‘मीरा के पदों’ में मीराबाई के व्यक्तित्व की दो प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं…
- मीराबाई ने सदैव श्री कृष्ण को अपना आराध्य देव माना है। उन्होंने श्री कृष्ण को अपना प्रियतम मानकर उनके प्रियतम रूप की आराधना की है। उन्होंने श्री कृष्ण को अपना ईश्वर और पति दोनों माना है। इस तरह उन्होंने अपने पदों के माध्यम से अपनी भक्ति को श्रंगारिक रूप भी प्रदान किया है।
- मीराबाई का व्यक्तित्व गरिमामयी, संत कवयित्री का रहा है। उन्होंने श्री कृष्ण की भक्ति के लिए राजसी वैभव को भी ठुकरा दिया और पूरी तरह साधु-संत का सादा जीवन अपनाते हुए अपना पूरा जीवन काल श्री कृष्ण की भक्ति के लिए समर्पित कर दिया। इसके लिए उन्होंने समाज के अनेक विरोध सहे। इस तरह उनका व्यक्तित्व एक साहसी महिला के रूप में उभरता है।
मीराबाई के व्यक्तित्व की कुछ अन्य विशेषताएं…
- मीराबाई ने श्रंगार के दोनों रूपों अर्थात संयोग और वियोग श्रृंगार के पदों की रचना की है। उनके पदों में वियोग श्रृंगार का मार्मिक चित्रण अधिक मिलता है। मीराबाई ने अपने पदों के माध्यम से भक्ति की पराकाष्ठा को प्रकट किया है। वह अपने अस्तित्व को भुलाकर स्वयं को श्री कृष्ण के प्रेम में समाहित कर देना चाहती हैं।
- मीराबाई श्री कृष्ण की सेवा को ही अपने जीवन का उच्चतम बिंदु मानती हैं और श्री कृष्ण के दर्शन करने के लिए सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहती हैं।
- मीराबाई के पदों में स्त्रियों की पराधीनता के प्रति उनका दुख भी प्रकट होता है। वह अपने तत्कालीन समाज में स्त्रियों की दयनीय स्थिति के लिए भी चिंतित दिखाई देती थीं।
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कबीर, गुरुनानक और मीराबाई इक्कीसवीं शताब्दी में प्रासंगिक है कैसे?