एलिशा ने तीनों प्राणियों की सेवा करने के लिए सबसे पहले झोपड़ी की सफाई की। फिर उसने सफाई करने के बाद झोपड़ी में रखा चूल्हा जलाया और भोजन बनाया।
भोजन बनाने के लिए वह सारी आवश्यक सामग्री बाजार से खरीद कर लाया था। उसने भोजन बनाकर तीनों प्राणियों को खिलाया। उसके बाद उसने तीनों प्राणियों के लिए रोज के लिए दूध का प्रबंध करने के लिए एक गाय खरीदी तथा उनका खेत जोतने के लिए एक बैल भी खरीदा।
इस तरह तीनों प्राणियों के लिए भविष्य के भोजन-पानी-आजीविका की व्यवस्था होती रहे, ऐसा उसने प्रबंध कर दिया। खेत में जब तक अगली फसल तैयार हो, तब तक गुजारा करने के लिए उसने पर्याप्त अनाज खरीद कर झोपड़ी में रख दिया।
इस तरह एलिशा ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार उन तीनों प्राणियों की भरपूर सेवा की। तीनों प्राणियों की मदद करने में उसके वह सारे पैसे खर्च हो गए जो उसने येरुशलम की अपनी यात्रा तीर्थ यात्रा करने के लिए घर से निकलते समय लिए थे।
विशेष
‘सच्चा तीर्थयात्री’ कहानी दो मित्रों एलिशा और एफिम की कहानी है, जो रूस के किसी गाँव के रहने वाले हैं। दोनों येरुशलम की तीर्थयात्रा पर निकले हैं। रास्ते में विश्राम करने हेतु जब रात गुजारने के लिए जब एक झोपड़ी में शरण लेते हैं तो दोनो जब एक झोपड़ी में शरण लेते हैं। वहाँ वे देखते हैं कि झोपड़ी बेहद गंदी है और वहां पर तीन प्राणी रह रहे हैं, जो बेहद बीमार और भूखे हैं।
उन तीनों की गरीबी और बीमारी देखकर एलीशा उन तीनों की मदद करने के लिए वहीं पर रुक जाता है, जबकि एफिम वहां पर नहीं रुकता और येरूशलम की अपनी यात्रा के लिए आगे निकल पड़ता है। एलिशा वहीं पर रुककर उन तीनों प्राणियों की सेवा करता है और उनके लिए पर्याप्त सामान का प्रबंध करता है। इस तरह अपनी तीर्थ यात्रा के सच्चे अर्थ को सार्थक करता है।
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