने लगी और उसका धंधा बंद हो गया।

(‘लाख की चूड़िया’, पाठ 2, कक्षा 11)


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बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से क्यों जाता था और बदलू को ‘बदलू मामा’ ना कहकर ‘बदलू काका’ क्यों कहता था? (लाख की चूड़ियाँ)

मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं? इस पंक्ति में लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?

बचेंद्री पाल जी का माउंट एवरेस्ट चढ़ाई का सफर किस तरह रहा ? इसको अपने वाक्य में लिखिए।

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बचेंद्री पाल जी का माउंट एवरेस्ट चढ़ाई का सफर रोमांच, साहस एवं जोखिम से भरपूर रहा था। बचेंद्री पाल को अपने एवरेस्ट की चढ़ाई वाले पर्वतारोही अभियान में रास्ते में अनेक तकलीफों और कष्टों का सामना भी करना पड़ा। उनके अभियान में अनेक रोमांचकारी अनुभव भी हुए। दुर्गम परिस्थितियों में भी अपना साहस ना खोने के गुण के कारण ही बचेंद्री पाल एवरेस्ट फतह के इस अभियान को पूरा कर पाईं थीं और एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बनी ।

बचेंद्री पाल के इस एवरेस्ट अभियान के दौरान एक शेरपा कुली की की मृत्यु तक हो गई, जिस कारण अभियान दल के सदस्यों को काफी निराशा हुई थी लेकिन सभी अभियान के सदस्यों ने स्वयं को संभाला और निरंतर आगे बढ़ते रहें। रास्ते में मौसम संबंधी अनेक तकलीफें आने के बावजूद बचेंद्री पाल और उनका अभियान दल निरंतर आगे बढ़ता रहा था और अपने लक्ष्य को पाने के बाद ही रुका। इस तरह बचेंद्री पाल का पर्वतारोही अभियान साहस एवं जोखिम से भरपूर रहा।


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बच्चों के उधम मचाने के कारण घर की क्या दुर्दशा हुई ?

हमें वीरों से क्या सीखना चाहिए? (कविता – वीरों को प्रणाम)

बच्चों के उधम मचाने के कारण घर की क्या दुर्दशा हुई?

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बच्चों के उधम मचाने के कारण पूरा घर अस्त-व्यस्त हो गया था। बच्चों के उधम के कारण घर के सारे मटके सुराहियां इधर-उधर लुढ़क गए थे। घर के सारे बर्तन भी इधर-उधर बिखर गए। घर में जो भी पशु पक्षी थे वह बच्चों की धमाचौकड़ी के कारण भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे। पूरे घर में धूल ही धूल हो गई और बच्चों ने मिट्टी और कीचड़ का ढेर घर में लगा दिया। सारी मटर भेड़ें खा गईं। मुर्गे-मुर्गियों के कारण बच्चों के कपड़े भी बेहद गंदे हो गए थे। इस तरह पूरे घर की हालत बेहद अस्त-व्यस्त हो गई और चारों तरफ अशांति ही अशांति हो गई।

विशेष :

‘कामचोर’ कहानी ‘इस्मत चुगताई’ द्वारा लिखी गई कहानी है, उसमें एक समृद्ध परिवार के आलसी बच्चों के बारे में बताया गया है, जो आलस के कारण कोई काम नहीं करना चाहते। उनसे काम कराने के लिए उनके माता-पिता को उपाय आजमाने पड़े।


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हमें वीरों से क्या सीखना चाहिए? (कविता – वीरों को प्रणाम)

मीरा के पद’ में उनके व्यक्तित्व की किन्ही दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।

हमें वीरों से क्या सीखना चाहिए? (कविता – वीरों को प्रणाम)

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‘वीरों को प्रणाम’ कविता में हमें वीरों से अपनी स्वाधीनता के महत्व का सम्मान करना सीखना चाहिए। ‘वीरों को प्रणाम‘ कविता में यह बताया गया है कि हमें जो स्वाधीनता मिली है, वह यूँ ही भीख में नहीं मिली बल्कि इसके लिए हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन का बलिदान किया है। कवि ये भी कहते हैं कि आज जब हम अपने देश में सुरक्षित बैठे हुए चैन की नींद सोते हैं तो यह भी देश की सीमाओं पर रक्षा के लिए दिन-रात लगे हमारे सैनिकों के कारण भी संभव हो पाया है।

हमारे वीर पूर्वज जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमारे लिए स्वतंत्रता प्राप्त की, इन वीरों से हमें यह सीखना चाहिए कि कोई भी चीज भीख में नहीं मिलती। उसके लिए अपनी जान की बाजी लगानी पड़ती है। हमें वीरों से ये सीखना चाहिए कि देश की स्वाधीनता देश के सम्मान के लिए अपने प्राणों को उत्सर्ग करने में संकोच नहीं करना चाहिए। जो अपने देश के सम्मान के लिए मर मिटने को तैयार रहते हैं, वही वीर कहलाते हैं, उनका नाम इतिहास में सदैव अमर हो जाता है। ऐसे वीरों को ही आने वाली पीढ़ियां बार-बार प्रणाम करती हैं, इसीलिए हमें न केवल अपनी स्वाधीनता का सम्मान करना चाहिए बल्कि इसे बरकरार रखने के लिए हर संभव प्रयत्न करना चाहिए। देश के सम्मान पर यदि कोई आज आए तो हमें अपने देश के सम्मान की रक्षा करने के लिए पीछे नहीं हटना चाहिए और यदि आवश्यकता पड़े तो अपने प्राणों को न्योछावर करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

विशेष
‘वीरों को प्रणाम’ कविता रमेश चंद्र दीक्षित द्वारा लिखी गई प्रेरणादायक कविता है, जिसमें उन्होंने भारत देश की स्वतंत्रता प्रति में उन वीरों के योगदान का वर्णन किया है, जिन्होंने भारत देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों को निछावर कर दिया। देश के सम्मान पर किसी तरह की आंच ना आए इसके लिए वह हर समय अपने देश की रक्षा के लिए तैयार रहते हैं। यह वीर देश की सीमा पर रक्षा कर रहे सैनिक हैं तो भारत देश की स्वाधीनता संग्राम में लगे हुए क्रांतिकारी भी थे। इन सभी वीरों को प्रणाम करते हुए ही कवि ने उनकी महिमा का गुणगान किया है।


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मीरा के पद’ में उनके व्यक्तित्व की किन्ही दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।

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‘मीरा के पद’ में उनके व्यक्तित्व की किन्ही दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।

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‘मीरा के पदों’ में मीराबाई के व्यक्तित्व की दो प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं…

  1. मीराबाई ने सदैव श्री कृष्ण को अपना आराध्य देव माना है। उन्होंने श्री कृष्ण को अपना प्रियतम मानकर उनके प्रियतम रूप की आराधना की है। उन्होंने श्री कृष्ण को अपना ईश्वर और पति दोनों माना है। इस तरह उन्होंने अपने पदों के माध्यम से अपनी भक्ति को श्रंगारिक रूप भी प्रदान किया है।
  2. मीराबाई का व्यक्तित्व गरिमामयी, संत कवयित्री का रहा है। उन्होंने श्री कृष्ण की भक्ति के लिए राजसी वैभव को भी ठुकरा दिया और पूरी तरह साधु-संत का सादा जीवन अपनाते हुए अपना पूरा जीवन काल श्री कृष्ण की भक्ति के लिए समर्पित कर दिया। इसके लिए उन्होंने समाज के अनेक विरोध सहे। इस तरह उनका व्यक्तित्व एक साहसी महिला के रूप में उभरता है।

मीराबाई के व्यक्तित्व की कुछ अन्य विशेषताएं…

  • मीराबाई ने श्रंगार के दोनों रूपों अर्थात संयोग और वियोग श्रृंगार के पदों की रचना की है। उनके पदों में वियोग श्रृंगार का मार्मिक चित्रण अधिक मिलता है। मीराबाई ने अपने पदों के माध्यम से भक्ति की पराकाष्ठा को प्रकट किया है। वह अपने अस्तित्व को भुलाकर स्वयं को श्री कृष्ण के प्रेम में समाहित कर देना चाहती हैं।
  • मीराबाई श्री कृष्ण की सेवा को ही अपने जीवन का उच्चतम बिंदु मानती हैं और श्री कृष्ण के दर्शन करने के लिए सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहती हैं।
  • मीराबाई के पदों में स्त्रियों की पराधीनता के प्रति उनका दुख भी प्रकट होता है। वह अपने तत्कालीन समाज में स्त्रियों की दयनीय स्थिति के लिए भी चिंतित दिखाई देती थीं।

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कबीर, गुरुनानक और मीराबाई इक्कीसवीं शताब्दी में प्रासंगिक है कैसे?

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अपनी दासता के दिनों में हमने कौन-सी उपलब्धियाँ प्राप्त की ?

