लोगों ने भोर में बालगोबिन भगत का गीत इसलिए नहीं सुना क्योंकि बालगोबिन भगत के प्राण रात में ही सोते-सोते निकल गए थे। सुबह जब लोग जगे तो उन्हें बालगोबिन भगत का मृत शरीर पड़ा हुआ मिला। रात में सोते सोते ही कब उनके प्राण निकल गए किसी को पता नहीं चला।
विस्तार से
बालगोबिन भगत की मृत्यु से कुछ दिनों पहले से उनकी तबीयत खराब चल रही थी। उनकी वृद्धावस्था हो चली थी और शरीर में कमजोरी आ गई थी, लेकिन वह अपने व्रत-उपवास के नियम का नियमित पालन करते थे। वह कुछ दिनों पूर्व ही गंगा स्नान कर के आए थे, जहां वह हर साल नियमित रूप से जाते थे। उसके बाद उन्होंने व्रत-उपवास किया और अपने सभी काम-काज किये।
उनकी अस्वस्थता को देखकर लोगों ने नहाने-धोने और अधिक कामकाज न करने की सलाह दी तथा आराम करने को कहा, लेकिन वह हंसकर टालते रहे। जिस दिन उनकी मृत्यु हुई उस दिन भी उन्होंने शाम के समय संध्या गीत गाए और फिर सो गए। सुबह जब लोग जगे और उन्होंने बालगोबिन भगत का भोर का गीत नहीं सुना तो उन्होंने जाकर देखा तो पता चला बालगोबिन भगत नहीं रहे। उनका मृत शरीर पड़ा हुआ था।
संदर्भ पाठ
‘बालगोबिन भगत’ पाठ रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखा गया पाठ है, जिसमें उन्होंने बालगोबिन भगत नाम के एक सज्जन व्यक्ति का रेखाचित्र खींचा है।
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