सोभित कर नवनीत लिए।
घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥
चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।
लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥
कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।
धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥
संदर्भ : इस पद की रचना सूरदास ने की है। सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के भक्ति पदों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने अधिकतर पदों में श्रीकृष्ण के बाल रूप का लीलाओं का वर्णन किया है। इस पद में सूरदास जी ने बाल कृष्ण के अनुपम सौंदर्य अद्भुत मनोहारी चित्रण किया है।
भावार्थ : सूरदास जी कहते हैं कि बाल कृष्ण अपने हाथों में मक्खन लिए अद्भुत रूप से मनोहारी दिखाई देते हैं। अपने बाल रूप में जब वह घुटनों के बल चलते हैं और तो अद्भुत दृश्य उत्पन्न होता है। उनके मुँह पर दही लगा हुआ है तो उनके शरीर पर मिट्टी के छोटे-छोटे कण चिपके हुए हैं। उनके सुंदर कोमल गाल बेहद बेहद प्यारे दिखाई दे रहे हैं। बालकृष्ण की आँखों में चपलता और चंचलता है और उनके माथे पर गोरोचन का तिलक लगा हुआ है।
उनके लहराते बालों की आदि पर लटकती हुई और झूलती हुई लटें इस तरह प्रतीत हो रही है, जैसे कि भंवरा मीठे शहर को पीकर मतवाला उठता है। बालकृष्ण का यह असीम सौंदर्य को उनके गले में पड़ा हुआ कंठहार और उनके सिंह के समान नाखून और अधिक मनोहारी बना देते हैं।
सूरदास कहते हैं कि कृष्ण के इस अद्भुत बात रूप का वर्णन करते हुए कहते हैं कि कृष्ण के इस बाल रूप के दर्शन के लिए एक पल के लिए भी किसी को हो जाए तो उसका पूरा जीवन धन्य हो जाता है। जो लोग कृष्ण के इस अद्भुत रूप का दर्शन नही कर पाते उनका सौ कल्पों तक जीना भी निरर्थक है।
काव्य सौंदर्य :
सूरदास को वात्सल्य रस का सम्राट माना जाता है। उन्होंने इस पद को वात्सल्य रस से पूर्ण किया है। इस पद में कृष्ण के मनोहारी रूप का वर्णन होने का कारण इसमें श्रंगार रस भी प्रकट हो रहा है।
इस पद में सूरदास ने अलग-अलग अलंकारों की छटा भी बिखेरी। इस पद में अनुप्रास अलंकार, रूपक अलंकार और उत्प्रेक्षा अलंकार की छटा देखने को मिलती है
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