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अपनी दासता के दिनों में हमें अनेक तरह की उपलब्धियां प्राप्त कीं।

  • हमने अपने अनेक तरह की सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति पाई, जिनमें सती प्रथा, विधवा विवाह, बाल विवाह, अशिक्षा जैसी प्रथाएं प्रमुख थीं। शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई और हम शिक्षा के आधुनिक स्वरूप से परिचित हुए।
  • दासता के दिनों में ही हमारे देश में पहली रेल लाइन बिछाई गई। भविष्य में भारत रेल के नेटवर्क के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी देश बना। आज भारत विश्व के सबसे बड़े रेल नेटवर्क वाले देश है।
  • दासता के दिनों में अंग्रेजों ने भले ही भारत देश के निवासियों का खूब शोषण किया हो लेकिन अंग्रेजों ने बहुत से विकास कार्य भी किये।
  • अंग्रेजो ने कई शहरों को बसाने में अपना योगदान दिया जिनमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे बड़े महानगर प्रमुख हैं। अंग्रेजों ने ही इन शहरों का विकास किया और इन शहरों में अनेक प्रमुख इमारतों का निर्माण भी किया। आज भी इन बड़े-बड़े शहरों में अंग्रेजों द्वारा निर्मित यही इमारतें मौजूद हैं और इन शहरों की प्रशासन व्यवस्था के कार्यालय के रूप में प्रयोग की जाती हैं।
  • अंग्रेजों ने रियासतों में बंटे भारत को एक ब्रिटिश इंडिया के रूप में एकीकृत भी किया। इस तरह भारत के एक नए भौगोलिक स्वरूप की अवधारणा का भी विकास हुआ।

निष्कर्ष

संक्षेप में कहे दासता के दिनों हमारी उपलब्धि मिली जुली रही क्योंकि अंग्रेजों ने भारतीयों का खूब शोषण भी किया और सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को एकदम गरीब विपन्न हालत में पहुंचा दिया, लेकिन अंग्रेजों द्वारा कुछ विकास के कार्य भी किए गए, जिसके कारण भारत के आधुनिक स्वरूप की नींव रखी गई।


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दक्षेस को सफल बनाने के लिये कोई चार सुझाव दीजिए।​

मगरमच्छ की प्रजाति को खत्म होने से बचाने के लिए आप क्या उपाय कर सकते हैं​?

तुलसीदास ने किन बालकों के बचपन के करतब का वर्णन किया है? माता का मन प्रसन्नता से कब और क्यों भर जाता है?

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तुलसीदास ने अयोध्या नरेश महाराजा दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के करतबों का वर्णन किया है। तुलसीदास अपने बाल लीला प्रसंग में इन सभी बालकों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के कर्तव्यों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि यह सभी बालक कभी चंद्रमा को पाने की जिद करने लगते हैं तो कभी अपनी परछाई देखकर ही डर जाते हैं।

वह कभी अपने दोनों हाथों से ताली बजाते हुए उल्लासित होकर नाचने लगते हैं तो कभी अपनी बाल सुलभ हरकतों से अपनी तीनों माता और अपने पिता दशरथ को प्रसन्न कर देते हैं।

अपने चारों बालकों के इन करतबों को देखकर उनकी तीनों माताएं कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी पुलकित हो उठती हैं और उनका मन प्रसन्नता से भर जाता है।


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बाल गोपाल ने माखन न खाने की कौन-कौन सी दलीलें दी हैं। उनकी कौन सी बातें जिनके माता यशोदा ने उन्हें गले से लगा लिया?

‘सच्ची तीर्थयात्रा’ कहानी क्या है। कहानी के आधार पर सच्ची तीर्थयात्रा कहानी का मूल भाव अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

बाल गोपाल ने माखन न खाने की कौन-कौन सी दलीलें दी हैं। उनकी कौन सी बातें जिनके माता यशोदा ने उन्हें गले से लगा लिया?

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बाल गोपाल कृष्ण ने माखन न खाने की अनेक दलीलें दीं।

बाल गोपाल कृष्ण माता यशोदा के सामने अपनी दलीले पेश करते हुए कहते हैं कि मेरे हाथ तो इतने छोटे-छोटे हैं। मैं माखन का यह छींका कैसे उतार सकता हूँ। यह छींका तो इतना ऊपर लगा हुआ है। मैं अपने नन्हे नन्हे हाथों से उस छींके तक कैसे पहुंच सकता हूँ।

बाल गोपाल ने दूसरी दलील लेते हुए कहा कि मेरे यह जो साथी बाल-ग्वाले हैं, यह सब मेरे दुश्मन हैं। इन्होंने ही जबरदस्ती मेरे मुँह पर माखन लगा दिया ताकि आप यह समझो कि मैंने ही माखन चुराया है।

वह माता यशोदा जी कहते हैं कि हे मैया, आप मन की बहुत भोली हो, जो आप इन बाल-ग्वालों की बातों में आ गईं। यदि आपके मन में कोई भेद है यदि आप मुझे पराया मानती हो तो यह लो अपनी छड़ी और कंबल। इससे तुमने मुझे अब बहुत नाच नचा लिया। अब तुम मुझे जो सजा देनी चाहो तो दे दो।

बाल गोपाल कृष्ण के मुँह से ऐसी बाल सुलभ बातें सुनकर माता यशोदा भाव विह्वल हो गईं और उन्होंने बाल गोपाल को अपने गले से लगा लिया।


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‘सच्ची तीर्थयात्रा’ कहानी क्या है। कहानी के आधार पर सच्ची तीर्थयात्रा कहानी का मूल भाव अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

एलिशा ने येरुशलम जाने का विचार क्यों त्याग दिया? (सच्चा तीर्थयात्री)

‘सच्ची तीर्थयात्रा’ कहानी क्या है। कहानी के आधार पर सच्ची तीर्थयात्रा कहानी का मूल भाव अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

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‘सच्ची तीर्थयात्रा’ कहानी दो मित्रों की कहानी है। इस कहानी में दोनों मित्र अलग-अलग स्वभाव वाले मित्र हैं। एक मित्र बेहद परोपकारी तथा मानवता को प्राथमिकता देने वाला मित्र है तो दूसरा मित्र ईश्वर की दिखावटी भक्ति ही करता है। उसकी दीन-दुखियों की सेवा करने में कोई रुचि नहीं है।

यह कहानी एलिशा और एफिम नाम के दो वृद्ध मित्रों की कहानी है, जो रूस के एक गाँव में रहते हैं। दोनों बेहद घनिष्ठ मित्र थे। एक बार दोनों ने प्रसिद्ध तीर्थस्थान येरुशलम की तीर्थयात्रा करने का विचार किया। अपने इस विचार को पूरा करने के लिए दोनों अपने घर से येरुशलम की अपनी यात्रा के लिए निकल पड़े।

रास्ते में एक जगह विश्राम करने के लिए जब वह एक झोपड़ी में शरण लेने के लिए घुसे तो वहां झोपड़ी में रहने वाले तीनों प्राणियों की हालत बेहद खराब थी। वह लोग बीमार थे। एक महिला मरणासन्न अवस्था में झोपड़ी में पड़ी थी। एक बच्चा बेहद भूखा था।

उन लोगों की हालत देखकर एलिशा जो बेहद परोपकारी और मानवतावादी था, उसने वहीं पर रुककर उन तीनों की सेवा करने के विचार किया जबकि एफिम केवल दिखावटी ईश्वर भक्ति वाला व्यक्ति था उसने उन दीन-दुखियों की सेवा करने की जगह अपने आगे की तीर्थ यात्रा को पूरा करने का निश्चय किया और एलिशा को वहीं पर छोड़कर येरुशलम की अपनी आगे की यात्रा पर निकल पड़ा।

यह कहानी हमें यह संदेश देती है कि असहाय मानव तथा दीन-दुखियों की सेवा करना ही सबसे सच्ची तीर्थयात्रा है। तीर्थ यात्रा का सार्थक अर्थ तब है जब हम मानवता को प्राथमिकता दें।

बड़े-बड़े तीर्थ स्थान में जाकर ईश्वर के दर्शन करना ही तीर्थयात्रा नहीं होती। तीर्थयात्रा तब सच्ची होगी जब हम मानवता को प्राथमिकता देंगे। यदि रास्ते में हमें किसी दीन-दुखी की सहायता करने के अवसर मिले तो उसकी सहायता करने से ना चूकें।

किसी असहाय की सहायता करने के अवसर को ठुकराकर तीर्थयात्रा करने पर व्यक्ति का तीर्थयात्रा का सार्थक अर्थ नहीं रह पाता।

संक्षेप में यह कहानी असहाय और दीन-दुखियों की सेवा करने को ही सच्ची तीर्थयात्रा बताती है।


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एफिम एलिशा को अकेला छोड़कर क्यों चला गया? (सच्चा तीर्थयात्री)

एलिशा ने येरुशलम जाने का विचार क्यों त्याग दिया? (सच्चा तीर्थयात्री)

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एलिशा ने येरूशलम जाने का विचार इसलिए त्याग दिया क्योंकि येरुशलम की आगे यात्रा के लिए उसके पास पर्याप्त पैसे नही बचे थे। पैसे समाप्त हो जाने के कारण उसने अपनी आगे तीर्थयात्रा को स्थगित कर दिया और येरुशलम जाने का विचार त्याग दिया।

