एलिशा और एफिम दोनों का स्वभाव एक दूसरे के विपरीत स्वभाव था। एलिशा का स्वभाव सच्चा परोपकारी और मानवतावादी वाला स्वभाव था। वह मानवता की सेवा में ही ईश्वर की सेवा समझता था, जबकि एफिम का स्वभाव दिखावटी ईश्वर भक्ति वाला स्वभाव था।
एलीशा मानव की सेवा को ही सच्ची ईश्वर भक्ति समझता था, जबकि एफिम ऐसे स्वभाव का व्यक्ति नहीं था। अलीशा परोपकारी स्वभाव वाला व्यक्ति था। वे लोग भले ही ईश्वर के दर्शन करने के लिए येरुशलम की अपनी तीर्थयात्रा के लिए निकले थे लेकिन रास्ते में किसी दुखी असहाय परिवार को देखकर एलिशा उनकी सेवा करने के लिए रुक गया। उसने मानवता की सेवा में ही ईश्वर की सेवा को प्राथमिकता दी, जबकि एफिम उस दुखी परिवार के व्यक्तियों को देखकर भी वहां नहीं रुका और येरुशलम की अपनी यात्रा पर आगे निकल गया।
इस तरह एलिशा सच्चा मानवतावादी, परोपकारी स्वभाव का व्यक्ति था, वही सच्चा तीर्थयात्री था, जबकि अफीम केवल पाखंडी स्वभाव वाला व्यक्ति था जो दिखावटी ईश्वर भक्ति करता था। मानव की सेवा में उसे कोई रुचि नही थी।
विशेष
‘सच्ची तीर्थयात्रा’ कहानी में एलिशा और एफिम नामक के दो वृद्ध थे। दोनों एक दूसरे के मित्र थे। दोनों रूस के एक गाँव के रहने वाले थे। दोनों ने ईसाइयों के तीर्थ स्थान येरुशलम की यात्रा करने की ठानी और तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़े।
रास्ते में रात गुजारने के लिए वह झोपड़ी के पास रुके। जब वह उसके अंदर गए तो वहां पर बेहद दुर्गंध आ रही थी और और एक बेहद बीमार महिला झोपड़ी में पड़ी हुई थी। उसके पास उसका लड़का भी था। दोनों बेहद भूखे थे अलीशा उन लोगों की हालत देखकर उसी झोपड़ी में रुक गया और उनकी सेवा करने में जुट किया, जबकि एफीम यह सब देखकर घृणा से भर उठा और वहाँ से तुरंत चला गया क्योंकि वह जल्दी से जल्दी येरूशलम पहुंचाना चाहता था।
एलिशा ने बीमार लोगों की मदद की और अपने सारे पैसे बीमार लोगों की मदद करने में खर्च कर दिये जबकि एफिम ने ऐसा नहीं किया। इस तरह एलिशा सच्चा तीर्थयात्री बन क्योंकि मानवता की सेवा ही सच्ची तीर्थयात्रा है।
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