मुंबई मेल के एक डिब्बे में चढ़ना कठिन इसलिए था, क्योंकि मुंबई मेल का हर डिब्बा एयरटाइट था यानी कि उसमें सब डिब्बे में मुसाफिर भरे हुए थे। केवल वो एक डिब्बा थोड़ा खाली नजर तो आ रहा था लेकिन उसमें एक पठान अंदर से दरवाजा बंद करके बैठा था और वह किसी को अंदर घुसने नही दे रहा धा।
लेखक के अनुसार लेकिन थर्ड क्लास कंपार्टमेंट के उस डिब्बे में चढ़ना शेर की दाढ़ से गोश्त निकालने के जैसा था क्योंकि उस डिब्बे के दरवाजे को अंदर के मुसाफिरों ने बंद कर रखा था। लेखक सहित सात मुसाफिर उस डिब्बे में घुसने की जुगाड़ में वहीं पर खड़े थे। तभी रौबीले पेशावरी पोशाक पठान का चेहरा बाहर निकल कर इधर देखने लगा।
लेखक के साथ 6 अन्य मुसाफिर उस डिब्बे में घुसने के जुगाड़ में वहीं पर खड़े थे, लेकिन उस पेशावरी पठान ने सबको देखकर कहा कि ‘डब्बा नहीं खुलेगा’। यह सुनकर बाकी पाँच मुसाफिर तो तुरंत दूसरे डिब्बे में घुसने के लिए चले गए। लेखक और एक मुसाफिर वहीं पर खड़े रहे। उस मुसाफिर ने वहाँ पर पास में खड़े टिकट चैकर को शिकायत करते हुए कहा कि ‘ये पठान साहब पूरे डब्बे को घेर कर बैठे हैं और चढ़ने नहीं दे रहे।’ तब चैकर में पठान को डब्बा खोलने का आदेश दिया, कि आप दूसरे मुसाफिरों को यूँ चढ़ने से नही रोक सकते।दरवाजा खोलिए। तब पठान ने धमकी देते हुए दरवाजा खोलते हुए कहा कि ट्रेन के चलने पर दोनों मुसाफिरों को उठाकर बाहर फेंक देगा।
संदर्भ पाठ
धूपबत्ती – जली-बुझी
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