येरुशलम की अपनी तीर्थयात्रा के दौरान विश्राम करने के लिए रात में वह जिस झोपड़ी में रुका था, उस झोपड़ी के रहने वाले तीनों प्राणी असहाय और बीमार थे। एलिशा उन तीनों प्राणियों की हालत देखकर उनकी सेवा करने के लिए वहीं पर रुक गया।

उसने मानवता का कर्तव्य निभाया। तीनों प्राणियों के लिए उसने पर्याप्त भोजन का प्रबंध किया। उन लोगों को आगे नियमित रूप से दूध मिलता रहे, इसलिए गाय खरीदी। उनके खेत में जुताई के लिए बैल खरीदा और उनके लिए आने वाले कुछ महीनो के लिए पर्याप्त अनाज खरीद कर रख दिया। इस सारी प्रक्रिया में उसके सारे पैसे खर्च हो गए। अब वह येरुशलम नहीं जा सकता था क्योंकि उसके पास पर्याप्त धन नहीं था। इसलिए उसने येरूशलम जाने का अपना विचार त्याग दिया और वापस अपने घर की ओर चल पड़ा।

विशेष

‘सच्चा तीर्थयात्री’ कहानी दो मित्रों एलिशा और एफिम की कहानी है। दोनों येरुशलम जाने के लिए तीर्थ यात्रा पर निकले हैं। रास्ते में विश्राम के लिए उन्हें एक झोपड़ी में रुकना पड़ता है। उस झोपड़ी में तीन प्राणी रहते हैं जो बेहद बीमार और भूखे हैं।

एलिशा उन तीनों प्राणियों की सेवा करने के लिए वहीं पर रुक जाता है जबकि एफिम को येरुशलम जाने की जल्दी है। वह एलिशा को वहीं पर अकेला छोड़कर येरुशलम जाने के लिए अपनी आगे की यात्रा पर निकल पड़ता है। एलिशा मानवता की सेवा को प्राथमिकता देता है जबकि एफिम मानवता की सेवा को ठुकराकर अपनी तीर्थयात्रा के लिए आगे निकल जाता है। इस तरह एलिशा एक सच्चा तीर्थयात्री है क्योंकि वह दीन-दुखियों की सेवा करने को प्राथमिकता देता है, क्योंकि दीन-दुखिओ की सेवा करना ही सच्ची तीर्थयात्रा है।

 


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एलिशा ने तीनों प्राणियों की सेवा किस प्रकार की? संक्षेप में लिखिए। (सच्चा तीर्थयात्री)

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एलिशा ने तीनों प्राणियों की सेवा करने के लिए सबसे पहले झोपड़ी की सफाई की। फिर उसने सफाई करने के बाद झोपड़ी में रखा चूल्हा जलाया और भोजन बनाया।

भोजन बनाने के लिए वह सारी आवश्यक सामग्री बाजार से खरीद कर लाया था। उसने भोजन बनाकर तीनों प्राणियों को खिलाया। उसके बाद उसने तीनों प्राणियों के लिए रोज के लिए दूध का प्रबंध करने के लिए एक गाय खरीदी तथा उनका खेत जोतने के लिए एक बैल भी खरीदा।

इस तरह तीनों प्राणियों के लिए भविष्य के भोजन-पानी-आजीविका की व्यवस्था होती रहे, ऐसा उसने प्रबंध कर दिया। खेत में जब तक अगली फसल तैयार हो, तब तक गुजारा करने के लिए उसने पर्याप्त अनाज खरीद कर झोपड़ी में रख दिया।

इस तरह एलिशा ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार उन तीनों प्राणियों की भरपूर सेवा की। तीनों प्राणियों की मदद करने में उसके वह सारे पैसे खर्च हो गए जो उसने येरुशलम की अपनी यात्रा तीर्थ यात्रा करने के लिए घर से निकलते समय लिए थे।

विशेष

‘सच्चा तीर्थयात्री’ कहानी दो मित्रों एलिशा और एफिम की कहानी है, जो रूस के किसी गाँव के रहने वाले हैं। दोनों येरुशलम की तीर्थयात्रा पर निकले हैं। रास्ते में विश्राम करने हेतु जब रात गुजारने के लिए जब एक झोपड़ी में शरण लेते हैं तो दोनो जब एक झोपड़ी में शरण लेते हैं। वहाँ वे देखते हैं कि झोपड़ी बेहद गंदी है और वहां पर तीन प्राणी रह रहे हैं, जो बेहद बीमार और भूखे हैं।

उन तीनों की गरीबी और बीमारी देखकर एलीशा उन तीनों की मदद करने के लिए वहीं पर रुक जाता है, जबकि एफिम वहां पर नहीं रुकता और येरूशलम की अपनी यात्रा के लिए आगे निकल पड़ता है। एलिशा वहीं पर रुककर उन तीनों प्राणियों की सेवा करता है और उनके लिए पर्याप्त सामान का प्रबंध करता है। इस तरह अपनी तीर्थ यात्रा के सच्चे अर्थ को सार्थक करता है।

 


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एफिम एलिशा को अकेला छोड़कर क्यों चला गया? (सच्चा तीर्थयात्री)

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एफिम एलिशा को छोड़कर इसलिए चला गया क्योंकि वह गंदी झोपड़ी में नहीं रुकना चाहता था। जैसे ही दोनों ने झोपड़ी में प्रवेश किया तो वहाँ पर तीव्र दुर्गंध आ रही थी। वहाँ पर एक बीमार महिला पड़ी हुई कराह रही थी। एफिम को यह सब देखकर घृणा सी हुई। वह जल्दी से जल्दी येरूशलम पहुंचाना चाहता था जबकि एलीशा उस झोपड़ी में रुककर उन बीमार लोगों की मदद करना चाहता था। एलिशा उनकी सेवा करने के लिए झोपड़ी में रुक गया जबकि एफिम जल्दी-जल्दी येरुशलम जाने के लिए एलिशा को अकेला छोड़कर ही चला गया।

विशेष

‘सच्चा तीर्थयात्री’ कहानी में एलिशा और एफिम दो अलग-अलग स्वभाव वाले मित्र थे। येरुशलम की अपनी तीर्थयात्रा के लिए जाते समय जब रास्ते में एक झोपड़ी पड़ी तो वहां पर झोपड़ी में बीमार लोगों को देखकर एलिशा उन बीमार लोगों की सेवा करने के लिए वहीं पर रुक गया जबकि एफिम येरुशलम जल्दी पहुंचने के लिए आगे निकल गया। एलिशा के अंदर सच्ची सेवा भावना थी। एफिम के अंदर सेवा भावना नहीं थी।


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एलिशा और एफिम दोनों का स्वभाव एक दूसरे के विपरीत स्वभाव था। एलिशा का स्वभाव सच्चा परोपकारी और मानवतावादी वाला स्वभाव था। वह मानवता की सेवा में ही ईश्वर की सेवा समझता था, जबकि एफिम का स्वभाव दिखावटी ईश्वर भक्ति वाला स्वभाव था।

एलीशा मानव की सेवा को ही सच्ची ईश्वर भक्ति समझता था, जबकि एफिम ऐसे स्वभाव का व्यक्ति नहीं था। अलीशा परोपकारी स्वभाव वाला व्यक्ति था। वे लोग भले ही ईश्वर के दर्शन करने के लिए येरुशलम की अपनी तीर्थयात्रा के लिए निकले थे लेकिन रास्ते में किसी दुखी असहाय परिवार को देखकर एलिशा उनकी सेवा करने के लिए रुक गया। उसने मानवता की सेवा में ही ईश्वर की सेवा को प्राथमिकता दी, जबकि एफिम उस दुखी परिवार के व्यक्तियों को देखकर भी वहां नहीं रुका और येरुशलम की अपनी यात्रा पर आगे निकल गया।

इस तरह एलिशा सच्चा मानवतावादी, परोपकारी स्वभाव का व्यक्ति था, वही सच्चा तीर्थयात्री था, जबकि अफीम केवल पाखंडी स्वभाव वाला व्यक्ति था जो दिखावटी ईश्वर भक्ति करता था। मानव की सेवा में उसे कोई रुचि नही थी।

विशेष

‘सच्ची तीर्थयात्रा’ कहानी में एलिशा और एफिम नामक के दो वृद्ध थे। दोनों एक दूसरे के मित्र थे। दोनों रूस के एक गाँव के रहने वाले थे। दोनों ने ईसाइयों के तीर्थ स्थान येरुशलम की यात्रा करने की ठानी और तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़े।

रास्ते में रात गुजारने के लिए वह झोपड़ी के पास रुके। जब वह उसके अंदर गए तो वहां पर बेहद दुर्गंध आ रही थी और और एक बेहद बीमार महिला झोपड़ी में पड़ी हुई थी। उसके पास उसका लड़का भी था। दोनों बेहद भूखे थे अलीशा उन लोगों की हालत देखकर उसी झोपड़ी में रुक गया और उनकी सेवा करने में जुट किया, जबकि एफीम यह सब देखकर घृणा से भर उठा और वहाँ से तुरंत चला गया क्योंकि वह जल्दी से जल्दी येरूशलम पहुंचाना चाहता था।

