‘हिंसा परमो धर्मः’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक कहानी है। इस कहानी के माध्यम से लेखक मुंशी प्रेमचंद जी ने सभी धर्मों में फैले पाखंड और हिंसा की बात उठाई है।
कहानी का मूल भाव यह है कि धर्म हमेशा लड़ाने का कार्य करता है। उनके अनुसार सभी धर्मों के धर्माधीश बहुत अधिक असहिष्णु होते हैं। इस कहानी में ये बात स्पष्ट होती है, धार्मिक लोग चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले हों वह अपने-अपने धर्म में भले ही अहिंसा की बाते करते हैं, लेकिन मूल रूप से उनके स्वभाव में हिंसा ही भरी होती है। वह धर्म के नाम पर हिंसक होने से जरा भी नही चूकते।
लेखक के अनुसार अधिकतर धार्मिक लोगों का आचरण अधार्मिक होता है। वह धर्म में भले ही सदाचार की बातें करते हों, वास्तव में वह उतने ही दुराचारी होते हैं। लेखक के अनुसार अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग बाहर से सद्गुणी और सदाचारी होने का दिखावा करते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर उनमें अवगुण और दुराचार ही भरा होता हैं।
कहानी का मुख्य पात्र जामिद नाम का एक मुसलमान व्यक्ति है, जो एक छोटे से गाँव में रहता था। गाँव में हर किसी की मदद के तत्पर रहता था। वह किसी का छोटा-मोटा काम कर दिया करता था, बदले में कोई उसे कुछ खाना आदि दे दिया करता था। एक दिन लोगों ने उसे समझाया कि इस तरह तब तक दूसरों का काम करोगे, खुद अपने बारे में सोचो। बीमारी और बुढ़ापे में कोई तुम्हारे काम नही आने वाला। ये सुनकर जामिद वह अपने गाँव से शहर निकल पड़ा।
गाँव से शहर में आकर उसने धर्म के नाम पर हो रहे कारोबार को देखा। उसके गाँव में यह सब नहीं था। पहले उसे एक मंदिर में शरण मिली और उसकी खूब आवभगत हुई। कुछ दिनों बाद में मंदिर के वही धार्मिक लोग किसी बात हिंसक हो गए और उसकी पिटाई की। किसी तरह उसकी जान बची। फिर उसे एक मस्जिद में शरण मिली तो वहाँ पर शुरु में उसकी खातिरदारी हुई लेकिन वहाँ पर भी मौलवी द्वारा किसी महिला के प्रति गलत आचरण करते देख जामिद को सहन नही हुआ। उसने महिला को उस मौलवी से बचाया।
इस तरह उसने हिंदू और इस्लाम दोनों धर्मों में धर्म के नाम पर फैले हिंसक और दुराचार से भले कृत्यों को देखा तो उसे अक्ल आई कि इससे अच्छा उसका छोटा सा गाँव है, जहाँ पर न तो कोई मंदिर-मस्जिद है और न ही धर्म के नाम पर लोग इतना लड़ते हैं।
निष्कर्षमुंशी प्रेमचंद की इस कहानी ‘हिंसा परमो धर्मः‘ का मूल भाव यही है कि सभी धर्म हिंसा से भरे हुए हैं। सभी धर्म भले ही अहिंसा की बातें करते हैं। लेकिन उनका मूल धर्म हिंसा करना ही होता है। धर्म के नाम पर लोग जरा-जरा सी बात पर हिंसा करने के लिए उतारु हो जाते हैं। सदाचार की बात करने वाले सभी धर्माधीश दुराचार करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। यह कहानी धर्म के पाखंड को उजागर करती है। |