सूरदास के अनुसार ऐसा व्यक्ति मूर्ख कहलायेगा जो पवित्र गंगा नदी के पास खड़ा है, उसको प्यास लगी है, और अपनी प्यास बुझाने के लिए वहाँ पर कुआँ खुदवाये।
सूरदास जी कहते हैं…
मेरो मन अनत कहां सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै॥
कमलनैन कौ छांड़ि महातम और देव को ध्यावै।
परमगंग कों छांड़ि पियासो दुर्मति कूप खनावै॥
जिन मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै।
सूरदास, प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै॥
भावार्थ : सूरदास जी का कहना है कि श्रीकृष्ण भगवान के अलावा मुझे और कहीं सुख नहीं मिलता। जिस तरह समुद्र में जहाज पर बैठा पक्षी जहाज छोड़कर घूमफिर वापस जहाज पर ही आएगा। उसी तरह कमलनयन श्रीकृष्ण को छोड़कर मैं और भला किस की ध्यान-उपासना करूं। यह तो बिल्कुल उसी प्रकार होगा कि गंगा किनारे के पास खड़ा व्यक्ति परम पावन गंगा नदी के पवित्र पानी को छोड़कर अपनी प्यास बुझाने के लिए वह कुएँ को खुदवाये। ऐसे व्यक्ति को मूर्ख व्यक्ति ही कहेंगे। फूलों के मधुर रस को चूसने वाला भंवरा भला करील के कड़वे फल को क्यों चखेगा। कामधेनु गाय को छोड़कर भला बकरी को कोई कौन दुहेगा।
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