एलिशा ने बीमार लोगों की मदद की और अपने सारे पैसे बीमार लोगों की मदद करने में खर्च कर दिये जबकि एफिम ने ऐसा नहीं किया। इस तरह एलिशा सच्चा तीर्थयात्री बन क्योंकि मानवता की सेवा ही सच्ची तीर्थयात्रा है।


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महत्वाकांक्षाओं का कभी अंत नही होता। इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

विचार लेखन

महत्वाकांक्षाओं का कभी अंत नही होता

 

महत्वकांक्षाओं का कभी अंत नहीं होता। यह उस आग की तरह हैं, जिसमें महत्वाकांक्षों को पूरा करने वाला ईधन डालकर उन्हें और अधिक भड़का दिया जाता है। जिस तरह आग में ईंधन डालने से आग और अधिक भड़कती है, उसी तरह महत्वाकांक्षाओं की जितनी अधिक पूर्ति होती है, ये उतनी ही अधिक भड़कती जाती हैं।

इच्छाओं का अंत नही होता है। मानव की इच्छाएं असीमित हैं। महत्वाकांक्षा इच्छाओं का बड़ा और विस्तृत रूप होती हैं। जिस तरह इच्छाओं का भंडार अमीमित होता हैं, एक इच्छा पूरी होते ही दूसरी इच्छा जन्म ले लेती है उसी तरह व्यक्ति की महत्वाकांक्षा भी ठीक वैसी होती हैं। जैसे ही एक महत्वाकांक्षा पूरी होती है, व्यक्ति के अंदर दूसरी महत्वाकांक्षा जन्म ले लेती है।

मानव का स्वभाव हमेशा कुछ ना कुछ पाने में लगे रहने का है। मानव हमेशा कुछ न कुछ पाने के लिए कोशिशों में लगा रहता है।  जब मानव की एक महत्वाकांक्षा पूर्ण हो जाती है, तो वह अपनी दूसरी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने में लग जाता है।

जिस व्यक्ति की कोई महत्वाकांक्षा पूर्ण हो जाती है, वह उसके किसी न किसी कोशिश के कारण ही पूर्ण होती है। इसी कारण उस व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास जग जाता है। उसे लगता है कि वह हर कार्य को कर सकता है। हर चीज को पा सकता है। उसकी यही कामना उसके अंदर और अधिक महत्वाकांक्षाओं को जन्म देती है।

मानव कभी संतोषी नहीं रह पाता। उसके अंदर हमेशा और अधिक पाने की भूख लगी रहती है। इसी कारण उसकी महत्वाकांक्षाओं का अंत नही हो पाता।


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ये कुछ अंग्रेजी के शब्द हैं, इनको हिंदी में लिखने पर एक मिठाई का नाम बन जाएगा। बताओ, कौन-कौन सी मिठाई है? 1) Moon Art 2) Black Rose Berry 3) Mr. Division 4) Royal Piece 5) Art Root 6) Sand Monarch 7) Message 8) Hair Sweet 9) Tree Come 10) Crushed Pearl 11) Twinkle Twinkle 12) Scratch 13) Droplets 14) Holy Mysore 15) Like husband​

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अंग्रेजी के इन शब्दों को हिंदी में बदलने पर एक मजेदार मिठाईं का नाम बन जाएगा। सारी मिठाई के नाम इस प्रकार हैं…

1) Moon Art : चंद्रकला

चंद्रकला खोआ, मैदा, सूजी को से बनती है। ये मिठाई भारत के बिहार राज्य की पारंपरिक और प्रसिद्ध मिठाई है।

2) Black Rose Berry : काला गुलाब जामुन

गुलाब जामुन भारत की एक प्रसिद्ध मिठाई है, जो भारत के हर क्षेत्र में लोकप्रिय है। खोआ (मावा) से बनी ये मिठाई गुलाब जामुन और काला गुलाब जामुन के नाम दो मिठाईयां होती है। काल गुलाब जामुन एकदम काले रंग का होता है तो गुलाब जामुन हल्के भूरे रंग का होता है।

3) Mr. Division : श्रीखंड

श्रीखंड दही से बनी से हुई मिठाई है। दही में चीन और सूखे मेवे डालकर ये मिठाई बनाई जाती है। ये मिठाई गुजरात राज्य में बेहद लोकप्रिय है।

4) Royal Piece : राजभोग

राजभोग दूध और छेने से बनी मिठाई है। ये भी पूरे भारत में लोकप्रिय मिठाई है।

5) Art Root : कलाकंद

कलाकंद मिठाई खोआ (मावा), पनीर, दूध, चीनी को मिलाकर बनती है। चौकोर आकार की ये मिठाई भारत की बेहद प्राचीन मिठाई है और उत्तर भारत में बेहद लोकप्रिय है।

6) Sand Monarch : बालूशाही

बालूशाही उत्तर भारत की लोकप्रिय मिठाई है। ये मिठाई केवल मैदा से बनती है। मैदे के मिश्रण से छोटी गोल मिठाई बनाकर उन्हें घी तला जाता है और फिर चाशनी में डुबोकर खाया जाता है।

7) Message : संदेश

संदेश मिठाई बंगाल की बेहद लोकप्रिय मिठाई है। ये पनीर में चीनी और इलायची मिलाकर बनाई जाती है। इसे बंगाल मे सोंदेश कहा जाता है।

8) Hair Sweet : बाल मिठाई

बाल मिठाई भारत के उत्तराखंड राज्य की एक लोकप्रिय मिठाई है। ये मिठाई खोआ से बनती है। खोआ पर चीनी के द्वारा लेप किया जाता है, जिससे ये चाकलेट की तरह दिखती है। ये उत्तराखंड विशेषकर अल्मोड़ा और कुमाऊँ मंडल में बेहद लोकप्रिय है।

9) Tree Come : पेड़ा

पेड़ा भारत की सबसे लोकप्रिय मिठाई है । यह भारत के सभी हिस्सों में बेहद लोकप्रिय है। यह खोआ से बनी मिठाई है। खोआ में चीनी मिलाकर उसको अच्छी तरह भूनकर उससे छोटे-छोटे गोल टुकड़े बना लिए जाते हैं। ये भारत के अलग-अलग देश में अलग-अलग रंग और आकार में बनाई जाती है।

10) Crushed Pearl : मोतीचूर

मोतीचूर बेसन से बनी मिठाई है। बेसन के घोल से छोटी-छोटी नन्ही गोलियां बनाकर तल लिया जाता है। इन  गोलियां को चीनी की चाशनी में डुबोकर मीठा कर लिया जाता है, फिर उनसे छोटे-छोटे आकार के लड्डू बना लिए जाते हैं।

11) Twinkle Twinkle : चमचम

चमचम एक प्रसिद्ध मिठाई है। ये उत्तर भारत और बंगाल में लोकप्रिय मिठाई है। ये बंगाली मिठाई है। यह भी रसगुल्ले की तरह बनाई जाती है।  छेने से चपटे पीस बनाकर उनमें खोआ और नारियल की स्टफिंग की जाती है।

12) Scratch : खुरचन

खुरचन उत्तर भारत की लोकप्रिय मिठाई है। दूध को पकाकर बेहद गाढ़ा कर लिया जाता है। दूध से खोआ बनाते समय जो विधि अपनाई जाती है वही इस मिठाई को बनाने मे अपनाई जाती है।

13) Droplets : बूंदी

बूंदी भी भारत की एक लोकप्रिय मिठाई है। इस मिठाई को बेसन से बनाया जाता है। बेसन के पतले घोल से छोटी-छोटी गोलियां बना ली जाती हैं। उन गोलियों को चाशनी में डुबोकर लिया जाता है, जिससे नन्ही-नन्हीं मीठी-मीठी बूंदियां बन जाती हैं। यह उत्तर भारत लोकप्रिय मिठाई है। ये भारत मे मंदिरो में प्रसाद के रूप में बहुत प्रयोग में लाई जाती है।

14) Holy Mysore : मैसूर पाक

मैसूर पाक भी एक बार लोकप्रिय मिठाई है। यह मिठाई दक्षिण भारत की लोकप्रिय मिठाई है। विशेषकर भारत के कर्नाटक राज्य की यह पारंपरिक मिठाई है। इसको बनाने में बेसन का प्रयोग किया जाता है। बेसन को अच्छी तरह से भूलकर उसमें चीनी मिलाकर मिश्रण तैयार कर लिया जाता है। फिर उससे छोटे-छोटे टुकड़े बना दिए जाते हैं।

15) Like husband​ : पतीसा

पतीसा को बेसन की बर्फी भी कहा जा सकता है। बेसन को देसी घी में अच्छी तरह से भूनकर उसमें चीनी मिलाकर मिश्रण तैयार कर लिया जाता है। उस मिश्रण में इलायची पाउडर तथा सूखे मेवे मिलाकर छोटे-छोटे बर्फी के आकार के टुकड़े बना लिए जाते हैं।

 


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बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से क्यों जाता था और बदलू को ‘बदलू मामा’ ना कहकर ‘बदलू काका’ क्यों कहता था? (लाख की चूड़ियाँ)

