विचार लेखन
महत्वाकांक्षाओं का कभी अंत नही होता
महत्वकांक्षाओं का कभी अंत नहीं होता। यह उस आग की तरह हैं, जिसमें महत्वाकांक्षों को पूरा करने वाला ईधन डालकर उन्हें और अधिक भड़का दिया जाता है। जिस तरह आग में ईंधन डालने से आग और अधिक भड़कती है, उसी तरह महत्वाकांक्षाओं की जितनी अधिक पूर्ति होती है, ये उतनी ही अधिक भड़कती जाती हैं।
इच्छाओं का अंत नही होता है। मानव की इच्छाएं असीमित हैं। महत्वाकांक्षा इच्छाओं का बड़ा और विस्तृत रूप होती हैं। जिस तरह इच्छाओं का भंडार अमीमित होता हैं, एक इच्छा पूरी होते ही दूसरी इच्छा जन्म ले लेती है उसी तरह व्यक्ति की महत्वाकांक्षा भी ठीक वैसी होती हैं। जैसे ही एक महत्वाकांक्षा पूरी होती है, व्यक्ति के अंदर दूसरी महत्वाकांक्षा जन्म ले लेती है।
मानव का स्वभाव हमेशा कुछ ना कुछ पाने में लगे रहने का है। मानव हमेशा कुछ न कुछ पाने के लिए कोशिशों में लगा रहता है। जब मानव की एक महत्वाकांक्षा पूर्ण हो जाती है, तो वह अपनी दूसरी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने में लग जाता है।
जिस व्यक्ति की कोई महत्वाकांक्षा पूर्ण हो जाती है, वह उसके किसी न किसी कोशिश के कारण ही पूर्ण होती है। इसी कारण उस व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास जग जाता है। उसे लगता है कि वह हर कार्य को कर सकता है। हर चीज को पा सकता है। उसकी यही कामना उसके अंदर और अधिक महत्वाकांक्षाओं को जन्म देती है।
मानव कभी संतोषी नहीं रह पाता। उसके अंदर हमेशा और अधिक पाने की भूख लगी रहती है। इसी कारण उसकी महत्वाकांक्षाओं का अंत नही हो पाता।
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