औपचारिक पत्र
संपादक को पत्र
दिनांक 14.3.2024
सेवा में,
मुख्य संपादक,
नवभारत,
जंतर मंतर,
न्यू दिल्ली -110001
विषय- दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम हेतु।
संपादक महोदय,
मैं दिल्ली के जहाँगीर पुरी का एक स्थायी निवासी हूँ और पिछले 20 साल से यहाँ रह रहा हूँ। महोदय, पिछले सप्ताह दूरदर्शन पर एक दहेज पर कार्यक्रम का प्रसारण किया गया था आर इस पत्र के माध्यम से मैं इस कार्यक्रम के बारे में ही कुछ बातें आप से साझा करना चाहता हूँ।
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के बारे में जनता को बताना था लेकिन इस कार्यक्रम में यह भी दर्शाया गया कि दहेज देकर माता-पिता अपनी संतान के सुख-समृधि सुनिश्चित कर लेते हैं और इसका तो यह मतलब हुआ कि अगर कोई माँ-बाप मर्जी से दहेज देते हैं तो इसमें कोई गलत बात नहीं है।
श्रीमान, अगर ऐसा ही संदेश हम अपने कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को देंगे तो यह दहेज प्रथा जैसा दानव कभी खत्म नहीं होगा। जब यह कहा जाता है की जुर्म करने वाला और जुर्म सहने वाला दोनों दोषी होते हैं तो यह कैसे मान लिया जाये कि दहेज अगर खुशी से दिया जा रहा है तो यह सही है। उस कार्यक्रम में भी यह दिखाया गया कि लड़के वाले दहेज नहीं मांग रहे थे, लेकिन जब लड़की वालों ने दहेज देने की बात कही तो वो एकदम से राजी हो गए। यह तो वही बात हुई कि कान एक हाथ से नहीं दूसरे हाथ से पकड़ लो।
अगर इस दहेज रूपी अजगर को इस समाज से हटाना है तो हमें यह जनता के सामने लाना होगा कि दहेज मांगने वाले तो गलत हैं लेकिन दहेज जबर्दस्ती देने वाले इस प्रथा को जीवित रखने में ज्यादा ज़िम्मेवार हैं और इसलिए दूरदर्शन जिसके कार्यक्रम पूरे देश में प्रसारित होते हैं, को ऐसे कार्यक्रम दिखाने चाहिए जो समाज में एक सही संदेश दे सके और ऐसे कार्यक्रमों में तुरंत प्रभाव से अंकुश लगना चाहिए जो इन सामाजिक कुरीतियों को और बढ़ावा देने के तरीके सुझाते हैं।
कृपया आप अपने समाचार पत्र में इस मुद्दे को जरूर जगह दें ताकि दूरदर्शन और अन्य चैनल ऐसे कार्यक्रम भविष्य में ना प्रसारित करें।
धन्यवाद ।
एक पाठक,
राजेंद्र कुमार,
संकटमोचन कॉटेज,
A-ब्लॉक,
जहांगीरपुरी,
नई दिल्ली-110013