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बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से इसलिए जाता था, क्योंकि लेखक के मामा के गाँव में बदलू नाम का एक व्यक्ति रहता था, जो लाख की चूड़ियाँ बनाता था। बदलू से लेखक को रंग-बिरंगी लाख की गोलियां मिलती थीं। चूँकि लेखक उस समय बच्चा था तो किसी भी बच्चे के लिए रंग-बिरंगी गोलियां मन को मोहने का कार्य करती थीं। इसीलिए लेखक मामा के गाँव में बड़े चाव से जाता था और बदलू से ढेर सारी लाख की गोलियां लेता था। जब वह अपने मामा के गाँव से वापस आता था तो उसके पास ढेरों लाख की रंग-बिरंगी गोलियां होती थीं।

लेखक बदलू को बदलू मामा ना कहकर बदलू काका इसलिए कहता था क्योंकि गाँव के सभी बच्चे उसे बदलू काका ही कहा करते थे। लेखक के मामा के गाँव का होने के कारण लेखक द्वारा बदलू को मामा कहना चाहिए था, लेकिन वह बदलू को बदलू काका कहता था क्योंकि गाँव के सभी बच्चे बबलू को बबलू काका ही कहा करते थे। इसी कारण लेखक ने भी बदलू को बदलू काका कहकर पुकारना शुरू कर दिया।

संदर्भ पाठ

‘लाख की चूडियाँ’ पाठ कामता प्रसाद द्वारा लिखा गया एक ऐसा पाठ है, जिसमें लाख की चूड़ियां बनाने वाले बदलू नामक व्यक्ति के बारे में बताया गया है, जो लाख की चूड़ियां बनाता था लेकिन धीरे-धीरे कांच की चूड़ियां होने के कारण उसकी लाख की चूड़ियां की बिक्री कम होने लगी और उसका धंधा बंद हो गया। (‘लाख की चूड़ियाँ’, पाठ 2, कक्षा 11)


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फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि कौन कौन सा प्रयास करता है?

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कवि फूलों को अनंत काल तक विकसित करने के लिए अनेक तरह के प्रयास करना चाहता है। कवि चाहता है कि वसंत ऋतु में जो सुगंधित व आकर्षक फूल खिले हुए हैं। वह यूं ही हमेशा अनंत काल तक खिलते रहें। इसके लिए कवि उन फूलों को आलस्य और प्रमाद से निकाल कर उन्हें चिरकाल तक खेलते रहने के लिए प्रेरित कर रहा है। ताकि वे सदैव अपनी सुगंध यूँ ही बिखेरते रहें।कवि उन फूलों को युवा का प्रतीक मानता है और वह उनके अंदर से उनका आलस्य और प्रमाद को हमेशा के लिए समाप्त कर देना चाहता है, ताकि वह जोश और उमंग से भरकर देश के विकास में अपना योगदान दे।

विशेष :

‘ध्वनि’ कविता जोकि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखी गई है, उस के माध्यम से कवि निराला युवा मन में जोश भरने का प्रयत्न कर रहे हैं। वे आशावादी दृष्टिकोण अपनाकर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे हैं।

संदर्भ पाठ :

(‘ध्वनि’ कविता – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, पाठ 1, कक्षा 8)


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फ्रांस को छींक आती है तो शेष यूरोप को ठंड लग जाती है यह किसने कहा ?

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जब फ्रांस को छींक आती है तो शेष यूरोप को ठंड लग जाती है। यह बात ‘मेटरनिख’ ने कही थी।

व्याख्या :

मेटरनिख यूरोप की राजनीति का एक प्रमुख नेता था। मेटरनिख ऑस्ट्रिया में जन्मा एक राजनीतिक नेता था। वह ऑस्ट्रिया साम्राज्य में विदेश मंत्री रह चुका था। उसी ने फ्रांस के संदर्भ में यह बात कही थी कि यदि फ्रांस को छींक आती है तो पूरे यूरोप को सर्दी जुकाम हो जाता है।

जब मेटरनिख ने यह बात कही थी तो उस समय यूरोप में फ्रांस का प्रभुत्व था और फ्रांसीसी साम्राज्य यूरोप का एक प्रमुख साम्राज्य था। मेटरनिख ने यूरोप की राजनीति में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नेपोलियन के पतन के बाद मेटरनिख ही यूरोपीय राजनीति का एक प्रमुख चेहरा बन गया था। मैटरनिख के नेतृत्व में ही ऑस्ट्रियाई साम्राज्य यूरोप का एक महत्वपूर्ण साम्राज्य बन गया था।


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पेयजल की समस्या हेतु स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

पेयजल की समस्या हेतु स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र

 

दिनांक : 1 सितंबर 2023

सेवा में,
श्रीमान स्वास्थ्य अधिकारी,
स्वास्थ्य विभाग, नगरपालिका,
गुरुग्राम (हरियाणा)

विषय : पेयजल की समस्या के संबंध में शिकायत पत्र

स्वास्थ्य अधिकारी महोदय,
प्रार्थी गुरुग्राम के सेक्टर 4 का निवासी है। गुरुग्राम के सेक्टर 4 में पेयजल की अत्यधिक कमी है। यहाँ आजकल लगभग एक ही घंटा पानी आता है, और उसका दबाव इतना कम होता है कि केवल सड़क पर लगे नल से ही बूँद–बूँद पानी टपकता है। आस–पास के घरों के लोग वहीं से पानी भरते हैं। ऐसी अवस्था में केवल एक या दो लोग ही पानी भर पाते हैं। थोड़ी दूरी पर नगरपालिका की ओर से एक हैंडपम्प भी लगाया गया है, किन्तु उसका पानी इतना खारा और कीटाणुयुक्त है कि उसे किसी काम में नहीं लाया जा सकता है।

आपसे अनुरोध है कि सेक्टर-4 के निवासियों की कठिनाइयों को देखते हुए शीघ्र अति शीघ्र कदम उठाएँ। हम सदा आपके आभारी रहेंगे।

धन्यवाद सहित ,

प्रार्थी ,
महेन्द्र श्रीवास्तव,
अध्यक्ष, रेजीडेंस वेलफेयर सोसायटी,
सेक्टर – 4, गुरुग्राम,


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गर्मी के मौसम में पेयजल की समुचित व्यवस्था के लिए टैंकर भिजवाने हेतु कार्यालय पत्र लिखें।

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पहली सवाक ‘आलम आरा’ फिल्म बनाते समय कोई संवाद लेखक और गीतकार क्यों नहीं था?

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पहली बोलती यानि सवाक फिल्म ‘आलम आरा’ बनाते समय कोई भी संवाद लेखक और गीतकार इसलिए नहीं था, क्योंकि उस समय फिल्म में संवाद लेखक और गीतकार का नाम डालने का प्रचलन नहीं शुरु हुआ था। चूँकि ये भारत की पहली बोलती फिल्म थी। इसके लिए संवाद लेखक और गीतकार की पहली बार ही आवश्यकता पड़ी थी, लेकिन ये काम स्वयं निर्देशक आर्देशर ईरानी ने किया था। इसलिये उन्हे फिल्म में संवाद लेखक और गीतकार तथा संगीतकार का नाम नही डाला।

जब निर्देशक आर्देशिर ईरानी ने भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ बनाई तो उस समय उनका बजट बहुत सीमित था और उनके पास कोई संवाद लेखक और गीतकार नहीं था, ना ही संगीतकार था। यह पहली बोलती फिल्म थी और संवाद लेखक, गीतकार, संगीतकार इन भूमिकाओं की शुरुआत होने थी। इसीलिए आर्देशिर ईरानी ने फिल्म के गाने की धुन स्वयं बनाई थी और केवल तीन वाद्य यंत्रों तबला, हारमोनियम और वायलिन की सहायता से उनकी धुन और गाने तैयार किए थे। गीतकार और संगीतकार के रूप में किसी का नाम नहीं डाला गया। पार्श्व गायन का काम डब्ल्यूएम खान ने किया था। पहले बोलते गाने के बोल थे, ‘दे दे खुदा के नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है’।

संदर्भ पाठ ‘जब सिनेमा ने बोलना सीखा’ (कक्षा 8, पाठ 11)


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पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठी को कौन पढ़ पाते हैं? सोचकर लिखिए।

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पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठियों को प्रकृति के तत्व ही पढ़ पाते हैं।

प्रकृति के इन तत्वों में पेड़, पौधे, झील, तालाब, नदी, पर्वत, समुंदर, हवा, पानी आदि होते हैं।पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठियों को सामान्य व्यक्ति नहीं पढ़ पाता। पक्षी और बादल द्वारा लाई गई इन चिट्ठियों में विश्व-बंधुत्व, प्रेम-सद्भाव का संदेश छुपा होता है क्योंकि पक्षी और बादल सीमाओं के बंधन से परे हैं। वह भौगोलिक सीमाओं में भेदभाव नही करते और भौगोलिक सीमा से परे हर जगह अपना संदेश ले जाते हैं। पक्षी और बादल भगवान के डाकिए की तरह कार्य करते हैं। प्रकृति के तत्व भगवान के डाकिए द्वारा लाए गए इन संदेशों को पढ़ कर समझ जाते हैं।


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‘नवोत्पल’ संधि विच्छेद और संधि का नाम बताएं।

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नवोत्पल का संधि विच्छेद :

शब्द : नवोत्पल

नवोत्पल : नव + उत्पल

संधि भेद : गुण स्वर संधि

 

स्पष्टीकरण

‘नवोत्पल’ में ‘गुण स्वर संधि’ होगी। ‘गुण स्वर संधि ‘के नियम के अनुसार जब ‘अ’ और ‘उ’ मिलन होता है तो वह ‘ओ’ में परिवर्तित हो जाता है। दिए गए शब्द में ‘नव’ के अंतिम वर्ण की ध्वनि ‘अ’ है, तथा ‘उत्पल’ के प्रथम वर्ण की ध्वनि ‘उ’ है। दोनों का मेल होकर ‘ओ’ परिवर्तित हो रहा है। इसी कारण यहाँ पर ‘गुण स्वर संधि’ होगी।

संधि क्या है?

संधि से तात्पर्य दो वर्णों के संयोजन से है जब दो वर्णों का संयोजन करके नए शब्द की उत्पत्ति की जाती है, तो उसे ‘संधि’ कहते हैं। ‘संधि’ के द्वारा बने गये शब्दो को उनके मूल शब्दों में पृथक कर देने की प्रक्रिया ‘संधि विच्छेद’ कहलाती है।

संधि तीन प्रकार की होती है।

  • स्वर संधि
  • व्यंजन संधि
  • विसर्ग संधि

‘दीपावली अक्टूबर-नवंबर महीने में मनाई जाती है।’ वाच्य भेद बताइए।

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दीपावली अक्टूबर-नवंबर महीने में मनाई जाती है। वाच्य भेद इस प्रकार होगा :

दीपावली अक्टूबर-नवंबर महीने में मनाई जाती है।

वाच्य भेद : कर्तृवाच्य

स्पष्टीकरण :

इस वाक्य में कर्तृवाच्य है, क्योंकि इस वाक्य के वाच्य से कर्ता की प्रधानता का आभास हो रहा है, इसलिए यह वाक्य ‘कर्तृवाच्य’ है।वाच्य के माध्यम से किसी वाक्य में क्रिया में कर्ता की प्रधानता अथवा कर्म की प्रधानता अथवा भाव की प्रधानता का बोध होता है।

थोड़ा और जानें :

हिंदी व्याकरण में वाच्य क्रिया का वह रूप होता है, जो वाक्य में कर्ता की प्रधानता अथवा कर्म की प्रधानता अथवा भाव प्रधानता का बोध कराता है।

वाच्य के तीन भेद होते हैं।·

  • कर्तृवाच्य
  • कर्मवाच्य
  • भाववाचक

जिस वाक्य में कर्ता की प्रधानता होती है, वह कर्तृवाच्य कहलाता है।
जैसे
माँ ने बेटे को खाना दिया।

जिस वाक्य में कर्म की प्रधानता होती है, वह कर्मवाच्य कहलाता है।
जैसे
माँ द्वारा बेटे को खाना दिया।

जिस वाक्य में भाव की प्रधानता होती है, वह भाववाच्य कहलाता है।
जैसे
माँ से बेटे को खाना दिया जाता।


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माता अपनी संतान को समान भाव से प्रेम करती है। धरती के सभी प्राणी उसकी संतान के समान हैं. इसीलिए धरती माता सभी प्राणियों को एक दृष्टि से देखती है और ऊँच-नीच का भेद नही करती।धरती माता के लिए कोई भी प्राणी बड़ा-छोटा, ऊँचा-नीचा नहीं है। मनुष्य स्वयं को भले ही अमीर, सेठ, राजा माने लेकिन धरती माता के लिए वह केवल उसकी संतान है। केवल एक प्राणी है। धरती माता के लिए कोई अमीर नहीं, कोई गरीब नहीं क्योंकि जिस धन पर गर्व करके लोग स्वयं को अमीर मानते हैं, वह धन यहीं पर रह जाना है। वह धन धरती माता की ही धरोहर है। धरती माता जानती है कि कोई भी प्राणी अमीर-गरीब नहीं, क्योंकि उनके पास जो है, वह धरती माता का यह है। इसलिए धरती माता ऊँच-नीच का भेद नहीं करती।


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अनौपचारिक पत्र

नानाजी को पत्र

 

दिनांक : 4/10/2023

 

मकान न. 24, ग्रीन पार्क कॉलोनी ,
खलिनी, शिमला-171002 ,

पूजनीय नाना जी,
चरण स्पर्श

आशा करता हूँ कि आप सब गाँव में स्वस्थ होंगे। हम भी यहाँ पर कुशल से हैं। नाना जी, इस बार हमने दशहरा बहुत ही धूम-धाम से मनाया। माता और पिता जी ने तो सात दिन का उपवास रखा हुआ था और अष्टमी को हमारे घर में कन्यायों का पूजन भी किया गया। माँ ने हलवा और पूरी का प्रसाद बनाया था।

मैंने इस बार कॉलोनी में प्रदर्शित रामलीला में भी भाग लिया और लक्ष्मण का किरदार निभाया। सभी ने मेरे अभिनय के बहुत प्रशंसा की और मैंने रामलीला के माध्यम से प्रभु श्रीराम के जीवन बारे में बहुत कुछ जाना। इस बार हमारी कॉलोनी के साथ के मैदान में दशहरे के दिन एक भव्य मेले का भी आयोजन किया गया था। वहाँ पर दिन भर मैंने और दीदी ने कई तरह के खेलों में भाग लिया और कई तरह के पकवानों का आनंद लिया। शाम को रावण का विशाल पुतला भी जलाया गया।

नाना जी, रावण का पुतला बहुत बड़ा बनाया गया था और सैंकड़ों लोग इस रावण दहन को देखने आए थे। मैंने इस त्योहार को बहुत हर्शौल्लास से मनाया और यह भी समझा कि बुराई पर अच्छाई की सदा जीत होती है।

अब सर्दियों की छुट्टियाँ होने वाली हैं और हम जल्द ही आपके पास आ जाएंगे। कृपया आप अपनी सेहत का ध्यान रखना। बाकी यहाँ सब ठीक है और आपके स्वस्थ रहने की कामना करता हूँ।

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‘तताँरा-वामीरो की कथा’ ने किस पुरानी प्रथा का अंत किया?

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दिनांक : 4 मई 2023

 

सेवा में,
श्रीमान महापौर,
ऊना नगर निगम,
ऊना, हिमाचल प्रदेश,

विषय : पेयजल की समुचित व्यवस्था के संबंध में ।

महोदय,
हम सब ऊना के रक्कड़ कॉलोनी के निवासी हैं और जैसा कि आप जानते हैं कि गर्मियों के मौसम में हर साल ऊना में पानी की भरी किल्लत का सामना करना पड़ता है और इस बार भी ऊना में गर्मी का प्रकोप बढ़ गया है और तापमान 48 डिग्री तक चला गया है। इस कारण हमें इस वर्ष भी पेयजल की कमी की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

कुछ समय तक तो हम सब प्राकृतिक सत्रोतों से पानी का इंतजाम कर रहे थे लेकिन अब तो यह स्त्रोत भी सूख गए हैं और इस कारण पीने के पानी की समस्या बहुत बढ़ गयी है। पिछले साल तो निगम ने नियमित तौर पर टैंकरो द्वारा पीने के पानी की व्यवस्था की थी लेकिन इस वर्ष निगम भी इस बावत कोई उचित कदम नहीं उठा रहा है।

हमने कई बार निगम के संबन्धित अधिकारियों को इस समस्या से अवगत भी करवाया है लेकिन अभी तक उन्होने इस समस्या का कोई उचित समाधान नहीं निकाला है। आप भी जानते हैं कि पानी जीवनयापन के लिए कितना अनिवार्य है और इसकी कमी होना एक बहुत गंभीर समस्या है।

स्थानीय पार्षद भी चुनाव के समय तो अनेकों वादे करते हैं लेकिन इस मुश्किल की घड़ी में वो भी मानो अदृश्य हो गए हैं। इसलिए इस पत्र के मधायम से आप से अनुरोध है कि कृपया आप हमारी इस समस्या का संज्ञान लें और शीघ्र हमारे क्षेत्र में टैंकरों के माध्यम से पेयजल की समुचित वयवस्था करने की कृपा करें।
धन्यवाद।

प्रार्थी,
समस्त रक्कड़ कॉलोनी निवासी,
ऊना, हिमाचल प्रदेश


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क्रिकेट अकादमी के चेयरमैन को आवेदन पत्र

दिनांक : 4/10/2023

 

सेवा में,
श्रीमान अध्यक्ष ,
हिमाचल प्रदेश क्रिकेट अकादमी ,
शिमला, हिमाचल प्रदेश

विषय: क्रिकेट अकादमी से अवकाश लेने के संबंध में।

महोदय,

जैसा कि आप जानते हैं कि मैं आपके कुशल नेतृत्व में चल रही क्रिकेट अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा हूँ और इस अकादमी ने मेरे जीवन में कई सकारात्मक बदलाव लाये हैं।

श्रीमान जी, इस आवेदन के माध्यम से मैं आज अपने चाचा के अप्रत्याशित निधन के बारे में आपको सूचित करना चाहता हूँ । मेरे चाचा जी जोकि हमारे पैतृक गाँव भदोल, कुल्लू में रहते थे, कल रात एक लंबी बीमारी के बाद, यह संसार छोड़ कर चले गए हैं । मेरे चाचा जी की कोई संतान नहीं है और उन्होने सदा मुझे ही अपना पुत्र की तरह प्यार दिया है। इस कारण मुझे उनके अंतिम संस्कार और अन्य व्यवस्थाओं के लिए अपने गाँव जाना पड़ रहा है। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि उक्त परिस्थिति को देखते हुए मुझे चार दिन का अवकाश देने की कृपा करें।

मैं आपसे वादा करता हूँ कि छुट्टी से वापिस आकार पुनः अपने प्रशिक्षण में पूरी तन्मयता से लग जाऊंगा। मैं आशा करता हूँ कि आप मेरी परिस्थिति को समझेंगे और मुझे यह चार दिन का अवकाश लेने की अनुमति प्रदान करेंगे।
धन्यवाद।

आपका आज्ञाकारी,
भव्य भवानी सिंह
छमाही- 1


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किस सामाजिक बुराई के कारण तताँरा तथा वामीरो का संबंध सफल नहीं हो सका था? (तताँरा-वामीरो की कथा)

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तताँरा-वामीरो का संबंध उस सामाजिक बुराई के कारण सफल नहीं हो सका, जिसके अंतर्गत अंडमान निकोबार द्वीप समूह के सभी गाँव में यह कुप्रथा यानि सामाजिक बुराई थी कि किसी एक गाँव का युवक या युवती किसी दूसरे गाँव के युवक या युवती से विवाह नहीं कर सकते।

युवक-युवती के पारस्परिक विवाह के लिए यह आवश्यकता था कि वह युवक और युवती दोनों एक ही गाँव के निवासी हों। अंडमान निकोबार द्वीप समूह के सभी गाँव में यह कुप्रथा थी कि अलग-अलग गाँव के युवक युवती विवाह नहीं कर सकते थे।

एक ही गाँव के युवक युवती ही विवाह कर सकते थे। क्योंकि तताँरा और वामीरो अलग-अलग गाँव के रहने वाले थे। तताँरा ‘पासा’ गाँव का निवासी था जबकि वामीरो ‘लपाती’ गाँव की निवासिनी थी। इसी कारण दोनों के बीच प्रेम होने के बावजूद गाँव वालों ने उन दोनों के विवाह संबंध को सफल नहीं होने दिया। इसी कारण तताँरा को अपने प्राण गंवाने पड़े और वामीरो तताँरा की याद में विक्षिप्त हो गई। इस सामाजिक बुराई का अंत तताँरा की मृत्यु और वामीरो के विक्षिप्त होने के बाद हुआ, जब गाँव वालों को इसका एहसास हुआ।

संदर्भ पाठ
‘तताँरा-वामीरो की कथा’ लीलाधर मंडलोई द्वारा लिखा गया एक पाठ है, जिसमें उन्होंने तताँरा और वामीरो नामक दो युवक-युवती के प्रेम कथा का वर्णन किया है। यह दोनों युवक-युवती अंडमान निकोबार द्वीप समूह के दो अलग-अलग गाँवों ‘पासा’ और ‘लपाती’ के निवासी थे।


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कहानी में ‘मोटे-मोटे किस काम के हैं’ यह घर के बच्चों के लिए कहा गया है। बच्चों के माता-पिता को ऐसा लगता है कि मोटे-मोटे बच्चे किसी काम के नहीं हैं, वे केवल दिनभर नौकरों पर हुकुम चलाते रहते हैं, खाना पीना खाते हैं, फिर सोते हैं, धमाचौकड़ी करते हैं। घर का कोई काम नहीं करते और आराम करते हैं। इसीलिए कहानी में मोटे-मोटे किस काम के घर के बच्चों के लिए कहा गया है।

विशेष :

‘कामचोर’ कहानी ‘इस्मत चुगताई’ द्वारा लिखी गई कहानी है, उसमें एक समृद्ध परिवार के आलसी बच्चों के बारे में बताया गया है, जो आलस के कारण कोई काम नहीं करना चाहते। उनसे काम कराने के लिए उनके माता-पिता को उपाय आजमाने पड़े।

संदर्भ पाठ : कक्षा -8, पाठ – 9, कामचोर, इस्मत चुगताई


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कवि पुष्पों की आलस्य और तंद्रा को दूर करने के लिए पुष्पों पर हाथ फेरकर उन्हें जगाना चाहता है। कवि अपने हाथों के कोमल स्पर्श से पुष्पों के अंदर प्राण ऊर्जा भरना चाहता है, ताकि उनके अंदर का आलस्य और तंद्रा पूरी तरह समाप्त हो जाए और वह चुस्त-दुरुस्त प्राणवान एवं पल्लवित और पुष्पित हो जाएं। कवि अपने हाथों के कोमल स्पर्श से उनके अंदर जोश एवं उमंग भरना चाहता है।

कवि पुष्पों को युवाओं का प्रतीक मानता है और उसके अनुसार यह युवा आलस्य और तंद्रा के वश में आकर सोये पड़े हैं। इसलिए वह अपने हाथों के कोमल स्पर्श से इनके अंदर जोश एवं उमंग भरकर उनके आलस्य और प्रमाद को दूर कर देना चाहता है। वह उनकी उन्हें तंद्रा से जगाकर उन्हें कर्तव्य पथ पर चलने के लिए प्रेरित करना चाहता है ताकि उनके अंदर नए उत्साह का संचार हो और वह अपने कर्तव्य की पूर्ति के लिए निकल पड़ें।

विशेष :

‘ध्वनि’ कविता जोकि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखी गई है, उस के माध्यम से कवि निराला युवा मन में जोश भरने का प्रयत्न कर रहे हैं। वे आशावादी दृष्टिकोण अपनाकर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे हैं।

संदर्भ :

(‘ध्वनि’ कविता – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, पाठ 1, कक्षा 11)


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कवि ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए इसलिए कहा है, क्योंकि डाकिए की तरह ही पक्षी और बादल भी संदेश लाने का कार्य करते हैं। लेकिन डाकिए, पक्षी एवं बादल में अंतर ये है, डाकिये द्वारा लाया गया संदेश सभी आमजन पढ़ सकते हैं, लेकिन पक्षी एवं बादल द्वारा लाए गए संदेशों को हर कोई नहीं पढ़ सकता। पक्षी और बादल द्वारा लाए गए संदेश को प्रकृति के तत्व जैसे पेड़-पौधे, पर्वत, नदी, तालाब आदि ही पढ़ पाते हैं।

पक्षी और बादल दोनों भौगोलिक सीमाओं से परे हैं और वे पूरे संसार में संदेश पहुंचाने का कार्य करते हैं। उन पर भौगोलिक सीमाओं का कोई बंधन नहीं है। भगवान पर भी भौगोलिक सीमाओं का कोई बंधन नहीं है, इसलिए कवि ने पक्षी एवं बादल को भगवान के डाकिए कहा है।


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स्वस्थ हो हर साँस, पर कैसे ? यह सवाल बहुत कठिन है। पर इसका जवाब सिर्फ मानव के पास ही है।
मानव जीवन शुद्ध वायु पर आधारित है। यदि वायु शुद्ध होगी तो सभी जीव शुद्ध वायु में साँस ले सकेंगे । हमारे देश की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस कारण जंगलों का अंधाधुंध सफाया होता जा रहा है।

अधिकतर जमीन पर खेती–बाड़ी हो रही है उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं आवासों का निर्माण लगातार हो रहा है। वृक्षों के अभाव से वायु की शुद्धता मे कमी आई है। यातायात और उद्योगों ने प्रदूषण को अधिक बढ़ा दिया है। कारखानों की चिमनियों तथा वाहनों आदि से जो ज़हरीली गैस निकलती है वह वायुमंडल को दूषित करती है और वायुमंडल में उपस्थित गैसों में असंतुलन पैदा कर देती है जिस कारण वायु ज़हरीली होती जा रही है।

वृक्ष एवं वन प्रकृति की देन हैं। वह हमारी अमूल्य प्राकृतिक संपदा हैं। वृक्ष प्रकृति का सुन्दर वरदान है। इनके बिना मानव जीवन ही नहीं प्राणि जीवन की कल्पना तक नहीं कर सकते हैं। वृक्षों से हमें लकड़ी प्राप्त होती है जो हमारी अनेक आवश्यकताओं को पूरा करती है। वृक्षों से ही हमें प्राण-वायु प्राप्त होती है। यदि वायु शुद्ध होगी तो हर साँस स्वस्थ होगी और यह तभी संभव जब अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाएगा। वृक्षा रोपण एक सामाजिक दायित्व है।


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नवरात्रि में होने वाले ध्वनि प्रदूषण पर शिकायत करते हुए पत्र

दिनांक 3 अक्टूबर 2023

 

सेवा में,
श्रीमान थाना अध्यक्ष महोदय,
रूपनगर कालोनी,
जोधपुर (राजस्थान)|

विषय : नवरात्रि में लाउडस्पीकर के कारण होने वाले प्रदूषण पर शिकायत के बाबत

माननीय थानाध्यक्ष महोदय,
निवेदन इस प्रकार है। मैं रूपनगर कॉलोनी का निवासी हूँ। हमारी कॉलोनी के मुख्य मैदान में नवरात्रि उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। मैं इस कारण होने वाले ध्वनि प्रदूषण के संबंध में आपसे शिकायत करना चाहता हूँ। कानूनन रात 10 बजे तक ही लाउटस्पीकर बजा सकते हैं और उसकी भी एक निश्चित ध्वनि सीमा है। लेकिन हमारे यहां होने वाले नवरात्रि उत्सव में नवरात्रि का आयोजक मंडल रात 12 बजे तक तेज तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाते रहते हैं। मना करने पर भी वह लोग बंद नहीं करते। उससे हम आसपास के लोगों को बेहद असुविधा का सामना करना पड़ता है। मेरे घर में बीमार माता-पिता हैं जिन्हें तेज आवाज के कारण नींद नहीं आती। हमें भी जल्दी सोना होता है ताकि सुबह जल्दी ऑफिस जा सकें, लेकिन तेज आवाज के कारण सही समय पर नहीं सो पाते।

अतः थाना अध्यक्ष महोदय से मेरा निवेदन है कि इस संबंध में उचित कार्रवाई करें और आयोजक मंडल को सख्त निर्देश दें 10 बजे तक केवल निर्धारित ध्वनि सीमा के अनुसार लाउडस्पीकर बजाएं ताकि आसपास के निवासियों को असुविधा का सामना नहीं करना पड़े।

धन्यवाद,

भवदीय,
राघवेन्द्र कोठारी,
रूपनगर कालोनी,
जोधपुर (राजस्थान) ।


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सूरदास ने अपने पदों के माध्यम से वात्सल्य और प्रेम रुपी जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठा प्रदान की है। सूरदास के पदों में माता यशोदा और श्रीकृष्ण के बीच माँ-पुत्र का वात्सल्य प्रेम प्रकट होता है।

माता यशोदा बाल श्रीकृष्ण के प्रति जिस तरह का वात्सल्य भाव प्रदर्शित करती हैं, वह वात्सल्यता की पराकाष्ठा है। उसी प्रकार श्रीकृष्ण अपनी बाल सुलभ लीलाओं से सभी का मन जिस तरह मोह लेते हैं। वह भी स्नेह और प्रेम को एक नई गरिमा प्रदान करता है।

सूरदास ने अपने पदों के माध्यम से श्रीकृष्ण की बाल सुलभ लीलाओं, हृदय को छू लेने वाले मनोभावों और उनके बुद्धि कौशल का सुंदरतम चित्रण किया है। श्रीकृष्ण का बात-बात पर रूठ जाना और माता यशोदा का द्वारा उनका मान-मनोहार करना और उन्हें मनाना एक सुंदर एवं अद्भुत दृश्य उत्पन्न करता है। इस तरह सूरदास ने अपने संकलित पदों के माध्यम से प्रेम, स्नेह एवं वात्सल्यता की महिमा का गुणगान किया है और इन्हीं जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठा प्रदान की है।


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लोगों ने भोर में बालगोबिन भगत का गीत इसलिए नहीं सुना क्योंकि बालगोबिन भगत के प्राण रात में ही सोते-सोते निकल गए थे। सुबह जब लोग जगे तो उन्हें बालगोबिन भगत का मृत शरीर पड़ा हुआ मिला। रात में सोते सोते ही कब उनके प्राण निकल गए किसी को पता नहीं चला।

विस्तार से

बालगोबिन भगत की मृत्यु से कुछ दिनों पहले से उनकी तबीयत खराब चल रही थी। उनकी वृद्धावस्था हो चली थी और शरीर में कमजोरी आ गई थी, लेकिन वह अपने व्रत-उपवास के नियम का नियमित पालन करते थे। वह कुछ दिनों पूर्व ही गंगा स्नान कर के आए थे, जहां वह हर साल नियमित रूप से जाते थे। उसके बाद उन्होंने व्रत-उपवास किया और अपने सभी काम-काज किये।

उनकी अस्वस्थता को देखकर लोगों ने नहाने-धोने और अधिक कामकाज न करने की सलाह दी तथा आराम करने को कहा, लेकिन वह हंसकर टालते रहे। जिस दिन उनकी मृत्यु हुई उस दिन भी उन्होंने शाम के समय संध्या गीत गाए और फिर सो गए। सुबह जब लोग जगे और उन्होंने बालगोबिन भगत का भोर का गीत नहीं सुना तो उन्होंने जाकर देखा तो पता चला बालगोबिन भगत नहीं रहे। उनका मृत शरीर पड़ा हुआ था।

संदर्भ पाठ

‘बालगोबिन भगत’ पाठ रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखा गया पाठ है, जिसमें उन्होंने बालगोबिन भगत नाम के एक सज्जन व्यक्ति का रेखाचित्र खींचा है।


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पारिवारिक जीवन पालन करने वाले बालगोबिन भगत को साधु कहना बिल्कुल तर्क-सम्मत है। साधु से तात्पर्य हाथ में कमंडल लेकर भगवा वस्त्र धारण कर जगह-जगह भटकने वाले व्यक्ति से नहीं होता। साधु से तात्पर्य सज्जन व्यक्ति से होता है, जिसका आचरण शुद्ध हो, वो सात्विक हो।

साधु कभी दूसरे के धन पर बुरी नजर नहीं रखता। साधु हमेशा दूसरों की सहायता करने के लिए तैयार रहता है, वह कभी झूठ नहीं बोलता और हमेशा ईश्वर का चिंतन मनन करता रहता है।बालगोबिन भगत पारिवारिक जीवन का पालन करने वाले एक व्यक्ति होने के साथ-साथ इन सभी गुणों से युक्त थे। वह हमेशा सच बोलते थे और कभी भी किसी दूसरे की वस्तु या धन पर कोई नजर नहीं रखते थे। वह किसी की वस्तु को बिना किसी कारण के नही छूते थे।

बालगोबिन भगत हमेशा ईश्वर का चिंतन करते रहते थे। सुबह सुबह उठकर ईश्वर के भजन गाते संध्या के समय भजन गाते। इसके अलावा उनके जो भी आचरण था, वह सज्जन व्यक्तियों वाला था। इसी कारण पारिवारिक जीवन का पालन करने वाले बालगोबिन भगत को साधु कहना बिल्कुल तर्क-सम्मत है।

संदर्भ पाठ :
‘बालगोबिन भगत’ पाठ रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखा गया है, जिसमें उन्होंने पारिवारिक जीवन का पालन करने वाले व्यक्ति का वर्णन किया है, जो पारिवारिक व्यक्ति होते हुए भी साधु और सज्जनों जैसा आचरण करते थे।


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शारंगदेव का ‘संगीत रत्नाकर’ ग्रंथ 13वीं शताब्दी में रचा गया एक ग्रंथ था। यह ग्रंथ शारंगदेव नाम के प्रसिद्ध संगीतकार ने 13वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में 1210 से 1247 ईस्वी के बीच किसी समय रचित किया था।

शारंग देव के संगीत रत्नाकर ग्रंथ को 8 अध्यायों में विभक्त किया गया है। प्रथम अध्याय के छठे प्रकरण में अलंकार के चार प्रकार बताए गए हैं तथा अलंकार के लक्षणों का वर्णन किया गया है।

शारंगदेव तेरहवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। उन्होंने ‘संगीत रत्नाकर’ के अलावा अन्य कई ग्रंथों की रचना की, लेकिन उनका एकमात्र संगीत रत्नाकर ग्रंथ ही प्रमाणिक रुप से आज उपलब्ध है।


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दिनाँक : 24 मार्च 2024

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
डी. ए. वी. पब्लिक स्कूल,
शिमला ।

विषय : छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र ।

महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके स्कूल का 10 वीं कक्षा का छात्र हूँ । मुझे कल रात से बहुत तेज बुखार है । डॉक्टर से दवा लेने के बाद उन्होनें मुझे कम से कम तीन दिन तक आराम करने कि सलाह दी है । इसी कारण से मैं अगले तीन दिनों के लिए स्कूल नहीं आ सकता। अतः आपसे निवेदन है कि आप मुझे तीन दिन की छुट्टी देने की कृपा करें । आपकी अति कृपा होगी।
सधन्यवाद,

प्रार्थी,
श्याम कुमार,
अनुक्रमांक १४
डीएवी पब्लिक स्कूल,
शिमला ।


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भारत में हर वर्ष 5 सितंबर ‘राष्ट्रीय शिक्षक दिवस यानी टीचर्स डे के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था।

वह एक महान शिक्षाविद थे और शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

इसलिए उनके जन्म दिवस के उपलक्ष में राष्ट्रीय शिक्षक दिवस यानी नेशनल टीचर्स डे मनाया जाता है।

टीचर्स डे 5 सितंबर 1962 से निरंतर मनाया जाता रहा है।

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जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

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